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पश्चाताप: आज्ञाकारी पुत्र घाना को किस बात की मिली सजा?

लेखक- धीरज कुमार

ट्रेन से उतर कर टैक्सी किया और घर पहुंच गया. महीनों बाद घर वापस आया था. मुझे व्यापार के सिलसिले में अकसर बाहर रहना पड़ता है. मैं लंबी यात्रा के कारण थका हुआ था, इसलिए आदतन सब से पहले नहाधो कर फ्रेश हुआ. तभी  पत्नी आंगन में चायनाश्ता ले आई. चाय पीते हुए मां से बातें कर रहा था. अगर मैं घर से बाहर रहूं और कुछ दिनों बाद वापस आता हूं तो  मां  घर की समस्याएं और गांवघर की दुनियाभर की बातें ले कर बैठ जाती है. यह उस की पुरानी आदत है. इसलिए कुछ उस की बातें सुनता हूं. कुछ बातों पर ध्यान नहीं देता हूं. परंतु इस प्रकार अपने गांवघर के बारे में बहुतकुछ जानकारी मिल जाती है.

मां ने बातोंबातों में बताया कि, “उस ने अपने बिसेसर चाचा की हत्या  डंडे से पीटपीट कर  कर दी है. उसे  जेल हो गई है.”

“कौन, मां, तुम किस के बारे में कह रही हो?” मैं ने हत्या और जेल के बारे में सुन कर जरा चौकन्ना होते हुए पूछा.

” घाना…ना…, घाना के बारे में बता रही हूं,” मां जोर देते हुए बोली.

” घाना ने किस की हत्या कर दिया, मां? ” मैं ने ज़रा आश्चर्य से पूछा था.

“अरे, वह अपने बिसेसर चाचा की, बउआ,” वह दृढ़ता से बोली थी.

यह सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ. एक पल को लगा, शायद यह झूठ है. किंतु सच तो सच होता है न, कई दिनों तक उस के बारे में मेरे मन में विचार उमड़तेघुमड़ते रहे.

मुझे आज भी याद है. हम दोनों एकसाथ बचपन में खेलते थे. साथसाथ बगीचे से आम चुराते थे. खेतों से मटर ककी फलियां तोड़ना, एकसाथ पगडंडियों पर दौड़ना… दोनों साथ साथ खेलते हुए बड़े हुए थे.

आज मैं व्यापार के सिलसिले में अपने गांव से दूर रहता हूं और कभीकभार ही आ पाता हूं. समयाभाव के कारण मिलनाजुलना हम दोनों का कम हो गया था. किंतु आज भी हमदोनों की पटती है. जब भी मैं गांव  आता हूं, हम दोनों की घंटों बातें होती हैं.

उस के परिवार के लोगों की विसेसर चाचा से पुरानी रंजिश थी क्योंकि वे उस के गोतिया थे. मैं एक बार किसी काम से उस के घर जा रहा था. उस की चाची से उस की मां की तूतूमैंमैं हो रही थी. उस की मां जोरजोर से गालियां दे रही थी.

उस की चाची व उस की चचेरी बहनें भी उस की मां को  गालियां देने लगीं.

उस की मां  जोरजोर से चिल्लाने लगी, “दौड़ रे घाना…” इतना सुनते ही घाना अंदर से दौड़ पड़ा था. ऐसा लग रहा था, अभी वह चाची पर टूट पड़ेगा. वह भी मां की तरह से अनापशनाप बोलने लगा. मैं ने उस को डांटा और शांत किया. वह मेरी बात मानता था. मैं ने उस को समझाया, “छोटीछोटी बातों पर गुस्सा क्यों करते हो, आखिर, वह तुम्हारी चाची ही तो है.”

कुछ देर बाद मामला रफादफा हो गया था.

कुछ दिनों बाद उस ने बताया कि, “चाचा के परिवार से परेशान हो गया हूं. वे लोग जमीनजायदाद के बंटवारे को उलझा कर रखे हैं. उन्होंने बंटवारे में ज्यादा जमीन रख ली है. इसलिए हम दोनों परिवारों में झगड़ा और तनाव रहता है. वे दोबारा बंटवारे के लिए  तैयार नहीं हो रहे हैं.”

यह कहते हुए वह गंभीर हो गया था.

मैं ने उस को समझाया, “क्यों नहीं तुम लोग सहूलियत से ही  मांग लेते हो.”

“वे कभी नहीं देंगे. वे बहुत अड़ियल हैं,” वह निराश होते हुए बोला था.

वह मेरा बचपन का दोस्त था. मैं उस को भलीभांति जानता हूं. वह कभीकभी उखड़ जाता है, गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाता है. परंतु वह इतना कठोर नहीं है कि हत्या जैसे अपराध में लिप्त हो जा.

गांव के लोगों से मालूम हुआ कि जब वह केस हार गया और उसे सजा मिल गई तो उस ने अपने मांबाबूजी से भी मिलने से इनकार कर दिया.

सभी लोग उसे अपराधी मान रहे थे. लेकिन मेरा मन नहीं मान रहा था. इसलिए मैं ने समय निकाल कर उस से मिलने के लिए सोचा.

मैं जेल के सामने खड़ा था. वह कुछ देर बाद  सलाखों के पीछे आ चुका था. मुझे देखते ही उस की आंखों में आंसू आ गए. उस के आंसू रुक नहीं रहे थे. मैं बारबार उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था.

“घाना,  मैं तुम से जानने आया हूं  कि आखिर यह सब कैसे हो गया?” मैं ने उस से सीधा सवाल किया था.

वह बहुत देर तक अपने आंसुओं पर काबू पाने की कोशिश करता रहा. जब आंसू रुके तो उस ने बोलना शुरू किया, “भैया, आप जानते हैं…”

मैं उस की उम्र से थोड़ा बड़ा हूं और गांवघर के रिश्ते में भाई भी लगता हूं, इसलिए वह मुझे भैया ही कहता है. फिर भी, वह मेरा दोस्त है.

एक बार फिर रुक कर उस ने बोला शुरू किया, “मैं गुस्से के आवेग में ऐसा कर गया. वहां मांबाबूजी और मेरी बहन  भी थी. मां मारोमारो की आवाज लगा रही थी. बहन ने आग में घी डालने का काम कर दिया. मैं आगेपीछे नहीं सोच पाया. किसी ने एक बार भी मुझ से यह नहीं कहा कि मत मारो. अगर  किसी ने एक बार भी रोका होता,  तो शायद मैं उन की हत्या न करता और कारावास का दंड न मिलता.”

मैं ने तसल्ली देने की कोशिश की, “अब जो हो गया,  हो गया. अब पछताने से कोई फायदा नहीं है.”

कुछ देर मुझ से नज़रें नहीं मिला पा रहा था वह. अपना चेहरा इधरउधर घुमा रहा था. वह स्वयं को अपराधी महसूस कर रहा था, ऐसा मुझे महसूस हो रहा था.

वह कुछ सोचते हुए अपना हाथ मलने लगा था. वह बारबार अपनी उन हथेलियों को देख रहा था जिन से उस ने हत्या की थी. भले ही वह हत्या के लिए पश्चात्ताप कर रहा था, यह बात तो स्पष्ट थी कि वह गुनाहगार और अपराधी तो बन ही गया. मैं कुछ देर तक गांवघर के बारे में इधरउधर की बातें कर उस का मन बहलाता रहा.

“मैं ने सुना है कि तुम अपने मांबाबूजी से अब नहीं मिलते हो. शायद, तुम ने  उन को मिलने से मना कर दिया है. लेकिन क्यों ?” मैं ने उस से सवाल किया.

उस का चेहरा कठोर हो गया था. उस ने बताया, “भैया, आप जानते हैं,  मांबाबूजी की आकांक्षाओं के कारण ही तो यह महाभारत हुआ है. अब मैं जिंदगीभर जेल में रहूंगा. इस के पीछे मेरे मांबाबूजी ही जिम्मेदार हैं. वे जमीन के कुछ टुकड़ों के लिए जिंदगीभर जहर भरते रहे. वे लोग एक बार भी रोके  होते तो शायद मैं  कारावास में जीवन नहीं भोगता.”

मैं सचाई सुन कर घाना के प्रति द्रवित हो रहा था. लेकिन इस परिस्थिति में मदद नहीं कर पा रहा था. मैं ने महसूस किया कि इन सहानुभूतियों का भी कोई फायदा नहीं है. मैं भारीमन से फिर मिलने का वादा कर के निकल गया.

उस ने कहा, “आते रहिएगा भैया, आप के सिवा अब मेरा कोई अपना नहीं है. अब मेरे मांबाबूजी अपने नहीं रहे जिन्होंने मुझे गुनाह के रास्ते पर धकेल दिया है.”

“ऐसा नहीं कहते मेरे भाई, वे तुम्हारे ही मांबाबूजी हैं. वे तुम्हारे ही रहेंगे,” मैं ने समझाने की कोशिश की.

उस की आंखों में घृणा और पश्चात्ताप के आंसू स्पष्ट दिख रहे थे.

कूड़ेदान : नेहा किसकी सफलता से खुश थी

रोहित ने नेहा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा और उस ने झट से हां कर दी. रोहित को वह बहुत पसंद करती थी. हो भी क्यों न, रोहित आईआरएस यानी भारतीय राजस्व सेवा का क्लास वन अफसर था. उस पर वह बेहद आकर्षक और शिष्ट भी था. रोहित के प्रस्ताव से नेहा को लगा जैसे उस ने जग जीत लिया है. झट से उस ने मम्मी को फोन लगाया और सब कह सुनाया. नेहा की बात सुन कर मम्मी भी खुशी से झूम उठीं. नेहा दिल्ली में एक प्रतिष्ठित एयरलाइंस में काम करती थी. रोहित भी इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर असिस्टैंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत था. दोनों शाम का समय साथ ही बिताते थे. शादी के प्रस्ताव के बाद नेहा अकसर रोहित के फ्लैट पर ही रुक जाया करती थी.

रोहित का घर चंडीगढ़ में था. मम्मीपापा वहीं नौकरी करते थे. एक भाई था जो पोलियो से ग्रस्त था. रोहित नेहा से कहा करता था कि भाई की देखभाल और मम्मीपापा की नौकरी की वजह से वे लोग दिल्ली नहीं आ पाते हैं. जैसे ही उस के घर वाले समय निकाल कर दिल्ली आएंगे वह अवश्य नेहा को उन से मिलवाएगा. दिन जैसे पंख लगा कर उड़ने लगे. धीरेधीरे 2 साल बीत गए परंतु अभी तक रोहित ने बात आगे नहीं बढ़ाई. यही नहीं, रोहित नेहा के मम्मीपापा से भी मिलने को तैयार नहीं होता था. वह आईएएस अफसर बनने की तैयारी कर रहा था लेकिन हर बार उसे आईआरएस ही मिलता था.

