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टीम इंडिया में गुटबाजी

दुनिया की बेहतरीन टीमों में माने जाने वाली भारतीय क्रिकेट टीम का बंगलादेश जैसी टीम से शृंखला हार जाना, फिर 10 जुलाई से जिंबाब्वे के खिलाफ होने वाली एकदिवसीय और टी-20 शृंखला में महेंद्र सिंह धौनी, विराट कोहली को विश्राम दे कर आजिंक्य रहाणे के हाथों टीम की कमान सौंपना साबित करता है कि टीम इंडिया में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.इस सीरीज में खिलाडि़यों में न तो जोश दिखा और न ही जज्बा. बल्कि टीम में गुटबाजी साफ दिखाई दे रही है. महेंद्र सिंह धौनी ब्रिगेड और दूसरे गुट में विराट कोहली ब्रिगेड खुल कर मैदानेजंग में आमनेसामने आ खड़ी हुई हैं. सीरीज के बीच में ही महेंद्र सिंह धौनी का एक चौंकाने वाला बयान भी आया कि अगर टीम का प्रदर्शन उन के बाहर होने से ठीक हो जाता है तो वे एकदिवसीय कप्तानी छोड़ने को तैयार हैं. भले ही पत्रकारों को धौनी ने मजाकिया अंदाज में जवाब दिया हो पर यह मसला कहीं न कहीं गंभीर है क्योंकि जो खिलाड़ी पहले धौनी का दिलोजान से समर्थन करते थे उन्हीं खिलाडि़यों को अब धौनी की बात रास नहीं आती. विराट कोहली ने धौनी के फैसलों पर ही सवाल उठा दिए और कोहली ने कहा कि एकदिवसीय सीरीज के दौरान जो फैसले लिए गए, उन से खिलाडि़यों के सामने स्पष्ट कुछ भी नहीं था.

दरअसल, धौनी इन दिनों चौतरफा दबाव झेल रहे हैं. पहला, एन श्रीनिवासन का बीसीसीआई में दबदबा खत्म हो चला है और दूसरा, टीम इंडिया के निदेशक रवि शास्त्री विराट कोहली को ज्यादा तवज्जुह देते हैं. यह बात अलग है कि धौनी ने पिछले 7-8 वर्षों से अपनी अगुआई में टीम इंडिया को शिखर पर पहुंचाया है पर पिछले कुछ वर्षों में विराट कोहली ने भी अंतर्राष्ट्रीय मैचों में कामयाबी हासिल की है. ऐसे में विराट कोहली का मनोबल 7वें आसमान पर है. धौनी अब अपने ही मकड़जाल में फंसते नजर आ रहे हैं. एक दौर में धौनी ने सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, अब कहीं ऐसा न हो कि धौनी को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए. हालांकि कैप्टन कूल कहे जाने वाले धौनी अब अपना आपा खोते नजर आ रहे हैं जैसा कि बंगलादेश के साथ खेलते हुए धौनी ने पहले ही एकदिवसीय मैच में युवा गेंदबाज मुस्ताफीजुर रहमान को धक्का दिया. हमेशा विपरीत परिस्थितियों के दौरान टीम इंडिया को उबारने वाले धौनी खुद अपनी परिस्थितियों से कैसे उबर पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी.

ज्वाला और पोनप्पा ने रचा इतिहास.

भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैदराबाद की 31 वर्षीया ज्वाला गुट्टा और बेंगलुरु की 21 वर्षीया अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी ने वर्ष 2012 लंदन ओलिंपिक के बाद एकसाथ खेलते हुए कनाडा ओपेन ग्रांड प्रिक्स टूर्नामैंट में वीमैंस डबल का खिताब जीत कर इतिहास रच दिया. इस जोड़ी ने शीर्ष वरीयता प्राप्त नीदरलैंड की ईफ्जे मस्किन और सेलेना पाइक को हरा कर यह खिताब हासिल किया. गौरतलब है कि ज्वाला हमेशा से विवादों के घेरे में रही है और इस के लिए कई बार ज्वाला की खरीखरी बातें खेल अधिकारियों को रास नहीं आईं और वे ज्वाला को अपने अधिकारों और नियमकायदों का हवाला दे परेशान करने से भी नहीं चूके. पर ज्वाला ने भी कभी हार नहीं मानी. कुछ दिन पहले ज्वाला ने फेसबुक के जरिए सरकार की उन योजनाओं पर भी सवाल उठाए जिन में कहा गया कि जिन खिलाडि़यों से वर्ष 2016 में ओलिंपिक पदक आने की उम्मीद है, उन्हें आर्थिक मदद दी जाएगी लेकिन उस लिस्ट में ज्वाला का नाम नहीं था. अपनी नाराजगी जताते हुए ज्वाला ने लिखा कि हम ने खेलने के लिए बहुत संघर्ष किया है और ऐसे में सरकार और एसोसिएशन हमें नजरअंदाज करती रही तो हम अपना हौसला कैसे बनाए रखेंगे.

