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कांग्रेस की दुर्गति

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है वह बहुत ही सुखद और संतोषजनक है. दिल्ली में केवल 8 और राजस्थान में 21 सीटें पा कर सत्ता में बैठी पार्टी का ऐसा हाल 1977 के बाद पहली बार हुआ है जो यह दर्शाता है कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस के प्रति जिस तरह का गुस्सा जनता में भरा था, वैसा ही आज है.

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जनता के पास विकल्प न थे. इसलिए भारतीय जनता पार्टी जीती पर दिल्ली में मात्र 9 माह पुरानी पार्टी, आम आदमी पार्टी को जनता ने इतनी सीटें जिता दीं कि भारतीय जनता पार्टी भी सत्ता सुख न भोग सकी. इन चारों राज्यों के चुनावों में जनमत कह रहा है कि उसे भ्रष्ट सरकार तो हरगिज नहीं चाहिए. राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार चाहे कितने अच्छे कार्य किए हों, उसे दिल्ली की तरह कांगे्रस की होने का दंड भुगतना पड़ा है.

साथ ही आम आदमी पार्टी की विशिष्ट जीत ने जता दिया कि जनता कट्टरवाद का समर्थन कतई नहीं करती. वह अच्छी, सही सरकार चाहती है. छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश की सरकारें चाहे पूजापाठ बेचती रही हों, पर वे दिल्ली की सरकार की तरह बेईमान न थीं कि उन्हें दंड दिया जाए.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र की गठबंधन सरकार को जिस तरह भ्रष्टाचार की लपेट में पकने दिया, वह आश्चर्य की बात रही. और ताजा चुनाव परिणाम यह सिद्ध करते हैं कि नेता का काम सिर्फ भाषण देना नहीं होता, उसे सुप्रबंध करना भी आना चाहिए. वरना कोयले की कोठरी में आग लगेगी तो पूरा मकान स्वाह हो जाएगा.

ये चुनाव इस बात का संकेत हैं कि बेईमान सरकारों के दिन लद गए. अगले चुनावों में कांगे्रस का पत्ता साफ होगा और महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश उस के हाथ से निकल जाएंगे, यह साफ है क्योंकि दोनों भ्रष्टाचार की लपटों से घिरी हैं.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी कोई विशेष सपना न देखे, बहुजन समाज पार्टी के भी अवसर कम हैं. बिहार में नीतीश कुमार को सुरक्षित माना जा सकता है. पंजाब व हरियाणा में बदलाव की गुंजाइश है. आम आदमी पार्टी ने लोगों को बता दिया है कि भ्रष्टाचार को हटाने के लिए जनआंदोलन असफल नहीं होते, वे वोटिंग मशीन से अद्भुत परिणाम दे सकते हैं.

हां, नरेंद्र मोदी को जरूर सदमा लगा होगा कि दिल्ली में भाजपा की सरकार न बन सकी और छत्तीसगढ़ में कांगे्रस की सीट बढ़ गईं. मध्य प्रदेश की जीत शिवराज सिंह चौहान की है जो नरेंद्र मोदी से टक्कर ले रहे हैं और राजस्थान में वसुंधरा राजे की जो अभी मोदी को धन्यवाद दे रही हैं पर उन्हें पलटने में देर न लगेगी.

ये दोनों जीतें नेताओं की अपनीअपनी हैं जो नरेंद्र मोदी की तरह राज्य स्तर के दमदार नेता हैं. वे भाजपा के केंद्रीय नेताओं की तरह अपने को परोसेंगे नहीं, यह पक्का है. दूसरी पार्टियों का सफाया और साथ ही मतदान में वृद्धि भी यह जताती है कि जनता अपने वोट का महत्त्व समझती है और सोचसमझ कर वोट दे रही है. जो जीतेगा उसे यह याद रखना चाहिए.