नेहा को उस की सफलता देख कर खुशी होती थी, लेकिन रोहित अपनी रैंक में सुधार न होते देख झुंझला जाता था. नेहा इस स्थिति में उस से शादी की बात करना श्रेयस्कर नहीं समझती थी. अब तक नेहा की अधिकांश सहेलियों की शादी हो चुकी थी. इसलिए नेहा भी अब इंतजार से उकता चुकी थी. अचानक एक दिन उस की मुलाकात सुप्रिया से हुई. सुप्रिया रोहित के चचेरे भाई की मंगेतर थी. दोनों पहले भी कई बार मिल चुकी थीं. अचानक काफी दिन बाद मुलाकात होने के कारण नेहा ने लपक कर उसे गले लगाया, ‘‘हाय बेबी, ग्लैड टू मीट यू.’’ नेहा को पता था कि जल्दी ही रोहित के भाई से उस की शादी होने वाली है.

‘‘ओह, सेम हेयर,’’ सुप्रिया ने उस से पूछा, ‘‘खैर, अच्छा लगा तुम्हें खुश देख कर. मुझे तो लगा था कि तुम काफी नाराज होंगी.’’ ‘‘नाराज, पर क्यों? क्या हुआ, तुम क्या बात कर रही हो सुप्रिया. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है,’’ नेहा कुछ भी नहीं समझ पाई थी कि क्यों सुप्रिया उसे इस तरह देख रही है. उस में पहले वाला अपनापन तो बिलकुल नहीं लग रहा था.

अब सुप्रिया भी अचकचा गई. फिर भी उस ने बताया, ‘‘रोहित की शादी पक्की होने की बात तुम्हें पता है न.’’ नेहा की तो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई थी. उस की हालत देख कर सुप्रिया भी घबरा गई थी. वैसे भी वह किसी अप्रिय स्थिति में नहीं पड़ना चाहती थी.

‘‘मुझे जल्दी घर पहुंचना है,’’ बहाना बना कर सुप्रिया झट से चलती बनी.

नेहा सीधे रोहित के फ्लैट पर पहुंची. रोहित किसी पार्टी में जाने की तैयारी कर रहा था.

‘‘रोहित, तुम्हारी शादी तय हो गई,’’ नेहा अपनेआप को संभाल नहीं पा रही थी.

‘‘देखो डियर, मैं ने मम्मीपापा से तुम्हारे बारे में बात की थी. लेकिन वे लोग लव मैरिज के सख्त खिलाफ हैं और किसी भी हालत में तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे,’’ रोहित ने बताया और रोने लगा.

‘‘बंद करो यह ड्रामा. तुम्हारे चचेरे भाई की तो लव मैरिज हो रही है और अगर ऐसा है भी तो मुझे बरबाद करने से पहले एक बार अपने मम्मीपापा से पूछ लिया होता,’’ नेहा ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘धीमे स्वर में बात करो नेहा, मेरी सोसायटी में इज्जत है. देखो नेहा, बात को समझो. मेरा परिवार है और जिम्मेदारी भी है. मुझे सिविल सर्विस में चयनित जीवनसाथी ही चाहिए था.’’

रोहित ने नेहा से कहा तो उसे जैसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उस की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह सिर्फ इस्तेमाल करने की वस्तु है.

नेहा रोते हुए अपना बैग उठा कर अपने फ्लैट में आ गई. रोहित को तो बिलकुल भी यकीन नहीं था कि इतनी आसानी से नेहा से उस का पिंड छूट जाएगा. पार्टी में दोस्तों से उस ने कहा भी, ‘‘यार, मुझे तो लगा था कि नेहा ये सब सुन कर मुझ पर टूट पड़ेगी, लेकिन वह तो चुपचाप अपने घर चली गई.’’

‘‘ध्यान रखना रोहित, कहीं पुलिस केस न हो जाए,’’ रोहित के एक दोस्त ने उसे आगाह करते हुए कहा.

‘‘यार, मैं फ्री में थोड़े न उस के हाथ लग जाता. 4 साल से तैयारी की है मैं ने आईएएस बनने के लिए. चली भी गई तो जाए, पुलिस स्टेशन में कोई अपना ही बैचमेट बैठा होगा,’’ रोहित ने बेफिक्री से कहा.

पार्टी खत्म होने के बाद जब रोहित घर पहुंचा तो उसे अपने फ्लैट के पास पुलिस दिखी. देखा तो पुलिस के साथ नेहा भी थी.

थाने में एसीपी सुधांशु को देख कर रोहित की जान में जान आ गई. सुधांशु उस का बेहद प्रिय दोस्त जो था.

उधर, नेहा कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरा भरपूर शोषण किया है. मैं पूरी तरह टूट चुकी हूं.’’

‘‘यार सुधांशु, यह लड़की जबरदस्ती मेरे गले पड़ रही है. इस ने मेरे पैसों से ढेर सारी शौपिंग की है और अब पूरी जिंदगी मुफ्त का ऐशोआराम चाहती है,’’ रोहित अब नीचता पर उतर आया था.

‘‘मैडम, आप की शिकायत पर पुलिस कार्यवाही कर रही है. हम चार्जेज लगा रहे हैं. आप परेशान मत होइए.’’

एसीपी दोस्त जैसा बरताव न कर के रोहित से अपराधी की तरह बात कर रहा था. यह देख कर रोहित के होश उड़ गए.

‘‘देखो नेहा, तुम जितना चाहो मैं तुम्हें पैसा दूंगा, पर तुम से शादी नहीं कर सकता. प्लीज, मेरी बहुत बदनामी होगी. तुम पुलिस से अपनी शिकायत वापस ले लो.’’

नेहा तो जैसे पागल ही हो गई. उस ने एक जोरदार तमाचा जड़ते हुए रोहित के मुंह पर थूक दिया, ‘‘तुम्हारी ही इज्जत है, मेरी तो कोई इज्जत नहीं है.’’

पुलिस स्टेशन में मौजूद किसी भी पुलिसकर्मी ने नेहा को नहीं रोका. रोहित को लगा कि सभी इस सीन का आनंद ले रहे हैं. उधर, सुधांशु रोहित को हिकारत भरी नजरों से देख रहा था. रोहित के सामने ही नेहा ने दर्जनों फोटोग्राफ्स, कार्ड्स, वीडियोज इत्यादि रख दिए. इन वीडियोज में रोहित ने कई जगह नेहा को माई डियर वाइफ कह कर संबोधित किया था. रोहित इस स्थिति के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था.

‘‘ओह, ठीक है, मैं शादी के लिए तैयार हूं,’’ निराश हो कर रोहित ने नेहा से कहा.

अचानक एक झन्नाटेदार थप्पड़ फिर रोहित के गाल पर पड़ा. नेहा ने उस के चेहरे पर दोबारा थूकते हुए कहा, ‘‘तुम से कौन करेगा शादी, चल निकल यहां से.’’

इस बार नेहा जब पुलिस स्टेशन से बाहर निकली तो उस का गर्व उस के साथ था. वहीं रोहित बेइज्जती के कारण खुद को कूड़ेदान महसूस कर रहा था.

– ऋचा चौधरी  

अल्का : ममता ने किसकी बात सुनकर बयोडाटा देखा

‘‘मम्मी, चयन समिति ने 5 नाम छांटे हैं. उन्होंने जिस की सिफारिश की है उस के पास योग्यता तो है परंतु अनुभव नहीं है.’’

‘‘कौन है?’

‘‘एक लड़की अल्का है.’’

‘‘बाकी?’’

‘‘बाकी के पास योग्यता के साथ अनुभव भी है परंतु चयन समिति का कहना है कि उन के पास क्रिएटिविटी का अभाव है. हम उसे कुछ दिन ट्रेनी के रूप में रख सकते हैं.’’

‘‘लेकिन हम ने कोई ट्रेनिंग सैंटर तो खोला नहीं है परंतु चयन समिति को जब काम सौंपा है तब उस पर विश्वास भी करना पड़ेगा. इस समिति की सलाह हमेशा सही ही साबित हुई है. फिर कोई भी हो, उस के साथ कुछ समय सिखाने में ही निकल जाता है.’’

यह बातचीत ‘अमित ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज’ की चेयरपर्सन ममता और उन के बेटे अमित में हो रही थी. अमित बोला, ‘‘मम्मी, आप ने इस लड़की का बायोडाटा देखा?’

‘‘क्यों?’’

‘‘उस की मम्मी का नाम अमिता है और उस के पापा का नाम भी वही है जो मेरे पापा का नाम है.’’

अमित की बात सुन कर ममता ने उस का बायोडाटा देखा और बोलीं, ‘‘यह संयोग भी हो सकता है, बेटा.’’

वैसे, बेटे की बात ने मां को भी सोचने को मजबूर कर दिया था. अमिता, जिस के नाम पर उन के पति ने अपनी कंपनी का नाम ‘अमिता ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज’ रखा था, उन की प्रेमिका थी. उस के साथ उन की शादी नहीं हो पाई क्योंकि वे परिवार के दबावके आगे झुक गए थे. उन्होंने अपनी होने वाली पत्नी से अपने प्रेमप्रसंग का खुलासा कर दिया था और कहा था कि मुझ से शादी करने पर तुम मेरे शरीर को तो पा लोगी लेकिन मेरे दिल को नहीं पा सकोगी क्योंकि उन के दिल में तो अमिता ही रहेगी. उन की होने वाली पत्नी यानी ममता ने यह कह कर क्लीनबोल्ड कर दिया था, ‘मैं अपने प्यार से आप के दिल में भी स्थान बना लूंगी.’

शादी हुई दोनों हनीमून पर भी गए. लेकिन जब नई कंपनी बनाई तब उस का ‘अमिता’ नाम रखने के लिए वे अड़ गए थे. जहां घर वाले उस की याद पूरी तरह मिटाना चाहते थे वहीं वे इस बहाने उस की याद बनाए रखना चाहते थे. इस बार उन की बात मान ली गई क्योंकि उन्होंने धमकी दे दी थी, ‘उस से मेरी शादी तो आप सब ने नहीं होने दी पर अब यदि मेरी बात नहीं मानी तो मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा.’ उस दिन पहली बार स्वीकार किया कि उन्होंने उस से मंदिर में शादी कर ली थी हालांकि इस का पत्थर की मूर्ति के अलावा कोई गवाह नहीं था और मूर्ति बोलती नहीं. लेकिन शादी के बाद वे अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहे. इसलिए जब अमिता उन के पास आई तब उसे बेइज्जत कर भगा दिया. उस के यह कहने पर कि वह उन के बच्चे की मां बनने वाली है, तब उन्होंने कह दिया कि क्या पता, किस का दोष है जो मेरे ऊपर मढ़ रही है. वही सबकुछ, जो एक पैसे वाला करता है, उस को जितना बेइज्जत कर सकते थे, किया.

