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प्रियंका की मुहिम

कैंसर के कारण अपने पिता को खो देने वाली प्रियंका चोपड़ा ने मुंबई के नानावती हौस्पिटल में कैंसर पीडि़तों के लिए स्थापित किए गए एक विशेष विभाग का उद्घाटन करते हुए कहा कि पिता को खोना कठिन पल था. कैंसर की वजह से वे हम से दूर हो गए. मैं हमेशा ऐसी मुहिम से जुड़ती रहूंगी. मेरे पिता के नाम पर कैंसर विभाग का नाम होना खुशी की बात है और सभी को इस विभाग से लाभ मिले, यह मेरी ख्वाहिश है.

सुपर मौडल

सुपर मौडल’ शब्द जब किसी लड़की के दिमाग पर छा जाता है तो वह जनूनी बन जाती है और आसमान छूने के लिए वह घर छोड़ कर बौलीवुड का रुख कर लेती है, जहां कुछ लोग उसे सपने दिखा कर उस की आबरू लूट लेते हैं. ‘सुपर मौडल’ भी एक ऐसी ही फिल्म है जिस में पाकिस्तान से बौलीवुड में आई अदाकारा वीना मलिक ने अपनी गुदगुदाती देह से दर्शकों को आकृष्ट करने की असफल कोशिश की है. इस से पहले भी वह अपने हौट फोटोशूट के कारण कई बार चर्चाओं में आ चुकी है. अश्मित पटेल के साथ प्रेम की पींगें बढ़ाती वह ‘बिग बौस’ के चौथे सीजन में चर्चा का विषय बनी थी.

‘सुपर मौडल’ टेलैंट हंट पर बनी फिल्म है. निर्देशक ने बहुत सी मौडल्स को सैक्सी बिकनियां पहना कर परदे पर पेश किया है. उस ने फिल्म को जबरदस्ती थ्रिलर बनाने की भी कोशिश की है.फिल्म शुरू होती है एक वाइन कंपनी के मालिक देव वालिया (हर्ष छाया) से जो अपनी कंपनी के लिए बिकनी शूट कराना चाहता है. इस के लिए फोटोग्राफर मोंटी (अश्मित पटेल) कुछ मौडल्स को ले कर फिजी पहुंचता है. रूपाली (वीना मलिक) की तमन्ना है कि वह सुपर मौडल बने. फिजी पहुंच कर रूपाली मोंटी पर डोरे डालती है ताकि वह सुपर मौडल बन सके. तभी वहां एकएक कर 3 मौडल्स की हत्याएं हो जाती हैं. पता चलता है कि ये हत्याएं जिया नाम की एक मौडल ने की हैं, जो सुपर मौडल बनने की दौड़ में आगे रहना चाहती है. वह रूपाली को भी मारने की कोशिश करती है, मगर रूपाली बच जाती है. हत्यारिन मौडल पुलिस की गिरफ्त में आ जाती है और रूपाली सुपर मौडल बन जाती है. वह मोंटी का हाथ थाम लेती है.

हर्ष छाया जैसा कलाकार अपना टेलैंट नहीं दिखा सका है. वीना मलिक भी फिल्म में अपनी छाप नहीं छोड़ सकी है. फिल्म का निर्देशन कमजोर है. गीतसंगीत बेकार है. फिल्म का छायांकन कुछ अच्छा है.     

सत्या-2

बौलीवुड में अंडरवर्ल्ड पर फिल्में बनाने वालों में रामगोपाल वर्मा उर्फ रामू का नाम टौप पर है. चूंकि अब अंडरवर्ल्ड खामोश है, दाऊद इब्राहीम छिपा फिर रहा है, छोटा राजन ऐक्टिव नहीं है और अबू सलेम जेल में है. रामू का फिल्में बनाने का तौरतरीका बदल गया है. पहले उस की अंडरवर्ल्ड पर बनी फिल्मों में गोलियों की गूंज होती थी, खूब खूनखराबा होता था, लेकिन नई ‘सत्या-2’ में उस ने अंडरवर्ल्ड में चालाकी और शातिराना तरीकों से दबदबा बनाए रखने की बात दिखाई है.

‘सत्या-2’ 1998 में आई ‘सत्या’ का सीक्वल है, मगर यह फिल्म पिछली फिल्म से काफी कमजोर है. पिछली ‘सत्या’ में फिल्म का नायक गोलियां बरसा कर पूरी मुंबई पर राज करता है तो इस फिल्म का नायक एक कंपनी बनाता है. इस कंपनी के खौफ से वह उद्योगपतियों, पुलिस और नेताओं को डरा कर अपना साम्राज्य स्थापित करता है.

फिल्म की कहानी एक सूत्रधार से कहलवाई गई है. सत्या (पुनीत सिंह रत्न) मुंबई आता है और अपने दम पर एक नया अंडरवर्ल्ड बनाता है. वह कहां से आता है, उस का मकसद क्या है, इसे निर्देशक गोल कर गया है. मुंबई में वह अपने दोस्त नारा (अमिर्तियान) के घर पर रहता है. वह एक बिल्डर लाहोटी (महेश ठाकुर) के यहां नौकरी करने लगता है. वह गांव से अपनी प्रेमिका चित्रा (अनायका सोती) को भी बुला लेता है. लाहोटी का साथ पा कर वह उस के विरोधियों को जान से मार देता है.

