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बेमिसाल धरोहरों का शहर लंदन

लंदन जाना हमेशा खुशगवार अनुभूति देता है. तमाम आधुनिकताओं से लैस लंदन अपने प्राचीन स्वरूप को भी दिलचस्प अंदाज में पेश करता नजर आता है. यहां आ कर सबकुछ अपनाअपना सा लगता है.

लंदन की यात्रा के लिए हमारा विमान दिल्ली से उड़ कर इस्तांबुल एअरपोर्ट पर उतरा. वहां 4 घंटे का विश्राम था, वहां से हमें तुर्किश एअरलाइंस के ही दूसरे विमान से लंदन जाना था. तुर्किश एअरलाइंस का एअरबस-330 विमान काफी आरामदायक था. इस दौरान हम इस्तांबुल हवाई अड्डे से बाहर तो जा नहीं सकते थे किंतु हवाई अड्डे के एक छोर से दूसरे छोर तक आनेजाने की पूरी स्वतंत्रता थी जिस का हम ने पूरा लाभ उठाया और एअरपोर्ट के अंदर घूमघूम कर तुर्की सभ्यता को सम झने का प्रयास किया.

खैर, इस्तांबुल से उड़ान के 4 घंटे बाद विमान लंदन पहुंचा. लंदन में 3 प्रमुख हवाई अड्डे हैं जहां पर हवाई कंपनियों के विमानों का आवागमन होता है. ये हैं हीथ्रो, स्टेनस्टेड और गेटविक. ये सभी हवाई अड्डे एकदूसरे से काफी दूरी पर हैं. हमारा विमान हीथ्रो पर उतरा था, जो विश्व का तीसरा व्यस्ततम हवाई अड्डा है. यह हवाई अड्डा क्या, एक पूरा शौपिंग मौल है. जिधर देखो इलैक्ट्रौनिक्स सामान, घडि़यां, मदिरा, परफ्यूम, कैमरे, रैडीमेड कपड़े, पुस्तकें और हर प्रकार की सामग्री नजर आती है.

हमारा होटल हीथ्रो हवाई अड्डे से लगभग 24 किलोमीटर उत्तरपूर्व में था. उस समय मई का महीना चल रहा था और लंदन का मौसम अत्यंत सुहावना था. वातावरण में हलकीहलकी ठंडक थी जबकि आकाश में धूप खिली हुई थी जो मन को आनंद से भर दे रही थी. मार्ग की दृश्यावलियां इस आनंद को दोगुना कर रही थीं.

लंदन विशाल नगर है, जिस की जनसंख्या लगभग 82 लाख है. इस प्रकार यह यूके का सब से बड़ा नगर तो है ही, साथ ही अकेले लंदन की आबादी का अनुपात पूरे यूके का लगभग 12.5 फीसदी है. यहां पर ब्रिटिश पौंड को करैंसी के रूप में उपयोग किया जाता है, जिस का मूल्य भारतीय रुपयों में लगभग 83 रुपए है. मूल्यों के आधार पर लंदन एक महंगा स्थान माना जाएगा, क्योंकि यहां पर भारत की तुलना में लगभग सभी वस्तुएं बहुत महंगी लगती हैं. किंतु दूसरी तरफ यदि इस की तुलना गुणवत्ता के आधार पर की जाए तो लंदन में खरीदे गए सभी सामान बहुत मजबूत, टिकाऊ और अच्छे रंगरूप वाले होते हैं. इसीलिए

महंगे होने के बावजूद लोग यहां से खरीदारी करना पसंद करते हैं. लंदन की सड़कें साफ- सुथरी और खूबसूरत हैं. नगर के मुख्य भाग में तो बहुमंजिली इमारतों की बहुतायत है लेकिन वहां के उपनगरों में मकान अधिकतर दोमंजिले हैं. नगर के मध्य भाग से टेम्स नदी बहती है, जिस में अनेक प्रकार की व्यावसायिक नौकाएं व पर्यटन नौकाएं चलती रहती हैं. पर्यटक चाहें तो उन लग्जरी नौकाओं में टिकट खरीद कर जलविहार कर सकते हैं. नदी को व उस के तटों को अत्यंत साफसुथरा बना कर रखा गया है. लोग बताते हैं यह नदी भी पहले किसी देश की आम नदियों की तरह गंदी थी किंतु नियमित व योजनाबद्ध सफाई के बाद अब टेम्स नदी ज्यादा सुंदर बन गई है.

लंदन की विशेषता यह है कि यहां पर आधुनिकता के प्रवेश के बावजूद प्राचीन स्वरूप को भी बना कर रखा गया. जैसे बिगबेन घड़ी, बर्किंघम पैलेस. बर्किंघम पैलेस आज भी अपनी पुरानी परंपराओं को निभाता हुआ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

वैक्स म्यूजियम

लंदन का एक अत्यंत लोकप्रिय स्थल वहां का मैडम तुसाद संग्रहालय है, जहां मोम से बनी राजप्रमुखों, नेताओं, राजाओं, वैज्ञानिकों, फिल्मी कलाकारों, खिलाडि़यों व अनेक ऐतिहासिक हस्तियों की मानवाकार मूर्तियां लगाई गई हैं. इन में भारत की भी कई हस्तियां जैसे महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सलमान खान, ऋतिक रोशन, माधुरी दीक्षित, शाहरूख खान, ऐश्वर्या राय, अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर शामिल हैं.

संग्रहालय के अंदर ट्रौली से नीचे उतरते हुए आप की फोटो खींच ली जाती है और जब आप बाहर निकलते हैं तो उस का पिं्रट तैयार हो बोर्ड पर लगा मिलता है. यदि आप चाहें तो उसे खरीद भी सकते हैं. तुसाद संग्रहालय में अंगरेजी, फ्रैंच, जरमन, इटालियन आदि भाषाओं में सूचना बोर्ड लगे हैं और यह देख कर अत्यधिक प्रसन्नता होती है कि उन सभी भाषाओं के साथ हिंदी भाषा में भी ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं.

देशी माहौल

लंदन में भारत, पाकिस्तान बंगलादेश और श्रीलंका के लोगों की बहुतायत है. जगहजगह पर साडि़यां, सलवारकुरते पहने महिलाएं, पगड़ी पहने सिख और भारतीय भाषाओं में बात करते लोग दिख जाते हैं. भारतीय रेस्तरां अनेक स्थानों पर हैं जिन में हिंदी गाने भी बजते रहते हैं. भारत में उपयोग में लाए जाने वाले मसाले, अचार, दालें व रसोई की विभिन्न सामग्री भी दुकानों पर आसानी से मिल जाती है. लंदन का साउथ हौल इलाका तो ‘छोटा भारत’ के नाम से ही मशहूर है. यहां पहुंच कर ऐसा लगता है जैसे दिल्ली के चांदनी चौक या करोल बाग में आ गए हों.

भारत के लोग विदेशों में भी अकसर भारतीय खाना ही पसंद करते हैं. देश के सभी टूर औपरेटर इस सचाई से परिचित हैं, इसलिए वे इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि टूर के दौरान सभी देशों में लंच व डिनर के लिए पर्यटकों को भारतीय रैस्टोरैंट में ही ले जाया जाए. हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ क्योंकि लंदन में हमें बहुत अच्छे भारतीय रैस्टोरैंट में ले जाया गया जहां हर प्रकार का शाकाहारी व मांसाहारी खाना सरलता से उपलब्ध था. लंदन जा कर पर्यटक उस की रम्यता में इतना लीन हो जाते हैं कि वहां से वापस आने का दिल नहीं करता.

दर्शनीय स्थल

लंदन आई : ‘लंदन आई’ टेम्स नदी के तट पर लगा हुआ एक विशालकाय  झूला है जिस की ऊंचाई 135 मीटर व व्यास 120 मीटर है. इस का निर्माण उस समय किया गया था जब विश्व में 21वीं सदी का प्रवेश होने वाला था अर्थात 2000 में, ताकि नई सदी का स्वागत जोश से किया जा सके. 21वीं सदी के प्रवेश के 12 वर्षों के बाद भी ‘लंदन आई’ पर सैर करने के इच्छुक लोगों की भीड़ कम होने का नाम नहीं लेती है.

‘लंदन आई’ वैसे तो एक बड़े  झूले जैसा है किंतु इस में पारदर्शी पदार्थ के अंडाकार डब्बे लगे हैं जिन में पर्यटकों के बैठने की सीटें बनी हैं.  झूले के चलने पर दर्शकों को दूरदूर तक के नजारे दिखते हैं. रात में तो रंगबिरंगी बत्तियों के जलने के बाद ‘लंदन आई’ की छटा अतुलनीय हो जाती है.

टावर औफ लंदन : ब्रिटेन की महारानी का ऐतिहासिक महल और किला ‘टावर औफ लंदन’ के नाम से जाना जाता है. इस का निर्माण 11वीं शताब्दी में टेम्स नदी के उत्तरी तट पर किया गया था. नौका द्वारा टेम्स नदी की सैर करते समय ‘टावर औफ लंदन’ का सुंदर नजारा देखा जा सकता है. यह लंदन की अत्यंत लोकप्रिय पर्यटनस्थली है.

टावर ब्रिज : टावर ब्रिज टेम्स नदी पर बना हुआ खूबसूरत पुल है, जिस का निर्माण वर्ष 1894 में हुआ था. टेम्स नदी पर 2 ऊंचेऊंचे स्तंभों को जोड़ते हुए सड़कें बनाई गई हैं. पुल का निचला हिस्सा 2 भागों में खुल जाता है, जिस के बीच से हो कर नौकाएं, जहाज इत्यादि पुल के नीचे से पार हो जाते हैं. लंदन ब्रिज के ऊपरी भाग से वाहन व पदयात्री निकलते हैं और उस के नीचे से नौकाएं व जहाज.  टावर ब्रिज के निकट ही टेम्स नदी पर एक और पुल भी स्थित है जिस का नाम लंदन ब्रिज है. ये दोनों पुल भिन्न हैं. लंदन ब्रिज की अपनी अलग ऐतिहासिक महत्ता है.  लंदन के अन्य आकर्षणों में बिगबेन घंटाघर, ट्रफलगर स्क्वायर, पिकाडली सर्कस, सैंट पौल कैथेड्रल आदि हैं.

रोम रोम में बसा इटली

इटली यूरोप का ऐसा पर्यटन स्थल है जहां सभ्यता, संस्कृति, विकास, कला और कारीगरी की अनूठी दास्तानें सुनने व देखने को मिलती हैं. सैलानी यहां सिर्फ घूमते ही नहीं बल्कि यहां के रंगीन नजारों, खानपान और सांस्कृतिक कलेवर को खुद में समेटने को आतुर भी दिखते हैं. खिली धूप, नीला आकाश और बिखरी चांदनी में इटली की फिजा देखते ही बनती है.

31 मई, 2012 की सुबह 7.30 बजे हम लोगों ने आस्ट्रिया का होटल क्रोमा छोड़ दिया. वजह? इटली का रंगीन मिजाज वाला शहर वेनिस हमारा इंतजार कर रहा था. वेनिस के नाम से ही एक अत्यंत रूमानी शहर का चित्र दिमाग में आ जाता है. ऐसा शहर जहां सड़कें नहीं हैं, उस की जगह पानी ही पानी है. इस महल्ले से उस महल्ले जाना हो तो पतलीपतली नावों से ही जाना पड़ेगा. ये नावें गोंडोला कहलाती हैं. एड्रियाटिक समुद्र के किनारे बसे इस शहर को ‘क्वीन औफ एड्रियाटिक’ यानी एड्रियाटिक की रानी भी कहा जाता है. यह एक जमाने में बहुत व्यस्त बंदरगाह हुआ करता था.

वहां पहुंचने के लिए जेट्टी से ही हम ने एक बड़ी नाव ली. किनारे पर उतर कर हम एक विस्तृत प्लाजा में आए. वहां पहले से ही काफी भीड़ थी. समुद्र के किनारेकिनारे शहर काफी दूर तक बसा हुआ है. पहली पंक्ति के भवन समूह के पीछे सैंट मार्क नामक विशाल चर्च है. इस के सामने एक विशाल प्रांगण है जो चारों ओर से दो- मंजिले भवनों से घिरा है. पूरा प्रांगण सैलानियों से भरा था. सैकड़ों की संख्या में कबूतर बिखरे दाने चुग रहे थे. प्रांगण के फ्लोर में एक सफेद पट्टी पर लैटिन भाषा में कुछ लिख कर ‘1625’ लिखा हुआ था. शायद उसी वर्ष में इस प्रांगण का निर्माण हुआ था. मन हुआ किसी से पूछूं कि इस का मतलब क्या है, पर देखा, सभी देशीविदेशी अपने में ही मस्त हैं. किसे फुरसत है इतिहास कुरेदने की. प्रांगण में ही 2 ओपन एअर होटल भी थे, जिन के कुछ हिस्से बरामदे में भी थे. तेज धूप के कारण ग्राहकों के लिए रंगीन छाते लगाए गए थे.

उसी परिसर में मुरान्हो ग्लास वर्क्स शौप भी है. यहां दिखाया गया कि ब्लो ग्लास कैसे बनाया जाता है. हमारे सामने ही एक कारीगर ने आग की भट्ठी में से एक लंबा पाइप निकाला जिस के अंतिम सिरे पर पानी में सने आटे की लोई की तरह द्रवित शीशा था. 2 मिनट के अंदर ही कारीगर ने बारीबारी से उसे ठोंकपीट कर एक सुंदर फूल रखने वाला जार बना दिया. दूसरी बार उसी तरीके से एक दौड़ता हुआ घोड़ा बना दिया. कमाल का हुनर था उस के हाथों में. वर्कशौप के साथ ही उन का विक्रय सह शोरूम भी था. विभिन्न आकारों व रंगों में कप, प्लेट, गिलास, गुलदस्ता, चूड़ी, हार, तरहतरह के जानवर, चिडि़या और  झाड़फानूस दिखे.

स्थानीय भाषा में वेनिस को ‘वेनेजिया’ कहा जाता है. यह शहर 170 छोटेबड़े द्वीपों को मिला कर बना है. एक द्वीप से दूसरे द्वीप के बीच समुद्र जल है. स्वाभाविक है कि एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए जल मार्ग का सहारा लेना पड़ेगा. कुल 150 नहरें हैं. सभी नहरें आगे जा कर छोटेबड़े चौराहों पर मिलती हैं. इस तरह नाव खेतेखेते एक महल्ले से दूसरे महल्ले में जाया जा सकता है. नहर में चलते समय हमारी नाव अकसर ओवर हेड व रोड ब्रिज से गुजरती. उस समय ब्रिज पर खड़े लोग नीचे से गुजर रही नावों के यात्रियों को हाथ हिलाहिला कर बायबाय करते. कुछ ताली भी बजाते.

नहर के दोनों तरफ बने मकानों की हालत एक जैसी नहीं थी. जहां बाईं तरफ के मकानों की दीवारें मजबूत पत्थर से बनीं चमकदार दिख रही थीं, वहीं दाईं तरफ की दीवारें गरीबी की कहानी बयान कर रही थीं. बहुत जगह प्लास्टर  झड़ गए थे, अंदर की ईंटें  झांक रही थीं. गरीबअमीर तो दुनिया में हर जगह हैं. कुल मिला कर गोंडोला से यात्रा करना आनंददायी रहा. वैसे इलाहाबाद और बनारस में भी हम ने नौकाविहार किया है, पर वहां चारों ओर खुलाखुला सा रहता है, वेनिस में मकानों के बीच नाव चलती हैं.

जल विहार के उपरांत हम लोगों ने एक ऐसे होटल में खाना खाया जिस का नाम था ‘रिस्तरांतो इंदियानो गांधी’. बड़ा अजीब लगा. वहां साईं बाबा की मूर्ति के अलावा राजस्थानी पेंटिंग्स भी प्रमुखता से टंगी थीं. कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि हम अपने देश में ही हैं. यूरोप के बहुत से हिस्सों में ‘ट’ की जगह ‘त’ व ‘ड’ की जगह ‘द’ का उच्चारण किया जाता है इसीलिए होटल के नाम का उच्चारण ऐसा लिखा गया है. 1 जून, 2012 की सुबह करीब साढ़े 3 घंटे की ड्राइव के बाद ‘ झुकती हुई मीनार’ को देखने पीसा पहुंचे. यह मात्र 1 लाख की आबादी वाला छोटा सा शहर है. कहा जाता है कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलिलियो ने इस मीनार पर चढ़ कर यह ऐक्सपेरिमैंट किया था कि क्या पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति हर वस्तु को एक ही तरह आकर्षित करती है.

इस मीनार का निर्माण 1174 में प्रारंभ हुआ. योजनानुसार इसे संगमरमर की घंटा वाली मीनार बनाया जाना था. पर 3 मंजिलें बनने के बाद ही यह  झुकने लगी. तब निर्माण बंद कर दिया गया. 70-80 वर्षों बाद फिर काम शुरू किया गया और उसी  झुकती स्थिति में 5 मंजिलें और जोड़ दी गईं. आज इस की ऊंचाई 55.8 मीटर है. ऊपरी मंजिल तक कम लोग ही चढ़ते हैं. वहां तक पहुंचने के लिए तकरीबन 1 हजार रुपए आप को खर्च करने पड़ेंगे.

यह मीनार एक विशाल अहाते के भीतर है जिसे ‘स्क्वैयर औफ मिरैकल्स’ कहते हैं यानी चमत्कारों का चौराहा. करीब 18-20 फुट ऊंची दीवार से घिरे इस इलाके में जैसे ही घुसते हैं, बाईं ओर एक चर्च और बपतिस्मा करने वाला गुंबददार भवन मिलता है. उस के बाद अंत में दिखाई पड़ता है यह  झुकता हुआ टावर.

फ्लोरैंस

पीसा के बाद हम यूरोप की सांस्कृतिक राजधानी फ्लोरैंस आए. यह शहर प्रख्यात मूर्तिकार और चित्रकार माइकेल एंजेलो की कर्मभूमि थी. शहर के मुख्य चौराहे सिग्नोरिया स्क्वैयर, जहां तत्कालीन शहर के मुखिया का मकान था, के चारों ओर संगमरमर की बड़ीबड़ी मूर्तियां स्थापित की गई हैं. इस चौराहे को चौराहा न कह कर ‘ओपन एअर म्यूजियम’ कहा जा सकता है. इसी में है डेविड की संगमरमर की विश्व प्रसिद्ध मूर्ति है जो कम से कम 10-12 फुट से कम नहीं होगी. सभी मूर्तियां 5-6 फुट ऊंचे चबूतरे पर स्थापित की गई हैं. वहीं पर बाइबिल में चर्चित कई संतमहात्माओं की मूर्तियों के साथ दांते, वर्जिल जैसे कवियों की भी मूर्तियां थीं.