उस के जाने के बाद कई दिन तक वे सामान्य नहीं हो पाए थे.

जब बेटे का जन्म हुआ तब उन्होंने उस का नाम ‘अमित’ रखा. समय के साथ सबकुछ ठीक हो गया था. परंतु अल्का के आने से एक बार फिर पुराने घाव हरे हो गए. हालांकि अब पति तो इस दुनिया में नहीं रहे. पिछले साल उन का देहांत हो गया था.

‘‘मम्मी, क्या सोचा है?’’

ममता ने मन ही मन सोचा, ‘तो यह है उन के पति का अंश. उस के बायोडाटा से और चयन समिति की सिफारिश से ममता खुश थीं और अगर आज अमित के पापा जिंदा होते तो अल्का को देख कर बहुत खुश होते. वे बोलीं, ‘‘उसे रख लो. तुम्हारे पापा के अंश को इस प्रकार छोड़ भी तो नहीं सकते.’’

‘‘लेकिन मम्मी, अभी यह क्लीयर तो नहीं हुआ है कि वह पापा की ही बेटी है?’’

‘‘उसे रख लो. उस में योग्यता तो है ही. उस पर नजर रखो.’’

अल्का को रख लिया गया. दो जोड़ी आंखें अल्का पर लगी हुई थीं. उस ने धीरेधीरे कंपनी में अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया. वह भूल गई कि वह मात्र एक ट्रेनी है. उस का व्यवहार ऐसा था जैसे वह इस कंपनी की मालकिन है. हर कर्मचारी को डांट देती, फिर फौरन माफी मांग लेती. यह नहीं देखती कि सामने वाला उस से पद में बड़ा है या छोटा. कोई उस की बात का बुरा नहीं मानता क्योंकि वह हर किसी की मदद को हमेशा तैयार रहती. सब यह कहने लगे कि ‘साहब वापस आ गए’ क्योंकि साहब भी यही करते थे. लेकिन उस की यह विशेषता अमित की नजरों में आ गई. वह अपनी मम्मी से बोला, ‘‘मम्मी, पापा भी तो ऐसा ही करते थे. पापा की इस आदत ने उन को कर्मचारियों में लोकप्रिय बनाया और इस की यह आदत भी इसे लोकप्रिय बना रही है.’’

ममता भी यह देख रही थीं. कभीकभी वह अमित को भी जवाब दे देती. वह इस का बुरा नहीं मानता. हंस कर रह जाता. हां, बाद में अपनी गलती का एहसास होने पर वह अमित से ‘सौरी सर’ कह कर माफी मांग लेती.

उस दिन ममता के पूछने पर बोली, ?‘‘मैडम, मेरा कोई भाई नहीं है. बौस में मुझे भाई की झलक दिखती है और मैं अपने भाई को गलती करते नहीं देख सकती. इसलिए भूल जाती हूं कि वे मेरे बौस हैं.’’

‘‘तुम जैसा आचारव्यवहार कर रही हो वैसे ही करती रहो. मुझे और अमित, किसी को भी तुम्हारा यह व्यवहार बुरा नहीं लगता. तुम्हारे पापा क्या करते हैं?’’

‘‘पापा नहीं हैं. बस, मैं हूं और मेरी मम्मी, 2 ही जने हैं. मम्मी और पापा ने अपनेअपने घर वालों से छिप कर मंदिर में शादी की थी पर पापा ने घर वालों के दबाव में परिवार द्वारा पसंद की लड़की से शादी कर ली. और जब मम्मी ने पापा से मुलाकात की तो उन को बेइज्जत कर बाहर निकाल दिया. वहां से निराश हो कर मम्मी ने आत्महत्या की कोशिश की पर बचा ली गईं. उन को दुख इस बात का नहीं था कि उन्होंने उस को ठुकरा दिया बल्कि दुख इस बात का था कि उन के चरित्र पर आक्षेप लगाया था.’’

ममता इस समय अल्का से यह कह नहीं पाईं कि उस के पापा भी कई दिन तक गुमसुम रहे क्योंकि उन को भी खुद पर क्रोध आया था कि उस की मम्मी के चरित्र पर शक किया था. ममता सुन रही थीं और उन का अनुमान सही साबित हो रहा था यानी अल्का उन के पति का ही अंश है. परंतु उन को लगा कि अभी उसे बताने का समय नहीं आया था. हां, उस के प्रति उन का व्यवहार अब एक अधिकारी और कर्मचारी भर का नहीं रह गया. कभी औफिस में देर हो जाने पर कंपनी की टैक्सी नहीं जाती बल्कि खुद अमित छोड़ने जाता और वहां पहुंच कर वह उस की मम्मी से जरूर मिलता.

कंपनी के मालिक अमित का जन्मदिन नजदीक आ रहा था. गहमागहमी बढ़ गई थी. इस बार का समारोह विशेष था. मांबेटा दोनों ही बातबात पर अल्का को ही पूछ रहे थे मानो वह ही सबकुछ है.

अल्का भी बिना किसी नानुकुर के अपना काम कर रही थी. एक बार उस ने कहा भी कि मैडम, मैं एक ट्रेनी ही हूं और अभी मेरा इस कंपनी में भविष्य निश्चित नहीं है, फिर भी आप मुझ पर इतना विश्वास कर रही हैं.

‘‘यह सोचने का काम हमारा है कि तुम क्या हो, तुम्हारा नहीं,’’

जवाब में ममता ने कह दिया. अल्का कुछ नहीं बोली. कल समारोह का दिन है, इसलिए आज काम ज्यादा था. काम खत्म होतेहोते रात के 8 बज गए थे. उसे आज घर जल्दी जाना था क्योंकि अगले दिन उस के पापा का भी जन्मदिन था. मां को बाजार जाना था परंतु यहां भी अगले दिन मनाए जाने वाले समारोह की तैयारी के कारण वह लेट हो गई. मां का फोन 2-3 बार आ गया. उस ने कह दिया कि वह आते हुए बाजार से मिठाई लेती आएगी. काम खत्म कर के वह घर जाने के लिए उठी ही थी कि ममता का फोन आ गया. उसे केबिन में बुलाया था. जब ममता ने कहा, ‘आज मैं भी तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चलूंगी’ तब वह चौंक गई लेकिन ममता ने जब कहा कि वे उस की मम्मी से मिलना चाहेंगी तब वह चुप रही. ममता को मना भी कैसे करे वह. ममता और अमित दोनों ही साथ थे. उस ने रास्ते में मता को बताया था, उस के पापा का भी कल जन्मदिन है.

ममता ने पूछा, ‘‘जिस आदमी ने तुम्हारी मम्मी को छोड़ कर दूसरी महिला से शादी कर ली, फिर भी तुम्हारी मम्मी अब भी उन का जन्मदिन मनाती हैं?’’

‘‘मैडम, मम्मी कहती हैं कि वे जहां भी हों, खुश रहें. मेरे लिए अब भी वे ही सबकुछ हैं,’’ फिर उस ने ममता को बताया कि मम्मी ने पापा की पसंद की मिठाई लाने को कहा था. मैडम ने गाड़ी मिठाई वाले की दुकान पर रोक दी. उस ने पापा की पसंद की मिठाई ली. वहां से चल कर मैडम ने एक साड़ी के शोरूम पर गाड़ी रोक ली. वह चौंक गई. साड़ी के शोरूम में मैडम ने एक साड़ी को उसे दिखा कर पूछा, ‘‘तुम्हारी मम्मी के लिए कैसी रहेगी?’’

‘‘मैडम, यह पापा का पसंदीदा रंग है. आप को मेरे पापा की पसंद पता है, कैसे?’’

ममता हंस पड़ीं पर उन्होंने उस को कोई जवाब नहीं दिया. ममता ने साड़ी पसंद कर पैक करवा दी कि तुम्हारे पापा के जन्मदिन पर मेरी ओर से तुम्हारी मम्मी को उपहार है. फिर मुसकरा कर बोलीं, ‘‘तुम्हारे पापा को और क्याक्या पसंद है?’’

‘‘बाकी तो पता नहीं, हां, मम्मी पापा के जन्मदिन पर इसी रंग की साड़ी पहनती हैं और यही मिठाई मंगाती हैं.’’

रास्तेभर ममता उस के पापा के बारे में बातें करती रहीं. सब घर पहुंचे. उस की मम्मी को चिंता नहीं थी क्योंकि देर होने पर खुद उस के बौस छोड़ जाते हैं. लेकिन आज कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी. वे इंतजार कर रही थीं.

आज अल्का के साथ आने वाली को देख कर चौंक गईं.

अल्का ने मां से उन का परिचय कराया, ‘‘मम्मी, ये हमारी कंपनी की चेयरपर्सन हैं.’’

‘‘आप हमारे घर!’’ उन्होंने उन के बैठने के लिए कुरसी खिसकाई तब ममता उस की मम्मी का हाथ पकड़ कर वहां बिछी चारपाई पर साथ ही बैठ गईं और बोलीं, ‘‘आज चाय ही नहीं, खाना भी यहीं खाएंगे.’’

‘‘आप?’’

‘‘तो क्या हुआ, आप हमारी सब से अच्छी एंपलौई की मां हैं.’’

अल्का की मां उठने लगीं तब ममता ने उन को रोक लिया और कहा, ‘‘खाना अल्का बनाएगी.’’ वह खाना बनाने के लिए चल दी. तब ममता ने अपने बेटे से कहा, ‘‘तू भी जा, रसोई में अपनी बड़ी बहन की मदद कर.’’

‘‘बड़ी बहन? वे तो उस के बौस हैं और रसोई में वे क्या मदद करेंगे?’’

मैडम बोलीं, ‘‘आप के पति ने परिवार के दबाव में जिस लड़की से शादी की वह मैं हूं.’’

अमिता कुछ बोल नहीं पाईं. रसोई की ओर जा रही अल्का भी रुक गई.

ममता ने अमिता से पूछा, ‘‘आप ने कभी यह नहीं सोचा कि आप की लड़की जिस कंपनी में काम कर रही है उस का नाम आप के नाम पर है और उस के मालिक का नाम आप के पति का नाम है?’’

‘‘इसलिए कि मुझे यह विश्वास नहीं था कि जिस व्यक्ति ने मुझे बुरी तरह बेइज्जत कर भगाया था वह ऐसा करेगा. फिर मैं ने इसे केवल संयोग माना.’’