अपना दबदबा बनाए रखने के लिए सत्या एक कंपनी बनाता है ताकि पैसे वाले लोग कंपनी के नाम से ही खौफ खाने लगें (जैसे लोग दाऊद की डी कंपनी से खौफ खाते हैं). पुलिस को कंपनी के बारे में मालूम होने पर वह हरकत में आ जाती है. वह पहले नारा को पकड़ती है और फिर उस के जरिए सत्या तक पहुंच जाती है.

फिल्म में नायक के चेहरे पर खौफ के भाव पैदा नहीं हो पाते. पुनीत सिंह ने बहुत कोशिश की है कि वह अपनी आंखों से खौफ पैदा कर ले, परंतु सफल नहीं हो सका है. उस की संवाद अदायगी भी कमजोर है.

सत्या का मुंबई आ कर कंपनी बनाने के पीछे क्या मकसद है, यह फिल्म में कहीं नहीं बताया गया है. कभी लगता है, वह भ्रष्ट सिस्टम को खत्म करना चाहता है, उस के अंदर बदले की आग है, वह अपना बदला पूरा करने मुंबई आया है. फिल्म में सिर्फ अंडरवर्ल्ड ही नहीं है, गैंगरेप और मुख्यमंत्री के मर्डर को भी दिखाया गया है.

फिल्म का निर्देशन साधारण है. रामू ने मुख्य किरदार सत्या के लिए पुनीत सिंह का चयन ही गलत किया है. अन्य कलाकारों में महेश ठाकुर को छोड़ कर लगभग सभी नए हैं और कोई भी प्रभावित नहीं करता.

फिल्म में रोमांटिक टच भी है. पुनीत सिंह और अनायका सोती पर एक रोमांटिक गाना फिल्माया गया है. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष कमजोर है. छायांकन ठीकठाक है.

अच्छा ही है कि रामू ने खुद कहा है कि अंडरवर्ल्ड पर यह उन की आखिरी फिल्म है. अब वे भविष्य में अंडरवर्ल्ड पर कोई फिल्म नहीं बनाएंगे.

 

शाहिद

पुलिस द्वारा किसी भी निरपराध व्यक्ति को आतंकवादी करार दे कर जेल में ठूंस देना और उस पर थर्ड डिगरी अपनाना आम हो गया है. ‘शाहिद’ एक ऐसी ही सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है, जिसे निर्देशक ने बिना हेरफेर किए सचाई से बयां किया है.

‘शाहिद’ एक ह्यूमन राइट ऐक्टिविस्ट वकील शाहिद आजमी की जिंदगी पर बनी फिल्म है जिसे 2010 में मुंबई बम धमाकों के बाद गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था जबकि वह बेकुसूर था. जेल में ही रह कर शाहिद (राजकुमार यादव) ने वकालत की पढ़ाई पूरी की.

जेल में उस की मुलाकात वार साब (के के मेनन) से होती है. उस से मिलने के बाद शाहिद को महसूस होता है कि जेल में बंद वह अकेला नहीं है. उस जैसे कई और भी बेगुनाह कैद हैं.

जेल से छूट कर शाहिद वकालत शुरू करता है. वह गरीब बेगुनाहों को जेल से छुड़ाने का संकल्प करता है. कई बेगुनाह लोगों को वह जेल से बाहर निकलवाता है. इस दौरान अपनी जायदाद के केस में मरियम (प्रभलीन संधू) उस से मिलने आती है. शाहिद को उस से प्यार हो जाता है. दोनों निकाह कर के साथ रहने लगते हैं. इसी दौरान शाहिद को जान से मारने की धमकियां फोन पर मिलने लगती हैं. एक दिन कुछ गुंडे धोखे से उसे उस के दफ्तर में बुला कर गोलियों से छलनी कर देते हैं.

इस तरह की सच्ची घटनाओं पर बनने वाली फिल्मों को या तो वितरक नहीं मिल पाते या वे बरसों डब्बों में बंद पड़ी रहती हैं. ‘शाहिद’ जैसी मल्टीप्लैक्स थिएटर्स के लायक फिल्म कोई खास भीड़ नहीं जुटा सकी है.

हालांकि निर्देशक ने शाहिद के किरदार को ईमानदारी से दिखाया है, फिर भी वह दर्शकों को आकर्षित कर पाने में असफल रहा है. राजकुमार यादव का काम काफी अच्छा है. तिग्मांशु धूलिया और के के मेनन साधारण रहे हैं. सरकारी वकील की भूमिका में विपिन शर्मा का अभिनय लाजवाब है.

फिल्म में बौक्स औफिस के लायक कुछ नहीं है.

 

कृष-3

‘कृष-3’ कृष सीरीज का तीसरा भाग है, जिसे राकेश रोशन ने पिछले 2 भागों से आगे बढ़ाया है. फिल्म साइंस फिक्शन पर है जिस में खूब सारा ऐक्शन है, थ्रिल है. फिल्म के कई दृश्य बहुत ही रोमांचक हैं.

राकेश रोशन ने फिल्म बनाने में बहुत मेहनत की है. तकनीकी दृष्टि से फिल्म सुपरहिट है. स्पैशल इफैक्ट्स इतने बढि़या हैं कि अब हम कह सकते हैं कि बौलीवुड वाले हौलीवुड वालों से कम नहीं हैं.

‘कृष-3’ में ‘कृष’ की कहानी को आगे बढ़ाया गया है. ‘कृष’ में खतरनाक सिद्धार्थ आर्य को परास्त कर कृष अपने पिता रोहित मेहरा (रितिक रोशन) और पत्नी प्रिया (प्रियंका चोपड़ा) के साथ रह रहा है. वह मुसीबत के पलों में कृष बन कर लोगों की मदद करता है. एक दिन शहर में एक वायरस लोगों की जान लेने लगता है. देखते ही देखते पूरा शहर वायरस की चपेट में आ जाता है.