 

आपके पत्र

सरित प्रवाह, नवंबर (द्वितीय) 2013
संपादकीय टिप्पणी ‘आरएसएस के मोदी’ प्रभावोत्पादक व सराहनीय लगी. आप ने यह बिलकुल ठीक लिखा है कि नरेंद्र मोदी फैक्टर देश पर छा गया है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता है और यह सूखे में बादलों की तरह है. नरेंद्र मोदी पर इतना वादविवाद हो रहा है कि अब ज्यादा कहनेसुनने की गुंजाइश नहीं है क्योंकि मुद्दा नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व नहीं है, उन की शासन सक्षमता नहीं है, उन की नेतृत्व कला नहीं है. मुद्दा तो कट्टर हिंदूवाद की पुनर्स्थापना का है.
आप का यह कहना भी अत्यंत सत्य है कि जनूनियों की भीड़ जनता का मत स्पष्ट नहीं करती. हां, मौजूद लोगों का उत्साह जरूर दर्शाती है. नरेंद्र मोदी ने छिन्नभिन्न होती, दिशाहीन भारतीय जनता पार्टी में एक नई जान फूंकी है. सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और लालकृष्ण आडवाणी से ऊबे लोगों को नरेंद्र मोदी में एक नया उत्साही, वाक्पटु नेता मिला है जो उन की पार्टी को नई ऊर्जा दे रहा है और पार्टी के निराश समर्थक व कार्यकर्ता जोश में आ गए हैं. सच है कि भाजपा में यह बात प्राण फूंकती है.
कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)
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आप की टिप्पणी ‘आरएसएस के मोदी’ पढ़ी. नरेंद्र मोदी की सभाओं में उमड़ती भीड़ आप को मात्र ‘कुंभ’ के अवसर पर एकत्रित होने वाली भीड़ इसलिए लगी क्योंकि ‘नमो’ कट्टरपंथी हों या न हों, मगर आप न केवल भाजपा बल्कि मोदी के भी धुर विरोधी हैं. आप जैसे दिग्भ्रमित मीडिया वालों को वही भीड़, तब वास्तव में भीड़ नजर आने लगती है, जब वह या अन्ना हजारे के आंदोलन स्थलों पर उमड़ती नजर आने लगती है या फिर कोई रैली नीतीश सरीखे तथाकथित धर्मनिरपेक्षों द्वारा संबोधित की जा रही होती है.
आश्चर्य तो यह भी जान कर हुआ कि बावजूद इस के आप नमो फैक्टर को स्वीकार भी रहे हैं. नमो उत्थान को तो उमर अब्दुल्ला तथा केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम तक भी स्वीकार कर चुके हैं. ऐसे में अगर अब यह मान लिया जाए कि ‘नमो’ भविष्य में पीएम बनेंगे ही तो अनुपयुक्त भी नहीं होगा. कारण स्वयमेव ही स्पष्ट भी है कि ‘उन्होंने न केवल भाजपा में ही जान फूंकी है बल्कि अब देश के अचंभित समर्थकों, मतदाताओं को भी उन में सुयोग्य, कर्मठ, जुझारू, दृढ़निश्चयी तथा लगनशील चरित्र नजर आने लगा है.
ताराचंद देव रैगर, श्रीनिवासपुरी (न.दि.)
