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धार्मिक संतों की नौटंकी

जब बाबा रामरहीम की प्रचार की तरह बनाई गई फिल्म एमएसजी रिलीज हुई तो लोगों को लगा कि तथाकथित साधुसंतों और चमत्कारी बाबाओं पर बनी फिल्म में शायद कोई सार्थक संदेश मिलेगा लेकिन फिल्म देखी तो किस्सा वही ढाक के तीन पात वाला. जो धर्म का प्रवचन और चमत्कारों का चूरन समागम सभा व प्रवचन शिविर में दिया जाता है वही फिल्म में करोड़ों रुपए फूंक कर दिया गया. सिलसिला यहीं नहीं थमा, इस के कुछ महीनों बाद ‘गुरु नानक शाह फकीर’ भी रिलीज हुई. अब खबर है कि 1984 दंगे पर आधारित ‘ब्लड स्ट्रीट’, जो अब तक सैंसर में अटकी थी, रिलीज के लिए तैयार है. फिल्म में संत बलजीत सिंह डादूवाल भी नजर आएंगे. धार्मिक प्रसंगों से भरी ऐसी फिल्में समाज को फिर से जाति, धर्म, कुप्रथाओं की दुनिया में वापस ले जाती दिखती हैं जिस से बाहर आने के लिए कई पीढि़यों ने संघर्ष किया है. अब धर्म के दुकानदार प्रचार का हर हथकंडा अपनाने में लगे हैं. वे फिल्मों, इंटरनैट, ट्विटर, फेसबुक का जम कर इस्तेमाल कर रहे हैं.

विवाद का विज्ञापन

अभिनेत्री ऐश्वर्या राय ने एक ज्वैलरी ब्रैंड के लिए विज्ञापन शूट किया था. विज्ञापन में ऐश के पीछे छतरी लिए एक अश्वेत बालक खड़ा है. विज्ञापन के बाजार में आते ही कुछ संगठनों ने इसे नस्लवादी बताते हुए इसे बैन करने की मांग की. कंपनी ने अपनी साख बचाते हुए न सिर्फ माफी मांग ली बल्कि विज्ञापन भी वापस ले लिया. ऐश्वर्या राय का कहना है कि उस ने जो शूट कराया था उस में अश्वेत बच्चा व छतरी नहीं थी. दरअसल पहले ऐश्वर्या का फोटो शूट हुआ. उस के बाद तकनीकी टीम ने पृष्ठभूमि में उस बच्चे वाली तसवीर लगा कर ऐश्वर्या की तसवीर से जोड़ दिया. यह मामला छोटा है पर इस पर आपत्ति उठाई जानी सही है क्योंकि इस गुलामी प्रथा को महिमामंडित करना और जानेमाने चेहरे के साथ ऐसा करना गलत ही है.

तस्करी मामले में फंसी नीतू

फिल्मजगत का अपराध, अदालत और पुलिस से कोई आज का नाता नहीं है. गाहेबगाहे किसी न किसी कलाकार को गिरफ्तार होते या अदालतों के चक्कर काटते देखा है हम ने. ताजा मामला है कि तेलुगू अभिनेत्री नीतू अग्रवाल का, जिन्हें तस्करी के मामले में संलिप्तता के चलते कुर्नूल जिले से गिरफ्तार कर लिया गया है. मामला कीमती लकडि़यों की तस्करी का है. नीतू पर आरोप है कि उन्होंने तस्करों की मदद की है. इतना ही नहीं, अभिनेत्री ने चंदन तस्करों के खाते में अपने बैंक अकाउंट से 1.05 लाख रुपए की रकम भी ट्रांसफर की थी. लिहाजा, उन के खिलाफ कई धाराओं के तहत न सिर्फ मामला दर्ज किया गया बल्कि अरेस्ट भी कर लिया गया है.

 

सबक सिखाती माधुरी

अभिनेत्री माधुरी दीक्षित शादी के बाद अमेरिका शिफ्ट हो गई थीं. वापसी के लिए इक्कादुक्का फिल्में भी कीं लेकिन बात नहीं बनी. फिर टीवी में रिऐलिटी शोज का रुख किया. यहां आ कर माधुरी को डांस की दुनिया में नई पहचान मिली और अब खबर है कि उन्होंने कोरियोग्राफर टेरेंस लुइस के साथ मिल कर जुगनी नाम से डांस महोत्सव शुरू किया है. इस में नए प्रतिभाशाली डांसरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस में जो कलाकार या डांसर टीवी पर नहीं आना चाहते, उन को प्राथमिकता दी गई. इतना ही नहीं, विजेता को डांस सीखने के लिए स्कौलरशिप की भी सुविधा है. रिटायरमैंट के नाम पर घर बैठने से बेहतर है कुछ न कुछ करते रहना. इस में पहचान व पैसा दोनों मिलता है.     

फिल्म समीक्षा

मार्गरीटा विद अ स्ट्रा

यह फिल्म हिंदीअंगरेजी में मिश्रित है और विदेशी फिल्म समारोहों में फिल्में देखने वालों के लिए सटीक है. फिल्म की नायिका मार्गरीटा मस्तिष्क के पक्षाघात से पीडि़त है. हर वक्त व्हीलचेयर पर बैठी रहती है, ठीक ढंग से बोल नहीं पाती. कुछ भी पीने के लिए उसे स्ट्रा का प्रयोग करना पड़ता है. इसीलिए इस फिल्म का टाइटल ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ रखा गया है. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ फिल्म की निर्देशिका शोनाली बोस ने 10 साल पहले एक फिल्म बनाई थी- ‘अमु’. उस फिल्म में अभिनेत्री कोंकणा सेन के अभिनय की जम कर तारीफ हुई थी. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ की नायिका कल्की कोचलिन है. वह एक बेहतरीन और उम्दा एक्ट्रैस है, इस में किसी को शक नहीं होना चाहिए. उस ने कई फिल्मों में यादगार अभिनय किया है. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ कल्की की अब तक रिलीज हुई फिल्मों से अलग है. जिस तरह ‘ब्लैक’ में रानी मुखर्जी ने अभिनय की ऊंचाइयों को छुआ था, ठीक उसी प्रकार इस फिल्म में कल्की ने कर दिखाया है. मस्तिष्क पक्षाघात के पीडि़त इस किरदार में कल्की ने व्हीलचेयर पर बैठेबैठे संवाद बोल कर अपने चेहरे के भावों को खूबसूरती से दर्शाया है.

