विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है वह बहुत ही सुखद और संतोषजनक है. दिल्ली में केवल 8 और राजस्थान में 21 सीटें पा कर सत्ता में बैठी पार्टी का ऐसा हाल 1977 के बाद पहली बार हुआ है जो यह दर्शाता है कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस के प्रति जिस तरह का गुस्सा जनता में भरा था, वैसा ही आज है.

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जनता के पास विकल्प न थे. इसलिए भारतीय जनता पार्टी जीती पर दिल्ली में मात्र 9 माह पुरानी पार्टी, आम आदमी पार्टी को जनता ने इतनी सीटें जिता दीं कि भारतीय जनता पार्टी भी सत्ता सुख न भोग सकी. इन चारों राज्यों के चुनावों में जनमत कह रहा है कि उसे भ्रष्ट सरकार तो हरगिज नहीं चाहिए. राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार चाहे कितने अच्छे कार्य किए हों, उसे दिल्ली की तरह कांगे्रस की होने का दंड भुगतना पड़ा है.

साथ ही आम आदमी पार्टी की विशिष्ट जीत ने जता दिया कि जनता कट्टरवाद का समर्थन कतई नहीं करती. वह अच्छी, सही सरकार चाहती है. छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश की सरकारें चाहे पूजापाठ बेचती रही हों, पर वे दिल्ली की सरकार की तरह बेईमान न थीं कि उन्हें दंड दिया जाए.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र की गठबंधन सरकार को जिस तरह भ्रष्टाचार की लपेट में पकने दिया, वह आश्चर्य की बात रही. और ताजा चुनाव परिणाम यह सिद्ध करते हैं कि नेता का काम सिर्फ भाषण देना नहीं होता, उसे सुप्रबंध करना भी आना चाहिए. वरना कोयले की कोठरी में आग लगेगी तो पूरा मकान स्वाह हो जाएगा.

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