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मेरी फ्रैंड का भाई मुझे देखता रहता है, उस का देखना मुझे बेचैन कर रहा है मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल
मैं 24 वर्षीय युवती हूं. पिछले महीने अपनी फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई थी. वहां मेरी फ्रैंड का भाई आया हुआ था जो मुझे बारबार देख रहा था. दिखने में वह काफी हैंडसम था इसलिए मेरी भी नजर उस पर बारबार जा रही थी. कल वह मुझे फिर से मेरी फ्रैंड के साथ मार्केट में मिल गया. वह मुझे वहां एकटक  देखे जा रहा था. उस का इस तरह देखना मुझे बेचैन कर रहा था. आप ही बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
आप की बातों से ऐसा लग रहा है जैसे आप को उस से प्यार हो गया है और उस युवक का पार्टी व मार्केट में आप को एकटक देखना भी इसी ओर इशारा कर रहा है जैसे वह आप से फ्रैंडशिप की इच्छा रखता है.

लेकिन आप को संयम बरतना होगा. हो सकता है कि आप की फ्रैंड ही आप से इस बारे में बात कर ले. लेकिन आप अपनी तरफ से पहल न करें वरना इस का  गलत प्रभाव पड़ेगा.

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आकांक्षा के घर उस के भाई के दोस्त प्रखर का खूब आनाजाना था. प्रखर बचपन से ही उन के घर आजा रहा था लेकिन इस से पहले आकांक्षा ने कभी उसे इस नजर से नहीं देखा था लेकिन अब अचानक ही प्रखर उसे अच्छा लगने लगा था. अगर एक हफ्ते भी प्रखर घर नहीं आता तो आकांक्षा बेचैन हो उठती. उस के दिल का यह हाल उस के अलावा कोई नहीं जानता था खुद प्रखर भी नहीं. इसलिए आजकल वह प्रखर को रिझाने और अपनी तरफ आकर्षित करने का पूरा प्रयास कर रही थी. लेकिन कई बार खुद आकांक्षा अपने ही सवालों में उलझ जाती थी कि ऐसा कर के वह सही कर रही है या गलत? जब भाई के दोस्त के लिए मन में ऐसी फीलिंग्स आने लगें तो ऐसे सवाल उठने स्वाभाविक हैं. लेकिन कुछ बातों का ध्यान रख कर किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है.

उम्र का रखें खयाल

अगर भाई आप से बड़ा है तो भाई का दोस्त भी आप से बड़ा ही होगा. इसलिए पहले दोस्त की उम्र भी पता कर लें. कहीं ऐसा न हो कि आप का और उन का कोई मैच ही न हो और बेकार में आप यह कदम उठा कर बदनाम भी हो जाएं और हाथ भी कुछ न आए.

भाई का विश्वास खो देंगी

अगर भाई के दोस्त से फ्लर्ट करेंगी और यह बात भाई को पता चलेगी तो वह आप पर कभी विश्वास नहीं करेगा. उसे लगेगा कि आप ने भाई को धोखा दिया है. अगर आप उस के एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकती हैं तो बाकी दोस्तों के बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता. गुस्से में ही सही, लेकिन भाई की सोच आप के बारे में काफी नैगेटिव हो जाएगी. यह बात और है कि समय बीतने पर आप उन्हें समझा भी सकती हैं.

घर में बात फैल जाएगी

अगर आप बाहर किसी से फ्लर्टिंग करेंगी तो घर में पता नहीं चलेगा लेकिन घर में करेंगी तो सब जान जाएंगे, हो सकता है कि वे आप को ऐसा करते देख उस के प्रति सीरियस समझें, जबकि आप सीरियस न हों. आप तो केवल फ्लर्टिंग कर टाइम पास ही कर रही थीं, लेकिन यह सच किसी को बता भी नहीं सकतीं इसलिए ऐसी बुरी फंसेंगी कि सिचुएशन से निकलना मुश्किल हो जाएगा.

छोटे भाईबहनों पर भी बुरा असर पड़ेगा

आप को इस तरह भाई के दोस्त के साथ इन्वौल्व होते हुए देख छोटे भाईबहनों पर भी अच्छा असर तो नहीं पड़ेगा. वे आप को ऐसा करते हुए देखेंगे तो खुद भी ऐसा ही करेंगे. इसलिए आप जो भी करें सोचसमझ कर करें. छोटे भाईबहनों के बारे में भी विचार कर लें कि आप की वजह से कहीं वे गलत रास्ते पर न चल पड़ें. आप तो फिर भी बड़ी हैं संभल जाएंगी पर आप को देख वे कोई बचपना न कर बैठें.

घर का माहौल बिगड़ेगा

मातापिता आगे से घर में लड़कों के आने पर पाबंदी लगा सकते हैं. अगर उन की एक लड़की ऐसा कर सकती है तो अन्य पर से भी उन का विश्वास उठ जाएगा. आप खुद तो गड्ढ़े में गिरेंगी ही अपने भाईबहनों को साथ में ले कर गिरेंगी. हर वक्त घर में इसी टौपिक पर बातचीत होगी, होहल्ला होगा. इस से घर का माहौल भी बिगड़ सकता है.

जल्दबाजी में शादी पर जोर

आप को ऐसा करते देख मातापिता जल्द से जल्द आप की शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से फ्री होने की बात सोचने लगेंगे, फिर भले ही आप की पढ़ाई पूरी हुई हो या नहीं. ऐसा कर के आप बेवजह अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार लेंगी.

फायदा

फ्लर्टिंग करने के मौके हजार मिलेंगे : कभी चाय पिलाने, कभी खाना खिलाने के बहाने, लड़के को पटाने के हजार मौके मिलेंगे. चाहें तो लूडो, ताश जैसे गेम्स भी सब लोग साथ मिल कर खेल सकते हैं. इस से भी खेलखेल में कब दिल मिल जाएं पता भी नहीं चलेगा.

छोरा जानापहचाना है : बाहर किसी से फ्लर्ट करने में खतरा ज्यादा रहता है. पता नहीं वह लड़का कैसा हो, कहीं गलत हुआ तो लेने के देने पड़ जाएंगे. ब्लैकमेलिंग आदि के चक्कर में फंस गए तो निकलना मुश्किल होगा, लेकिन अगर घर में भाई का दोस्त हो तो उस के नेचर, चरित्र आदि के बारे में सबकुछ पहले से ही पता होता है इसलिए आसानी रहती है.

मिलने के लिए बहानों की जरूरत नहीं : भाई के दोस्त से मिलने के लिए बाहर जाने की भी जरूरत नहीं है. मिलने वह आप से आएगा और घर वालों को लगेगा कि भाई से मिलने आया है.

सच में प्यार हो गया तो बल्लेबल्ले : अगर फ्लर्टिंग से शुरू हुई बात प्यार पर आ कर ठहरी तो आप के लिए घर वालों को शादी के लिए मनाना आसान होगा, क्योंकि लड़का उन का जानापहचाना है. अगर लड़के का कैरियर अच्छा है और वह नेचर वाइज भी अच्छा है तो पहले भाई को पटाएं फिर आगे घर वालों से अपने दोस्त की पैरवी वह खुद ही कर लेगा.

ध्यान दें

– यहां बात दोस्ती रिश्तेदारी की है इसलिए जो भी करना है सोचसमझ कर करें.

– अपने परिवार की गरिमा का खयाल रखते हुए अपनी सीमा में रह कर ही आगे कदम बढ़ाएं.

मजनू की मलामत : सरिता की खूबसूरती का कायल अनिमेष

उन दिनों मैं इंटर में पढ़ता था. कालेज में सहशिक्षा थी, लेकिन भारतीय खासतौर पर कसबाई समाज आज की तरह खुला हुआ नहीं था. लड़के लड़की के बीच सामान्य बातचीत को भी संदेह की नजरों से देखा जाता था. प्यारमुहब्बत होते तो थे पर बहुत ही गोपनीयता के साथ. बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती थी.

हमारे कालेज में लड़कियां पढ़ती थीं लेकिन खामोशी के साथ सिर झुकाए आतीजाती थीं. वे कालेज परिसर में बिना कारण घूमतीफिरती भी नहीं थीं. ज्यादातर कौमन रूम में रहती थीं. क्लास शुरू होने के कुछ मिनट पहले आतीं और लड़कों से अलग एक ओर खड़ी रहतीं. शिक्षक के आने के बाद ही क्लास में प्रवेश करतीं और अगली बैंचों पर बैठ जातीं फिर शिक्षक के साथ ही निकलतीं.