फिल्म की कहानी लैला (कल्की कोचलिन) की है जो मानसिक पक्षाघात की शिकार है. वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती है. उस के परिवार में पिता (कुलजीत सिंह), मां (रेवथी) और भाई मोनू (मल्हार खुशू) हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही लैला को गाने लिखने का शौक है. उस की कालेज के ही धु्रव और नीमा से दोस्ती है. उस का ऐडमिशन न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में हो जाता है. न्यूयौर्क में उस की मुलाकात पाकिस्तान मूल की युवती खानुम (सयानी गुप्ता) से होती है. दोनों में दोस्ती हो जाती है. खानुम समलैंगिक है. उसे लैला से इश्क हो जाता है. जब लैला अपने और खानुम के रिश्तों के बारे में मां को बताती है तो मां को बहुत बुरा लगता है. अचानक लैला की मां की कैंसर से मौत हो जाती है और लैला समलैंगिक व पारिवारिक रिश्तों की कशमकश में फंस जाती है. समलैंगिक रिश्तों पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं लेकिन शोनाली बोस ने जिस तरह से धीरेधीरे मानसिक पक्षाघात की रोगी युवती में सैक्स की भावना को उभारा है, वह अलग किस्म की है. निर्देशिका ने लैला के 2 रूप दिखाए हैं. एक तरफ तो वह अपनी बीमारी से जू झ रही होती है वहीं उस के अंदर जब सैक्स की भावनाएं उमड़ती हैं तो उस की खुशी देखने लायक होती है. निर्देशिका ने लैला के परिवार को हर पल खुशमिजाज दिखाया है. लैला के पिता पंजाबी के सिंगर सुखबीर के गानों के कायल हैं तो मां घर के कामकाज के साथसाथ बाहर के काम भी संभालती हैं. यह फिल्म इमोशनल जरूर है परंतु इस पर भावुकता हावी नहीं होने दी गई है. निर्देशन अच्छा है. कल्की की ऐक्टिंग तो अच्छी है ही, सयानी गुप्ता ने भी नैचुरल ऐक्ंिटग की है. कल्की और सयानी गुप्ता के इंटीमेट सीन को विस्तार से फिल्माया गया है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. फिल्म का पार्श्व संगीत ठीकठाक है. छायांकन अच्छा है. इस फिल्म की खामी या विशेषता, चाहे जो भी कहें यह अपंगों की यौन इच्छाओं पर आधारित है. जिन के शरीर में भले ही कुछ कमी हो लेकिन उन की यौन भूख भी उतनी ही बलवती होती है जितना खाना, पहनना और सुरक्षात्मक तरीके से रहना. निर्देशक ने केवल एक पहलू रख कर फिल्म को अधूरा कर दिया पर यह पहलू भी दमदार मानना होगा.

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मि. एक्स

जब हम बच्चे थे तो सुनते थे कि आदमी गायब भी हो जाता है और फिर पलक  झपकते वापस अपने स्वरूप में आ जाता है. तब इस तरह की बातें सुन कर रोमांच होता था. और जब इंसान के गायब होने की घटना परदे पर देखी तो हैरानी और बढ़ गई. लेकिन उस वक्त बचपन में यह नहीं सम झ पाए कि यह सब कपोलकल्पित है, इंसानी दिमाग का फितूर है. आदमी गायब नहीं हो सकता. इन्हीं सुनीसुनाई कहानियों पर फिल्मकारों ने कुछ फिल्में भी बनाईं. रामगोपाल वर्मा की ‘गायब’ और अनिल कपूर अभिनीत ‘मिस्टर इंडिया’ जैसी फिल्में बनीं. विदेशों में भी ‘हौलो मैन’ जैसी फिल्में बनीं. दर्शकों को इस प्रकार की फिल्मों में मजा आने लगा. 60 के दशक में किशोर कुमार की ‘मिस्टर एक्स’ फिल्म ने अच्छा पैसा कमाया. उसी लीक पर चल कर अब विक्रम भट्ट ने ‘मिस्टर एक्स’ बनाई है. इस फिल्म में बिलकुल भी नयापन नहीं है, न ही कोई तकनीकी विशेषता है. फिल्म शुरू होते ही दर्शकों को पता चल जाता है कि क्लाइमैक्स में क्या होगा.

कहानी रघुराम राठौड़ (इमरान हाशमी) और सिया वर्मा (अमायरा दस्तूर) की है. दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और ऐंटी टैररिस्ट डिपार्टमैंट में काम करते हैं. एसीपी भारद्वाज (अरुणोदय सिंह) चीफ मिनिस्टर की सुरक्षा की जिम्मेदारी रघु को देता है, साथ ही वह षड्यंत्र रच कर रघु को चीफ मिनिस्टर को मारने के लिए मजबूर करता है. मजबूरन भरी सभा में रघु चीफ मिनिस्टर को मार डालता है. वह पकड़ कर एक कैमिकल फैक्टरी में लाया जाता है जहां एसीपी और उस के आदमी उस फैक्टरी को उड़ा देते हैं. रघु को मरा जान कर सब वहां से चले जाते हैं परंतु रघु बच जाता है. बुरी तरह जले रघु में एक कैमिकल का रिऐक्शन होता है और वह गायब हो जाता है. वह सिर्फ सूर्य की रोशनी में ही नजर आ सकता है. अब रघु अदृश्य हो कर अपने दुश्मनों का सफाया करता है. विक्रम भट्ट ने अब तक हौरर फिल्में ही ज्यादा बनाई हैं. ‘राज’, ‘हौंटेड’, ‘क्रीचर’ जैसी उस की फिल्में लगभग एक जैसी ही थीं. ‘मि. एक्स’ को 3डी तकनीक में बनाया गया है. हालांकि फिल्म के 3डी इफैक्ट्स अच्छे हैं फिर भी घिसीपिटी कहानी की वजह से फिल्म निराश करती है.

