सरित प्रवाह, जनवरी (द्वितीय) 2014

‘केजरीवाल और नौकरशाही’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय पढ़ कर मन खुश हुआ. आम आदमी पार्टी को ले कर सभी राजनीतिक दल अप्रत्याशित रूप से हैरान हैं. वे सोच रहे हैं कि एक अदना सा आदमी आम जनता के समर्थन से सरकार की सत्ता तक पहुंच सकता है तो उन के दिन तो लगभग लदने वाले हैं.

आप ने बिलकुल सटीक बात कही कि केजरीवाल को अपने राजनीतिक विरोधियों से तो इतना खतरा भले ही न हो लेकिन सब से ज्यादा खतरा नौकरशाही से है. यह नौकरशाही कभी नहीं चाहेगी कि आम जनता जागरूक हो क्योंकि इस से उन की रिश्वतखोरी बंद हो जाएगी.

छैल बिहारी शर्मा ‘इंद्र’, छाता (उ.प्र.)

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‘केजरीवाल और नौकरशाही’ के तहत आप के विचार पढ़े, शतप्रतिशत सत्य हैं. कारण स्पष्ट भी है, जिस तरह आदमखोर बन जाने पर किसी जानवर को किसी भी प्रहार से डर नहीं लगता है उसी तरह देश की जड़ों में मट्ठा डालता भ्रष्टाचार दोचार दिनों में तो फलाफूला है नहीं, जोकि आननफानन ही खत्म हो जाएगा. इस के लिए न तो किसी जनप्रतिनिधि के पास जादू की छड़ी है (जैसा कि स्वयं अरविंद केजरीवाल भी कहते हैं) और न ही आम आदमी के पास इतना दमखम है कि वह रातदिन अपने सभी व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों को त्याग कर इन भ्रष्टाचारियों के पीछे लट्ठ ले कर पड़ा रहे, ताकि दीमक समान रातदिन देश के प्रशासनिक ढांचे को चाट रहा यह रोग खत्म किया जाए. बेशक, हम यह कह सकते हैं कि ‘असंभव कुछ भी नहीं, मगर एक अति कड़वा सच यह भी है कि इस के लिए एक लंबी अवधि जरूर चाहिए जोकि किसी अवसरवादी समर्थन (कांगे्रस के सहयोग) से तो मिल नहीं सकती.’

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