यह वायरस एड्स या डेंगू के वायरस की तरह है पर प्रयोगशाला में बनाया गया है ताकि कुछ मिनटों में असर दिखा सके. इस वायरस को हमेशा व्हीलचेयर पर बैठे काल (विवेक ओबराय) और उस की सहयोगी म्यूटैंट काया (कंगना राणावत) ने फैलाया है. काल इस वायरस का तोड़ बेच कर करोड़ोंअरबों रुपए कमाना चाहता है. इस का तोड़ काल के अपने खून के वायरस में ही मौजूद है और कहीं नहीं.

कृष का वैज्ञानिक पिता रोहित कृष के डीएनए से इस वायरस का तोड़ निकाल लेता है. क्योंकि काल और कृष का जन्म एक ही डीएनए से हुआ था. दोनों एक तरह से भाई हैं.

काल को जब इस का पता चलता है तो वह प्रिया को किडनैप कर लेता है. इस के बाद उलझी हुई अविश्वसनीय कहानी है जिस में खूब घमासान होता है. काल कृष को मार डालता है परंतु रोहित मेहरा अपनी नई खोज, ‘सूर्य की किरणों से पुनर्जीवन’ से कृष को जीवनदान देता है, पर खुद उस प्रयोग में मर जाता है.

फिल्म की इस काल्पनिक कहानी में ‘कृष’ को बहुत शक्तिशाली सुपरहीरो दिखाया गया है. निर्देशक ने शक्तिशाली सुपरहीरो के साथसाथ एक शक्तिशाली विलेन की संरचना भी की है जो अधिकांश समय व्हीलचेयर पर ही बैठा रहता है.

फिल्म का निर्देशन अच्छा है, मगर कहानी वही पुरानी है यानी बुराई पर अच्छाई की जीत. पटकथा कमजोर पड़ गई है. फिल्म का कोई दृश्य दिल को छू नहीं पाता.

रितिक रोशन का काम अच्छा है. स्पैशल इफैक्ट्स और ऐनिमेशन के जरिए उसे हवा में उड़ते दिखाया गया है. वह उड़ते जहाज के न खुलने वाले पहियों को अपनी ताकत से खोल कर जहाज को सुरक्षित उतरने में मदद भी करता है. यह सुपरमैन, बैटमैन की तर्ज पर अनियत कहानी है, साइंस फिक्शन नहीं.

प्रियंका चोपड़ा की जोड़ी रितिक के साथ जमती है. कंगना राणावत का काम बहुत बढि़या है. उस ने अच्छे ऐक्शन किए हैं. विवेक ओबराय लकड़ी का पुतला नजर आता है. वह न आंखों से भाव प्रकट कर पाता है न चेहरे से.

फिल्म में दिखाए गए म्यूटैंट्स को लैब में बनते हुए दिखाया गया है. फिल्म का गीतसंगीत औसत है. एक गीत में कंगना राणावत बहुत सुंदर लगी है. एक अन्य गीत ‘रघुपति राघव राजाराम’ में रितिक ने जानेपहचाने स्टाइल में डांस किया है.

फिल्म को चाहे जो प्रचार मिला हो, देखना हो तो इसे रामलीला समझ कर देखें और मस्तिष्क को घर पर छोड़ कर जाएं.

 

वृद्धावस्था अब फिक्र नहीं

आप को जान कर हैरानी होगी कि तेजी से बदलती सामाजिक आर्थिक स्थिति के फलस्वरूप बुजुर्ग बन रहे हैं बाजार की योजनाओं का महत्त्वपूर्ण हिस्सा. बुजुर्गों के खर्च करने की बेफिक्री कैसे बना रही है बुढ़ापे को कारोबार का हिस्सा, बता रही हैं मीरा राय.

सुश्री वी एम सिंह का जन्म आगरा  में हुआ था. वे वहीं पलीबढ़ीं और तालीम हासिल की. नौकरी के सिलसिले में वे मेरठ आईं और मिशन कंपाउंड में एक शानदार मकान ले कर रहने लगीं. शादी उन्होंने की नहीं. बच्चों को पढ़ाने व कहानियां लिखने में उन के दिन गुजरने लगे. आखिरकार बतौर प्रधानाचार्य उन्होंने अवकाश ग्रहण किया. रिटायरमैंट के बाद भी उन्होंने अपने दोनों शौक जारी रखे.

अरसे से एक ही जगह रहते हुए वे महल्ले के लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई हैं. इसलिए जब पिछले दिनों उन्होंने अपने मकान को बेच कर वृद्धाश्रम में जाने की बात कही तो सब को आश्चर्य हुआ. वे कहती हैं, ‘‘मैं 82 वर्ष की हो गई हूं. अब मुझ से अपना काम खुद नहीं होता. मैं चाहती हूं कि कोई मेरी देखभाल करे.’’

‘‘हां, मेरे पास अपनी भांजी के पास आस्ट्रेलिया जाने का विकल्प है. लेकिन सारी जिंदगी तो भारत में रही हूं. अब इस बुढ़ापे में अपनी जड़ें उखाड़ कर नए देश में फिर से जिंदगी शुरू करना मुश्किल काम है. वैसे भी अपरिचित माहौल की तनहाई में मैं जराजरा सी चीजों के लिए अपने रिश्तेदारों की मुहताज नहीं बनना चाहती. साथ ही, अब ऐसे वृद्धाश्रम खुल गए हैं जिन में तमाम आधुनिक सुविधाओं के साथ चहलकदमी के लिए हरेभरे बगीचे, यातायात की व्यवस्था और देखभाल के लिए डाक्टर व नर्स उपलब्ध हैं.’’

