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खूबसूरत वादियों और वाइल्डलाइफ का अद्भुत मेल उत्तराखंड

विविध वन्यजीव और प्राकृतिक सौंदर्य के आंचल में बसे उत्तराखंड की बात ही निराली है. यहां खूबसूरत वादियों में सैलानियों को रोमांचक अनुभव के साथसाथ विविध संस्कृति का संगम भी मिलता है तो फिर क्यों न निहारा जाए यहां की खूबसूरती को.
उत्तराखंड में घूमने लायक बहुत जगहें हैं. जो वाइल्डलाइफ पर्यटन का शौक रखते हैं वे यहां के जिम कौर्बेट नैशनल पार्क का दीदार कर सकते हैं. नैनीताल जिले में स्थित यह पार्क 1,318 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इस के 821 वर्ग किलोमीटर में बाघ संरक्षण का काम होता है. दिल्ली से यह पार्क 290 किलोमीटर दूर है.  मुरादाबाद से काशीपुर और रामनगर होते हुए यहां तक पहुंचा जा सकता है. यहां पर तमाम तरह के पशु मिलते हैं. इन में शेर, भालू, हाथी, हिरन, चीतल, नीलगाय और चीता प्रमुख हैं.
यहां 200 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है. यहां अतिथि गृह, केबिन और टैंट उपलब्ध हैं. रामनगर रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर पार्क का गेट है. रामनगर रेलवे स्टेशन से पार्क के लिए छोटीबड़ी हर तरह की गाडि़यां मिलती हैं. यहां कई तरह के रिजोर्ट हैं. यहां से जिप्सी के जरिए पार्क में घूमने की व्यवस्था रहती है.
यहां हाथी भी बहुत उपलब्ध हैं. जो जंगल के बीच ऊंचाई तक सैर कराने ले जाते हैं. हाईवे पर ही हाथी स्टैंड बने हैं. हाथी की सैर चाहे महंगी हो पर यह पर्यटन का मजा दोगुना कर देती है.
सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे के बीच नेचर वाक का आयोजन किया जाता है. जिम कौर्बेट नैशनल पार्क के अलावा उत्तराखंड में कई खूबसूरत स्थल हैं जिन का मजा पर्यटकों को लेना चाहिए.
कौर्बेट पार्क और रामनगर के रास्ते में नदी के किनारे बने रिजोर्ट महंगे हैं पर लगभग हर रिजोर्ट से नदी का और सामने पेड़ों से ढकी पहाडि़यों के सुरम्य दर्शन होते हैं. इन रिजोर्टों में नम: रिजोर्ट बहुत आधुनिक है पर काफी महंगा है. कौर्बेट पार्क के पास नदी के बीच एक चट्टान पर एक मंदिर भी है. जहां आप चढ़ावे के लिए या पाखंड के लिए न जाएं पर वहां नदी किनारे बैठ कर सुस्ताने जरूर जाएं. यह इलाका बहुत शांत और प्रदूषण रहित है.  यहां बने छोटे बाजार में छोटीमोटी आकर्षक चीजें मिलती हैं.
नैनीताल   
उत्तराखंड प्रदेश की सब से अच्छी घूमने वाली जगह है नैनीताल. इस की खासीयत यहां के ताल हैं. यहां पर कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर मजा लिया जा सकता है. काठगोदाम, हल्द्वानी और लालकुआं नैनीताल के करीबी रेलवे स्टेशन हैं जहां से पर्यटक बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से नैनीताल पहुंच सकते हैं. हनीमून कपल की यह सब से पसंदीदा जगह है. नैनीताल को अंगरेजों ने हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. यहां की इमारतों को देख कर अंगरेजी काल की वास्तुकला दिखाई देती है.  नैनीताल शहर के बीचोबीच एक झील है, इस को नैनी झील कहते हैं. इस झील की बनावट आंखों की तरह की है. इसी कारण इस को नैनी और शहर को नैनीताल कहा जाता है.
काठगोदाम नैनीताल का सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. इस को कुमाऊं का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. गौला नदी इस के दाएं ओर से हो कर हल्द्वानी की ओर बहती है. हल्द्वानी व काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए बसें चलती हैं. काठगोदाम से नैनीताल के लिए जब आगे बढ़ते हैं तो ज्योलिकोट में चीड़ के घने वन दिखाई पड़ते हैं. यहां से कुछ दूरी पर कौसानी, रानीखेत और जिम कौर्बेट नैशनल पार्क भी पड़ता है.
भीमताल नैनीताल का सब से बड़ा ताल है. इस की लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 175 मीटर है. भीमताल की गहराई 15 से 50 मीटर तक है. भीमताल के 2 कोने हैं. इन को तल्ली ताल और मल्ली ताल के नाम से जाना जाता है. ये दोनों कोने सड़क से जुडे़ हैं. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 किलोमीटर है.  भीमताल से 3 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व की ओर 9 कोनों वाला ताल है जो नौ कुचियाताल कहलाता है. सातताल कुमाऊं इलाके का सब से खूबसूरत ताल है. इतना सुंदर कोई दूसरा ताल नहीं है. इस ताल तक पहुंचने के लिए भीमताल से हो कर रास्ता जाता है. भीमताल से इस की दूरी 4 किलोमीटर है.
नैनीताल से यह 21 किलोमीटर दूर स्थित है.  साततालों में नलदमयंती ताल सब से अलग है. इस का आकार समकोण वाला है.  नैनीताल से 6 किलोमीटर दूर खुर्पाताल है. इस ताल का गहरा पानी इस की सब से बड़ी सुंदरता है. यहां पर पानी के अंदर छोटीछोटी मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है. इन को रूमाल के सहारे पकड़ा भी जा सकता है.
रोपवे नैनीताल का सब से प्रमुख आकर्षण है. यह स्नोव्यू पौइंट और नैनीताल को जोड़ता है. यह मल्लीताल से शुरू होता है. यहां पर 2 ट्रोलियां हैं जो सवारियों को ले कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हैं.   रोपवे से पूरे नैनीताल की खूबसूरती को देखा जा सकता है. मालरोड यहां का सब से आधुनिक बाजार है. यहीं पास में नैनी झील है. यहां पर बोटिंग का मजा लिया जा सकता है. मालरोड पर बहुत सारे होटल, रेस्तरां, दुकानें और बैंक हैं. यह रोड मल्लीताल और तल्लीताल को जोड़ने का काम भी करता है. यहां भीड़भाड़ और शांत दोनों तरह की जगहें हैं. नैनीताल में ही टैक्सी स्टैंड के पास 5 केव बनी हैं. इन के अंदर घुसने में रोमांचक अनुभव किया जा सकता है. यह जगह बहुत ठंडी और एकांत वाली है. हनीमून कपल को ऐसी जगहें खासतौर पर लुभाती हैं.
रानीखेत 
अगर आप पहाड़, सुंदर घाटियां, चीड़ व देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़, संकरे रास्ते और पक्षियों का कलरव सुनना चाहते हैं तो आप के लिए रानीखेत से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती. यहां शहर के कोलाहल से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य देखने को मिलेगा.
25 वर्ग किलोमीटर में फैले रानीखेत को फूलों की घाटी कहा जाता है. यहां से दिखने वाले पहाड़ों पर सुबह, दोपहर और शाम का अलगअलग रंग साफ दिखता है. इस इलाके में छोटेछोटे खेत हुआ करते थे, इसी कारण इस का नाम रानीखेत पड़ गया. इस शहर का बाजार पहाड़ों की उतार पर बसा है इसी कारण इस को खड़ा बाजार भी कहा जाता है. रानीखेत घूमने के लिए सब से बेहतर समय अप्रैल से सितंबर मध्य तक रहता है. यहां का सब से करीबी हवाईअड्डा पंतनगर है. यहां से 119 किलोमीटर टैक्सी से सफर कर रानीखेत पहुंचना होगा. रेलगाड़ी से पहुंचने के लिए काठगोदाम सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. यहां से रानीखेत 84 किलोमीटर दूर है. यहां से बस और टैक्सी दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं.
रानीखेत में देखने वाली तमाम जगहें हैं. इन में सब से प्रसिद्ध उपत नामक जगह है. यह रानीखेत शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते में है. चीड़ के घने जंगल के बीच यहां दुनिया का सब से मशहूर गोल्फ मैदान भी है. यहां कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. कोमल हरी घास वाला यह मैदान 9 छेदों वाला है. ऐसा मैदान बहुत कम देखने को मिलता है. यहां खिलाडि़यों के रहने के लिए सुंदर बंगला भी बना है. रानीखेत शहर से
6 किलोमीटर दूर स्थित चिलियानौला नामक जगह है. घूमने और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह एक अच्छी जगह है. यहां फूलों के सुंदर बाग हैं जिन की सुंदरता देखते ही बनती है.
रानीखेत से 10 किलोमीटर दूर चौबटिया जगह है. यहां फलों का सब से बड़ा बगीचा है. यहां आसपास पानी के 3 झरने हैं जो देखने वालों को बहुत लुभाते हैं. रानीखेत से 35 किलोमीटर दूर शीतलखेत है. यहां से बर्फ से ढकी पहाडि़यां देखने में बहुत अच्छा महसूस होता है. ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरा रानीखेत दिखता है. रानीखेत से
40 किलोमीटर दूर द्वाराहाट है. ऐतिहासिक खासीयत वाली जगहों को देखने के लिए लोग यहां आते हैं.
पर्वतों की रानी मसूरी
देहरादून जाने वाला हर पर्यटक मसूरी जरूर जाना पसंद करता है. मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां पर लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा
जाता है. यह  देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. देहरादून तक आने के लिए देश के हर हिस्से से रेल, बस और हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है. इस के उत्तर में बर्फ से ढके पर्वत दिखते हैं और दक्षिण में खूबसूरत दून घाटी दिखती है. इस सौंदर्य के कारण देखने वालों को मसूरी परी महल सी प्रतीत होती है. यहां पर देखने और घूमने वाली बहुत सारी जगहें हैं.
