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आपके पत्र

सरित प्रवाह, जनवरी (द्वितीय) 2014

‘केजरीवाल और नौकरशाही’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय पढ़ कर मन खुश हुआ. आम आदमी पार्टी को ले कर सभी राजनीतिक दल अप्रत्याशित रूप से हैरान हैं. वे सोच रहे हैं कि एक अदना सा आदमी आम जनता के समर्थन से सरकार की सत्ता तक पहुंच सकता है तो उन के दिन तो लगभग लदने वाले हैं.

आप ने बिलकुल सटीक बात कही कि केजरीवाल को अपने राजनीतिक विरोधियों से तो इतना खतरा भले ही न हो लेकिन सब से ज्यादा खतरा नौकरशाही से है. यह नौकरशाही कभी नहीं चाहेगी कि आम जनता जागरूक हो क्योंकि इस से उन की रिश्वतखोरी बंद हो जाएगी.

छैल बिहारी शर्मा ‘इंद्र’, छाता (उ.प्र.)

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‘केजरीवाल और नौकरशाही’ के तहत आप के विचार पढ़े, शतप्रतिशत सत्य हैं. कारण स्पष्ट भी है, जिस तरह आदमखोर बन जाने पर किसी जानवर को किसी भी प्रहार से डर नहीं लगता है उसी तरह देश की जड़ों में मट्ठा डालता भ्रष्टाचार दोचार दिनों में तो फलाफूला है नहीं, जोकि आननफानन ही खत्म हो जाएगा. इस के लिए न तो किसी जनप्रतिनिधि के पास जादू की छड़ी है (जैसा कि स्वयं अरविंद केजरीवाल भी कहते हैं) और न ही आम आदमी के पास इतना दमखम है कि वह रातदिन अपने सभी व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों को त्याग कर इन भ्रष्टाचारियों के पीछे लट्ठ ले कर पड़ा रहे, ताकि दीमक समान रातदिन देश के प्रशासनिक ढांचे को चाट रहा यह रोग खत्म किया जाए. बेशक, हम यह कह सकते हैं कि ‘असंभव कुछ भी नहीं, मगर एक अति कड़वा सच यह भी है कि इस के लिए एक लंबी अवधि जरूर चाहिए जोकि किसी अवसरवादी समर्थन (कांगे्रस के सहयोग) से तो मिल नहीं सकती.’

टी सी डी गाडेगावलिया, करोल बाग (दिल्ली)

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संपादकीय टिप्पणी ‘नौकरानी पर लड़ते दो देश’ पढ़ी. सचमुच, एक विचित्र बात सामने आई. देवयानी को उस की नौकरानी संगीता रिचर्ड की शिकायत पर अमेरिकी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. संगीता रिचर्ड देवयानी से अमेरिकी कानूनों के अनुसार वेतन और सुविधाएं मांग रही थी और कुछ ज्यादा ही उग्र हो रही थी, तभी देवयानी ने पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय से उस के खिलाफ एक आदेश ले लिया था. अमेरिकी पुलिस का यह रवैया है कि वह दूसरे देशों, खासतौर पर एशियाई और गरीब देशों, के नागरिकों के साथ अकसर दुर्व्यवहार करती रहती है. अमेरिकी पुलिस किसी भी शिकायत पर गंभीर कार्यवाही उसी तरह करती है जिस तरह भारतीय पुलिस करती है पर हमारी पुलिस कुछ लिहाज भी जरूर करती है.

यह मामला गंभीर इसलिए भी है कि अगर घरेलू नौकर ले जाने पर पाबंदी लग गई तो कोई भारतीय राजनयिक विदेशी नौकरी पर जाएगा ही नहीं. भारत सरकार व अमेरिकी सरकार को असलियत जान कर आपस में मिलबैठ कर इस मुद्दे का पटाक्षेप कर के आपसी संबंध बनाने पर जोर देना चाहिए.

कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)

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आमजन की भावना

जनवरी (द्वितीय) अंक में प्रकाशित लेख ‘जनक्रांति से निकली ‘आप’ की सरकार’ बहुत पसंद आया. यह ‘आप’ ही की नहीं, हमारी भी आवाज है. कहा जाता है ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’. यानी ज्यादा दबाव से ज्वालामुखी फूट जाता है, धरती में दरारें पड़ जाती हैं. फिर यहां तो हाड़मांस का बना इंसान है, जिस की अपनी कुछ भावनाएं, अपेक्षाएं हो सकती हैं, जो न पूरी होने पर उपरोक्त रूप ले सकती हैं.