इमरान हाशमी ने फिर से किसिंग सीन दिए हैं. अमायरा दस्तूर इस से पहले एक फिल्म में आ चुकी है. इस फिल्म में उस ने बस काम चला लिया है. अरुणोदय सिंह के चेहरे पर एक्सप्रैशन आ ही नहीं पाते. फिल्म का निर्देशन कमजोर है. विक्रम भट्ट ने सिर्फ 3डी इफैक्ट्स पर ही ध्यान केंद्रित किया है. एनिमेशन दृश्य अच्छे बन पड़े हैं. केपटाउन में कार रेस के दृश्य अच्छे बन पड़े हैं. गीतसंगीत कमजोर है.

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जय हो डैमोके्रसी

जिन दर्शकों ने ‘पीपली लाइव’ फिल्म देखी होगी उन्हें मालूम होगा कि खबरिया चैनल किस प्रकार एक छोटी सी घटना को बढ़ाचढ़ा कर दिखाते हैं. ‘जय हो डैमोक्रेसी’ में भी यही सब दिखाया गया है. फिल्म में खबरिया चैनलों पर व्यंग्य किया गया है, साथ ही राष्ट्रीय विपदा के वक्त हमारे राजनेता किस तरह सत्ता की राजनीति करते हैं, इस पर भी प्रकाश डाला गया है. फिल्म में कौमेडी की काफी गुंजाइश थी, जिसे निर्देशक दिखा पाने में असफल रहा है. फिल्म की शुरुआत तो दिलचस्प तरीके से होती है लेकिन शीघ्र ही सीन दर सीन दोहराव नजर आने लगता है. ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ फिल्म में भी एक छोटी सी घटना को राई का पहाड़ बनाते हुए बौर्डर पर भारतपाक सैनिकों के बीच तनाव और गोलीबारी दिखाई गई थी. इस फिल्म में निर्देशक रंजीत कपूर ने ठीक उसी प्रकार की एक बेवकूफी भरी घटना को काल्पनिक तरीके से फिल्माया है. फिल्म की कहानी बौर्डर पर भारतीय चौकी के पास घटी एक अजीब सी घटना की है. चौकी पर तैनात एक रसोइए की मुरगी पाकिस्तान के क्षेत्र में घुस जाती है. अफसर का हुक्म होता है कि जवान उस मुरगी को ले कर आए. जवान विवादित क्षेत्र में जाता है तो दूसरी ओर से फायरिंग शुरू हो जाती है. खबरिया चैनलों को इस घटना की जानकारी मिलती है तो लाइव प्रसारण शुरू हो जाते हैं.

मसले को हल करने के लिए एक राजनीतिक कमेटी का गठन होता है जिस में पांडेजी (ओमपुरी), राम लिंगम (अन्नू कपूर), मोहिनी देवी (सीमा बिस्वास), मेजर बरुआ (आदिल हुसैन), चौधरी (सतीश कौशिक), मिसेज बेदी (रजनी गुजराल) जैसे नेता शामिल हैं. रक्षा मंत्री दुलारी देवी (ग्रूशा कपूर) देश से बाहर हैं. जवान और मुरगी को बचाने के लिए क्या पाकिस्तान पर हमला कर दिया जाए, इस पर मंत्रणा होती है. कमेटी के सदस्यों के बीच वाक्युद्ध होने लगता है.

उधर, जवान और मुरगी दोनों मुसीबत में हैं. क्या किया जाए? ऐसे में सेना का एक सिपाही, जो रसोइया है, एक रास्ता निकालता है. फिल्म की कहानी पर निर्देशक की पकड़ ठीक उसी तरह ढीली पड़ गई है जैसे फिल्म में मुरगी को पकड़ने के लिए जवान की पकड़ ढीली पड़ जाती है. निर्देशक ने कमेटी की बैठक में हंसी का वातावरण बनाया है. कमेटी के सदस्यों की बातों से हंसी आती है लेकिन शीघ्र ही बोरियत होने लगती है. फिल्म में जानेमाने कलाकार हैं लेकिन सभी ने ओवरऐक्ंिटग की है. सीमा बिस्वास को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरीखा दिखाया गया है. अन्नू कपूर और सतीश कौशिक दोनों ने ही शोर ज्यादा मचाया है. फिल्म का क्लाइमैक्स काल्पनिक है. इस से अच्छा क्लाइमैक्स तो ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ फिल्म का था. क्लाइमैक्स में एक गाना है जो हाल से बाहर आते ही दिमाग से फुर्र हो जाता है. छायांकन अच्छा है.द्य

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बरखा

बौलीवुड की फिल्मों में 80-90 के दशक में तवायफों और उन के कोठों को खूब दिखाया जाता था, जहां हीरो तवायफ का डांस देखने जाता था. धीरेधीरे तवायफों का दौर खत्म हुआ तो बार गर्ल्स परदे पर अपनी अदाएं बिखेरती नजर आईं. इन बार गर्ल्स पर कई फिल्में बनीं और चलीं. मधुर भंडारकर की ‘चांदनी बार’ फिल्म ने काफी नाम कमाया. ‘बरखा’ भी डांस बार गर्ल पर बनी फिल्म है. फिल्म में पोस्टरों में नायिका सारा लारेन की नंगी पीठ को बढ़ाचढ़ा कर दिखाया गया है. फिल्म में सारा लारेन ने हालांकि अपनी मस्त अदाएं दिखाई हैं, फिर भी यह एडल्ट फिल्म दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाती. वजह, फिल्म की सुस्त कहानी और प्रेजैंटेशन है. यह बरखा दर्शकों के तनमन को भिगो नहीं पाएगी. फिल्म थकीथकी सी लगती है. निर्देशक शादाब मिर्जा डांस बार्स के माहौल को दिखाने में नाकामयाब ही रहा है.