‘‘आप गलत समझीं. उस समय उन का उद्देश्य तुम्हें बेइज्जत करने का नहीं था बल्कि तुम्हारे मन से अपनी याद मिटाने की कोशिश थी. परंतु न तो तुम्हारे मन से उन की याद मिटी और न ही वे तुम्हें भुला पाए. तुम्हारे नाम पर कंपनी का नाम रखा और बेटे का नाम भी अमित रखा जिस से इस बहाने वे आप को याद रख सकें.’’

अमिता कुछ नहीं बोल पा रही थीं ममता ही बोलीं, ‘‘पिछले साल उन की मौत हो गई परंतु अंतिम समय तक उन को यह मलाल रहा कि ‘अपनी उस के’ चरित्र पर आक्षेप किया. उन को यह भी मलाल रहा कि उस के गर्भवती होने का पहले पता होता तब वे मुझ से शादी नहीं करते.’’

‘‘आप को कब पता चला कि मैं उन की बेटी हूं?’’ अल्का बोली.

‘‘जब तुम्हारा बायोडाटा सामने आया था.’’

‘‘इस का मतलब है कि मुझे मेरी योग्यता के कारण जौब नहीं मिली बल्कि इस कंपनी के मालिक की बेटी होने के कारण मिली.’’

‘‘तुम्हें जौब तुम्हारी योग्यता के कारण ही मिली. चयन समिति ने जो पैनल दिया था उस में सब से ऊपर तुम्हारा नाम था. उस समय तक किसी को भी पता नहीं था कि तुम किस की बेटी हो. फिर तुम्हारे कार्यव्यवहार ने बता दिया कि तुम मेरे पति की बेटी हो. बेटा, तुम ने महसूस किया होगा कि तुम्हारे व्यवहार को देख कर सब क्या कहते हैं, ‘साहब वापस आ गए.’’’

‘‘हां, पर वे ऐसा क्यों कहते हैं?’’

‘‘तुम्हारे पापा के लिए कोई छोटा या बड़ा नहीं था और गलती होने पर किसी से भी माफी मांगने में उन को कोई गुरेज नहीं थी और तुम भी वही कर रही हो. वास्तव में तुम अपने पापा के सच्चे प्यार की निशानी हो. तुम में अपने पिता की सभी खूबियां हैं. तुम्हारा एक मालिक की तरह व्यवहार भी यही बता रहा था.’’

‘‘इसीलिए आप और बौस मेरे व्यवहार को नजरअंदाज कर रहे थे? परंतु मैडम…’’

उस की बात पूरी होने से पूर्व ही ममता ने उसे टोक दिया, ‘‘मुझे मम्मी नहीं कह सकतीं?’’

अल्का बोली, ‘‘सौरी मम्मी, मैं आप को ‘छोटी मम्मी’ कहूंगी और अपनी मम्मी को ‘बड़ी मम्मी’ कहूंगी.’’ इतना कह कर उस ने अपनी मम्मी की ओर देखा. उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी.

‘‘मैं भी ऐसा ही करूंगा,’’ अमित बोला.

ममता ने उसे गले से लगा लिया और कहा, ‘‘यह तेरा बौस नहीं, बल्कि तेरा छोटा भाई है. तुझे इस का खयाल रखना है क्योंकि यह बहुत भोला है.’’

‘‘मम्मी, मेरे छोटे भाई और अपने बेटे को अंडरएस्टीमेट मत करो. पापा की मौत के बाद यही तो कंपनी को चला रहा है.’’

यह सुन कर ममता हंस पड़ीं और अमिता से बोलीं, ‘‘अपने भाई को अंडरएस्टीमेट नहीं करना चाहती. वे भी तो यही करते थे, किसी के सम्मान को कम नहीं होने देते थे. अब मुझे चिंता नहीं, दोनों भाईबहन इस कंपनी को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे.’’

अगले दिन जन्मदिन समारोह बहुत धूमधाम से मनाया गया. अमिता को उस का सम्मान मिला. दोनों मम्मियों ने अपने बच्चों को ढेर सारा प्यार दिया.

और फिर भगवान भी गायब हो गए

वह दिन अशोक के लिए आफत बन के सामने आया जब देश के महामहिम ने अपने तुगलकी फैंसले से पुरे देश में तालाबंदी की घोषणा कर दी. भला यह भी कोई बात हुई कि लाखों मजदूरों को महामहिम ने एक ही पल में अनाथ कर दिया. वैसे तो गरीबों का कोई माईबाप नहीं होता लेकिन ऐसे वक्त में उम्मीद तो महामहिम से ही लगाई जा सकती थी. खैर यह बातें अब बैमानी लगती है.

अशोक 35 वर्षीय युवक था जो यूपी के आजमगढ़ जिले से काम की तलाश में दिल्ली आया था. सुना है इस शहर में सब को कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है. लेकिन वह सच्चाई जानता था कि यह शहर जितना अमीरों की रंगीनियत के लिए मशहूर है उतना ही मजदूरों की खाल खींच लेने वाले काम को ले कर. और फिर अशोक पांचवी से ऊपर पढ़ा भी तो नहीं था जो उसे बाबू का काम मिल जाता.

अपने लड़कपन में उस ने बड़ेबड़े किसानों की जमीन में कटाई, रुपाई, सिंचाई खूब की लेकिन इस मॉडर्न समाज ने उसे शहर की तरफ खींच ही लिया. सुना है छटांग भर की थोड़ी बहुत जमीन भी बाबा के इलाज में गिरवी रख दिया था. दिल्ली आने से पहले अशोक को लगा था की दिन रात मेहनत कर अपनी जमीन छुड़ा लेगा लेकिन अब तो बस सूद चुका ले वही बहुत है.

जिस जगह अशोक काम कर रहा था वह दिल्ली से थोड़ी दूर सटे नॉएडा में कंस्ट्रक्शन साईट थी. जहां अमीरों के लिए बड़े बड़े 4 बीएचके वाले अपार्टमेंट्स बनाए जा रहे थे. वहीँ उसी साईट से थोड़ी दूर ठेकेदार ने कंस्ट्रक्शन में काम करने वाले मजदूरों के लिए टीनटप्पर के चलते फिरते कामचलाऊ कमरे बनाए हुए थे. यह कमरे सर्दियों में सर्द हो जाते और गर्मियों में गर्म भट्टी. गर्म रात तो आसमान के नीचे जैंसे तैंसे कट जाया करती लेकिन ठिठुरती रातों में मेहरारू के गर्म बदन की याद सताती जिसे बहुत समय से अशोक ने छुआ नहीं था.

महामहीम की घोषणा के बाद नींद कहां आने वाली थी, “इस बेगाने शहर में एक दिन मन नहीं लगता तो इस माचिस की डिबिया जैसे कमरे में कैसे 21 दिन गुजार लें.”

लाकडाउन में शुरू के 3-4 दिन इस डर से बाहर नहीं निकला गया कि ना जाने कौन सी देत्यी बीमारी फ़ैल गई है कि जरा सा बाहर निकले कि सीधा मौत के घाट. लेकिन जब खाने के टोटे पड़ने लगे तो बीमारी गई तेल लेने. भूख की गुड़गुड़ आवाज मानो कमरे में गूँज रही थी, और भूख का देत्य तो ऐंसा जो शरीर का पूरा खून चूस ले और मांस कच्चा चबा जाए.

 कमरे से डेढ़ किलोमीटर दूर पर पहली राशन की दूकान थी. हिम्मत कर अशोक अपने बचेकुचे पैसों से राशन के लिए निकला, जैंसे ही आधा रास्ता पार हुआ कि नाके में पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस की मार तो पड़ी ही साथ में मुर्गा भी बनना पड़ गया. “साला अजीब नोटंकी है, सरकारी खाना तो पहुंच नहीं रहा गरीबों तक लेकिन सरकारी डंडे जरुर पहुंच जाते हैं.” यह बात मन ही मन सोचकर थोडा बहुत राशन ले कर वह वापस लौटा.

अशोक जानता था कि “सरकार हमारे लिए कभी चिंता दिखाएगी नहीं. आखिर प्रवासी मजदूर बमुश्किल वोट देने अपने घरगांव जाते हैं, इसलिए किसी सरकार और पार्टी के लिए हमारी एहमियत न के बराबर है. उन के लिए तो हम कोल्हू का बैल हैं.”

अशोक ने ठान लिया कि अब यहां रहना मतलब भूखे मरने जैंसा है इसलिए यहां से अपने गांव निकलना होगा चाहे जो हो जाए. उसे चिंता थी तो लम्बे सफ़र की.

“न कोई गाड़ी न पैसा. ऊपर से जगह जगह सरकारी पहरा, कहीं आधे रस्ते वापस न लोटना पड़ जाए”. लेकिन तपती दोपहरी में बड़ेबड़े चट्टानों को तोड़ने वाला यह मजदूर इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाला था.

उन से योजना बनाई और अगली रात कांधे में बस्ता टांगा जिसके अन्दर एक कम्बल, एक टिकिया साबुन और एक जोड़ी कपड़ा था, वहीँ साइकिल के एक तरफ भिगाए चने और पानी की बोतल की गठरी टांग दी. वह इतना समझ गया था कि उसे बस यह शहर पार करना है उस के बाद बस वो और उसका सफ़र होगा. योजना जैसे बनाई थी उस में वह कामयाब रहा, वह शहर से बचते बचाते बाहर निकल गया.

पहले दिन उस ने लगभग 100 किलोमीटर का लम्बा सफ़र तय किया. रास्तों में लगे साइन बोर्ड को उसने अपना मेप बनाया, गांव से आते जाते उसने रास्तों में पड़ने वाले शहरों के नाम याद किये हुए थे. इसलिए रास्ते में ज्यादा दिक्कत नहीं आई. जहां थोड़ी बहुत समस्या होती तो आसपास कोई सज्जन दिखता तो पूछ लेता. इस दौरान वह रास्ता भी भटका लेकिन वापस मुड़ अपने राह पर निकल पड़ा.

सर के ऊपर पड़ने वाली धूप से काली चमड़ी और काली दिखने लगी थी, शरीर की मांसपेशियां अकड़ने लगी थी, लगातार साइकिल चलाने की वजह से दोनों पावं के बीच चमड़ी छिलने लगी थी.

वह सहसा थक चुका था और शाम भी हो चली थी. उस ने पास में भगवान कृष्ण का एक मंदिर देखा, ढलते सूरज को देखते हुए रात इसी मंदिर के देहली में बिताने की सोची. उस का शरीर भूख और थकान से निढाल हो चुका था. आंखों में गहरी थकान महसूस होने लगी थी. जैंसे उस की आँखे घोर निद्रा में डूबने लगीं हो.

एकाएक उस की नजर भगवान कृष्ण की हंसती हुई मूर्ति पर पड़ी. उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा कि भगवान भी उस की इस विपदा पर हंस रहे हैं. वह उस मूर्ति को देख खीजने लगा. उस ने खीजते हुए कहा “है भगवान तू अगर कहीं है तो इस दुनिया में जो भी मजदूरों ने बनाया है वह सारा मिटा दे.”