मुख्य आकर्षण 
मसूरी के करीब दूसरी ऊंची चोटी पर जाने के लिए रोपवे का मजा घूमने वाले लेते हैं.  यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है. यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है. रोपवे की लंबाई केवल 400 मीटर है. गन हिल से हिमालय पर्वत शृंखला बंदरपच, पिठवाड़ा और गंगोत्तरी को देखा जा सकता है. मसूरी और दून घाटी के सुंदर दृश्यों को यहां से देखा जा सकता है. आजादी से पहले इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप प्रतिदिन दोपहर में चलाई जाती थी. इस से लोग अपनी घडि़यों में समय मिलाते थे.
मसूरी का कंपनी गार्डन सुंदर उद्यान है. चाइल्डर्स लौज लाल टिब्बा के निकट स्थित मसूरी की सब से ऊंची चोटी है. मसूरी के पर्यटन कार्यालय से यह केवल 5 किलोमीटर दूर है. यहां तक घोडे़ पर या पैदल पहुंचा जा सकता है. यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है.
झड़ीपानी फौल मसूरी से 8 किलोमीटर दूर स्थित है. घूमने वाले यहां तक 7 किलोमीटर तक की दूरी बस या कार से तय कर सकते हैं. इस के बाद पैदल 1 किलोमीटर चल कर झरने तक पहुंच सकते हैं. मसूरी से 7 किलोमीटर दूर मसूरी देहरादून रोड पर भट्टा फौल स्थित है. यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. कैंपटी फौल मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत झरना है. यह चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. मसूरीयमुनोत्तरी मार्ग पर लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह झरना 5 अलगअलग धाराओं में बहता है. यह पर्यटकों की सब से पसंदीदा जगह है.
मसूरीदेहरादून रोड पर मूसरी झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. यहां पर पैडल बोट से झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है. यहां से घाटी के सुंदर गांवों को भी देखा जा सकता है. टिहरी बाईपास रोड पर लगभग 2 किलोमीटर दूर एक नया पिकनिक स्पौट बनाया गया है. इस के आसपास पार्क बने हैं. यह जगह देवदार के जंगलों और फूल की झाडि़यों से घिरी है. यहां तक पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. इस पार्क में वन्यजीव, जैसे घुरार, कंणकर, हिमालयी मोर और मोनल आदि पाए जाते हैं.
मसूरी से 27 किलोमीटर चकराताबारकोट रोड पर यमुना ब्रिज है. यह फिशिंग के लिए सब से अच्छी जगह है. यहां परमिट ले कर फिश्ंिग की जा सकती है. मसूरी से लगभग 25 किलोमीटर दूर मसूरीटिहरी रोड पर धनोल्टी स्थित है. इस मार्ग में चीड़ और देवदार के जंगलों के बीच बुरानखांडा का शानदार दृश्य देखा जा सकता है. वीकएंड मनाने के लिए बहुत सारे परिवार धनोल्टी आते हैं. यहां रुकने के लिए टूरिस्ट बंगले भी उपलब्ध हैं.
धनोल्टी से लगभग 31 किलोेमीटर दूर चंबा जगह है. इस को टिहरी भी कहते हैं. यहां पहुंचने के लिए लोगों को जिस सड़क से हो कर गुजरना पड़ता है वह फलों के बागानों से घिरी है. सीजन के दौरान पूरे मार्ग पर सेब बहुत मिलते हैं. बसंत के मौसम में फलों से लदे वृक्ष देखते ही बनते हैं. इन को देखना आंखों को बहुत सुखद लगता है.
देहरादून        
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शिवालिक पहाडि़यों में बसा एक बहुत खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इस को दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाके सा होता है पर शाम ढलते ही यहां का तापमान बदल कर पहाड़ों जैसा हो जाता है. देहरादून के तापमान में पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों का मजा मिलता है.देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगा व यमुना नदियां बहती हैं. इस के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाडि़यां हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्य प्राणियों को भी देखा जा सकता है.
देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिक्षा संस्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है. देहरादून 2110 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. पर्वतों की रानी मसूरी के नीचे स्थित होने के कारण देहरादून में गरमी का मौसम भी सुहावना रहता है.
दर्शनीय स्थल
देहरादून में घूमने लायक सब से अच्छी जगह सहस्रधारा है.  देहरादून के करीब ही मसूरी है. यहां लोग जरूर घूमने जाते हैं. सहस्रधारा देहरादून से सब से करीब है. सहस्रधारा गंधक के पानी का प्राकृतिक स्रोत है. देहरादून से इस की दूरी करीब 14 किलोमीटर है. जंगल से घिरे इस इलाके में बालदी नदी में गंधक का स्रोत है. गंधक का पानी स्किन की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है. बालदी नदी में पडे़ पत्थरों पर बैठ कर लोग नहाते हैं. सहस्रधारा जाने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा उपलब्ध है. बस का किराया 20-22 रुपए के आसपास है. आटो टैक्सी आनेजाने का 200 रुपए ले लेती है.
सहस्रधारा के बाद ‘गुच्चू पानी’ नामक जगह भी देखने वाली है. यह शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गुच्चू पानी जलधारा है. इस का पानी गरमियों में ठंडा और जाड़ों में गरम रहता है. गरमियों में घूमने वाले यहां जरूर आते हैं. गुच्चू पानी आने वाले लोग अनारावाला गांव तक कार या बस से आते हैं. यहीं पर घूमने वाली एक जगह और है जिस को रौबर्स केव के नाम से जाना जाता है. देहरादून से सहस्रधारा जाने वाले रास्ते के बीच ही खलंग स्मारक बना हुआ है. यह अंगरेजों और गोरखा सिपाहियों के बीच हुए युद्ध का गवाह है. 1 हजार फुट की ऊंचाई पर यह स्मारक रिसपिना नदी के किनारे स्थित है.
देहरादूनदिल्ली मार्ग पर बना चंद्रबदनी एक बहुत ही सुंदर स्थान है. देहरादून से इस की दूरी 7 किलोमीटर है. यह जगह चारों ओर पहाडि़यों से घिरी हुई है. यहां आने वाले लोग इस का प्रयोग सैरगाह के रूप में करते हैं. यहां पर एक पानी का कुंड भी है. अपने सौंदर्य के लिए ही इस का नाम चंद्रबदनी पड़ गया है.  देहरादून से 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बहुत ही खूबसूरत जगह को लच्छीवाला के नाम से जाना जाता है. जंगल में बहती नदी के किनारे होने के कारण लोग घूमने आते हैं. जंगल में होने के कारण यहां पर जंगली पशुपक्षी भी यहां पर देखने को मिल जाते हैं.
देहरादूनचकराता रोड पर 50 किलोमीटर की दूरी पर कालसी जगह है जहां पर सम्राट अशोक के प्राचीन शिलालेख देखने को मिल जाते हैं. यह लेख पत्थर की बड़ी शिला पर पाली भाषा में लिखा है. पत्थर की शिला पर जब पानी डाला जाता है तभी यह दिखाई देता है.
देहरादूनचकराता मार्ग पर 7 किलोमीटर दूर वन अनुसंधानशाला की सुंदर सी इमारत बनी है. यह इमारत ब्रिटिशकाल में बनी थी. यहां पर एक वनस्पति संग्रहालय बना है जिस में पेड़पौधों की बहुत सारी प्रजातियां रखी हैं.
गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 1977 में चीला वन्य संरक्षण उद्यान को बनाया गया था. यहां पर हाथी, टाइगर और भालू जैसे तमाम वन्यजीव पाए जाते हैं. नवंबर से जून का समय यहां घूमने के लिए सब से उचित रहता है. शिवालिक पहाडि़यों में 820 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में राजाजी नैशनल पार्क बनाया गया है. इस पार्क में स्तनपायी और दूसरी तरह के तमाम जीवजंतु पाए जाते हैं. सर्दी के मौसम में आप्रवासी पक्षी भी यहां पर खूब आते हैं.
कौसानी 
कौसानी को भारत की सब से खूबसूरत जगह माना जाता है. शायद इसी वजह से इस को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं. कौसानी उत्तराखंड के अल्मोडा शहर से 53 किलोमीटर उत्तर में बसा है. यह बागेश्वर जिले में आता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है. कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए रेलमार्ग से पहले काठगोदाम आना पड़ता है. यहां से बस या टैक्सी के द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से कौसानी के लिए बस सेवा मौजूद है.
कौसानी में सब से अच्छी घूमने वाली जगह यहां के चाय बागान हैं. ये कौसानी के पास स्थित हैं. यहां चाय की खेती को देखा जा सकता है. घूमने वाले यहां की चाय की खरीदारी करना नहीं भूलते. यहां की चाय का स्वाद जरमनी, आस्टे्रलिया, कोरिया और अमेरिका तक के लोग लेते हैं. भारी मात्रा में यहां की चाय इन देशों को निर्यात की जाती है.
कौसानी के आसपास भी घूमने वाली जगहें हैं. इन में कोट ब्रह्मारी 21 किलोमीटर दूर है. अगस्त माह में यहां मेला लगता है. 42 किलोमीटर दूर बागेश्वर में जनवरी माह में उत्तरायणी मेला लगता है. यहां से कुछ दूरी पर ही नीलेश्वर और भीलेश्वर की पहाडि़यां हैं जो देखने में बहुत सुंदर लगती हैं.