कहानी एक नामी वकील (पुनीत इस्सर) के बेटे जतिन (लाहा शाह) की है जिसे पहली नजर में एक डांस बार गर्ल बरखा (सारा लारेन) से इश्क हो जाता है. बार में आने वाला एक युवक आकाश (प्रियांशु चटर्जी) भी बरखा से प्यार करता है. वह बरखा से शादी कर के अपने बंगले पर ले जाता है. इस बीच बरखा बार मालिक को बर्थडे विश करने के लिए बार में आती है. तभी वहां पुलिस का छापा पड़ जाता है. पुलिस दूसरी लड़कियों के साथ बरखा कोभी पकड़ लेती है. बरखा पुलिस स्टेशन से आकाश को फोन कराती है, परंतु आकाश उसे पहचानने से इनकार कर देता है. परिस्थितियां इस प्रकार घटती हैं कि जतिन फिर से बरखा से संपर्क करता है और दोनों एकदूसरे का हाथ थाम लेते हैं. फिल्म का यह विषय बहुत ही घिसापिटा है. निर्देशन भी कमजोर है. सारा लारेन बु झीबु झी सी लगी. लाहा शाह प्रभावित नहीं करता. केवल प्रियांशु चटर्जी, जिस ने ‘भूतनाथ’ और ‘तुम बिन’ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, ने थोड़ाबहुत प्रभावित किया है. फिल्म की अवधि कम जरूर है, फिर भी फिल्म बो िझल लगती है. फिल्म का गीतसंगीत सामान्य है. 2 गाने ‘तू इतनी खूबसूरत है’ और ‘पहली दफा…’ कुछ अच्छे बन पड़े हैं. छायांकन अच्छा है. छायाकार ने हिमाचल की खूबसूरत लोकेशनों पर शूटिंग की है.

खेल खबर

भारत में ओलिंपिक अभी दूर

कयास यह लगाया जा रहा था कि वर्ष 2024 में ओलिंपिक खेलों के लिए भारत मेजबानी का दावा कर सकता है. लेकिन अब इन अटकलों पर विराम लग गया है. क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष थौमस बाक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद साफ कर दिया कि भारत की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया है. ऐसे में भारतीय खिलाडि़यों और खेलप्रेमियों के लिए यह अच्छी खबर तो नहीं कही जा सकती लेकिन कड़वी सचाई यह है कि भारत अभी ओलिंपिक के लिए तैयार नहीं है. जिस तरह भारतीय खेल संघों में राजनीति और भ्रष्टाचार का आलम है उस से उबर पाना अभी मुश्किल है. अकसर खेल संघों और खेल मंत्रालय के अधिकारियों के बीच खींचतान चलती रहती है. खिलाडि़यों को विश्वस्तरीय सुविधाओं की बात तो छोडि़ए उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल पातीं. खेल पुरस्कारों को ले कर अकसर विवाद होते रहते हैं. और वैसे भी भारत में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए घोटाले जगजाहिर हैं. राजनेता, नौकरशाह और खेल पदाधिकारियों ने करोड़ोंअरबों कमा कर कैसे अपनी तिजोरियां भरीं, यह भी किसी से छिपा नहीं है. इस के लिए भारतीय ओलिंपिक संघ को भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबित कर दिया गया था. यह अलग बात है कि अब यह निलंबन हट गया है. लेकिन राष्ट्रमंडल के दौरान जिन स्टेडियमों को बनाने में करोड़ों रुपए खर्च हुए वे स्टेडियम आज सफेद हाथी साबित हो रहे हैं. न तो उन का उचित रखरखाव हो पा रहा है और न ही उन का इस्तेमाल ही हो पा रहा है. पहले तो जो बदइंतजामी है, उसे ठीक करना होगा. खेल संघों को राजनीति और भ्रष्टाचार से मुक्त करना होगा, तभी खेल और खिलाडि़यों का भला होगा और हम ओलिंपिक जैसे बड़े आयोजनों के लिए तैयार हो पाएंगे.

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अब ये हुए आमनेसामने

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की अंदरूनी लड़ाई नई बात नहीं है. इस बार 2 दिग्गज आईसीसी के चेयरमैन एन श्रीनिवासन और बीसीसीआई के सचिव अनुराग ठाकुर आमनेसामने हैं. वजह, आईसीसी की ओर से बीसीसीआई को सूचना दी गई कि अनुराग ठाकुर के एक सट्टेबाज से रिश्ते हैं और उन्हें उन से दूर रहना चाहिए. इस बात का जवाब अनुराग ठाकुर ने एक पत्र के माध्यम से दिया कि इस के पीछे एन श्रीनिवासन का हाथ है क्योंकि बीसीसीआई में मेरा सचिव बनना उन को खल रहा है. खैर, खेल संघ राजनीति का अड्डा तो बन ही चुके हैं, लगेहाथ कांग्रेस को भी मौका मिल गया और कांग्रेस प्रवक्ता सुष्मिता देव ने कहा कि अनुराग ठाकुर के सट्टेबाजों के साथ संबंध होने के बारे में अखबारों में खबरें छपी हैं और आश्चर्य की बात यह है कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा जैसे जुमले देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी के एक युवा नेता ऐसे सट्टेबाजों के साथ उठबैठ रहे हैं.

क्रिकेट में सट्टेबाजों के वारेन्यारे हो रहे हैं, यह सभी जानते हैं और इस गोरखधंधे के बारे में आईसीसी और बीसीसीआई में कुंडली मार कर बैठे अधिकारियों को यह सब मालूम है. इस खेल में बड़ेबड़े उद्योगपति, नौकरशाह, अभिनेता, राजनेता और खिलाड़ी सभी शामिल हैं. इस खेल में जो बड़ी मछली है उसे कुछ नहीं होता, अकसर छोटी मछलियों को आगे कर दिया जाता है. छोटेमोटे बुकीज व सट्टेबाजों की गिरफ्तारी और जांच कमेटी बिठाने से सट्टेबाजी पर लगाम नहीं लग सकती. जब तक इस खेल से जुड़े भ्रष्ट आला अधिकारी व सट्टेबाजी के असली आका गिरफ्त में नहीं आएंगे, खेल के नाम पर सजा कैसीनो का यह बाजार यों ही गुलजार होता रहेगा.