उस का इतना ही कहना था कि एकाएक सब कुछ गायब होने लगा.

जिस हवाई जहाज से देश के महामहिम अमीर प्रवासियों को दूसरे देश से ले कर आए थे उस के अंजरपंजर, नटबोल्ट एकाएक सब बिखर कर गायब होने लगे. कोटा से छात्रों को जिन बसों में रेस्क्यू किया गया वह गायब बसें होने लगीं. जो मंडप नेताओं के बच्चों की शादी में लगाया गया वह तम्बूबम्बू सब उखड़ने लगा. सड़के टूटटूट कर मिटटी के मलवे में बदलने लगी. कल कारखानों की मशीनें गायब होने लगीं. रिहायशी बिल्डिंगे, अपार्टमेंट सब धूलधाल हो गए. फ़िल्मी सितारों के गिटार सितार सब टूटने लगे. गली मोहल्ले की स्ट्रीट लाईट, स्कूल, अस्पताल, यहां तक की शरीर में ओढ़े ब्रांडेड कपड़े तक गायब होने लगे.

अशोक का पसीना तब छूटने लगा जब उस ने देखा कि जिस मंदिर में वह खड़ा है वह मंदिर गायब होने लगा है. और सब से बड़ा धक्का उसे तब लगा जब उस ने देखा कि जिस मूर्ति के सामने वह प्रार्थना कर रहा था वह मूर्ति भी मलवे के ढेर में बदल गई है.

अचानक अशोक की आंख खुली वह घबरा गया. वह उठ खड़ा हुआ तो देखा सब सामान्य है. सब अपनी जगह वैसा ही है जैंसा पहले था. उसे आभास हुआ कि उस ने एक बुरा सपना देखा है. शायद शारीरिक थकान के साथ साथ मानसिक थकान ने उसे भीतर तक प्रभावित किया था.

अब जब वह उठ ही गया था तो उस ने आगे का रास्ता नापने का फैसला कर लिया था. अभी अँधेरा खुला भी नहीं था. रास्ते ठीक से नजर नहीं आ रहे थे, लेकिन अशोक जल्दी अपने घरपरिवार के पास पहुंच जाना चाहता था. उस ने बस्ते में रखे चनों को हाथ भी नहीं लगाया था. वह उसे अपने लम्बे सफर के लिए बचाए रखना चाहता था.

जैंसे ही वह थोड़ी ही दूर साइकिल से पहुंचा कि एकाएक पीछे से एक जोर का धक्का उसे लगा. वह 6 मीटर दूर उछल कर गिर पड़ा. गठरी में बंधे चने सड़क पर बिखर गए और शरीर खून से लतपथ हो गया. अंधेरे में ट्रक तेजी से निकल गया, उसकी आंखे धीरे धीरे बंद हो गई, लगता है उस ने अपनी थकान और ताउम्र की पीड़ा से सम्पूर्ण मुक्ति पा ली.

मुझे जंकफूड खाने की आदत है, जिस वजह से मैं मोटी होती जा रही हूं?

सवाल 

मेरी उम्र 25 वर्ष है. खानेपीने की जंकफूड का सेवन करना मेरी कमजोरी है. इसी का नतीजा है कि मैं बहुत मोटी हो गई हूं. मेरी फिजीकल ऐक्टिविटी ज्यादा नहीं है. घर पर ही रहती हूं. मेरा काम औनलाइन ही है, ऐक्सरसाइज करने में आलस करती हूं और खानेपीने पर कंट्रोल नहीं रख पाती. अपनी आदतों से खुद ही परेशान हो गई हूं. जिंदगी के प्रति उदासीन होती जा रही हूं. ऐसा लग रहा है मैं डिप्रैशन का शिकार हो रही हूं. कृपया मुझे इस स्थिति से उबारें.

जवाब
आप खुद मान रहीं हैं कि आप की आदतें गलत हैं फिर भी उन्हें दूर करने का प्रयास नहीं कर रहीं, यह तो गलत है न. खानेपीने का शौकीन होना गलत बात नहीं लेकिन हर चीज की अति गलत होती है. जंकफूड का ज्यादा सेवन, घर पर बैठे रहना, फिजिकल ऐक्सरसाइज न करना इन सब के कारण आप का मोटापा बढ़ा है. उदास होने की जरूरत नहीं, अभी भी वक्त है. आप पहले की तरह पतली हो सकती हैं. ऐसा भी नहीं कि आप के पास वक्त नहीं. घर पर ही रहती हैं. आप अपनी सामान्य रूटीन लाइफ में कुछ परिवर्तन कर के अपना मोटापा कम कर सकती हैं, क्योंकि अभी तो आप की उम्र कम है, आगे चल कर यही मोटापा ब्लड प्रैशर, डायबिटीज, हाई कोलैस्ट्रौल व अन्य कई बीमारियों का कारण बन सकता है. रही बात ऐक्सरसाइज की तो वह तो करनी ही पड़ेगी, उस से आप बच नहीं सकतीं इसलिए आलस बिलकुल मत करें. एरोबिक्स क्लासेस जौइन कर सकतीं हैं. स्विमिंग, जौगिंग, साइक्ंिलग, स्किपिंग, पुशअप इन सब के बाद से शरीर से विभिन्न अंगों की चर्बी को कम किया जा सकता है. दिन में 2 से 3 बार ग्रीन टी पिएं. एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद, 3 बड़े चम्मच नीबू का रस, एक चुटकी काली मिर्च पाउडर डाल कर हर रोज सुबह पिएं. रोटी कम सलाद ज्यादा खाएं. रोज 8 गिलास पानी जरूर पिएं. पानी गरम पिएंगी तो शरीर डिटौक्स होने लगेगा. इस में मैटाबोलिज्म बढ़ेगा और बौडी स्लिम होगी. इस के अलावा खाना थोड़ाथोड़ा कर के 4 बार खा सकती हैं. रात को खाना खाने के बाद थोड़ा टहल लें. इन सब बातों को फौलो करेंगी तो वह दिन दूर नहीं जब आप की एक बार फिर परफैक्ट बौडी होगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

जानें कैसे प्रेगनेंसी के लिए खतरा बन सकता है आपका बढ़ता बीएमआई

गर्भावस्था की कुछ सामान्य जटिलताएं मोटी महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी होती हैं, जिन में सम्मिलित हैं- गर्भपात. जैस्टेशनल डायबिटीज, उच्च रक्त दाब (इसे जैस्टेशनल हाइपरटैंशन भी कहा जाता है), प्रीऐक्लैंप्सिया, प्रसव के दौरान सामान्य से अधिक रक्तस्राव आदि. हालांकि ये समस्याएं किसी भी गर्भवती महिला को हो सकती हैं. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह मोटापे की शिकार है या नहीं, लेकिन बीएमआई (बौडी मास इन्डैक्स) अधिक होने से खतरा बढ़ जाता है.

मोटोपे का डायग्नोसिस बीएमआई की गणना कर के किया जाता है, जो वजन और लंबाई पर आधारित होता है. बीएमआई 30 या  उस से अधिक होना यकीनन मोटापे को परिभाषित करता है.

बीएमआई जितना अधिक होगा, उतना ही गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा अधिक होगा. अगर किसी महिला का बीएमआई 30 या उस से अधिक है, तो इस की संभावना है कि उसे प्रसव पीड़ा के लिए प्रेरित करना पड़ेगा या उसे सिजेरियन सैक्शन का विकल्प चुनना होगा. अगर किसी महिला का बीएमआई 40 से अधिक है, तो डाक्टरों के लिए बच्चे के विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाएगा.

बच्चे के लिए खतरा

अगर गर्भावस्था के दौरान आप का वजन अधिक है, तो आप के बच्चे को कुछ निश्चित खतरे होने की आशंका बढ़ जाएगी. इन में सम्मिलित हैं:

– समयपूर्व प्रसव (37 सप्ताह के पहले).

– जन्म के समय वजन अधिक होना.

– मृत बच्चे का जन्म.

– दुर्लभ जन्मजात विकृतियां.

– क्रौनिक कंडीशंस जो मस्तिष्क, स्पाइनल कार्ड, हृदय से संबंधित होती हैं, का खतरा या फिर आगे चल कर डायबिटीज की चपेट में आना.

गर्भावस्था से पहले वेट लौस

अगर आप ने पहले ही वेट लौस सर्जरी करा ली है, तो यह जरूरी सुझाव है कि गर्भधारण के लिए कम से कम 18 महीने प्रतीक्षा करें. मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में वजन कम करने से गर्भधारण करने की संभावना बढ़ जाती है. अगर वेट लौस सर्जरी के बाद गर्भधारण की योजना बनाई जाए तो यह मां और-बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित हो सकती है. इस से मोटापे के कारण गर्भावस्था से जुड़े खतरे कम हो जाते हैं.

गर्भावस्था के बाद वेट लौस

गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ना आम बात है, लेकिन बहुत सी महिलाओं को इसे कम करना बहुत मुश्किल लगता है. जिन महिलाओं का वजन गर्भावस्था के पहले अधिक था उन के लिए प्रसव के बाद वजन कम करना और अधिक कठिन हो सकता है. इस के कारण जैवविज्ञानी, हारमोनल या पर्यावर्णीय हो सकते हैं.

उन महिलाओं के लिए जिन का बीएमआई 40 या उस से अधिक है, यह एक बहुत ही गंभीर समस्या हो सकती है. इसलिए बैरिएट्रिक सर्जरी उन महिलाओं के लिए जो अत्यधिक मोटी हैं, एक बहुत ही अच्छा विकल्प है. लेकिन बच्चे के  जन्म के बाद उन्हें कम से कम 12 महीने इंतजार करना चाहिए. बच्चे के जन्म के बाद जितने अधिक समय तक वे प्रतीक्षा करेंगी, रिकवरी के लिए उतना ही बेहतर रहेगा. स्वस्थ भार प्राप्त करने और मोटापे से संबंधित स्थितियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व कैंसर के खतरे से बचने के लिए बैरिएट्रिक सर्जरी सुरक्षित और सब से बेहतरीन उपाय है.

गर्भावस्था में रहें स्वस्थ

कुछ सामान्य स्टैप्स जैसे स्वस्थ खाने, नियमित ऐक्सरसाइज करने और वजन न बढ़न के लिए दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करने वाली महिला अपने बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा कर सकती है.

गर्भवती होने पर वजन कम करने लिए डाइटिंग करना बच्चे के लिए नुकसानदायक हो सकता है. इस दौरान रोज खूब पानी पीएं, सब्जियां और फल अधिक मात्रा में खाएं. नियमित अंतराल पर पोषक भोजन का सेवन थोड़ीथोड़ी मात्रा में करे. फास्ट फूड, फ्राइड फूड, पैकेज्ड फूड सोडा, पेस्ट्री आदि का सेवन न करें.