इस से पहले ज्वाला ने भारतीय बैडमिंटन संघ यानी बीएआई लीग की नीलामी प्रक्रिया के दौरान खेल अधिकारियों से बेस प्राइस घटाने के सिलसिले में लोहा लिया था. उन का बेस प्राइस बिना उन से पूछे 50 हजार डौलर से घटा कर 25 हजार कर दिया गया था. इसी तरह अश्विनी पोनप्पा का भी बेस प्राइस ऐन मौके पर 50 हजार डौलर से घटा कर 25 हजार डौलर कर दिया गया था. ज्वाला उन खिलाडि़यों में से नहीं है जो पैसे ले कर चुप बैठ जाते हैं या फिर उन खिलाडि़यों जैसी भी नहीं है जो अधिकारियों की धौंस से डर जाते हैं. बहरहाल, भारतीय पिता और चीनी मां की बेटी ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी ने यह खिताब जीत कर यह साबित कर दिया कि चाहे राह में कितने भी रोड़े अटकाए जाएं पर खेल के मैदान में अगर हौसले और बुलंद जज्बे के साथ उतरा जाए तो किसी भी विरोधी को पटकनी दी जा सकती है.

लोगों का काम है कहना

लोगों की निंदा, आलोचना, तिरस्कारयुक्त वचनों से क्या आप अपना मनोबल गिरा कर रुक जाएंगे? डिप्रैशन या तनाव के शिकार हो कर जिंदगी को तबाह कर लेंगे? कभी नहीं. लोगों का काम है कहना और आप का काम है इन सब को मन ही मन ‘चल परे हट…’ कह कर आगे बढ़ना. अगर आप को अपना समय व ऊर्जा बचाते हुए आत्मसम्मान बरकरार रखना है और हंसमुख व खुशमिजाज रहना है तो लोगों की बकवास, नकारात्मक और हतोत्साहित टिप्पणियों को तवज्जुह देने से बचना होगा. लोगों की कही अनावश्यक और आधारहीन बातों को तूल देने का क्या दुष्परिणाम होता है, यह तो कोई 38 वर्षीया अंजलि के पति व उस के बच्चों से पूछे. आज उस के पति और बच्चे भी पछता रहे हैं, लेकिन जो बिगड़ना था सो तो बिगड़ ही गया.

अंजलि एक निजी कंपनी में सैल्स एग्जीक्यूटिव थी. अच्छा काम करती थी. घर की जिम्मेदारी भी बखूबी संभालती थी. लेकिन बीच में उस की तबीयत जरा नासाज रहने लगी तो चुस्तदुरुस्त रुटीन जरा गड़बड़ा गया. बच्चों का नाश्ता 5-10 मिनट आगेपीछे हो जाता या कभी सब्जी में तेल या मिर्चमसाला कमज्यादा हो जाता. जाहिर है, इन दिनों औफिस में भी अंजलि उतनी फुरती से काम नहीं कर पाती थी. औफिस पहुंचने में भी 15-20 मिनट लेट होने लगी. बस, फिर क्या था, औफिस में बौस ताने मारने लगा और घर पर पति या बच्चे भी कहने लगे, ‘मम्मी आप से कुछ होने वाला नहीं’, ‘मम्मी, आप बहुत ढीली हो’, ‘अंजलि, तुम से एक काम भी ढंग का होने वाला नहीं’, ‘तुम आउटडेटेड हो चुकी हो.’ इन व्यंग्यबाणों और बौस के तीखे तानों ने अंजलि के मन पर ऐसा विपरीत असर डाला कि वह सचमुच खुद को नकारा, अक्षम व वक्त से पीछे समझने लगी और गहरे अवसाद में डूब गई. नतीजा यह हुआ कि आज वह डिप्रैशन की शिकार हो घर पर पड़ी है. नौकरी छूट गई और बच्चों से बात करना तक वह पसंद नहीं करती. इन दिनों उस का मनोवैज्ञानिक इलाज चल रहा है. मनोचिकित्सक के मुताबिक, उसे ठीक होने में सालछह महीने का वक्त लग सकता है.

