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मल्लिका की ‘डर्टी पौलिटिक्स’

भंवरी देवी कांड पर बन रही फिल्म ‘डर्टी पौलिटिक्स’ रिलीज से पहले ही विवादों में घिरती जा रही है. विवाद फिल्म के उस पोस्टर को ले कर है जिस में फिल्म की लीड ऐक्ट्रैस मल्लिका शेरावत अपने जिस्म को तिरंगे में लपेटे ऐंबैसेडर कार में सीडी ले कर बैठी है. चूंकि फिल्म राजस्थान में हुए भंवरी देवी हत्याकांड से इंस्पायर है, ऐसे में विवाद की आशंका तो थी लेकिन इस पोस्टर को ले कर हुआ विवाद तो फिल्म को चर्चित ही कर रहा है.

देसी और बोल्ड अवतार में नजर आ रहीं मल्लिका शेरावत की इस फिल्म में ओमपुरी, जैकी श्रौफ, अनुपम खेर, आशुतोष राणा और राजपाल यादव भी नजर आएंगे. वैसे मल्लिका की फिल्म को ले कर मचा बवाल कोई पहली बार नहीं है. इस से पहले भी उन की कई फिल्मों को ले कर कभी छोटे कपड़ों के नाम पर तो कभी किस सींस पर हंगामा मचता रहा है.

 

जापानी इंग्लिशविंग्लिश

यों तो फिल्म ‘इंग्लिशविंग्लिश’ को रिलीज और सफल हुए अरसा हो गया लेकिन इस की चर्चा थमने का नाम ही नहीं ले रही है. खबर है कि श्रीदेवी की कमबैक सुपरहिट फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ अब जापान में जापानी भाषा में डब कर रिलीज की जाएगी. मजेदार बात यह है कि इस के प्रचार के सिलसिले में श्रीदेवी को जापानी वेशभूषा में पेश किया गया. लेकिन यह लुक ‘इंग्लिशविंग्लिश’ फिल्म से नहीं लिया गया है.

आप को बता दें कि जापानी युवती का यह लुक श्रीदेवी की पुरानी फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ से लिया गया है.

चूंकि फिल्म जापान में रिलीज हो रही है, ऐसे में पति बोनी कपूर, जो उस फिल्म के निर्माता हैं, ने पत्नी के इस लुक को प्रचार में शामिल करने की अनुमति दे दी है. लिहाजा, जापान में लोग फिल्म से खुद को कनैक्ट कर सकेंगे. मानना पड़ेगा पब्लिसिटी के फौर्मूले को.

 

करिश्मा लेंगी तलाक

बौलीवुड अभिनेत्री करिश्मा कपूर का वैवाहिक रिश्ता इन दिनों संकट से गुजर रहा है. काफी वादविवाद के बाद उन के पति संजय कपूर अब आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए राजी हो गए हैं. दोनों ने मुंबई की एक फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दे दी है. दरअसल, दोनों के बीच बच्चों की कस्टडी को ले कर मनमुटाव चल रहा था. ऐसे में दोनों ने अदालत की शरण में जाना उचित समझा. कहा तो यह भी जा रहा है कि इन दोनों के बीच किसी तीसरे के आने के चलते ऐसी नौबत आई है. बताते हैं कि संजय कपूर का होटल व्यवसायी विक्रम चटवाल की पूर्व पत्नी प्रिया सचदेव के साथ अफेयर चल रहा था. इसे करिश्मा बरदाश्त नहीं कर पाईं और उन्होंने उन से अलग होने का फैसला लिया.

 

अमिताभ का ‘युद्ध’

इन दिनों छोटा परदा यानी टैलीविजन किसी भी मामले में बड़े परदे से कमतर नहीं रह गया है. तभी तो बड़े से बड़ा सुपरस्टार टीवी पर अभिनय करता नजर आता है. इसी कड़ी में अनुराग कश्यप का भी नाम जुड़ गया. फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ से चर्चा में आए अनुराग कश्यप बतौर निर्देशक सीरियल ‘युद्ध’ को टीवी पर ला रहे हैं. सीरियल की खासीयत यह है कि इस में लीड भूमिका अमिताभ बच्चन निभा रहे हैं. ‘युद्ध’ में बिग बी के अलावा और भी कई शानदार अभिनेता दिखेंगे, जिस में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, के के मेनन, सारिका और तिग्मांशु धूलिया प्रमुख हैं.