जो लोग बाजार के चलन से वाकिफ हैं वे जानते हैं कि बुढ़ापा ऐसा व्यापार अवसर प्रदान कर रहा है जिसे कैश कराना आसान है. यही वजह है कि चतुर व्यापारी नईनई सुविधाओं के साथ आधुनिक ओल्ड ऐज होम खोल रहे हैं यानी अब मार्केट योजना में वृद्ध महत्त्वपूर्ण हो गए हैं. 1999 में सरकार ने वृद्धों के संदर्भ में राष्ट्रीय नीति जारी की थी.

इस समय देश की आबादी एक अरब 25 करोड़ के ऊपर है और इस बड़ी आबादी में 60 साल से ऊपर के वृद्धों की संख्या 7.70 करोड़ है जो कि 9 फीसदी से ज्यादा है. जाहिर है 90 फीसदी आबादी 60 साल के कम उम्र वालों की है. इसलिए भारत एक युवा राष्ट्र है. उस की सोच, वर्क कल्चर और नई तकनीक के साथ उस का जनूनी रिश्ता व आत्मविश्वास सब कुछ युवा है. लेकिन डब्लूएचओ के एक अनुमान के मुताबिक भारत में वृद्धों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है.

वृद्धों की बढ़ती संख्या

अप्रैल 2012 में जारी डब्लूएचओ के अनुमान के मुताबिक आने वाले 5 से 7 सालों में 60 साल से ऊपर वालों की तादाद 5 वर्ष के बच्चों की आबादी से भी ज्यादा बड़ी हो जाएगी और अगर अनुमान को 2050 तक ले जाया जाए तो विशेषज्ञों के मुताबिक वृद्धों की संख्या किशोरों से भी ज्यादा होगी, जिस का मतलब यह है कि वर्ष 2050 तक वृद्धों की आबादी 30 करोड़ से भी ऊपर होगी. वृद्धों की आबादी में होने वाली इस वृद्धि का मुख्य कारण यह है कि भारतीयों की औसत आयु 58 वर्ष (1990) से बढ़ कर 63 वर्ष (2011) हो चुकी है और अंदाजा है कि यह 2021 तक बढ़ कर 76 साल हो जाएगी.

यह बात ध्यान में रखनी आवश्यक है कि वृद्धों के लिए बाजार में 2 श्रेणियां हैं. एक का निशाना 55 से 65 बरस के लोग हैं यानी वे जिन्होंने कमाना बंद न किया हो और दूसरी का निशाना 65 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति हैं यानी वे जो अपनी पैंशन या बच्चों पर आश्रित हैं.

आय की निरंतरता

बहरहाल, वृद्धों को व्यापार योजना का हिस्सा सिर्फ इसलिए नहीं बनाया जा रहा है कि उन की जनसंख्या में इजाफे की संभावना है. असल बात यह है कि देश की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में बदलाव आ रहा है. संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, कम से कम शहरी भारत में तो यही हाल है. ज्यादातर वृद्धों को अपने ही दम पर जिंदगी गुजारनी पड़ रही है. फिर रोजगार का जो भूमंडलीकरण हुआ है, उस में बच्चे अपने मांबाप से अलग रहने के लिए मजबूर हैं. साथ ही पिछले एक दशक के दौरान वेतनों में महत्त्वपूर्ण इजाफा हुआ है. इसलिए आज जो लोग रिटायर हो रहे हैं, उन के पास खर्च करने के लिए उन से ज्यादा पैसा है जो अब से 5 साल पहले रिटायर हुए थे.

वृद्ध केवल अपनी ज्यादा पैंशन के कारण ही बाजार की योजना का हिस्सा नहीं बन रहे हैं बल्कि एक कारण यह भी है कि उन में आय की संभावित निरंतरता है. आज से 20 साल पहले जब लोग वृद्ध हुआ करते थे तब एक तरह से उन के आय के तमाम स्रोत बंद हो जाया करते थे जबकि पिछले 1 दशक में यह ट्रैंड बड़ी तेजी से बदला है. पिछले 1 दशक में रिटायरमैंट के बाद निवेश योजनाओं की बाजार में इस कदर बाढ़ आ गई है कि अब लोग बहुत आसानी से अपने बुढ़ापे का प्रबंधन कर रहे हैं. चूंकि आय बढ़ी है और तमाम महत्त्वपूर्ण सफलताएं हासिल करने की उम्र भी कम हुई है, इस वजह से बुढ़ापे पर दबाव कम हो रहा है.

औद्योगिक संगठन एसोचैम के मुताबिक, 1980 के दशक में 60 साल से ऊपर के लोगों के पास उपभोक्ता बाजार में खर्च करने के लिए महज कुल उपभोक्ता खर्च की सिर्फ 3 से 5 फीसदी रकम हुआ करती थी जबकि आज 30 खरब रुपए के सालाना उपभोक्ता बाजार में 60 साल से ऊपर के लोगों के पास कुल क्रय शक्ति का 6 से 8 फीसदी तक है. यानी आज वृद्धों की सालाना तकरीबन 2 खरब रुपए अपने मन से खर्च करने की हैसियत है जिस के अगले 1 दशक में 5 से 7 खरब रुपए सालाना तक बढ़ जाने की संभावना है. आज के वृद्धों के पास इसीलिए बाजार में खर्च करने के लिए पैसा और इच्छाओं के साथसाथ योजनाएं भी हैं क्योंकि तमाम महंगाई का रोना रोने के बावजूद आज की युवा पीढ़ी के पास खर्च करने के लिए अपना पैसा भी है और अपनी योजनाएं भी.