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संपादकीय टिप्पणी ‘जनतंत्र और जनता’ इस देश के लोगों के विचारों की सच्ची तसवीर प्रस्तुत करती है. वास्तव में आज जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जो भ्रष्टाचारमुक्त हो. वरना नित नए घोटाले खबरिया टीवी चैनलों की सुर्खियां बने दिखते हैं जिस के लिए हम भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं.
नेता तो खैर अपने भाईभतीजे, बेटाबहू को टिकट देंगे ही. परंतु हम क्यों मतदान के समय केवल जातिपांति, धर्म और समुदाय को ही वरीयता देते हैं. क्यों हमें उस वक्त नित नई हेराफेरी की याद नहीं आती? फिर हम भ्रष्टाचार और महंगाई का रोना रोते हैं यह भूल कर कि हम ने ही इन्हें चुना है. इसलिए दोष हमारा भी है.
कृष्णा मिश्रा, लखनऊ (उ.प्र.)
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‘जनतंत्र और जनता’ संपादकीय में आप के विचार पढ़े. हमारी नौकरशाही को चमचाशाही भी कहा जाता है. हौंगकौंग के एक शोध संस्थान ‘राजनीतिक और आर्थिक दायित्व परामर्शदाता’ की जनवरी 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय नौकरशाही एशिया में सब से ज्यादा निकृष्ट है.
विदेशों से जो नेता मिलने आते हैं उन की रूपरेखा नौकरशाह तैयार करते हैं. शिमला समझौते के समय नौकरशाहों के कारण इंदिरा गांधी अकेले में जुल्फिकार अली भुट्टो से 1 घंटे के लिए मिलीं. उस समय भुट्टो ने इंदिरा से कहा कि वे कश्मीर समस्या पर उन के समाधान पर सहमत हैं. जो कश्मीर भारत के पास है वह भारत का अंग और जो पाकिस्तान के पास है वह पाकिस्तान के पास रहे ताकि कश्मीर के कारण युद्ध न हो. परंतु इस को शिमला समझौते में लिखित में नहीं आना चाहिए. क्योंकि इस से पाकिस्तान में गृहयुद्ध हो जाएगा.
नौकरशाहों के दबाव के चलते इंदिरा गांधी ने भुट्टो की यह बात मान ली. नतीजतन, पाकिस्तान 41 सालों से शिमला समझौते का उल्लंघन कर रहा है. 1965 और 1971 की लड़ाई के बाद नौकरशाहों ने बिना फौजी जनरलों से सलाह लिए समझौते तैयार किए. युद्ध के बाद जनरलों को बातचीत में शामिल करना या उन की सलाह लेना जरूरी होता है क्योंकि नौकरशाहों को पूरी जानकारी नहीं होती कि फौज को किनकिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा. अमेरिका के एक पत्रकार के अनुसार, पाकिस्तान के 92 हजार कैदियों की जो मेहमाननवाजी की गई वह विश्व के इतिहास में फौजी कैदियों की कहीं नहीं की गई. फिर भी पाकिस्तान हमारे फौजियों के गले काट कर भेज रहा है.
आई प्रकाश, अंबाला (हरियाणा)

