विदेश यात्रा के लिए जब हम ने थाईलैंड और सिंगापुर का चुनाव किया तो मन चिहुंक उठा और इस के लिए निश्चित तारीख को मैं और मेरी ननद का परिवार नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 पर पहुंचे. हवाई यात्रा के लिए 3 घंटे पहले हवाई अड्डे पर हाजिर होना पड़ता है. औपचारिकताएं पूरी करने में काफी वक्त लगता है. आखिर औपचारिकताएं समाप्त हुईं और हम विमान में अपनी सीट पर विराजमान हो गए. कुछ ही पल बाद जहाज ने उड़ान भरी.
हम सुबह थाईलैंड की राजधानी बैंकौक पहुंच गए. इस पर्यटन यात्रा में मेरे साथ मेरे पति व मेरी ननद का परिवार भी था. थाईलैंड हमारे देश से समय में डेढ़ घंटे आगे है. हमारा टूर एजेंट हमारी प्रतीक्षा में खड़ा था. हम सामान सहित बड़ी सी टैक्सी में बैठ गए. अब हम थाईलैंड के एक छोटे से शहर पटाया की तरफ जा रहे थे. लगभग सवा घंटे के सफर के बाद हम पूर्वारक्षित होटल ‘इबिस’ पहुंचे. वहां अपने कमरे में 2 घंटे आराम करने के बाद हमें नहानेधोने में 2 घंटे और लग गए. क्षुधा शांत करने के बाद मन हुआ कि चलो पटाया शहर घूमा जाए.
दर्शनीय स्थल
पटाया की टुकटुक : पटाया के बारे में बहुत सुन रखा था. आजकल लगभग हर बड़ी कंपनी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए अपने उपभोक्ताओं को ‘सेल्स प्रमोशन’ का ‘टैग’ लगा कर उन्हें थाईलैंड का निशुल्क टूर दे रही है. भारी तादाद में नौजवान, प्रौढ़ सभी यहां मस्ती मारने आते हैं. मु झे बहुत उत्सुकता थी यह जानने की कि आखिर ऐसा क्या खास है यहां जो सब यहां की यात्रा को लालायित रहते हैं.
हम होटल से बाहर आए. मालूम हुआ, यहां 3 लेन हैं. लेन 1 यानी बीच लेन, लेन 2 जहां हमारा होटल था और लेन 3 जहां अन्य दर्शनीय स्थल थे. हम ने लेन 2 से टुकटुक लिया और उस में बैठ गए. उसे ‘बीच लेन’ पर चलने को कहा. टुकटुक यानी ऐसा टैंपू जिस में ड्राइवर का बंद केबिन होता है और पीछे आमनेसामने 2 लंबी सीट होती हैं. उन सीटों पर 15-20 लोग एकसाथ बैठ सकते हैं. सड़क पर दुकानें सजी थीं. स्थानीय लड़कियां छोटेछोटे परिधानों में सजीधजी घूम रही थीं. दूध सी काया, छोटे कद और दबी नाक वाली चिंकिया हुस्न की परियां मालूम हो रही थीं.
कुछ देर बाद हमारा गंतव्य स्थल आ गया. हम टुकटुक से उतरे और किराया चुकाया. यहां की मुद्रा ‘भाट’ है जो रुपए के मुकाबले सस्ती है. अब हम जोमटिंग बीच पर पहुंचे. दिसंबर के अंतिम सप्ताह की भीड़ का दबाव. क्रिसमस और नववर्ष की छुट्टियां होने के कारण अंगरेज सैलानी अधिक संख्या में नजर आ रहे थे. वे समुद्र में गोते लगा कर मस्ती कर रहे थे. कुछ सैलानी कुरसियों पर अधलेटे धूप का मजा ले रहे थे. सीफूड यानी मछली, झींगा आदि तलने की गंध हवा में फैली थी. ताजा कटे फल पैकिंग में बिक रहे थे और नारियल पानी की भी दुकानें सजी थीं. हम भी वहां बिछी आरामकुरसियों पर अधलेटी मुद्रा में पसर गए. मैं गहन दृष्टि से आसपास के माहौल का जायजा लेने लगी.