कश्मीर खूबसूरती बेमिसाल

कश्मीर की शीतल आबोहवा, हरेभरे मैदान और खूबसूरत पहाडि़यों की हसीन वादियों में प्रकृति की अद्भुत चित्रकारी अनुपम सौंदर्य की छटा बिखेरती है. यही वजह है कि कश्मीर हर दिल में बसता है और सैलानियों को बारबार बुलाता है.
 
धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वह कश्मीर है. यहां की खूबसूरत वादियां, ऊंचीऊंची पहाडि़यां, घाटियों के बीच में बहती झीलें, झाडि़यों से भरे जंगल, फूलों से घिरी पगडंडियां, ऐसा प्रतीत कराती हैं जैसे यह स्वप्निल स्थल हो. भारत के नक्शे में यह एक मुकुट के समान है जो हर मौसम में अपना रंग बदलता है. यहां पर खूबसूरत वादियां पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. 
यहां पूरे साल लाखों पर्यटक घूमने और अपनी छुट्टियां बिताने आते हैं यह अपनी प्राकृतिक खूबसूरतीके साथसाथ साहसिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है, जैसे ट्रैकिंग, राफ्ंिटग, स्कीइंग और पैराग्लाइडिंग. जम्मूकश्मीर में यों तो कई पर्यटन स्थल हैं लेकिन दुनियाभर में मशहूर पहलगाम, सोनमर्ग, पटनीटौप, गुलमर्ग, लद्दाख और कारगिल जैसी जगहें अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं. डल झील और नागिन झील यहां की प्रसिद्ध झीलें हैं. साथ ही राष्ट्रीय पार्क और द्राचिगम वन्यजीव अभयारण्य भी यहां खास हैं.
जम्मूकश्मीर में पर्यटन
जम्मूकश्मीर भारत का एक प्रमुख पर्यटन राज्य है. कश्मीर का श्रीनगर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी और जम्मू शीतकालीन राजधानी है. जम्मू में पर्यटन के लिए अमर महल पैलेस संग्रहालय और डोगरा कला खास हैं जो कलाप्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.  मुबारक मंडी पैलेस, बाहु किला और रणबीर नहर खास दर्शनीय स्थल हैं. 
कश्मीर के पहाड़, झील, साफ नीला पानी और सुखद जलवायु इस की प्रमुख विशेषताएं हैं. सेब और चैरी के बागान, हाउसबोट और कश्मीरी हस्तशिल्प कश्मीर घाटी की खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं. यहां पर्यटन के कई स्थान हैं :
गुलमर्ग
यह हिमालय पर्वतशृंखला में सब से खूबसूरत स्थान है. इस की ऊंचाई 2730 मीटर है और यह ऊंचेऊंचे कोनिफर वृक्षों से ढका हुआ है. यह गोल्फ की पहाडि़यों और गोल्फ कोर्स के साथ सुंदर नावों के लिए मशहूर है. यह श्रीनगर से 57 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सैलानी श्रीनगर से गुलमर्ग 2 घंटे में आसानी से पहुंच जाते हैं. यह देश में शीतकालीन खेलों का एक प्रमुख स्थान है. गुलमर्ग जाएं तो स्कीइंग का मजा जरूर लें.
सोनमर्ग
सोनमर्ग जम्मूकश्मीर का सब से प्रसिद्ध हिल रिजोर्ट है. इसे जम्मूकश्मीर का दिल कहा जाता है. समुद्र तल से लगभग 2,730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सोनमर्ग काफी सुंदर है. यह पाइन पेड़ों से घिरा हुआ है. श्रीनगर से निजी वाहन से सोनमर्ग के लिए 2,500 रुपए लगते हैं, लेकिन वहां जाने से पहले श्रीनगर पर्यटन अधिकारी से वहां के मौसम की जानकारी जरूर हासिल कर लें.
पहलगाम
श्रीनगर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पहलगाम को बौलीवुड के कारण पहचान मिली है. इस के आसपास स्थित आरू घाटी तथा बेताब घाटी में कई फिल्मों की शूटिंग हुई है. यह घने देवदार और चीड़ के वृक्षों से घिरा हुआ है. यहां घुड़सवारी, ट्रैकिंग, फिश्ंिग की पूरी सुविधा है. पहलगाम जाएं तो ट्रैकिंग का मजा अवश्य लें. यह अनुभव आप के लिए एकदम
अलग होगा.
श्रीनगर
श्रीनगर जम्मूकश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है. श्रीनगर में सुंदर झीलें और उन पर तैरती हाउसबोट का नजारा मन मोह लेता है. सूखे मेवे और पारंपरिक कश्मीरी हस्तशिल्प यहां के कुछ अन्य प्रमुख आकर्षण हैं. श्रीनगर में सब से खास जगह डल झील है. जहां जाने के बाद इंसान हर चिंता भूल जाता है. वहां हाउसबोट में रहने का मजा ही कुछ और है. पानी के बीचोंबीच वहां एक छोटा सा गांव बसा हुआ है, जहां जरूरत की सारी चीजें उपलब्ध हैं. झील का मजा लेने के लिए सब से अच्छा है कि आप शिकारा बोट में बैठ कर घूमें.
पटनीटौप
यह एक हिल स्टेशन है.  प्रकृति का आनंद उठाने के लिए यह एक सुंदर स्थान है. यह घास के मैदान, पाइन के घने और हरेभरे पेड़ों से घिरा है. ऊंचाई पर स्थित होने के साथ यह अपनी सुंदर पगडंडियों के चलते एक लोकप्रिय स्थल है. यहां से पहाड़ों के मनोहारी दृश्य दिखाई देते हैं. ठंड के मौसम में यहां आमतौर पर बर्फ की मोटी परत जमा हो जाती है. और तब वहां स्कीइंग सहित कई प्रकार के बर्फ के खेल खेलने का मजा ही कुछ और होता है.
लद्दाख
यह दुनिया की सब से ऊंची पर्वत शृंखलाओं से घिरा हुआ है. इस के उत्तर में काराकोरम और दक्षिण में हिमालय पर्वत है. लद्दाख में कई प्राचीन मठ, महल और ट्रैकिंग की जगहें हैं. वहां आप ट्रैकिंग का खास मजा ले सकते हैं. लद्दाख रिवर राफ्ंिटग, पहाड़ों पर चढ़ाई और ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है. यहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है, इसलिए यहां यात्रा करने के लिए हमेशा गरमी के मौसम में ही जाएं. लद्दाख जाने का सब से अच्छा समय जून से अगस्त के बीच का होता है.
लेह
यह एक बहुत सुंदर एवं मनोरम पर्यटन स्थल है. लद्दाख की राजधानी होने के कारण यहां लंबे समय से तिब्बती और बौद्ध संस्कृति का असर रहा है. यहां के मनोरम दृश्य और लेह के ऊंचे पहाड़ पर्यटकों के साथसाथ रोमांच पसंद करने वाले लोगों को भी आकर्षित करते हैं. ठंड के मौसम में यहां तापमान शून्य डिगरी से नीचे चला जाता है. इसलिए जब भी जाएं तो अपने साथ खूब सारे गरम कपड़े ले जाना न भूलें.
भद्रवाह
भद्रवाह को मिनी कश्मीर के रूप में जाना जाता है. यह देवदार वृक्षों से घिरा हुआ है. यहां कैलाश कुंड, जय घाटी, चिंता घाटी, पादरी घाटी देखने की खास जगहें हैं. भद्रवाह पहुंचने के लिए मुख्य केंद्र जम्मू है. जम्मू से भद्रवाह सड़क के रास्ते से पहुंचा जा सकता है.
मौसम
जम्मूकश्मीर में घूमने के लिए कभी भी जाया जा सकता है. फिर भी वहां की यात्रा के लिए सब से अच्छा समय मार्च से अक्तूबर के बीच का है. इस दौरान वहां का मौसम काफी अच्छा रहता है. तब वहां की खूबसूरती ज्यादा निखर कर सामने आती है.
कहां ठहरें : यहां ठहरने के लिए कई जगहें हैं. आसपास के इलाकों में कई होटल, गैस्ट हाउस, हाउसबोट हैं. जम्मूकश्मीर नगर निगम द्वारा भी यहां कई कौटेज व बंगले बनाए गए हैं, जहां ठहरा जा सकता है. इस के अलावा कई लोगों ने अपनेअपने घरों में भी सैलानियों के ठहरने की व्यवस्थाएं कर रखी हैं.
खरीदारी : कश्मीर में पारंपरिक कपड़े यात्रियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. कश्मीर में शौल, वुलेन कपड़े अच्छे मिलते हैं. यहां की सिल्क की साड़ी, स्टोन बौक्स, टोकरी बुनाई, लकड़ी के समान भी काफी मशहूर हैं.
कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग : श्रीनगर, जम्मू और लेह इन तीनों जगहों में हवाई अड्डे हैं. अर्थात प्रमुख एअरलाइंस इन हवाई अड्डों के लिए नियमित उड़ानें संचालित करती हैं.
सड़क मार्ग : दिल्ली, अमृतसर, अंबाला, चंडीगढ़, लुधियाना, जालंधर, पठानकोट, शिमला और मनाली से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है.    
  