रोम

रोम को क्षेत्रीय भाषा में ‘रोमा’ कहते हैं. आज यूरोप के हर देश में भवन निर्माण कला, ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र में रोमन प्रभाव हर जगह दिखाई देता है. सर्वोत्कृष्टता का मानदंड रोमन पद्धति ही रहा है. उसी रोम की यात्रा पर आज हम निकले थे. इस विचार मात्र से ही उत्सुकता एवं रोमांच हो रहा था. शुरू में यह शहर अत्यंत अव्यवस्थित एवं छोटा था. परंतु राजधानी बन जाने के बाद से इस में भव्य भवनों का निर्माण शुरू हुआ और एक समय ऐसा आया कि यह नगर रोमन साम्राज्य की सत्ता का केंद्र बन गया. पूरे यूरोप में इस की तूती बोलती थी. इस की भव्यता को देख कर यह कहा जाता था कि ‘रोम वाज नौट बिल्ट इन अ डे’ यानी इतने महान शहर का निर्माण एक दिन में नहीं हो सकता. इस का अर्थ यह भी लगाया जाता है कि किसी भी महान कार्य को करने के लिए समय व परिश्रम की जरूरत होती है.

वैटिकन सिटी : रोम आने पर सब से पहले हम लोगों ने वैटिकन सिटी की यात्रा शुरू की. संसारभर के रोमन कैथोलिक मत के मानने वाले ईसाइयों के लिए इस से बड़ा कोई स्थान नहीं है. 44 हैक्टेअर क्षेत्र में बसा यह संसार का सब से छोटा देश होने के साथ संयुक्त राष्ट्र का सदस्य भी है. इस का निर्माण यद्यपि सन 800 ई.पू. में शुरू हुआ, परंतु वर्तमान रूप प्राप्त हुआ 1929 में ही. कहते हैं कि करीब 25 हजार लोग प्रतिदिन इसे देखने आते हैं. वैटिकन सिटी कौंप्लैक्स किसी राजमहल से कम नहीं है. इस की अलग से प्रशासन व्यवस्था, पुलिस व सुरक्षा गार्ड्स हैं. सिटी के अंदर रहने वाले सभी निवासियों को परिचयपत्र दिया जाता है ताकि कोई अनाधिकृत व्यक्ति यहां न रह सके. यहां देखने वाले स्थानों में वैटिकन म्यूजियम, सेंट पीटर्स और सिस्टाइन चैपल प्रसिद्ध हैं.

म्यूजियम में ईसाई धर्म के संतों व महापुरुषों के चित्र देखने को मिले. इस के टैपस्ट्री सैक्शन में कमाल की कारीगरी देखने को मिली. कमाल की बात तो यह थी कि ये चित्रण पेंटिंग के द्वारा न कर के बुनाई के माध्यम से किए गए हैं. सेंट पीटर्स बैसिलिका के अंदर लगभग सभी जगह पर छतों व दीवारों पर पेंटिंग हैं.

सिस्टाइन चैपल में माइकल एंजेलो की बनाई ‘पियेटा’ नामक मूर्ति देखने ही लायक है. सूली पर से उतारे घायल ईसा मसीह को मेरी अपने दोनों पैरों पर रख कर उन की ओर द्रवित हो कर देख रही हैं. ईसा मसीह के शरीर में लिपटे वस्त्र अस्तव्यस्त हो कर नीचे लटक रहे हैं. करुणामयी मेरी उन्हें असहाय हो कर देख रही हैं. कठोर पत्थर में इस प्रकार के भावों का संचार करना हर कलाकार के बस की बात नहीं.

कोलोसियम

वैटिकन सिटी के बाद बारी थी कोलोसियम की. यह वह प्रसिद्ध गोल इमारत है जिस में मरनेमारने वाले ग्लैडियेटर्स का खूनी खेल खेला जाता था. इस की विशालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस के अंदर 45 हजार दर्शक बैठ सकते थे. दर्शकों के बैठने के बाद शासनाध्यक्ष के इशारे पर मौत का खेल प्रारंभ होता था. भाला, तलवार व ढाल से सुसज्जित लड़ाकों की जोड़ी रिंग में प्रवेश करती थी. युद्ध में कोई भी किसी को मार सकता था. कभीकभी तो मनुष्यों को भूखे शेर से भी लड़वाया जाता था. लड़ने वाले ज्यादातर युद्ध कैदी या दास हुआ करते थे. इस बिल्डिंग का ऊपरी हिस्सा कहींकहीं ढह गया है, परंतु यह उस जमाने की निर्माण कला के बारे में बहुत कुछ कहता है.

ट्रेवी फाउंटैन

आखिर में हम विशाल ट्रेवी फाउंटैन आए. यह मानव रचित एक विशाल  झरना है. रोड के सामने, लंबी दाढ़ी वाले नेपच्यून की विशाल संगमरमर की मूर्ति है, जिस के दोनों ओर बलपूर्वक रोके जाते हुए चिंघाड़ते हुए 2 घोड़ों की मूर्तियां हैं. इसी बीच इन लोगों के पीछे से लहराते हुए पानी की धारा बहते हुए सामने आ कर गिरती है. ये तीनों मूर्तियां एक ऊंचे चबूतरे पर स्थापित हैं. इन लोगों के अगलबगल और पीछे से आने वाले पानी की धार 3 तरफ बने गड्ढों में गिरती है.

कहते हैं कि यदि कोई आदमी पीछे मुड़ कर इस में पैसा फेंके और वह पानी में जा गिरे, तो उस की मनोकामना पूरी होती है, और वह फिर इस स्थान पर आता है. मनोकामना पूरी करने वाली वस्तुएं हमारे यहां भी काफी हैं, पर यूरोप में भी ऐसा अंधविश्वास होगा, यह नहीं सोचा था.

इसी संदर्भ में याद आया लंदन का  झूला लंदनआई. जिस में हैं तो 32 केबिन, पर अंतिम केबिन की संख्या है 33. क्योंकि 13 नंबर गायब है. 12 के बाद 14 नंबर दिया गया है. अंधविश्वास का प्रभाव हर समाज में किसी न किसी रूप में व्याप्त है, चाहे वह कितना ही विकसित समाज या राष्ट्र क्यों न हो.

यूरोप के अन्य शहरों की तरह रोम में भी हम लोगों ने विभिन्न प्रकार के भारतीय व्यंजन परोसने वाले एक भारतीय होटल में भोजन किया. उस का नाम था ‘रिस्तेरांतो इंदियानो जयपुर’. बाहर से साधारण से दिखने वाले होटल में पूरी तरह भारतीय वातावरण था. रिसैप्शन के पूरे हौल में लटकते विभिन्न प्रकार के  झाड़फानूस व राजस्थानी पेंटिंग्स भारतीय वातावरण की सृष्टि में योगदान कर रहे थे. मजा आ गया. भारतमय हो गया था सबकुछ. लगा ही नहीं, भारत से इतने दूर रोम में हैं. भोजन भी उतना ही स्वादिष्ठ. लेख में उस होटल की चर्चा न करना, रोम व होटल दोनों के प्रति ही अन्याय होता.

थाईलैंड का सफर सुहाना

विदेश यात्रा के लिए जब हम ने थाईलैंड और सिंगापुर का चुनाव किया तो मन चिहुंक उठा और इस के लिए निश्चित तारीख को मैं और मेरी ननद का परिवार नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 पर पहुंचे. हवाई यात्रा के लिए 3 घंटे पहले हवाई अड्डे पर हाजिर होना पड़ता है. औपचारिकताएं पूरी करने में काफी वक्त लगता है. आखिर औपचारिकताएं समाप्त हुईं और हम विमान में अपनी सीट पर विराजमान हो गए. कुछ ही पल बाद जहाज ने उड़ान भरी.

हम सुबह थाईलैंड की राजधानी बैंकौक पहुंच गए. इस पर्यटन यात्रा में मेरे साथ मेरे पति व मेरी ननद का परिवार भी था. थाईलैंड हमारे देश से समय में डेढ़ घंटे आगे है. हमारा टूर एजेंट हमारी प्रतीक्षा में खड़ा था. हम सामान सहित बड़ी सी टैक्सी में बैठ गए. अब हम थाईलैंड के एक छोटे से शहर पटाया की तरफ जा रहे थे. लगभग सवा घंटे के सफर के बाद हम पूर्वारक्षित होटल ‘इबिस’ पहुंचे. वहां अपने कमरे में 2 घंटे आराम करने के बाद हमें नहानेधोने में 2 घंटे और लग गए. क्षुधा शांत करने के बाद मन हुआ कि चलो पटाया शहर घूमा जाए.

दर्शनीय स्थल

पटाया की टुकटुक : पटाया के बारे में बहुत सुन रखा था. आजकल लगभग हर बड़ी कंपनी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए अपने उपभोक्ताओं को ‘सेल्स प्रमोशन’ का ‘टैग’ लगा कर उन्हें थाईलैंड का निशुल्क टूर दे रही है. भारी तादाद में नौजवान, प्रौढ़ सभी यहां मस्ती मारने आते हैं. मु झे बहुत उत्सुकता थी यह जानने की कि आखिर ऐसा क्या खास है यहां जो सब यहां की यात्रा को लालायित रहते हैं.

हम होटल से बाहर आए. मालूम हुआ, यहां 3 लेन हैं. लेन 1 यानी बीच लेन, लेन 2 जहां हमारा होटल था और लेन 3 जहां अन्य दर्शनीय स्थल थे. हम ने लेन 2 से टुकटुक लिया और उस में बैठ गए. उसे ‘बीच लेन’ पर चलने को कहा. टुकटुक यानी ऐसा टैंपू जिस में ड्राइवर का बंद केबिन होता है और पीछे आमनेसामने 2 लंबी सीट होती हैं. उन सीटों पर 15-20 लोग एकसाथ बैठ सकते हैं. सड़क पर दुकानें सजी थीं.  स्थानीय लड़कियां छोटेछोटे परिधानों में सजीधजी घूम रही थीं. दूध सी काया, छोटे कद और दबी नाक वाली चिंकिया हुस्न की परियां मालूम हो रही थीं. 

कुछ देर बाद हमारा गंतव्य स्थल आ गया. हम टुकटुक से उतरे और किराया चुकाया. यहां की मुद्रा ‘भाट’ है जो रुपए के मुकाबले सस्ती है. अब हम जोमटिंग बीच पर पहुंचे. दिसंबर के अंतिम सप्ताह की भीड़ का दबाव. क्रिसमस और नववर्ष की छुट्टियां होने के कारण अंगरेज सैलानी अधिक संख्या में नजर आ रहे थे. वे समुद्र में गोते लगा कर मस्ती कर रहे थे. कुछ सैलानी कुरसियों पर अधलेटे धूप का मजा ले रहे थे. सीफूड यानी मछली,  झींगा आदि तलने की गंध हवा में फैली थी. ताजा कटे फल पैकिंग में बिक रहे थे और नारियल पानी की भी दुकानें सजी थीं. हम भी वहां बिछी आरामकुरसियों पर अधलेटी मुद्रा में पसर गए. मैं गहन दृष्टि से आसपास के माहौल का जायजा लेने लगी.

मेरी दृष्टि आगे की कतार में बैठी एक स्थानीय लड़की पर अटक गई. वह पीठ पर टैटू बनवा रही थी. इतने में एक अंगरेज कहीं से निकल कर आया और उस की कुरसी के साथ सट कर कुरसी लगाई और बतियाने लगा. हमें सम झ में कुछकुछ आ रहा था कि उस अंगरेज ने छुट्टियां व्यतीत करने के लिए लड़की की सेवाएं खरीदी थीं.

इधरउधर देखने पर उस जगह की हकीकत सामने आ रही थी. यहां लड़कियां ही सब काम करती नजर आ रही थीं. होटलों में, बार में, दुकानों पर, हर जगह. इन की पहचान ‘सेविका’ रूप में थी. स्त्री का चैरी रूप यहां प्रमुखता से देखने को मिला.

आगे चलतेचलते हमें भारतीय रेस्तरां दिखाई दिया और हम भूख मिटाने के लिए उस रेस्तरां में चले गए. फिर हम ने वहां से टुकटुक लिया और वापस होटल की ओर चल दिए.

रात का नजारा कुछ और था. चमकदार नियौन बोर्ड, सैलानियों के साथ खूबसूरत थाई लड़कियों का लिपटनाचिपटना, उन्मुक्त वातावरण. अच्छाखासा मेला सा लगा हुआ था. जगहजगह थाई मसाज के बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, ‘यहां का मसाज मशहूर है. हाथों का, पैरों का, जांघों का, बांहों का, पूरे बदन का मसाज. लड़कियों द्वारा मसाज सैलानियों के लिए खास आकर्षण है.’ वहां कुछ भारतीय भी घूम रहे थे. युवाओं की संख्या ज्यादा थी. होटल पहुंचते ही नींद ने आ घेरा.

वौकिंग स्ट्रीट : अगले दिन नाश्ता करने के बाद हम शहर की खूबसूरती को निहारने के लिए तैयार थे. पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि मध्य लेन से टुकटुक लेने के बजाय होटल के पिछवाड़े वाली गली से ‘बीच लेन’ पर पहुंचा जा सकता है. हम पैदल ही चल पड़े. 5-7 मिनट बाद हम ‘बीच लेन’ पर थे. यह ‘शौर्टकट’ हमें पसंद आया. ‘वौकिंग स्ट्रीट’ के बारे में बहुत सुना था. ‘स्ट्रिपटीज शो’ के लिए जानी जाती है यह जगह. बच्चों के साथ यहां घूमना मुनासिब नहीं था, सो हम ने उन्हें खिलापिला कर वापस होटल में छोड़ा और हम दोनों दंपती ‘वौकिंग स्ट्रीट’ के नजारे देखने गए. उस समय रात्रि के 10 बज रहे थे.

हम चारों ने उस तथाकथित परियों की नगरी में प्रवेश किया. एकदम जुदा नजारा. उन्मुक्त व्यवहार करती सैक्स वर्कर्स ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए जगहजगह खड़ी थीं. उन के अश्लील इशारों में खिंचे चले आए नौजवान, अधेड़ पर्यटक अलगअलग देशों से आए हुए थे. दूसरी ओर जवान लड़के सड़क पर शो कर रहे थे. पुरुषों के लिए ऐसी ऐशगाह और वह भी बिना पुलिसिए डर के शायद यहीं संभव थी.

मेरे दिलोदिमाग के  झरोखे खटखट खुल गए कि ओह, तो यही वह गली है जो अपनी मांसल अदाओं से मर्दों को बारबार दीवाना बनाती है. यहां का बुलावा आते ही मर्द यहां दौड़े चले आते हैं. सस्ती सेविकाएं, उन का उन्मुक्त व्यवहार, तो फिर उन के जादुई आकर्षण में भला कौन न बंध जाए. न्यूड शोज के बोर्ड जगहजगह चमक रहे थे. लड़कालड़कियों दोनों के अलगअलग शोज भी थे यानी स्त्रियों के मनोरंजन का भी ध्यान रखा जाता है. यहां ‘लेडी बौयज’ भी उपलब्ध थे. कई बार धोखे में ग्राहक लड़कियों की पोशाक पहने लड़कों को ले जाते और फिर सिर पीटते रह जाते. ऐसे कई केस सुनने में आए. इस तरह लुटेपिटे लोग कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते.

थाईलैंड जो कभी निर्धन देशों की कतार में शामिल था, आज काफी संपन्न देशों में गिना जाता है. पटाया के विकास के लिए सरकार ने 16 से 25 वर्ष की लड़कियों को देहव्यापार के लिए लाइसैंस देना शुरू किया, ऐसा सुना गया है. यहां देहव्यापार अवैध नहीं माना जाता. लाइसैंस लो और देह से धन कमाओ. यहां स्त्रियां बहुत काम करती हैं जबकि पुरुष नशा करने के अलावा कोई काम नहीं करते. दलाली उन का मुख्य काम है.

एक बात मु झे और मालूम हुई कि यहां स्कूलों की संख्या बहुत कम है. मसाज करने की ट्रेनिंग ज्यादातर चलन में है जो आजीविका कमाने का अच्छा साधन है. लड़कियों को अच्छी सेविका बनने का प्रशिक्षण दिया जाता है. मसाज कर के, साथ घूमफिर कर, गाइड बन कर, दुकान चला कर या सैक्स वर्कर बन कर लड़कियां अपनी आजीविका कमाती हैं. पर्यटन यहां का मुख्य पेशा है जिस पर जाने कितने परिवार चलते हैं. भारत का 1 रुपया, डेढ़ भाट के बराबर है.

अगले दिन यानी नववर्ष की पूर्व संध्या पर हम दूसरे समुद्री तट पर जाने को तैयार थे. हमारी गाइड जो लड़की थी, हमें कश्ती में ले गई. सब से पहले पैराग्लाइडिंग का लुत्फ उठाने की बारी थी. पंक्तियों में खड़े हो कर लाइफ जैकेट और हैल्मेट लिया.

मैं नील गगन में तैर रही थी. हवा का दबाव बहुत था, इतना अधिक कि मु झे नीचे की ओर खिंचाव महसूस हो रहा था. आहा, विस्मयकारी, ऊपर नीला आसमान, नीचे नीला समंदर और बीचोंबीच तैरती मैं. अद्भुत, कुछ क्षणों के बाद मैं धीरेधीरे विशाल छतरी को ओढ़े नीचे उतर आई और मेरे पांवों को समंदर ने धोया. फिर मैं ने उस खारे पानी की चादर को कमर तक खींच लिया. मछली की तरह मैं थिरक गई. इस रोमांच से बाहर निकल कर मैं ने जाना कि जीवन में इस की भी बहुत जरूरत होती है. अब अंडरवाटर करने की बारी थी. अंडरवाटर यानी समुद्र के पानी में औक्सीजन मास्क लगा कर आधे घंटे तक रहना. मु झे थोड़ा डर लगा. मेरे जीवन का यह पहला अवसर था, इसलिए  थोड़ा सा नर्वस थी. मैं जोखिम उठाने को तैयार हो गई क्योंकि गाइड साथ था.

