उत्तराखंड में हजारों लोग धर्म की बलि चढ़ गए. पूजापाठ और तीर्थयात्रा के लोभ में जकड़े धर्मभीरु लोग अब भले ही अपनों को खोने से गमजदा हो कर सरकार को कोस रहे हों पर शायद ही उन्हें धर्म का व्यापार करने वाले पंडेपुरोहितों की सुनियोजित साजिश समझ में आए कि किस तरह से ये लोग पापपुण्य का जाल बिछा कर अपने स्वार्थ के लिए जनता को इन खतरनाक जगहों पर जाने के लिए उकसाते हैं. पढि़ए भारत भूषण श्रीवास्तव की रिपोर्ट.

उत्तराखंड में पहाड़ों पर आई प्रलय सैकड़ों जानें लील गई. सरकार अभी तक जानमाल का सही अनुमान नहीं लगा पाई है. मरने वालों की तादाद हजारों में है. बचाव कार्यों के लिए जहां तक प्रशासन पहुंचा है हर ओर तबाही का मंजर है. 17 जून की देर शाम और 18 जून की सुबह ऐसी प्रलय उठी कि पानी के साथसाथ पहाड़ की मिट्टी और पत्थरों के मलबे का बहाव तेजी से सबकुछ तबाह कर गया. देखते ही देखते जिंदा लोग मलबे में बहने लगे.

प्रत्यक्षदर्शियों को ऐसा लग रहा था मानो पहाड़ पिघल कर तेजी से इंसानों को रौंदता हुआ चल रहा हो. इस वीभत्स कहर से चारों ओर हाहाकार मच गया. इमारतें रेत के महल की तरह भरभरा कर गिर गईं. चारों ओर लाशों के ढेर नजर आने लगे. शाम की आरती के वक्त भक्तों की भीड़ से गुलजार दिख रहा केदारनाथ मंदिर और आसपास का समूचा इलाका श्मशान दिखने लगा.

तबाही का मामला गंभीर दिखने लगा तो सरकार को राहत और बचाव के लिए सेना, आईटीबीपी को तैनात करना पड़ा. फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने के लिए सेना के 20 हैलिकौप्टर लगाए गए. पर्याप्त राहत न मिल पाने के चलते चार धाम यात्रा पर गए लोगों और अन्य जगहों पर बैठे उन के परिजनों का गुस्सा सामने आने लगा. नेताओं के हवाई दौरे शुरू हुए. फंसे हुए लोगों को हर संभव मदद के आश्वासन दिए गए.

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