कृष्णा मिश्रा, लखनऊ (उ.प्र.)

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लेख ‘जनक्रांति से निकली आप की सरकार’ पढ़ा. यह बात सही है कि वर्तमान समय में भारतीय जनमानस में राजनीतिक दलों को ले कर घोर निराशा व्याप्त है, लेकिन केजरीवाल की टीम ने नई आशा का संचार कर दिया है. ऐसा ही आशावाद जेपी आंदोलन और 90 के दशक में वीपी सिंह के उदय के समय देश में देखा गया था. तब लगा था कि अब सकारात्मक परिवर्तन होंगे, लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ पहले जैसा ही हो गया था, कहना चाहिए कि और बदतर हो गया था.

अत: ‘आप’ पार्टी को बड़ी सतर्कता और धैर्य के साथ अपने कदम बढ़ाने चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार नामक दीमक ने देश के हर तंत्र को खोखला कर दिया है. आप पार्टी को जिस तरह का जनसमर्थन मिला है वह इसलिए है कि लोगों को लग रहा है कि दशकों बाद ऐसा दल आया है जो ईमानदार, निडर तथा भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रहा है.

यह सचाई है कि भ्रष्टाचार को आज हमारे समाज में आम स्वीकृति मिल चुकी है तथा यह मान लिया गया है कि चाहे कोई भी काम हो बगैर लिएदिए पूरा नहीं हो सकता है. यहां तक कि यह स्थिति हो गई है कि लेने वालों से ज्यादा बड़ी भूमिका देने वालों की दिखाई देने लगी है. लोग आदतन जहां जरूरत नहीं है वहां भी रुपए देने की पहल करते दिखाई देते हैं.

भ्रष्टाचार सिर्फ पैसों के लेनदेन तक ही सीमित नहीं रह गया, आम व्यवहार या स्वभाव में भी आ गया है. परिणामस्वरूप इस का प्रभाव सरकारी के साथसाथ प्राइवेट संस्थानों में भी दिखाई देने लगा है, जिस के कारण कामचोरी, मक्कारी, चापलूसी, जमाखोरी, मिलावटखोरी जैसी कुप्रवृत्तियों को बढ़ावा मिला है और देश का बहुत नुकसान हुआ है.

अंतत: आवश्यकता है कि भ्रष्टाचार की जड़ों पर प्रहार किया जाए जोकि ऊपर से नीचे की ओर फैली हुई हैं. व्यवस्था में इस तरह परिवर्तन किए जाएं कि चाह कर भी कोई भ्रष्टाचार न कर पाए. इस के लिए उन यूरोपीय देशों की कार्यप्रणालियों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए जहां भ्रष्टाचार न के बराबर है, और इस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए जो हमारे देश के परिवेश के अनुकूल हों व व्यावहारिक हों, हालांकि कार्य कठिन है, लेकिन केजरीवाल टीम अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को कुछ वर्षों तक सीमित रख कर भ्रष्टाचार मुक्त राज्य दिल्ली को बना कर देश के सामने एक आदर्श प्रस्तुत कर सकती है. बस जरूरत है दृढ़ इच्छाशक्ति की, जो टीम केजरीवाल में दिखाई दे रही है.

सुधीर शर्मा, इंदौर (म.प्र.)

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सुविधा और जरूरत

‘जनक्रांति से निकली ‘आप’ की सरकार’ लेख में पूर्व सरकार और नई सरकार के बारे में काफीकुछ लिखा गया है. मगर आम आदमी की राय के नाम पर आप सरकार के मुखिया कुछ गलत निर्णय पर डांवांडोल भी हो जाते हैं जिस का एक उदाहरण कुछ लोगों के कहने पर उन्हें ‘भगवान दास रोड’ पर दिए जाने वाले निवास को ठुकरा देना भी है.