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कुरसी किस को सौंपें

देश के भावी आम चुनावों में भाजपा की 272 से कम सीटें आईं तो उस को दूसरी पार्टियों की मदद लेनी पड़ेगी. ऐसे में सुषमा स्वराज प्रधानमंत्री बन सकती हैं क्योंकि एनडीए के सदस्य नरेंद्र मोदी के खिलाफ हैं.
सरिता पत्रिका के माध्यम से मैं देशवासियों को जागरूक कर रहा हूं कि गठबंधन सरकारों के कारण भारत में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. सरकार को गिरने से बचाने के लिए सत्ता के लोग सहारा देने वाली पार्टियों को पैसा देते हैं. भारत का प्रजातंत्र भ्रष्टाचार के कारण कमजोर हो गया है. यह मिलीजुली पार्टियों के गठबंधन के सहारे कब तक चलेगा. लोग महंगाई के कारण विपक्ष को वोट देंगे. परंतु सत्ता में आने वाली दूसरी सरकार भी महंगाई को कम नहीं कर सकती. इसलिए जनता अपने मत का काफी सोचविचार कर मतदान करे.
आई पी गांधी, करनाल (हरियाणा)

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सोने के फेर में देश
नवंबर (द्वितीय) अंक में लेख ‘खजाने की खोज : अकर्मण्य देश के मुंगेरी सपने’ पढ़ कर लगा कि यह बहुत बड़ी विडंबना ही है कि एक तरफ देश मंगल ग्रह पर यान भेजने की सफलता के गीत गा रहा है, दूसरी तरफ साधु के सपने में मिले खजाने की खोज में सरकार खुदाई कर रही है और तीसरी तरफ सारे देश में पिछड़ा, भूखा वर्ग खाद्य की खोज में तड़प रहा है. ताज्जुब की बात है, सामने आए बिना ही शोभन सरकार ने सपने देख कर सरकार की नींद उड़ा दी.
मजे की बात तो यह है कि डौंडियाखेड़ा गांव में खजाना पाने की बात सपने में ही थी कि दावेदारों की लाइन लग गई. सरकार को लगा था, लौटरी लग गई. जो भी गंवाया था, एक खुदाई में भरपाई हो जाएगी. लेकिन ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई. अफवाहों की उड़ती हवा में पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों का ध्यान भी भंग हो गया.
उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा गांव में राजा राव रामबख्श सिंह के किले ने भी यह साबित कर दिया कि खजाना खाली है, इसलिए महंगाई आकाश छू रही है. दिसंबर 2012 तक की जीडीपी की रकम की 50 प्रतिशत संपत्ति यदि काले धन में बदल गई है, इस की खोज अगर सरकार ठीक से करती तो देश और देश के गरीब लोगों का चेहरा बदल जाता. भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण यानी जीएसआई और भारतीय पुरातत्त्व विभाग यानी एएसआई ने क्याक्या पढ़ कर और समझ कर खुदाई शुरू की, समझ से परे है.
बिर्ख खडका डुवर्सेली, दार्जिलिंग (प.बं.)
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‘खजाने की खोज : अकर्मण्य देश के मुंगेरी सपने’ लेख पढ़ कर आश्चर्य हुआ कि जिस देश में कृष्ण ने गीता के माध्यम से उपदेश दिया है कि कर्म ही जीवन है. यदि कर्म है तो इस देश की ऐसी कोई जगह नहीं है जो मेहनत व कर्म के बल पर सोना नहीं उगलती हो.
देश की एक सीमा पर हिंद, अरब व बंगाल की खाड़ी पर महासागर है, दूसरी सीमा पर प्राकृतिक गैस, तेल से भरा रेगिस्तान है, तीसरी तरफ वृक्ष, औषधियों से भरी पहाडि़यां हैं और चौथी सीमा पर हिमालय पहाड़ सीना ताने खड़ा है जिस से गंगा, जमुना, सरस्वती व कई दूसरी नदियां निकलती हैं. इन सब के बीच स्थित भारत सोनेचांदी से भरा पड़ा है.
अफसोस, इस देश के ज्यादातर लोग अकर्मण्य, अंधविश्वासी हैं जो बगैर मेहनत किए हर समय सपनों के सोने का महल बनाना चाहते हैं. इस के लिए अकर्मण्य व्यक्ति तो दोषी हैं ही साथ ही देश के साधुसंत, राजनेता, नौकरशाह, मीडिया भी राष्ट्रधर्म न निभा कर सवा अरब की आबादी को अंधविश्वास व मुंगेरी सपनों में जीना सिखा रहे हैं.