लाइफ जैकेट और औक्सीजन मास्क पहन कर पीठ पर सिलैंडर बांध लिया. रस्सीयुक्त सीढ़ी पर धीरेधीरे पैर रखती मैं समंदर में उतर गई. आसपास तैरती छोटीछोटी मछलियां मु झे छू कर दौड़ जातीं मानो मेरे साथ कबड्डी खेल रही हों. अभी मुश्किल से 5 ही मिनट हुए थे कि मेरी सांस उखड़ने लगी, मेरे कानों में भयंकर पीड़ा उठी. मु झे यों लगा मानो देह का सारा रक्त उमड़ कर मेरे कानों में समा गया हो. मैं कानदर्द से असहज हो उठी. गाइड, जो मेरे साथ ही उतरा था, ने मेरी हालत देख अपनी उंगली से ओके का सिग्नल दिखाया जिसे देख प्रत्युत्तर में मैं ने सिग्नल नहीं दिया. उस ने तुरंत मेरा हाथ थामा और मु झे सीढ़ी की तरफ ले गया. मु झे ऊपर की ओर धकेलने लगा. मैं एकएक सीढ़ी चढ़ ऊपर आ गई. बाहर निकल कर कुरसी पर बैठ गई और हांफने लगी. काफी देर बाद ही मैं सहज हो पाई. इतने में मेरा छोटा बेटा भी बाहर आ गया. बड़ा बेटा अभी अंदर ही था. वह आधे घंटे तक पूरा मजा लेने के बाद बाहर निकला. मु झे अफसोस हुआ कि मैं इस रोमांचक ख्ेल का आनंद नहीं उठा पाई.

वहां समंदर के भीतर वीडियोग्राफी की जा रही थी. बाहर आने पर लोग अपनी सीडी खरीद रहे थे. फोटोग्राफी कर के धन कमाने का बढि़या जरिया मैं ने वहां देखा. वहां से हम बाहर निकल आए और नौका विहार का जम कर लुत्फ उठाया. अब वापस होटल लौटने की तैयारी थी.  रात्रिकालीन भोजन के बाद बच्चों को होटल में ही छोड़ कर हम चारों बाहर निकल आए. उस समय रात के 11 बज कर 45 मिनट हो रहे थे. नववर्ष के आगमन में अभी 15 मिनट बाकी थे. रहगुजर से हम फिर ‘बीच लेन’ की ओर चल पड़े. हसीन रात में विदेशी सरजमीं पर चांद की किरणों तले चहलकदमी पुरसुकून दे रही थी. रहरह कर आसमान में आतिशबाजी हो रही थी. चारों तरफ उजाला ही उजाला था. 12 बज चुके थे. वहां मौजूद लोगों के मुख से ‘हैप्पी न्यू ईयर’ की बधाइयां फूटने लगीं. हम ने भी एकदूसरे को नए साल की बधाई दी.

बैंकौक में बुद्ध : 1 जनवरी, नए साल का पहला दिन. हमें थाईलैंड की राजधानी बैंकौक के लिए रवाना होना था. बैंकौक में प्रवेश करते ही नजरें सड़कों पर फिसलीं. सड़कें खुली, साफसुथरी और चमकदार थीं. हमारी टैक्सी शानदार फाइवस्टार होटल ‘रौयल बैंजा’ के आगे रुकी. यही हमारा अस्थायी निवास था. हम ने प्रवेश की औपचारिकता पूरी की. 18वीं मंजिल पर स्थित 2 कमरे हमारे लिए बुक थे. अब आराम करने का समय था क्योंकि अगले दिन सुबह हमें सिटी टूर के लिए निकलना था. 2 जनवरी को हम नाश्ते के बाद सिटी टूर के लिए तैयार थे. मिनी बस में कुछ परिवारों के साथ हम ने घूमने की शुरुआत की. महिला गाइड हमें बुद्ध के मंदिर ले गई. उस के बाद अब हम प्रस्थान के लिए तैयार थे. बस में बैठ कर रास्ते को निहारते गए.

वहां इमारतों पर राजा के बड़ेबड़े फोटोग्राफ लगे थे. राजा भिन्नभिन्न पोशाकों में सुसज्जित था. राजा का महल दिखाते हुए गाइड ने बताया कि यहां प्रजातंत्र है और जनता प्रधानमंत्री को बहुत सम्मान देती है. राजा के भित्तिचित्र वास्तव में शानदार थे.

उस के बाद हमारी बस रत्न तराशने वाली फैक्टरी के बाहर रुक गई. उस कारखाने में सैकड़ों कारीगर भिन्नभिन्न मशीनों पर  झुके काम कर रहे थे. इस कारखाने के मालिक टैक्सी चालकों को पर्यटकों को यहां लाने के एवज में निशुल्क पैट्रोल कूपन देते हैं. यही वजह है कि लगभग हर टैक्सी यहां रुकती है. अंदर रत्नजडि़त बेश- कीमती आभूषण शोकेस में सजे प्रशंसकों को अपने मोहपाश में बांध रहे थे. हम भी उन की चकाचौंध में मंत्रमुग्ध हुए जा रहे थे लेकिन उन्हें खरीदने का साहस नहीं था. कुछ रईस उन्हें खरीद रहे थे पर हम उन की कीमत देख ‘आह’ भर कर ही रह गए.

लगभग पौने घंटे बाद हम बाहर आ गए. हम ने गाइड से आग्रह किया कि वह हमें इंदिरा मार्केट में उतार दे. इंदिरा मार्केट भारतीयों की पसंदीदा मार्केट है. चारमंजिला छोटा सा स्थानीय बाजार है. हम ने सभी मंजिलें देखीं. वहां रखी वस्तुएं अधिक महंगी नहीं थीं, मोलभाव खूब चल रहा था. हम ने एक अटैची, 4 डुप्लीकेट मोबाइल और कुछ सोविनियर खरीदे. वहां हिंदी जानने वाले दुकानदार भी थे.  सामान पर उड़ती निगाह डाल कर हम गलियों से गुजरते हुए बाहर निकल आए. हम ने टैक्सी ली और रात लगभग 8 बजे हम होटल पहुंचे.

कुछ देर आराम करने के बाद हम नीचे रिसैप्शन पर पहुंचे. भारतीय रेस्तरां के बारे में जानकारी ली. मालूम हुआ कि थोड़ी ही दूर पर कई भारतीय रेस्तरां हैं. हम होटल से बाहर निकले. हमारी खुशकिस्मती कि कुछ ही दूरी पर एक भारतीय रेस्तरां था. हम फौरन उस में प्रविष्ट हुए. हम ने छक कर भोजन किया और तृप्त हो कर बाहर निकल आए.

मसाज का मजा : रात के साढ़े 11 बज रहे थे. बच्चों को होटल में छोड़ हम एक मसाज पार्लर में गए. थाईलैंड 2 बातों के लिए जाना जाता है, हाथी और मसाज. यहां ऐलीफैंट शो अकसर आयोजित किए जाते हैं. मसाज पार्लरों में लगभग हर दूसरा सैलानी स्पा, मसाज आदि का लुत्फ अवश्य उठाता है. उस मसाज पार्लर के 2 हिस्से थे, एक पुरुषों के लिए और दूसरा स्त्रियों के लिए. पैरों की, बाजुओं की या पूरे शरीर की यानी हाफ बौडी मसाज या फुल बौडी मसाज, जैसी चाहे कराइए. थाई लड़कियां अपने हुनर के साथ मौजूद थीं. हम ने हाफ बौडी मसाज कराया. तनमन की थकान पल में छूमंतर हो गई. मसाज का लुत्फ लेने के बाद हमारे कदम अपने अस्थायी रैनबसेरे की ओर बढ़े चले जा रहे थे.

अगले दिन हम सिंगापुर की फ्लाइट पकड़ने एअरपोर्ट की ओर प्रस्थान कर रहे थे.

अमेरिका नहीं देखा तो क्या देखा

निसंदेह, अमेरिका दुनिया का सब से शक्तिशाली राष्ट्र है. सात समंदर पार हो कर  हम सब को चुंबक की तरह अपनी ओर खींचता है. औरों की बात क्या करें, हम भी अमेरिका घूमने के सपने देखतेदेखते पर्यटक के रूप में वहां पहुंच ही गए. कहने में, ‘पहुंच गए’ आसान भले लगता हो परंतु वास्तविकता यह है कि अमेरिका का वीजा लेना अपनेआप में एक टेढ़ी खीर है. औसतन हर 5 भारतीय आवेदकों में से 2 को अमेरिका का वीजा प्रदान करने से इनकार कर दिया जाता है. मु झे और मेरी पत्नी को भी दूसरे प्रयास में ही अमेरिका का वीजा मिल पाया.

हमारा अमेरिका दौरा न्यूयार्क शहर की गगनचुंबी इमारतों के दर्शन से शुरू हुआ. कुछ दशक पूर्व तक विश्व की सब से ऊंची इमारत मानी जाने वाली ‘अंपायर स्टेट बिल्डिंग’ भी हम ने देखी. 1931 में निर्मित यह दुनिया की पहली इमारत थी जिस में 100 से अधिक मंजिलें हैं. 9/11 के आतंकी हमले में ध्वस्त ‘वर्ल्ड ट्रेड सैंटर’ इमारत का वह बहुचर्चित स्थान ‘ग्राउंड जीरो’ भी हम ने देखा.

न्यूयार्क शहर की सब से विख्यात कृति है ‘स्टैच्यू औफ लिबर्टी’, जोकि फ्रांस द्वारा अमेरिका को भेंट की गई एक ज्योति थामे नारी की विशालकाय मूर्ति है. यह अटलांटिक महासागर में न्यूयार्क से सटे एलिस नामक द्वीप पर स्थित है और अमेरिकी पर्यटन का एक प्रतीक चिह्न सा बन गई है. 46 मीटर ऊंची तांबे की यह मूर्ति एक पेडेस्टर पर रखी है और जमीन से इस के सब से ऊंचे छोर, जोकि नारी के हाथ में थमी ज्योति का छोेर है, की ऊंचाई 93 मीटर है. इस तक पहुंचने के लिए आप को फेरी से एलिस द्वीप जाना होता है जोकि 10-15 मिनट का सफर है.

नीले पानी की चादर के दूसरे छोर पर मूर्ति का परिदृश्य समुद्र से फेरी पर बैठे पर्यटकों को खूब भाता है. घूमने के लिहाज से न्यूयार्क का एक और अहम स्थल है मैनहटन क्षेत्र में स्थित ‘सिटी स्क्वायर’. यहां सूर्यास्त उपरांत लोगों का जमावड़ा लग जाता है और बड़ीबड़ी स्क्रीन पर विविध डिस्प्ले व लाइव शो के जरिए जनसमूह का मनोरंजन किया जाता है.

न्यूयार्क शहर में संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय भी है. इस शहर में हमें कहीं भी दोपहिया वाहन देखने को नहीं मिले और गाय, आवारा कुत्ते, पशु आदि भी विचरण करते नहीं दिखे. अब बात करें यूएसए स्थित एक रमणीय शहर यानी उस की राजधानी वाशिंगटन की. वाशिंगटन शहर का नाम अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जौर्ज वाश्ंिगटन पर रखा गया. वे एक अत्यंत लोकप्रिय राष्ट्रपति थे. आदरस्वरूप वाशिंगटन में उन के स्मारक से ऊंची अन्य कोई बिल्डिंग निर्मित नहीं की जाती. इस कारण से वाशिंगटन एक खुलाखुला सा खूबसूरत शहर बन गया है. यहां बागबगीचे, हरियाली, चौड़ी सड़कें, फौआरे वाले चौराहे व सुंदर सरकारी इमारतें स्थित हैं.

वाश्ंिगटन शहर के कुल क्षेत्रफल का 19.4 प्रतिशत क्षेत्र पार्कलैंड है. यहां की संसद कैपिटल हिल है जोकि गोल गुंबज वाला एक विशाल दर्शनीय भवन है. वर्ल्ड बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ का मुख्यालय भी वाशिंगटन में स्थित है. परंतु जो सरकारी भवन सब से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करता है वह है वाइट हाउस, जोकि अमेरिका के राष्ट्रपति का निवास है. दुनिया के सब से शक्तिशाली माने जाने वाले व्यक्ति का निवास. सफेद रंग की इस इमारत के दर्शन सुरक्षा कारणों से पर्यटक उस की फैंसिंग से  झांक कर ही कर पाते हैं.

वाशिंगटन स्थित अब्राहम लिंकन स्मारक भी पर्यटकों को बहुत सुहाता है. शायद इसलिए कि वहां जिस हस्ती की सजीव सी मूर्ति स्थित है वह प्रजातंत्र के मूल्यों को विश्व में स्थापित करने वाला व श्वेतश्याम वर्ण रूपी नस्लवाद को खत्म करने में सक्रिय रहा एक लोकनायक था. एक अन्य लोकप्रिय पड़ाव अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति जैफरसन का स्मारक है, जोकि एक छोटे तालाब के बगल में बना है. यह रूसवेल्ट स्मारक भी दर्शनीय है. हम ने तुलनात्मक अध्ययन से पाया कि न्यूयार्क व वाशिंगटन शहरों के स्वरूप में वही अंतर है जोकि मुंबई व दिल्ली के मध्य है.

अमेरिका में हमारा अगला पड़ाव था बुफैलो शहर, जहां विश्वप्रसिद्ध नियागरा जलप्रपात है. वाशिंगटन से बुफैलो के बीच का सफर बेहद सुंदर नजारों से भरा रहा. चारों ओर हरियाली दिखती है. कुछकुछ अंतराल में तालाब व नदियां दिखती हैं. हम वहां गरमी में गए थे, परंतु नदियों में पानी लबालब भरा हुआ मिला. कनाडा की सीमा से लगा नियागरा जलप्रपात 3  झरनों का समूह है और एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला प्राकृतिक नजारा भी. एयरी ताल का पानी  झरने के रूप में 59 मीटर नीचे गिर कर औनटोरियो ताल में जा मिलता है और नियागरा जलप्रपात का स्वरूप लेता है. ‘मेड औफ द मिस्ट’ नाम की नौकाएं पर्यटकों को इन  झरनों के अत्यंत नजदीक भी ले जाती हैं. गीले होने से बचने के लिए नौकाओं में बरसातियां उपलब्ध कराई जाती हैं. ऊंचाई से गिरता हुआ पानी दूध सा गोरापन लिए जलकणों का एक धुंध बना देता है जिस की छटा देखने लायक होती है.

नियागरा के इस अलौकिक दृश्य को देख कर पर्यटक को अनायास ही तृप्ति मिलती है कि हजारों मील का सफर तय कर के और तमाम पैसा खर्च कर नियागरा जलप्रपात आने का उस का निर्णय उचित ही रहा. उस को यह सुखद एहसास भी होता है कि वह वसुधा के उस प्रख्यात व अद्वितीय भौगोलिक लोकेशन के समीप है जहां 5 बड़े ताल मिशिगन, सुपीरियर, हुरौन, एयरी और औनटोरियो स्थित हैं.

इन में से पहले 3 ताल हमारे देश के कई छोटे राज्य – मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, नागालैंड व गोआ आदि से भी बड़े हैं. ये तालाब अमेरिका और कनाडा की सीमा पर स्थित हैं. इन में से एक ताल लेक सुपीरियर 406 मीटर गहरा है और यह दुनिया में मीठे पानी की सब से विशाल प्राकृतिक संरचना है. हालांकि विश्व में सब से अधिक पानी डेढ़ किलोमीटर से ज्यादा गहरी, समुद्र सी दिखती, साइबेरिया स्थित लेक बाईकल में है.

हमें यह जान कर हैरानी हुई कि अमेरिका के अलास्का राज्य में 3 लाख से अधिक तालाब हैं और सरहद पार कनाडा में तो इतने ताल हैं कि उन की गणना आज तक नहीं हो पाई है. खैर, यह तो रही यूएसए के पूर्वी हिस्से की कहानी. इस हिस्से में एटलांटा भी स्थित है जबकि दक्षिणपूर्वी छोर पर मियामी. मियामी फ्लोरिडा राज्य में है और उस का बीच बहुत ही लोकप्रिय है. मियामी कर्क रेखा के समीप स्थित होने के कारण तुलनात्मक दृष्टि से, बाकी राज्यों से अधिक गरम है. इसलिए समुद्र तट पर धूप सेंकने (सन बाथिंग) हेतु सैकड़ों अमेरिकी व पर्यटक मियामी बीच पर रोज घंटों व्यतीत करते हैं.

अमेरिका के पश्चिमी तट पर लास एंजलिस, सैन फ्रांसिस्को व थोड़े अंदर की तरफ लास वेगास जैसे प्रसिद्ध शहर बसे हैं. लास वेगास यानी कैसिनो, बार, नृत्य और रंगीन शाम बिताने के लिए एक चकाचौंध से भरी दुनिया.

नेवाड़ा के मरुस्थल स्थित यह शहर गत शताब्दी में पाप नगरी (सिन सिटी) के नाम से भी जाना जाता था और कई दशकों से यह नौजवानों व पर्यटकों के लिए हौट स्पौट बन गया है. लास वेगास में जुआ खेलने की प्रथा शहर की आबोहवा में घुली है. इसलिए यहां होटल में भी कैसिनो जरूर मिलेंगे. संगीत, नृत्य, मदिरा, शबाब इस शहर की संस्कृति का अंश हैं. यहां के होटल ग्राहकों को लुभाने के लिए अलगअलग तरीके अपनाते हैं. एक होटल तो वर्ष 2010 तक अपने रिसैप्शन के पास जिंदा शेर (पिंजरे में) रखता था. यहां किसी होटल में मिस्र के पिरामिड और स्फिन्कस की नकल, किसी में स्टैच्यू औफ लिबर्टी की नकल व किसी में एफिल टावर की नकल बहुत ही आकर्षक तरीके से की गई है.

यूएस क्या विश्वभर के मनोरंजन की राजधानी लास वेगास ही है. इस का ग्लैमर अद्वितीय है. लास वेगास के नजदीक 2 बहुत मशहूर स्थल हैं. एक, प्राकृतिक दूसरा मानव निर्मित. प्राकृतिक है ग्रैंड कैन्यन जोकि वसुधा पर एक अद्भुत संरचना है और वास्तव में एक बेहद लंबी, विशाल व गहरी खाई है. दूसरा, स्थल मानव निर्मित बांध है जिसे हूवर डैम के नाम से जाना जाता है.

गैंड कैन्यन लगभग 5 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर फैली एक खोह है. यह 1500 मीटर से 2100 मीटर तक गहरी है. यह प्रकृति की एक अद्वितीय कृति है और विश्व के आश्चर्यों में गिनी जाती है. लाखों पर्यटक इस को देखने के लिए लास वेगास आते हैं. हूवर डैम, कोलारेडो नदी पर बना है और इस से न केवल नदी के मनमाने तरीके से बहने की धुन पर लगाम कसी गई बल्कि इस से पनबिजली उत्पादन, बेहतर सिंचाई व बाढ़ पर अंकुश लगाने जैसे असीमित फायदे भी हुए. यह बांध यूएसए के एक पूर्व वाणिज्य सचिव व बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति बने हर्बट हूवर की लगन व सहयोग से बनना संभव हो पाया, इसलिए इस का नाम उन के नाम पर ही रखा गया.