समझदारी से लें काम

अंजलि ने जरा समझदारी और परिपक्वता से काम लिया होता तो आज यह नौबत न आती. कोई आप पर तीखे ताने मारे, अपमानजनक या आप की क्षमताओं को कम कर के आंकने वाली टिप्पणियां करे, आप को मूर्ख, नासमझ या नकारा करार देने वाली बातें कहें, तो ऐसी बातों को दिल पर लेने की जरूरत नहीं है.

नकारात्मक प्रकृति को पहचानें

जो आप को अपमानित कर रहा है या नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है, वह अपनी ही हीनभावना का परिचय दे रहा है. वह निश्चित तौर पर नकारात्मक प्रकृति का इंसान है. आप की जगह कोई और होता, तो भी वह उसे अपना ‘टारगेट’ बनाता. कुछ व्यक्तियों द्वारा ऐसा करने के 3 प्रमुख कारण होते हैं : 

अहंकार : ऐसे लोग अपने अहं की तुष्टि और खुद को श्रेष्ठ दिखाने के लिए लोगों की आलोचना करते हैं.

धैर्यहीनता : जो लोग धैर्यहीन होते हैं वे अपने सामने पड़ने वाले हर दूसरे या तीसरे आदमी का अपमान करते हैं.

हीनता से ग्रस्त : जो बचपन से दूसरों द्वारा अपमानित या लांछित होते रहे हैं वे बदला लेने के लिए दूसरे लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.

उदास होने की वजह को जानें

कुछ मामलों में भले ही सामने वाला बात को जरा गलत लहजे में बोल रहा हो, या बढ़ाचढ़ा कर बोल रहा हो लेकिन संभव है कि उस में आप की कोई कमी छिपी हो. अगर ऐसा है तो उस की बातों को अपनी कसौटी पर परख लें और अपने परफौरमैंस या गलती को ठीक करने की कोशिश करें.

टैंशन न लें

किसी की कटु टिप्पणी ने आप को टैंशन दे दी हो तो ज्यादा सीरियस होने के बजाय किसी दूसरे काम में मन लगाएं और उस की बात को हवा में उड़ा दें. किसी के साथ जोक्स शेयर करें, म्यूजिक सुनें या अपने जरूरी कार्यों को अंजाम देने में व्यस्त हो जाएं.

अपने लक्ष्य से विचलित न हों

कई बार आप को सहकर्मियों, प्रतिद्वंद्वियों या बौस द्वारा बारबार अपमानित करने, नकारात्मक टिप्पणी करने या आप की क्षमताओं को ले कर कटूक्तियां करने के पीछे स्वार्थ होता है. वे आप का मनोबल गिरा कर आप को अपने लक्ष्य से विचलित करना चाहते हैं. ऐसे लोगों को अपने काम में सफल न होने दें. ‘चल परे हट’ वाला एटीट्यूड अपनाएं और आगे की राह पकड़ें. जैसा बोएंगे वैसा काटेंगे, यह कहावत बिलकुल सही है. अगर आप चाहते हैं कि लोेग आप के प्रति अच्छी राय रखें तो आप भी लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें, उन की प्रशंसा करें, हौसलाअफजाई करें और दूसरों के सामने उन के कार्यों का उल्लेख करें. इस से आप को भी ज्यादातर लोगों से ऐसा ही व्यवहार मिलेगा, जो आप की तरक्की में सहायक होगा.

