अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने 2 एकजैसे मामलों में एक ही दिन 2 निर्णय दे कर साबित कर दिया कि वह देश व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं को किस तरह सामाजिक, धार्मिक व सरकारी कट्टरपन से ज्यादा महत्त्व देता है और क्रांतिकारी परिवर्तन का मार्ग हर पल खोले रखने को तैयार है. ये  दोनों मामले समलैंगिकों के अधिकारों से संबंधित हैं.

अमेरिका के कुछ राज्यों में समलैंगिक विवाह काफी दिनों से वैध हैं और शेष में उन्हें वैध करने की मांग जोर पकड़ रही है. एक राज्य, जहां यह विवाह वैध है, वहां 2 विवाहित औरतों में से 1 की मृत्यु हो गई और मरने वाली ने सारी संपत्ति अपनी विधवा साथी को विरासत में दे दी. अमेरिकी फैडरल यानी केंद्रीय कानून के अनुसार, अगर पति या पत्नी अपने जीवनसाथी को विरासत में कुछ छोड़ें तो काफी कम कर लगता है. प्रश्न यह उठा कि केंद्र सरकार, जो अभी समलैंगिक विवाहों को मान्यता नहीं देती, क्या इस विवाह को मानेगी?

मामला अफसरों, अदालतों से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और आश्चर्य की बात यह कि सुप्रीम कोर्ट ने फैडरल सरकार के कानून को बराबरी के सिद्धांत पर खरा न उतरने के कारण अवैध कर दिया.

दूसरा मामला कैलीफोर्निया का है जहां समलैंगिक विवाहों को अवैध कहने वाले एक कानून को राज्य की सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दिया कि जो अधिकार पुरुष व स्त्री को सामान्य विवाह के लिए मिलते हैं, वही पुरुष पुरुष या स्त्री स्त्री विवाहों को मिलेंगे. इस निर्णय की अपील राज्य सरकार ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में नहीं की पर कट्टरपंथियों के एक गुट ने अपील कर दी. परोक्ष रूप में कैलीफोर्निया की अदालत के निर्णय को पक्का करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि इस मामले में राज्य सरकार अपील करती तो सुना जाता.

समलैंगिकता अच्छी है या बुरी, यह छोडि़ए, सवाल निजी स्वतंत्रता का है. समलैंगिकता को बुरा केवल धर्म के कारण कहा जा रहा है. ईसाई, हिंदू, इसलाम धर्म इस पर नाकभौं सिकोड़ते हैं क्योंकि ये उन के पंडेपुजारियों के हितों पर आंच डालते हैं. पर ये सदियों से बन रहे हैं, चाहे कारण जो भी हों.

अमेरिका ने इन्हें विधिवत मान्यता दे कर सिद्ध किया है कि वह देश नई तरह से सोचने को तैयार है और चर्च के नियमों से बाध्य नहीं है. जो विरोध कर रहे थे वे केवल चर्च के इशारे पर कर रहे थे वरना बंद कमरे में क्या हो रहा है, इस से किसी दूसरे को फर्क नहीं पड़ता. निजी मामलों में सरकारों, समाज या धर्म का हस्तक्षेप करने का कोई नैतिक या सामूहिक अधिकार नहीं है. 

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