फिल्म में आप को मौजमस्ती नजर नहीं आएगी, हां, माइगे्रटेड लोगों का दुखदर्द अवश्य दिखेगा. फिल्म 50 के दशक की लगती है. युवाओं के मतलब की तो यह कतई नहीं है.

‘सिटी लाइट्स’ ब्रिटिश फिल्म ‘मैट्रो मनीला’ से प्रेरित है. निर्देशक ने फिल्म के मुख्य किरदार के लिए राजकुमार राव का चुनाव किया जिस ने उन की पिछली राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘शाहिद’ में शानदार अभिनय किया था.

फिल्म की कहानी दीपक (राजकुमार राव) और राखी (पत्रलेखा) की है जो अपनी छोटी बच्ची को ले कर रोजीरोटी की तलाश में राजस्थान से मुंबई आते हैं. मुंबई में उन्हें रहने को जगह नहीं मिलती. एक ठग मकान के नाम पर उन से 10 हजार रुपए ठग लेता है. मजबूरन राखी को शहर के एक बार में बारगर्ल की नौकरी करनी पड़ती है. दीपक को एक सिक्योरिटी एजेंसी में काम मिल जाता है. इस सिक्योरिटी एजेंसी में काम करने वाला सुपरवाइजर विष्णु (मानव कौल) दीपक को ऐसे मुकाम पर पहुंचा देता है कि चाह कर भी वह वहां से नहीं निकल पाता. दीपक विष्णु के चक्रव्यूह में फंस जाता है और सिक्योरिटी गार्ड्स की गोलियों से छलनी हो जाता है. राखी को विष्णु द्वारा घर में छिपाए गए करोड़ों रुपए के बौक्स का पता चलता है. वह उन रुपयों को बैग में भर कर वापस राजस्थान चली जाती है.

फिल्म की इस कहानी में निर्देशक की पकड़ बनी रही है लेकिन कहानी कहींकहीं ओवर हो गई है. क्या छोटे शहरों से बड़े शहरों में आने वाले लोगों को इतना ज्यादा दुखदर्द सहना पड़ता है, इस पर यकीन नहीं होता.

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