रंग शरीर को कहीं न कर दें बदरंग

होली यों तो मौजमस्ती और रंगों का उत्सव है लेकिन कैमिकल और मिलावटी रंगों के प्रयोग से होली का रंग बदरंग हो जाता है. नतीजतन कई तरह की हैल्थ प्रौब्लम त्योहार को कड़वा अनुभव बना डालती है. इस होली आप के रंग में भंग न पड़े, इस के लिए किन जरूरी बातों का ध्यान रखें, जानिए इस लेख में.
फागुन का महीना यानी मस्ती का आलम और होली के दिन तो क्या बच्चे क्या बूढ़े और क्या जवान, सभी मस्ती में डूब जाते हैं. मस्तानों की टोली एकदूसरे को रंग और गुलाल से सराबोर कर देती है. चुहलबाजी और छेड़छाड़ इस दिन जम कर होती है. इस रंगीले त्योहार में लोग गम को भूल कर खुशियों के रंग में डूब जाते हैं.
वक्त बदलने के साथसाथ लोग भी बदल गए हैं. उन के पास रंगों के चुनाव के लिए समय नहीं है. बदले जमाने में लोगों के पास अब बुरांस या टेसू के फूलों का रंग बनाने का समय नहीं है, इसलिए बिना वक्त गंवाए लोग बाजार से रंग खरीद लेते हैं क्योंकि तरहतरह के रंगों से बाजार अटा पड़ा होता है. इस दौरान वे यह भी नहीं देखते कि वे जो रंग खरीद रहे हैं वे असली हैं या नकली. यह जरूर देखते हैं कि वे चटख व असरदार हैं पर इन रंगों में तरहतरह के कैमिकल व शीशाचूर्ण इतना होता है कि उन का सीधासीधा असर आप के शरीर पर
पड़ता है.
हर्बल रंगों का करें इस्तेमाल
सीनियर फिजीशियन डा. कृष्ण कुमार अग्रवाल का कहना है कि जो रंग या गुलाल ज्यादा चमकदार होगा, समझिए कि उस में ज्यादा मात्रा में कैमिकल मौजूद हैं. असली रंगों की मात्रा को कम करने के लिए ऐसा किया जाता है. एक समय सिंघाड़े के आटे से गुलाल बनाया जाता था. पर महंगाई इतनी है कि अब यह दूर की कौड़ी है. अब तो घटिया अरारोट के अलावा अबरक पीस कर मिला दिया जाता है, ताकि वह चमकीला लगे. इस के अलावा कई तरह के कैमिकल मिला कर गुलाल बनाए जाते हैं.
आप की होली खुशनुमा हो इस के लिए होली की मस्ती में यथासंभव हर्बल रंगों का इस्तेमाल करें. हर्बल रंग से आप की त्वचा खराब नहीं होगी. लेकिन ज्यादातर लोग नौनहर्बल रंगों का इस्तेमाल करते हैं. नौनहर्बल रंगों में कैमिकल के अलावा पेंट व शीशा मिला हुआ होता है, इस से शरीर की चमड़ी पर बुरा असर पड़ता है.
ग्रीन कलर यानी हरा रंग आंखों के लिए खतरनाक है, क्योंकि हरे रंग में शीशा मिलाया जाता है. वहीं लाल रंगों में लेड मिलाया जाता है जो सेहत के लिए खतरनाक है क्योंकि अगर यह रंग पेट के अंदर चला जाए तो चिड़चिड़ापन होने लगता है.
होली पर बाजार में बेचे जाने वाले ज्यादातर रंग औक्सीडाइज्ड मैटल होते हैं या इंजन औयल के साथ इंडस्ट्रियल ड्राई को मिक्स कर के तैयार किए जाते हैं. हरा रंग कौपर सल्फेट से, बैगनी क्रोमियम आयोडाइज्ड से, सिल्वर एल्युमिनियम ब्रोमाइड और काला रंग लेड औक्साइड से तैयार किया जाता है. रंग को चमकदार बनाने के लिए अकसर रंग में कांच का बुरादा मिलाया जाता है. ये सभी रंग विषैले होते हैं. इन से त्वचा में एलर्जी, आंखों में जलन और यहां तक कि अंधेपन जैसी परेशानी भी हो सकती है. धोने पर जब वे पानी या मिट्टी में मिल जाते हैं तो प्रदूषण का कारण बनते हैं. इसीलिए सभी को सुरक्षित रंगों से ही होली खेलनी चाहिए.
लेड औक्साइड (काला) से गुरदे खराब हो सकते हैं. यह व्यक्ति की सीखने की क्षमता को भी समाप्त कर सकता है. कौपर सल्फेट (हरा) आंखों में एलर्जी और अस्थायी अंधेपन का कारण बन सकता है. क्रोमियम आयोडाइड (परपल) ब्रोंकियल अस्थमा और एलर्जी पैदा कर सकता है. एल्युमिनियम ब्रोमाइड (सिल्वर) से कैंसर तक की बीमारी हो सकती है. बेहतर यही होगा कि आप प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करें. इन रंगों को प्राकृतिक पदार्थों से बनाया जाता है.
त्वचा की एलर्जी
नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर त्वचा विशेषज्ञ डा. रोहित बत्रा ने पाउडर एवं तरल रंगों से होने वाली परेशानियों के बारे में बताया कि इन रंगों को अत्यधिक सक्रिय रासायनिक पदार्थों से बनाया जाता है जो त्वचा की गंभीर बीमारियों को जन्म देती है. जैसे :
एक्जिमा : यह कृत्रिम रंगों के कारण होने वाली त्वचा की आम बीमारियों में से एक है. इस एलर्जिक अवस्था में त्वचा की परतें उतरने लगती हैं, परतें उतरने के कारण बहुत ज्यादा खुजली होती है. त्वचा पर सूजन आ जाती है. इस के अलावा त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं.
डर्मेटाइटिस : एटोपिक डर्मेटाइटिस रंगों की रासायनिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होने वाली एक अन्य प्रकार की एलर्जी है. इस में रोगी को बहुत तेज खुजली व दर्द होता है और त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं.
रासायनिक रंगों से नाक की झिल्ली में सूजन आ जाती है. नाक में कंजेशन, डिस्चार्ज, खुजली और बारबार छींक जैसी समस्या अकसर हो जाती है.
अस्थमा : कृत्रिम रंगों के इस्तेमाल से वायु मार्गों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. यह अस्थमा का कारण बन सकता है. एलर्जिक स्थिति में व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है.
न्यूमोनाइटिस यानी न्यूमोनिया : रासायनिक रंगों के इस्तेमाल से व्यक्ति न्यूमोनिया का शिकार भी हो सकता है, इस में रोगी को बुखार, छाती में अकड़न, थकान और सांस लेने में परेशानी होती है.
त्वचा की देखभाल
रंग खेलने जाने से कम से कम 10 मिनट पहले चेहरे पर सनस्क्रीन और मौश्चराइजर लगाएं. होंठों को हानिकारक रंगों से बचाने के लिए होंठों पर लिप बाम की मोटी परत लगाएं. नाखूनों पर ट्रांसपैरेंट नेलपौलिश लगाएं. त्वचा पर नारियल, बादाम, औलिव या सरसों का तेल लगाएं. कानों के पीछे तेल लगाना न भूलें.
इस दौरान किसी भी तरह के फेशियल ट्रीटमैंट से बचें. अगर आप को किसी तरह की एलर्जी की समस्या है तो किसी त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें और विशेषज्ञों की सलाह लिए बिना किसी प्रकार की दवाई न लें.
बालों को हानिकारक रंगों से बचाने के लिए बालों में खूब सारा तेल लगा लें ताकि डाई और रंगों में मौजूद हानिकारक पदार्थ आप के बालों और सिर की त्वचा से न चिपकें. होली खेलने के दौरान पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें. शौट्स के बजाय पूरी लंबाई की पैंट पहनें जिस से आप की त्वचा ढकी रहे.
अपने नाखूनों से रगड़ कर रंग निकालने की कोशिश न करें. शरीर और चेहरे की त्वचा के लिए गे्रन्यूलर स्क्रब का इस्तेमाल करें. रंग निकालने के लिए बालों को2-3 बार शैंपू से अच्छी तरह धोएं. बालों को रूखा होने से बचाने के लिए कंडीशनर लगाना न भूलें. नहाने के बाद शरीर और चेहरे पर बहुत सारा मौश्चराइजर भी लगा लें.
अगर आंखों में रंग चला जाए तो उन्हें रगड़ने के बजाय साफ पानी से छींटे मार कर धोएं.
कैमिकल रंगों से करें परहेज
होली के रंग की मस्ती में भंग न हो जाए इसलिए फल, सब्जी व अनाज से बनने वाले पीला, केसरिया व बैगनी रंगों का इस्तेमाल करें. आंवला से बनने वाले केसरिया रंग व बुरांस के पेड़ से बनने वाले लाल रंग के अलावा चंदन से बनने वाले गुलाल से ही होली खेलें.  कैमिकल से बने रंगों के इस्तेमाल से परहेज करें. शराब पी कर हुल्लड़बाजी
से बचें. बेहूदा हरकत न करें और न ही दूसरे को यह हरकत करने दें. नहीं तो कहीं रंग में भंग न पड़ जाए और रंग शरीर को कहीं बदरंग न कर दे. भई, होली खेलिए, मौजमस्ती कीजिए, पर सलीके से. तभी आप होली का सही माने में मजा ले पाएंगे.