जगदीश प्रसाद पालड़ी ‘शर्मा’, जयपुर (राज.)
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अग्रलेख ‘खजाने की खोज : अकर्मण्य देश के मुंगेरी सपने’ शीर्षक सटीक इसलिए भी है क्योंकि हम देशवासी आविष्कारों से चाहे प्रभावित हों या न हों, मगर ऐसे काल्पनिक/मनगढ़ंत चमत्कारों से कुप्रभावित इतनी बुरी तरह हैं कि भेड़चाल का अंग बनने में तनिक भी असहज, अपमानित या अविवेकी अनुभव नहीं करते. शायद इसीलिए डौंडियाखेड़ा क्षेत्र में दबे तथाकथित सोने को पाने, हिस्सा लेने, देखने के लिए हजारों की संख्या में सभी तबकों के लोग यों
जा पहुंचे.
टीसीडी गाडेगावलिया, करोल बाग (दिल्ली)
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वैज्ञानिक युग में भी धूर्त बाबाओं के चक्कर में आना ही बहुत बड़ी मूर्खता है. सपने भी कभी सच हुए हैं? मुझे याद आती है हाल ही में आई अक्षय कुमार की फिल्म ‘जोकर’ की. उस के गांव वाले ने एलियन का सहारा ले कर इन्हीं नेता और मीडिया वाले के चलते अपने गांव का नाम भारत के नक्शे पर ला दिया था. शोभन सरकार ने भी वही चाल चल कर गांव डौंडियाखेड़ा को रातोंरात भारत में चर्चित कर दिया.
मैं वहां के सांसद, विधायक तथा देश के पुरातत्त्व विभाग के पदाधिकारियों से पूछना चाहता हूं कि एक आदमी के सपनों की बातों में आ कर इतना घटिया कदम कैसे उठाया? इस झूठे सपनों के कारण सरकार का कितना समय बरबाद हुआ, साथ ही कितने धन का दुरुपयोग हुआ, इस की जवाबदेही किस की है?
 नंद किशोर प्रसाद, फरीदाबाद (हरियाणा)
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जोड़तोड़ की राजनीति से देश कमजोर
नवंबर (द्वितीय) अंक में प्रकाशित लेख ‘जोड़तोड़ के दलदल में फंसा हर दल’ पसंद आया. जब बिहार में नीतीश कुमार जीते थे, लालू का जादू करीबकरीब खत्म ही था. इतनी जल्दी हालात बदल जाएंगे और तोड़फोड़ की राजनीति इस हद तक पहुंच जाएगी, इस का किसी को अंदाजा नहीं था. गलती तो इस में सरासर नीतीश कुमार की ही है. किस लालच में आ कर वे भाजपा और एनडीए का साथ छोड़ कर, कांग्रेस और यूपीए से दोस्ती बढ़ा रहे हैं यह तो वही जाने, इस का हर्जाना तो उन्हें अब भुगतना ही होगा.
जोड़तोड़ की राजनीति कोई नई तो नहीं है, यह तो राम, कृष्ण के समय से चल रही है और आजादी के पहले व बाद में बखूबी देखी गई है. इस से सत्ता में तो आदमी बना रह सकता है पर देश कमजोर होता जाता है. बड़ी पार्टियां जोड़तोड़ करवाती हैं और मरनेकटने के लिए उन को छोटे दल प्यादों की तरह मिल भी जाते हैं. केंद्र की सरकार में प्यादों की भूमिका निभाने वालों में मुख्य रूप से मायावती, मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव आते हैं.
हाल में हुए 5 राज्यों के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो वे कुछ अलग से दिखते हैं. दिल्ली के नतीजे और उस के बाद के हालात जोड़तोड़ वाली राजनीति से कतई अलग हैं. और यह देश के लिए अच्छा संकेत है बशर्ते पूरा देश इस फार्मूले से सबक ले. अभी तक सरकारें पूर्ण बहुमत न मिलने पर एकदूसरे के जोड़तोड़ से ही बनी है. फिर इस बार दिल्ली में भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों ही ‘पहले आप पहले आप’ का राग अलापती दिखीं.
यह तो मैं नहीं कह सकता कि अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’
21वीं सदी के युवाओं का सही तौर पर प्रतिनिधित्व करती है परंतु यह तय है कि सचाई और ईमानदारी के रास्ते पर यह एक अच्छा कदम है. दिल्ली की जनता, आम आदमी पार्टी और चुनाव आयोग शाबाशी के बराबर हकदार हैं.
ओ डी सिंह, बड़ौदा (गुजरात)