गौरतलब है कि विकसित देशों में वृद्धों की संख्या अधिक है. वहां उन को ध्यान में रख कर मार्केट योजना बनाना सामान्य सी बात है. इस सिलसिले में जापान बेहतरीन मिसाल है. जापान की कुल जनसंख्या में 60 बरस से ऊपर के लोग 21 प्रतिशत हैं और इस में 2015 तक 10 से 15 फीसदी और इजाफे का अनुमान है. वहां वर्तमान में वृद्धों से संबंधित व्यापार में 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपए यानी 23 बिलियन डौलर लगे हैं जो 2015 तक 38 बिलियन डौलर तक पहुंच सकते हैं.

भारत का दवा व्यापार प्रतिवर्ष औसतन 12 से 15 प्रतिशत बढ़ रहा है. लेकिन वृद्धों के लिए जो दवाएं हैं उन के व्यापार में 20 से 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है. मसलन, कोलैस्ट्रौल कम करने की दवाइयों की मांग 108.6 करोड़ नग है. यह आंकड़ा भी 5 साल पुराना है जो वर्तमान में बढ़ कर 160 करोड़ नग के आसपास पहुंच चुका है. इस में प्रतिवर्ष 53.35 फीसदी का इजाफा हो रहा है. इसी तरह 475.2 करोड़ की ऐंटीडायबिटिक में 30 प्रतिशत, 187.4 करोड़ की ऐंटीडिप्रेसैंट में 16.9 प्रतिशत, 806.8 करोड़ की ऐंटीरुमैटिक में 13.9 प्रतिशत और 400 करोड़ की ऐंटीहाइपरटैंशन में हर साल 27 प्रतिशत का इजाफा हो रहा है.

स्वास्थ्य योजनाओं का चलन

वृद्धों के लिए सेहत सब से ज्यादा चिंता का विषय है. इसलिए ज्यादातर अस्पताल व पैथोलौजी लैब्स ऐसे पैकेज दे रहे हैं जिन का निशाना वृद्ध या वृद्ध होते जा रहे व्यक्तियों को बनाया जा रहा है. मसलन, मैक्स हैल्थ केयर ने कुछ साल पहले डायबिटीज और हाइपरटैंशन के लिए क्रोनिक केयर प्रोग्राम शुरू किया था. आज इस से मिलतीजुलती और थोड़ी महंगी योजना का 25 हजार से ज्यादा लोग फायदा उठा रहे हैं.

शुरू में यह योजना 5 हजार रुपए से नीचे की थी, आज यह 10 हजार से ले कर 20 हजार रुपए सालाना की है. तमाम कंपनियां, जिन्होंने आज स्वास्थ्य योजनाओं को निवेश योजनाओं की तरह बेचने में कामयाबी हासिल कर ली है,  कई नियमित रोगों का एक पैकेज बना कर आकर्षक योजना के साथ बेच रही हैं.

कुछ साल पहले अपोलो ग्रुप ने वृद्धों के लिए एक स्वास्थ्य पैकेज तैयार किया था. जिसे विदेश में बसे बच्चे अपने मातापिता को गिफ्ट कर सकते थे. इस सेवा का नाम ‘आशीर्वाद’ रखा गया था. इस के तहत पूर्ण चैकअप, अपोलो द्वारा साप्ताहिक कौल, डाक्टर की मासिक विजिट और 6 माह में जल्दी से किया गया चैकअप शामिल किया गया था. उस समय इस सब की कीमत 7,500 रुपए रखी गई थी. देखते ही देखते यह पैकेज हाथोंहाथ बिक गए थे. बाद में अपोलो द्वारा इस तरह की कई और योजनाएं बेची गईं और आज सिर्फ अपोलो ही नहीं, बल्कि देश के कई दूसरे प्राइवेट अस्पताल भी ऐसी दर्जनों योजनाओं को बेच रहे हैं और तथ्य की बात यह है कि ये तमाम योजनाएं खूब बिक रही हैं जो 6 हजार रुपए से ले कर 50 हजार रुपए सालाना तक की हैं.

वृद्धों पर सर्जरी में भी रिकौर्ड इजाफा हो रहा है, खासकर आंख, दिल, घुटने और कूल्हों के औपरेशन में. 2000-2001 में मोतियाबिंद के 20 लाख औपरेशन हुए थे जो 2001-02 में बढ़ कर 35 लाख हो गए और आजकल औसतन सालाना 42 लाख मोतियाबिंद के औपरेशन हो रहे हैं. चूंकि देश में आंख के तमाम औपरेशन विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं और कई संगठनों के द्वारा बड़े पैमाने पर कैंप लगवा कर हो रहे हैं इसलिए आंख के औपरेशन में तो बहुत कम पैसा खर्च हो रहा है लेकिन तमाम दूसरी सर्जरियों में पिछले 3 दशकों के मुकाबले आज 200 फीसदी ज्यादा खर्च हो रहा है.

स्वास्थ्य के प्रति आम लोगों में आई चेतना के कारण देश में वृद्धों की सर्जरी में खासा इजाफा हुआ है. यह भी आधुनिक स्वास्थ्य कारोबार का बड़ा आधार बन गई है.