रंगगुलाल से भर लें झोली

होली का त्योहार मीठी शरारतों और उत्सव के माहौल में रम जाने का नाम है. इस दिन दोस्त और दुश्मन सारे गिलेशिकवे भूल कर रंगों की रंगोली के साथ रिश्ते की नई शुरुआत करते हैं. लेकिन जरा संभल कर, इस बार होली में जरूरत है सावधान रहने की. किस से और कैसे, बता रहे हैं आलोक सक्सेना.
होली के सतरंगी रंग प्रेम का आह्वान करते हैं और न सिर्फ उल्लास की मादकता को बढ़ाते हैं बल्कि उत्सव व उत्साह के माहौल को भी जन्म देते हैं. विभिन्न रंगों के रंग तथा अबीरगुलाल का इस्तेमाल कर के जब हम एकदूसरे को रंगते हैं तो हमें प्रसन्नता, मस्ती और आनंद के साथसाथ एक नया परिवर्तन भी दिखाई पड़ता है. विभिन्न रंगों से रंगेपुते चेहरे हमें प्रकृति के साथ रह कर हर हाल में जीने की प्रेरणा प्रदान करते हैं.
होली के रंगों में रंग कर कोई भी एक रंग का नहीं रहता. होली का त्योहार हम सब को थोड़ी सी आजादी दे कर एक नई दुनिया और नए अनुभव से रूबरू कराता है.
होली मीठी शरारतों में रम जाने का दूसरा नाम है. होली पर कोई भी मनुष्य किसी भी प्रकार की वर्जनाओं में नहीं बंधना चाहता. बूढ़ा भी बच्चा बन जाना चाहता है, जीभर मौजमस्ती करना चाहता है. वह भी थोड़ा सा उच्छृंखल हो कर किसी को भी रंगे बिना छोड़ना नहीं चाहता. एकदूसरे को गले लगा कर खुशियां बांटने और जीभर कर हंसनेहंसाने का त्योहार है होली. इसीलिए फगुनाई गीतों में कहा गया है कि होली पर, ‘देवर भी पी (पति) सा लागे…’
आजकल शहरों की होली को देख कर कहा जाने लगा है कि होली, बस 2 घंटे में हो ली. यह बात काफी हद तक सही है, फिर भी होली है तो ऐसे ही नहीं हो जाएगी. कुछ न कुछ रंग आप के ऊपर भी चढ़ेगा ही. होली के हर्ष, उल्लास के लिए यदि थोड़ीबहुत तैयारी पहले कर ली जाए तो होली का मजा 2 घंटे में ही ले कर रंग में भंग होने से बचा जा सकता है.
सलीके से खेलें
होली हो और शरारत न हो, ऐसा तो हो संभव ही नहीं है मगर शरारत भी यदि पूरी तरह मर्यादित हो तो होली का मजा अवश्य कई गुना बढ़ जाता है. लेकिन जरा सी लापरवाही से इस रंगीन त्योहार को बदरंग होने में देर भी नहीं लगती. इसलिए जरूरी है कि होली के अवसर पर आप जिसे भी रंग या अबीरगुलाल लगाएं उस के साथ जोरजबरदस्ती न करें. आपसी सौहार्द्र के साथ रंग लगाने का मजा लें.
होली के अवसर का मौका पा कर कुछ बाहरी शरारती लोग आप की अपनी टोली, अपार्टमैंट या फिर सोसायटी में भी घुस आते हैं. ऐसे लोगों पर आप की और आप के चौकीदार की चौकस नजर रहनी बहुत आवश्यक है वरना कहीं ऐसा न हो कि आप तो होली खेलने में मस्त रहें और कोई आप के फ्लैट में घुस कर आप के फ्रिज या टीवी के ऊपर रखी हुई घड़ी, टेबल पर रखा हुआ आप का लैपटौप या फिर डै्रसिंग टेबल पर रखे हुए कीमती कंगन, टौप्स या फिर आप का कोई अन्य कीमती सामान ही गायब कर जाए.
महिलाएं ऐसे किसी भी परिचित के साथ होली न खेलें जिन के चरित्र पर शक हो क्योंकि बदतमीजी भरी मानसिकता के व्यक्तियों के हाथ आप के शरीर के व्यक्तिगत अंगों पर फिसलते देर नहीं लगती. संभव हो तो इस बात की जानकारी अपने पति, जेठानी तथा सास को पहले से ही दे दें. इस प्रकार होली के दिन आप अपने अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा कर पाएंगी.
आप के महल्ले, अपार्टमैंट तथा सोसायटी के बच्चों को चाहिए कि वे आपसी सौहार्द्र की होली खेलें. गंदे पानी, कीचड़, कोलतार या फिर पत्थर आदि मारमार कर होली न खेलें यह बात आप को अपने आसपास के बच्चों को एकत्रित कर के पहले ही बता देनी चाहिए. लड़का हो या लड़की, एकदूसरे पर अबीरगुलाल लगा कर ही होली का रंग बरसाएं. मारपीट, छीनाझपटी तथा जोरजबरदस्ती किसी से भी न करें. बच्चों को चाहिए कि वे भी अपने घर तथा आसपास के बड़ेबुजुर्गों को शिष्टाचार के साथ रंग लगाएं तथा होली के मौके पर हैलोहाय के स्थान पर सभी बड़ों का हाथ जोड़ कर अभिनंदन जरूर करें.
होली के अवसर पर बच्चा हो या बूढ़ा, एकदूसरे के चेहरों पर रंग लगाने का अधिकार दोनों को है, इसलिए तनिक सा भी संकोच न करें. लेकिन ध्यान रखें रंगों के बहाने किसी से भी बदतमीजी तथा छेड़छाड़ करने की इजाजत किसी को भी नहीं है.
सभ्य होने का दें परिचय