बिग बी पहली बार किसी धारावाहिक में अभिनय करते नजर आएंगे. हाल ही में इस सीरियल का पोस्टर लौंच दिल्ली में किया गया. उम्मीद है कि अनुराग और बिग बी की यह जुगलबंदी दर्शकों को रास आएगी.

रितुपर्णा करेंगी देहदान

बांग्ला फिल्मों की जानीमानी अभिनेत्री रितुपर्णा सेनगुप्ता ने हाल ही में देहदान करने का फैसला लिया है. उन्होंने यह फैसला देवदत्त घोष की डौक्यूमेंट्री फिल्म ‘मरणोत्तर देहोदान’ की स्क्रीनिंग के वक्त लिया. दरअसल, रितुपर्णा देहदान के जरिए अंधविश्वासी सोच को खत्म करना चाहती हैं. उन के मुताबिक हमारे आसपास जाने कितने लोग अपंग हैं. अगर हमारी मृत्यु के बाद के अंग ऐसे लोगों के काम आ सकें तो यही दूसरे जन्म जैसा होगा. गौरतलब है कि कुछ समय पहले रितुपर्णा अपने नेत्र भी दान कर चुकी हैं. हम सब परोपकार और मानवता की ढेर सारी बातें करते हैं लेकिन व्यावहारिकता में बेहद अंधविश्वासी हैं. ऐसे में रितुपर्णा का यह कदम समाज के लिए प्रेरणादायक होगा.

कुक्कू माथुर की झंड हो गई ?

एकता कपूर, जो अपनी हर फिल्म, हर धारावाहिक में अंधविश्वासों का प्रचारप्रसार करती रहती है, अपनी इस फिल्म में भी इसी तरह के एक बाबा द्वारा एनलाइटन्मैंट की बात करते दिखाया है. बाबा को दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में मस्त बैठा दिखाया गया है.

‘कुक्कू माथुर की झंड हो गई’ एक लाइट कौमेडी फिल्म है जिस में नायक को एनलाइटन्मैंट प्राप्त होती है जो उस का जीवन सुखद बना देती है, मगर दर्शकों की झंड जरूर हो जाती है.

कुक्कू माथुर (सिद्धार्थ गुप्ता) एक साधारण परिवार का युवक है. वह खाना अच्छा बना लेता है. उस का एक दोस्त रोनी गुलाटी (आशीष जुनेजा) है. वह अपनी कपड़े की दुकान चलाता है. कुक्कू एक प्रोडक्शन कंपनी में स्पौट बौय बन जाता है. कुक्कू की अपने दोस्त से अनबन हो जाती है. वह रोनी से बदला लेना चाहता है. अपने कजिन प्रभाकर भैया (अमित सियाल) के कहने पर वह रोनी के गोदाम से 15 लाख रुपए के कपड़े निकाल कर दुकान में आग लगा देता है. उन पैसों से वह एक रैस्टोरैंट खोल लेता है. जिंदगी चल निकलती है. पर एक दिन सबकुछ बदल जाता है.

कुक्कू एक बाबा से मिलता है जो उसे एनलाइटन्मैंट होने की बात कहता है. अचानक एक दिन कुक्कू को लगता है कि उसे एनलाइटन्मैंट हुआ है. वह रौनी को सब सच बता देता है और उसे चोरी किए कपड़ों से मिले रुपए लौटा देता है. उधर, रौनी के परिवार वालों को इंश्योरैंस का पैसा मिल जाता है तो वह कुक्कू की मदद कर के उस के साथ मिल कर कैटरिंग का बिजनैस खोलता है.

मध्यांतर से पहले तक फिल्म फनी मगर स्लो है, मध्यांतर के बाद सीरियस हो जाती है. फ्रौडी बाबा की भूमिका में बृजेंद्र काला ने अच्छा अभिनय किया है. अमित सियाल का कनपुरिया लहजे में बोलना अच्छा लगता है. बाकी सभी कलाकार नए हैं. उन्होंने कुछ खास नहीं किया है.

निर्देशन साधारण है. निर्देशक ने ‘माता’ के जागरण को जबरदस्ती फिल्म में डाला है और उसे काफी लंबा भी खींचा है. गीतसंगीत बेकार है.

सिटी लाइट्स

फिल्म में आप को मौजमस्ती नजर नहीं आएगी, हां, माइगे्रटेड लोगों का दुखदर्द अवश्य दिखेगा. फिल्म 50 के दशक की लगती है. युवाओं के मतलब की तो यह कतई नहीं है.

