‘फिल्मिस्तान’ फिल्म को ईमानदारी से बनाया गया है. निर्देशक नितिन कक्कड़ ने अपनी इस 2 घंटे से भी छोटी फिल्म में जबरदस्ती कुछ भी ठूंसने की कोशिश नहीं की है. उस ने कहीं भी अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी है. कलाकारों का अभिनय हो या फिल्म की लोकेशन या फिर बैकग्राउंड म्यूजिक, फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है.

‘फिल्मिस्तान’ जैसी फिल्में भले ही अवार्ड पा जाती हों, मगर उन्हें रिलीज कर पाना आसान नहीं होता. इस फिल्म को 2 साल पहले राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, मगर कोई खरीदार न मिल पाने के कारण फिल्म 2 साल तक डब्बे में बंद पड़ी रही. किसी तरह अब फिल्म रिलीज तो हो सकी है, परंतु भीड़ जुटा पाएगी, इस में संदेह है.

फिल्म की कहानी पाकिस्तानी आतंकवादियों के एक गुट द्वारा एक भारतीय नौजवान को किडनैप करने की है. सनी अरोड़ा (शारिब हाशमी) पर हीरो बनने का जुनून सवार है. वह मुंबई पहुंचता है परंतु वहां कोई गौडफादर न होने पर उसे हीरो बनने का मौका नहीं मिल पाता. मुश्किल से उसे एक विदेशी प्रोडक्शन कंपनी में प्रोडक्शन असिस्टैंट का काम मिलता है. अपनी फिल्म यूनिट के साथ वह राजस्थान की सीमा से सटे एक गांव में जाता है, जहां विदेशियों को किडनैप करने आए पाकिस्तानी आतंकवादी गलती से सनी को किडनैप कर ले जाते हैं. उसे पाकिस्तान के एक गांव में आफताब (इमामुल हक) के घर में कैद कर के रखा जाता है. आफताब भारतीय फिल्मों की पायरेटेड सीडियां बेचने का काम करता है. आतंकवादियों की योजना भारतीयों पर दबाव बनाने की है.

इस दौरान आफताब और सनी के बीच मानवीय रिश्ता बन जाता है. आफताब सनी को भारत पहुंचाने का वादा करता है. वह उसे भगाने की कोशिश भी करता है परंतु पकड़ा जाता है. आफताब सनी के कैमरे से फिल्म बनाना चाहता है. उधर आतंकवादी महमूद और जव्वाद की नजर सनी पर लगी रहती है. धीरेधीरे सनी आतंकवादियों पर विश्वास जमा लेता है. वह आफताब की फिल्म बनाने में भी मदद करता है. मौका पा कर आफताब सनी को बाइक पर बिठा कर बौर्डर की तरफ भागता है परंतु आतंकवादी उन के पीछे लग जाते हैं. उन का मुकाबला करते हुए आफताब सनी के साथसाथ खुद भी भारतीय सीमा में प्रवेश कर जाता है.

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