उन्हीं दिनों मेरी क्लास में सरिता नामक एक अत्याधुनिक लड़की ने दाखिला लिया. वह बहुत ही खूबसूरत थी और लाल, पीले, नीले जैसे चटकदार रंगों की ड्रैसें पहन कर आती, जो उस पर खूब फबती भी थीं. कालेज के शिक्षकों से ले कर छात्रों तक में उसे ले कर उत्सुकता थी. कई लड़के तो उस का पीछा करते हुए उस का घर तक देख आए थे, लेकिन उस जमाने में छिछोरापन कम था इसलिए उस के साथ कोई छेड़खानी या अभद्रता नहीं हुई.

उन दिनों मेरा एक मित्र था जो पढ़ता तो दूसरे सैक्शन में था, लेकिन अकसर मुझ से मिलताजुलता रहता था. सरिता के कालेज में दाखिले के बाद मुझ से उस की मित्रता कुछ ज्यादा ही प्रगाढ़ होती जा रही थी. वह प्राय: हमारी क्लास शुरू होने के वक्त हमारे पास आ जाता और गप्पें मारने लगता. मैं ने कई दिन तक नोटिस करने के बाद महसूस किया कि वह बात तो हम लोगों से करता था, लेकिन उस की नजर सरिता पर टिकी रहती थी. एकाध बार उसे सरिता का पीछा करते हुए भी देखा गया. उस की कदकाठी अच्छी थी, लेकिन देखने में कुरूप था. मुझे लगा कि इसे सबक सिखाना चाहिए.

अगले दिन जब वह मेरे होस्टल में आया तो मैं ने कहा कि भाई अनिमेष, सरिता पूछ रही थी कि आप के साथ जो सांवले से, लंबे, स्मार्ट नौजवान रहते हैं वे कौन हैं व कहां रहते हैं?

अनिमेष का चेहरा खिल उठा, ‘‘अच्छा, वाकई में… कब पूछा उस ने?’’

‘‘प्रैक्टिकल रूम में 2-3 बार पूछ चुकी है. तुम उस से दोस्ती क्यों नहीं कर लेते,’’ मैं ने कहा.

’’ लेकिन कैसे?’’

‘‘तुम ऐसा करो कि शाम को 5 बजे मेरे पास आओ. फिर बताता हूं.’’

कालेज से लौट कर शाम के वक्त वह मेरे कमरे में आया. इस बीच मैं ने अपने कुछ मित्रों को अपनी योजना बता दी थी और उन्हें अभियान में शामिल कर लिया था. हम सब ने उस की प्रशंसा कर उसे फुला दिया.

‘‘करना क्या है?’’ उस ने मासूमियत से पूछा.

‘‘सब से पहले तो तुम्हारा हुलिया बदलना पड़ेगा, चलो.’’

हम ने पूरे होस्टल में घूम कर किसी का सूट, किसी का हैट, किसी का जूता इकट्ठा किया और उसे एक कार्टून की तरह मेकअप कर के तैयार कर दिया. इस के बाद उसे सरिता के घर की तरफ ले कर चले .

हम ने रास्ते में उसे समझाया कि तुम्हें उसे बुलवाना है और उस से फिजिक्स की कौपी यह कह कर मांगनी है कि तुम नोट कर के लौटा दोगे. इस तरह आपस में बातचीत की शुरुआत होगी. साथ ही हड़काया भी कि अगर तुम ने कहे मुताबिक नहीं किया तो हम सब तुम्हारी पिटाई कर देंगे.

सरिता के घर के पास पहुंच कर हम सभी ऐसी जगह छिप गए जहां से उन की गतिविधियां देख सकते थे, बातें सुन सकते थे लेकिन उन की नजर में नहीं आ सकते थे.

वह सहमता, सकुचाता हुआ सरिता के घर के दरवाजे पर पहुंचा, दस्तक दी. सरिता की मौसी बाहर निकलीं और बोलीं, ’’क्या बात है, किस से मिलना है?’’

’’जी…जी…जी… सरिता से काम है… मैं उस की क्लास में पढ़ता हूं.’’

मौसी ने सरिता को आवाज दी और खुद अंदर चली गईं.

’’यस, क्या बात है. आप कौन हैं? मुझ से क्या काम है?’’ सरिता ने आते ही पूछा.

’’जी…जी… 2-3 दिन के लिए… आ… आ… आप की फिजिक्स की कौपी चाहिए, फिर लौटा दूंगा.’’

’’तुम तो मेरी क्लास में नहीं पढ़ते. मेरी कौपी क्यों चाहिए. खूब समझती हूं, तुम जैसे लड़कों को. चुपचाप चलते बनो, नहीं तो चप्पल से पिटाई कर दूंगी. भागो यहां से.’’

’’जी…जी… आप गलत समझ रही हैं…’’

’’तुम जाते हो कि सब को बुलाऊं…’’ सरिता ने चिल्ला कर कहा.

’’ज…ज…जाता हूं… जाता हूं,’’ और वह चुपचाप वापस लौट आया.

हम ने इशारे से आगे आने को कहा. उस के घर से कुछ दूर पहुंचने के बाद पूछा, ’’अब बताओ कैसी रही?’’

’’बहुत बढि़या… उस ने कहा कि कौपी एकदो रोज बाद ले लीजिएगा… फिर चाय पीने के लिए अंदर आने को कहा लेकिन मैं ने क्षमा मांग ली कि फिर कभी.’’

हम एकदूसरे को देख मुसकराए, फिर उस की पीठ ठोंकते हुए कहा, ’’चलो, इसी बात पर पार्टी हो जाए.’’

उसे मजबूरन पार्टी देनी पड़ी. इस के बाद वह हम से कतराने लगा. हम में से किसी को देखता तो तुरंत बहाना बना कर दूसरी ओर निकल जाता.

3-4 दिन बाद वह पकड़ में आया तो हम ने पूछा, ’’कहो, भाई अनिमेष, सरिता से मिलने के बाद हमें भूल गए क्या, मत भूलो कि तुम्हारे काम हम ही आएंगे.’’

वह खिसियानी हंसी हंस कर रह गया. हम उसे पकड़ कर होस्टल ले आए और कहा कि आज तुम्हें फिर से सरिता के घर चलना है.

वह आनाकानी करता रहा लेकिन खुल कर बोल नहीं पाया कि उस दिन क्या हुआ था. हम ने फिर उसे धमका कर तैयार किया और उसे मजबूरन सरिता के घर जाना पड़ा.

इस बार सरिता ने दरवाजा खोलते ही उसे फटकार लगाई, ’’तुम फिर आ गए. लगता है, तुम बातों के देवता नहीं हो. बिना लात खाए नहीं मानोगे.’’

म…म…माफ कर दीजिए. कुछ मजबूरी थी, आना पड़ा. जा रहा हूं,’’ और वह पलट कर भागा.

हम ने थोड़ी दूर पर उसे लपक कर पकड़ा और पूछा, ’’क्या हुआ… बहुत जल्दी लौट आए?’’

’’हां… उस के घर वालों को शक हो गया है. अब वह मुझ से नहीं मिल सकेगी.’’

’’यह क्या बात हुई… शुरू होने के पहले ही खत्म हो गया अफसाना,’’ मैं ने कहा.

’’जाने दो भाई. कुछ मजबूरी होगी.. इस किस्से को अब खत्म करो…’’ उस ने पीछा छुड़ाने हेतु मासूमियत से कहा,

’’चलो, ठीक है. कल क्लास में मिलोगे न?’’

’’देखेंगे…’’

इस के बाद अनिमेष हमें पूरब में देखता तो पश्चिम की ओर रुख कर लेता. मेरी क्लास के वक्त आना भी उस ने छोड़ दिया था.  हमारी योजना सफल रही.

मायके में न जाएं ससुराल के राज

सुहानी को समझ में नहीं आ रहा है कि बिगड़ी हुई बात वह आखिर बनाये कैसे ? उसके पति सुमित का प्यार उसके प्रति लगातार कम होता जा रहा है. अभी तो शादी को साल ही पूरा हुआ है. छोटी-छोटी सी बात पर उनके बीच झगड़े होने लगे हैं. सुहानी के बनाए खाने में सुमित को कोई स्वाद नहीं आता है. रात को वह बेमन से खाकर थाली सरका देता है. सुहानी की साज-सज्जा के प्रति उसका कोई ध्यान नहीं जाता है. बिस्तर पर लेटता है तो उसकी पीठ सुहानी की ओर होती है. वह कुछ बात करना चाहती है तो सुमित उखड़े स्वर में जवाब देता है और सुहानी आगे कुछ बोल ही नहीं पाती है.