इस संदर्भ में एक किस्सा याद आ रहा है. एक युवक जूता खरीदने बाजार गया तो साथ में मित्र भी चल पड़ा. वह जूता पसंद करता, मित्र टोक देता, ‘अच्छा नहीं है.’ अंत में मित्र ने उसे अपनी पसंद का जूता खरीदवाया. घर आ कर युवक सोचने लगा, ‘जूता मुझे अपनी सुविधानुसार खरीदना चाहिए था जबकि मैं मित्र की पसंद अपने ऊपर लाद रहा हूं.’ ठीक इसी प्रकार निवास के संबंध में अरविंद केजरीवाल को अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह निवास ले लेना चाहिए था, न कि किन्हीं लोगों के कहने पर उसे ठुकरा देते.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (दिल्ली)

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बच्चों की परवरिश

जनवरी (द्वितीय) अंक में प्रकाशित लेख ‘जब बच्चे सुनाएं खरीखरी’ पढ़ा. आजकल बच्चों के पालनपोषण में भी पश्चिम की नकल की जा रही है. बच्चों को मातापिता का प्यार, ध्यान और वक्त की जरूरत होती है जबकि आज के व्यस्त मातापिता यही नहीं दे पाते. ऐसे बच्चे बड़े हो कर अपराधी, विकृत मानसिकता वाले बन जाते हैं. हमारा उच्चमध्य वर्ग पश्चिम की बुराइयां अपना रहा है. बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं परंतु मांबाप के बीच के झगड़ों का उन पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जब बच्चों को घर में प्यार नहीं मिलता तो वे बाहर प्यार ढूंढ़ते हैं. गलत लोगों की दोस्ती से अपराधी बन जाते हैं. इस से बचने के लिए हमें बच्चों को भारतीय रीतिरिवाजों के अनुसार पालना चाहिए.

आई पी गांधी, करनाल (हरियाणा)

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इंसान से अधिक जानवर भरोसेमंद

जनवरी (द्वितीय) अंक में छपा लेख ‘कुत्ता एक सच्चा पहरेदार’ पढ़ कर अच्छा लगा. कहते हैं, कुत्ता पालने से इंसान तनाव से दूर रहते हैं, ज्यादा स्वस्थ जीवन जीते हैं. बहुत से लोग कुत्ते को पालतू बनाना चाहते हैं परंतु उन्हें उन की जाति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती. क्या ही अच्छा हो, अगर पालतू जानवरों पर विशेष जानकारी देने हेतु ‘सरिता’ में एक नियमित कौलम शुरू किया जाए.

पत्रिका में प्रकाशित ‘बीस साल पहले’ की कहानी पढ़ कर बहुत मजा आता है. उसे फिर से दोबारा पढ़ कर लगता है कोई मनपसंद रसीली मिठाई खाने को मिल गई हो. इस से बीस साल पहले की सामाजिक स्थिति, रुपए की तब की कीमत, परंपराओं का ज्ञान होता है. क्यों नहीं कहानी के नए चित्रों के बजाय वही पुराने चित्र भी हों.

मंजू अग्रवाल, जोधपुर (राजस्थान)

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जनवरी (द्वितीय) अंक शानदार रहा. सभी कहानियां बढि़या लगीं पर वैसी हलचल न मचा पाईं जैसी अमूमन सरिता के दूसरे अंकों में होती है. घरेलू हिंसा पर बेबाक बात करना बहुत जरूरी हो गया है. नारी आजादी, नारी मुक्ति, नारी विमर्श आदि शोर से काम नहीं चलने वाला. एक बड़े दरवाजे में था छोटा सा दरवाजा और असल हकीकत और थी लेकिन सब का था अंदाज और. आज हालात ऐसी बातें बयान करते हैं कि लगता है हिंसा सहन करना, घुटघुट कर जीना क्या यही स्त्रीत्व के माने हैं? नारी का समाजशास्त्र कौन समझेगा? आंकड़े कहते हैं कि तकरीबन 5 हजार महिलाएं प्रतिदिन भारत में घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं. और जो चीखें दबी रह जाती हैं उन का क्या?

पूनम पांडे, अजमेर (राज.)

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आशा की नई किरण

जनक्रांति से निकली ‘आप’ की सरकार यानी आम आदमी पार्टी की हुकूमत ने देश की राजनीति को झकझोर दिया. लगभग पूरी तरह से राजनीतिक आबोहवा को दूषित कर देने वाले अधिकांश सियासी दलों के बीच आम आदमी पार्टी का उद्भव देश की खुशहाली के लिए आशा की नई रोशनी पैदा करता है. अरविंद केजरीवाल और उन की टीम के सदस्यों ने विकास के जिस मौडल की रूपरेखा जनता के समक्ष प्रस्तुत की है उस पर लोगों ने अपनी मुहर भी लगानी शुरू कर दी है. अब तक राजनेताओं द्वारा वंशवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, मंदिरमसजिद और हिंदूमुसलिम मतभेदों से भरी थाली जनता को परोसी जाती थी जिसे ग्रहण करना उस की मजबूरी थी.