होली सभी को गीतसंगीत पर थिरकने की इजाजत देती है मगर इस का यह मतलब बिलकुल भी नहीं है कि आप तेज आवाज में अपने म्यूजिक सिस्टम का स्पीकर औन कर लें. अपने स्टीरियो, डेक आदि मद्धिम आवाज में ही चलाएं और थिरकने के लिए यह बिलकुल भी जरूरी नहीं है कि आप किसी प्रकार के नशीले पेयपदार्थ या शराब इत्यादि का सेवन करें. होली का असली मजा तो पूरे होशोहवास में रहने पर ही आता है और किसी को आप को बुराभला कहे जाने की नौबत भी नहीं आती.
ध्यान रहे कि शराब, भांग तथा अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से आप के शरीर व दिमाग दोनों पर बुरा असर तो पड़ता ही है, साथ ही इस को पीने के बाद यदि आप कोई असामाजिक हरकत कर बैठते हैं तो आप के ऊपर अव्यावहारिक व्यक्ति या फिर गुंडा या गंदा आदमी होने का कलंक भी लग सकता है. नशे में व्यक्ति को अच्छेबुरे की समझ नहीं रहती है. आप अपना आपा खो कर कुछ ऐसा भी कर सकते हैं जो कि सभ्य समाज को पसंद न हो. इसलिए इस के सेवन से दूर ही रह कर होली का मजा लें.
सही कपड़ों का करें चयन 
होली खेलने तथा गीतसंगीत पर थिरकने से पहले अपने वस्त्रों का चयन अवश्य करें. होली के दिन पहने जाने वाले आप के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जो आप के अंगों को भलीभांति ढक लें. वस्त्र अत्यधिक पुराने या फिर इधरउधर से उधड़े या कटेफटे हुए नहीं होने चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि होली की मौजमस्ती में वे फट जाएं या फिर होली की मस्त टोली, मौका पा कर एक ही झटके में उन्हें फाड़ कर अलग कर दे और आप का मजाक बन जाए. महिलाएं गहरे रंग की ब्रा तथा पैंटी अवश्य पहनें. महिलाएं ऐसे वस्त्रों का चयन कर के पहनें जो होली खेलने के दौरान भीगने पर पारदर्शी रूप न ले सकें. महिलाओं के वस्त्र गहरे रंगों के साथसाथ मोटे भी होने चाहिए. इस के अलावा परिवार के सभी व्यक्तियों को चाहिए कि होली खेलने से पहले अपने सभी कीमती आभूषण अपने शरीर पर से उतार कर उन्हें सुरक्षित स्थान पर अवश्य रख दें.
आंखों का रखें विशेष ध्यान
नेत्ररोग विशेषज्ञ बताते हैं कि रंगों के आंखों में चले जाने से आंख की कौर्निया को नुकसान पहुंच सकता है. इसलिए जब रंग या अबीरगुलाल आप की आंखों में चला जाए तो आंख को साफ पानी से तुरंत धोना जरूरी है. ऐसी स्थिति में आंख को मलना बिलकुल भी नहीं चाहिए. बेहतर होगा कि ‘आई कप’ में साफ पानी भर कर आंख को कई बार धोया जाए. बाजार में जहां चिकित्सा का सामान मिलता है वहां ‘आई कप’ आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.
भांग का सेवन न करें
अपने देश में होली पर भांग का नशा करने का भी चलन वर्षों पुराना है. चिकित्सकों के अनुसार, हृदय रोगियों को भांग से बचना चाहिए. इस के सेवन से दिल की धड़कन बढ़ जाने के साथ ही रक्तचाप यानी ब्लडप्रैशर में भी तीव्रता से वृद्धि होती है. इस के दुष्प्रभाव से मस्तिष्क के तंतुओं पर बुरा असर पड़ता है. भांग के सेवन से यूफोरिया, याददाश्त में असंतुलन, एंग्जाइटी तथा साइको परफार्मैंस जैसे प्रमुख रोग पैदा हो जाते हैं. इसलिए होली की मस्ती में भांग की चुस्की से दूर ही रहें.

पाठकों की समस्याएं

मैं  54 वर्षीय 2 बच्चों का पिता हूं. कुछ महीने पहले मेरी 22 वर्षीय पुत्री का उस की उम्र से बड़े एक युवक ने अकेले में बलात्कार किया. पुत्री 2 दिन लापता रहने के बाद पुलिस स्टेशन में निर्वस्त्र हालत में मिली. बदनामी के डर से दोनों अब विवाह करना चाहते हैं और मुंबई में रहना चाहते हैं. बेटी की अभिनय में रुचि है और वह विवाह के बाद बौलीवुड में काम करने की इच्छुक है. बलात्कारी युवक को इस में कोई आपत्ति नहीं है. क्या मैं दोनों के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लूं? ऐसा करने से मेरी बेटी के भविष्य में कोई समस्या तो नहीं आएगी? सलाह दीजिए.
समाज में आज भी बलात्कार पीडि़त युवती को सम्मान की निगाह से नहीं देखा जाता और उस के लिए वैवाहिक रिश्ते मिलना अत्यंत कठिन होता है. ऐसे में अगर बलात्कारी युवक आप की बेटी के साथ विवाह करना चाहता है और उसे उस की इच्छा से जीने की आजादी भी दे रहा है तो आप को उस के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना चाहिए. ऐसा कर के शायद वह युवक अपनी गलती मान कर आप की बेटी की जिम्मेदारी लेना चाहता है. रेप कर के अपनी जिम्मेदारी से बचने की अपेक्षा विवाह कर के दूसरे शहर में रहने का दोनों का निर्णय सही है.
बलात्कारी अकसर पेशेवर अपराधी नहीं होते. वे मौका देख कर अपनी कामइच्छा को बलपूर्वक पूरा करना चाहते हैं. बाद में वे सामान्य जीवन जीते हैं इसलिए यह जोखिम लिया जा सकता है.
 
