आजम की वीआईपी भैंसें
भैंस हमेशा से ही दूध के जरिए पैसा उगलने वाली मशीन रही है जिस के गुमने या चोरी होने पर पुराने जमाने के पशुपालकों को गश आ जाता था और वे नजदीकी पंडित, छोटेमोटे तांत्रिक या ओझा के पास भागते थे. वह 11 रुपए ले कर जिस दिशा की तरफ इशारा कर देता था, पशुपालक उसे ढूंढ़ने के लिए सपरिवार उधर चल पड़ता था. भैंस मिल जाती थी तो मान लिया जाता था कि पंडितजी बड़े सिद्ध हैं, वरना लोग खुद को ही कोस कर रह जाते थे.
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आजम खान की भैंसें गुमीं तो खासा बवाल मचा, जिस से साबित यही हुआ कि भैंसें भी वीआईपी होती हैं और आजकल इन की खोज पुलिस वाले और कुत्ते करते हैं. शुक्र की बात यह रही कि भैंसें मिल गईं.
 
इश्तिहार और सियासत
एक मध्यवर्गीय मुसलिम युवती जैसी दिखनी चाहिए, वैसी गोआ की हसीबा बी अमीन हैं, जो कांग्रेस के इश्तिहार में खड़ी पूरी गंभीरता और आत्मविश्वास से कहती नजर आती हैं कि कट्टर सोच नहीं, युवा जोश चाहिए.
हसीबा चंद दिनों में ही ऐसी लोकप्रिय हो गईं कि उन पर पीडब्लूडी घोटाले में लिप्त होने का इलजाम लग गया और दूसरा यह भी कि कथित तौर पर वे जेल भी जा चुकी हैं. कट्टर सोच और युवा जोश चुनावी मुद्दे बनें, न बनें, हसीना जरूर चमक गई हैं. मुमकिन है उन्हें कांग्रेस चुनाव भी लड़ा डाले. 
घोटालेबाजी बड़ी बात या मुद्दा नहीं है, झंझट इस बात की है कि भाजपा किसी मुसलिम युवती को इस तरह के इश्तिहार में भी नरेंद्र मोदी के बगल में खड़ा नहीं कर सकती क्योंकि शायद ही कोई युवती इस के लिए तैयार हो.
 
संत की रासलीला
दुष्कृत्य को भी संत, बाबा और पुजारियों ने हमेशा से ही ईश्वरीय कार्य मान कर संपन्न किया है. त्रेता, द्वापर तो दूर की बात है कलियुग और उस में भी बीते 2 साल ऐसे प्रसंगों व उदाहरणों से भरे पड़े हैं. बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी केशव नम्बूदरी ने छेड़छाड़ करने के पहले शराब पीने की औपचारिक कार्यवाही पूरी की. फिर अपनी हैसियत के मुताबिक एक होटल व्यवसायी धनाढ्य महिला को आमंत्रित कर बलपूर्वक छेड़ा, जिस ने छिड़ने से इनकार कर दिया. नतीजतन, पंडितजी आलीशान होटल से सीधे अपने असल मुकाम तिहाड़ जेल पहुंच गए.
केशव युवा हैं. उन का नाम ही कृष्ण का पर्यायवाची है जो रास रचाने और गोपियों से छेड़छाड़ व प्रणय के लिए जाने व पूजे जाते हैं. ऐसे में वे बहक गए तो हैरत किस बात की. देशभर के धर्मगुरु यही कर रहे हैं, मानो यह उन का हक हो. धर्मग्रंथ भी कहते हैं कि स्त्री भोग की वस्तु है. लेकिन यदि वह जागरूक हो तो खतरा भी बन जाती है.
 
अडि़यल आडवाणी
राजनीतिक कैरियर खत्म करने का सम्मानजनक रास्ता है कि जिसे निबटाना हो उसे राज्यसभा भेज दो, जो वाकई वृद्धाश्रम है. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो इस सजा या इनाम को सिर झुका कर स्वीकार कर लिया लेकिन बुजुर्ग भाजपाई लालकृष्ण आडवाणी अड़ गए कि नहीं, राज्यसभा में नहीं जाऊंगा.
अब नरेंद्र मोदी खेमा अभी इतना ताकतवर भी नहीं हुआ है कि बातबात पर रूठ कर माहौल बिगाड़ने वाले आडवाणी की नई नाराजगी मोल ले. लिहाजा, खामोश रहा. इस से यह साफ हुआ कि अभी प्रधानमंत्री पद का मसला पूरी तरह सुलझा नहीं है और आडवाणी जैसे अनुभवी नेता पर पुराने टोटके नहीं चलेंगे.
 

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