हकीकत में इस देश की आम जनता चाहे दलित हो या सवर्ण, हिंदू हो या मुसलिम, युवा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो अथवा पुरुष सब राजनीतिक नेताओं के बिछाए पाखंडी जाल में उलझ कर छटपटा रहे हैं. ऐसी अवस्था में आम आदमी पार्टी का क्षितिज पर आना लोगों के लिए तिनके जैसा सहारा बनता जा रहा है.

सूर्य प्रकाश, वाराणसी (उ.प्र.)

 

चट मंगनी पट ब्याह

फिल्मों में अपेक्षित सफलता से महरूम अभिनेत्रियों का आखिरी पड़ाव शादी होता है. शायद इसी के चलते अभिनेत्री समीरा रेड्डी ने चट मंगनी पट ब्याह कर डाला. बीते दिनों जब उन्होंने अपने बौयफ्रैंड अक्षय वर्दे, जोकि एक बिजनेसमैन हैं, से शादी कर ली तो सब की जबान पर यह बात थी कि न तो साउथ फिल्मों का सहारा मिला न हिंदी फिल्मों का. वैसे अक्षय का मोटरसाइकिल कस्टमाइजेशन का बिजनैस है. लिहाजा, दूल्हे राजा भी घोड़ी पर सवार होने के बजाय हाईफाई बाइक पर सवार हो कर मंडप तक पहुंचे.

बता दें कि समीरा और अक्षय 2 साल से डेटिंग कर रहे थे. बीते साल दिसंबर महीने में समीरा के बांद्रा स्थित घर पर दोनों की रिंग सेरेमनी हुई थी. वैसे समीरा के मुताबिक, शादी कुछ महीनों बाद होनी थी लेकिन अचानक फैसला बदलना पड़ा. चलिए, समीरा जी, आप का कैरियर चले न चले, शादी जरूर चल जाए. 

बिग बी की कबड्डी

बौलीवुड के कलाकार इन दिनों खेल के जरिए भी पैसा कमाने की रेस में लगे हैं. कोई क्रिकेट की तो कोई हौकी की टीमें खरीद कर करोड़ों कमाने के सपने देख रहा है. इस रेस में अमिताभ बच्चन ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि वे हमारे देसी खेल कबड्डी के जरिए आजमाइश करने जा रहे हैं. यह काम वे अपनी कंपनी एबी कौर्प के जरिए कर रहे हैं.

गौरतलब है कि पटना में आयोजित होने वाली 61वीं सीनियर राष्ट्रीय पुरुष और महिला कबड्डी चैंपियनशिप में किए गए प्रदर्शनों के आधार पर कबड्डी प्रीमियर लीग (केपीएल) के लिए खिलाडि़यों के बेस प्राइस तय किए गए. आईपीएल और एचसीएल की तर्ज पर होने वाली कबड्डी की लीग में अमिताभ बच्चन की कंपनी सहित 16 अन्य कंपनियां हिस्सा लेंगी. इन कंपनियों में महिंद्रा, एअर इंडिया, ओएनजीसी जैसी कंपनियां प्रमुख हैं.

 

सैंसर बोर्ड का भेदभाव

सालों बाद फिल्म ‘शाहिद’ से निर्देशन के मैदान में उतरे हंसल मेहता इन दिनों सैंसर बोर्ड से दोदो हाथ करने के मूड में हैं. हंसल ने सैंसर बोर्ड पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा है कि उन की फिल्म ‘शाहिद’ को ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया गया, जबकि उत्तेजक, किसिंग और हिंसक दृश्यों से भरपूर ‘…राम-लीला’ और ‘मद्रास कैफे’ को यू/ए सर्टिफिकेट दिया गया.

हंसल मेहता कहते हैं कि वे 2013 में प्रामाणिक की गई फिल्मों पर आरटीआई दायर करेंगे, ताकि सैंसर बोर्ड के दोहरे मापदंडों को उजागर किया जा सके. वैसे सैंसर बोर्ड पर भेदभाव वाले आरोप पहले भी लगते रहे हैं.

