जब बाबा रामरहीम की प्रचार की तरह बनाई गई फिल्म एमएसजी रिलीज हुई तो लोगों को लगा कि तथाकथित साधुसंतों और चमत्कारी बाबाओं पर बनी फिल्म में शायद कोई सार्थक संदेश मिलेगा लेकिन फिल्म देखी तो किस्सा वही ढाक के तीन पात वाला. जो धर्म का प्रवचन और चमत्कारों का चूरन समागम सभा व प्रवचन शिविर में दिया जाता है वही फिल्म में करोड़ों रुपए फूंक कर दिया गया. सिलसिला यहीं नहीं थमा, इस के कुछ महीनों बाद ‘गुरु नानक शाह फकीर’ भी रिलीज हुई. अब खबर है कि 1984 दंगे पर आधारित ‘ब्लड स्ट्रीट’, जो अब तक सैंसर में अटकी थी, रिलीज के लिए तैयार है. फिल्म में संत बलजीत सिंह डादूवाल भी नजर आएंगे. धार्मिक प्रसंगों से भरी ऐसी फिल्में समाज को फिर से जाति, धर्म, कुप्रथाओं की दुनिया में वापस ले जाती दिखती हैं जिस से बाहर आने के लिए कई पीढि़यों ने संघर्ष किया है. अब धर्म के दुकानदार प्रचार का हर हथकंडा अपनाने में लगे हैं. वे फिल्मों, इंटरनैट, ट्विटर, फेसबुक का जम कर इस्तेमाल कर रहे हैं.

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