पहले उम्रदराज लोग हृदय रोग से पीडि़त होते थे, अब युवाओं में भी हृदय संबंधित खतरे बढ़ गए हैं. इस का कारण जीवनशैली में भारी बदलाव का आना है, जिस में युवा गलत खानपान, रहनसहन और खराब पर्यावरण का शिकार बन रहे हैं. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में रहने वाले 40 साल के आनंद पटेल एक प्राइवेट कंपनी में जौब करते थे. एक दिन वे औफिस से लौट कर घर आए तो कुछ थकान महसूस कर रहे थे. फ्रैश हो कर वे आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गए.
कुछ देर बाद उन्हें सीने में जलन महसूस हुई और शरीर से पसीना निकलने लगा. कुछ ही देर में आनंद के बेहोश होने पर घर वाले आननफानन उन्हें अस्पताल ले गए, जहां डाक्टर ने जांच कर बताया कि हार्ट अटैक से उस की मौत हो गई है. कम उम्र में हार्ट अटैक का यह मामला अकेले आनंद जैसे नौजवान के साथ नहीं हुआ है. हमारे देश में इस तरह के मामले आएदिन देखने को मिल रहे हैं. इस की वजह डाक्टर लोगों की बदलती जीवनशैली को मान रहे हैं.
केंद्र सरकार ने गैरसंचारी रोग (एनसीडी) नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सितंबर 2022 तक प्रदेश के 2.98 करोड़ लोगों में से 65 प्रतिशत लोगों की स्क्रीनिंग का लक्ष्य दिया था. मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने 1.68 करोड़ व्यक्तियों की स्क्रीनिंग कर लक्ष्य पूरा किया तो केंद्र सरकार ने इसे बढ़ा कर 3.15 करोड़ कर दिया था. अब तक 2 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है. इस में सामने आया है कि राज्य में करीब 8 लाख 50 हजार लोग हाइपरटैंशन की चपेट में हैं. 4 लाख 61 हजार को डायबिटीज ने जकड़ लिया है.
रिपोर्ट के अनुसार, छिंदवाड़ा जिले में सर्वाधिक 64,246 लोग हाइपरटैंशन की चपेट में मिले हैं. इंदौर में सब से ज्यादा 24,750 व्यक्तियों में डायबिटीज की बीमारी मिली है. एनएचएम की डिप्टी डायरैक्टर डा. नमिता नीलकांत के मुताबिक, इंडिया हाइपरटैंशन कंट्रोल इनिशिएटिव 2018 में शुरू हुआ था. पहले मध्य प्रदेश के 6 जिले चुने गए थे, बाद में भोपाल, इंदौर, उज्जैन, बैतूल, नीमच, बड़वानी, रतलाम, सागर, गुना, पन्ना, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर और सीहोर सहित 17 जिलों को भी इस में शामिल किया गया. इस के तहत 30 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की स्क्रीनिंग की जानी थी.
कम उम्र में हार्ट अटैक जैसे गंभीर मामलों को देखते हुए मध्य प्रदेश ने इस में 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को भी शामिल किया. इस के तहत अस्पताल में किसी भी तरह के इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों के अलावा घरघर जा कर सर्वे किया गया था. इस में मरीजों का ब्लडप्रैशर का स्तर 140/90 से ऊपर मिला. शहरों में रहने वाले वयस्कों की तकरीबन 50 फीसदी से ज्यादा आबादी डायबिटीज की चपेट में है. इस का कारण आनुवंशिक तो है ही, इस के अलावा जीवनशैली भी एक बड़ी वजह है. मसलन, कंफर्टेबल लाइफ, फास्टफूड का सेवन, शरीर में कैलोरी का असंतुलन, मोटापे की वजह से भी डायबिटीज पनप जाती है. डायबिटीज लैवल कंट्रोल करने के लिए मरीज नियमित रूप से स्क्रीनिंग कराएं और अपनी डाइट में संतुलन बना कर रखें.