टूटते संयुक्त परिवार

वृद्धों की हैल्थकेयर वहां बेहतर हो सकती है जहां डाक्टर और नर्स 24 घंटे उपलब्ध हों. इसलिए ऐसी सुविधाएं अब ओल्डऐज होम में भी दी जा रही हैं. साथ ही, संयुक्त परिवार के टूटने या एक जीवनसाथी के मरने के कारण अकेलेपन को दूर करने के लिए या सही देखभाल न कर पाने के कारण बच्चे अपने मातापिता को वृद्धाश्रम में धकेल रहे हैं. अभी तक ओल्डऐज होम का निर्माण व संचालन समाजसेवी संगठन करते थे लेकिन अब इस क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियां भी तेजी से कूद रही हैं.

हेल्पऐज इंडिया के अनुसार, ओल्डऐज होम में 5 वर्षों के दौरान 42.14 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. 1998 में ऐसे गृह 700 थे जो 2002 में बढ़ कर 995 हो गए. आज इस तरह के घरों की संख्या कई हजार पहुंच गई है.

दिलचस्प बात है कि चैरिटेबल फ्री सर्विस की तुलना में ‘पेड होम’ सैक्टर में वृद्धि हुई है. दिल्ली में एनडीएमसी भी 2 पेड होम चलाती है. इन में से एक ‘संध्या’ है जिस में सिंगल रूम का चार्ज 2,500 रुपए, ट्विन शेयरिंग 1,450 रुपए और खाना 800 रुपए का है. हाल के 2 सालों में महंगाई में हुई वृद्धि के चलते एनडीएमसी के इन पेड होम्स के चार्ज में 20 फीसदी से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है. लेकिन इस इजाफे के बाद भी ये दूसरे प्राइवेट पेड होम के मुकाबले सस्ते हैं.

वृद्ध आहिस्ताआहिस्ता ओल्डऐज होम को ही वरीयता देते जा रहे हैं. 2016 तक वृद्धों की तादाद 1130 लाख होने का अनुमान है, जिन में से 15 प्रतिशत मध्यवर्ग के होंगे और अपना खर्च खुद उठाने की स्थिति में होंगे. अगर इन में से 1 फीसदी ने भी ओल्डऐज होम में रहना तय किया तो 1.7 लाख कमरों की आवश्यकता होगी.

गौरतलब है कि अब वृद्धों और बीमारों की देखभाल करने के लिए भी ट्रेंड लोग उपलब्ध हैं. ये लोग प्रतिदिन के हिसाब से अलगअलग शहरों में अलगअलग चार्ज करते हैं, जैसे दिल्ली के कई प्राइवेट अस्पताल प्रतिदिन 700 रुपए से ले कर 1500 रुपए चार्ज की नर्स उपलब्ध करवाते हैं. जबकि इंदौर, भोपाल और चंडीगढ़ में यही चार्ज स्थानीय दरों के हिसाब से वसूले जाते हैं.

अस्पतालों ने होमकेयर सेवा विभाग भी खोल लिए हैं. बेंगलुरु के होसमत अस्पताल ने तो यह सेवा 17 साल पहले ही शुरू कर दी थी. यह अस्पताल ट्रेंड स्टाफ के साथसाथ मशीनें व फर्नीचर भी किराए पर उपलब्ध कराता है. यह अस्पताल वृद्धों की देखभाल के लिए लोगों को टे्रनिंग भी दिलाता है.

वृद्धों को निशाना बना कर व्यापार करना लाभदायक तो है लेकिन वृद्धों को कोई चीज बेचना सब से मुश्किल काम है. उन्होंने एक आदत के तहत जिंदगी गुजारी होती है, उसे बदलना आसान काम नहीं होता. फिर वे दामों (कीमत) को ले कर भी खासे चिड़चिड़ाते नजर आते हैं और मुश्किलों में रहना उन के जीवन का हिस्सा बन चुका होता है. लेकिन यह आज के दौर की बात नहीं है. यह खाका आज से 20 साल पहले के वृद्धों का हुआ करता था जिन का जीवन आमतौर पर संघर्ष से गुजरता था. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आज वृद्ध बाजार के लिए बड़े आसान ग्राहक हो गए हों. आज भी उन्हें कोई सर्विस बेचना उतना आसान नहीं होता. फिर भी पहले के मुकाबले काफी आसान है और फिर यह भी है कि बाजार उन्हें तो अपनी योजनाओं में शामिल कर ही रहा है.

जब कोई दे धमकी

धमकियां कितनी वास्तविक और कितनी दिखावटी हो सकती हैं, यह अंदाज लगाना मुश्किल है. पुरानी कहावत है कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं. लेकिन सदा ऐसा नहीं होता. कई बार ये गरजने वाले बादल औरों को भयंकर बारिश आने का संकेत दे कर भयभीत कर देते हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं जो इस कहावत को झूठा सिद्ध करते हैं.

तरहतरह की धमकियां

संध्या ने कभी सोचा भी न था कि उन की फूल सी खूबसूरत बेटी का यह हश्र होगा. उन की आंखों के सामने उस घटना की याद बारबार ताजा हो जाती है जब उन के ही ?सब से विश्वासपात्र घरेलू नौकर ने उन से उन की बेटी का हाथ मांगा था जिसे सुन कर वे आगबबूला हो उठी थीं और फिर एक दिन सुबहसुबह संध्या ने अपनी बेटी की दिल दहलाने वाली चीखें सुनीं. जब वे दौड़ कर अपनी बेटी के पास पहुंचीं तो उन की फूल सी बेटी तेजाब से जले चेहरे को लिए पीड़ा से चीख रही थी.