उनकी शादी के बाद चार-पांच महीने कितने अच्छे बीते थे. दोनों ऐसे एकदूसरे में घुलमिल गये थे जैसे दूध में शक्कर. वीकेंड में सुमित सुहानी को लेकर घूमने जाता था, दोनों बाहर खाना खाते थे, फिल्में देखते थे, शॉपिंग करते थे, एक दूसरे की बाहों में लिपटे रहते थे, एक दूसरे से दिल खोलकर बातें करते थे. सुमित के माता-पिता और भाई-बहन भी सुहानी को सिर-आंखों पर बिठा कर रखते थे. लेकिन धीरे-धीरे सब उससे कटने लगे. इधर एक महीने से तो सुमित का व्यवहार सुहानी के प्रति बहुत ज्यादा रूखा हो गया है. बात-बात पर वह सुहानी को झिड़क देता है. अब तो उसने लंचबॉक्स भी आॅफिस ले जाना बंद कर दिया है. यह बात सुहानी को बहुत दुख दे रही है. सुहानी शुरू से ही सुमित का लंचबॉक्स बड़े जतन से तैयार करती थी. सब्जी-रोटी के साथ वह उसमें अचार, पापड़, सलाद जरूर रखती थी. एक टुकड़ा मीठे का भी उसमें होता था. कभी हलुआ तो कभी खीर भी छोटी डिब्बी में मिलती थी. शादी के बाद सुमित के लंचबॉक्स में इतनी सारी लजीज चीजें देखकर उसके आफिस के कई मित्र उससे जलन भी रखने लगे थे, मगर अब ऐसा क्या हो गया कि सुमित ने सुहानी के बनाए खाने को तिलांजलि दे डाली है. हालांकि सुहानी जानती है कि उससे क्या गलतियां हो गयी हैं, मगर अब तो तीर कमान से छूट चुका है. बिगड़ी बात किसी तरह बन नहीं रही है.

दरअसल कुछ गलती सुहानी की है तो कुछ उसकी मां की, जो सुहानी के ससुराल में क्या चल रहा है, इस बारे में जानने को बड़ी उतावली रहती हैं. सुहानी अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान है. मां से उसका जुड़ाव काफी गहरा है. उसकी छोटी से छोटी बात में उसकी मां की सलाह और रजामंदी शामिल रहती है. शादी से पहले तक तो यह ठीक था कि सुहानी अपनी हर बात अपनी मां से शेयर करे, लेकिन शादी के बाद जब ससुराल की बातें भी सुहानी अपनी मां से शेयर करने लगी, तो इसने उसकी हंसती-खेलती जिन्दगी तबाह कर दी और वह ससुराल में हरेक की नजर से गिर गयी.

सुहानी का मायका उसकी ससुराल से ज्यादा दूर नहीं है. आना-जाना लगा रहता है. सब्जीमंडी में भी अक्सर उसके पिता जी की भेंट उसके ससुरजी से हो जाती है. उस दिन उसके ससुरजी ने मंडी से लौटकर सुमित से कुछ कहा और उसके बाद सुमित ने बेडरूम में आकर सुहानी के सामने सवालों की झड़ी लगा दी. उसी दिन से सुमित सुहानी से उखड़ा-उखड़ा है. यह दूरी लगातार बढ़ती जा रही है.

दरअसल चार साल पहले सुमित की छोटी बहन रागिनी का रिश्ता कहीं होते-होते टूट गया था. मंगनी होने के बाद और शादी के कार्ड बंटने के बाद लड़की की शादी टूट जाए तो बड़ी बेइज्जती की बात हो जाती है. रागिनी की भी शादी होते-होते रह गयी, वजह थी अतीत में उसका एक लड़के से चला प्रेम प्रसंग. उस लड़के ने रागिनी को धोखा दिया था, मगर जब रागिनी की शादी एक अच्छे घर में तय हुई तो उस बदमाश लड़के ने अपनी और रागिनी की कुछ आपत्तिजनक फोटो और पत्र रागिनी के मंगेतर को पहुंचा दिये थे, जिसके चलते रागिनी की शादी टूट गयी.

इस हादसे के बाद रागिनी और उसके परिवार ने बड़ी मुश्किल से खुद को व्यवस्थित किया था. लड़की की इज्जत न खराब हो और बात ज्यादा न फैले, इसलिए पुराना मोहल्ला भी छोड़ दिया था. सुमित की शादी के बाद सुहानी इस घर में आयी तो उसकी अपनी ननद रागिनी से काफी नजदीकी हो गयी. दोनों एक ही उम्र की थीं. दोनों के बीच काफी बातचीत होने लगी. जाने-अनजाने में रागिनी ने सुहानी पर इस विश्वास के साथ अपना राज़ बांटा था, कि बात उसकी भाभी तक ही रहेगी, मगर सुहानी ने तो अपनी मां को सारी बातें बता डालीं. उसकी बातूनी मां ने उसमें और नमक-मिर्च लगा कर अपने पति को बता दीं. उस दिन सब्जीमंडी में सुहानी के पापा ने उसके ससुरजी से इसी विषय में बात छेड़ दी. सुहानी के ससुरजी पर तो जैसे घड़ों पानी पड़ गया. लगा कि परिवार की इज्जत बीच बाजार उतर गयी. उसके बाद भी कई ऐसी बातें हुईं जिससे उनको पता चला कि सुहानी के पिता को तो उनके घर की हर छोटी-बड़ी बात मालूम है. परिवार के कुछ ऐसे राज़ जो कभी बाहर नहीं गये, वह भी सुहानी की मां के जरिए कई रिश्तेदारों के बीच पहुंच गये थे. दरअसल सुहानी दोपहर के वक्त अपने बेडरूम में लेटी घंटों अपनी मां से फोन पर बातें करती थी और उसकी ज्यादातर बातें ससुराल के बारे में ही होती थीं.

ससुराल के भेद मायके तक पहुंचाने का नतीजा बुरा होता है. इससे पति-पत्नी के आपसी रिश्ते तो तहस-नहस होते ही हैं,  बहू पर ससुरालवालों का विश्वास और प्यार भी खत्म हो जाता है. हर घर की कुछ निजी और गोपनीय बातें होती हैं, जिसे घर का हर सदस्य घर की चारदीवारी में ही रखना चाहता है. यह बातें जमीन-जायदाद, आभूषण, नगदी, मुकदमेबाजी, टूटे नाते-रिश्ते, शादी या बच्चों से सम्बन्धित हो सकती हैं. जब कोई लड़की ब्याह करके अपने पति के घर जाती है तो उस घर को वह अपना तभी बना सकती है जब उस घर की मर्यादा और निजी बातों को समझे और घर की इज्जत के लिए वह भी उन बातों को अपने तक ही रखे. इससे वह अपने ससुरालवालों की नजर में बड़ी बनती है. लड़की को समझना चाहिए कि जिस तरह वह अपने मायके की अच्छी-बुरी बातों को अपने तक ही रखती थी, वैसे ही उसे अपने ससुराल की बातों को भी अपने तक ही रखनी चाहिए. आखिर अब वही तो उसका असली घर है, जहां उसे अपने पति और बच्चों के साथ पूरा जीवन बिताना है.

ससुराल में बहू के साथ हिंसा-उत्पीड़न हो, उसका सम्मान न हो, उससे दहेज की मांग हो, पति का अन्यत्र महिला से रिश्ता हो, घर के अन्य पुरुषों की उस पर गलत नजर हो, तो यह अपराध है, इसकी जानकारी लड़की को जल्द से जल्द न केवल अपने मायके वालों को देनी चाहिए, बल्कि पुलिस और महिला आयोग को भी लिखित शिकायत करनी चाहिए, ताकि अपराधियों को दंड मिल सके. लेकिन जब ससुराल वाले अपना कोई राज़ बहू से यह सोच कर शेयर करें कि यह तो अपनी है, तो उनकी सहृदयता और अपनेपन की लाज रखना बहू का भी कर्तव्य है.

सुख-दुख में साथ निभाएं

शादी के बाद ससुराल ही एक लड़की का वास्तविक घर है. इसलिए घर की इज्जत और मर्यादा को बनाए रखना आपका कर्तव्य है. कभी भी अपने पति को या घर के दूसरे सदस्यों को खुद से कमतर न समझें. अगर आप पति से ज्यादा सक्षम और पढ़ी-लिखी हैं, या उनसे अधिक कमाती हैं, तो पति को अपना गुलाम समझने की भूल न करें. अपनी अधिक बोलने की आदत या मात्र चटखारी बातों का आनन्द लेने के लिए अपने मायकेवालों से अपने ससुरालवालों या अपने पति की चुगली करके उनकी इज्जत की धज्जियां न उड़ाएं. आप और आपके पति एक दूसरे के जीवनसंगी हैं, आपको सारे सुख-दुख उनके साथ रह कर ही भोगने हैं. प्यार और विश्वास की बेल धीरे-धीरे बढ़ती है. इसे अपने प्यार से सीचें. याद रखें इंसान के जीवन में सुख बांटने के लिए तो सैकड़ों लोग आ जाते हैं, मगर दुख की घड़ी में जीवनसाथी ही होता है, जिसके कंधे पर सिर रखकर दिल को सुकून मिलता है. दु:ख में सबसे महत्वपूर्ण साथ जीवनसाथी का ही होता है. आप पर उनका विश्वास है, इस विश्वास को हमेशा बनाए रखें.

