तकनीक से खेती करने में किसानों को उत्पादन दोगुना मिलता है. इस से पानी का उपयोग 50 फीसदी तक कम हो जाता है. इस के साथ ही समय से पहले फसल आने के कारण किसानों को उपज के अच्छे भाव मिलते हैं. लो टनल या रो कवर्स संरक्षित खेती में अच्छा उत्पादन लेने की एक तकनीक है.

अपेक्षाकृत बहुत कम लागत में फसल तैयार हो जाती है और थोड़े समय (3-4 महीने) में इस से मुनाफा कमा सकते हैं. इस से खेतों मे धोरेनुमा क्यारियां बना कर उन पर विशेष तरह से सुरंग का आकार देते हुए प्लास्टिक को लगाया जाता है. इस में प्लास्टिक की 200 माइक्रोन फिल्म लगानी उचित है. इस तकनीक से हम एक तरह की पौलीटनल यानी एक लोहे का सरिया, बांस की डंडियों की सहायता से सुरंग का निर्माण करते हैं. इस की ऊंचाई 1-1.5 फुट तक रखते हैं और लंबाई खेत के आकार के आधार पर रखते हैं. इस में सुरंग के दोनों सिरों को बंद कर देते हैं, जिस में समयसमय पर इस प्लास्टिक को ऊंचा कर के अपनी फसल में निराईगुड़ाई, खाद मिलाना आदि क्रियाएं करते हैं. इस सुरंगनुमा भाग में ड्रिप सिस्टम लगा कर उसे ट्यूबवैल से जोड़ दिया जाता है.

इस में करेला, लौकी, खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, धारीदार तोरई, चप्पनकद्दू, टिंडा, कद्दू की फसल लेने के लिए समय से पूर्व सर्दी के मौसम में ही बोआई कर दी जाती है. लो टनल बोआई इन फसलों को सर्दी से बचाने का काम करती है. इस के साथ ही साथ भीतर का वातावरण फसल के अनुकूल बना रहता है. ड्रिप सिस्टम से इस में सिंचाई की जाती है, जिस से पौधों को आवश्यकतानुसार पूरा पानी मिलता है. इस के साथ ही भाप के रूप में उड़ने वाले पानी को प्लास्टिक वायुमंडल में नहीं जाने देती, जिस के कारण टनल में भी नमी बनी रहती है. सर्दी के मौसम में लो टनल फसलें समय से पूर्व ही उपज देने लगती हैं. इस प्रकार बेमौसमी सब्जी से किसानों को दोगुनी आय मिलती है. उत्पादन तकनीक यह तकनीक राजस्थान के गरम शुष्क क्षेत्रों में कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए उपयोगी है.

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