यह भी खूब रही

हमारे पड़ोसी जांगीड साहब सिगरेट पीने के आदी हैं, घर वालों से चोरीछिपे सिगरेट पीते हैं. शाम के वक्त खाना खाने के बाद मेरे पति और वे घूमने जाते हैं और इसी बहाने जांगीड साहब सिगरेट की तलब भी पूरी कर आते हैं. एक दिन औफिस से लेट आने की वजह से मेरे पति और जांगीड साहब देरी से घूमने गए. पैसे दोनों के पास ही नहीं थे. सिगरेट की दुकानें बंद हो चुकी थीं. सिगरेट पीनी जरूरी थी. एक दुकान वाले, जिस के कि घर में ही दुकान थी, को जगा कर 2 सिगरेट लीं और उस से कहा कि पैसे कल दे देंगे. वह दुकानदार हमारे पड़ोस में स्थित मंडी से सब्जी लेने रोजाना आया करता था. अगले दिन जब वह आया तो उस ने जांगीड साहब के घर की घंटी बजाई. जांगीड साहब सो रहे थे. भाभीजी बाहर आईं तो उस ने कहा कि पैसे लेने थे, भाईसाहब रात को 2 सिगरेट ले कर आए थे. भाभीजी ने जांगीड साहब को जगा कर दुकानदार से सामना कराया. जांगीड साहब के काटो तो खून नहीं. उस के बाद से उन्होंने सिगरेट पीने से तौबा कर ली. इस बात पर सभी बिना हंसे नहीं रह सके.

आशा शर्मा, बूंदी (राज.)

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हम कश्मीर से बीएड कर रहे थे. वहां राजस्थान से आए कई विद्यार्थी थे. हमारी क्लासेज अंगरेजी माध्यम से पढ़ाई जाती थीं. कई विद्यार्थियों को अंगरेजी समझ में नहीं आती थी. एक दिन हमारा इंस्पैक्शन होने वाला था. सभी विद्यार्थी डरे हुए थे. वहां एक लड़का नागौर का था जो अंगरेजी ढंग से नहीं जानता था. उस के दांत में दर्द हुआ और वह डाक्टर को दिखा कर लौटा. मैस में जा कर उस ने मैस वाले भैया से कहा, ‘‘मेरे दांत में इंस्पैक्शन हो गया है, इसलिए मैं खाना नहीं खा सकता.’’ मैस वाले भैया पढ़ेलिखे थे. उन्होंने चुटकी ली, ‘‘किस ने किया तुम्हारे दांत में इंस्पैक्शन?’’ उन्होंने यह बात जब हम सब को बताई तो हमारा हंसतेहंसते बुरा हाल हो गया. जब तक हम वहां रहे, सब उस लड़के को छेड़ते रहे, ‘क्यों, तुम्हारे दांत में इंस्पैक्शन हो गया.’ दरअसल वह इन्फैक्शन को इंस्पैक्शन समझ बैठा था.

नेहा प्रधान, कोटा (राज.)

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मैं 8वीं कक्षा में पढ़ती थी. मेरी सहेली प्रिया भी मेरी ही कक्षा में पढ़ती थी. एक बार एक लड़का हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गया. वह उस से पीछा छुड़ाने के लिए नएनए उपाय ढूंढ़ने लगी. अचानक एक दिन उस ने अपने लंबे बालों को बौयकट करा लिया. रूप का पुजारी वह लड़का प्रिया के बदले अंदाज को शायद हजम नहीं कर पाया और उस ने नजर कहीं और जमा ली. हम तो बस यही बोल पाए, यह भी खूब रही.

सुधा विजय, मदनगीर (न.दि.)