चुगलखोरी से बचें

किसी भी रिश्ते की बुनियाद सम्मान व इज्जत पर टिकी होती है. इसकी बात उससे और उसकी बात इससे बताने की आदत से हमेशा बच कर रहें. ये बातें संयुक्त परिवार में आग में घी का काम करती हैं, जो कि गृहस्थ जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होता है. घर के हर एक सदस्य की बात ध्यान से सुनें. कोई बात अच्छी न भी लगे तो उसका विरोध करने का तरीका बेहद ही सभ्य और शालीन होना चाहिए. गुस्से में इंसान कुछ भी कह जाता है और बात बढ़ जाती है. हां, लेकिन गलत बात को बिलकुल भी सहन न करें, बल्कि सही तरीके से उसका प्रतिकार करें.

मां के भड़काने में न आएं

नि:संदेह एक मां अपनी बेटी से बहुत प्यार करती है. वह चाहती है कि उसकी लाडली अपने ससुराल में राज करे. सबको अपने वश में करके रखे. कई बार इस चक्कर में माएं अपनी बेटियों को उल्टी-सीधी नसीहतें और तरीके सुझाती रहती हैं. जैसे पति की कमाई पर सिर्फ तुम्हारा हक है, देखो कि वह महीने के महीने पूरी सैलरी तुम्हारे हाथ पर रखे. या, किचेन में बहुत ज्यादा खपने की जरूरत नहीं है, सास और ननदों को भी काम करने दो. नहीं करेंगी तो उनकी आदतें खराब हो जाएंगी. या, ननद और देवर पर बेकार पैसे मत लुटाओ. उनकी जरूरतें पूरी करना तुम्हारे सास-ससुर की जिम्मेदारी है. इस तरह की बातें अक्सर माएं अपनी बेटियों के दिमाग में यह कह कर भरती रहती हैं कि मैं तो तेरे भले के लिए ही कह रही हूं, नतीजा ससुराल वालों से उनकी दूरी बनी रहती है. वे अपने परिवार में ही बाहरी बनी रहती हैं. मां की बातों में आकर अपनी गृहस्थी बर्बाद कर बैठती हैं. इसलिए मां की सुनें जरूर मगर अमल में लाने से पहले चतुराई से यह भांपने की कोशिश कर लें कि वे जो कह रही हैं क्या सचमुच ठीक है?

समर स्पेशल: कूलकूल जूस और मौकटेल

आजकल लोग हैल्थ कौन्शस ज्यादा हो गए हैं. सो, कोल्ड ड्र्रिंक्स के अलावा फ्रूट जूस, मौकटेल, स्मूदी आदि का प्रचलन भी बहुत बढ़ गया है. यद्यपि बाजार में डब्बाबंद जूस भी मौजूद हैं पर अधिकांश न्यूट्रीशनिस्ट कहती हैं कि ताजे फलों और सब्जियों का निकला जूस ही पीना चाहिए क्योंकि इन के रसों में विटामिन, मिनरल्स, एंजाइम और नैचुरल शुगर होते हैं. ताजे फलों के रस का नियमित सेवन करने से शरीर को गरमी झेलने में काफी मदद मिलती है. इस के अलावा शरीर की पाचन शक्ति भी ठीक रहती है. पसीने के जरिए शरीर से मैग्नीशियम आदि तत्त्व निकल जाते हैं जिस के कारण थकान और मांसपेशियों में दर्द होने लगता है. इसलिए मौसमी फलों का सेवन आइसक्रीम, सोडा के साथ करें ताकि गरमी में भी फिट रहें.

१    खूबानी कौकटेल

सामग्री : 8 नग सूखी खूबानी, एक छोटा चम्मच चीनी, 1 गिलास ठंडी लिम्का.

विधि : खूबानी को रातभर पानी में भिगोएं और सवेरे बीज निकाल कर चीनी के साथ पीस लें. इस मिश्रण को एक गिलास में डालें और ऊपर से ठंडी लिम्का मिलाएं. बढि़या कौकटेल तैयार है.

२    वाटरमैलन स्लश

सामग्री : 250 ग्राम बीजरहित तरबूज छोटे टुकड़ों में कटा, 1/4 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर, 2 बड़े चम्मच चीनी पाउडर, 1/4 छोटा चम्मच काला नमक, 1 बड़ा चम्मच अगरअगर (जैलेटिन की तरह होता है), 2 बड़े चम्मच पानी  और सजावट के लिए पुदीना पत्ती.

विधि : उबलते पानी को एक कप में डालें और उस में अगरअगर डाल कर चम्मच से चलाएं. तरबूज को चीनी और दालचीनी पाउडर के साथ मिक्सी में चर्न कर लें. इस में अगरअगर वाला मिश्रण और काला नमक मिलाएं. एक बाउल में मिश्रण फ्रीजर में आधे घंटे के लिए रख दें. जब हलका जम जाए तो कांटे से खुरचें और पुन: जमाएं. आधे घंटे बाद कांटे से खुरचें और सर्विंग गिलास में डालें. ऊपर से पुदीना पत्ती से सजा कर सर्व करें. बढि़या स्लश तैयार है.

३ कैरी पुदीना डिं्रक

सामग्री : 1 कप कच्ची अमिया छिली व कटी, 1/2 कप चीनी, 1 कप पानी, 1/2 छोटा चम्मच काला नमक, 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, 1 छोटा चम्मच नमक, 1/2 छोटा चम्मच चाट मसाला, 2 बड़े चम्मच  पुदीना पत्ती और थोड़ा सा बर्फ का चूरा.

विधि : पानी में चीनी डाल कर उबालें व उस में कच्ची अमिया के टुकड़े डाल कर 5 मिनट पकाएं. ठंडा कर के पुदीना पत्ती व मसालों के साथ मिक्सी में चर्न करें. सर्विंग गिलास में थोड़ा बर्फ का चूरा, पानी और कैरी का मिश्रण डाल कर मिक्स करें व पुदीना पत्ती से सजा कर सर्व करें.

४ स्ट्राबैरी क्रश विद आइसक्रीम

सामग्री : 2 बड़े चम्मच स्ट्राबैरी क्रश, 2 स्कूप वनीला आइसक्रीम और 1/2 बोतल सोडा.

विधि : गिलास में 1/2 स्कूप आइसक्रीम डालें. उस के ऊपर एक बड़ा चम्मच स्ट्राबैरी क्रश डालें फिर थोड़ा सोडा डालें. इस के ऊपर पुन: आधा स्कूप आइसक्रीम फिर सोडा डालें और तुरंत सर्व करें.

५ रेनबो डिलाइट

सामग्री : 2 स्कूप वनीला आइसक्रीम, 1 कप ताजे कटे फल (खरबूजा, अंगूर, अनार और आम के टुकड़े), 2 बड़े चम्मच किवी क्रश और 2 बड़े चम्मच रूहअफजा.

विधि : एक चौड़े मुंह के लंबे गिलास में एक स्कूप आइसक्रीम डालें. उस के ऊपर कटा खरबूजा, अंगूर और अनार डालें. फिर क्रिवी क्रश डालें. फिर 1 स्कूप आइसक्रीम डाल कर उस के ऊपर कटे आम के टुकड़े लगाएं व रूहअफजा डाल कर सर्व करें. बढि़या रेनबो डिलाइट तैयार है.

६   मैंगो औरेंज स्मूदी

सामग्री : 1 कप आम की ताजी प्यूरी, 1/2 कप डिब्बाबंद औरेंज जूस, 2 बड़े चम्मच दही और 2 स्कूप आइसक्रीम.

विधि : सभी चीजों को मिला कर हैंड मिक्सर में चर्न करें और कुटी बर्फ के साथ तैयार स्मूदी सर्व करें.

समर स्पेशल: ऐसे बचें लू से

गरमियां आते ही सभी के मन में लू लगने का डर समाने लगता है. लेकिन क्यों करें चिलचिलाती गरमी में लू का सामना जब हैं इस से बचने के उपाय. लू से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं डा. प्रेमचंद स्वर्णकार.

भारत गरम जलवायु वाला देश है. विशेषकर मध्य भारत और उत्तर भारत में तो मई और जून के महीनों में ज्यादा ही गरमी पड़ती है. सूरज की गरम धूप के साथ तेज हवाएं व्यक्ति को घर के अंदर रहने पर विवश करती हैं. लेकिन आवश्यक कार्यवश या औफिस आनेजाने के लिए लोगों को इस भीषण गरमी में भी निकलना पड़ता है और ऐसे वक्त ही लू यानी हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है.

देश में प्रतिवर्ष हजारों लोग लू का शिकार हो कर जान गंवा बैठते हैं. इन में से कई तो अज्ञानता या असावधानियों की वजह से इस के प्रकोप से बच नहीं पाते जबकि लू से बचने के उपाय बहुत कठिन नहीं हैं.