 

क्वीन की पसंद

कंगना राणावत जल्द ही फिल्म ‘क्वीन’ के जरिए कौमेडी करती नजर आएंगी. लेकिन जब कंगना से उन के पसंदीदा जौनर के बारे में पूछा गया तो उन का जवाब था, हौरर. जी हां. कंगना को दर्शकों को डराने में मजा आता है. शायद इसीलिए वे ‘राज 2’ के बाद जल्द ही दूसरी हौरर फिल्म में नजर आने वाली हैं. निर्देशक भूषण पटेल के साथ बनने वाली इस फिल्म में कंगना ने काम करने की हामी भर दी है.

गौरतलब है कि भूषण पटेल अभी एकता कपूर की फिल्म ‘रागिनी एमएमएस 2’ का निर्देशन कर रहे हैं. भूषण कहते हैं कि कंगना मेरी फिल्म के किरदार को सूट करती है.

देखते हैं, कंगना अपने इस पसंद के जौनर में दर्शकों को कितना भाती हैं.

 

कद्दू अवार्ड का जलवा

हौलीवुड में जिस तरह से साल की सब से खराब फिल्मों और अभिनेताओं को रैज्जी अवार्ड देने का चलन है, कुछ इसी तर्ज पर बौलीवुड में भी पिछले कुछ सालों से कद्दू अवार्ड देने का सिलसिला चल रहा है. एक निजी रेडियो द्वारा आयोजित इस अवार्ड शो में ए ग्रेड ऐक्टर्स को उन की वाहियात और फ्लौप फिल्मों के लिए अजीबोगरीब कैटेगिरी के तहत ये अवार्ड दिए जाते हैं.

सब से खराब काम करने वाले बौलीवुड सैलिब्रिटीज को इस साल भी ‘मिर्ची कद्दू अवार्ड’ दिए गए. अभिषेक बच्चन को धूम 3 के लिए ‘बिटवा तुम से ना हो पाएगा अवार्ड’ दिया गया वहीं ‘फटा पोस्टर निकला जीरो अवार्ड’ इमरान खान के

खाते में आया. ‘पकाऊ फिल्म अवार्ड’ ‘हिम्मतवाला’ को, तो वहीं ‘ऐक्सपायरी डेट अवार्ड’ प्रीति जिंटा को मिला. इसी तरह कई और दिलचस्प कैटेगिरी में ये अवार्ड बांटे गए. इतनी बेइज्जती, अवार्ड के जरिए, इन सितारों की शायद ही पहले कभी हुई हो.

 

परांठे वाली गली

इस फिल्म का टाइटल पुरानी दिल्ली की एक मशहूर गली ‘परांठे वाली गली’ के नाम पर रखा गया है, मगर न तो इस में परांठों की खुशबू है न ही परांठों के साथ खाई जाने वाली सब्जी का टैस्ट.

‘परांठे वाली गली’ दर्शकों को थिएटर की दुनिया में ले जाती है. जी हां, वही थिएटर जिसे 30-40 साल पहले दर्शक ऐंजौय करते थे परंतु अब कोई थिएटर का रुख नहीं करता. इस फिल्म के निर्देशक सचिन गुप्ता ने कई थिएटर प्रोडक्शन किए हैं. यह उन की पहली फिल्म है. थिएटर पर आधारित उन की यह फिल्म दर्शकों को निराश ही करती है.

फिल्म को पुरानी दिल्ली की 2-4 लोकेशनों पर शूट किया गया है, बाकी पूरी फिल्म में दिल्ली से कुछ लेनादेना नहीं है. कहानी पुरानी दिल्ली में रहने वाली एक लड़की नैना (नेहा पंवार) और उस के परिवार की है. नैना परांठे बना कर दुकानदारों को सप्लाई करती है. वह हर वक्त चपरचपर बोलती रहती है.

एक दिन उस की मुलाकात मौलिक (अनुज सक्सेना) से होती है जो पास ही की गली की धर्मशाला में अपने दोस्तों के साथ मिल कर एक थिएटर कंपनी चलाता है. नैना उस के साथ थिएटर में काम करने की इच्छा जाहिर करती है. नैना की मां भी उस के साथ जुड़ जाती है. नैना मौलिक की सिफारिश सलूजा (विजयंत कोहली) से करती है मगर सलूजा ऐन मौके पर उसे धोखा दे जाता है. मौलिक टूट सा जाता है. नैना उसे हिम्मत बंधाती है और उसे थिएटर शुरू करने में मदद करती है. उस की मदद से मौलिक सफल हो जाता है.