लास एंजलिस शहर, हौलीवुड फिल्म उद्योग का गढ़ है. कई मशहूर सितारे यहां बेवरली हिल्स व अन्य कालोनियों में निवास करते हैं. यहां का सांटा मानिका बीच सैलानियों में लोकप्रिय है. लास एंजलिस में लकड़ी के बिजली के खंभे हैं जोकि कई दशकों से शहर की विद्युत व्यवस्था का अंग हैं. ये कैलीफोर्निया के जंगल की ‘रैड वुड’ से बने हैं, जोकि बहुत मजबूत व दीर्घायु की लकड़ी होती है.

लास एंजलिस में बारिश कम होती है, केवल जाड़ों में थोड़ी सी. हर घर में अग्नि निर्गम (फायर एक्जिट) की लोहे की सीढि़यां बनी हुई हैं. यहां जाड़ों में सीमित जाड़ा पड़ता है व गरमियों में मौसम सुहाना रहता है. लास एंजलिस में पाम के पेड़ हर तरफ दिखते हैं. यहां पीने के पानी के लिए समीप की पहाडि़यों में ‘पूल’ हैं जहां से पाइपलाइन के जरिए पानी शहर में लाया जाता है. लास एंजलिस के नजदीक एस्टेशिया नामक एक उपनगर है जहां भारतीय मूल, एशिया महाद्वीप व अन्य देशों के लोगों की काफी आबादी निवास करती है.

लास एंजलिस जाएं तो ‘यूनिवर्सल स्टूडियो’ अवश्य जाएं. इस स्टूडियो में फिल्म की आवश्यकतानुसार विभिन्न सैट बने हैं और एक बच्चों की ट्रेन के जरिए स्टूडियो में घुमाते हुए आप को विभिन्न दृश्य जैसे बाढ़, आग, कारों के स्टंट सीन आदि कैसे फिल्माए जाते हैं, दिखाया जाता है. भारत में हैदराबाद शहर स्थित रामोजी फिल्म सिटी इसी का एक लघु रूप है. लास एंजलिस के तमाम स्टूडियो में से आम दर्शक को प्रवेश केवल यूनिवर्सल स्टूडियो में ही मिलता है.

अमेरिका के पश्चिम तट स्थित सैन फ्रांसिस्को शहर अमेरिका का सब से खूबसूरत शहर है. बंदरगाहों में सैन फ्रांसिस्को बंदरगाह विश्व में सब से बड़ा है. पिछले 25 वर्षों से सैन फ्रांसिस्को शहर विश्वभर में पर्यटकों का सब से लोकप्रिय शहर रहा है. इस के बाद दूसरे स्थान पर फ्रांस  का पेरिस शहर आता है. सैन फ्रांसिस्को में सबकुछ है जैसे ऊंचे पहाड़, समुद्र, आकर्षक बागबगीचे, शहर विचरण के लिए बिजली चालित ट्राम कार (जिन्हें केबिल कार कहा जाता है). यहां ‘ट्विन पीक्स’ नाम का एक पहाड़ है जहां से एक तरफ नीला समुद्र दिखता है तो दूसरी ओर पूरा शहर. बीचबीच में जब समुद्र से धुंध उठ कर शहर की तरफ बढ़ती दिखती है तो एक मनोरम दृश्य बन जाता है. बादल के टुकड़े भी इस पहाड़ से उड़उड़ कर शहर की तरफ जाते महसूस होते हैं. इस शहर की आभा ही निराली है यहां गरमियों में भी हलकी सी ठंडक का आभास होता है. शहर में उतारचढ़ाव बहुत हैं जोकि यहां की गलियों की ढाल और इमारतों की कतारों में अत्यंत लुभावने लगते हैं. इस शहर का मुख्य आकर्षण है ‘गोल्डन गेट ब्रिज’. इस के 260 मीटर टावर दुनिया के सब से ऊंचे ‘ब्रिज टावर’ हैं. यह पुल जब निर्मित हुआ था तब निर्माण की उच्च तकनीक की एक मिसाल बन गया था. सैन फ्रांसिस्को का एक और आकर्षण समुद्री गंतव्य है, ‘फिशरमैन वार्फ’, जहां समय कैसे कट जाएगा आप को पता ही नहीं चलेगा. ‘सी फूड’ यानी समुद्री खाने के लिए यह वार्फ विश्वविख्यात है. इस क्षेत्र में खरीदारी का शौक पूरा करने के लिए कई अच्छी दुकानें हैं.

नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर पूर्वोत्तर राज्य

पूर्वोत्तर राज्यों में कुदरती खूबसूरती सौगात बन कर बरसती है. यहां आ कर एक नए भारत के दर्शन होते हैं. आदिवासी जीवन, नृत्यसंगीत, लोककलाएं व परंपराओं से रूबरू होने के साथसाथ प्राकृतिक सुंदरता और सरल जीवनशैली भी यहां के खास आकर्षण हैं.

पूर्वोत्तर राज्यों की  खूबसूरती का जवाब नहीं. यहां के घने जंगल, हरेभरे मैदान, पर्वत शृंखलाएं सैलानियों को बहुत लुभाते हैं. सरल स्वभाव के पूर्वोत्तरवासी अपनी परंपराएं और संस्कृति आज भी कायम रखे हुए है. यहां आ कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं. यहां के हर राज्य का अपना नृत्य व अपना संगीत है.

गुवाहाटी

गुवाहाटी असम का प्रमुख व्यापार केंद्र है. गुवाहाटी उत्तरपूर्व सीमांत रेलवे का मुख्यालय है. सड़क मार्ग से भी यह आसपास के राज्यों के अनेक शहरों शिलौंग, तेजपुर, सिलचर, अगरतला, डिब्रूगढ़, इंफाल आदि से जुड़ा हुआ है. यही कारण है यह पूर्वोत्तर का गेटवे कहलाता है.

असम

यहां का सब से बड़ा आकर्षण कांजीरंगा नैशनल पार्क है. गैंडे, बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, वनविलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी इस नैशनल पार्क के आकर्षण हैं. बल्कि बर्ड वाचर्स के लिए तो कांजीरंगा बर्ड्स पैराडाइज है. पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा एक खास किस्म की घास, जो हाथी घास कहलाती है, भी देखने को मिलती है. इस घास की खासीयत यह है कि इस की ऊंचाई आम पेड़ जितनी है. यहां की घास इतनी लंबी है कि इन के बीच हाथी भी छिप जाएं. इसी कारण यह घास हाथी घास कहलाती है. कांजीरंगा ऐलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. यहां हर साल फरवरी में हाथी महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस महोत्सव का मकसद सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले एशियाई हाथियों का संरक्षण और उन्हें सुरक्षा प्रदान करना भी है.

कांजीरंगा में हाथी सफारी का मजा बागुड़ी, मिहीमुखी में लिया जा सकता है. हाथी की सवारी के लिए सब से जरूरी हिदायत यह दी जाती है कि पैर पूरी तरह से ढके होने चाहिए वरना यहां पाए जाने वाली हाथी घास से दिक्कत पेश आ सकती है. कांजीरंगा जाने का बेहतर समय नवंबर से ले कर अप्रैल तक है. यहां खुली जीप में या हाथी की सवारी कर पहुंचा जा सकता है. कांजीरंगा के पास ही नामेरी नैशनल पार्क है. यह रंगबिरंगी चिडि़यों और ईकोफिश्ंिग के लिए जाना जाता है. नामेरी पार्क हिमालयन पार्क के नाम से भी जाना जाता है.

यहां से 40 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐतिहासिक खंडहर है. यह देखने में बड़ा अद्भुत है, लेकिन विडंबना यह है कि इस खंडहर के बारे में अभी तक ज्यादा पता नहीं चल पाया है. गुवाहाटी से 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. असम के चाय और तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर जिला प्रसिद्ध है. यहां एक  झील है. इसी  झील के चारों ओर बसा है. असम के अन्य दर्शनीय स्थलों में बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बुरफुकना पार्क साइंस म्यूजियम और मानस नैशनल पार्क शामिल हैं.

भारत में सब से अधिक वर्षा के लिए जाना जाने वाला चेरापूंजी भी असम में ही है. यह बंगलादेश की सीमा पर है. पर्यटन के लिए सब से अच्छा समय अक्तूबर से मई तक है.

क्या खरीदें

खरीदारी के लिए यहां बांस के बने शोपीस से ले कर बहुत सारा सजावटी सामान है. इस के अलावा महिलाओं के पहनने के लिए मेखला है. यह थ्री पीस ड्रैस है. चोली और लुंगीनुमा मेखला असम का पारंपरिक पहनावा है. इस के साथ दुपट्टेनुमा एक आंचल, साड़ी के आंचल की तरह ओढ़ा जाता है.

  -साधना

ईटानगर

असम, मेघालय के रास्ते अरुणाचल की राजधानी ईटानगर पहुंचा जा सकता है. ईटानगर पहुंचने का दूसरा रास्ता है मालुकपोंग, जो असम के करीब है. यानी असम की यात्रा यहां पूरी हो सकती है, इस के आगे का रास्ता ईटानगर को जाता है.

ईटानगर के आकर्षणों में ईंटों का बना अरुणाचल फोर्ट है. इस के अलावा एक और आकर्षण है और वह है हिमालय के नीचे से हो कर बहती एक नदी जिसे स्थानीय आबादी गेकर सिन्यी के नाम से पुकारती है. जवाहर लाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर, एंपोरियम ट्रेड सैंटर, चिडि़याघर और पुस्तकालय भी हैं.

टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है जो खूबसूरत और्किड के फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सेंटर है, जो टिपी आर्किडोरियम के नाम से जाना जाता है. यहां 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड के फूलों के पौधे देखने को मिल जाते हैं.

बोमडिला की ऊंचाई से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां, विशेष रूप से गोरिचन और कांगटो की चोटियां खूबसूरत एहसास दिलाती हैं. यहां से 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. पहाड़ी नदी माकेंग में पर्यटक और एडवैंचर टूरिज्म के शौकीनों के लिए यहां वाइट वाटर राफ्ंिटग का मजा कुछ और ही है. यहां नदी में फिश्ंिग का भी शौक पर्यटक पूरा करते हैं.

अरुणाचल के हरेक टूरिस्ट स्पौट के लिए बसें, टैक्सी, जीप और किराए पर हर तरह की कार मिल जाती हैं. ईटानगर अक्तूबर से ले कर मई के बीच कभी भी जाया जा सकता है. यहां सर्दी और गरमी दोनों ही मौसम में पर्यटन का अलग मजा है.

अगरतला

पूर्वोत्तर भारत में त्रिपुरा वह राज्य है जो राजेरजवाड़ों की धरती कहलाती है. दुनियाभर में हर जगह लोग प्रदूषण की मार  झेल रहे हैं जबकि त्रिपुरा को प्रदूषणविहीन राज्य माना जाता है. इस राज्य का बोलबाला यहां के खुशगवार और अनुकूल पर्यावरण के लिए भी है. त्रिपुरा पर्यटन के कई सारे आयाम हैं. सिपाहीजला, तृष्णा, गोमती, रोवा अभयारण्य और जामपुरी हिल जैसे यहां प्राकृतिक पर्यटन हैं. वहीं पुरातात्विक पर्यटन के लिए उनाकोटी, पीलक, देवतैमुरा (छवि मुरा), बौक्सनगर भुवनेश्वरी मंदिर आदि हैं. अगर वाटर टूरिज्म की बात की जाए तो रुद्रसार नीलमहल, अमरपुर डुमबूर, विशालगढ़ कमला सागर मौजूद हैं.

त्रिपुरा में ईको टूरिज्म के लिए कई ईको पार्क हैं. तेपानिया, कालापानिया, बारंपुरा, खुमलांग, जामपुरी आदि ईको पार्क हैं. पर्यटकों के लिए त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में सब से महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल जो है वह उज्जयंत पैलेस है. यह राजमहल एक वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. 3 गुंबज वाले इस दोमंजिले महल की ऊंचाई 86 फुट है. बेशकीमती लकड़ी की नक्काशीदार भीतरी छत व इस की दीवारें देखने लायक हैं. महल के बाहर मुगलकालीन शैली का बगीचा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.

पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थलों में अगरतल्ला से 55 किलोमीटर की दूरी पर है रुद्धसागर नामक एक  झील. इस  झील के किनारे बसा है नीरमहल. इस महल का स्थापत्य मुगलकालीन है. ठंड के मौसम में यहां यायावर पक्षियों का जमघट लग जाता है. अगरतला से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनकोटि है. यह जगह चट्टानों पर खुदाई कर के बनाई गई कलाकृतियों के लिए विख्यात है. पहाड़ों की ढलान पर यहां 7वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान चट्टानों को काट कर, छील कर और खुदाई कर अनुपम कलाकृतियां बनाई गई हैं. ये कलाकृतियां विश्व- विख्यात हैं.

यहां 19 से भी अधिक आदिवासी जनजातियों का वास है. इसीलिए त्रिपुरा को आदिवासी समुदायों की धरती भी माना जाता है. हालांकि मौजूदा समय में आदिवासी और गैर आदिवासी समुदाय यहां मिलजुल कर रहते हैं और एकदूसरे के पर्वत्योहार भी मनाते हैं.

कैसे पहुंचें

हवाई रास्ते से अगरतला देशभर से जुड़ा हुआ है. ज्यादातर हवाई जहाज गुवाहाटी हो कर अगरतला पहुंचते हैं. ट्रेन के रास्ते गुवाहाटी से होते हुए अगरतला तक पहुंचा जा सकता है. सड़क के रास्ते कोलकाता से अगरतला की दूरी 1,645 किलोमीटर, गुवाहाटी से 587, शिलौंग से 487 और सिलचर से 250 किलोमीटर है. सड़क के रास्ते जाने के लिए लक्जरी कोच, निजी व सरकारी यातायात के साधन उपलब्ध हैं. पासपोर्ट और वीजा साथ ले कर चलें तो त्रिपुरा के रास्ते बंगलादेश भी घूमा जा सकता है.

सिक्किम

रेल मार्ग या सड़क मार्ग से सिक्किम जाया जा सकता है. रेलयात्री जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कलिंपोंग होते हुए जाते हैं, जबकि सड़क मार्ग तिस्ता नदी के किनारेकिनारे चलता है. तिस्ता सिक्किम की मुख्य नदी है. जलपाईगुड़ी से एक टैक्सी ले कर हम सिक्किम की राजधानी गंगटोक के लिए चल पड़े. तिस्ता की तरफ निगाह पड़ती तो उस का साफ, स्वच्छ सतत प्रवाहमान जल मनमोह लेता और जब वनश्री की ओर निगाह उठती तो उस की हरीतिमा चित्त चुरा लेती. प्रारंभ में शाल, सागौन, अश्वपत्र, आम, नीम के  झाड़ मिलते रहे और कुछ अधिक ऊंचाई पर चीड़, स्प्रूस, ओक, मैग्नोलिया आदि के वृक्ष मिलने लगे. हम 7 हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंच गए थे, जिस से समशीतोष्ण कटिबंधीय वृक्षों की अधिकता दिखाई दे रही थी.

रंगपो शहर पश्चिम बंगाल व सिक्किम के सीमांत पर स्थित है. यहां ठंड अधिक होती है. फिर हम गंगटोक पहुंचे. वहां हनुमान टैंक घूमने गए. वहां से कंचनजंघा की तुषार मंडित, धवल चोटियां स्पष्ट दिखाई दे रही थीं.  अपूर्व अलौकिक दृश्य देखा. अहा, यहां प्रकृति प्रतिक्षण कितने रूप बदलती है. सूर्योदय के पूर्व कंचनजंघा अरुणिम आभा में रंगा था और जब सूर्य ने प्रथमतया उस की ओर अपनी सुनहरी किरणों से स्पर्श किया, उस का रंग और भी लाल हो गया.

धूप में कंचनजंघा की बर्फीली चोटियां स्वच्छ धवल चांदी की तरह चमक रही थीं. गंगटोक से थोड़ी ही दूर है जीवंती उपवन प्रकृति का मनोरम नजारा प्रस्तुत करता है यह उपवन. रूमटेक गुम्पा भी सिक्किम का एक प्रसिद्ध गुम्पा है. गंगटोक से 30 किलोमीटर दूर तक छोटी सी पहाड़ी की पृष्ठभूमि में इस का निर्माण किया गया है. यहां लामाओं को प्रशिक्षित किया जाता है. वहां का शांत और पवित्र वातावरण सुखद अनुभव देता है.

गंगटोक से पहले की सिक्किम की राजधानी गेजिंग से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में एक छोटा सा गांव है प्रेमयांची. यहां से अन्यत्र जाने के लिए अपने पैरों पर ही भरोसा रखना पड़ता है. 2,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्रेमयांची बौद्ध धर्म की नियंगमा शाखा का सब से बड़ा गुम्पा है. यहां के सभी लामा लाल टोपी पहनते हैं. इसे लाल टोपी धारी लामाओं का गुम्पा भी कहते हैं.

इस गुम्पा के अंदर ‘संग थी पाल्थी’ नाम की उत्कृष्ट कलाकृति प्रथम तल पर स्थापित है. इस कलाकृति से जीव की 7 अवस्थाओं का परिचय मिलता है. कक्ष की भीतरी दीवारों पर अनेक सुंदर चित्र निर्मित हैं, जो भारतीय बाम तंत्र से प्रभावित जान पड़ते हैं.

सेमतांग के पहाड़ों पर चाय के खूबसूरत बागान हैं. दूर से देखने पर लगता है जैसे हरी मखमली कालीन बिछा दी गई हो. यहां से सूर्यास्त का नजारा देखने लायक होता है. इस अद्वितीय दृश्य का लाभ लेने के लिए हमें वहां कुछ घंटों तक ठहरना पड़ा और जब सूर्य दूसरे लोक में गमन की तैयारी करने लगा तो हमारी आंखें उधर ही टंग गईं. सूर्यास्त का नजारा देखने लायक था.

सारा सिक्किम कंचनजंघा की आभा से मंडित प्रकृति सुंदरी के हरेभरे आंचल के साए में लिपटा हुआ है. चावल, बड़ी इलायची, चाय और नारंगी के बाग से वहां की धरती समृद्धि से भरपूर है. तिस्ता की घाटी अपनेआप में सौंदर्य व प्रेम के गीतों की संरचना सी है. यहां की वनस्पतियों में विविधता है. सब से बड़ी बात यह है कि औषधीय गुण वाले वृक्षों की वहां बहुतायत है.