उन फल और सब्जियों से परहेज करें जिन के खाने से डायबिटीज लैवल बढ़ जाता है. नियमित ऐक्सरसाइज के साथ डाक्टर की सलाह लें और उस का पालन भी करें. बढ़ रहे हैं दिल के मरीज पहले ज्यादा उम्र के लोग हृदय रोग से पीडि़त होते थे, लेकिन अब कम उम्र में भी हार्ट अटैक का खतरा बढ़ गया है. 45 से अधिक की उम्र, चलनेफिरने से परहेज, एक ही जगह बैठ कर घंटों मोबाइल का प्रयोग, हाई कोलैस्ट्रौल युक्त भोजन और डायबिटीज, ब्लडप्रैशर की बीमारी दिल को भी खतरे में डाल सकती है.
हार्ट स्पैशलिस्ट डा. डी एस चौधरी बताते हैं कि तेल, घी, मक्खन का खाने में उपयोग कम से कम करने के साथ ही ताजा सब्जी, फल ज्यादा से ज्यादा खाना चाहिए. मटन और अंडे में कोलैस्ट्रौल ज्यादा होता है, इसलिए इस के सेवन से परहेज करें. अकसर देखा गया है कि सो कर उठने से ले कर, नहाने, खाने और सोने तक का समय उन का अनिश्चित रहता है.
ऐसे लोग हमेशा अस्तव्यस्त रहने के कारण तनाव में रहते हैं. जिन व्यक्तियों की दिनचर्या उचित व नियमित होती है, उन का जीवन सुख और संतोष से भरा होता है, जबकि यदि दिनचर्या व्यवस्थित नहीं है तो एक ओर मन में अशांति उत्पन्न होती है, वहीं समूची शारीरिक क्रियाएं भी बिगड़ जाती हैं और व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रोगों से पीडि़त हो जाता है. नियमित दिनचर्या से हमारे कार्य न सिर्फ क्रमबद्ध और नियोजित होते हैं बल्कि समाज में दूसरे लोगों पर उस का सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है. जीवन को स्वस्थ और सुखी बनाने के लिए प्रतिदिन समय पर उठना और समय पर सोना नियमित दिनचर्या का पहला सूत्र है.
सुबह एकदो किलोमीटर पैदल चलना और रात्रि के भोजन के बाद लगभग एक हजार कदम टहलना आप को स्वस्थ व तंदुरुस्त रखता है. महिलाओं की दिनचर्या घरेलू महिलाओं की दिनचर्या आमतौर पर सब से ज्यादा अनियमित होती है. अपने पति व बच्चों की दिनचर्या को नियमित रखने के चक्कर में उन की खुद की दिनचर्या बिगड़ जाती है. बच्चों को स्कूल और पति को काम पर भेजने के बाद दोपहर को 2 से 3 बजे तक वे खाना खा पाती हैं.
दिनचर्या अनियमित रहने से महिलाओं का स्वभाव क्रोधी व चिड़चिड़ा हो जाता है. नैशनल हौस्पिटल, जबलपुर की डाक्टर सुभदा तिवारी का मानना है कि काम की व्यस्तता की वजह से महिलाओं की दिनचर्या अस्तव्यस्त रहने व सही खानपान न होने के कारण वे अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पाती हैं. ऐसे में महिलाओं में अनिद्रा, तनाव, ब्लडप्रैशर, डायबिटीज और थायराइड जैसी बीमारियां आम हो गई हैं. जीवनशैली में थोड़ा सा बदलाव ला कर अपनी दिनचर्या को नियमित कर महिलाएं अपनेआप को स्वस्थ व प्रसन्न रख सकती हैं.
-जरूरी नहीं बीपी की दवा हमेशा चले आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति का ब्लडप्रैशर यानी बीपी 120/80 होना चाहिए. इस चीज को सम?ाने के लिए हम ने बात की दिल्ली के मशहूर कंसल्टैंट, फिजीशियन डा. बी एम डोडा से. वे कहते हैं, ‘‘ऊपर वाले ब्लडप्रैशर को मैडिकल की भाषा में सिस्टोलिक और नीचे वाले को डायस्टोलिक कहा जाता है. हार्ट ब्लड को पंप करता है तब जो ब्लड में प्रैशर बनता है उसे सिस्टोलिक ब्लड प्रैशर कहते हैं और जब हार्ट आराम कर रहा होता है और उस दौरान जो ब्लड का प्रैशर बन रहा होता है उसे डायस्टोलिक ब्लड प्रैशर कहते हैं.