मेरी दृष्टि आगे की कतार में बैठी एक स्थानीय लड़की पर अटक गई. वह पीठ पर टैटू बनवा रही थी. इतने में एक अंगरेज कहीं से निकल कर आया और उस की कुरसी के साथ सट कर कुरसी लगाई और बतियाने लगा. हमें सम झ में कुछकुछ आ रहा था कि उस अंगरेज ने छुट्टियां व्यतीत करने के लिए लड़की की सेवाएं खरीदी थीं.
इधरउधर देखने पर उस जगह की हकीकत सामने आ रही थी. यहां लड़कियां ही सब काम करती नजर आ रही थीं. होटलों में, बार में, दुकानों पर, हर जगह. इन की पहचान ‘सेविका’ रूप में थी. स्त्री का चैरी रूप यहां प्रमुखता से देखने को मिला.
आगे चलतेचलते हमें भारतीय रेस्तरां दिखाई दिया और हम भूख मिटाने के लिए उस रेस्तरां में चले गए. फिर हम ने वहां से टुकटुक लिया और वापस होटल की ओर चल दिए.
रात का नजारा कुछ और था. चमकदार नियौन बोर्ड, सैलानियों के साथ खूबसूरत थाई लड़कियों का लिपटनाचिपटना, उन्मुक्त वातावरण. अच्छाखासा मेला सा लगा हुआ था. जगहजगह थाई मसाज के बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, ‘यहां का मसाज मशहूर है. हाथों का, पैरों का, जांघों का, बांहों का, पूरे बदन का मसाज. लड़कियों द्वारा मसाज सैलानियों के लिए खास आकर्षण है.’ वहां कुछ भारतीय भी घूम रहे थे. युवाओं की संख्या ज्यादा थी. होटल पहुंचते ही नींद ने आ घेरा.
वौकिंग स्ट्रीट : अगले दिन नाश्ता करने के बाद हम शहर की खूबसूरती को निहारने के लिए तैयार थे. पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि मध्य लेन से टुकटुक लेने के बजाय होटल के पिछवाड़े वाली गली से ‘बीच लेन’ पर पहुंचा जा सकता है. हम पैदल ही चल पड़े. 5-7 मिनट बाद हम ‘बीच लेन’ पर थे. यह ‘शौर्टकट’ हमें पसंद आया. ‘वौकिंग स्ट्रीट’ के बारे में बहुत सुना था. ‘स्ट्रिपटीज शो’ के लिए जानी जाती है यह जगह. बच्चों के साथ यहां घूमना मुनासिब नहीं था, सो हम ने उन्हें खिलापिला कर वापस होटल में छोड़ा और हम दोनों दंपती ‘वौकिंग स्ट्रीट’ के नजारे देखने गए. उस समय रात्रि के 10 बज रहे थे.
हम चारों ने उस तथाकथित परियों की नगरी में प्रवेश किया. एकदम जुदा नजारा. उन्मुक्त व्यवहार करती सैक्स वर्कर्स ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए जगहजगह खड़ी थीं. उन के अश्लील इशारों में खिंचे चले आए नौजवान, अधेड़ पर्यटक अलगअलग देशों से आए हुए थे. दूसरी ओर जवान लड़के सड़क पर शो कर रहे थे. पुरुषों के लिए ऐसी ऐशगाह और वह भी बिना पुलिसिए डर के शायद यहीं संभव थी.