क्या है हीट स्ट्रोक

मनुष्य के शरीर का तापक्रम सामान्य 97 डिगरी से 99 डिगरी सैंटीग्रेड के बीच होता है. सामान्य परिस्थितियों में शरीर पर आसपास के तापमान की घटबढ़ का विशेष असर नहीं होता. मानव मस्तिष्क में स्थित एक भाग हाइपोथैलेमस विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से शरीर के तापक्रम को स्थिर रखने में सहायक होता है. जब गरमी बढ़ती है तो शरीर का तापक्रम कुछ बढ़ता है लेकिन पसीना निकलने से वह फिर सामान्य हो जाता है.

जब बाहरी वातावरण का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है तो शरीर भी बहुत तेजी से पसीना निकालना शुरू कर देता है. यहां तक कि 6 से 8 लिटर तक पानी, शरीर से पसीने के रूप में निकल सकता है. इस पसीने के साथ ही प्रति लिटर, 2 ग्राम सोडियम लवण भी बाहर निकल जाता है और फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि शरीर से पसीना निकलना कम हो जाता है. शरीर के ताप को नियंत्रित करने वाली इस स्थिति में शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है और पानी की कमी हो जाती है. अत्यंत तेज बुखार (110 डिगरी या इस से ऊपर) के साथ रोगी में अन्य लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं. इस बीमारी को लू लगना यानी हीट स्ट्रोक कहते हैं.

रोग के लक्षण

रोगी को तेज बुखार आता है और जब वह 110 डिगरी फौरेनहाइट के पास या इस से ऊपर पहुंचता है तो नाक, कान या मुंह से रक्त निकलना शुरू हो जाता है और व्यक्ति गहरी बेहोशी यानी कोमा में पहुंच जाता है. इस से रक्तचाप भी कम हो जाता है. इस स्थिति में तुरंत इलाज न मिला तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है. यह उल्लेखनीय है कि इलाज द्वारा ऐसे 60 प्रतिशत रोगियों को बचाया जा सकता है जबकि 110 फौरेनहाइट से कम तापक्रम वाले 90 प्रतिशत मरीजों को इलाज से बचाया जा सकता है.

उपचार

डाक्टर के आने से पहले मरीज को ऐसी छायादार ठंडी जगह में लिटाना चाहिए जहां पर्याप्त हवा आती हो. उस के शरीर से कपड़े अलग कर देने चाहिए.

सर्वप्रथम रोगी के शरीर के बढ़े हुए तापक्रम को कम करने का प्रयास करते रहें. इस के लिए यदि बर्फ उपलब्ध हो तो उसे पानी में डाल कर उस में तौलिए को भिगो कर शरीर को गीला करते हुए रगड़ना चाहिए. यदि शरीर का तापक्रम बहुत अधिक बढ़ा हो  (105 फौरेनहाइट) तो रोगी को बर्फ मिले पानी के टब में भी कुछ समय बिठाया जा सकता है. जब तापक्रम 102 डिगरी फौरेनहाइट से नीचे आ जाए तो यह प्रक्रिया बंद कर देनी चाहिए.

यदि रोगी पानी पी सकता हो तो उसे इलैक्ट्रौल या नमक मिला पानी पिलाना चाहिए. इस के अलावा फलों का रस, लस्सी आदि भी दे सकते हैं.

यदि संभव हो तो ऐसे मरीज को अस्पताल में तुरंत भरती करवा देना चाहिए क्योंकि बेहोश मरीज की देखभाल अस्पताल में ही ठीक ढंग से हो सकती है. कुछ मामलों में रोगी को रक्त देने की भी आवश्यकता पड़ सकती है.

मुझे उम्मीद न थी- भाग 3

‘सर, मैं उस को बीच में नहीं लाना चाहता. यह मेरा निजी मामला है,’ रामसहाय आहत होने लगा.

‘यह अब तुम्हारा निजी मामला नहीं रहा. तुम्हारे मांबाप इस के बारे जानते है. तुम्हारे दोस्त इस के बारे जानते हैं. तुम ने उस के लिए घर छोड़ दिया. सारा कालेज जानता है तुम उस के लिए बंक मारते हो और जुर्माना भरते हो. मैं तुम्हारी आंखें खोलना चाहता हूं कि तुम्हें लोग किस प्रकार यूज कर रहे हैं. किस प्रकार बेवकूफ बनाया जा रहा है तुम्हें. किस प्रकार झूठे सपने दिखाए जा रहे हैं. किस प्रकार बरबाद किया जा रहा है,’ प्रो. रमाकांत थोड़े भावुक होने लगे थे.

‘सर, वह लड़की सैकंड ईयर की पायल है. वह भी अपने मांबाप की बिगड़ी औलाद है. अमीर मांबाप की बिगडै़ल लड़की. शराब पीती है और पिलाती भी है,’ अंदर आते प्रो. नम्रता ने कहा. रमाकांत ने चपरासी को बुलाया और पायल को बुलाने के लिए कहा.

‘सर, उसे न बुलाया जाए. बहुत बदतमीज लड़की है. वह एक मिनट में आप की बेइज्जती कर देगी,’ प्रो. नम्रता ने चेताना चाहा.

‘कोई बात नहीं, मैं अगर बेइज्जत हो कर भी इस बच्चे की आंखें खोल पाया, इस को जीवन के यथार्थ से और लोगों की धोखेबाजियों से रूबरू करवा पाया और इस को इस के मांबाप को लौटा पाया तो यह एक शिक्षक की जीत होगी. इस से औरों को प्रेरणा मिलेगी,’ प्रो. रमाकांत की आंखें चमक उठीं.

‘हैलो प्रोफैसर, मुझे किस लिए बुलाया गया है?’ पायल ने प्रोफैसर को प्रोफैसर साहब कहना भी गवारा न समझा उस ने.

‘कैसी हो पायल?’ प्रो. साहब ने सवाल किया.

‘मुझे क्या हुआ है. मैं एकदम ठीक हूं. बिलकुल बिंदास,’ एक कुटिल मुसकान पायल के चेहरे पर बिखर गई.

प्रो. रमाकांत ने उस के पहनावे को गौर से देखा. वह टौप व जींस में थी. टौप के 2 बटन खुले थे जिस में से बहुतकुछ झांक रहा था.

‘मैं ने तुम्हें मुबारकबाद देने के लिए बुलाया है. सुना है, तुम रामसहाय से शादी कर रही हो?’

‘शादी और इस लट्टू से. किस गधे ने कहा आप से? यह तो मेरा शाम का टाइमपास है. मेरा साकी बनता है. फ्री में कभीकभी शराब पिला देती हूं, तो इस ने समझ लिया कि मैं इस से शादी कर लूंगी. शराब के नशे में कभी कुछ कह दिया हो, तो कह नहीं सकती. मैं शादी उस से करूंगी जो हर महीने एक लाख रुपया का मेरा खर्चा उठा सके. और कुछ प्रोफैसर?’

‘नहीं, थैंक्स. अब तुम जा सकती हो.’

बिना कुछ कहे वह वहां से चली गई. नारी का ऐसा रूप भी देखना पड़ेगा, प्रोफैसर रमाकांत को उम्मीद नहीं थी. वे आहत हुए बिना नहीं रह सके. उन्होंने साथी प्रोफैसरों की ओर देखा. उन की स्थिति भी उन से भिन्न नहीं थी. रामसहाय की तो जैसे मां मर गई थी. ‘अब कहो रामसहाय, तुम्हारा क्या कहना है?’

‘सर, थोड़े बदलाव के साथ मेरे पिताजी ने भी पायल को देख कर यही बातें कही थीं. मुझे उन की बातें विश जैसी लगी थीं. मुझे खूब गालियां दी गई थीं. मैं ने अपनेआप को बहुत बेइज्जत महसूस किया था. तब मैं घर छोड़ आया था. मैं उन की बातों को समझ ही नहीं पाया था.’

‘मांबाप अपनी औलाद को आम के पौधे की तरह पालते हैं. जीवन में कितने भी तूफान क्यों न आएं वे उन को इस का एहसास नहीं होने देते. कितनी उम्मीदें पाल रखी होंगी तुम से जो तुम एक ही झटक में तोड़ कर चले आए. बड़ा लड़का परिवार का बाजू होता है. तुम ने तो उन को अपाहिज कर दिया,’ इतना कह कर कुछ देर के लिए प्रो. रमाकांत बोल नहीं सके. शायद वे बहुत भावुक हो गए थे. उन के मुख से शब्द नहीं निकल पा रहे थे. फिर अपने को संभाला और पूछा, ‘घर छोड़ कर तुम कहां रहते हो? अपने अमीर दोस्तों के पास? वे तुम्हरा रोजरोज का खर्चा उठाते होंगे, मैं नहीं समझता.’