मैं 17 वर्षीय युवक हूं. मेरा कद 5 फुट 11 इंच है और वजन 80 किलोग्राम है. पढ़ाई में मैं अच्छा हूं. घर में इकलौता होने के कारण मातापिता के लाड़प्यार के चलते वजन बढ़ गया है. छाती भी लड़कियों की तरह हो गई है. बाजार में मेरे नाप के कपड़े नहीं मिलते. मैं क्या करूं जिस से मैं खोया शारीरिक आकर्षण वापस पा सकूं और दोस्तों के बीच लोकप्रिय हो सकूं?
घर में इकलौता होने का अर्थ यह नहीं कि आप अपने व्यक्तित्व और शारीरिक फिटनैस की ओर ध्यान देना छोड़ दें. आप की लापरवाही की वजह से ही आप का वजन बढ़ गया है और लड़कियों की तरह छाती होने को ‘मेल ब्रैस्ट’ होना कहते हैं जो व्यायाम के अभाव और अनियमित खानपान के कारण होता है. इन सब से बचने के लिए आप रैगुलर ऐक्सरसाइज करें व संतुलित खानपान का नियम बनाएं. इस से आप का वजन भी कम होगा और आप के व्यक्तित्व में भी निखार आएगा.
 
मैं और मेरा बौयफ्रैंड एकदूसरे से प्यार करते हैं और विवाह करना चाहते हैं, लेकिन लड़के के मातापिता मांगलिक दोष को ले कर विवाह में समस्या पैदा कर रहे हैं. कृपया ऐसे व्यक्ति के बारे में बताएं जो विवाह के लिए मांगलिक दोष की समस्या का समाधान बता सके?
वैवाहिक मामलों में मांगलिक दोष जैसी अड़चन पंडितों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए गढ़ी जाती है. ऐसा पंडितों द्वारा पैसा ऐंठने और लोगों को गुमराह करने के उद्देश्य से किया जाता है जबकि वास्तव में यह सिर्फ अंधविश्वास होता है. अनेक ऐसे वैवाहिक संबंध होते हैं जो इन दोषों को दूर करने के बावजूद असफल हो जाते हैं इसलिए इस दोष को दूर करने वाले व्यक्ति को ढूंढ़ने के बजाय व्यर्थ के अंधविश्वास को छोड़ कर  बिना किसी वहम के अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करें.
 
मैं 23 वर्षीय एमबीबीएस, तृतीय वर्ष की छात्रा हूं. मेरा एक बौयफ्रैंड है. हम दोनों एकदूसरे से फोन पर बात करते हैं. पिछले दिनों मैं उस से मिली तो उस ने बताया कि उस की पहले भी एक गर्लफ्रैंड थी जो रिश्ते में उस के मामा की बेटी है. अब उस का उस लड़की से ब्रेकअप हो गया है जिस की वजह से मेरा दोस्त डिप्रैशन में चला गया है और मुझ पर भी विश्वास नहीं करता और मुझ से बुरा बरताव करता है. मैं समझ नहीं पा रही हूं कि क्या वह सचमुच मुझ से प्यार करता है या पिछली गर्लफ्रैंड को भुलाने के लिए मेरा साथ चाहता है. मैं उस से प्यार करती हूं लेकिन साथ ही मेरी पारिवारिक जिम्मेदारियां भी हैं. ऐसे में क्या मैं उस पर विश्वास करूं और अपने रिश्ते को आगे बढ़ाऊं? सही सलाह दीजिए.
जब आप किसी के साथ प्यार में होते हैं तो समझ नहीं पाते कि आप का पार्टनर आप के साथ सिर्फ मतलब के लिए जुड़ा है और आप को इस्तेमाल कर रहा है. ऐसे में अपने प्यार को किसी तीसरे की नजर से देखें और फिर निर्णय लें कि आप को उस रिश्ते में रहना है या बाहर निकलना है. अगर आप की मुलाकातें अकसर तभी होती हैं जब आप के पार्टनर को आप की जरूरत होती है और आप की जरूरत पर वह उपस्थित नहीं रहता तो आप को अपने रिश्ते पर सोचने की जरूरत है क्योंकि इस का अर्थ है कि आप का पार्टनर आप के साथ मतलब के लिए जुड़ा है.
 
मैं 26 वर्षीय विवाहित महिला हूं. विवाह को 2 साल हो गए हैं. पति 12वीं पास हैं और मैं बीए पास हूं. पति का काम सही ढंग से नहीं चलता जिस की वजह से घर में सास की मरजी चलती है. मुझे अपनी पसंद का खाने, पहनने, कहीं आनेजाने की भी आजादी नहीं है. घर के सभी काम करती हूं पर मुझे खर्चे के लिए एक भी पैसा नहीं दिया जाता. कुछ करना चाहती हूं लेकिन समझ नहीं आता क्या और कैसे करूं. बहुत परेशान हूं. सलाह दीजिए.
आप का कुछ न करना ही आप की परेशानी का कारण है. आप शिक्षित हैं तो अपनी शिक्षा का सदुपयोग कीजिए. बच्चों को ट्यूशन पढ़ाइए या अन्य कोई मनपसंद काम कीजिए और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनिए. जब घर की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी तो आप में आत्म- विश्वास जागेगा और घर के निर्णयों में आप की भी राय ली जाएगी. -कंचन द्य 

समय की जरूरत है साइबर सैल

दूरसंचार क्षेत्र की प्रगति की रफ्तार का कोई मुकाबला नहीं है. आम आदमी किस कदर इस की गिरफ्त में है इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हाल ही में दूरसंचार क्षेत्र की कंपनी एयरटेल ने कहा कि उस के ग्राहकों की संख्या 20 करोड़ से अधिक हो गई है. बाजार में उस के टक्कर की अन्य कंपनियां भी हैं जिन्हें मिला कर देश की आबादी के तीनचौथाई हिस्से के पास मोबाइल फोन हैं. दूरसंचार माध्यमों का जाल बिछा है तो अपराध भी इस क्षेत्र में तेजी से पांव पसारने लगे हैं.

एटीएम, बैंक खातों में हेराफेरी, औनलाइन धोखाधड़ी, टैलीफोन पर धमकी, अश्लील बातें जैसे कई अवैध काम हो रहे हैं. इन पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार का इलैक्ट्रौनिक्स सूचना तकनीक विभाग जल्द ही राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र यानी एनसीसीसी स्थापित कर रहा है. मार्च के आखिर तक इस केंद्र की स्थापना की उम्मीद है. सरकार ने यह कदम मोबाइल फोन या स्मार्टफोन को हैक कर के पैसे के लेनदेन पर सेंध लगाने की घटनाओं को रोकने के लिए उठाया है. सिम का क्लोन बना कर हैकिंग की जा रही है जिस से आर्थिक अपराध बढ़ रहे हैं. मोबाइल और कंप्यूटर उपभोक्ताओं को पूरी सुरक्षा देने वाले उपकरणों को बढ़ावा देना तथा साइबर अपराध रोकना इस सैल का प्रमुख काम होगा. सरकार का एक विभाग इस तरह के अपराध पर पैनी नजर रखेगा. इस से अपराध नियंत्रित होंगे. यह अलग बात है कि अपराधी अपने अपराध के तरीके बदलते रहेंगे, इसलिए उन के तरीकों का पता लगाने के लिए एनसीसीसी देश की खुफिया एजेंसियों के संपर्क में भी रहेगा.

बजट में दशक की उपलब्धियां

वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने 15वीं लोकसभा का आखिरी बजट अंतरिम बजट के रूप में पेश किया. शोरशराबे के बीच वित्तमंत्री को जब भी अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनानी होतीं तो वे जोर से अपनी पंक्ति पूरी करते या एक ही वाक्य को दोहराते. उन की पूरी कोशिश थी कि उन का अंतरिम बजट चुनाव में उन के लिए फायदे वाला हो लेकिन उन का यह प्रयास बहुत सफल होता हुआ नजर नहीं आता है. उन्होंने महंगाई रोकने की बात नहीं की, आदमी की बुनियादी जरूरत की वस्तुओं की कीमतें कम हों, इस पर चर्चा नहीं की. फोकस सिर्फ इस बात पर रहा कि सरकार ने 10 साल यानी यूपीए सरकार के 2 कार्यकाल में किस तरह से आम आदमी को मजबूत बनाने की कोशिश की है.