 

प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत मेल पश्चिम बंगाल

आधुनिकता और सांस्कृतिक धरोहर को अपने में समेटे पश्चिम बंगाल में जहां एक ओर प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना दार्जिलिंग है वहीं दूसरी ओर पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार कोलकाता है, जो पर्यटकों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते हैं.

पश्चिम बंगाल अपनी अलग संस्कृति एवं सभ्यता के कारण भारत के अन्य राज्यों से अलग अहमियत रखता है. इस के उत्तर में विशाल हिमालय व दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है. पश्चिम बंगाल अनेक शासकीय परिवर्तनों का  गवाह रहा है. ईस्ट इंडिया कंपनी की आड़ में अंगरेजों ने धीरेधीरे इसे अपनी कर्मस्थली बना कर पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया था.

पश्चिम बंगाल जूट उद्योग के कारण व्यापारियों के आकर्षण का केंद्र रहा है. यहां जन्मे अनेक महान साहित्यकारों द्वारा रचा साहित्य न सिर्फ साहित्य प्रेमियों को आकर्षित करता है बल्कि पर्यटकों के लिए इस राज्य में घूमनेफिरने के लिए कई ऐसी जगह हैं जहां वे अनायास ही खिंचे चले आते हैं.

दार्जिलिंग

शिवालिक पर्वतशृंखला में समुद्रतल से लगभग 7 हजार फुट की ऊंचाई पर बसे दार्जिलिंग को पहाड़ों की रानी कहा जाता है. दार्जिलिंग चाय और हिमालयन रेलवे के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है.

दार्जिलिंग पर्वत क्षेत्र के इन तीनों महकमों (दार्जिलिंग, कर्सियांग और कालिंपोंग) में विभाजित है. दार्जिलिंग जिले के नजदीक का महकमा खारसांग, आम लोगों के लिए कर्सियांग के नाम से जाना जाता है. इस का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है. यहां का सफेद और्किड विश्वविख्यात है, जो स्थानीय भाषा में सुनखरी के नाम से जाना जाता है. यहां के गिद्ध पहाड़ के करीब सुभाषचंद्र बोस का पैतृक मकान है जहां उन्होंने लंबे समय तक एकांतवास किया था.

दार्जिलिंग का तीसरा महकमा कलिंपोंग है, जिस का भूटानी भाषा में अर्थ है मंत्रियों का गढ़. दार्जिलिंग और कर्सियांग को तिस्ता नदी कलिंपोंग से अलग करती है. नदी के किनारे हरेभरे जंगल हैं. जंगलों के बीच पहाड़ी,  झरने यहां की प्राकृतिक शोभा में चार चांद लगाते हैं. दार्जिलिंग विशेष रूप से टौय ट्रेन के लिए जाना जाता है. शुरुआती तौर पर यह टौय ट्रेन हिमालयन रेलवे का हिस्सा थी, जिस की स्थापना 1921 में हुई थी. यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है. यह बतासिया लूप तक जा कर खत्म होता है. इस ट्रेन से मोनैस्ट्री तक के सफर के दौरान पर्यटक दार्जिलिंग के प्राकृतिक सौंदर्य के नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं.

दार्जिलिंग का दूसरा मुख्य आकर्षण टाइगर हिल है. इसे रोमांटिक माउंटेन के रूप में भी जाना जाता है. इस टाइगर हिल से एवरेस्ट समेत विश्व की तीसरी सब से ऊंची चोटी कंचनजंघा का दृश्य देखना पर्यटकों के लिए रोमांचकारी होता है.

दार्जिलिंग अपने बौद्ध मोनैस्ट्री या मठों के लिए भी जाना जाता है. दार्जिलिंग का विख्यात मठ घूम मोनैस्ट्री है. इस के अलावा यहां के दर्शनीय स्थलों में एक जापानी ‘पीस पैगोडा’ भी है, जिस की स्थापना विश्व शांति के मकसद से महात्मा गांधी के मित्र फूजी गुरु ने की थी. गौरतलब है कि यह भारत में कुल 6 शांति स्तूपों में से एक है. पीस पैगोडा से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा की शृंखला का नजारा दिखाई देता है.

दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद और गोरखा टेरिटोरियल औटोनौमस बौडी द्वारा नवनिर्मित गंगामाया पार्क, रौक गार्डन, राजभवन, वर्धमान महाराजा की कोठी आदि यहां के दर्शनीय स्थलों में से है. इस के अलावा मिरिक  झील, सिंजल  झील, जोर पोखरी, सिंगला बाजार, संदाकफू, फालुट भी पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी लोकप्रिय हैं. माउंटेनियरिंग संस्थान के करीब पद्मजा नायडू जैविक उद्यान है, जो न सिर्फ बच्चों के लिए बल्कि बड़ों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है. इस उद्यान में हिमालयन तेंदुआ और लाल पांडा को भी देखा जा सकता है. यह उद्यान तेंदुआ और पांडा के प्रजनन केंद्र के लिए भी जाना जाता है.

इस के अलावा यहां साइबेरियन बाघ और तिब्बती भेडि़ए भी हैं. भारत में इन वन्य जीवों को एकसाथ एक ही जगह देखने का मौका पर्यटकों को कहीं और नहीं मिल सकता. लियोर्डस वनस्पति उद्यान भी यहां है. इस उद्यान में और्किड की 50 किस्म की प्रजातियां देखने को मिल जाती हैं. इस के अलावा यहां कई तरह के दुर्लभ पेड़पौधे और जड़ीबूटियां भी पाई जाती हैं.

दार्जिलिंग चायबागानों के लिए विश्वविख्यात है. यह एक रोचक तथ्य है कि चाय के पौधे का पहला बीज कुमाऊं से लाया गया था और यही चाय आगे चल कर दार्जिलिंग चाय के नाम से दुनियाभर में जानी जाने लगी. चायबागान में पत्तियों को तोड़ते हुए देख पर्यटकों के लिए अच्छा शगल है. पर्यटक यहां पत्तियों को प्रोसैस होते हुए भी देख सकते हैं. हालांकि इस के लिए चायबागान के अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी होगी.

कैसे पहुंचें

दार्जिलिंग का नजदीकी एअरपोर्ट बागडोगरा है, जो सिलीगुड़ी में है. कोलकाता, गुवाहाटी, दिल्ली और पटना से प्रतिदिन उड़ानें हैं. बहरहाल, बागडोगरा से दार्जिलिंग पहुंचने के लिए यहां से 90 किलोमीटर की यात्रा किराए की कार या जीप से की जा सकती है. रेलवे से यात्रा करनी हो तो सब से करीबी स्टेशन जलपाईगुड़ी है. कोलकाता से दार्जिलिंग मेल व कामरूप ऐक्सप्रैस ट्रेन जलपाईगुड़ी तक पहुंचती हैं. जलपाईगुड़ी से टौय ट्रेन द्वारा लगभग 8 घंटे की यात्रा कर दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है. दिल्ली से गुवाहाटी तक राजधानी ऐक्सप्रैस से पहुंचा जा सकता है. यहां से हवाई या सड़क के रास्ते दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है. सड़क मार्ग से कोलकाता से सरकारी और निजी बसें भी जाती हैं.

क्या खरीदें

जहां तक दार्जिलिंग में खरीदारी का सवाल है तो चाय पत्तियों के अलावा सेमी प्रेसियस स्टोन से ले कर हस्तशिल्प के सामान और ऊनी कपड़े खरीदे जा सकते हैं. साथ ही यहां अच्छे किस्म की पेंटिंग्स भी मिल जाती हैं. यहां की पेंटिंग्स को पर्यटक दार्जिलिंग सफर की यादगार के रूप में जरूर ले कर जाते हैं.

कोलकाता

कोलकाता ऐसा शहर है जहां प्राचीन मान्यता और आधुनिक विचार, अंधविश्वास व प्रगतिशीलता साथसाथ चलती है. कोलकाता शहर का एक बड़ा महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि यह देश की सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ ही साथ यह पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार भी है. अब यह शहर काफी बदल चुका है. एक समय था जब कोलकाता पहुंचने के लिए पहले इस के उपनगर हावड़ा से हो कर जाना पड़ता था. कारण, ज्यादातर लंबी दूरी की ट्रेनें हावड़ा ही आती थीं. लेकिन अब कोलकाता का अपना टर्मिनस भी बन गया है. ‘कोलकाता टर्मिनस’. अब यहां पहुंचना वाया हावड़ा जरूरी नहीं है. फिर भी हावड़ा ब्रिज का महत्त्व किसी भी तरह से कम नहीं हुआ है.

लगभग पौने दो सौ साल पुराना बिन खंभे का यह झूलता हुआ पुल आज भी आकर्षण का केंद्र है, फिर वह चाहे पर्यटन के लिहाज से हो या कोलकाता को हावड़ा समेत अन्य उपनगरों से जोड़ने का मामला हो. हावड़ा ब्रिज के अलावा पूर्वी भारत के इस सब से बड़े महानगर कोलकाता के दर्शनीय स्थलों में विक्टोरिया मैमोरियल, अजायबघर  और बिड़ला प्लेनेटोरियम समेत बहुत सारे स्थल हैं.

विक्टोरिया मैमोरियल

विक्टोरिया मैमोरियल  भारत में ब्रिटिश राज का एक स्मारक स्थल है. 228×338 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले इस स्मारक में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के साथ अन्य ब्रिटिश प्रशासकों का अभिलेखागार भी है. महारानी विक्टोरिया की मृत्यु के बाद 1901 में इसे तत्कालीन वायसराय ने बनवाया था. 1921 में पहली बार इसे आम लोगों के दर्शन के लिए खोल दिया गया. संग्रहालय के ऊंचेऊंचे खंभे, रंगीन कांच और राजकीय सजावट बरतानिया राज और महारानी विक्टोरिया की उपस्थिति की कहानी सुनाते हैं.

बोटैनिकल गार्डन

यह भी गंगा के किनारे कोलकाता के उस पार स्थित है. यह भारत का सब से बड़ा बोटैनिकल पार्क है. 213 एकड़ में फैले इस पार्क में 1,400 प्रजातियों के लगभग 12 हजार दुर्लभ किस्म के पेड़ पाए जाते हैं, इसी कारण यह विश्वविख्यात है. 25 हिस्सों में बंटे इस उद्यान के अलगअलग भाग में विभिन्न किस्म के पेड़पौधे हैं.

अलीपुर चिडि़याघर

यह एक ऐतिहासिक चिडि़याघर है. जिस के मछलीघर में विभिन्न प्रजातियों की रंगबिरंगी मछलियां हैं. चिडि़याघर में एक तरफ रेपटाइल्स हाउस है जहां किस्मकिस्म के सांपों के अलावा मगरमच्छ और घडि़याल भी हैं. यहां बंगाल के मशहूर रौयल बंगाल टाइगर के अलावा सफेद बाघ, जलहस्ती, गैंडा, अफ्रीकी जिराफ, जेब्रा, नीलगाय, बारहसिंगा आदि भी हैं.

इंडियन म्यूजियम

यह एशिया के वृहत्तम संग्रहालयों में से एक है. यहां हजारों वर्ष पुराने, शिवालिक काल के जीवाश्म रखे गए हैं. शिवालिक की पहाडि़यों पर पाए जाने वाले 20 फुट दांतों वाले विशाल हाथी से ले कर न्यूजीलैंड के एक प्राचीन पक्षी और 1891 में अमेरिका के अरिजोना में हुए उल्कापात के अवशेष और बहुत सारे अजीब और अनोखे संग्रह यहां देखने को मिलते हैं.

राष्ट्रीय पुस्तकालय

अलीपुर में चिडि़याघर के सामने ही राष्ट्रीय पुस्तकालय है. यह देश का सब से बड़ा पुस्तकालय है.

मिलेनियम पार्क

गंगा किनारे बसा मिलेनियम पार्क महानगर के सौंदर्यीकरण का हिस्सा है. यहां से हावड़ा ब्रिज और हुगली सेतु का नजारा बहुत ही लुभावना नजर आता है. गंगा के किनारे से लगे पूरे इलाके को पार्क में तबदील कर दिया गया है. यहां तैरता हुआ चारसितारा होटल भी है. गंगा नदी में तैरते हुए होने के कारण यह फ्लोटेल कहलाता है.

शहीद मीनार

यह मीनार तुर्की, मिस्र और सीरियाई स्थापत्य कला का मिलाजुला स्वरूप है. भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर इस का नाम शहीद मीनार रखा गया. 48 मीटर ऊंची इस मीनार से पूरे कोलकाता का नजारा देखा जा सकता है. लेकिन यहां से हुई आत्महत्याओं की घटना के बाद इस में प्रवेश के लिए कोलकाता पुलिस मुख्यालय से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है. इन प्रमुख पर्यटक स्थलों के अलावा कालीघाट, दक्षिणेश्वर, बेलूर मठ और फोर्ट विलियम भी दर्शनीय स्थल हैं. इन पर्यटन स्थलों को देखने का सब से अच्छा समय सितंबर से मार्च तक होता है.

कैसे पहुंचें

कोलकाता अपने दमदम एअरपोर्ट से राष्ट्रीय स्तर पर भारत के लगभग सभी हिस्सों से और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दक्षिणपूर्व एशियाई देशों से जुड़ा हुआ है. हावड़ा, सियालदह और कोलकाता रेलवे टर्मिनस में देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेनें आती हैं. कोलकाता के विभिन्न स्थलों को बस, मिनी बस, ट्राम, लांच, मैट्रो ट्रेन, लोकल ट्रेन, लक्जरी एसी बस द्वारा देखा जा सकता है.

दीघा

यह कोलकाता से 187 किलोमीटर दूर स्थित है. भारतीय समुद्रतटों में दीघा ऐसा पर्यटन स्थल है जहां बीच पर अठखेलियां करती लहरों का लुत्फ उठाने देशविदेश से पर्यटक बड़ी तादाद में आते हैं. दीघा में पर्यटन का सब से अनुकूल समय नवंबर से मार्च तक है. वैसे पर्यटकों का पूरे साल यहां आना लगा रहता है. इस का पुराना नाम बारीकूल है. पर अब यह दीघा के ही नाम से जाना जाता है. यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारे मनमोहक होते हैं.

दीघा का साफसुथरा समुद्र तट ऐसा है कि इस तट पर दूरदूर तक पैदल चला जा सकता है. गौरतलब है कि दीघा का समुद्र तट ओडिशा के समुद्रतट से जा कर मिलता है. इसीलिए कहा जाता है कि अगर कोई दीघा के समुद्रतट के किनारेकिनारे चलता जाए तो वह ओडिशा पहुंच जाएगा. अगर ओडिशा की ओर न जाना हो तो दीघा के करीब और भी बहुत सारे पर्यटन स्थल हैं. इन्हीं में से एक है न्यू दीघा. हाल के दिनों में न्यू दीघा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है. यहां समुद्रतट के अलावा  झील और पार्क भी हैं.

दीघा से 14 किलोमीटर की दूरी पर है शंकरपुर. इस की ख्याति फिशिंग प्रोजैक्ट के रूप में अधिक है. हाल के दिनों में इसे बीच रिजोर्ट के रूप में विकसित किया गया है. इस के अलावा लोगों के लिए पिकनिक स्थल है चंदनेश्वर. दीघा में नहाने, तैरने की सुविधा है. लेकिन यहां पर तट के कुछ ऐसे भी स्थल हैं जहां तैरने की सख्त मनाही है, विशेष रूप से ज्वार के दौरान जब समुद्रतट का पानी उफान पर होता है. दीघा में समुद्रतट के अलावा तटीय वृक्षों का एक जंगल भी है जो स्थानीय रूप से  झाऊवन के नाम से जाना जाता है. समुद्र की लहरों में तैरनेखेलने के बाद अकसर लोग ‘ झाऊवन’ में आराम करते हैं.

दीघा पहुंचने का रास्ता

कोलकाता से दीघा रेल और सड़क दोनों रास्तों से पहुंचा जा सकता है. कोलकाता से दीघा की दूरी मात्र 4 घंटे में तय हो जाती है. कोलकाता के एस्प्लानेड, उल्टाडांगा से दीघा के लिए सीधी बसें जाती हैं. हावड़ा से दीघा के लिए ट्रेनसेवा भी है. ट्रेन से दीघा पहुंचने में महज 2 घंटे का समय लगता है.

 

हिल स्टेशन दार्जिलिंग की खूबसूरती आज भी आंखों में बसी हुई है. सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग तक ट्रौय ट्रेन का सफर बच्चों के साथसाथ हम ने भी बहुत एंजौय किया. चायबागानों की सैर का मजा ही कुछ और था.

-रजनी कुमार, नई दिल्ली

भीड़भाड़ से भरे कोलकाता शहर में घूम कर बहुत मजा आया. एक बात जो मुझे कुछ हट कर लगी कि सब्जी मार्केट में ही मछली, मुर्गा, सी फूड ऐसे बिक रहे थे जैसे कि सब्जियां. बंगाली मिठाइयां वाकई लाजवाब थीं और पत्नी के लिए बंगाली साडि़यां खरीदना नहीं भूला जिन्हें आज भी वह बहुत चाव से पहनती है.

-राजीव मक्कड़, दिल्ली

बिहार – परंपरा और आधुनिकता का संगम

ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए बिहार न सिर्फ परंपरा और आधुनिकता की अनूठी तसवीर पेश करता है, बल्कि शिक्षा और ज्ञानविज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय पहचान के लिए यह मशहूर भी है.

बिहार ऐसा प्रदेश है जो अपनी अलग पहचान रखता है. चंद्रगुप्त और अशोक के समय में मगध और इस की राजधानी पाटलिपुत्र का विश्व भर में नाम था. बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. जब तक झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था तब तक यहां खनिज संपदा की कोई कमी नहीं थी लेकिन झारखंड बनने पर खनिज संपदा से लबरेज इलाका वहां चला गया. इस तरह बिहार की आर्थिक संपन्नता को काफी नुकसान पहुंचा है.

पर्यटन व ऐतिहासिक दृष्टि से बिहार का आकर्षण आज भी कायम है. देशविदेश से अनेक सैलानी यहां के ऐतिहासिक स्थलों को देखने हर साल आते हैं. बिहार की राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र और अजीमाबाद भी रहा है. यह शहर अपने सीने में कई ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए है.

पटना के दर्शनीय स्थल

बुद्ध स्मृति पार्क : पटना रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही विशाल और चमचमाते स्तूप पर नजर टिक जाती है. वह इंटरनैशनल लेवल का बना नया पर्यटन स्थल बुद्ध स्मृति पार्क है. उस जगह पर पहले पटना सैंट्रल जेल हुआ करता था.