सफर अनजाना

मैं और पति हवाई जहाज से बेंगलुरु से नागपुर आने वाले थे. हवाई यात्रा सीधी थी, सुबह 7 बजे चल कर 9 बजे तक नागपुर पहुंचाती. पर इस के लिए हमें सुबह 4 बजे उठ कर घर से निकलना पड़ता इसलिए हम ने दूसरी हवाई यात्रा करनी चाही जो दोपहर 1 बजे की थी. वह सीधी न हो कर वाया मुंबई थी. निश्चित दिन और समय पर हम 12 बजे एअरपोर्ट पर पहुंच गए. 3 बजे विमान मुंबई पहुंचा. मुंबई के सभी पैसेंजर उतर गए. हम नागपुर के 20-25 पैसेंजर विमान में बैठे रहे. लगभग 1 घंटा हम बैठे रहे. नागपुर के लिए एक भी नया पैसेंजर विमान में नहीं चढ़ा. हम सब को उतर जाने को कहा गया कि आप सब को दूसरे विमान द्वारा नागपुर भेजा जाएगा. काफी बहस होने के बाद आखिर हमें उतरना पड़ा. बस के द्वारा एअरपोर्ट के अंदर ले जाया गया. फिर से सिक्योरिटी चैकिंग करानी पड़ी. 1 घंटे तक विमान के आने का इंतजार करना पड़ा. मुंबई एअरपोर्ट पर बैठने की जगह तो क्या, खड़े रहने की जगह भी नहीं थी. आखिर 2 घंटे के बाद हमें विमान में चढ़ने को कहा गया. फिर विमान को उड़ने के लिए आधा घंटा लाइन में खड़ा रहना पड़ा. आखिरकार, हमारा विमान उड़ा और हम नागपुर पहुंच गए. घर तक पहुंचतेपहुंचते थक कर चूर हो गए थे. विमान में बैठ कर आए हैं, ऐसा किसी को भी नहीं लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे बिना रिजर्वेशन के किसी पैसेंजर ट्रेन से आए हैं. यह सफर सुहाना न हो कर काफी तकलीफदेय था.

ईशू मूलचंदानी, नागपुर (महा.)

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मेरी भतीजी शिल्पा इंदौर से जबलपुर अकेली आ रही थी. घर से समय पर निकलने के बावजूद रास्ते में जाम लगे होने के कारण जब वह स्टेशन पहुंची तो ट्रेन जाने का समय हो चुका था. अकेले जल्दीजल्दी पुल पार कर प्लेटफौर्म पर पहुंची तो यह देख कर घबरा गई कि उस प्लेटफौर्म पर खड़ी टे्रन दूसरी है. अब फिर से पुल पर चढ़ कर अगले प्लेटफौर्म पर जाना था जहां जबलपुर जाने हेतु ट्रेन तैयार खड़ी थी. उसी समय एक युवक, जो किसी परिचित को ट्रेन में बैठा कर वापस जा रहा था, शिल्पा को घबराया हुआ देख कर रुक गया और बोला, ‘‘क्या मैं आप की मदद कर सकता हूं.’’ तब शिल्पा ने बताया कि उसे दूसरे प्लेटफौर्म पर खड़ी ट्रेन से जाना है. उस युवक ने कहा, ‘‘घबराओ मत, मैं आप का सामान ले कर चलता हूं.’’ और उस अनजान युवक ने शिल्पा को जबलपुर वाली ट्रेन में उस के आरक्षित डब्बे में पहुंचा दिया. तभी ट्रेन चल पड़ी और शिल्पा उस युवक को धन्यवाद तक न दे सकी.    

नीलिमा राणा, जबलपुर (म.प्र.)

स्मार्ट टिप्स

  1. मोबाइल फोन से हर समय चिपके रहने की लत से छुटकारा पाने का आसान तरीका है कि सभी अतिरिक्त फीचर्स जैसे टैक्स्ट मैसेज, प्लान्स या रिंगटोन, डाउनलोड पैकेज आदि को हटा दें. आप टैक्स्ट मैसेज रख सकते हैं क्योंकि सामान्यतया अधिकांश कंपनियों में हर मैसेज को भेजने या प्राप्त करने के लिए कुछ राशि चुकानी होती है. प्रत्येक मैसेज के बाद भुगतान करने के झंझट के कारण आप की मैसेज करने की लत कम हो जाएगी.
  2. आम और शहद का मेल आप की त्वचा को नमी देगा और उसे फ्रैश बनाएगा. पके आम का थोड़ा सा गूदा लें और उस में 1 चम्मच शहद व बादाम का तेल मिलाएं. इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट के बाद मुंह धो लें. त्वचा निखर जाएगी.
  3. किसी भी तेल के इस्तेमाल से पहले कोलैस्ट्रौल का खयाल सब से पहले आता है. मूंगफली के तेल में ऐसी समस्या नहीं होती है. इस में बैड कोलैस्ट्रौल नहीं होता जिस से मोटापे का खतरा नहीं मंडराता.
  4. ब्रेकफास्ट में ओट्स खाएं. इस में फैट कम और फाइबर ज्यादा होता है. यह पचने में वक्त लेता है, जिस से शरीर को एनर्जी मिलती रहती है.
  5. यदि आप बाथरूम की बदबू से जल्दी नजात पाना चाहते हैं तो एक मोमबत्ती जला दें, यह बदबू को बेअसर कर देगी. 