पाठकों की समस्या

मैं और मेरे पति एकदूसरे से बेहद प्यार करते हैं. मेरी समस्या यह है कि कभीकभी मुझे अपने पुराने बौयफ्रैंड की याद आती है और उस से बात करने का मन करता है. पर अभी तक मैं ने कभी अपने पति का भरोसा नहीं तोड़ा है और न ही तोड़ना चाहती हूं. मैं ऐसा क्या करूं कि मेरे मन से बौयफ्रैंड का खयाल हमेशा के लिए चला जाए?

बौयफ्रैंड की याद आना कोई गलत बात नहीं है. याद तो मातापिता, भाईबहन, दोस्तों की भी आती है. इस बात को ले कर अपने अंदर अपराधभाव न पालें और इस बात को अधिक तूल न दें और न ही इस बारे में पति से कोई बात करें.

बौयफ्रैंड की याद आने को सामान्य समझ कर पति के साथ अपना पारिवारिक जीवन सुखमय तरीके से व्यतीत करें. दोस्तों की याद आना और उन से बात करने का मन होना सामान्य भाव है. इसे पति का भरोसा तोड़ने से भी न जोड़ें. आप व्यर्थ ही छोटी सी बात को तूल दे रही हैं, इस ओर ज्यादा ध्यान न दें और खुशहाल वैवाहिक जीवन बिताएं.

मेरे पति बेहद रोमांटिक स्वभाव के हैं. वे चाहते हैं कि हम रोज सैक्स करें. लेकिन मुझे रोजरोज यह अच्छा नहीं लगता. मैं मना करती हूं तो वे बुरा मान जाते हैं. वैसे भी सैक्स करने के बाद मुझे वेजाइना में जलन महसूस होती है. मैं क्या करूं कि पति भी नाराज न हों और मेरी समस्या का समाधान भी हो जाए?

आप को गर्व होना चाहिए कि आप को इतना प्यार करने वाले पति मिले हैं. वरना अधिकांश पत्नियां तो इस बात के लिए परेशान रहती हैं कि उन के पति सैक्स संबंधों में रुचि नहीं दिखाते. जहां तक सैक्स करने के बाद वेजाइना में जलन की समस्या है तो आप इस के लिए किसी अच्छी गाइनोकोलौजिस्ट से मिलें.

सैक्स संबंधों में अरुचि दिखा कर अपने वैवाहिक जीवन से खुशियों को दूर न करें. शायद आप नहीं जानतीं कि सैक्स पतिपत्नी के बीच मधुरता लाता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी रोज सैक्स करना लाभदायक होता है. सैक्स भागदौड़ भरी जिंदगी से तनाव को भी दूर करने में मददगार होता है. इसलिए बिना किसी सोच व चिंता के पति की चाहत को अपनाकर सुखमय जीवन व्यतीत करें.

 

मैं 30 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं. मेरी हाल ही में अरेंज मैरिज हुई है. मैं ने शादी से पहले अपनी लाइफ पार्टनर को ले कर बहुत सारी कल्पनाएं की थीं लेकिन वास्तविकता में वह उन कल्पनाओं से बिलकुल अलग है जिस की वजह से मैं उस से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ पा रहा हूं. शारीरिक संबंध बनाते समय भी मेरे जेहन में उस लड़की की तसवीर उभरती है जिस की मैं ने कल्पना की थी. क्या मैं खुशहाल शादीशुदा जीवन व्यतीत कर पाऊंगा? यह सोचसोच कर मैं परेशान रहता हूं. मुझे लगता है जैसे मैं अपनी पत्नी के साथ धोखा कर रहा हूं. कोई उपाय बताएं?