‘‘हार्ट एक मशीनरी है जो ब्लड को पंप करता है और हमारी नसें उन को ऐक्सैप्ट करती हैं. नसें हमारी जान हैं क्योंकि नसों द्वारा ही खून हार्ट, किडनी और आंतों में जाता है, यानी शरीर के हर हिस्से में खून की सप्लाई नसों से होती है. इसलिए, नसों का ठीक रहना बहुत जरूरी है.
नसें खराब होने का मतलब है कि पेड़ में पत?ाड़ आ जाना. नसें ठीक नहीं होंगी तो शरीर का हर और्गन पर इफैक्ट पड़ने लगता है.’’ डा. बी एम डोडा आगे कहते हैं, ‘‘ब्लडप्रैशर का एक रेंज होता है. ऊपर का ब्लडप्रैशर 90 से 150 के बीच में और नीचे का ब्लडप्रैशर 50 से 90 के बीच में होना चाहिए. लेकिन बेहतर यही होगा कि ऊपर का ब्लडप्रैशर 120 और नीचे का 80 होना चाहिए या इस से थोड़ा कम रहे तो अच्छा ही रहेगा.’’ वे कहते हैं, ‘‘95 प्रतिशत मामलों में ब्लडप्रैशर बढ़ने का कारण पता ही नहीं होता.
लेकिन दोचार प्रतिशत मामलों में देखा गया कि किडनी की वजह से बीपी बढ़ता है. हालांकि बीपी बढ़ने के कई कारण होते हैं.’’ क्या बीपी की दवा एक बार शुरू हो गई तो जिंदगीभर खानी पड़ेगी? इस सवाल पर डोडा कहते हैं, ‘‘नहीं, यह गलत है. कई बार मरीजों का बीपी टैंपरेरी होता है. कई बार महीनेदोमहीने या धीरेधीरे जब मरीज का ब्लडप्रैशर नौर्मल रेंज में आ जाता है तो डाक्टर उसे देख कर धीरेधीरे दवा की डोज कम कर देता है. हो सकता है वह डोज बंद ही कर दे, यह वैरिएबल होता है.’’ बच्चों में भी ब्लडप्रैशर की शिकायतें बढ़ रही हैं, इस के बारे में पूछने पर वे कहते हैं,
‘‘बच्चों में ओबेसिटी बढ़ रही है. इस का एक कारण फास्ट फूड का सेवन होता है. इसलिए फास्ट फूड का सेवन नहीं करना चाहिए. बीपी न बढ़े, इस के लिए आप रैगुलर ऐक्सरसाइज करें. अपनी रेंज के मुताबिक वजन कम रखें. सौफ्ट ड्रिंक या एल्कोहल का सेवन न करें, ट्राय करने के लिए भी नहीं. नमक कम खाएं, औयली फूड अवौयड करें. तभी आप एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं. ‘‘यदि कोई व्यक्ति ब्लडप्रैशर का मरीज है और वह दवा रैगुलर खाता है और किसी कारणवश दवा खाना भूल जाता है और कुछ ही घंटों में वह दवा दोबारा खा लेता है, ऐसी स्थिति में यदि मरीज को अनकम्फर्ट लगे तो वह अपना बीपी चैक कराए और देखे कि यदि बीपी नीचे जा रहा है तो अपने डाक्टर के पास पहुंच जाए, नहीं तो आप कहीं भी चक्कर खा कर गिर सकते हैं.’’ वे आगे कहते हैं,
‘‘बीपी हमेशा राइट आर्म में चैक करें, आराम से बैठ कर चैक करें. चैक करने से पहले ध्यान रखिए कि आप ने सौफ्ट ड्रिंक, तंबाकू या एल्कोहल का सेवन न किया हो. कई बार सिरदर्द होता है तो लोग बीपी नापने के लिए बैठ जाते हैं, ऐसा न करें. ध्यान रखें कि बीपी की वजह से सिरदर्द नहीं होता, सिरदर्द की वजह से बीपी होता है. यदि आप को सिरदर्द हो रहा हो तो पहले अपना सिरदर्द ठीक करें वरना सिरदर्द की वजह से बीपी हाई हो सकता है और बीपी हाई होने से आप दवा ले लेंगे तो इस का असर उलटा हो सकता है. इसलिए ऐसी गलतियां बिलकुल न करें.’’