ये पति

मेरे पति बहुत मजाकिया स्वभाव के हैं. वे अपने कपड़ों पर खुद ही प्रैस करते हैं. एक दिन वे प्रैस कर रहे थे. कपड़ों पर साबुन के दाग लगे देख कर एक भीगे रूमाल से साफ करते जा रहे थे और मुझ से बोल रहे थे, ‘‘कपड़े तो मेरी मां धोया करती थीं, क्या मजाल कहीं दाग लगा हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘अब भी धुलवा लो.’’ चूंकि मेरी सास अब जीवित नहीं थीं, इसलिए ये बात मैं ने मजाक में कही थी तो मेरे पति बोले, ‘‘मां अब कैसे धोएंगी.’’ मैं ने कहा, ‘‘मां से गुहार लगाएं कि वे आ कर आप के कपड़े धो दें और चली जाएं.’’ अब मेरे पति ने हाथों को नचा कर कहा, ‘‘वाहवाह, मेरी मां कपड़े धोने आएंगी और मेरी बीवी यानी उन की बहूरानी हाथों पर हाथ रख कर मेवामिस्री खाएगी.’’ यह सुन कर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी. 

अंजु सिंगड़ोदिया, हावड़ा (प.बं.)

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शादी से पहले मेरा होटल में खाना खाने जाना बिलकुल भी नहीं होता था. इसलिए मैं वहां के तौरतरीकों से परिचित नहीं थी. ससुराल पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही चचेरे देवरों और पति के दोस्तों के साथ हम लोग होटल में खाना खाने गए. सभी मिल कर नई भाभी यानी मेरी खिंचाई कर रहे थे. खाना खा कर निकलते समय पति के एक दोस्त ने कहा, ‘‘भाभीजी, निकलते समय सौंफ और मिस्री नैपकिन में भर कर ले जाना होता है.’’ मैं ने पति की तरफ देखा, ये सिर्फ मुसकरा रहे थे. मैं ने मुट्ठी भर कर सौंफ व मिस्री उठा ली. रास्तेभर किसी ने कुछ नहीं कहा. घर आ कर मेरी सासूमां से बोलने लगे, ‘‘आप की बहू तो बड़ी चोर है, सौंफमिस्री भर कर लाई है.’’ मैं हक्कीबक्की रह गई. खूब ठहाके लगने लगे. मैं ने अपना सिर पीट लिया. मेरी सासूमां ने मुझे गले से लगा लिया और समझाया कि इन लड़कों की बातों में मत आया करो.   

रीता तिवारी, भिलाई (छ.ग.)

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मेरे पति थोड़े संकोची स्वभाव के होने के कारण ज्यादा बात नहीं करते. मेरे पहले करवाचौथ पर वे मुझे साड़ी दिलवाने ले गए. क्रीम रंग की साड़ी पर सुनहरी बूटी वाली साड़ी उन्होंने पसंद की. तभी वहां दक्षिण भारतीय पुरुष साडि़यां लेने आ गए. उन्होंने हमारी साड़ी उठा कर कहा, ‘‘हमें भी यही साड़ी चाहिए.’’ दुकानदार ने कहा, ‘‘यह तो एक ही है, आप दूसरी ले लीजिए.’’ तभी मेरे पतिदेव ने जल्दी से साड़ी उठा कर रख ली. उन की इस हरकत पर मैं और दुकानदार हंसने लगे.

डा. नेहा प्रधान, कोटा (राज.)