सनी लियोनी से बातचीत

कनैडियन पौर्न स्टार सनी लियोनी अब बौलीवुड में अपने पैर जमा रही हैं. रिऐलिटी शो ‘बिग बौस’ के बाद वे फिल्म ‘जिस्म 2’, ‘शूट आउट एट वडाला’, ‘जैकपौट’, ‘रागिनी एमएमएस 2’ जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं. हाल ही में उन की फिल्म ‘एक पहेली लीला’ प्रदर्शित हुई, जिस में वे दोहरी भूमिका में नजर आईं. फिल्म की रिलीज से पहले चर्चाएं थीं कि इस फिल्म के बाद सनी लियोनी की इमेज बदल जाएगी मगर फिल्म देख कर सारे दावे खोखले साबित हुए. इस बाबत उन का इस प्रतिनिधि से कहना है-

मैं ने कभी कोई दावा नहीं किया. मुझे ही नहीं मेरे निर्माताओं को भी पता है कि मैं जिस फिल्म का हिस्सा बनूंगी उसे सैंसर बोर्ड केवल ‘ए’ प्रमाणपत्र ही देगा. मेरी इमेज की चर्चा मीडिया से जुड़े लोग करते रहते हैं. मैं ने अपनी इमेज को ले कर कभी कुछ नहीं कहा. मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगी कि मेरे प्रशंसक मेरे साथ तब से जुड़े हुए हैं जब मैं पौर्न ऐक्ट्रैस थी. बौलीवुड में आने के बाद वे मेरे साथ अब भी जुड़े हुए हैं. मुझे लगता है कि मेरी तरक्की के साथ एक दिन मेरी इमेज बदल जाएगी और मेरे दर्शक भी मेरे साथ बदल जाएंगे लेकिन मैं अपनी इमेज बदलने का कोई प्रयास नहीं कर रही हूं. मैं सिर्फ यह प्रयास कर रही हूं कि लोग मुझे समझ सकें कि मैं एक सशक्त अदाकारा हूं. सिर्फ ग्लैमरस ही नहीं बल्कि चुनौतीपूर्ण किरदार भी कर सकती हूं.

यह उत्तर लचर और बेबुनियाद है. सनी न तो अदाकारा हैं और न ही सशक्त. वे तो सिर्फ पौर्न व ग्लैमरस रोल कर सकती हैं और फिल्मकार भी उन की इसी इमेज को भुना कर अश्लील संवादों व कहानियों पर फिल्में बना रहे हैं.

अपनी सैक्सी इमेज पर वे कहती हैं, ‘‘यह सही है कि मेरी फिल्म में एक किस्म का ग्लैमर और सैक्सीनैस रहती है और रहेगी क्योंकि हर दर्शक फिल्में किन्हीं खास कारणों से ही देखने के लिए जाता है. अगर मैं रितिक रोशन की फिल्म देखने जाती हूं तो मुझे इंतजार रहता है कि वे कब अपनी शर्ट उतार फेंकेंगे. अगर मैं प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और जैकलीन की फिल्में देखती हूं तो इसलिए कि वे सुंदर हैं. मैं इंतजार करती हूं कि उन की अगली फिल्म कब आएगी. मुझे लगता है कि दर्शक भी मुझे इसी तरह से देखते हैं.’’

यह ठीक है कि वे पौर्न फिल्मों में बनी रहें तो नाम व पैसा कमा सकती हैं लेकिन अभिनय उन के वश का नहीं. करीब आधा दर्जन फिल्में करने के बाद न तो उन का अभिनय परिपक्व हुआ, न ही डायलौग डिलीवरी. सिर्फ बदन उघाड़ू प्रदर्शन के जरिए आखिर कब तक टिका जा सकता है. बहरहाल, अपनी फिल्मी यात्रा के बाबत वे कहती हैं कि जब वे ‘बिग बौस’ का हिस्सा बनी थीं उस वक्त उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वे बौलीवुड से जुड़ पाएंगी. पर अब स्थिति बदल चुकी है. फिर भी कई ऐसे बड़े प्रोडक्शन हाउस हैं जो नहीं चाहते कि वे बौलीवुड में रहें. उन की फिल्मों को उन के प्रशंसक इतना पसंद करते हैं कि उन्हें दूसरी फिल्में मिल जाती हैं. बौलीवुड की उन की अब तक की जो यात्रा है वह उन के अपने प्रशंसकों की वजह से ही है.

वैसे सनी जिन्हें प्रशंसक समझ रही हैं उन में ज्यादातर बी व सी ग्रेड फिल्मों के शौकीन हैं या फिर वे जो हर शुक्रवार को फिल्म का पोस्टर देख सिनेमाघर में घुस जाते हैं. उन्हें न तो फिल्म की गुणवत्ता से मतलब होता है और न कहानी से. इसीलिए उन की अब तक प्रदर्शित फिल्मों ने कुछ खास नहीं दिया.

सफाई देती हुई सनी कहती हैं कि यह सही है कि अब तक उन्होंने ऐसा काम नहीं किया जो चर्चा लायक हो लेकिन बौलीवुड में हमेशा ही अच्छा काम करने की कोशिश की. लेकिन उन के बारे में तथा उन की परफौर्मेंस को ले कर कभी भी अच्छा नहीं लिखा गया. जिन्होंने उन के खिलाफ लिखा उन से वे नाराज नहीं हैं. उन्हें किसी से कोई शिकायत भी नहीं है. प्रशंसकों ने उन का साथ देते हुए फिल्म ‘रागिनी एमएमएस 2’ को सफल बनाया. आप यकीन नहीं करेंगे. मगर ‘रागिनी एमएमएस2’ को इंटरनैट पर इतने अधिक हिट्स मिले कि वे खुद आश्चर्यचकित रह गईं. ये सब जगजाहिर है.