संध्या ने नौकर की धमकी को गीदड़भभकी समझा था. यदि वे उसे थोड़ी गंभीरता से लेतीं तो शायद यह दुर्घटना न होती.

विद्या की 3 लड़कियां ही थीं. उन्हें 1 पुत्र की चाह थी. सारे उपचार करने के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. एक बार उन की एक परिचिता ने उन्हें एक साधु की महिमा से अवगत कराया तो वे उस साधु के पास जाने के लिए तुरंत तैयार हो गईं. साधु से मिल कर वे बहुत प्रभावित हुईं. विद्या का विश्वास उस साधु के प्रति तब ज्यादा अटल हो गया जब उन्हें 1 पुत्र की प्राप्ति हो गई. अब तो वे अपना सारा समय साधु की सेवा में ही बिताने लगीं और बच्चों व पति की उपेक्षा करने लगीं.

विद्या के पति अपनी पत्नी को समझातेसमझाते हार गए लेकिन विद्या का रवैया नहीं बदला.विद्या के पति पहले तो यह सोच कर टोकाटाकी नहीं करते थे कि शायद पुत्र का जन्म होने के बाद उन की पत्नी का उस साधु के प्रति सेवाभाव फीका पड़ जाएगा. शायद यह उन की भूल थी. प्रतिदिन दफ्तर से आने पर घर पर ताला, बच्चों का भूखेप्यासे गलियों में खेलना और पड़ोसियों के व्यंग्यपूर्ण परिहास से उन का अंतर्मन आहत हो उठता था. वे अपनी पत्नी को समझातेसमझाते हार गए लेकिन विद्या का रवैया नहीं बदला.

एक रात विद्या के पति ने अपनी पत्नी को समझाने के लिए धमकीरूपी अस्त्र का इस्तेमाल करने की सोची. वे समझते थे कि धमकी का उन की पत्नी पर मनोवैज्ञानिक असर जरूर पड़ेगा. उन्होंने अपनी पत्नी को धमकी दे डाली कि यदि उस ने साधु की संगत नहीं छोड़ी तो वे आत्महत्या कर लेंगे. लेकिन विद्या पर साधु महिमा का भूत सवार था. वे कड़े शब्दों में उन का परिहास करने लगीं, ‘‘कोई भी आदमी ढिंढोरा पीट कर नहीं मरता है.’’

यह बात उन के पति को कांटे की तरह चुभ गई और उन्होंने उसी समय छत के पंखे से लटक कर जान दे दी.

विद्या अपने पति की धमकी को कोरी धमकी समझ कर दूसरे कमरे में चली गईं. थोड़ी देर बाद जब वे कमरे में वापस आईं तो उन्हें लगा जैसे सारा भूमंडल हिल गया हो. उन के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. विद्या ने अपने पति की धमकी को गंभीरता से नहीं लिया था जिस का दुष्परिणाम उन के पति ने आत्महत्या कर के दिखा दिया.

हालात से समझौता

कुछ धमकियां इस प्रकार की भी होती हैं जिन से समझौता कर के व्यक्ति को उस समय तो नहीं लेकिन शायद भविष्य में संतुष्टि जरूर मिलती है. श्वेता एक ब्राह्मण परिवार की कन्या थी. उस के परिवार के लोग उस का विवाह एक संपन्न और सुखी परिवार में करना चाहते थे, जैसी कि हर मातापिता की इच्छा होती है. एक संपन्न, खातेपीते परिवार से श्वेता के रिश्ते की बात चली लेकिन वे काफी दानदहेज की मांग कर रहे थे. श्वेता के मातापिता किसी भी हालत में इस रिश्ते को हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे.

उधर श्वेता, प्रमोद नाम के एक लड़के से प्यार करती थी. जब उस ने मातापिता की पसंद से शादी करने से इनकार किया तो घर में एक भूचाल सा आ गया क्योंकि परिवार के सदस्य सजातीय वर को प्राथमिकता दे रहे थे. श्वेता ने परिवार वालों को धमकी दी कि यदि उस की शादी प्रमोद से नहीं की गई तो वह अदालत में शादी कर लेगी. दूसरी तरफ परिवार वाले श्वेता को धमकी देते कि यदि उस ने प्रमोद से विवाह किया तो वे लोग जहर खा कर मर जाएंगे.

यह बात जब श्वेता के पिता के घनिष्ठ मित्र को पता चली तो वे उन के घर आए और उन्होंने उन्हें समझाया कि यदि इस परिस्थिति से समझौता कर लिया जाए तो वे मानसिक व आर्थिक परेशानी से बच सकते हैं. यदि श्वेता द्वारा पसंद किया गया लड़का स्वावलंबी है, स्वस्थ है और अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी है तो विवाह करने में कोई हर्ज नहीं है. यह बात श्वेता के मातापिता को जंच गई और उन्होंने विवाह की स्वीकृति दे दी.

इस तरह कई बार हालात से समझौता कर के व्यक्ति भविष्य में आने वाली परेशानियों से बच सकता है बशर्ते उस पर संपूर्ण रूप से सोचसमझ कर विचार किया जाए. अपने साथसाथ दूसरे व्यक्ति की भावनाओं, इच्छाओं का भी खास खयाल रखा जाए. इस से एक तो आप मानसिक परेशानी और पारिवारिक मनमुटाव से बच जाएंगे, दूसरे, औरों के मन में अपने लिए सम्मान का जज्बा पैदा कर सकेंगे.