खुद्दार दिल

प्यार कर वो पार उतरे हम किनारे रह गए

सत्य का कर के भरोसा हम सहारे रह गए

चंद सपने थे संजोए साथ तेरे सजना

टूट चकनाचूर सारे वो नजारे रह गए

चांद फैला गर्दिशों में चांदनी का नूर ले

देख आलम बेबसी का चुप सितारे रह गए

था बड़ा खुद्दार दिल क्यों पराया हो गया

वक्त से मजबूर शायद हो तुम्हारे रह गए

बात दिल की हम दबा कर रह गए

डर जमाने से उन्हें हम बस निहारे रह गए

जल रही थी आग इंतकामों की कहीं

दे हवा वो चल दिए घर जले हमारे रह गए.

       – मंजु वशिष्ठ

आसान नहीं इतना

आसान नहीं इतना

दूजे का दर्द समझ पाना

जरूरी है इस के लिए

पहले अपने दिल का

जख्मों से भरा होना,

लहूलुहान होना.

        – हरीश कुमार ‘अमित’

बीमार, गरीब के लिए लुभावनी सरकारी योजना

सरकार गरीबों की उन्नति के लिए योजना का जिस बारीकी से खाका तैयार करती है उसे देख कर लगता है कि सचमुच जल्द ही देश से गरीबी का उन्मूलन हो जाएगा और हमारा हर नागरिक आने वाले दिनों में संपन्नता में जिएगा. आजादी के बाद से ही सरकारें इस तरह का खाका तैयार करती रही हैं और समयसमय पर फिर उन्हीं को और बेहतर बनाने के लिए संशोधन किए जाते रहे हैं. केंद्र में आने वाली प्रत्येक सरकार हर बार नई योजना ले कर आती है और लोगों को लुभाने का प्रयास करती है लेकिन सही बात यह है कि गरीब की हालत में कभी सुधार नहीं हुआ. इस की बड़ी वजह है कि नेता वोट के लिए गरीबी मिटाने के नारे तो देते हैं और सरकारी तंत्र के बाबू सत्ता में आई पार्टी को खुश करने के लिए बेहतर और लुभावना खाका तो बनाते हैं लेकिन उसे इस तरह से क्रियान्वित करते हैं कि योजना भी बंद नहीं हो और गरीब को भी कुछ ठोस हासिल नहीं होने पाए बल्कि उस में लगातार आशा का संचार होता रहे. योजना चलती रहे और आंकड़े बढ़ते रहें लेकिन जमीनी स्थिति में सुधार नहीं होने पाए.

हाल ही में एक खबर आई है कि सरकार गरीबों को सस्ती दवा उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केंद्र खोल रही है. चालू वित्त वर्ष में उस की 3 हजार ऐसे केंद्र खोलने की योजना है. निजी और सरकारी दोनों तरह से खुल रहे 3 हजार स्टोर पर गरीबों को सस्ती दवाएं मिलेंगी. यह खबर भी बहुत अच्छी है और इसे पढ़ कर गरीबों को लगता है कि उन के लिए सरकार ने खजाना खोल दिया है लेकिन इन गरीबों में से 99 फीसदी जानते हैं कि आने वाले समय में यह औषधि केंद्र भी सफेद हाथी साबित होंगे. उन्हें मालूम है कि सरकारी अस्पतालों में गरीबों के लिए निशुल्क दवा की व्यवस्था है. असलियत यह है कि इन सरकारी अस्पतालों में पहले तो डाक्टर नहीं होते हैं और जिला मुख्यालय स्तर पर यदि कोई डाक्टर मिल भी जाए तो उस की लिखी दवा मरीज को अस्पताल में मिलती नहीं है. एकाध टैबलेट दे कर खानापूर्ति जरूर की जाती है. इस से सरकारी अस्पतालों में गरीब को निशुल्क दवा देने वाले रजिस्टर में आंकड़ों की बाजीगरी खूब चमकती है. इस से सरकारी आंकड़ा तो बढ़ जाता है लेकिन गरीब ठीक नहीं हो पाता है. कारण, दवा नकली होती है. सरकारी औषधालय तो हर गांव में खुले हैं लेकिन वहां ताले जड़े रहते हैं. यहां तक कि ब्लौक स्तर पर भी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र काम नहीं करते हैं. जिला मुख्यालयों में थोड़ीबहुत सुविधा होती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार की यह लुभावनी योजना गरीबों में नई आशा का संचार करेगी और उन्हें सचमुच इन स्टोरों पर सस्ती दवा मिल सकेगी.

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