मेरे दिलोदिमाग के झरोखे खटखट खुल गए कि ओह, तो यही वह गली है जो अपनी मांसल अदाओं से मर्दों को बारबार दीवाना बनाती है. यहां का बुलावा आते ही मर्द यहां दौड़े चले आते हैं. सस्ती सेविकाएं, उन का उन्मुक्त व्यवहार, तो फिर उन के जादुई आकर्षण में भला कौन न बंध जाए. न्यूड शोज के बोर्ड जगहजगह चमक रहे थे. लड़कालड़कियों दोनों के अलगअलग शोज भी थे यानी स्त्रियों के मनोरंजन का भी ध्यान रखा जाता है. यहां ‘लेडी बौयज’ भी उपलब्ध थे. कई बार धोखे में ग्राहक लड़कियों की पोशाक पहने लड़कों को ले जाते और फिर सिर पीटते रह जाते. ऐसे कई केस सुनने में आए. इस तरह लुटेपिटे लोग कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते.
थाईलैंड जो कभी निर्धन देशों की कतार में शामिल था, आज काफी संपन्न देशों में गिना जाता है. पटाया के विकास के लिए सरकार ने 16 से 25 वर्ष की लड़कियों को देहव्यापार के लिए लाइसैंस देना शुरू किया, ऐसा सुना गया है. यहां देहव्यापार अवैध नहीं माना जाता. लाइसैंस लो और देह से धन कमाओ. यहां स्त्रियां बहुत काम करती हैं जबकि पुरुष नशा करने के अलावा कोई काम नहीं करते. दलाली उन का मुख्य काम है.
एक बात मु झे और मालूम हुई कि यहां स्कूलों की संख्या बहुत कम है. मसाज करने की ट्रेनिंग ज्यादातर चलन में है जो आजीविका कमाने का अच्छा साधन है. लड़कियों को अच्छी सेविका बनने का प्रशिक्षण दिया जाता है. मसाज कर के, साथ घूमफिर कर, गाइड बन कर, दुकान चला कर या सैक्स वर्कर बन कर लड़कियां अपनी आजीविका कमाती हैं. पर्यटन यहां का मुख्य पेशा है जिस पर जाने कितने परिवार चलते हैं. भारत का 1 रुपया, डेढ़ भाट के बराबर है.
अगले दिन यानी नववर्ष की पूर्व संध्या पर हम दूसरे समुद्री तट पर जाने को तैयार थे. हमारी गाइड जो लड़की थी, हमें कश्ती में ले गई. सब से पहले पैराग्लाइडिंग का लुत्फ उठाने की बारी थी. पंक्तियों में खड़े हो कर लाइफ जैकेट और हैल्मेट लिया.
मैं नील गगन में तैर रही थी. हवा का दबाव बहुत था, इतना अधिक कि मु झे नीचे की ओर खिंचाव महसूस हो रहा था. आहा, विस्मयकारी, ऊपर नीला आसमान, नीचे नीला समंदर और बीचोंबीच तैरती मैं. अद्भुत, कुछ क्षणों के बाद मैं धीरेधीरे विशाल छतरी को ओढ़े नीचे उतर आई और मेरे पांवों को समंदर ने धोया. फिर मैं ने उस खारे पानी की चादर को कमर तक खींच लिया. मछली की तरह मैं थिरक गई. इस रोमांच से बाहर निकल कर मैं ने जाना कि जीवन में इस की भी बहुत जरूरत होती है. अब अंडरवाटर करने की बारी थी. अंडरवाटर यानी समुद्र के पानी में औक्सीजन मास्क लगा कर आधे घंटे तक रहना. मु झे थोड़ा डर लगा. मेरे जीवन का यह पहला अवसर था, इसलिए थोड़ा सा नर्वस थी. मैं जोखिम उठाने को तैयार हो गई क्योंकि गाइड साथ था.