म्यूजियम : पार्क के भीतर बुद्ध म्यूजियम को बड़ी खूबसूरती से गुफानुमा बनाया गया है जिस में बुद्ध और बौद्ध से जुड़ी चीजें प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं. इसे सिंगापुर के म्यूजियम की तर्ज पर विकसित किया गया है.

मैडिटेशन सैंटर : बौद्ध-कालीन इमारतों की याद दिलाता मैडिटेशन सैंटर बनाया गया है. यह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से प्रेरित है. इस में कुल 5 ब्लाक और 60 कमरे हैं. सभी कमरों के सामने के हिस्सों में पारदर्शी शीशे लगाए गए हैं ताकि ध्यान लगाने वाले सामने बौद्ध स्तूप को देख कर ध्यान लगा सकें.

बांकीपुर जेल अवशेष : पार्क को बांकीपुर जेल की जमीन पर बनाया गया है. उस जेल को 1895 में बनाया गया था, जो शुरू में तो अनुमंडल जेल था पर बाद में 1907 में उसे जिला जेल बनाया गया. 1967 में उसे सैंट्रल जेल का दरजा दिया गया था. 1994 में जेल को वहां से हटा कर बेऊर इलाके में शिफ्ट कर दिया गया. उस जेल में देश के पहले राष्ट्रपति रहे डा. राजेंद्र प्रसाद समेत कई स्वतंत्रता सेनानी बंदी के रूप में रहे.

ईको पार्क : पटना के लोगों और पर्यटकों की तफरीह के लिए बना नयानवेला ईको पार्क पटना का नया नगीना है. पटना के बेली रोड पर पुनाईचक इलाके में साल 2011 के अक्तूबर महीने में ईको पार्क पर्यटकों के लिए खोला गया. इसे राजधानी वाटिका भी कहा जाता है. पार्क में बनी  झील में नौका विहार का आनंद लिया जा सकता है. इस में बच्चों के खेलने और मनोरंजन का खासा इंतजाम किया गया है, वहीं बड़ों के लिए आधुनिक मशीनों से लैस जिम भी बनाया गया है.

पटना म्यूजियम : पटना म्यूजियम देशविदेश के पर्यटकों को हमेशा ही लुभाता रहा है. पटना के लोग छुट्टी का दिन यहां बिताना पसंद करते हैं. पटना रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर दूर बुद्ध मार्ग पर बने इस म्यूजियम ने प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखा है. प्राकृतिक कक्ष में जीवजंतुओं के पुतलों को रखा गया है जबकि वास्तुकला कक्ष में खुदाई से मिली मूर्तियों को रखा गया है, जिस में विश्वप्रसिद्ध यक्षिणी की मूर्ति भी शामिल है.

संजय गांधी जैविक उद्यान : पटना का यह चिडि़याघर शहर वालों का पसंदीदा पिकनिक स्पौट है. रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर और एअरपोर्ट से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने चिडि़याघर में विभिन्न प्रजातियों के पशु, पक्षी और औषधीय पौधे हैं जो इस की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. चिल्ड्रैन रेलगाड़ी में सैर करने का लुत्फ बच्चे, बूढ़े और जवान सभी उठाते हैं. उद्यान में विकसित  झील में नौका विहार का भी आनंद लिया जा सकता है. सांपघर और मछलीघर भी पर्यटकों को लुभाते हैं.

कुम्हरार : प्राचीन पटना का भग्नावशेष यहीं मिला था. पटना जंक्शन से 5 किलोमीटर पूरब में पुरानी बाईपास रोड पर स्थित कुम्हरार प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है और यह पिकनिक स्पौट और लवर्स प्वाइंट के रूप में मशहूर हो चुका है.

गोलघर : गंगा नदी के किनारे बना गोलघर ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है. 1770 के भीषण अकाल के बाद साल 1786 में अंगरेजों ने इसे अनाज रखने के लिए बनाया था. 29 मीटर ऊंचे इस गोलाकार भवन के ऊपर चढ़ने के लिए 100 से ज्यादा सीढि़यां हैं. इस के शिखर से पटना शहर का नजारा लिया जा सकता है. इन सब के अलावा जलान म्यूजियम, अगमकुआं, मनेर का मकबरा, सदाकत आश्रम, बिहार विद्यापीठ, गांधी संग्रहालय, तख्त हरमंदिर, शहीद स्मारक, गांधी मैदान, तारामंडल आदि भी पटना के नामचीन पर्यटन स्थल हैं.

अन्य दर्शनीय स्थल

राजगीर : यह स्थान सड़क मार्ग से पटना से 102 किलो-मीटर की दूरी पर है और गया एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां वेणुवन, मनियार मठ, पिप्पल नामक पत्थर का महल है, जिसे पहरा देने का भवन या मचान भी कहते हैं. वैभारगिरी पहाड़ी के दक्षिण छोर पर सोनभद्र गुफा, जरासंध का बैठकखाना, स्वर्ण भंडार, बिंबिसार का कारागार, जीवक आम्रवन और पत्थरों की उम्दा कारीगिरी से बनाई गई सप्तपर्णी गुफा की कलात्मकता देखते ही बनती है.

पटना से 109 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में और नालंदा से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैनियों का महत्त्वपूर्ण व ऐतिहासिक स्थल है. पहाड़ पर बना विश्व शांति स्तूप स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूनों में से एक है. रोपवे के जरिए पर्यटक वहां आसानी से पहुंच सकते हैं.

रेलमार्ग से : हावड़ा-पटना मुख्य रेलमार्ग पर स्थित बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन सब से नजदीक स्टेशन है. पटना के मीठापुर बस अड्डे से हरेक घंटे गया के लिए बस जाती है.

वैशाली : यहां कई ऐतिहासिक और कलात्मक इमारतें हैं. राजा विशाल का किला, अशोक स्तंभ, बौद्ध स्तूप समेत कई इमारतें अपने दिनों की गवाह बनी आज भी सीना ताने खड़ी हैं. वैशाली के कोल्हुआ गांव में स्थित अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग ‘भीमसेन की लाठी’ भी कहते हैं. स्तंभ के ऊपर घंटाघर है और उस के ऊपर उत्तर की ओर मुंह किए हुए समूचे सिंह की मूर्ति बनी हुई है. यह अशोक स्तंभ आज भी भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक चिह्न बना हुआ है. स्तंभ से 50 फुट की दूरी पर एक तालाब है जिस के पास गोलाकार बौद्ध स्तूप बना हुआ है, जिस के ऊपर के भवन में बुद्ध की मूर्ति है.

वैशाली सड़क मार्ग से पटना एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर और पटना रेलवे स्टेशन से 54 किलोमीटर की दूरी पर है. नजदीकी रेलवे स्टेशन हाजीपुर और मुजफ्फरपुर है. गया एअरपोर्ट से वैशाली की दूरी 169 किलोमीटर है.

नालंदा : शिक्षा और ज्ञानविज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में नालंदा मशहूर था. नालंदा महाविहार या महाविश्वविद्यालय में दुनिया भर से छात्र पढ़ने आते थे. इस की स्थापना 5वीं सदी ईसापूर्व में कुमारगुप्त प्रथम ने की थी और हर्षवर्द्धन के शासन में यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हो गया था. सम्राट अशोक ने यहां मठ की स्थापना की थी. जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने यहां काफी समय गुजारा और प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं हुआ था. इस में 10 हजार छात्रों के पढ़ने की व्यवस्था थी और उन्हें पढ़ाने के लिए 1,500 शिक्षक दिनरात लगे रहते थे. यहां बुद्धकाल की बनी हुई धातु, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं.

बोधगया : ईसा से 500 साल पहले बोधगया में ही गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. गया शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोधगया निरंजन नदी के किनारे बसा हुआ है. इस के आसपास कई तिब्बती मठ हैं. वटवृक्ष के नजदीक जापान, चीन, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड द्वारा बनाए गए विशाल बौद्ध स्तूप पर्यटकों को लुभाते हैं. बिहार में सब से ज्यादा विदेशी पर्यटक बोधगया ही आते हैं. गया शहर में भी कई पर्यटन स्थल हैं. पटना से 94 किलोमीटर की दूरी पर गया फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है. बराबर की गुफाओं में मौर्यकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है.

बोधगया सड़कमार्ग से पटना एअरपोर्ट से 109 किलोमीटर की दूरी पर है. गया एअरपोर्ट से इस की दूरी 8 किलोमीटर है. दिल्ली-हावड़ा रेलमार्ग पर गया रेलवे स्टेशन नजदीकी रेलवे स्टेशन है. 

सासाराम : सासाराम में शेरशाह सूरी और उन के पिता हसन खान सूरी का मकबरा है, जो भारत में पछान स्थापत्य कला का खूबसूरत नजारा पेश करता है. यहां विश्व प्रसिद्ध कैमूर की पहाडि़यां भी हैं.

दियारा

कहीं रेत पर दौड़तेभागते प्रेमीप्रेमिकाएं दुनिया भुलाए, कहीं किनारे बैठा प्रेमी जोड़ा कहीं पानी में छई छपा छई… करते मुहब्बत के दीवाने, कहीं देहाती भोजन का लुत्फ उठाता परिवार. गंगा के दियारा इलाके में जमा हो कर लोग एकांत का आनंद लेने लगे तो सरकार का ध्यान उस ओर गया. अब दियारा इलाके को पर्यटन स्पौट के रूप में विकसित किया जा रहा है. गंगा पर्यटन के नाम से इस योजना को हकीकत के धरातल पर उतारने की कवायद शुरू हो चुकी है.

पटना और हाजीपुर के बीच गंगा नदी के 2 धाराओं में बंट जाने से गंगा के बीच करीब 4 वर्ग किलोमीटर का इलाका टापू की शक्ल ले चुका है. उस टापू पर युवा लड़के और लड़कियां मौजमस्ती करने की  नीयत से नाव के सहारे पहुंच जाते हैं और शाम ढलने से पहले वहां वापस चले जाते हैं. धीरेधीरे कुछ लोगोें ने वहां अपने परिवार के साथ जाना शुरू किया. दियारा में रेत और पानी के बीच समुद्रतट जैसा नजारा और मजा मिलता है.

 

राजगीर के स्तूप देख मन खुश हो जाता है. यहां पिफली गुफा और वैभव पर्वत की राह में पड़ने वाले गरम झरने बहुत अच्छे लगते हैं. यहां राजगीर महोत्सव के समय बहुत अच्छा लगता है. 

-ईशा भारद्वाज, बरेली

जो लोग देश के इतिहास को जानना और समझना चाहते हैं उन के लिए जरूरी है कि वे एक बार नालंदा की यात्रा जरूर करें. खासकर पढ़ने वाले युवाओं को यहां जरूर आना चाहिए.  

-वंशिका मिश्रा, पंतनगर

 

 

उत्तर प्रदेश : शाम-ए-अवध तो सुबह-ए-बनारस

पर्यटन के शौकीनों के लिए उत्तर प्रदेश में हर रंग और मिजाज के पर्यटन स्थल मौजूद हैं. सियासत, संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य और आधुनिकता को खुद में समेटे यहां के पर्यटन स्थल सैलानियों को बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं.

उत्तर प्रदेश में घूमने के लिहाज से लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी,  झांसी और आगरा शहर ऐसे हैं जो सर्दियों में पर्यटकों को अच्छे लगते हैं. इस के अलावा कौशांबी, श्रावस्ती, सारनाथ, कुशीनगर और चित्रकूट भी लोग घूमने जाते हैं. लखीमपुर जिले में दुधवा नैशनल पार्क भी लोगों को खूब पसंद आता है. जाड़ों का मौसम घूमने के लिहाज से अच्छा माना जाता है. उत्तर प्रदेश में जाड़ों का मौसम अक्तूबर से मार्च तक का माना जाता है.

उत्तर प्रदेश के किसी भी पर्यटन स्थल तक पहुंचने के लिए अच्छे साधन हैं. इन में हवाई यात्रा के साथसाथ रेल और बस यात्रा भी शामिल हैं. उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम ने बससेवा के जरिए पर्यटन स्थलों को एकदूसरे से जोड़ रखा है. खास शहर में पर्यटन विभाग के होटलों के साथसाथ नए बन रहे मौल और पार्क भी खूब लुभाते हैं. अवधी खाने के साथ बड़े नाम वाले रेस्तरां में भी खाना मिल जाता है.

धार्मिक स्थलों पर घूमते समय सावधान रहें. यहां पर कई किस्म के पंडे पूजापाठ के बहाने घूमने वालों को फंसाने की कोशिश करते हैं. चढ़ावा चढ़ाने के लिए तरहतरह का लालच देते हैं. इस के बहाने ठगने का प्रयास करते हैं. कई बार पर्यटक इन के  झांसे में पड़ जाते हैं. विदेशी मेहमान इन के खास निशाने पर होते हैं.

नवाबी शहर लखनऊ

घूमने के लिहाज से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ बहुत ही साफसुथरी और ऐतिहासिक जगह है. नवाबी शासनकाल और अंगरेजी शासनकाल में बनी इमारतें वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं. नवाबी काल में अवध के अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ की रंगीनियों और शानोशौकत के किस्से भी खूब चटखारे ले कर सुने और सुनाए जाते हैं.

बदलता लखनऊ आज मैट्रो सिटी के रूप में आगे बढ़ रहा है. इस के बावजूद अपनी पुरानी नजाकत और नफासत को भी इस शहर ने संभाल कर रखा है. यह शहर अब सियासी तेजी और फैशन के बदलते अंदाज के लिए भी जाना जाता है.

लखनऊ की शाम का जादू शामेअवध के नाम से जाना जाता है. लखनऊ में पश्चिमी खाने से ले कर देशी खाने तक का निराला स्वाद लिया जा सकता है. लखनऊ में खाने के लिए चाट, समोसे, कचौड़ी, कुल्फी के अलावा कबाब और बिरयानी का स्वाद लिया जा सकता है. हजरतगंज बाजार बहुत ही मशहूर है. यहां मनोरंजन के लिए कई अच्छे मल्टीप्लैक्स सिनेमा हौल खुल गए हैं. खरीदारी करने के लिए मौल खुल  गए हैं, जहां पर एक ही जगह पर सारा सामान मिल जाता है. लखनऊ आने वाले लोग चिकन की कढ़ाई वाले कपड़े और गुलाब रेवड़ी जरूर खरीदते हैं.

लखनऊ को बागों और पार्कों का शहर भी कहा जाता है. यहां पर कई अच्छे पार्क बने हुए हैं. सब से अच्छा बोटैनिकल गार्डन पार्क है. यहां पर गुलाब सहित तमाम दूसरे पौधों की कई किस्में देखने को मिल जाती हैं. इस के अलावा हाथी पार्क, गौतम बुद्ध पार्क, नदिया किनारे पार्क, पिकनिक स्पौट, लोहिया पार्क और डा. अंबेडकर पार्क भी घूमने के लिहाज से अच्छी जगहें हैं. मौजमस्ती के लिए आनंदी वाटर पार्क भी है. जाड़ों में घूमने वालों के लिए पर्यटन विभाग यहां लखनऊ महोत्सव के अलावा कई आकर्षक कार्यक्रम कराता है. हजरतगंज, अमीनाबाद और गोमतीनगर में घूमने व खरीदारी करने की तमाम जगहें हैं.

लखनऊ घूमने जो भी आता है वह सब से पहले बड़ा इमामबाड़ा यानी भूलभुलैया जरूर देखना चाहता है. यह लखनऊ की सब से मशहूर इमारत है. इस इमारत का पहला अजूबा 49.4 मीटर लंबा और 16.2 मीटर चौड़ा एक हौल है. इस में किसी तरह का कोई खंभा नहीं है. इस के एक छोर पर कागज फाड़ने जैसी आवाज भी दूसरे छोर पर आसानी से सुनी जा सकती है. इस इमारत का दूसरा अजूबा 409 गलियारे हैं. ये सब एक जैसे दिखते हैं और समान लंबाई के हैं. ये सभी एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. इन में घूमने वाले अकसर रास्ता भूल जाते हैं. इसीलिए इस को भूलभुलैया कहा जाता है.

इमामबाड़ा से थोड़ी दूर पर एक छोटा इमामबाड़ा बना हुआ है. दूर से यह इमामबाड़ा ताजमहल जैसा दिखता है. बड़े इमामबाड़े और छोटे इमामबाड़े के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन को पिक्चर गैलरी, घड़ी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के टिकट बड़े इमामबाड़े से ही एकसाथ मिल जाते हैं. रेजीडैंसी लखनऊ की ऐतिहासिक इमारत है. इस की दीवारों पर आज भी आजादी की लड़ाई के चिह्न मौजूद हैं. यहां बना खूबसूरत लौन इस की खूबसूरती को विशेष आकर्षण प्र्रदान करता है. जाड़ों में घूमने वालों को लौन पर बैठना बहुत अच्छा लगता है. रेजीडैंसी के करीब ही शहीद स्मारक बना हुआ है. 1857 में शहीद हुए वीरों की याद में इसे गोमती नदी के किनारे बनवाया गया था. जाड़ों में यहां पर नौका विहार का मजा भी लिया जाता है. लखनऊ की शान है विधानसभा की खूबसूरत इमारत.

लखनऊ का चिडि़याघर बहुत ही आकर्षक बना हुआ है. बच्चों को घुमाने के लिए छोटी रेलगाड़ी का इंतजाम किया गया है. चिडि़याघर के अंदर एक राज्य संग्रहालय भी है जिस में ऐतिहासिक सामानों को रखा गया है. यह जाड़ों में घूमने की सब से खास जगह है.

वाराणसी

वाराणसी शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. इस को घाटों का शहर भी कहा जाता है. सुबह के समय सूर्य की किरणें जब नदी के जल पर पड़ती हैं तो इन घाटों की शोभा देखते ही बनती है. वाराणसी की सुबह बहुत मशहूर है. इसीलिए उत्तर प्रदेश में शामेअवध के साथसाथ सुबहेबनारस भी मशहूर है. अर्द्धचंद्राकार गंगा के किनारे लगभग 80 घाट बने हुए हैं.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए विदेशों से भी छात्र आते हैं. पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रत्येक विषय की उच्च स्तरीय पढ़ाई होती है. यह एशिया का सब से बड़ा आवासीय विश्व- विद्यालय है. भारत कला भवन इस विश्वविद्यालय की शोभा है. इस की कलावीथिका में अनेक कलाकृतियां रखी हैं. वाराणसी में तैयार होने वाली साडि़यों को बनारसी साड़ी के नाम से जाना जाता है.

