बौलीवुड में अंडरवर्ल्ड पर फिल्में बनाने वालों में रामगोपाल वर्मा उर्फ रामू का नाम टौप पर है. चूंकि अब अंडरवर्ल्ड खामोश है, दाऊद इब्राहीम छिपा फिर रहा है, छोटा राजन ऐक्टिव नहीं है और अबू सलेम जेल में है. रामू का फिल्में बनाने का तौरतरीका बदल गया है. पहले उस की अंडरवर्ल्ड पर बनी फिल्मों में गोलियों की गूंज होती थी, खूब खूनखराबा होता था, लेकिन नई ‘सत्या-2’ में उस ने अंडरवर्ल्ड में चालाकी और शातिराना तरीकों से दबदबा बनाए रखने की बात दिखाई है.

‘सत्या-2’ 1998 में आई ‘सत्या’ का सीक्वल है, मगर यह फिल्म पिछली फिल्म से काफी कमजोर है. पिछली ‘सत्या’ में फिल्म का नायक गोलियां बरसा कर पूरी मुंबई पर राज करता है तो इस फिल्म का नायक एक कंपनी बनाता है. इस कंपनी के खौफ से वह उद्योगपतियों, पुलिस और नेताओं को डरा कर अपना साम्राज्य स्थापित करता है.

फिल्म की कहानी एक सूत्रधार से कहलवाई गई है. सत्या (पुनीत सिंह रत्न) मुंबई आता है और अपने दम पर एक नया अंडरवर्ल्ड बनाता है. वह कहां से आता है, उस का मकसद क्या है, इसे निर्देशक गोल कर गया है. मुंबई में वह अपने दोस्त नारा (अमिर्तियान) के घर पर रहता है. वह एक बिल्डर लाहोटी (महेश ठाकुर) के यहां नौकरी करने लगता है. वह गांव से अपनी प्रेमिका चित्रा (अनायका सोती) को भी बुला लेता है. लाहोटी का साथ पा कर वह उस के विरोधियों को जान से मार देता है.

अपना दबदबा बनाए रखने के लिए सत्या एक कंपनी बनाता है ताकि पैसे वाले लोग कंपनी के नाम से ही खौफ खाने लगें (जैसे लोग दाऊद की डी कंपनी से खौफ खाते हैं). पुलिस को कंपनी के बारे में मालूम होने पर वह हरकत में आ जाती है. वह पहले नारा को पकड़ती है और फिर उस के जरिए सत्या तक पहुंच जाती है.

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