मेरे ननिहाल में एक गृहस्थ सज्जन रहते थे. उन्होंने भोजन के समय मौनव्रत रख रखा था. भोजन में उन्हें अपेक्षाकृत अधिक समय लगता था. इसलिए उन्हें भोजन परोस कर लोग अलगथलग हो जाया करते थे.
एक दिन की बात है. प्रथम ग्रास लेते ही उन को हरी मिर्च खाने की इच्छा जगी. पास में कोई नहीं था इसलिए न बोलने की स्थिति में लोटाथाली पटकने लगे. आहट पा कर मां दौड़ी आईं. पूछा, क्या लोगे? उन्होंने इशारे से जो बतलाया तो मां समझ नहीं पाईं. मां बारीबारी से गुड़, चटनी, अचार लाला कर रखती थीं, वे उठाउठा कर सबकुछ थाली से बाहर फेंकते जाते. अंतत: उन की पत्नी ने हरीमिर्च ला कर दी तब जा कर उन का गुस्सा शांत हुआ. तब तक वे प्रचुर मात्रा में क्रोधभक्षण कर चुके थे. ऐसा मौनव्रत किस काम का.
एन ठाकुर, दरभंगा (बिहार)
मेरे परिचित के एकमात्र पुत्र के विवाह के 5 वर्ष बाद भी कोई संतान नहीं हुई. डाक्टर से इलाज चल रहा था. उन की पत्नी धर्मभीरु प्रवृत्ति की हैं. कैसी भी स्थितिपरिस्थिति हो, वे वर्ष में एक बार नाथद्वारा दर्शन करने अवश्य जाती हैं.
कुछ समय बाद जब उन की बहू गर्भवती हुई तो वे खुशी से फूली नहीं समाईं, कहने लगीं, ‘‘मैं ने श्रीनाथजी से मन्नत मानी थी, फलस्वरूप, बरसों बाद यह खुशखबरी मिली है.’’
कुछ समय बाद वे जिद करने लगीं कि दर्शन करने चलो क्योंकि मैं ने मन्नत मानी थी कि जैसे ही खुशखबरी मिलेगी, मैं अपनी बहू को दर्शन कराने लाऊंगी और उस से प्रसाद चढ़वाऊंगी. उन के पुत्र ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि बच्चे के जन्म के बाद चलेंगे लेकिन वे कहने लगीं, जो मन्नत मानी जाती है उस का अक्षरश: पालन करना जरूरी है, वरना अनिष्ट हो जाता है. परिवार के लोग आखिरकार उन की जिद के आगे झुक गए और नाथद्वारा गए.
नाथद्वारा उदयपुर के निकट स्थित एक प्राचीन व पौराणिक मंदिर है. पूरे वर्ष वहां भीड़ रहती है. मंदिर के पंडेपुजारी दिनभर में कई बार मंदिर के पट बंद कर देते हैं. पूछने पर बताते हैं कि भगवान स्नान कर रहे हैं, शृंगार कर रहे हैं, भोजन कर रहे हैं, विश्राम कर रहे हैं आदिआदि. नतीजतन, दर्शन करने के लिए धक्कामुक्की की स्थिति बन जाती है. परिचित का परिवार भी इसी भीड़ में घंटों फंसा रहा व बड़ी मुश्किल से वे दर्शन कर पाए.
दर्शन के बाद उन की बहू की तबीयत खराब होने लगी. उदयपुर के अस्पताल में उसे भरती कराना पड़ा, जहां उस का गर्भपात हो गया. एक मूर्खतापूर्ण मान्यता के चलते संतान पाने हेतु वे अब फिर से डाक्टरों के चक्कर काट रहे हैं.
सुधीर शर्मा, इंदौर (म.प्र.)