कानूनी मदद

जयंत के तलाक का मामला अदालत में विचाराधीन था. उसे प्रतिदिन फोन पर धमकी मिलती थी कि यदि उस ने मुकदमा वापस न लिया तो उसे जान से मार डाला जाएगा. लगातार ऐसी धमकी सुन कर वह काफी परेशान रहने लगा.  रात में भी वह आराम से सो नहीं पाता था. घर से बाहर अकेले जाने में वह कतराता था. घर, दफ्तर और मित्रों के बीच भी वह बुझाबुझा सा रहता.

एक दिन जब उस के एक मित्र ने उस से उस की परेशानी का कारण पूछा तो उस ने अपनी समस्या उस को बताई. जयंत के दोस्त ने धमकी की रिपोर्ट पुलिस थाने में करने की सलाह दी. थाने में रिपोर्ट के बाद  पुलिस की सहायता से धमकी देने वाले व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही की गई. उस के बाद ही जयंत सामान्य हो पाया.

धमकी की धमक

जरूरी नहीं है कि आप को जो धमकी दी जा रही है उसे वह धमकी देने वाला व्यक्ति पूरा ही करेगा. लेकिन निरंतर धमकी मिलते रहने से व्यक्ति कई प्रकार की मानसिक परेशानियों से ग्रस्त हो जाता है और अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है.

कोई भी व्यक्ति बिना किसी वजह के धमकी नहीं देता है. मामूली सी बात भी धमकी का कारण बन सकती है, जैसे छोटी सी बात बड़े झगड़े का रूप धारण कर लेती है. उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति सड़क पर जा रहा है और जल्दीजल्दी में उस की टक्कर सड़क पर चल रहे दूसरे व्यक्ति से हो गई. यह छोटी सी घटना उग्र रूप धारण कर सकती है.

निजी दुश्मनी, पैसे का लेनदेन, प्यारमुहब्बत की असफलता और जरजमीनजोरू धमकी के मुख्य कारण होते हैं.

मीना अजय से प्यार करती थी. लेकिन इस विषय में मीना के परिवार वालों को किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं थी. अपनी बेटी के प्यार से अनभिज्ञ उस के मातापिता ने उस का रिश्ता अन्य जगह तय कर दिया. उधर, अजय को जब पता चला कि मीना के विवाह की तिथि में मात्र 5 दिन रह गए हैं तो उस ने मीना को धमकी दी कि यदि उस ने किसी और से विवाह किया तो वह उस के विवाह के दिन उस के घर के सामने खुदकुशी कर लेगा.

मीना ने जब यह सुना तो घरपरिवार की बदनामी के डर से अजय की धमकी से डर गई और अजय के साथ चुपचाप भाग गई. कुछ दिन बाद अजय ने उस से शादी करने से मना कर दिया.

असर

ऐसा नहीं है कि जिस व्यक्ति को धमकी मिल रही है, उस ने धमकी से त्रस्त हो कर जो अनौचित्यपूर्ण व्यवहार किया है उस से केवल उसी को सामाजिक, मानसिक एवं व्यावहारिक आघात पहुंचता है बल्कि उस व्यक्ति से आत्मीय तौर पर जुड़े व्यक्तियों की भी मानसिक स्थिति काफी दयनीय हो जाती है. परिवार में सामाजिक मानमर्यादा भंग होने का खतरा इतना हावी हो जाता है कि परिवार का हर सदस्य तनाव व परेशानी महसूस करता है.

धमकी मिलने पर स्वयं कोई फैसला नहीं करना चाहिए बल्कि अपने आत्मीय लोगों से सलाहमशवरा करना चाहिए और अपनी परेशानी दूर करने के लिए उन की सहायता लेनी चाहिए. धमकी मिलने पर उसे अपने मन में रख कर चिंता नहीं करनी चाहिए बल्कि खुलेतौर पर सब की राय ले कर उपयुक्त निर्णय लेना चाहिए और उस धमकीरूपी समस्या से छुटकारा पा लेना चाहिए.  

सूक्तियां

व्यवहार
सुंदर मुखड़े के मुकाबले बरताव के भले तौरतरीके कहीं ज्यादा प्रभावपूर्ण होते हैं. सुंदर मुखड़ा लोगों को सिर्फ अपनी ओर खींचता है जबकि भले तौरतरीके हमेशा के लिए उन्हें अपने बंधन में बांध लेते हैं.

यश
यश लूटने में एक बुराई भी है. अगर हम इसे अपने पास रखना चाहते हैं तो हमें अपनी जिंदगी लोगों को खुश करने में और यह जानने में बिता देनी होगी कि उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं.

विवाह
विवाह कभी विफल नहीं होते. यह तो व्यक्ति है, जो विफल होता है. विवाह तो केवल व्यक्ति को उस के वास्तविक रूप में प्रकट कर देता है.

मित्रता
मनुष्य जो स्वयं दूसरे को दे, उसे भूल जाए और जो दूसरों से ले, उसे सर्वदा याद रखे – मित्रता की जड़ यही है.

महान
जो मनुष्य अपने हर्ष को छिपा सकता है वह उस से महान है जो अपने दुख को छिपा सके.

अंधविश्वास
दुर्बलता, भय और अज्ञान मिल कर अंधविश्वास को जन्म देते हैं.

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