वैसे सनी जिन सोशल मीडिया में हिट होने का हवाला दे रही हैं वहां इतना ज्यादा कचरा फैला है कि अच्छेबुरे का फैसला करना असंभव है. कई बार किसी सामाजिक संदेश से भरे कंटैंट को कोई फीडबैक नहीं मिलता और कभी गालीगलौज के बेवकूफीभरे वीडियो (जैसे एआईबीरोस्ट) को रातोंरात लाखों हिट्स मिल जाते हैं. यह सनसनी फैलाने का जरिया भले हो लेकिन गुणवत्ता व सफलता का पैमाना बिलकुल नहीं है.

अपनी पौर्न छवि के साथ बौलीवुड में स्वीकार्यता को ले कर सनी का मानना है कि उन्होंने अतीत में एडल्ट स्टार की तरह काम किया पर वह उन का प्रोफैशन था. वे निजी जिंदगी में वैसी नहीं हैं. यह बात बौलीवुड के कुछ लोग आज भी नहीं समझना चाहते. उन के अतीत की वजह से लोग डरते थे, उन के साथ काम करने से कतराते थे. बौलीवुड के कई बड़े स्टार कलाकारों ने उन के साथ महज इसलिए काम करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन की पत्नियां नहीं चाहती थीं. अब इन स्टार पत्नियों को कौन समझाएगा कि उन की रुचि उन के पति में नहीं है. उन के पास उन्हें बहुत प्यार करने वाले, उन के हर कदम पर उन का साथ देने वाले उन के पति डैनियल हैं.

बता दें कि उन के पति डैनियल अमेरिकन हैं जो कभी उन के मैनेजर और एडल्ट वीडियो में उन के कोऐक्टर हुआ करते थे. बाद में दोनों ने विवाह कर लिया. तब से दोनों एडल्ट फिल्मों का निर्माण करने वाली सनलस्ट कंपनी में बिजनैस पार्टनर हैं.

सनी मानती हैं, ‘‘डेनियल बहुमुखी प्रतिभा के धनी इंसान हैं. वे बेहतरीन कलाकार और म्यूजीशियन हैं. उन की अपनी एक फैक्टरी और अपना म्यूजिकल बैंड है. अमेरिका में उन का अपना प्रोडक्शन हाउस भी है. इस के बावजूद वे मेरे लिए रोशनी है. जब मां की मौत हुई उस वक्त डैनियल ने साथ दिया था. जब मेरे पिता को कैंसर था तब भी वही मेरा व मेरे पूरे परिवार का खयाल रख रहे थे. वे अपने कैरियर के साथ मेरे कैरियर का भी पूरा खयाल रखते हैं.’’ खुद से जुड़ी विवादित पृष्ठभूमि के बावजूद खुल कर जिंदगी के हर पहलू पर बात करने वाली सनी मानती हैं कि इस की एकमात्र वजह यह है कि उन्होंने कभी भी पाखंडपूर्ण जिंदगी जीना नहीं चाहा. वे बचपन से ही स्वतंत्र व मुंहफट एटीट्यूड के साथ जिंदगी जीती आई हैं. यदि उन्होंने एडल्ट एंटरटेनमैंट की राह पकड़ी, तो यह उन का अपना निर्णय था, गलत रहा हो या सही. उन्होंने कभी नहीं कहा कि यह उन का निर्णय नहीं था. उन्हें उन के प्रशंसकों ने स्वीकार किया.

फिल्म ‘एक पहेली लीला’ में पुनर्जन्म जैसे अंधविश्वास से भरे विषय को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया है. सनी भी इस पर यकीन करती हैं. वे मानती हैं कि पिछले जन्म में उन की जिंदगी कुछ और रही होगी. वे इस बात में यकीन करती हैं कि पिछले जन्म में उन की एनर्जी कुछ अलग रही होगी.

ये बातें उसी तरह हैं जैसे कई कलाकार सफलता के लिए ज्योतिषों के चक्कर में पड़ कर कभी अपना नाम बदलते हैं तो कभी उलटेसीधे कपड़े और लुक्स अपनाते हैं. जबकि इस से सिवा अंधविश्वास को बढ़ावा मिलने के और कुछ नहीं होता.

फिल्मकार दिलीप मेहता ने उन पर एक डौक्यूमैंट्री फिल्माई है. सनी के मुताबिक, ‘‘यह अच्छी, बुरी और अगली है. हर इंसान की जिंदगी में कुछ अच्छा तो कुछ बुरा होता है. मैं ने अपनी तरफ से इस डौक्यूमैंट्री में अपनी जिंदगी के किसी भी पक्ष को छिपाने की कोशिश नहीं की है. मैं ने इस सच को भी बयां किया है कि मैं ने व मेरे पति डैनियल ने जब अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया तो हमारे पास बिलकुल पैसे नहीं थे. ‘जीरो’ से शुरुआत की थी. दिलीप मेहता ने मुझ पर 22 हजार घंटे की एक डौक्यूमैंट्री फिल्माई है जिसे अब एडिट कर वे बाजार में लाएंगे.’’

फिल्म कलाकारों के समाजसेवी संस्थाओं से जुड़ने के प्रश्न पर सनी कहती हैं कि वे भी ‘अमेरिकन कैंसर सोसायटी’ के साथ काम कर रही हैं. वे कैंसर से पीडि़त मरीजों व कैंसर की बीमारी के बाद जीवित बचे लोगों की मदद करती हैं. निजी जीवन को ले कर कई कड़े अनुभव झेल चुकी सनी बताती हैं कि जिस शहर में उन का बचपन गुजरा, वहां के लोग उन से नफरत करते हैं. डौक्यूमैंट्री के सिलसिले में जब दिलीप उस शहर में गए तो वहां के लोगों ने उन का काफी विरोध किया.