वाराणसी के पास बसे भदोही शहर का कालीन उद्योग भी बहुत खास है. धार्मिक खासीयत वाले वाराणसी शहर में पंडों और पुजारियों की अराजकता भी बहुत होती है. ये लोग यहां आने वालों को धार्मिक अनुष्ठान में फंसाने की कोशिश करते हैं.

काशी नरेश शिवोदास द्वारा बनवाया गया काशी विश्वनाथ मंदिर दशाश्वमेध घाट के पास बना हुआ है. यहां तक पहुंचने के लिए संकरी गलियों से हो कर गुजरना पड़ता है. इस मंदिर में दर्शकों की भीड़ अधिक होने के कारण गंदगी बहुत रहती है. संकरी गलियों का लाभ उठा कर  चोरउचक्के लोगों का सामान साफ कर देते हैं. घूमने वालों को इस बात से सावधान रहना चाहिए.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 2 किलोमीटर दूर गंगा नदी के उस पार स्थित रामनगर किला काशी नरेश का पैतृक निवास है. इस किले में एक संग्रहालय भी है जहां पर राजसी ठाटबाट के प्रतीक तीर, तलवार, बंदूकें और कपड़े रखे हैं.

वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर बसा हुआ सारनाथ सम्राट अशोक के स्तूपों वाला शहर है. इसी स्तूप पर बने शेरों को भारत सरकार के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के रूप में लिया गया है. यहां का हराभरा बाग और फूलों का बगीचा घूमने वालों का मन मोह लेता है. यहां पर मूलगंध कुटी भी देखने वाली जगह है. यहां के पुरातात्विक संग्रहालय में बौद्ध प्रतिमाओं और शिलालेखों को भी देखा जा सकता है.

लक्ष्मीबाई की झांसी

 झांसी शहर आजादी की नायिका रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है. उत्तर प्रदेश का रहने वाला बच्चाबच्चा  झांसी की रानी के बारे में मशहूर कविता ‘बुंदेले हरबोलों के मुख हम ने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मरदानी वह तो  झांसी वाली रानी थी’ को जानतासम झता है. पठारी क्षेत्र होने के नाते जाड़ों में झांसी घूमने का अपना अलग ही मजा है. रानी लक्ष्मीबाई  का किला इस शहर की सब से खास जगह है. 1857 में आजादी की लड़ाई में अंगरेजों ने जिस किले पर गोले बरसाए थे, वह आज भी वैसा का वैसा खड़ा हुआ है. बंगरा की पहाडि़यों पर बना यह किला 1610 में राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा बनवाया गया था. यह किला शान से आज भी खड़ा है और अपनी बहादुरी के किस्से सुनाता प्रतीत होता है.

18वीं शताब्दी में  झांसी और उस के किलों पर मराठों का अधिकार हो गया था. मराठों के अंतिम शासक गंगाराव थे जिन की मृत्यु 1853 में हो गई थी. इस के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभाल ली थी.  झांसी का किला अपनी अद्भुत कला के लिए जाना जाता है. इस किले में अष्टधातु की बनी ‘कड़क बिजली’ और ‘भवानी शंकर’ नामक 2 तोपें आज भी रखी हैं. ये तोपें महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता का आज भी बखान करती नजर आती हैं.

इस किले यानी रानी महल को पहले बाई साहब की हवेली के नाम से जाना जाता था. यह महल शहर के बीच में बना हुआ है. इस का निर्माण रघुनाथ राव और महारानी लक्ष्मीबाई के समय में हुआ था. इसी वजह से इस को बाद में रानी महल कहा जाने लगा. इस महल में रंगबिरंगी चित्रकारी देखने को मिलती है. इसे देख कर प्राचीन शिल्पकला के बारे में पता चलता है. किले में बड़ीबड़ी दालानें बनी हैं. इन में पत्थर की कारीगरी की गई है. दीवारों में भी प्राचीन कला का नमूना देखने को मिलता है. इतना पुराना होने के बाद भी आज यह महल पहले जैसा ही दिखता है.

इस किले का भी आजादी की लड़ाई से पुराना रिश्ता है. इसी महल में रह कर महारानी लक्ष्मीबाई ने अंगरेजों के खिलाफ लोहा लेने की योजना बनाई थी. अब इस रानी महल में पुरातात्विक विभाग का संग्रहालय है जिस में बुंदेलखंड के चांदपुर और दुधई से जमा की गई प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं.

प्रेम की नगरी आगरा

ताज नगरी आगरा उत्तर प्रदेश का ही नहीं भारत का एक बहुत ही खास पर्यटन स्थल है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. सफेद संगमरमर से बनी इस इमारत को जाड़ों में देखने का अपना अलग ही मजा है. पूरी इमारत के पास मखमली घास का मैदान है जहां पर बैठ कर धूप का मजा लिया जा सकता है. इस के पीछे यमुना नदी बहती है.

आगरा में ताजमहल के अलावा भी घूमने वाली कई दूसरी जगहें हैं. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. दुनिया के 7 आश्चर्यों में ताजमहल का नाम भी दर्ज है. इसे देखने के लिए देशीविदेशी पर्यटकों का साल भर तांता लगा रहता है. ताजमहल के सामने बैठ कर वे फोटो खिंचवाना नहीं भूलते हैं. ताजमहल के साथ फतेहपुरी-सीकरी भी घूमने की अच्छी जगह है.

 

मुंबई जाने से पहले लखनऊ में एक साल जम कर घूमा. हाइटैक होते इस शहर में हजरतगंज, जनपथ, परिवर्तन चौक और गोमती का किनारा मेरे फेवरेट स्पौट हैं. घूमने के अलावा यहां का नौनवेज खासतौर से टुंडे के कबाब खाना कभी नहीं भूलता.

-प्रकाम्य भदौरिया, पुणे

वाराणसी में घूमना हमेशा से ही पहली पसंद रहा है. सब से अच्छी बात यह है कि यहां आ कर प्राचीन भारत का सांस्कृतिक स्वरूप और बदलते भारत का आधुनिक चेहरा एकसाथ देखने को मिल जाता है. यहां के घाटों में जा कर सुकून का एहसास होता है.    

-गौरव तिवारी, भरतपुर

रिश्तेदारी के चलते फैमिली के साथ झांसी घूमने का मौका मिला. यहां के ऐतिहासिक स्मारक इतने अनूठे हैं कि उन्हें देखते ही लगता है उसी दौर में आ गए हैं. यहां के दुर्ग और हवेली गजब की वास्तुकला के नमूने हैं. 

-बरदानी सिंह, दिल्ली

दिल्ली से आगरा बहुत दूर नहीं है इसलिए महीने में एक बार तो आगरा सपरिवार घूमती ही हूं. ताजमहोत्सव के दौरान ताजमहल जाने का तो मजा ही अलग है. साथ में फतेहपुर-सीकरी भी जरूर जाती हूं. काफी यादगार अनुभव मिलता है यहां घूमने पर. 

-जसमीत कौर, दिल्ली

 

वादियों का प्रदेश उत्तराखंड

शीतल आबोहवा, हरेभरे मैदान और खूबसूरत पहाडि़यां, ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने यहां अपने अनुपम सौंदर्य की छटा दिल खोल कर बिखेरी है. यही वजह है कि देशी और विदेशी पर्यटक यहां अनायास खिंचे चले आते हैं और सुकून अनुभव करते हैं. अपनी इन्हीं खूबियों के चलते उत्तराखंड घुमक्कड़ों की चहेती जगह है.

भारत के राज्यों में उत्तराखंड पर्यटन के लिहाज से अद्वितीय है. राज्यभर में पूरे साल देशविदेश के सैलानियों का तांता लगा रहता है. यहां पर्यटन स्थलों की भरमार है, प्राकृतिक खूबसूरती है, हरियाली है, पर्वत हैं, झीलें हैं, कलकल करती नदियां हैं.

नैनीताल

नैनीताल की बड़ी खासीयत यहां के ताल हैं. इसी कारण नैनीताल को तालों का शहर भी कहा जाता है. यहां पर कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर मजा लिया जा सकता है. काठगोदाम, हल्द्वानी और लालकुआं नैनीताल के करीबी रेलवे स्टेशन हैं. इन स्टेशनों से पर्यटक बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से नैनीताल पहुंच सकते हैं. यह हनीमून कपल के लिए पसंदीदा जगह है.

नैनीताल को अंगरेजों ने हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. नैनीताल शहर के बीचोंबीच नैनी  झील है. इस  झील की बनावट आंखों की तरह की है. यहां पर वोटिंग का मजा लिया जा सकता है. इसी कारण इस को नैनी और शहर को नैनीताल कहा जाता है. काठगोदाम नैनीताल का सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. काठगोदाम से नैनीताल के लिए जब आगे बढ़ते हैं तो ज्योलिकोट में चीड़ के घने वन दिखाई पड़ते हैं. यहां से कुछ दूरी पर कौसानी, रानीखेत और जिम कौर्बेट नैशनल पार्क भी पड़ते हैं. 

ज्योलिकोट कई पहाडि़यों से घिरी हुई जगह है.  गरमियों के सीजन में नैनीताल में रुकने की जगह नहीं मिलती, ऐसे में जिन लोगों को एकांत पसंद हो वे नैनीताल घूम कर ज्योलिकोट में रुक सकते हैं. यहां पर ठहरने के लिए कई हिल रिजोर्ट हैं. यहां के जंगलों में खूबसूरत पक्षियों के कलरव को सुना जा सकता है.  सीजन में बर्फबारी को भी यहां से देख सकते हैं. नैनीताल के आसपास कई खूबसूरत जगहें हैं, जहां घूमने का मजा भी लिया जा सकता है.

दर्शनीय स्थल

भीमताल : इस की लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 175 मीटर है. भीमताल की गहराई 50 मीटर तक है. भीमताल के 2 कोने तल्लीताल और मल्लीताल के  दोनों कोने सड़क से जुडे़ हैं. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 किलोमीटर है.

नौकुचियाताल : यह भीमताल से 3 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व की ओर 9 कोनों वाला ताल है. नैनीताल से इस की दूरी 26 किलोमीटर है. नौकुचियाताल की खासीयत इस के टेढ़ेमेढे़ कोने हैं. ये 9 कोने किसी को एकसाथ दिखाई नहीं देते हैं. 

सातताल : यह कुमाऊं इलाके का सब से खूबसूरत ताल है. इतना सुंदर कोई दूसरा ताल नहीं है. इस ताल तक पहुंचने के लिए भीमताल से हो कर रास्ता गुजरता है. भीमताल से इस की दूरी 4 किलोमीटर है. नैनीताल से यह 21 किलोमीटर दूर स्थित है.  साततालों में नलदमयंती ताल सब से अलग है. 

खुर्पाताल : यह नैनीताल से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.  इस ताल का गहरा पानी इस की सब से बड़ी सुंदरता है.  यहां पर पानी के अंदर छोटीछोटी मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है. इन को रूमाल के सहारे पकड़ा भी जा सकता है. खुर्पाताल के साफ और स्थिर पानी में पहाड़ों की सुंदरता को देखा जा सकता है.

रोपवे : यह नैनीताल का सब से प्रमुख आकर्षण है. यह स्नोव्यू पौइंट और नैनीताल को जोड़ता है. यह मल्लीताल से शुरू होता है. यहां पर 2 ट्रौलियां हैं जो सवारियों को ले कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हैं. रोपवे से पूरे नैनीताल की खूबसूरती को देखा जा सकता है. नैनीताल का माल रोड यहां का सब से आधुनिक बाजार है. माल रोड पर बहुत सारे होटल, रेस्तरां, दुकानें और बैंक हैं.

कौसानी

कौसानी को भारत की सब से खूबसूरत जगह माना जाता है. कौसानी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से 53 किलोमीटर उत्तर में बसा है. यह बागेश्वर जिले में आता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है. कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए रेल मार्ग से पहले काठगोदाम आना पड़ता है. यहां से बस या टैक्सी के द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली के आनंद विहार बस स्टेशन से कौसानी के लिए बस सेवा मौजूद है. अपने खूबसूरत प्राकृतिक नजारे और आकर्षण के चलते कौसानी घूमने वालों को अपनी ओर खींचती है. बर्फ से ढकी नंदा देवी चोटी का नजारा यहां से भव्य दिखाई देता है.

दर्शनीय स्थल

कौसानी में सब से अच्छी घूमने वाली जगह यहां के चाय बागान को माना जाता है. यहां आने वाले यहां की चाय की खरीदारी करना नहीं भूलते हैं. यहां के अनासक्ति आश्रम को गांधीजी का आश्रम भी कहा जाता है. यह आश्रम अध्ययन कक्ष और पुस्तकालय देखने वालों को आकर्षित करता है.

कौसानी से बर्फ से ढके पहाड़ों को भी देखा जा सकता है. यहां से चौखंबा, नीलकंठ, नंदाघुंटी, त्रिशूल, नंदादेवी, नंदाखाट, नंदाकोट और पंचकुली शिखर देखे जा सकते हैं.     

देहरादून                            

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शिवालिक पहाडि़यों में बसा एक बहुत ही खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इस को दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाके सा होता है पर शाम ढलते ही यहां का तापमान कम हो जाता है. देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगायमुना नदियां बहती हैं. इस के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाडि़यां हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्यप्राणियों को भी देखा जा सकता है. देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिक्षा संस्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां के स्कूलों में भारतीय सैन्य अकादमी, दून स्कूल और ब्राउन स्कूल प्रमुख हैं.

दर्शनीय स्थल

सहस्रधारा : देहरादून में घूमने के लिए कई जगहें हैं. जो यहां आता है वह मसूरी जरूर घूमने जाता है. घूमने के हिसाब से देखें तो सहस्रधारा सब से करीब की जगह है. सहस्रधारा गंधक के पानी का प्राकृतिक स्रोत है. देहरादून से इस की दूरी 14 किलोमीटर है. जंगल से घिरे इस इलाके में बालदी नदी में गंधक का स्रोत है.  इस का पानी भर कर लोग घरों में ले जाते हैं. कहते हैं कि गंधक का पानी स्किन की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है.

गुच्चू पानी : सहस्रधारा के बाद गुच्चू पानी नामक जगह भी देखने लायक है. यह शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गुच्चू पानी जलधारा है. इस का पानी गरमियों में ठंडा और जाड़ों में गरम रहता है. गुच्चू पानी आने वाले लोग अनारावाला गांव तक कार या बस से आते हैं. 

खलंग स्मारक : देहरादून से सहस्रधारा जाने वाले रास्ते के बीच ही खलंग स्मारक बना हुआ है. यह अंगरेजों और गोरखा सिपाहियों के बीच हुए युद्ध का गवाह है.

चंद्रबदनी :  देहरादून- दिल्ली मार्ग पर बना चंद्रबदनी एक बहुत ही सुंदर स्थान है. देहरादून से इस की दूरी 7 किलोमीटर है. यह जगह चारों ओर पहाडि़यों से घिरी हुई है. यहां पर एक पानी का कुंड भी है. अपने सौंदर्य के लिए ही इस का नाम चंद्रबदनी पड़ गया है.

लच्छीवाला : देहरादून से 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बसी इस खूबसूरत जगह को लच्छीवाला के नाम से जाना जाता है. जंगल में बहती नदी के किनारे होने के कारण यहां पर लोग घूमने जरूर आते हैं.

कालसी : देहरादून- चकराता रोड पर 50 किलोमीटर की दूरी पर कालसी स्थित है. यहां पर सम्राट अशोक के प्राचीन शिलालेख देखने को मिल जाते हैं. यह लेख पत्थर की बड़ी शिला पर पाली भाषा में लिखा है. पत्थर की शिला पर जब पानी डाला जाता है तभी यह दिखाई देता है.

चीला वन्यजीव संरक्षण उद्यान : गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 1977 में चीला वन्य संरक्षण उद्यान बनाया गया था. यहां पर हाथी, टाइगर और भालू जैसे तमाम वन्य जीव पाए जाते हैं. नवंबर से जून का समय यहां घूमने के लिए सब से उचित रहता है. देहरादून से यहां आने के लिए अपने साधन का प्रयोग करना पड़ता है.

मसूरी

मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां पर लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है. मसूरी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. देहरादून तक आने के लिए देश के हर हिस्से से रेल, बस और हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है. मसूरी हिमालय पर्वतमाला की शिवालिक श्रेणी में आती है. इस के उत्तर में बर्फ से ढके पर्वत दिखते हैं और दक्षिण में खूबसूरत दून घाटी दिखती है. 

मुख्य आकर्षण

गन हिल : मसूरी के करीब दूसरी ऊंची चोटी पर जाने के लिए रोपवे का मजा घूमने वाले लेते हैं. यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है. यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है. रोपवे की लंबाई केवल 400 मीटर है. गन हिल से हिमालय पर्वत शृंखला देखा जा सकता है.

म्युनिसिपल गार्डन :  मसूरी का कंपनी गार्डन आजादी से पहले तक बोटैनिकल गार्डन कहलाता था.  कंपनी गार्डन क ा  निर्माण भूवैज्ञानिक डा. एच फाकनर लोगी ने किया था. 1842 के आसपास उन्होंने इस जगह को सुंदर उद्यान में बदल दिया. इसे कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन कहा जाने लगा.

कैमल बैक रोड : कुल 3 किलोमीटर लंबी यह रोड रिंक हौल के समीप कुलीर बाजार से शुरू होती है. यह लाइब्रेरी बाजार पर जा कर खत्म होती है. इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है. सूर्यास्त का दृश्य बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है.

कैंपटी फौल : यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. यह मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत  झरना है. यह चारों ओर ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. कैंपटी फौल में नहाने के बाद पर्यटक अपने को तरोताजा महसूस करते हैं.

मसूरी  झील : मसूरी- देहरादून रोड पर मूसरी  झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. पैडल बोट से  झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है.

वाम चेतना केंद्र : टिहरी बाईपास रोड पर लगभग 2 किलोमीटर दूर एक नया पिकनिक स्पौट बनाया गया है. यहां तक पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. इस पार्क में वन्यजीव जैसे घुरार, कंणकर, हिमालयी मोर और मोनल आदि रहते हैं.

दर्शनीय स्थल 

यमुना ब्रिज : मसूरी से 27 किलोमीटर चकराता-बारकोट रोड पर यमुना ब्रिज स्थित है. यह फिशिंग के लिए सब से अच्छी जगह है. परमिट ले कर यहां फिशिंग की जा सकती है.

चंबा : मसूरी से लगभग 56 किलोेमीटर दूर चंबा स्थित है. इस को टिहरी भी कहते हैं. यहां पहुंचने के लिए लोगों को जिस सड़क से हो कर गुजरना पड़ता है वह फलों के बागानों से घिरी है. वसंत के मौसम में फलों से लदे वृक्ष देखते ही बनते हैं.