उन्होंने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने अपने लगातार 2 कार्यकाल के शासनकाल में 14 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी की रेखा से बाहर निकाला है. इधर, अकेले दिल्ली में लाखों लोग आज भी सराय में सर्द रातें बिता रहे हैं. उन की संख्या घटी नहीं, बढ़ी है. ऐसे में वित्त मंत्रीजी अपना आंकड़ा कहां से लाए? संप्रग ने सामाजिक क्षेत्र, खासकर शिक्षा, स्वास्थ्य तथा ग्रामीण विकास पर 1 दशक में व्यय को 1 लाख 33 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 5 लाख 56 करोड़ रुपए किया है लेकिन इस का फायदा क्या उसी स्तर पर हुआ है, इस का आंकलन कभी नहीं किया गया. पैसे का आवंटन ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण यह देखना भी है कि पैसे का सही इस्तेमाल हुआ है, संप्रग सरकार ने यह नहीं किया.

 

गरीबों का एक और कुनबा

सरकार ने आर्थिक आधार पर समाज को बांटने के लिए कुछ रेखाएं तय की थीं. उन में गरीबी की रेखा के ऊपर, गरीबी की रेखा पर अथवा गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोग हैं. इस चक्की में आम आदमी को पीसते हुए सरकार आंकड़ों का खेल खेलती है और अपनी उपलब्धियों का बखान करती है. अब एक और रेखा की बात हो रही है और इस रेखा का नाम है ‘अधिकारिता रेखा’ यानी ऐंपावरमैंट रेखा.

इस रेखा में उन लोगों को रखा गया है जो गरीबी रेखा से मामूली ऊपर हैं और जिन्हें भोजन, बिजली, पानी, घर, शौचालय, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सुविधाएं मिल रही हैं. हाल ही में आए सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2022 तक देश की 36 फीसदी आबादी इस रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही होगी. यह सर्वेक्षण मैककिंसी ऐंड कंपनी ने किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, अगले 8 वर्ष में भी देश की 12 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे होगी. गरीबी की रेखा का सरकारी मतलब है व्यक्ति की प्रतिदिन की आय 32 रुपए है. इस से कम आय वाले लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं और सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2022 तक हमारी 1 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे होगी. अधिकारिता की रेखा से नीचे इस समय 50 प्रतिशत से अधिक की आबादी को बताया गया है.

यह रेखा डरावनी है और इसे देख कर स्वच्छ श्वेतवस्त्र पहने हमारे नीति निर्धारकों को शर्म आनी चाहिए. लेकिन शर्म आने की तो उन की नैतिकता ही खत्म हो चुकी है और जब यह स्थिति आती है तो इंसान हैवान बन जाता है. हमारे यहां इस नैतिकता के बिना ही बड़ी तादाद में लोग जनता के भाग्यविधाता बने हैं और जब तक उन की नैतिकता नहीं जागती, गरीबों के कुनबों की नई रेखाएं खिंचती जाएंगी.

 

अंतरिम बजट ने बाजार की सुस्ती तोड़ी

शेयर बाजार में सुस्ती के माहौल के बीच औद्योगिक उत्पाद के कमजोर आंकड़े आए लेकिन वित्तमंत्री पी चिदंबरम के 17 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करने के बाद बाजार में रौनक लौट आई. बजट के दिन हालांकि बाजार में उत्साह का माहौल नहीं था लेकिन बाजार की सुस्ती को बे्रक लग चुका था और बाजार में गिरावट थमी व सूचकांक तेजी पर बंद हुआ. यही स्थिति अगले दिन भी रही और सूचकांक ने 170 अंक की छलांग लगाई. बजट के बाद तीसरे कारोबारी दिवस को तो बाजार 4 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर बंद हुआ.

बाजार की इस बढ़त को अगले सत्र में मामूली झटका लगा और मुनाफा वसूली के कारण 3 दिन की तेजी मामूली गिरावट के साथ थम गई. लेकिन सप्ताह का आखिरी सत्र शुरुआत से ही तेजी के साथ खुला और सूचकांक 167 अंक की छलांग लगाते हुए बाजार 21 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर की तरफ बढ़ता दिखा.

संसद के अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के बाद नई सरकार के गठन तक कोई बड़े फैसले नहीं लिए जा सकते और आचारसंहिता लागू होने के कारण किसी सरकारी उपाय की संभावना नहीं है, इसलिए बाजार की चाल अब बहुतकुछ निवेशकों के उत्साह पर निर्भर करेगी.

 

भारत भूमि युगे युगे

बाल हिंदू परिषद
बात वाकई नपीतुली और स्वयंसिद्ध है कि एक जमाने में लोग ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करना शान और संपन्नता की बात समझते थे. नई पीढ़ी का हिंदू, बच्चों की भीड़ से डरता है. अब तो एक बच्चा भी ‘प्लान’ कर पैदा किया जाता है. 
विश्व हिंदू परिषद के मुखिया अशोक सिंघल ने हिंदुओं को मुफ्त मशविरा दिया है कि हर दंपती कम से कम 5 बच्चे पैदा करे. इस बात से हिंदुओं के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. उलटे, खुद सिंघल जेडीयू के के सी त्यागी जैसे नेताओं के निशाने पर आ गए कि पहले सिंघल को शादी कर यह नेक काम करना चाहिए था और उन के प्रिय शिष्य नरेंद्र मोदी की भी दूसरी शादी करवा कर इतने ही बच्चे पैदा करवाने चाहिए थे. इस के बाद बच्चों की पैदाइश पर व्याख्यान देते तो बात में दम रहता. 
 
लौट के बुद्धू घर को आए
बिहार की राजनीति में एक म्यान में कई तलवारें साथ दिखती रही थीं पर लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान भी भगवा खेमे में जा मिले जिस की वजह वजूद की लड़ाई है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अब पासवान के पास खोने को कुछ नहीं बचा है. उन की जमीन व दौड़ दोनों खत्म हो चुके हैं. वे कहीं भी जाएं एक से दो नहीं हो सकते. 
दरअसल, पासवान सिद्धांतहीन राजनीति करने का खामियाजा भुगत रहे हैं. दलित समुदाय ने कभी उन्हें भी मायावती की तरह हाथोंहाथ लिया था पर वे खुद ही पहले एनडीए और फिर यूपीए के हाथों बहुमत को भुनाते इधरउधर होते रहे तो इसे कैरियर का उत्तरार्द्ध कहने में हर्ज नहीं.
 
अरविंद की मेधावी उम्मीदवार
सपनों में भी आंदोलन करती रहने वाली समाजसेवी और ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की मुखिया मेधा पाटकर भी ‘आम आदमी पार्टी’ से जुड़ कर मुंबई दक्षिण सीट से चुनाव लड़ेंगी, यह खबर अच्छी है, क्योंकि ‘आप’ और अरविंद केजरीवाल को एक अदद आंदोलन विशेषज्ञ की जरूरत थी जो गलीकूचों से ले कर जनपथ, रामलीला मैदानों और संसद तक में सनाका खींचने की योग्यता रखता हो. 
मेधा पाटकर इन तमाम पैमानों पर खरी उतरती हैं. ‘आप’ के ब्रैंडेड व्यक्तित्वों में उन का नाम भी शुमार हो गया है.  उम्मीद है मेधा जीतीं तो राजनेताओं से सारे हिसाब वे चुकता कर लेंगी जो उन्हें विदेशी एजेंट, ड्रामेबाज और न जाने क्याक्या कहा करते रहे हैं.
 
ठहाकों का दर्द
टैलीविजन कार्यक्रमों में गला फाड़ कर हंसतेहंसाते रहने वाले क्रिकेटर और भाजपा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू के सीने में एक दर्द छिपा था जिसे उन्होंने उजागर कर ही दिया कि कल तक जो प्रकाश सिंह बादल उन्हें सगा बेटा मानते थे वे अब सौतेला बरताव करने लगे हैं और अमृतसर सीट से मुझे लड़ाने में उन की दिलचस्पी नहीं तो मैं भी कोई भिखारी नहीं. 
सूफियाना दर्शन के जानकार सिद्धू का दिल शायद भूल गया कि सारी दुनिया भिखारी है, देने वाला तो एक ही है-ऊपर वाला और नीचे नरेंद्र मोदी, जिन की शरण में जाएं तो किस की मजाल कि ठहाकों के मालिक को यों रोंआसा होने दें. वैसे भी राजनीति में कोई किसी का सगासौतेला नहीं होता. सारी लड़ाई पैसों और वोटों की होती है.
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