सरकार ने आर्थिक आधार पर समाज को बांटने के लिए कुछ रेखाएं तय की थीं. उन में गरीबी की रेखा के ऊपर, गरीबी की रेखा पर अथवा गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोग हैं. इस चक्की में आम आदमी को पीसते हुए सरकार आंकड़ों का खेल खेलती है और अपनी उपलब्धियों का बखान करती है. अब एक और रेखा की बात हो रही है और इस रेखा का नाम है ‘अधिकारिता रेखा’ यानी ऐंपावरमैंट रेखा.

इस रेखा में उन लोगों को रखा गया है जो गरीबी रेखा से मामूली ऊपर हैं और जिन्हें भोजन, बिजली, पानी, घर, शौचालय, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सुविधाएं मिल रही हैं. हाल ही में आए सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2022 तक देश की 36 फीसदी आबादी इस रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही होगी. यह सर्वेक्षण मैककिंसी ऐंड कंपनी ने किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, अगले 8 वर्ष में भी देश की 12 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे होगी. गरीबी की रेखा का सरकारी मतलब है व्यक्ति की प्रतिदिन की आय 32 रुपए है. इस से कम आय वाले लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं और सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2022 तक हमारी 1 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे होगी. अधिकारिता की रेखा से नीचे इस समय 50 प्रतिशत से अधिक की आबादी को बताया गया है.

यह रेखा डरावनी है और इसे देख कर स्वच्छ श्वेतवस्त्र पहने हमारे नीति निर्धारकों को शर्म आनी चाहिए. लेकिन शर्म आने की तो उन की नैतिकता ही खत्म हो चुकी है और जब यह स्थिति आती है तो इंसान हैवान बन जाता है. हमारे यहां इस नैतिकता के बिना ही बड़ी तादाद में लोग जनता के भाग्यविधाता बने हैं और जब तक उन की नैतिकता नहीं जागती, गरीबों के कुनबों की नई रेखाएं खिंचती जाएंगी.

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