‘सिटी लाइट्स’ ब्रिटिश फिल्म ‘मैट्रो मनीला’ से प्रेरित है. निर्देशक ने फिल्म के मुख्य किरदार के लिए राजकुमार राव का चुनाव किया जिस ने उन की पिछली राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘शाहिद’ में शानदार अभिनय किया था.

फिल्म की कहानी दीपक (राजकुमार राव) और राखी (पत्रलेखा) की है जो अपनी छोटी बच्ची को ले कर रोजीरोटी की तलाश में राजस्थान से मुंबई आते हैं. मुंबई में उन्हें रहने को जगह नहीं मिलती. एक ठग मकान के नाम पर उन से 10 हजार रुपए ठग लेता है. मजबूरन राखी को शहर के एक बार में बारगर्ल की नौकरी करनी पड़ती है. दीपक को एक सिक्योरिटी एजेंसी में काम मिल जाता है. इस सिक्योरिटी एजेंसी में काम करने वाला सुपरवाइजर विष्णु (मानव कौल) दीपक को ऐसे मुकाम पर पहुंचा देता है कि चाह कर भी वह वहां से नहीं निकल पाता. दीपक विष्णु के चक्रव्यूह में फंस जाता है और सिक्योरिटी गार्ड्स की गोलियों से छलनी हो जाता है. राखी को विष्णु द्वारा घर में छिपाए गए करोड़ों रुपए के बौक्स का पता चलता है. वह उन रुपयों को बैग में भर कर वापस राजस्थान चली जाती है.

फिल्म की इस कहानी में निर्देशक की पकड़ बनी रही है लेकिन कहानी कहींकहीं ओवर हो गई है. क्या छोटे शहरों से बड़े शहरों में आने वाले लोगों को इतना ज्यादा दुखदर्द सहना पड़ता है, इस पर यकीन नहीं होता.

राजकुमार राव ने ‘शाहिद’ के बाद एक बार फिर टैलेंट दिखाया है. उस ने राजस्थानी भाषा में अपने संवादों को कुशलता से उच्चारित किया है. पत्रलेखा को देख कर लगता ही नहीं कि यह उस की पहली फिल्म है. उस ने जम कर किसिंग सीन दिए हैं. मानव कौल की ऐक्ंिटग भी अच्छी है.

फिल्म के गीत सुनने में अच्छे लगते हैं. गीतों के बोल भी अच्छे हैं. ‘मुसकराने की वजह तुम हो…’ गीत अच्छा बन पड़ा है. छायांकन अच्छा है.

फिल्मिस्तान

‘फिल्मिस्तान’ फिल्म को ईमानदारी से बनाया गया है. निर्देशक नितिन कक्कड़ ने अपनी इस 2 घंटे से भी छोटी फिल्म में जबरदस्ती कुछ भी ठूंसने की कोशिश नहीं की है. उस ने कहीं भी अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी है. कलाकारों का अभिनय हो या फिल्म की लोकेशन या फिर बैकग्राउंड म्यूजिक, फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है.

‘फिल्मिस्तान’ जैसी फिल्में भले ही अवार्ड पा जाती हों, मगर उन्हें रिलीज कर पाना आसान नहीं होता. इस फिल्म को 2 साल पहले राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, मगर कोई खरीदार न मिल पाने के कारण फिल्म 2 साल तक डब्बे में बंद पड़ी रही. किसी तरह अब फिल्म रिलीज तो हो सकी है, परंतु भीड़ जुटा पाएगी, इस में संदेह है.

फिल्म की कहानी पाकिस्तानी आतंकवादियों के एक गुट द्वारा एक भारतीय नौजवान को किडनैप करने की है. सनी अरोड़ा (शारिब हाशमी) पर हीरो बनने का जुनून सवार है. वह मुंबई पहुंचता है परंतु वहां कोई गौडफादर न होने पर उसे हीरो बनने का मौका नहीं मिल पाता. मुश्किल से उसे एक विदेशी प्रोडक्शन कंपनी में प्रोडक्शन असिस्टैंट का काम मिलता है. अपनी फिल्म यूनिट के साथ वह राजस्थान की सीमा से सटे एक गांव में जाता है, जहां विदेशियों को किडनैप करने आए पाकिस्तानी आतंकवादी गलती से सनी को किडनैप कर ले जाते हैं. उसे पाकिस्तान के एक गांव में आफताब (इमामुल हक) के घर में कैद कर के रखा जाता है. आफताब भारतीय फिल्मों की पायरेटेड सीडियां बेचने का काम करता है. आतंकवादियों की योजना भारतीयों पर दबाव बनाने की है.