‘आप ठीक कहते हैं, सर. एक महीना हो गया, कभी किसी दोस्त के पास रहता हूं, कभी किसी के पास. मुझे एहसास होने लगा है, वे सब बदल गए हैं. उन के मांबाप भी जहां ठंडी छांव करते थे, उन के व्यवहार में बदलाव आ गया है. वे वह नहीं रह गए जो पहले थे. पायल भी कन्नी काटने लगी है. मैं उस के सामने निकम्मा हो गया हूं. पैसे का महत्त्व समझ आने लगा है. पढ़ाई में पिछड़ा, सो अलग. अब तो मैं घर भी नहीं जा सकता. मेरा सबकुछ लुट गया है. घर छोड़ते समय मैं ने जो गालियां दी थीं, अपने जीवन में वे मुझे कभी माफ नहीं करेंगे. घर का रास्ता मेरे लिए बंद हो चुका है. 3 महीने की फीस देनी है, समझ नहीं आता मैं किस दोस्त से मांगू और वे मुझे क्यों देंगे? एक महीने में मेरी जो हालत हुई है, उस से घिन होती है. पता चला कि घर क्या होता है. अब मैं क्या मुख ले कर घर जांऊ. आत्मग्लानि से मरने को जी चाहता है.’

‘अपनी फीस को ले कर तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है,’ भीतर आती प्रो. नम्रता ने कहा.

‘क्यों मैम?’

‘परसों आ कर तुम्हारे पिताजी ने फीस भर दी थी.’

यह सुन कर कुछ देर तक रामसहाय बोल नहीं सका. उस की आंखें भर आईं. वह रोने लगा, ‘इतना सब होने पर भी उन को मेरी चिंता है. उन को पता है, मेरे पास पैसे नहीं होंगे, इसलिए चुपचाप फीस दे गए कि मेरी पढ़ाई पर आंच न आए. मैं ने उन के साथ क्या किया? गालियां दीं.’ वह फिर रोने लगा.

‘वे तुम्हारे मांबाप हैं. तुम्हें पैदा किया है, पाला है, पोसा है. वे तुम्हें इस कदर प्यार करते हैं कि तुम इस का अनुमान भी नहीं लगा सकते. वे तुम्हें अपने से अलग कर ही नहीं सकते, कर ही नहीं पाते, इसलिए चुपचाप फीस दे गए,’ प्रो. रमाकांत सांस लेने के लिए रुके, ‘उन्हें आज भी तुम्हारे घर आने की उम्मीद है. थोड़ी देर के लिए वे उम्मीद न भी रखें तो भी वे ऐसा प्रबंध अवश्य कर जाएंगे कि तुम्हें अपनी पढ़ाई में किसी प्रकार की दिक्कत न हो. वे अपने मांबाप होने का धर्म निभाएंगे और तुम?’

‘हां, सर, मैं घर जाऊं भी तो किस मुंह से, मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं. मैं ने उन को बहुत गालियां दी हैं. मैं घर जाने लायक नहीं रहा,’ रामसहाय फिर रोंआसा होने लगा.

‘तुम्हें घर जाने में झिझक हो रही है न? मैं तुम्हारे साथ चलता हूं. मेरा विश्वास है, वे तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे. घर में तुम्हारा उसी प्रकार स्वागत होगा, जैसे होना चाहिए.’ ‘लेकिन सर…’

‘लेकिन वे किन कुछ नहीं. बस, तुम मेरे साथ घर चल रहे हो.’ शाम को रामसहाय को ले कर प्रो. रमाकांत जब उस के घर पहुंचे तो उस के पिता ने घर का दरवाजा खोला. रामसहाय सीधा अपने कमरे में चला गया. ‘मैं रमाकांत, रामसहाय का प्रोफैसर.’

‘आइए सर, बैठिए. मुझे तो कोई उम्मीद ही नहीं थी. मैं सारी उम्मीदें छोड़ चुका था. घर का बड़ा बेटा…’ आगे वे बोल नहीं पाए. उन का गला भर आया था. धीरेधीरे चल कर रामसहाय की मां भी आंखों में आंसू लिए आ कर खड़ी हो गई. रामसहाय के पिता तब तक संभल चुके थे. उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘जाओ, रामयहाय आया है. उसे पानी पूछो. भूखा होगा, उसे खाना खिलाओ.’ प्रोफैसर रमाकांत उन को उसी स्थिति में छोड़ आए. सबकुछ संभल गया होगा. नाउम्मीदी उम्मीद में बदल चुकी होगी. मन के भीतर इस बात का संतोष था कि इस में वे सफल हो पाए.

मुझे उम्मीद न थी- भाग 2

‘हां सर, यह ठीक रहेगा. पर आप को उन के मांबाप से पहले रामसहाय से बात करनी चाहिए. अगर रामसहाय ही आप की बातों को समझ ले तो आप को उन के मांबाप के पास जाने की जरूरत नहीं रहेगी,’ प्रोफैसर नम्रता ने सलाह दी.

‘आप ठीक कहती हैं. मैं अभी बुला कर उस से बात करता हूं.’

‘हां, यही ठीक रहेगा. मैं चलती हूं. मेरा पीरियड है.’

मैं ने तुरंत चपरासी को बुलाया और फाइनल ईयर के रामसहाय को बुलाने के लिए कहा. थोड़ी देर बाद वह मेरे सामने खड़ा था. उस की आंखें और सिर दोनों ही झुके हुए थे. मुझे एहसास हुआ, कहीं अब भी उस के मन में पश्चात्ताप और शर्म है.

‘हूं रामसहाय, कैसे हो? रात का नशा उतर गया?’ मैं ने अपने चश्मे को उतार कर साफ किया और गहरी नजरों से उसे देखा. मुझे लगा, वह रात की घटना से शर्मिंदा है. ‘जी सर, सौरी सर.’ ‘ ‘एक बात बताओ, शराब के साथ सिगरेट भी चलती होगी?’

‘जी सर, कभीकभी.’

‘हूं, इस के पैसे कौन देता है? तुम या तुम्हारे वे अमीर दोस्त?’

‘जी, सभी बारीबारी देते हैं.’

‘कितने दोस्त हो तुम?’

‘सर, हम 4 दोस्त हैं.’

‘यानी, पैसों का हिसाबकिताब वे तुम से बराबर रखते हैं?’

‘जी सर.’

‘जानते हो, तुम्हारे उन दोस्तों के मांबाप क्या करते हैं?’

‘जी सर. एक की शुगर मिल है, एक की कपड़े की मिल और एक का शराब का ठेका है.’

‘यानी, कल को यदि वे न भी पढ़ें तो उन के जीवन में कोई दिक्कत नहीं होगी, काम और पैसे को ले कर? वे कभी भी अपने बापों के व्यवसाय में शामिल हो सकते हैं?’

‘जी सर.‘

‘तुम्हारे पापा क्या करते हैं?’

‘सर, बैंक में कलर्क हैं.’

‘कितनी तन्ख्वाह होगी, तुम अपने मांबाप की अकेली संतान हो, मकान तुम्हारा अपना है?’

‘सर, कटकटा कर 40 हजार रुपए घर में आते हैं. एक बहन है जो 10वीं में पढ़ती है. मां घर संभालती है. मकान हमारा पुश्तैनी है.’

‘फिर भी तुम उन अमीर दोस्तों की नकल करते हो यह जानते हुए भी कि तुम्हारे पिता की इतनी हैसियत नहीं है कि तुम्हारे लिए रोज शराब का प्रबंध करें. तुम्हारी मौजमस्ती का खर्चा उठाएं.’

‘सर, मेरे मां बाप मुझे समझते ही कहां हैं, विशेषकर मेरे पिताजी? वे तो बिलकुल मेरी भावनाओं को नहीं समझते. 3 महीने हो गए, मैं ने उन से बात नहीं की.’

‘वाह, क्या बेटा पाया है उन्होंने, क्या समझें तुम्हारी भावनाओं को? वे तुम्हें पढ़ने के लिए भेजते हैं, सिर्फ पढ़ने के लिए. इसलिए नहीं कि तुम्हारी कालेज की फीस के साथसाथ तीनतीन हजार रुपए तुम्हारे क्लास बंक करने का जुर्माना भी दें. तुम ने कभी सोचा है, वे किस प्रकार इस का प्रबंध करते होंगे? तुम कहते हो, वे तुम्हारी भावनाओं को नहीं समझते, तुम उन की भावनाओं को समझते हो, बताओ?’

‘सर, अब तो सारा टैंटा ही खत्म हो गया है. मैं घर छोड़ आया हूं.’

‘अच्छा, क्यों?’

‘सर, जिस लड़की को मैं प्यार करता हूं, जिस के लिए कालेज से मैं बंक मारता हूं, जुर्माना देता हूं, वे यह पसंद नहीं करते. मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’ रामसहाय के चेहरे पर आक्रोश था.