लाइफ जैकेट और औक्सीजन मास्क पहन कर पीठ पर सिलैंडर बांध लिया. रस्सीयुक्त सीढ़ी पर धीरेधीरे पैर रखती मैं समंदर में उतर गई. आसपास तैरती छोटीछोटी मछलियां मु झे छू कर दौड़ जातीं मानो मेरे साथ कबड्डी खेल रही हों. अभी मुश्किल से 5 ही मिनट हुए थे कि मेरी सांस उखड़ने लगी, मेरे कानों में भयंकर पीड़ा उठी. मु झे यों लगा मानो देह का सारा रक्त उमड़ कर मेरे कानों में समा गया हो. मैं कानदर्द से असहज हो उठी. गाइड, जो मेरे साथ ही उतरा था, ने मेरी हालत देख अपनी उंगली से ओके का सिग्नल दिखाया जिसे देख प्रत्युत्तर में मैं ने सिग्नल नहीं दिया. उस ने तुरंत मेरा हाथ थामा और मु झे सीढ़ी की तरफ ले गया. मु झे ऊपर की ओर धकेलने लगा. मैं एकएक सीढ़ी चढ़ ऊपर आ गई. बाहर निकल कर कुरसी पर बैठ गई और हांफने लगी. काफी देर बाद ही मैं सहज हो पाई. इतने में मेरा छोटा बेटा भी बाहर आ गया. बड़ा बेटा अभी अंदर ही था. वह आधे घंटे तक पूरा मजा लेने के बाद बाहर निकला. मु झे अफसोस हुआ कि मैं इस रोमांचक ख्ेल का आनंद नहीं उठा पाई.
वहां समंदर के भीतर वीडियोग्राफी की जा रही थी. बाहर आने पर लोग अपनी सीडी खरीद रहे थे. फोटोग्राफी कर के धन कमाने का बढि़या जरिया मैं ने वहां देखा. वहां से हम बाहर निकल आए और नौका विहार का जम कर लुत्फ उठाया. अब वापस होटल लौटने की तैयारी थी. रात्रिकालीन भोजन के बाद बच्चों को होटल में ही छोड़ कर हम चारों बाहर निकल आए. उस समय रात के 11 बज कर 45 मिनट हो रहे थे. नववर्ष के आगमन में अभी 15 मिनट बाकी थे. रहगुजर से हम फिर ‘बीच लेन’ की ओर चल पड़े. हसीन रात में विदेशी सरजमीं पर चांद की किरणों तले चहलकदमी पुरसुकून दे रही थी. रहरह कर आसमान में आतिशबाजी हो रही थी. चारों तरफ उजाला ही उजाला था. 12 बज चुके थे. वहां मौजूद लोगों के मुख से ‘हैप्पी न्यू ईयर’ की बधाइयां फूटने लगीं. हम ने भी एकदूसरे को नए साल की बधाई दी.
बैंकौक में बुद्ध : 1 जनवरी, नए साल का पहला दिन. हमें थाईलैंड की राजधानी बैंकौक के लिए रवाना होना था. बैंकौक में प्रवेश करते ही नजरें सड़कों पर फिसलीं. सड़कें खुली, साफसुथरी और चमकदार थीं. हमारी टैक्सी शानदार फाइवस्टार होटल ‘रौयल बैंजा’ के आगे रुकी. यही हमारा अस्थायी निवास था. हम ने प्रवेश की औपचारिकता पूरी की. 18वीं मंजिल पर स्थित 2 कमरे हमारे लिए बुक थे. अब आराम करने का समय था क्योंकि अगले दिन सुबह हमें सिटी टूर के लिए निकलना था. 2 जनवरी को हम नाश्ते के बाद सिटी टूर के लिए तैयार थे. मिनी बस में कुछ परिवारों के साथ हम ने घूमने की शुरुआत की. महिला गाइड हमें बुद्ध के मंदिर ले गई. उस के बाद अब हम प्रस्थान के लिए तैयार थे. बस में बैठ कर रास्ते को निहारते गए.