इस दौरान आफताब और सनी के बीच मानवीय रिश्ता बन जाता है. आफताब सनी को भारत पहुंचाने का वादा करता है. वह उसे भगाने की कोशिश भी करता है परंतु पकड़ा जाता है. आफताब सनी के कैमरे से फिल्म बनाना चाहता है. उधर आतंकवादी महमूद और जव्वाद की नजर सनी पर लगी रहती है. धीरेधीरे सनी आतंकवादियों पर विश्वास जमा लेता है. वह आफताब की फिल्म बनाने में भी मदद करता है. मौका पा कर आफताब सनी को बाइक पर बिठा कर बौर्डर की तरफ भागता है परंतु आतंकवादी उन के पीछे लग जाते हैं. उन का मुकाबला करते हुए आफताब सनी के साथसाथ खुद भी भारतीय सीमा में प्रवेश कर जाता है.

अब लगता है बौलीवुड और पाकिस्तान के लौलीवुड के फिल्मकारों को इस बात को एहसास होने लगा है कि फिल्मों में दोनों मुल्कों की आपसी दुश्मनी को दिखाने के बजाय इनसानी रिश्तों और सौहार्दता को दिखाया जाए. हाल ही में प्रदर्शित ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ फिल्म इस की जीतीजागती मिसाल है जिस में सरहद पर एकदूसरे की जान के प्यासे फौजी एकदूसरे की जान बचाने की कोशिश करते हैं.

‘फिल्मिस्तान’ दोनों देशों की एक सी संस्कृति की बात करती है. धर्म की दीवार भी इस संस्कृति के बीच फासले पैदा नहीं कर पाती. इस फिल्म का नायक पाकिस्तानी अवाम के सामने पुराने भारतीय ऐक्टरों की मिमिक्री करता है तो पाकिस्तान के लोग किस तरह खुश होते हैं इस का खाका निर्देशक ने अच्छी तरह खींचा है. आफताब के पिता का आतंकवादियों से सनी को छोड़ने के लिए रिक्वेस्ट करना दर्शाता है कि अभी भी दोनों देशों के लोगों में आपसी सद्भाव कायम है.

सनी की भूमिका में शारिब हाशमी ने बढि़या ऐक्टिंग की है. वह खुद को सलमान खान सा समझता है. आफताब की भूमिका में इमामुल हक ने भी खूब काम किया है. उस ने कभी दयनीय तो कभी दोस्ती के भाव दिखाए हैं.

फिल्म में कोई नायिका नहीं है, इसलिए ग्लैमर का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.

फिल्म के संवाद शारिब हाशमी ने ही लिखे हैं. संवाद जानदार है. शारिब ने ए.के.-47 हाथ में उठा कर पाकिस्तान के बच्चे के सामने हिंदी ऐक्टरों की नकल कर के दर्शकों को हंसाया भी है.

फिल्म के क्लाइमैक्स में भारतपाक क्रिकेट मैच पर आतंकवादियों से शर्त जीत कर सनी के साथसाथ आफताफ की खुशी जाहिर करती है कि इंडिया इज द ग्रेट.

फिल्म में सिर्फ पार्श्व संगीत है, जो अनुकूल है. लोकेशन बौर्डर से सटे एक गांव की है, जहां मीलों तक कोई परिंदा भी नजर नहीं आता.

लोगों को जगाना ही मकसद टीना घई

मशहूर अभिनेत्री, गायिका, संगीतकार व गीतकार टीना घई 150 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं. बतौर गायिका उन के 8 अलबम रिलीज हो चुके हैं.

हाल ही में उन्होंने ‘माई नेशन’ नामक किताब लिखनी शुरू की. तभी उन्हें देश में फैले भ्रष्टाचार, अन्याय से जूझते लोग, औरतों के शोषण सहित आम इंसान की तमाम मुसीबतों का ऐसा एहसास हुआ कि उन्होंने लोगों में जागरूकता लाने के मकसद से ‘ढोल का पोल’ और ‘जागो इंडिया’ नामक 2 गीत लिखे. इन गीतों को संगीत से संवारने व उन्हें अपनी आवाज में रिकौर्ड करने के साथसाथ उन के वीडियो फिल्माए. इन गीतों व उन के जीवन के अन्य पहलुओं पर उन से बातचीत की गई. पेश हैं अंश :

बीच में आप गायब हो गई थीं?