फिलहाल सनी की इस साल 3-4 फिल्में रिलीज को तैयार हैं जिन में ‘डैंजरस हुस्न’, ‘बेईमान लव’, ‘मस्तीजादे’ और ‘कुछकुछ लोचा है’ प्रमुख हैं.

गौर करने वाली बात यह है कि ये तमाम फिल्में विषयवस्तुओं, गुणवत्ता के लिहाज से सनी लियोनी की पौर्न व ग्लैमर छवि को सस्ते तरीके से भुनाती लगती हैं. फिल्म के नाम पर सनी की पानी में बिकिनी सौंग गाते व थिरकते और द्विअर्थी संवादों के दम पर ऐसी फिल्में रिलीज तो की जा सकती हैं लेकिन अभिनय के मैदान में सनी की पारी लंबी या सफल होगी, यह कहना जल्दबाजी होगी.

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पाठकों की समस्याएं

मैं 22 वर्षीय युवक हूं. कुछ समय पहले मु झे एक लड़की से प्यार हो गया, वह भी मु झे प्यार करने लगी. मैं ने उस से विवाह करने का वादा भी किया. लेकिन कुछ दिन पहले मु झे पता चला कि वह लड़की नौर्मल यानी सामान्य नहीं है. अब मैं उस से विवाह नहीं करना चाहता. लेकिन वह लड़की कहती है कि विवाह करेगी तो केवल मु झ से ही. मैं ने उसे सम झाने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं मान रही. उसे बिना दुख पहुंचाए मैं उस से कैसे कहूं कि हमारी शादी नहीं हो सकती. सलाह दें.

जब तक आप को वास्तविकता का पता नहीं था, आप एकदूसरे को प्यार करते थे, शादी भी करना चाहते थे. लेकिन लड़की के बारे में असलियत जान कर आप विवाह नहीं करना चाहते. आप का निर्णय ठीक है लेकिन आप ने यह नहीं बताया कि लड़की में क्या कमी है. क्या उस का इलाज संभव नहीं है? अगर ऐसा कुछ है तो आप अपनी बात उस तक पहुंचाने के लिए किसी तीसरे का सहारा लीजिए जो आप दोनों को अच्छी तरह जानता हो. समस्या जानते हुए वैवाहिक बंधन में बंधना समझदारी नहीं होगी. आप लड़की को भी समझाइए कि इस से आप दोनों ही खुश नहीं रह पाएंगे. ऐसे में विवाह बंधन में बंधना आप दोनों के लिए अनुचित होगा.*

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मैं 40 वर्षीय सरकारी सेवा में कार्यरत विवाहित कर्मचारी हूं. मेरी समस्या यह है कि मैं एक ही चीज के बारे में सोचता रहता हूं और हमेशा डर सा लगा रहता है, हाथों में पसीना आता है, मन हमेशा उदास रहता है और मरने से भी डर लगता है. मैं सम झ नहीं पा रहा हूं कि मेरे साथ क्या समस्या है और क्या इस का कोई समाधान है?

आप ने यह नहीं बताया कि आप किस चीज के बारे में सोचते रहते हैं और आप को किस बात से डर लगता है? क्या आप के घर के पारिवारिक हालात सामान्य हैं? या वहां कोई समस्या है? अगर ऐसा कुछ है तो पहले उस का समाधान ढूंढि़ए. आप की बातों से लगता है आप डिप्रैशन की अवस्था में हैं. आप मरने के बारे में क्यों सोचते हैं? आप थोड़े दिनों के लिए कहीं घूमनेफिरने जाएं, घरपरिवार के साथ अपनी समस्या शेयर कीजिए. माहौल बदलने से आप के मन की उदासी दूर होगी. अगर इन सब से भी कोई समाधान नहीं निकलता तो किसी मनोचिकित्सक से मिलिए. वे विस्तार से आप की समस्या जान कर आप को समाधान सु झा सकते हैं. समस्याओं से भागना या मरना कोई समाधान नहीं है. उन का डट कर हिम्मत से मुकाबला कीजिए. अपने डर के बारे में खुल कर बात कीजिए, उस का सामना करने की आप को हिम्मत मिलेगी.*

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मैं 19 वर्षीय कालेज का छात्र हूं. 3-4 महीने पहले मेरी एक लड़की से दोस्ती हुई है. इस दौरान हम केवल 5-6 बार ही मिल पाए हैं. मु झे लगता है कि वह जानबू झ कर मु झ से नहीं मिलती. वह कहती है कि जो भी बात करनी है फोन पर कर लिया करो. मिलने से वह कतराती है. लेकिन मैं उस से बारबार मिलना चाहता हूं. उसे किस करना चाहता हूं. फिर चाहे मैं उसे छोड़ दूं. मैं क्या करूं? समाधान बताइए.

आप ने बताया कि आप की दोस्ती को अभी केवल 3-4 महीने ही हुए हैं, आप दोनों 5-6 बार मिल चुके हैं और फोन पर भी बात होती रहती है. ऐसा लगता है आप कुछ ज्यादा ही जल्दबाज हैं. आप की इसी जल्दबाजी को शायद वह लड़की भांप गई है. वह आप से ज्यादा सम झदार लगती है. इसीलिए वह आप से दूरी बना रही है. वैसे भी जब आप उस से शारीरिक इच्छा के कारण दोस्ती कर रहे हैं तो यह गलत है. वह लड़की आप से न मिल कर सही कर रही है. आप अपना यह रवैया बदल डालिए सिर्फ शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए दोस्ती का ढोंग न करें वरना आप खुद तो मुसीबत में पड़ेंगे ही, सामने वाली लड़की को भी परेशानी में डाल देंगे.*

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मैं 24 वर्षीय अविवाहिता हूं. मेरा एक बौयफ्रैंड है. मैं उस से प्यार करती हूं. लेकिन कुछ दिन पूर्व वह मु झे छोड़ कर किसी और से प्यार करने लगा. अब वह उसे छोड़ कर दोबारा मेरे पास आ गया है और कह रहा है कि उस लड़की से गलती से प्यार हो गया था और अब वह केवल मु झ से ही प्यार करता है. इस स्थिति में मु झे क्या करना चाहिए? क्या मैं उस की बात पर विश्वास कर लूं? शंका का समाधान कीजिए.