आप की पत्नी अब आप की लाइफपार्टनर है जिस के साथ आप को अपनी पूरी जिंदगी बितानी है. विवाह आप की रजामंदी से हुआ था, किसी ने आप के साथ जोरजबरदस्ती नहीं की न ही किसी ने दबाव डाला था. कल्पनाओं से परे जा कर वास्तविकता को जीवन का आधार बनाएं. कल्पनाओं में जीना समझदारी नहीं है. अपनी पत्नी को अपनी कल्पनाओं के अनुसार ढालें और उसी के साथ जीवन की खुशियां ढूंढ़ें. पत्नी के साथ मन से जुड़ें, शारीरिक रूप से आप खुदबखुद जुड़ जाएंगे और आप का वैवाहिक जीवन भी खुशहाल हो जाएगा.

 

मैं 35 वर्षीया विवाहिता, 2 बच्चों की मां हूं. मैं और पति दोनों कामकाजी हैं. मेरी समस्या यह है कि पति बच्चों की पढ़ाई के प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं समझते. बच्चों को पढ़ाने से ले कर स्कूल की हर गतिविधि की जिम्मेदारी मेरी है. आज तक वे कभी बच्चों की पेरैंट्सटीचर मीटिंग में नहीं गए. यदि मैं नाराज होती हूं तो कहते हैं, तुम इतने अच्छे से मैनेज तो कर रही हो. दरअसल, जब पति जिम्मेदारी नहीं लेते तो मुझे ही सब करना पड़ता है. कई बार मैं झुंझला जाती हूं पर उन पर कोई असर नहीं पड़ता, क्या करूं?

आप के पति आप की काबिलीयत पर विश्वास करते हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी आप पर छोड़ दी है. यह तो अच्छी बात है कि पति बच्चों की शिक्षा को ले कर आप पर निर्भर हैं वे केवल बच्चों की शिक्षा की ही तो जिम्मेदारी नहीं उठाते, बाकी जिम्मेदारियां तो पूरी करते ही हैं.

आप को गर्व होना चाहिए कि आप के पति आप के आत्मविश्वास और टेलैंट की तारीफ करते हैं. वैसे भी आप की शिक्षा का इस से बेहतर सदुपयोग और क्या होगा कि आप अपने बच्चों की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं. इसलिए बच्चों की पढ़ाई के प्रति पति के ढीले रवैये को ज्यादा महत्त्व न दें और अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से पूरा कर के पति को खुश करें और उन के दिल पर राज करें.

 

मैं अपनी भाभी की छोटी बहन से बहुत प्यार करता था और वह भी मुझे चाहती थी लेकिन उस के घर वालों ने उस का विवाह दूसरी जगह कर दिया. मैं आज भी उसे भूल नहीं पा रहा हूं. मैं क्या करूं?

आप कह रहे हैं कि भाभी की बहन का विवाह दूसरी जगह हो गया है फिर भी आप उस के प्यार व यादों में उलझे हुए हैं. आप की तरफ से प्यार सच्चा था पर उस की तरफ से नहीं. अगर उस का प्यार सच्चा होता तो वह दूसरी जगह विवाह के लिए कभी तैयार न होती. अब उस का विवाह हो चुका है, उसे अपने वैवाहिक जीवन में खुश रहने दें. आप भी उस का खयाल दिमाग से निकाल दें और आने वाली जिंदगी के बारे में सोचें.

कैमियो करेंगे रितिक

रितिक काफी परेशान दिख रहे हैं. पहले बे्रन सर्जरी करवाने के चलते न सिर्फ उन्होंने अपनी आने वाली फिल्म ‘बैंगबैंग’ का काम रोका बल्कि ‘कृष-3’ को काफी देरी से रिलीज करना पड़ा. अब सुनने में आ रहा है कि सर्जरी के बावजूद एक बार फिर से उन के बे्रन में दर्द उठा है, जिस का इलाज कराने के लिए उन्हें विदेश जाना पड़ेगा. इस बीच, उन की करण जौहर के साथ बनने वाली फिल्म ‘शुद्धि’ की शूटिंग रोकनी पड़ेगी.