मैं कहीं गई नहीं थी. पिता के आदेश का पालन करते हुए जब मैं ने शादी की तो मेरी पहली प्राथमिकता अपने परिवार व पति को समय देना बन गई. फिर मैं एक बेटी विधि की मां बनी, जोकि अब 3 साल की हो चुकी है. जब बेटी थोड़ी बड़ी हुई तो मैं ने सोचा कि अब फिर से काम करना चाहिए. और मैं ने गीतों पर काम करना शुरू किया.

4 साल बाद वापसी गीतकार व गायक के रूप में ही क्यों?

आसपास घट रही घटनाएं मुझे हमेशा झकझोरती रहती हैं. इसी वजह से मैं ने किताब ‘माई नेशन’ लिखना शुरू किया. इस किताब को लिखते समय मैं अन्ना हजारे व किरण बेदी के आंदोलन से भी प्रभावित हुई. निर्भया कांड हो गया, जिस ने मुझे अंदर से झकझोर दिया. इसलिए मैं ने सोचा कि क्यों न गीतों के माध्यम से अपने मन की बातें लोगों तक पहुंचाऊं ताकि लोगों की चेतना जागृत हो.

क्या वीडियो बनाए बिना इन गीतों को लोकप्रियता नहीं मिल रही थी?

वीडियो के साथ गानों को लोगों के बीच पहुंचाना आसान हो जाता है. अब विजुअल्स का माध्यम आ गया है. सच यही है कि पहले हम वीडियो नहीं बनाने वाले थे लेकिन जब इन गानों का सिर्फ औडियो रिलीज हुआ तो मैं ने पाया कि लोगों के बीच बहुत जागरूकता आ गई है. मुझे लगा कि अब इन के वीडियो बना कर मैं अपनी बात को और अधिक बेहतर ढंग से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकती हूं.

इन गीतों पर कुछ रोशनी डालेंगी?

अब तक 2 गीत अपनेअपने वीडियो के साथ बाजार में आ चुके हैं. इस में पहला गीत ‘ढोल का पोल’ है, जिस में मैं ने देश की जो समस्याएं हैं उन को शब्दों में बयां करने की कोशिश की है. मैं ने आम लोगों से भी कहा है कि वे जागें. वहीं हम ने दूसरे गीत ‘जागो इंडिया’ में लोगों को बताया है, सही समय आ गया है कि हम देश को बचाने के लिए जागृत हों. देश की भावना से प्रेरित हो कर काम करें. मेरा ‘जागो इंडिया’ गाना व्यवस्था के खिलाफ है.

आप को नहीं लगता कि चुनाव से पहले आप के गाने बाजार में होते तो ज्यादा अच्छा होता. लोगों में जागरूकता आती. आप ने जिन मुद्दों को उठाया है वही मुद्दे कुछ राजनीतिक पार्टियां भी उठाती रहीं?

मैं ने जिन मुद्दों को अपने गीतों में उठाया है वे मुद्दे चुनाव खत्म होने के बाद भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं.

किस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं?

मेरे गीतों के साथ हर तबके की औरत अपने को रिलेट कर पा रही है. लोग महंगाई, भ्रष्टाचार से काफी त्रस्त हैं, इसलिए सभी लोग इन गीतों के साथ रिलेट कर पा रहे हैं. 

आप गीत लिखते समय अन्ना हजारे के मूवमैंट से प्रभावित हुईं. पर इस मूवमैंट से जुड़े लोग अब जो कुछ कर रहे हैं उस को देख कर…?

मैं सिर्फ अन्ना हजारे के मूवमैंट से प्रभावित नहीं हुई. मैं ने कई घटनाक्रमों को ले कर गीत लिखे हैं. जब इस तरह के आंदोलनों से भी कुछ नतीजा नहीं निकलता है तो बुरा लगता है, दुख होता है.

नया क्या कर रही हैं?

हम ने शहीद भगत सिंह व सुखदेव पर तीसरा गाना बनाया है. इस के वीडियो को बनाने की तैयारी चल रही है. इसे हम 15 अगस्त के दिन बाजार में लोगों के सामने लाना चाहते हैं.

आप के गीतों पर किसी राजनीतिक पार्टी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया?