आप के बौयफ्रैंड के इरादे ठीक नहीं लगते. वह विश्वास के योग्य भी नहीं लग रहा है. आप को छोड़ कर दूसरे के पास जाना और फिर उसे छोड़ कर आप के पास आना और इसे गलती कहना, उस के चरित्र को गलत साबित कर रहा है. आप उस से दूर ही रहिए, इसी में आप की भलाई है.

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मैं 30 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 4 वर्ष हो गए हैं. शुरुआत के 2 सालों तक तो सब ठीक चला लेकिन आजकल मेरे व पति के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा. वे मु झे इग्नोर करते हैं और चाहते हैं कि मैं घर की जिम्मेदारियां ठीक से निभाऊं. इसी बीच, मेरी दोस्ती एक लड़के से हो गई है. मैं उसे पसंद करती हूं. क्या मैं उस से दोस्ती बरकरार रखूं? सलाह दीजिए.

आप ने बताया कि शुरुआत के 2 सालों तक सब ठीक रहा तो जानने की कोशिश कीजिए कि उस के बाद ऐसा क्या हो गया कि पति आप से बेरुखी दिखाने लगे. कहीं आप घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेरुखी तो नहीं करने लगीं? अगर ऐसा है तो अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाइए व समय के साथ रिश्तों में आए बदलाव में नयापन लाने की कोशिश कीजिए. पति को खुश रखने का प्रयास कीजिए. दोबारा पुराने दिन लौट आएंगे. जहां तक उस लड़के से दोस्ती का सवाल है तो उस से दूरी ही रखिए, इसी में भलाई 

सफर अनजाना

मेरे 16 वर्षीय बेटे को रतलाम से उज्जैन जाना था. मैं उसे दाहोदभोपाल पैसेंजर ट्रेन में बैठाने के लिए स्टेशन पहुंची और उसे सीट पर बैठाया. ट्रेन के रवाना होने में कुछ समय बाकी था, इस कारण मैं भी उस के पास ही बैठ गई. वह मुझे सामान देखने को कह कर टौयलेट चला गया. जब वह काफी देर तक लौट कर नहीं आया तो मैं उसे देखने पहुंची. मुझे टौयलेट के अंदर से दरवाजा थपथपाने की आवाज आई. टौयलेट के अंदर से बेटे की आवाज सुनाई दी. वह कह रहा था, ‘अंदर से सिटकनी नहीं खुल रही है, दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो.’ बेटे ने टौयलेट के अंदर से तथा मैं ने व अन्य यात्रियों ने बाहर से दरवाजा खोलने की भरसक कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली. मैं सहायता की आस में ट्रेन से नीचे उतरी, मुझे परेशान देख कर प्लेटफौर्म पर मौजूद 2 रेलवे कर्मचारी मेरे पास आए. मैं ने उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तत्परता से टौयलेट की खिड़की में सरिया डाल कर सिटकनी खोली, तब मेरा बेटा टौयलेट से बाहर आ पाया. कुछ क्षण बाद ही ट्रेन रवाना हो गई. मैं उन रेलकर्मियों को धन्यवाद दे कर वापस घर लौटी. मैं हमेशा आभारी रहूंगी उन रेलवे कर्मचारियों की जिन्होंने मेरे बेटे को मुसीबत से बचाया.

विद्या देवी व्यास, रतलाम (म.प्र.)

*

मेरी 1995 में शादी हुई. मेरे पति रामटेक में प्राइवेट नौकरी करते थे. शादी के 1 हफ्ते बाद वे मुझे अपने साथ ले कर जा रहे थे. मायके से रामटेक 60 किलोमीटर की दूरी पर है. हम बस स्टैंड पहुंचे. बस मिल गई. उस में काफी भीड़ थी. हमारे पास सामान भी बहुत अधिक था. अचानक हमारे एक रिश्तेदार आ गए. मुझ से व मेरे पति से मिलने के बाद वे मेरे पति से पान खाने का आग्रह करने लगे. पति को पानसुपारी का शौक नहीं है परंतु वे उन का आग्रह टाल नहीं सके और उन के साथ बस स्टैंड से बाहर पान की दुकान पर चले गए. इधर, बस छूट गई. टिकट के पैसे मेरे पास नहीं था. मैं घबरा गई और कंडक्टर को अपनी व्यथा सुनाई कि पति महाशय बस स्टैंड में ही छूट गए हैं, मेरी बात सुन कर बस में बैठे यात्री हंसने लगे. काफी दूर आने पर कंडक्टर ने बस रोकी. मैं ने सारा गृहस्थी का सामान नीचे उतारा. तभी देखा पति महाशय दौड़तेभागते पहुंचे. हम ने एक आटो लिया, वापस बस स्टैंड पहुंचे और 2 घंटे इंतजार के बाद दूसरी बस में बैठे और तब सफर पर निकल सके.

अमावस्या सं. मेश्राम, नागपुर (महा.)

दर्द के खेत में बैठा हूं

तेरे लौट आने के इंतजार में

मैं तनहाई की डाल पर बैठा हूं

बरसात में उम्मीद का दीप जलाए

मैं यादों के मकड़जाल पर बैठा हूं

आसमान का रंग लाल हो गया

मैं अब तक तेरे खयाल में बैठा हूं

चांद की चांदनी बदल गई कड़ी धूप में

मैं छत की मुंडेर पर बुरे हाल में बैठा हूं

इंतजार में तेरे सूख गई नदिया

मैं उस की तपती रेत पर बैठा हूं

सुहाना मौसम आंधी में बदल गया

मैं अब तक दर्द के खेत में बैठा हूं.

             – मुकुंद प्रकाश मिश्र

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