मार्गरीटा विद अ स्ट्रा

यह फिल्म हिंदीअंगरेजी में मिश्रित है और विदेशी फिल्म समारोहों में फिल्में देखने वालों के लिए सटीक है. फिल्म की नायिका मार्गरीटा मस्तिष्क के पक्षाघात से पीडि़त है. हर वक्त व्हीलचेयर पर बैठी रहती है, ठीक ढंग से बोल नहीं पाती. कुछ भी पीने के लिए उसे स्ट्रा का प्रयोग करना पड़ता है. इसीलिए इस फिल्म का टाइटल ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ रखा गया है. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ फिल्म की निर्देशिका शोनाली बोस ने 10 साल पहले एक फिल्म बनाई थी- ‘अमु’. उस फिल्म में अभिनेत्री कोंकणा सेन के अभिनय की जम कर तारीफ हुई थी. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ की नायिका कल्की कोचलिन है. वह एक बेहतरीन और उम्दा एक्ट्रैस है, इस में किसी को शक नहीं होना चाहिए. उस ने कई फिल्मों में यादगार अभिनय किया है. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ कल्की की अब तक रिलीज हुई फिल्मों से अलग है. जिस तरह ‘ब्लैक’ में रानी मुखर्जी ने अभिनय की ऊंचाइयों को छुआ था, ठीक उसी प्रकार इस फिल्म में कल्की ने कर दिखाया है. मस्तिष्क पक्षाघात के पीडि़त इस किरदार में कल्की ने व्हीलचेयर पर बैठेबैठे संवाद बोल कर अपने चेहरे के भावों को खूबसूरती से दर्शाया है.

फिल्म की कहानी लैला (कल्की कोचलिन) की है जो मानसिक पक्षाघात की शिकार है. वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती है. उस के परिवार में पिता (कुलजीत सिंह), मां (रेवथी) और भाई मोनू (मल्हार खुशू) हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही लैला को गाने लिखने का शौक है. उस की कालेज के ही धु्रव और नीमा से दोस्ती है. उस का ऐडमिशन न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में हो जाता है. न्यूयौर्क में उस की मुलाकात पाकिस्तान मूल की युवती खानुम (सयानी गुप्ता) से होती है. दोनों में दोस्ती हो जाती है. खानुम समलैंगिक है. उसे लैला से इश्क हो जाता है. जब लैला अपने और खानुम के रिश्तों के बारे में मां को बताती है तो मां को बहुत बुरा लगता है. अचानक लैला की मां की कैंसर से मौत हो जाती है और लैला समलैंगिक व पारिवारिक रिश्तों की कशमकश में फंस जाती है. समलैंगिक रिश्तों पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं लेकिन शोनाली बोस ने जिस तरह से धीरेधीरे मानसिक पक्षाघात की रोगी युवती में सैक्स की भावना को उभारा है, वह अलग किस्म की है. निर्देशिका ने लैला के 2 रूप दिखाए हैं. एक तरफ तो वह अपनी बीमारी से जू झ रही होती है वहीं उस के अंदर जब सैक्स की भावनाएं उमड़ती हैं तो उस की खुशी देखने लायक होती है. निर्देशिका ने लैला के परिवार को हर पल खुशमिजाज दिखाया है. लैला के पिता पंजाबी के सिंगर सुखबीर के गानों के कायल हैं तो मां घर के कामकाज के साथसाथ बाहर के काम भी संभालती हैं. यह फिल्म इमोशनल जरूर है परंतु इस पर भावुकता हावी नहीं होने दी गई है. निर्देशन अच्छा है. कल्की की ऐक्टिंग तो अच्छी है ही, सयानी गुप्ता ने भी नैचुरल ऐक्ंिटग की है. कल्की और सयानी गुप्ता के इंटीमेट सीन को विस्तार से फिल्माया गया है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. फिल्म का पार्श्व संगीत ठीकठाक है. छायांकन अच्छा है. इस फिल्म की खामी या विशेषता, चाहे जो भी कहें यह अपंगों की यौन इच्छाओं पर आधारित है. जिन के शरीर में भले ही कुछ कमी हो लेकिन उन की यौन भूख भी उतनी ही बलवती होती है जितना खाना, पहनना और सुरक्षात्मक तरीके से रहना. निर्देशक ने केवल एक पहलू रख कर फिल्म को अधूरा कर दिया पर यह पहलू भी दमदार मानना होगा.

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