राजनीतिक पार्टियां क्या कमैंट करेंगी? मैं ने अपने गीतों में वही मुद्दे उठाए हैं, जिन्हें जनता भी कह रही है. यहां तक कि अब सरकारी नुमाइंदे भी मान रहे हैं कि उन से गलतियां हुई हैं. मेरे गीतों के बाजार में आने के बाद किसी भी राजनीतिक दल ने प्रतिक्रिया नहीं दी. मुझे तो जुवेनाइल (अवयस्क) मुजरिम को माफ कर देने वाला कानून समझ में नहीं आता.

यदि लड़के की उम्र 18 साल से 2 दिन कम है, तो वह जुवेनाइल है, उस के लिए अलग कानून है. उसे आम बलात्कारी को मिलने वाली सजा नहीं दी जा सकती. ऐसा क्यों? जो लड़का बलात्कार जैसा घिनौना काम कर सकता है वह अवयस्क कैसे हो सकता है? इस के लिए कानून बदलना चाहिए. उसे रेप करना आता है, फिर भी उसे सजा नहीं दी जा सकती? यह कैसा कानून है. जो लड़का बलात्कार के काम को अंजाम देता है उस की उम्र नहीं देखी जानी चाहिए.

यदि कोई राजनीतिक पार्टी आप से आप के इन गीतों की मांग करे तो?

मैं किसी राजनीति का हिस्सा नहीं हूं. वैसे मेरे पास राजनीतिक दलों की तरफ से कई औफर आ रहे हैं पर मैं ने मना कर दिया है. यदि कोई राजनीतिक दल अपनी चुनावी सभाओं में मेरे गीतों को बजाता है तो मुझे इस से कोई परहेज नहीं है.

संगीत से जुड़ने के बाद आप अभिनय से दूर होती जा रही हैं?

जी नहीं, मैं संगीत के साथसाथ अभिनय से भी जुड़ी हुई हूं. बहुत जल्द मेरी 4 फिल्में रिलीज होने वाली हैं. पहली फिल्म है ‘ट्ंिवकल द शाइनिंग स्टार,’ जिस में चाइल्ड रेप पर बात की गई है. दूसरी ‘इश्क बवंडर’, तीसरी ‘स्लम स्टार्स’ और चौथी फिल्म ‘एक बार फिर कहो’ है.

आप की इमेज अभिनेत्री व गायिका के साथसाथ समाजसेविका की भी बनती जा रही है?

मैं समाजसेविका हूं. मैं काफी समय से समाजसेवा के कार्य करती आ रही हूं. पर अपने समाजसेवा के कार्यों का मैं ने ढिंढोरा पीटने में यकीन नहीं किया. मैं ने 2 साल पहले गुजरात में काफी काम किया था. चैरिटी के नाम पर मैं किसी से पैसे नहीं लेती, अपनी तरफ से जितनी मदद हो सकती है, वह करती रहती हूं.

नई सरकार क्या कर सकती है?

मैं तो यह बात कह सकती हूं कि केंद्र की नई सरकार को सब से पहले देश की महिलाओं के बारे में सोचना चाहिए. महिलाओं के एंपावरमैंट के बारे में सोचना चाहिए. आज भी औरत घर और घर के बाहर पुरुषों के हाथों पिट रही है. अब औरत पुलिस स्टेशन में जा कर खुल कर शिकायत करने लगी है कि उस के साथ किस ने बलात्कार किया. जरूरत है कि हर महल्ले में पुलिस चौकी हो. दिन में भी पुलिस की गश्त हो.

धौनी की धुआंधार कमाई

अमेरिकी पत्रिका ‘फोर्ब्स’ ने सर्वाधिक कमाई करने वाले 100 खिलाडि़यों की सूची जारी की, जिस में एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं महेंद्र सिंह धौनी. धौनी की कुल कमाई 3 करोड़ डौलर है, जिस में 2 करोड़ 60 लाख डौलर विज्ञापनों से होने वाली कमाई है. इस सूची में पहले स्थान पर अमेरिकी मुक्केबाज फ्लायड मेवेदर हैं. मेवेदर ने पिछले 1 वर्ष में 10 करोड़ 50 लाख डौलर की कमाई की. इस में गोल्फर टाइगर कुड्स और टैनिस स्टार रोजर फेडरर समेत सफेल नडाल भी शामिल हैं. इस के अलावा रीयल मैट्रिड के क्रिस्टियानो रोनाल्डो समेत 15 और फुटबालर भी शामिल हैं. रोनाल्डो की कुल कमाई 8 करोड़ डौलर की है और वे दूसरे नंबर पर हैं.

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