‘क्यों पसंद नहीं करते, क्यों शादी के लिए मना करते हैं?’

‘कहते हैं, अभी पढ़ाई पूरी नहीं हुई. मैं सैटल नहीं हुआ. शादी कर के उस को खिलाओगे क्या?’

‘गलत क्या कहते हैं? तुम्हारी पढ़ाई पूरी नहीं हुई. तुम कमाते कुछ नहीं. तुम्हारी छोटी बहन है. उस के प्रति भी तो तुम्हारी जिम्मेदारी है कि नहीं. या बाप ही सबकुछ करेगा. ग्रेजुएशन करने के बाद क्या गारंटी है कि तुम्हें कोई नौकरी मिलेगी ही. आज कंपीटिशन का जमाना है. इंजीनियर, एमबीए धक्के खा रहे हैं तो तुम्हें कौन पूछेगा? शादी कर के तुम्हारा जीवन मुसीबतोंभरा हो जाएगा. रोजरोज के खर्चे कैसे उठाओगे. अगर वह लड़की समझदार होगी तो तुम्हारी हालत देख कर शादी नहीं करेगी.’

‘सर, यही बातें मेरे पिताजी ने भी कही थीं. मुझे जहर लगी थीं. पर सर, मुझे नौकरी की चिंता नहीं है. अमरीक सिंह, मेरे दोस्त, के पापा ने कहा है कि मैं ग्रेजुएशन कर लूं, वे एक लाख रुपए महीने की नौकरी तुरंत दे देंगे. मेरे लिए कुरसी खाली पड़ी है.’

‘ओए, तू झल्ला हुआ है? तू बेबकूफ है? आज के जमाने में जहां लोग एक नया पैसा देने के लिए तैयार नहीं होते, तू एक लाख की बात कर रहा है,’ अभी आ कर बैठे प्रोफैसर सतनाम सिंह ने कहा.

‘तुम्हारे पास अमरीक सिंह के बाप का फोन नंबर है,’ प्रोफैसर रमाकांत ने कहा.

‘है सर.’

प्रोफैसर रमांकांत ने अपना मोबाइल निकाल कर कहा, ‘बोलो, क्या नंबर है?’

नंबर मिलने पर प्रोफैसर साहब ने स्पीकर औन कर दिया ताकि वहां बैठे सभी को बातचीत सुनाई दे सके. ‘हैलो’ सुनने पर, प्रो. साहब ने कहा, ‘आप अमरीक सिंह के पिता हैं?’

‘जी, मैं अमरीक सिंह का पिता हूं. आप कौन?’

‘मैं प्रो. रमाकांत बोल रहा हूं हिंदू कालेज से.’

‘सत श्री अकाल जी. कहिए, मैं तुहाडी की सेवा कर सकदा हां?’ आगे से पंजाबी में पूछा गया.  ‘आप रामसहाय को जानते हैं?’ प्रो. साहब सीधे मुद्दे पर आए.

‘रामसहाय? अमरीक का दोस्त है न? हां, एकआध बार मिला हूं. क्यों ?’

‘आप ने ग्रेजुएशन करने के बाद उसे एक लाख रुपए की नौकरी देने वादा किया है?’

‘मैं ने, नहीं तो. मैं अमरीक को अपने साथ लगाऊंगा, न कि रामसहाय को. शराब के नशे में एकआध बार कह दिया हो, तो कह नहीं सकता.’ अमरीक के पिता ने दो टूक बात की.

‘सौरी साहब, आप को बौदर किया.’ और प्रो. रमाकांत ने फोन बंद कर दिया, ‘शराब पीढ़ीदरपीढ़ी शराब, नशा पुश्त दर पुश्त नशा.’ प्रो. रमाकांत बड़बड़ाए.

‘अब बताओ, रामसहाय, तुम्हें क्या कहना है?’

‘सर, मुझे उन्होंने एक लाख रुपए की नौकरी देने की बात कही थी. अब मुकर रहे हैं.’

‘मैं तो पहले ही कह रहा हूं कि कोई कुछ नहीं देगा. सब बेवकूफ बनाया जा रहा है. पता नहीं किन सपनों की दुनिया में जी रही है युवा पीढ़ी,’ प्रो. सतनाम सिंह ने फिर अपनी बात पर जोर दिया.

‘अब बताओ, वह कौन सी लड़की है जो तुम्हारे जैसे लड़के को अपनाना चाहती है. शादी करना चाहती है जिस का कोई आधार नहीं है,’ प्रो. रमाकांत ने पूछा.

बेहाल पाकिस्तान

पाकिस्तान में भी विपक्षी नेताओं को अदालतों के जरिए उसी तरह नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है, जैसे भारत में हो रहा है. तहरीके ए इंसाफ पार्टी के नेता व पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर 145 केस दायर किए गए हैं और अदालतों से उन की गिरफ्तारी के आदेश लिए जा रहे हैं. एक मामले में 2 दिन गिरफ्तार रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया पर बाकी मामलों की सुनवाई होती रहेगी.

पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति वैसे ही डांवांडोल है और ऊपर से सेना व सरकार इमरान खान का विवाद खड़ा कर रहीसही हालत को गृहयुद्ध में बदलने में लगी हैं. पाकिस्तान में असल में तब से लगातार दरारें पैदा हो रही हैं जब 1924 में जालंधर, पंजाब प्रोविंस में पैदा हुए जिआ उल हक ने सैनिक सत्तापलट में राज शुरू किया था और इसलामी देवबंदी स्टाइल में देश को कट्टरपंथ की ओर धकेलना शुरू किया था. जो उन्होंने जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ किया था वही आज सेना व सरकारें मिल कर इमरान खान के साथ करना चाह रही हैं.

1980 के बाद अमेरिका और चीन दोनों ने अफगानिस्तान को ले कर पाकिस्तान को मोटा पैसा दिया जिस से वहां एक ऊंचे संभ्रातवादी वर्ग को भरपूर पैसा मिला पर आम पाकिस्तानी और ज्यादा भूखा व ज्यादा कट्टर व गुमराह हो गया. भारत के लिए यह स्थिति सुखद नहीं है क्योंकि चाहे पाकिस्तानी सेना के हमले के आसार अब शून्य रह गए हों, पाकिस्तान में अलकायदा जैसे कट्टरपंथी गुट अब पनप सकते हैं जिन्हें सेना, सरकार और इमरान खान जैसों के भी वश का संभालना न होगा. वे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए कश्मीर और भारत में मुसलमानों के प्रति बरताव को ले कर अपने भक्तों को उकसा सकते हैं जो भारत के लिए सिरदर्द हो सकता है.

पाकिस्तान में अगर स्थिर सरकार हो जो देश की उन्नति और औद्योगिकीकरण पर ध्यान दे तो ही भारत को सुरक्षा मिलेगी. ऐसा देश जो बिजली, पानी, बाढ़, डीजल, महंगाई, सामान की कमी से कराह रहा हो, कब आपे से बाहर हो कर दूसरों के घर जलाना शुरू कर दे, कहा नहीं जा सकता.
पाकिस्तान ने अब तक अपनी भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाया है पर अब जब अफगानिस्तान और रूस मुद्दा न रह गए हों और अमेरिका या चीन को पाकिस्तान की दोस्ती की चिंता न हो तो उस की बड़ी आय बंद होनी ही थी. भारत को ताली बजाने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो श्रीलंका और पाकिस्तान में हो चुका है, वह भारत में नहीं हो सकता,

इस की कोई गारंटी नहीं. वर्ष 1707 तक मुगल साम्राज्य का मजबूत भारत बाद के सालों में बुरी तरह अराजकता का शिकार बना था. वे कंटीले बीज आज श्रीलंका, बंगलादेश और पाकिस्तान में फूट रहे हैं. यहां न फूटें, इस के लिए हमें होशियार रहना चाहिए. लेकिन लगता नहीं है कि यहां की सरकार नियमों और नैतिकता की फिक्र करती है, जैसे पाकिस्तान की सरकार नहीं करती.

मेरे पिताजी की उम्र 52 वर्ष है, 3 वर्षों से उन का डायलिसिस चल रहा है, क्या उन के लिए किडनी प्रत्यारोपण ठीक रहेगा?

सवाल
मेरे पिताजी की उम्र 52 वर्ष है. 3 वर्षों से उन का डायलिसिस चल रहा है. क्या उन के लिए किडनी प्रत्यारोपण ठीक रहेगा?

जवाब
किडनी का मुख्य कार्य व्यर्थ पदार्थों को यूरिन में बदल कर शरीर के बाहर निकालना होता है. जब किडनी अपनी क्षमता खो देती है, तो व्यर्थ पदार्थ शरीर में एकत्र होने लगते हैं, जो जीवन के लिए खतरा हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में डाक्टर डायलिसिस या गुरदा प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं.