खबर यह है कि एक्सेल एंटरटेनमैंट के बैनर तले बन रही फिल्म में रणबीर के साथ रितिक एक छोटा सा कैमियो करेंगे. ऐसे में उन के फैंस उन के इस कैमियो का इंतजार तो कर ही सकते हैं.  

क्यों भड़कीं कंगना

इस साल कृष-3 जैसी धमाकेदार फिल्म के बाद ‘रज्जो’ के पिटने से कंगना राणावत मायूस हैं. शायद इसीलिए रैंप पर किसी के सवाल पर भड़क जाती हैं. हाल का एक उदाहरण लीजिए. मैडम की जब किसी पत्रकार ने पौप स्टार लेडी गागा के अजीबो- गरीब फैशन से तुलना कर दी तो वे भड़क गईं, जबकि पिछले दिनों एक फैशन शो के दौरान कंगना लेडी गागा की नकल करती नजर आई थीं.

कंगना कहती हैं कि गागा से उन के फैशन की तुलना करना सही नहीं है. गागा अपने अजीबोगरीब फैशन, परिधान और स्टाइल के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं मैडम. किसी की नकल करोगी तो तुलना होना स्वाभाविक है.

 

चित्रांगदा का तलाकनामा

‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ फिल्म से लाइमलाइट में आईं अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह परदे पर भले ही अब तक खासी सफल रही हों लेकिन निजी जिंदगी में सब ठीक नहीं है. पहले उन के पसंदीदा निर्देशक सुधीर मिश्रा से नाम जुड़ने के चलते मीडिया में खूब चर्चा हुई. बात इतनी बढ़ी कि वे अपने पति से अलग हो गईं. कहने वालों ने तो यहां तक कहा कि उन के इस तलाक के पीछे सुधीर का हाथ है.

तलाक की चर्चा के बाद अब इस बात पर गौसिप हो रही है कि पति से अलग हो कर चित्रांगदा किस को अपना नया हमसफर चुनेंगीं. देखते हैं चित्रांगदा का यह तलाकनामा किस मुकाम पर मंजिल पाता है.

 

 

बिकनी गर्ल सोहा

जब कैरियर की नैया बीच भंवर में गोते खा रही हो तो हीरोइंस के लिए बोल्डनैस की तमाम हदें पार करना ही आखिरी रास्ता बचता है. लगता है यह मंत्र छोटी नवाब यानी सोहा अली खान को समझ आ गया है. तभी तो सोहा ने इस बार अपनी आने वाली फिल्म ‘मि. जो बी कार्वाल्हो’ में बिकनी का तड़का लगाया है. उन का यह कदम कितना सफल हो पाता है, देखने वाली बात होगी.

वैसे आप को याद होगा कि उन की मां शर्मिला टैगोर जब 60 के दशक में पहलीपहली बार बिकनी में नजर आईं तो चारों ओर हंगामा मच गया था. अब 4 दशक बाद उन की बेटी सोहा भी यही करामात कर रही हैं.

 

माधुरी की शर्मोहया

धकधक गर्ल माधुरी दीक्षित अपनी दूसरी पारी में भी कम कयामत नहीं ढा रही हैं. पहले एक डांस रिऐलिटी शो से अपने जलवे दिखाने के बाद माधुरी अब बड़े परदे पर हुस्न बिखेरने वाली हैं. दरअसल, माधुरी अपनी आने वाली फिल्म ‘डेढ़ इश्किया’ में नसीरुद्दीन शाह के साथ इंटीमेट सींस में नजर आएंगी. हाल ही में उन से पूछा गया कि क्या नसीरुद्दीन शाह के साथ इंटीमेट सींस देते समय वे सहज थीं तो माधुरी का जवाब बेहद दिलचस्प था. उन के मुताबिक, सीन के दौरान उन्हें नसीरुद्दीन की आंखों में देख कर शर्म आ जाती थी.

 

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