वहां इमारतों पर राजा के बड़ेबड़े फोटोग्राफ लगे थे. राजा भिन्नभिन्न पोशाकों में सुसज्जित था. राजा का महल दिखाते हुए गाइड ने बताया कि यहां प्रजातंत्र है और जनता प्रधानमंत्री को बहुत सम्मान देती है. राजा के भित्तिचित्र वास्तव में शानदार थे.
उस के बाद हमारी बस रत्न तराशने वाली फैक्टरी के बाहर रुक गई. उस कारखाने में सैकड़ों कारीगर भिन्नभिन्न मशीनों पर झुके काम कर रहे थे. इस कारखाने के मालिक टैक्सी चालकों को पर्यटकों को यहां लाने के एवज में निशुल्क पैट्रोल कूपन देते हैं. यही वजह है कि लगभग हर टैक्सी यहां रुकती है. अंदर रत्नजडि़त बेश- कीमती आभूषण शोकेस में सजे प्रशंसकों को अपने मोहपाश में बांध रहे थे. हम भी उन की चकाचौंध में मंत्रमुग्ध हुए जा रहे थे लेकिन उन्हें खरीदने का साहस नहीं था. कुछ रईस उन्हें खरीद रहे थे पर हम उन की कीमत देख ‘आह’ भर कर ही रह गए.
लगभग पौने घंटे बाद हम बाहर आ गए. हम ने गाइड से आग्रह किया कि वह हमें इंदिरा मार्केट में उतार दे. इंदिरा मार्केट भारतीयों की पसंदीदा मार्केट है. चारमंजिला छोटा सा स्थानीय बाजार है. हम ने सभी मंजिलें देखीं. वहां रखी वस्तुएं अधिक महंगी नहीं थीं, मोलभाव खूब चल रहा था. हम ने एक अटैची, 4 डुप्लीकेट मोबाइल और कुछ सोविनियर खरीदे. वहां हिंदी जानने वाले दुकानदार भी थे. सामान पर उड़ती निगाह डाल कर हम गलियों से गुजरते हुए बाहर निकल आए. हम ने टैक्सी ली और रात लगभग 8 बजे हम होटल पहुंचे.
कुछ देर आराम करने के बाद हम नीचे रिसैप्शन पर पहुंचे. भारतीय रेस्तरां के बारे में जानकारी ली. मालूम हुआ कि थोड़ी ही दूर पर कई भारतीय रेस्तरां हैं. हम होटल से बाहर निकले. हमारी खुशकिस्मती कि कुछ ही दूरी पर एक भारतीय रेस्तरां था. हम फौरन उस में प्रविष्ट हुए. हम ने छक कर भोजन किया और तृप्त हो कर बाहर निकल आए.
मसाज का मजा : रात के साढ़े 11 बज रहे थे. बच्चों को होटल में छोड़ हम एक मसाज पार्लर में गए. थाईलैंड 2 बातों के लिए जाना जाता है, हाथी और मसाज. यहां ऐलीफैंट शो अकसर आयोजित किए जाते हैं. मसाज पार्लरों में लगभग हर दूसरा सैलानी स्पा, मसाज आदि का लुत्फ अवश्य उठाता है. उस मसाज पार्लर के 2 हिस्से थे, एक पुरुषों के लिए और दूसरा स्त्रियों के लिए. पैरों की, बाजुओं की या पूरे शरीर की यानी हाफ बौडी मसाज या फुल बौडी मसाज, जैसी चाहे कराइए. थाई लड़कियां अपने हुनर के साथ मौजूद थीं. हम ने हाफ बौडी मसाज कराया. तनमन की थकान पल में छूमंतर हो गई. मसाज का लुत्फ लेने के बाद हमारे कदम अपने अस्थायी रैनबसेरे की ओर बढ़े चले जा रहे थे.
अगले दिन हम सिंगापुर की फ्लाइट पकड़ने एअरपोर्ट की ओर प्रस्थान कर रहे थे.