स्वस्थ डाइट लेने के साथसाथ सप्लिमैंट्स लेने की भी जरूरत होती है, जिन में विटामिन डी और फौलिक ऐसिड आदि सम्मिलित होते हैं.

अपने शरीर को गर्भवस्था में हो रहे बदलावों से निबटने लिए तैयार करने के लिए गर्भावस्था में नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है. यह आप के भार का प्रबंधन करने के सब से अधिक प्रभावी उपायों में से एक है. अगर आप गर्भावस्था से पहले ऐक्सरसाइज नहीं कर रही थीं, तो यह सही समय नहीं है कि आप कड़ी ऐक्सरसाइज शुरू कर दें.

आप प्रतिदिन 5 या 10 मिनट तक ऐक्सरसाइज करने से शुरूआत करें. सब से महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने शरीर की सुनें. अगर आप को कोई परेशानी हो रही है तो वर्कआउट करना बंद कर दें. अगर कोई इमरजैंसी हो तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

 – डा. तरुण मित्तल (ओबैसिटी ऐंड लैप्रोस्कोपिक सर्जन, सर गंगाराम हौस्टिपल, दिल्ली)

परिवार से जोड़ने के लिए बच्चों को रखें इंटरनैट से दूर

कुछ वर्षों से सोशल मीडिया यानी सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने लोगों के जीवन में एक खास जगह तो बना ली है परंतु इस का काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है. इस में कोई शक नहीं कि डिजिटल युग में इंटरनैट के प्रयोग ने लोगों की दिनचर्या को काफी आसान बना दिया है. पर इस का जो नकारात्मक रूप सामने आ रहा है वह दिल दहलाने वाला है.

जानकारों का कहना है कि इंटरनैट और सोशल मीडिया की लत से लोग इस कदर प्रभावित हैं कि अब उन के पास अपना व्यक्तिगत जीवन जीने का समय नहीं रहा.

सोशल मीडिया की लत रिश्तों पर भारी पड़ने लगी है. बढ़ते तलाक के मामलों में तो इस का कारण माना ही जाता है, इस से भी खतरनाक स्थिति ब्लूव्हेल और हाईस्कूल गैंगस्टर जैसे गेम्स की है. नोएडा में हुए दोहरे हत्याकांड की वजह हाईस्कूल गैंगस्टर गेम बताया गया है. जानलेवा साबित हो रहे इन खेलों से खुद के अलावा समाज को भी खतरा है. अभिभावकों का कहना है कि परिजनों के समक्ष बच्चों को वास्तविक दुनिया के साथ इंटरनैट से सुरक्षित रखना भी एक चुनौती है. इस का समाधान रिश्तों की मजबूत डोर से संभव है. वही इस आभासी दुनिया के खतरों से बचा सकती है.

पहला केस : दिल्ली के साउथ कैंपस इलाके के नामी स्कूल में एक विदेशी नाबालिग छात्र ने अपने नाबालिग विदेशी सहपाठी पर कुकर्म का आरोप लगाया. दोनों ही 5वीं क्लास में पढ़ते हैं.

दूसरा केस : 9वीं क्लास के एक छात्र ने हाईस्कूल गैंगस्टर गेम डाउनलोड किया. 3-4 दिनों बाद जब यह बात उस के एक सहपाठी को पता चली तो उस ने शिक्षकों और परिजनों तक मामला पहुंचा दिया. परिजनों ने भी इस बात को स्वीकार किया कि बच्चे के व्यवहार में काफी दिनों से उन्हें परिवर्तन दिखाई दे रहा था. समय रहते सचेत होने पर अभिभावक और शिक्षकों ने मिल कर बच्चे की मनोस्थिति को समझा और उसे इस स्थिति से बाहर निकाला.

तीसरा केस : 12वीं कक्षा के एक छात्र की पिटाई 11वीं में पढ़ रहे 2 छात्रों ने इसलिए की क्योंकि वह उन की बहन का अच्छा दोस्त था. यही नहीं, उसे पीटने वाले दोनों भाई विशाल और विक्की उसे जान से मारने की धमकी भी दे चुके थे और ऐसा उन्होंने इंटरनैट से प्रेरित हो कर किया.

चौथा केस : 7वीं कक्षा की एक छात्रा ने मोबाइल पर ब्लूव्हेल गेम डाउनलोड कर लिया. उस में दिए गए निर्देश के मुताबिक उस ने अपने हाथ पर कट लगा लिया. उस की साथी छात्रा ने उसे देख लिया और शिक्षकों को पूरी बात बता दी. कहने के बावजूद छात्रा अपने परिजनों को स्कूल नहीं आने दे रही थी. दबाव पड़ने पर जब परिजनों को स्कूल बुलाया गया तो पता चला कि घर पर भी उस का स्वभाव आक्रामक रहता है. इस के बाद काउंसलिंग कर के उस को गलती का एहसास कराया गया.

एक छात्रा के अनुसार, ‘‘पढ़ाई के लिए हमें इंटरनैट की जरूरत पड़ती है. लगातार वैब सर्फिंग करने से कई तरह की साइट्स आती रहती हैं. यदि हमारे मातापिता साथ होंगे तो हमें अच्छेबुरे का आभास करा सकते हैं. इसलिए हम जैसे बच्चों के पास पापामम्मी या दादादादी का होना जरूरी है.’’

एक अभिभावक का कहना है, ‘‘डिजिटल युग में अब ज्यादातर पढ़ाई इंटरनैट पर ही निर्भर होने लगी है. छोटेछोटे बच्चों के प्रोजैक्ट इंटरनैट के माध्यम से ही संभव हैं. आवश्यकता पड़ने पर उन्हें मोबाइल फोन दिलाना पड़ता है. बहुत सी बातों की तो आप और हमें जानकारी भी नहीं होती. कब वह गलत साइट खोल दे, यह मातापिता के लिए पता करना बड़ा मुश्किल होता है.’’

एक स्कूल प्रिंसिपल का कहना है,  ‘‘एकल परिवार की वजह से बच्चों का आभासी दुनिया के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. यदि बच्चे संयुक्त परिवार में रहते तो वे विचारों को साझा कर लेते. अभिभावकों को उन की गतिविधियों और व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए. हम ने अपने स्कूल में एक सीक्रेट टीम बनाई है जो बच्चों पर नजर रखती है. 14-15 साल के बच्चों में भ्रमित होने के आसार ज्यादा रहते हैं.’’

अपराध और गेम्स

इंटरनैट पर इन दिनों कई ऐसे खतरनाक गेम्स मौजूद हैं जिन्हें खेलने की वजह से बच्चे अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं. इस का सब से ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है. साइबर सैल की मानें तो विदेशों में बैठे नकारात्मक मानसिकता के लोग ऐसे गेम्स बनाते हैं. इस के बाद वे इंटरनैट के माध्यम से सोशल मीडिया पर गेम्स का प्रचारप्रसार कर बच्चों को इस का निशाना बनाते हैं.

साइबर सैल में कार्यरत एक साइबर ऐक्सपर्ट ने बताया कि हाईस्कूल गैंगस्टर और ब्लूव्हेल जैसे गेम्स से 13 से 18 साल के बच्चों को सब से ज्यादा खतरा है. इस उम्र में बच्चे अपरिपक्व होते हैं. इन को दुनियाभर के बच्चों में स्पैशल होने का एहसास कराने का लालच दे कर गेम खेलने के लिए मजबूर किया जाता है. गेम खेलने के दौरान बच्चों से खतरनाक टास्क पूरा करने के लिए कहा जाता है. अपरिपक्व होने के कारण बच्चे शौकशौक में टास्क पूरा करने को तैयार हो जाते हैं. वे अपना मुकाबला गेम खेलने के दौरान दुनिया के अलगअलग देशों के बच्चों से मान रहे होते हैं. गेम खेलने के दौरान वे सहीगलत की पहचान नहीं कर पाते. गेम के दौरान बच्चों में जीत का जनून भर कर उन से अपराध करवाया जाता है.

एक सर्वेक्षण में शामिल 79 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि इंटरनैट पर उन का अनुभव बहुत बार नकारात्मक रहा है. 10 में से 6 बच्चों का कहना था कि इंटरनैट पर उन्हें अजनबियों ने गंदी तसवीरें भेजीं, किसी ने उन्हें चिढ़ाया इसलिए वे साइबर क्राइम के शिकार हुए.

इन औनलाइन घटनाओं का वास्तविक जीवन में भी गहरा प्रभाव पड़ता है. इंटरनैट पर दी गई व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग होना, किसी विज्ञापन के चक्कर में धन गंवाना आदि बालमन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं.

मानसिक विकारों के शिकार

सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपना खाता खोलने वाले 84 प्रतिशत बच्चों का कहना था कि उन के साथ अकसर ऐसी अनचाही घटनाएं होती रहती हैं जबकि सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय न रहने वाले बच्चों में से 58 फीसदी इस के शिकार होते हैं.

बाल मनोविज्ञान के जानकारों के अनुसार, आज के बच्चे बहुत पहले ही अपनी औनलाइन पहचान बना चुके होते हैं. इस समय इन की सोच का दायरा बहुत छोटा रहता है और इन में खतरा भांपने की शक्ति नहीं रहती. उन का कहना है कि ऐसी स्थिति में बच्चों को अपने अभिभावक, शिक्षक या अन्य आदर्श व्यक्तित्व की जरूरत होती है जो उन्हें यह समझाने में मदद करें कि उन्हें जाना कहां है, क्या कहना है, क्या करना और कैसे करना है. लेकिन इस से भी ज्यादा जरूरी है यह जानना कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए.

सोशल नैटवर्किंग साइट्स का एक और कुप्रभाव बच्चों का शिक्षक के प्रति बदले नजरिए में दिखता है. कई बार बच्चों के झूठ बोलने की शिकायत मिलती है. 14 साल के बच्चों द्वारा चोरी की भी कई शिकायतें बराबर मिल रही हैं. मुरादाबाद के संप्रेषण गृह के अधीक्षक सर्वेश कुमार ने बताया, ‘‘पिछले 2 वर्षों के दौरान मुरादाबाद और उस के आसपास के इलाकों से लगभग 350 नाबालिगों को गिरफ्तार कर संप्रेषण गृह भेजा गया है. इन में से ज्यादा नाबालिग जमानत पर बाहर हैं लेकिन 181 बच्चे अभी संप्रेषण में हैं.’’