निर्देशक ने फिल्म को काफी लाउड बनाया है. हर वक्त नैना ‘तैनूमैनू’ करती चिल्लाती रहती है. फिल्म में ‘बैंड बाजा बरात’ की तर्ज पर नैना की बहन की शादी पर बैंडबाजा खूब बजवाया गया है जिस में लोगों को खूब नाचते दिखाया गया है. यह सीन ठूंसा गया लगता है.

अनुज सक्सेना का चेहरा एकदम सपाट लगा है. अभिनय के मामले में वह फिसड्डी है. नेहा पंवार अनाकर्षक लगी है. फिल्म का गीतसंगीत औसत है. गानों में पंजाबी टच है. कैमरामैन ने पुरानी दिल्ली के दर्शन कराने में कंजूसी बरती है.

मिस लवली

फिल्म ‘मिस लवली’ को देखते वक्त आप को लगेगा जैसे आप कोई डौक्युमैंटरी फिल्म देख रहे हैं. 80 के दशक में इस तरह की 1-2 रील की छोटीछोटी फिल्में खूब बना करती थीं. सैंसर बोर्ड और सरकार की आंखों में धूल झोंक कर चुपके से इन 1-2 रील की पौर्न फिल्मों को दक्षिण भारत में बनी फिल्मों में फिट कर दिया जाता था ताकि दर्शकों की भीड़ जुटाई जा सके व जम कर कमाई की जा सके. यह फिल्म पौर्न इंडस्ट्री की सचाई को दर्शाती है. परिवार के साथ बैठ कर यह फिल्म देखने लायक तो कतई नहीं है.

‘मिस लवली’ जैसी फिल्में विदेशों में होने वाले फिल्म समारोहों के लिए ठीक होती हैं. इस फिल्म की कांस फिल्म समारोह में काफी तारीफ हुई है.

फिल्म देख कर लगा, निर्देशक ने विषय को गंभीरता से ट्रीट नहीं किया है. फिल्म में गदराए जिस्म, नकली मास्क लगाए चेहरे और कुछ डरावने से चेहरों को दिखाने की ही कोशिश की गई है.

फिल्म की शुरुआत में  यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि फिल्म पौर्न इंडस्ट्री की सचाइयों से रूबरू करा रही है. करीब पौने 2 घंटे की यह फिल्म काफी सुस्त है. पटकथा बिखरी हुई है और संपादन में भी कसावट नहीं है.

कहानी 2 भाइयों, मिकी दुग्गल (अनिल जौर्ज) और सोनू (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की है. मिकी अश्लील फिल्में बनाता है तो सोनू ये अश्लील रीलें सप्लाई करता है. वह इन पौर्न फिल्मों में काम करने के लिए नईनई लड़कियों की भी सप्लाई करता है. एक दिन उस की मुलाकात पिंकी (निहारिका सिंह) से होती है. वह पिंकी से प्यार करने लगता है और उसे ले कर एक फिल्म बनाना चाहता है. उधर, मिकी की जिंदगी में एक नई लड़की नाडिया (मेनका लालवानी) आती है. वहीं, एक दिन नाडिया का खून हो जाता है तो अवैध रूप से ऐसी फिल्में बनाने वालों पर गाज गिर पड़ती है. सोनू गिरफ्तार हो जाता है. मगर जब वह छूट कर आता है तो उसे पता चलता है कि मिकी ने उस की प्रेमिका पिंकी के साथ सैक्स संबंध बना लिए हैं और पिंकी पूरी तरह से मिकी के रंग में रंग चुकी है. वह विक्षिप्त सा हो जाता है.

फिल्म की इस कहानी में 80 के दशक की पुरानी इमारतों, स्टूडियो, धुंधली रोशनी में कामकाज करते कलाकार, डै्रस डिजाइनों पर फोकस किया गया है. फिल्म के कई सीन रात के अंधेरे में फिल्माए गए हैं.

फिल्म में नायक की भूमिका नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाई है. निहारिका सिंह पूर्व मिस इंडिया रह चुकी है. उस ने कई हौट सीन दिए हैं.

 

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