ज्यादातर लोग गुरदा प्रत्यारोपण करा सकते हैं. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन की उम्र क्या है. यह प्रक्रिया उन सब के लिए उपयुक्त है, जिन्हें ऐनेस्थीसिया दिया जा सकता है और कोई ऐसी बीमारी नहीं है, जो औपरेशन के बाद बढ़ जाए जैसे कैंसर आदि. हर वह व्यक्ति गुरदा प्रत्यारोपण करा सकता है, जिस के शरीर में सर्जरी के प्रभावों को सहने की क्षमता हो.

गुरदा प्रत्यारोपण की सफलता की दर दूसरे प्रत्यारोपण से तुलनात्मक रूप से अच्छी होती है. जिन्हें गंभीर हृदयरोग, कैंसर या एड्स है, उन के लिए प्रत्यारोपण सुरक्षित और प्रभावकारी नहीं है.

क्या आप भी हैलिकौप्टर पेरैंट हैं?

हैलिकौप्टर पेरैंट शब्द सर्वप्रथम 1969 में डा. हेम गिनाट्स की किताब ‘बिटवीन पेरैंट्स ऐंड टीनेजर्स’ में इस्तेमाल हुआ था और इतना लोकप्रिय हुआ कि 2011 में डिक्शनरी में उसे स्थान देना पड़ा. आप और हम में से कोई भी ऐसे मातापिता या अभिभावक हो सकते हैं.

हैलिकौप्टर पेरैंटिंग क्या है

हैलिकौप्टर पेरैंट यानी वे मातापिता जो बच्चों के ऊपर हैलिकौप्टर की भांति मंडराते रहते हैं. उन्हें ज्यादा कंट्रोल करते हैं, उन पर ज्यादा ध्यान देते हैं, उन्हें ज्यादा प्रोटैक्ट करते हैं, उन के साथ अधिकांश समय रहते हैं. बदलते दौर में हालांकि बच्चों को हर प्रकार से सही मार्गदर्शन देना आवश्यक है पर हैलिकौप्टर पेरैंट, बच्चे के हर काम जैसे, स्कूल के टैस्ट, दोस्त चुनना, घूमने जाना और खेलने आदि में साथसाथ रहते हैं.

हैलिकौप्टर पेरैंटिंग के कारण

हरेक अभिभावक अपने बच्चे के प्रति प्रोटैक्टिव होते हैं पर कई मातापिता कई कारणों से हैलिकौप्टर पेरैंट्स बन जाते हैं.

असफलता का डर : गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस युग में बच्चा कहीं पीछे न रह जाए, इस सोच के कई अभिभावक उन के पीछे पड़े रहते हैं. उन्हें लगता है उन के अधिक ध्यान से बच्चा सफल हो जाएगा.

एंग्जाइटी या चिंता : विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिति देख कर कई अभिभावकों को चिंता हो जाती है कि बच्चे का भविष्य कैसा होगा. वे बच्चे के साथ इसलिए लगे रहते हैं कि बच्चा असफल होने पर कहीं अवसादग्रस्त न हो जाए.

ओवर कंपैन्सेशन : ऐसे मातापिता जिन्हें बचपन में उपेक्षा मिली, वे अपने बच्चे को अधिक प्यार, अधिक समय दे कर कंपैन्सेट करना चाहते हैं.

दूसरे मातापिता को देख कर : दूसरे अभिभावकों को बच्चों के कामों में व्यस्त देख कई बार मातापिता को लगता है कि वे भी अपने बच्चे के कामों में हस्तक्षेप करें.

हैलिकौप्टर पेरैंटिंग के फायदे

हैलिकौप्टर पेरैंट चूंकि बच्चों के साथ हर वक्त इन्वौल्व्ड रहते हैं इसलिए उन्हें पता होता है कि उन के बच्चे कहां हैं, क्या कर रहे हैं, कौनकौन उन के मित्र हैं  सुरक्षा की दृष्टि से भी यह अच्छा रहता है. बच्चों का ध्यान रखना, उन पर निगरानी रखना, उन के साथ काम कराना अच्छा है. बच्चे में प्यार किए जाने, स्वीकार किए जाने की भावना पनपती है जो उस के व्यक्तित्व का निर्माण करती है. उस में प्रगति करने की संभावना जगती है.

हैलिकौप्टर पेरैंट बच्चों के प्रति बेहद पजैसिव होते हैं. वे उन्हें काम करने ही नहीं देते, उस से पहले ही उन का काम कर डालते हैं. कुछ बातें परख कर आप भी जानें :

क्या आप बच्चे को रोज सुबह स्कूल/ कालेज जाने के लिए उठाते हैं?

क्या उस के कालेज या स्कूल चले जाने पर आप उस के पीछे जाते हैं, दूर से देखते हैं? क्या आप उस की टीचर्स से लगातार संपर्क में रहते हैं?

टैस्ट में दिए मार्क्स के लिए टीचर से बहस करते हैं?

क्या आप बड़े बच्चे को भी हाथ से खाना खिलाते हैं?

क्या आप उस के छोटेछोटे काम भी खुद करते हैं?

खेल में हारने पर या कालोनी में लड़ाई होने पर आप बच्चे की जगह खुद जा कर लड़ने लगते हैं?

क्या बच्चे के असफल होने पर आप को हमेशा निर्णायकों की गलती लगती है?

क्या आप बच्चे के कालेज से पास होने पर उस का बायोडाटा ले कर स्वयं नौकरी की तलाश करते रहते हैं?

क्या आप बच्चे के जरा सा बीमार होते ही परेशान हो जाते हैं?

क्या आप अपने बच्चों को दुखी नहीं देख सकते? क्या आप बच्चों को कभी धूप, धूल या भीड़ में नहीं जाने देते, उन्हें मिट्टी में खेलने नहीं देते?

दूसरे लोगों की बुरी नजर आप के बच्चे पर हमेशा रहती है, क्या आप को ऐसा महसूस होता है?

क्या आप लगातार बच्चे के पीछे पड़े रहते हैं? उसे तरहतरह के कोर्सेज कराते रहते हैं?

उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर ‘हां’ है तो आप हैलिकौप्टर पेरैंट हैं अथवा बनने जा रहे हैं. रुकिए, सोचिए, अति सभी चीजों की बुरी होती है.

हैलिकौप्टर पेरैंटिंग के दुष्परिणाम

ऐसे मातापिता जो बच्चों के जूते के फीते बांध देते हैं, प्लेट उठाते हैं, लंच पैक कर देते हैं, उन के बच्चे शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पाते.

बच्चा कई बार चुनौती और असफलता हैंडल नहीं कर पाता. उस का स्वाभिमान कम हो जाता है.

ऐसे बच्चे विपरीत परिस्थितियों का सामना करना नहीं सीख पाते क्योंकि हर बुरी बला से बचाने को मातापिता मौजूद रहते हैं.

मातापिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना ऐसे बच्चों के लिए अत्यावश्यक हो जाता है और सफल न होने पर वे डिप्रैशन में चले जाते हैं.

ऐसे बच्चे सफल होने का श्रेय कभी स्वयं नहीं ले पाते क्योंकि सफलता उन्हें मातापिता की बदौलत मिलती है.

याद रखिए, आप उस के सब से अच्छे हितैषी हो सकते हैं पर उसे हरदम सुरक्षित रखने की आप की सोच से उस का व्यक्तित्व विकास अवरुद्ध हो जाएगा. जीवन के संघर्ष का वह सामना नहीं कर पाएगा.

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न बनें ओवरप्रोटैक्टिव

याद कीजिए आप कैसे पले थे, क्या आप के मातापिता ने आप को हार व जीत समान तौर पर लेना नहीं सिखाया था? क्या वे आप को गिरने पर ‘कोई बात नहीं, चींटी मर गई’ नहीं कहते थे? क्या दोस्तों से लड़ाई होने पर उन की शिकायत आप के द्वारा लगाने पर ‘खुद निबटाओ’ नहीं समझाते थे?

अपनेआप को बे्रक दीजिए, अपने व्यवहार को परखिए. अगर आप ओवरप्रोटैक्टिव बन रहे हों तो रुकिए, स्वयं को बदलिए.

एक्स्ट्रीम में जाना छोड़ें. बच्चे को समस्याओं, परिस्थितियों को हैंडल करने दें.

बच्चे को सूचित करें डिक्टेट नहीं. बच्चे को हर चीज के पौजिटिव और नैगेटिव इफैक्ट्स के बारे में बताइए, फैसला उसे खुद लेने दीजिए.

बच्चे की सफलता का सारा श्रेय खुद मत लीजिए. उसे एहसास होने दीजिए कि अच्छा किया है या बुरा.

हर वक्त बच्चे का बचाव मत करिए. उसे अपनी गलती का एहसास होने दीजिए.

बच्चा निसंदेह आप की आंखों का तारा है पर ओवर प्रोटैक्शन से उसे नुकसान होगा, फायदा नहीं.

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