आक्रामक होते बच्चे

मनोचिकित्सक डाक्टर अनंत राणा के अनुसार, पहले मातापिता 14 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को काउंसलिंग के लिए लाते थे, लेकिन आज के दौर में

8 साल की उम्र के बच्चों की भी काउंसलिंग की जा रही है. अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे ज्यादातर एकल परिवार से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे परिवारों में मातापिता से बच्चों की संवादहीनता बढ़ रही है, जिस वजह से बच्चे मानसिक विकारों के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में वे अपने पर भी हमला कर लेते हैं. काउंसलिंग के दौरान बच्चे बताते हैं कि परिजन अपनी इच्छाओं को उन पर मढ़ देते हैं. इस के बाद जब बच्चे ठीक परफौर्मेंस नहीं दे पाते तो उन्हें परिजनों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है. ऐसे हालात में ये आक्रामक हो जाते हैं.

8 से 12 साल के बच्चों की काउंसलिंग के दौरान ज्यादातर परिजन बताते हैं कि उन के बच्चों को अवसाद की बीमारी है. उन का पढ़ाई में मन नहीं लगता. टोकने पर वे आक्रामक हो जाते हैं और इस से अधिक उम्र के बच्चे तो सिर्फ अपनी दुनिया में ही खोए रहते हैं.

साइबर सैल की मदद लें

आप का बच्चा किसी खतरनाक गेम को खेल रहा है या उस की गतिविधियां मोबाइल पर मौजूद इस तरह के गेम की वजह से संदिग्ध लग रही हैं, तो तुरंत साइबर विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं. फोन पर भी आप साइबर सैल की टीम से संपर्क कर सकते हैं. इस के लिए गूगल एरिया के साइबर सैल औफिस के बारे में जानकारी लें. वहां साइबर सैल विशेषज्ञ के नंबर भी मिल जाएंगे.

ध्यान दें परिजन

– परिजन बच्चों को समय दें और उन से भावनात्मक रूप से मजबूत रिश्ता बनाएं.

– बच्चे की मांग अनसुनी करने से पहले उस की वजह जानें.

– बच्चों के दोस्तों से भी मिलें ताकि बच्चे की परेशानी की जानकारी हो सके.

– बच्चों को अच्छे व बुरे का ज्ञान कराएं.

– बच्चों को व्यायाम के लिए भी उकसाएं.

– बच्चों से अपनी अपेक्षाएं पूरी करने के बजाय उन की काबिलीयत के आधार पर उन से उम्मीद रखें.

गणित नहीं कैमिस्ट्री भी बनी सपा कांग्रेस में गठबंधन, भाजपा की बढ़ी धड़कन

इंडिया गठबंधन ने इस बार मायावती के मास्टर स्ट्रोक का मुकाबला करने की रणनीति तैयार कर ली है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने सब से अधिक मुसलिम उम्मीदवार उतार कर समाजवादी पार्टी का गणित बिगाड दिया था. इस बार आजाद समाज पार्टी को साथ ले कर बसपा की कैमिस्ट्री बिगाड़ने का काम किया गया है. समाजवादी पार्टी ने रामजी लाल सुमन को राज्यसभा का उम्मीदवार बना कर बसपा के जाटव वोट में सेंधमारी की है. बसपा जिस तरह से इन चुनावों में खामोश है यह पार्टी की बेचारी को दिखाती है.

इंडिया गठबंधन की कैमिस्ट्री ने लोकसभा चुनाव में बसपा को एक किनारे कर के पूरी लड़ाई को आमनेसामने कर दिया है. अब इंडिया गठबंधन और भाजपा के एनडीए का सीधा मुकाबला होगा. ऐसे में उत्तर प्रदेश में भाजपा का विजय रथ फंस गया है. उस का प्रयास था कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन न बन पाए. भाजपा ने लोकदल को अलग करने में सफलता भले हासिल कर ली लेकिन सपा-कांग्रेस को मिलने से नहीं रोक पाई.

मध्य प्रदेश से सीखा सबक

भाजपा का प्रयास था कि सपा-कांग्रेस के बीच फूट डाली जाए. राहुल गांधी ने यहां मध्य प्रदेश वाली गलती नहीं की. मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने ‘अखिलेश वखिलेश’ कह कर समाजवादी पार्टी को अपना दुश्मन बना लिया था. इस बार राहुल गांधी ने धैर्य से काम लिया और हर कीमत पर दोस्ती को अंजाम तक पहुंचा दिया. ‘गोदी मीडिया’ बारबार अखिलेश को भड़काने का काम कर रही थी. दोनों ही पार्टियों के प्रदेश स्तर के नेताओं ने खूबसूरती से इस दोस्ती की क्राफटिंग की. जिस से दोनों दलों के बीच केवल गणित ही नहीं कैमिस्ट्री भी बन गई.

उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे में सपा ने कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली समेत 17 सीटें दी हैं. सपा और कांग्रेस दोनों के ही लिए यह फायदे का सौदा है. सपा और कांग्रेस में दोस्ती की क्राफटिंग करने में कांग्रेस के यूपी प्रभारी अविनाश पांडे ने डेढ़ महीने मेहनत की. इस दौरान जहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने धैर्य से काम लिया. उन के बयान कई बार सपा को असहज करने वाले हो जाते थे.

प्रदेश के नेताओं की गणित ने बनाई बड़े नेताओं कैमिस्ट्री

वहीं सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने हर बात को समझदारी के साथ अखिलेश यादव तक पहुंचाई. जैसे ही स्वामी प्रसाद मौर्य ने पाला बदल कर इस दोस्ती को बिगाड़ने का कदम उठाया सपा ने तय कर लिया कि अब जल्दी ही इस गठबंधन का ऐलान किया जाए.

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में अखिलेश अमेठी और रायबरेली में शामिल नहीं हुए तब अखिलेश और राहुल गांधी के बीच फोन पर बात हुई. जिस के बाद यह तय हो गया कि घंटों के अंदर गठबंधन हो जाएगा. गठबंधन की सीटों को ले कर हर विवाद इस के बाद खत्म हो गया. कांग्रेस ने सपा को अपर हैंड मानकर बात मान ली. दोनों दलों के बीच गणित कैमिस्ट्री ऐसी बदली की ना-ना करते ‘हां’ हो गई.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव को राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल होना था. उस के एक दिन पहले उन्होंने सीटों का बंटवारा तय करने की शर्त रख दी. सपा की ओर से 17 सीटों का प्रस्ताव भेजा गया. इस में कुछ सीटों पर कांग्रेस सहमत नहीं थी. सपा हाथरस की जगह सीतापुर चाहती थी. इस के अलावा खीरी और मुरादाबाद सीट पर भी उस का दावा था. प्रदेश के नेताओं के बीच बात न बनती देख राहुल और अखिलेश के बीच फोन पर बात हुई. देर शाम कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपने प्रदेश के नेताओं के बीच बात हुई.

मध्य प्रदेश के अनुभव को देखते हुए समन्वय का रास्ता ही बेहतर माना गया. कांग्रेस ने मुरादाबाद, खीरी की जिद छोड़ी और सपा कांग्रेस को सीतापुर देने पर राजी हो गई. दोनों दलों के शीर्ष नेताओं में हुई बातचीत के बाद गठबंधन को अंतिम रूप दे दिया गया.

वोटों का बंटवारा रोकना पहली प्राथमिकता

कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने व उस के कोटे की सीटें बढ़ाने के पीछे 2 अहम फैक्टर माने जा रहे हैं. रालोद के जाने के बाद सपा के पास उस के कोटे की 7 सीटें खाली थीं. कांग्रेस को पहले ही 11 सीट का वादा किया जा चुका था. इस में रायबरेली-अमेठी शामिल नहीं थी. इन को मिला लें तो 13 सीटों पर सपा पहले ही तैयार थी. रालोद के जाने के बाद उदारता दिखाना आसान हो गया. अंदरखाने यह भी फीडबैक था कि अल्पसंख्यक वोटरों में कांग्रेस को ले कर रुझान बेहतर हुआ है.

प्रदेश की 25 से अधिक लोकसभा सीटों पर अल्पसंख्यक वोटरों की भूमिका प्रभावी है. ऐसे में कांग्रेस के अलग लड़ने से इन वोटरों के बंटवारे का भी खतरा था. जिस का सीधा नुकसान सपा को हो सकता था. राज्यसभा के टिकट सहित अन्य मसलों को ले कर भी सपा में मुसलिमों की भागीदारी को ले कर सवाल उठे थे. इसलिए भी सपा ने वोटरों में एका का संदेश देने का दांव खेला है. सीटों के बंटवारे में उस के कोर वोटरों को किसी और के पाले में खिसकने का खतरा न हो, इस पर सपा ने खास ध्यान दिया है. कांग्रेस को मिली सीटों में अमरोहा और सहारनपुर ही ऐसी है जहां अल्पसंख्यक वोटर चुनाव का रुख बदलने की क्षमता रखते हैं.

यूपी के चुनावी मैदान में कांग्रेस को 17 सीटें उसे मिली हैं, उस में रायबरेली ही उस के खाते में है. अमेठी, कानपुर व फतेहपुर सीकरी में कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी. बांसगांव में पार्टी ने प्रत्याशी ही नहीं उतारा था. बाराबंकी, प्रयागराज, वाराणसी, झांसी, गाजियाबाद में सपा दूसरे नंबर पर थी. 2019 में कांग्रेस ने 1977 के बाद का सब से खराब प्रदर्शन किया था और उसे एक सीट मिली थी. वोट 7 फीसदी से भी नीचे आ गया. 2022 के विधानसभा चुनाव में वह 2 सीट पर सिमट गई. इस के बाद भी 17 सीटें मिलना उस के लिए फायदे का सौदा है.

सपा का साथ मिलने के चलते अधिकतर सीटों पर कांग्रेस लड़ाई में आ सकेगी. 2019 में सपा व और बसपा जैसे दो बड़े जातीय क्षत्रपों के साथ रहने के बाद भी भाजपा गठबंधन ने यूपी में 64 सीटें जीत ली थीं. अमेठी व कन्नौज में तो सपा, बसपा, कांग्रेस व रालोद सहित पूरा विपक्ष साथ लड़ा था, लेकिन जीत भाजपा को मिली थी. सपा-कांग्रेस को 24 में जीत के लिए जमीन पर और पसीना बहाना पड़ेगा.

2019 और 2024 के बीच गोमती नदी में पानी बहुत बह गया है. राम मंदिर को ले कर वोटर का उत्साह ठंडा दिख रहा है. भाजपा में टिकट वितरण और गठबंधन में तमाम मुश्किलें हैं. अभी जैसे ही सीटों का बंटवारा होगा वह रार सामने आएगी. ओम प्रकाश राजभर योगी मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने से नाराज हैं. भाजपा कई बड़े नेताओं के टिकट काटने जा रही थी. कांग्रेस-सपा के मिलने के बाद भाजपा यह साहस नहीं दिखा पाएगी. पार्टी के अंदरखाने नेताओं में बेचैनी है. जिस का प्रभाव भाजपा के मिशन 80 पर पड़ेगा.