ट्रैकिंग का मजा

मसूरी-नागटिब्बा : मसूरी से नागटिब्बा मार्ग की दूरी लगभग 62 किलोमीटर है. नागटिब्बा से हिमालय की चोटी के शानदार दृश्य को देखा जा सकता है. यहां से पंथवाडी, नैनबाग और कैंपटी फौल की दूरी को कवर किया जा सकता है.

मसूरी-धनौल्टी : 26 किलोमीटर लंबे मसूरीधनौल्टी मार्ग पर हिमालय की चोटियों और घाटी के कुछ दिल दहला देने वाले दृश्य दिखाई देते हैं.

अल्मोड़ा                             

यह उत्तराखंड का सब से खास शहर है. हल्द्वानी, काठगोदाम और नैनीताल से बस या टैक्सी से यहां पहुंचा जा सकता है.

दर्शनीय स्थल

भवाली के रास्ते से जब अल्मोड़ा के लिए जाया जाता है तो रास्ते में कैंची जगह पड़ती है. यह भवाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर है. प्रकृति का आनंद लेने वाले पर्यटकों के रुकने के लिए यहां पर धर्मशालाएं बनी हैं. कैंची से आगे गरमपानी नामक छोटी सी जगह है. यहां पर्यटक खानेपीने के लिए रुकते हैं. यहां का पहाड़ी खाना घूमने वालों को खूब पसंद आता है. इस से कुछ आगे बढ़ने पर खैरना आता है. खैरना मछली के शिकार के लिए बहुत प्रसिद्ध है. अल्मोड़ा के किले पर्यटकों को बहुत अच्छे लगते हैं. कालीमठ अल्मोड़ा से 5 किलोमीटर दूर है. इस के एक ओर से हिमालय दिखाई देता है तो दूसरी ओर अल्मोड़ा शहर दिखता है. यहां घंटों बैठ कर प्राकृतिक सौंदर्य को निहारा जा सकता है.

अल्मोड़ा से 3 किलोमीटर दूर सिमतोला पिकनिक स्पौट है. अल्मोड़ा के राजकीय संग्रहालय के साथ ही साथ यहां का ब्राइट ऐंड कौर्नर भी घूमने वाली खास जगह है. यहां से उगते और डूबते सूरज को देखना अद्भुत लगता है. यह जगह बस स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर है. लालबाजार में वूलेन क्लौथ लेना पर्यटक नहीं भूलते हैं.

 

देहरादून और आसपास के पर्यटन स्थल बहुत खूबसूरत हैं. देहरादून के शैक्षिक संस्थान भी देखने लायक हैं. इन जगहों की हस्तकला बहुत अच्छी लगती है. यहां के गांव में रहने वालों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. सरकार को इन के विकास के लिए कुछ करना चाहिए.

-प्रियंका अग्रवाल, वाराणसी

मसूरी में कैमल बैक रोड सब से अच्छी लगती है. 3 किलोमीटर लंबी इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है. सूर्यास्त का दृश्य यहां से बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है.

-वत्सला पांडेय, लखनऊ

उत्तराखंड मु झे विदेशी पर्यटन स्थल और कश्मीर से भी ज्यादा अच्छा लगता है. यहां जब बर्फ पड़ती है तो बहुत बेहतर मौसम होता है. यहां चाय के बागान देखने को मिलते हैं. सीढि़योंदार खेत यहां की पहचान हैं. इतना हराभरा और प्रदूषणमुक्त वातावरण कहीं और नहीं दिखता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है.

-अनीता मिश्रा, लखनऊ

कश्मीर : हसीन वादियां बुलाएं बारबार

जम्मूकश्मीर की खूबसूरत वादियां और बर्फीले पहाड़ सैलानियों को बारबार यहां आने के लिए मजबूर करते हैं. इन गरमियों में आप भी जम्मूकश्मीर की फिजाओं में पर्यटन के नए अनुभवों से वाबस्ता हो कर मन और तन को सुकून दे सकते हैं.

आतंक के लंबे सिलसिले के बावजूद आज भी कश्मीर में दुनियाभर के सैलानी पहुंचते हैं और डल झील से ले कर गुलमर्ग तक सैरसपाटे करते हैं. अपने पहाड़ी स्वभाव और अपने मूल व्यवसाय के कारण यहां के लोग सैलानियों को सिरआंखों पर बैठाते हैं.

जम्मूकश्मीर हिमालय की बर्फीली पहाडि़यों पर भारत के मुकुट जैसा सजा हुआ है. अलगअलग ऊंचाइयों वाले इस के 3 हिस्से हैं. निचले हिस्से वाला जम्मू, मध्य हिस्से वाला कश्मीर और सब से ऊंचे हिस्से वाला लद्दाख.

जम्मू और श्रीनगर जाने के लिए दिल्ली से पठानकोट के रास्ते पहुंचा जा सकता है, जबकि लद्दाख के लिए दिल्ली से मनाली के रास्ते से हो कर जाया जा सकता है. श्रीनगर के लिए जम्मू के रास्ते से और लेह व लद्दाख को मनाली के रास्ते से दिल्ली और चंडीगढ़ से सीधी बसें हैं. लेह वाली बसें मनाली से आगे केलंग में एक रात के लिए रुकती हैं. मुसाफिर आसपास के होटलों में ठहरते हैं. पर्यटन विभाग की बसों के यात्री पर्यटक तंबुओं में ठहरते हैं.

श्रीनगर

श्रीनगर यानी सौंदर्य का नगर. समुद्रतल से 1,730 मीटर की बुलंदी पर यह कश्मीर का सब से बड़ा नगर है. यह  झेलम और डल झील के खूबसूरत किनारों पर बसा हुआ है. एक विशाल और मैदानी भूखंड के रूप में श्रीनगर चारों ओर फैली पर्वतमालाओं से घिरा है. यहां के सुंदर बाग, कलात्मक इमारतें, देवदार और चिनार के पेड़ इसे वास्तव में धरती पर एक बहुत ही खूबसूरत रूप देते हैं. गुलमर्ग, पहलगाम और सोनमर्ग इस रूप में नगीनों जैसे लगते हैं. हर कहीं लोकल बसों से जुड़े श्रीनगर में टैक्सी और तिपहिया कदमकदम पर उपलब्ध हैं. डल झील के विशाल विस्तार के आरपार जाने के लिए हर कोने पर शिकारे और नौकाएं मिलती हैं. डलगेट पर सुस्ताते मुसाफिर अपने कार्यक्रम बनाते मिलते हैं.

दर्शनीय स्थल

डल झील और डलगेट : यह झील नगर के पूर्व में 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है. कभी इस का विस्तार 28 वर्ग किलोमीटर था. डलगेट इस  झील का वह पहला छोर है, जहां सैलानी सब से ज्यादा घूमतेफिरते हैं.

श्रीनगर के केंद्र लालचौक से डलगेट ढाई किलोमीटर है. पर्यटक स्वागत केंद्र पास ही है. यहां ठहरने के लिए हर प्रकार के होटल, गैस्टहाउस, हाउसबोट और मकान बड़ी संख्या में मौजूद हैं. रेस्तराओं की कतारें लगी हैं. मुख्य स्थानों पर सेना व पुलिस की मौजूदगी सैलानियों को निश्ंिचत रखती है.  झील के टापू पर बना नेहरू पार्क सब को आकर्षित करता है. पास ही चारचिनार नामक नन्हा टापू है. श्रीनगर के तमाम मशहूर बाग डल झील के तटों से जुड़े हैं. डल झील से बनी नगीन  झील भी दर्शनीय है.

निशात बाग :  झील के दाहिने किनारे पर बना यह सब से बड़ा मुगल गार्डन है. नगर से 8 किलोमीटर दूर यह बाग फूलों, फौआरों और पेड़ों से सजा हुआ है. इस की दूसरी ओर से पर्वत दिखाई देते हैं.

शालीमार बाग : इसे जहांगीर ने अपनी बीवी नूरजहां के लिए 1616 में बनवाया था. निशात बाग से 4 किलोमीटर आगे एक पहाड़ की तलहटी पर यह फूलों व वनों से मालामाल बाग है. फौआरे और सीढ़ीदार  झरने इसे अनोखा रूप देते हैं. निशात बाग की तरह ही यहां से भी सैलानी सामने की पर्वतमालाओं और डल झील के विस्तार को देख सकते हैं.

बोटैनिकल गार्डन : शालीमार बाग से डलगेट की ओर लौटते हुए एक संपर्क मार्ग से कुछ ही मिनट में यहां पहुंचा जा सकता है. मखमली भूखंडों के बीच पहाड़ की ढलान पर फैले इस वनस्पति पार्क में दुनियाभर के अनोखे फूल, विविध वनस्पतियां और पेड़ मौजूद हैं. यहां एक छोटी  झील में नौकाविहार किया जा सकता है.

चश्मे शाही : इस बाग को शाहजहां ने बनवाया था. बोटैनिकल गार्डन के दाईं तरफ यह बाग अनोखी खूबसूरती का एक नमूना है.

परी महल : यह महल पहले बौद्ध मठ था. शहर से 11 किलोमीटर दूर इस जगह को बाद में शाहजहां के बेटे दारा शिकोह ने सूफी शिक्षाकेंद्र बनाया. यहां से डल झील को नए रूप में देखा जा सकता है.

सुलेमान पहाड़ : यह नगर से 1 हजार फुट की ऊंचाई पर है. यहां से श्रीनगर शहर, डल झील, बागों और बर्फीले पहाड़ों को देखना रोमांचक है.

हजरत बल : डलगेट से 6 किलोमीटर दूर  झील के पश्चिम तट पर और निशात बाग के बिलकुल सामने यह शाहजहां की बनवाई मसजिद है. इस के पीछे अकबर का बनवाया नसीम बाग है, जिस में चिनार के बहुत पुराने पेड़ हैं. यहां बैठ कर कुदरत के नजारों को देखना दिलचस्प है.

लाल चौक : यह श्रीनगर का प्रमुख बाजार है. यहां स्थानीय लोगों को भारी संख्या में देखा जाता है. इस के इर्दगिर्द शहर के अनेक बाजार हैं. लाल चौक क्षेत्र में सस्ते दामों में कपड़े, जूते और सजावट के सामान खरीदे जा सकते हैं.

बाहरी दर्शनीय स्थल

गुलमर्ग : श्रीनगर से गुलमर्ग 52 किलोमीटर दूर समुद्रतल से 2,730 मीटर की ऊंचाई पर है. वास्तव में यह फूलों और मखमली भूखंडों से सजी नूरानी घाटी है. वैसे यहां पानी की कमी नहीं है क्योंकि चारों ओर देवदारों और बर्फ से ढके पहाड़ों से गुलमर्ग तक पानी आता है, जिस से कुछ तालाब बनाए गए हैं.

सोनमर्ग : श्रीनगर-लेह मार्ग पर सोनमर्ग 86 किलोमीटर दूर कश्मीर की आखिरी घाटी है. सिंध नदी के किनारे समुद्रतल से 2,740 मीटर की ऊंचाई पर इस का समूचा इलाका सोने जैसी रंगत के फूलों से सजा हुआ है. इसे खूबसूरत और खतरनाक ढलानों के लिए भी जाना जाता है. यहां से जोजिला पास, कारगिल और लद्दाख के लिए रास्ता जाता है.

पहलगाम : जम्मूश्रीनगर मार्ग पर अनंतनाग है, जहां से 42 किलोमीटर दूर स्थित पहलगाम को रास्ता जाता है. लिद्दर नदी के तट पर बसे पहलगाम का अर्थ ‘गड़रियों का गांव’ है. कहा जाता है कि ईसा ने यहां अपने अज्ञातवास के कुछ वर्ष बिताए थे. यहां बर्फीले पर्वत, घने जंगल, सुंदर वन,  झरने, मखमली भूखंडों पर बहती जलधाराएं और कुदरत के करिश्मे एक नजर में देखे जा सकते हैं. श्रीनगर से 61 किलोमीटर दूर मट्टन नामक जगह पहलगाम जाने वालों के लिए अच्छा विश्रामस्थल है. यहां एक सुंदर झरना भी है.    -सैन्नी अशेष

 

लेह लद्दाख

हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से सटा लेह व लद्दाख भले ही आम लोगों की नजरों में छिपा हुआ हो लेकिन पर्यटकों के लिए लद्दाख नया नहीं है. पर्वतारोहण के लिए यह इलाका दशकों से आकर्षण का केंद्र है. लेह व लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य के दुर्गम इलाके हैं. विदेशी पर्यटकों का हमेशा से ही लद्दाख में आवागमन रहा है लेकिन आम लोगों के लिए लद्दाख तब से आकर्षण का केंद्र बना जब से फिल्म ‘थ्री इडियट’ में लद्दाख की हसीन वादियों के कई  दृश्यों का फिल्मांकन दिखाया गया. खासतौर पर पेंगगांग जहां पर खूबसूरत बीच में समुद्र के पानी में तीनों रंगों का संगम है और चारों तरफ पहाडि़यों की चादर है. इसी तरह वह स्कूल जहां पर आमिर खान बच्चों को पढ़ाते हैं. वह खूबसूरत स्कूल भी दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है.

लद्दाख जाना लोगों को मुश्किल लगता था क्योंकि आम लोगों की यह धारणा रही है कि वहां पर आतंकवादियों का बसेरा है. लेकिन अब पिछले कुछ सालों से लेह लद्दाख भी लोगों के बीच प्रसिद्ध हो रहा है. कुछ लोगों में यह धारणा भी थी कि लद्दाख भारत के बाहर है और वहां जाने के लिए पासपोर्ट लगता है. लेकिन अब ये सारी गलत धारणाएं दूर हो गई हैं और अब तो ट्रैवलिंग सर्विस और विमान सेवा की बदौलत लेह व लद्दाख जाना आसान और संभव भी हो गया है.

रास्ते खुले हों तो मनाली के रास्ते दिल्ली से लेह की बसें 1,045 किलोमीटर के रास्ते पर रोज आतीजाती हैं. बस या टैक्सी से मनाली से लेह तक का सफर बड़ा रोमांचक है.

मैं ऐसे समय में लद्दाख पहुंची जब वहां पर सिंधु नदी पर सिंधु त्योहार मनाया जाता है. इस अवसर पर वहां सांस्कृतिक ढंग से नाचगाना, लोकनृत्य, पोलो मैच आदि का आयोजन किया जाता है.

सिंधु उत्सव का आनंद उठाने के बाद जब मैं ने लेहलद्दाख की हसीन वादियों का आनंद उठाने के लिए यात्रा शुरू की तो मैं ने पहाड़ों की कटीली वादियों के बीच ज्यादातर बौद्ध स्तूप पाए जो तकरीबन 500 साल पुराने थे. पहाड़ों की चोटियों से घिरे लद्दाख की खूबसूरती देखते बनती थी.

कई जगहों पर पथरीले पहाड़ों पर बर्फ की चादर सी बिछी थी. लद्दाख की यात्रा के दौरान मुलतानी मिट्टी के पहाड़ के अलावा हमें जो मुख्य आकर्षण देखने को मिले वे थे सफेद रंग का बना हुआ शांति के प्रचार के लिए जापानी बुद्धिस्ट हिल टौप चैंगस्पा का बनाया हुआ शांति स्तूप, लेमायक हैफिस, हिक्से अल्ची, लेह का महल जोकि 17वीं शताब्दी में बना और उस में तिब्बत की कलाकृतियां देखने को मिलती हैं. हौल औफ फेम म्यूजियम जिस में लद्दाख की सांस्कृतिक कलाकृतियां, गौडेस तारा, पुरानी बंदूकें और पुराने सिक्के आदि का अच्छा संग्रह है.

लेह मार्केट में खूबसूरत मफलर, खूबसूरत लद्दाखी गहने, मास्क, प्रेयर व्हील आदि सजे हुए थे. हिमस मोनैस्ट्री वहां की प्रसिद्ध विशाल मोनैस्ट्री है. इस के अलावा एक जगह डबल हम्प है जहां अलग प्रकार के लद्दाखी ऊंट पाए जाते हैं. इन ऊंटों की खासीयत यह है कि इन के बाल सिल्क जैसे होते हैं और ये ऊंचाई में अन्य ऊंटों के मुकाबले अलग होते हैं. 

कहां ठहरें

लेह के मुख्य बाजार, कारजू लेन, पर्यटन कार्यालय रोड, चांग्स्पा बाजार, शांति स्तूप रोड और आसपास के बाजारों में काफी होटल और गैस्टहाउस हैं. इस के अलावा कई लोगों ने अपने घरों में भी सैलानियों के लिए ठहरने की व्यवस्थाएं कर रखी हैं.

-आरती सक्सेना

 

पटनीटौप

जम्मू से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पटनीटौप घने देवदार, चीड़ के जंगल, कलकल करते  झरने, बर्फ से ढकी चोटियों और भीड़भाड़ से दूर कम आबादी वाला स्थान है. चिनाब की घाटी का सौंदर्य, मनलुभावन वादियां और कोहरे के बीच यहां का प्राकृतिक सौंदर्य सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है. पटनीटौप पहुंचने के लिए जम्मू और कटरा से नियमित बस सेवा के साथसाथ टैक्सी भी मिलती है.

यहां गरमी की छुट्टियों में लोग सर्दियों का मजा उठाते हैं. सर्दियों में यहां पैराग्लाइडिंग और स्कीइंग का अलग ही आनंद होता है. यहां आ कर सैलानी गोल्फ खेलने का भी लुत्फ खूब उठाते हैं. पटनीटौप में ठहरने के लिए राज्य पर्यटन विभाग के कई टूरिस्ट बंगले और होटल हैं.

दर्शनीय स्थलों में किस्तवाड़ एक अच्छा ट्रैकिंग स्थल है. पटनीटौप से 17 किलोमीटर दूर सनासर की खूबसूरती बेमिसाल है. प्याले के आकार की शांत व सुरम्य इस घाटी के चारों ओर हरेभरे मैदान हैं.

पटनीटौप की पर्वतश्रेणियों की ढलान पर मनोरम स्थान ‘बटोट’ चिनाब की घाटियों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है. पटनीटौप से लगभग 11 किलोमीटर दूर शिवगढ़ मरीजों के स्वास्थ्य लाभ के लिए उपयुक्त जगह है क्योंकि यहां की हवा व पानी बहुत शुद्ध हैं.

 

फिल्मों में कश्मीर की हसीन वादियां देख कर मेरा मन वहां जाने के लिए उतावला था इसलिए शादी के बाद हनीमून मनाने वहीं गए. वाकई वहां पहुंच लगा कि वहां की हसीन वादियों में बिताए हसीन पल कभी नहीं भूल सकते.

-सरिता कश्यप, नई दिल्ली

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