सुलक्षणा : भाग 2- आखिर ससुराल छोड़कर वह अनजान जगह पर क्यों चली गई?

क्या उस का बाकी जीवन ऐसे इनसान के साथ बीतेगा? अपनेआप को अनेकों बार संभाल कर, फिर से उन के सभी ऐब को दरकिनार कर वह उन्हें प्यारसम्मान देती रही, इस उम्मीद से कि शायद वे एक दिन जरूर सुधर जाएंगे. मगर उन के लिए संवेदना, प्यार, अपनापन कोई मायने नहीं रखते थे.

हर बार संबंध बनाने के बाद वे उस पर पैसे फेंकने लगे. 1-2 बार तो उसे समझ नहीं आया, जब लगा कि ये अपनी पत्नी को भी वेश्या समझते हैं. तो उन की यह घटिया सोच उस से बरदाश्त नहीं हुई. उस ने उन के ऐसे बरताव करने पर एतराज जताया.

‘‘तो क्या करेगी तू…? मुकदमा करेगी…? जा कर, अब देख तेरे साथ और क्याक्या करता हूं, आई अपनी वकालत झाड़ने….‘‘
उन्होंने जो कहा, अखिरकार उस के साथ वैसा करने लगे.

उस की बिना मरजी के बारबार वे उस की देह पर वार करते रहे और उन के इस घिनौने कामों को वह खून की प्याली समझ पीती गई. उन के साथ एक कमरें में रहना उस के लिए असहनीय बनता जा रहा था. वह चाहती थी कि वह मर जाए, जिस से उस की जिंदगी को यह सब झेलने से आजादी मिल सके.

आप को क्या लगता है, उस ने मायके में अपनी घुटन भरी यातनाओं का जिक्र नहीं किया होगा…? हजार बार किया, मगर उन के घर औरतों के दुखतकलीफ का कोई महत्व नहीं होता. पिता तक तो खबर ही नहीं पहुंचती, मां और बहनें सब उसे ही ज्यादा पढ़ेलिखे होने की दुहाई देते.

‘‘अरे जैसा है चला, सब को कुछ ना कुछ सहना तो पड़ता है.‘‘

‘‘तू ज्यादा पढ़लिख गई है, इसलिए इतनी शिकायतें करती है.‘‘

‘‘तुम्हारी दोनों बहनंे तो कुछ नहीं कहतीं.‘‘

‘‘इसी वजह से हम औरतों को ज्यादा पढ़ने की छूट नहीं है.‘‘

‘‘अपना सब छोड़छाड़ कर यहां आ कर रहने की सोचना भी मत. ऐसा पीढ़ियों से नहीं हुआ और न होगा, क्योंकि शादी के बाद बेटियों का घर ससुराल ही होता है, भले ही वह जैसा भी हो.‘‘

अपने मायके से वह आशाहीन थी, इसी वजह से उस की हालत बद से बदतर होती चली जा रही थी. उस के शरीर से आत्मा जैसे निकलने के लिए तरस रही हो. इसी बीच उसे पता चला कि वह मां बनने वाली है.

मां बनना इन दुखों के पहाड़ के बीच उस की जिंदगी का सब से खुशनुमा पल था, और सच पूछें तो उसे एक बेटी की चाहत थी, जिस का नाम आकांक्षा रखती, उसे खूब पढ़ालिखा कर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने की आजादी देती. मगर, यह खुशी भी उस के ससुराल वालों से देखी न गई.

जब उस ने यह बात अपने पति से साझा की तो…

‘‘लड़का ही होगा, अगर लड़की हुई तो कचरे में फेंक दूंगा, समझी.‘‘

उस की कोख में बेटी होने का पता लगाने के बाद, उन्होंने अपनी पहचान और पैसों के रोब से उस की अधूरी आकांक्षाओं के साथ उस के भीतर ही उस का गला घोट देना बेहतर समझा.

इन 6 सालों के बीच वह 2 बार अपनी बरदाश्त की सीमाएं पार होने पर ससुराल छोड़ कर अपने मायके जा चुकी थी.
‘‘तेरी कोख ही मनहूस है… एक बेटा तक नहीं दे सकती…‘‘

बेटा न हुआ तो उस के लिए भी उसे ही जिम्मेदार ठहराया गया.

लेकिन, हर बार सभी की एक ही समझाइश और ससुराल वापिसी करा दी जाती.

‘‘धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. दामाद साब अपनेआप सुधर जाएंगे.‘‘

‘‘तुम सब्र रखो, तुम 2 बार घर छोड़ कर वैसे ही आ चुकी हो, समाज क्या कहेगा?‘‘

‘‘यहां लौट के आ गई, तो बाकी बहनों के ससुराल वाले थूथू करेंगे हम पर.‘‘

‘‘कुछ नहीं तो पिता की इज्जत और उन के व्यापार का तो खयाल करो.‘‘

‘‘इस घर में तलाक का नाम भी मत लेना.‘‘

पिता को भी थोड़ाकुछ पता था, मगर वे अपनी पार्टनरशिप बचाने के चक्कर में जानबूझ कर अनजान बनते रहे और साथ ही उन्हें भी लगता था कि धीरेधीरे चीजें ठीक हो जाएंगी, शादी करने के बाद सब को एडजस्ट करना होता है, वह भी एक न एक दिन कर लेगी.

इतने वक्त सब का हठी व्यवहार देख कर सुलक्षणा को यह अहसास होते देर नहीं लगी कि उस की परेशानियों से किसी को कोई वास्ता नहीं है. अपने घर वालों के द्वारा उस के साथ पराई औलाद जैसा बरताव करते देख उसे असहनीय पीड़ा होती थी.

उसे एक ऐसे पिंजरे में मजबूरन कैद होना पड़ गया था जहां से वह केवल नीले आजाद आकाश में उड़ते हुए खुशहाल पक्षियों को देख सकती थी. उड़ती कैसे? उस की उड़ान तो शादी के पहले से नियत्रंण में रखी गई थी और शादी के बाद मानो उस के पंख ही काट दिए गए हों.

उस बीच उस के लोभी भाई ने शादी रचाई. उस के पिता, भाई और पति में खासा फर्क नहीं था.

पिता के साथ भाई का पैसों को ले कर मतभेद आएदिन होता रहता था. रोजरोज की कहासुनी से तंग वह अपनी शादी पर मिलने वाले पूरे दहेज पर अपना हक लेने की फिराक में था.

उस के ससुराल वालों ने शर्त रखी, ‘‘हमारी इकलौती बेटी से शादी के बाद आप का बेटा घरजमाई बन कर रहेगा, पूरा कारोबार संभालेगा, सारी प्रोपर्टी पर अंत में उस का ही हक होगा, हम उसे अपना बेटा मान कर प्यार देंगे.‘‘

उस का मतलबी भाई मान गया. घर पर कई दिनों की महाभारत और पिता के कई प्रलोभन देने के बावजूद भी भाई नहीं समझा. बड़ी धूमधाम से उन दोनों की शादी संपन्न हो गई और वह घरजमाई बन कर उन्हें धोखा दे कर चलता बना.

वही सुलक्षणा का जीवन नरक से भी बदतर बनता चला जा रहा था, अपनी दूसरी बेटी की जुदाई उसे अंदर से खोखला करती जा रही थी. वह अपने हैवान पति और ससुराल वालों से नफरत करने लगी.

अपने पति के साथ बारबार हमबिस्तर न होने के बहाने बनती रही. वह नहीं चाहती थी कि वो पेट से हो और एक निर्दोष संतान फिर से मार दी जाए. मगर, उस का पति हवस का गिद्ध…

उन की कामवाली के साथ अंतरंग होते उस ने उन्हें अपनी आंखों से देख लिया. जिस इंसान ने अनगिनत बार उस का विश्वास तोड़ा, इस बार, उन की ये निरी हरकत वह बरदाश्त नहीं कर पाई.

उसे पूरा विश्वास हो गया कि इस महल में कभी कोई सुधर नहीं सकता, शायद यही वो पल है, जो इतने सालों से यह कहने इंतजार कर रहा था कि, अब बस, उस ने अपने सारे रिश्ते तोड़ कर ससुराल छोड़ने का फैसला कर लिया.

उस ने आज के दिन अपनेआप को एक नए रूप में ढलते हुए महसूस किया. अंदर से जैसे एक अनवरत देवीरूपी ताकत उस का साहस भरते जा रही थी. वह आवेश में भी आ कर कोई उलटासीधा कदम नहीं उठाना चाहती थी.

वह घर छोड़ कर पहले भी 2 बार जा चुकी थी इस उम्मीद से कि उस के मायके वाले एक बार कह दंे कि ‘‘बेटी, तुम फिक्र मत करो. यह घर भी तो तुम्हारा है,’’ मगर, इस बार अपने मायके कतई न जाने का सूझबूझ कर फैसला लिया, क्योंकि वहां कहने को उस के खुद के भी अपनाने वाले नहीं थे. 2-4 दिन के बाद वही समझा कर फिर वापस उस नरक में धकेल देंगे. इसी रात वह अपने जेवर और पैसे ले कर घर से भाग गई.

कहां जाती? कहां रहती? बिना कुछ परवाह किए वह निरंतर अपना मुंह छिपा कर चलती चली जा रही थी. एक बस गुजरती दिखी और बिना सोचे उस पर सवार हो गई.
2 दिन बाद कहीं सुलक्षणा के मायके में…

‘‘नमस्कार बहनजी, बहू की 2 दिन पहले बेटे से छोटी सी बात पर थोड़ी कहासुनी हो गई थी, तब से घर से गायब है, पक्का आप के पास आ गई होगी, जब गुस्सा शांत हो जाए तो समझा कर वापस भेज दीजिएगा.’’

‘‘नहीं, वह तो यहां नहीं आई. उसे गए हुए पूरे 2 दिन हो गए और आप मुझे अब बता रही हैं? कहां होगी मेरी बेटी, किस हाल में होगी वह?‘‘
‘‘आप चिंता न करें, आ जाएगी, चलिए, मैं बाद में फोन करती हूं.‘‘

‘‘कहां गई मेरी बच्ची… कुछ भी कर के उसे ढूंढ कर लाओ… यह सब आप की गलतियों का नतीजा है, पैसे देख कर अपनी लड़की का सौदा कर आए, वहां बेटे ने अपना सौदा कर लिया… कभी खबर ली, किस हाल में रहती है वह?‘‘ गुस्से के आंसुओं से तिलमिला उस की मां ने पिता से जीवन में पहली बार कुछ कहने की हिम्मत की.
मां की बात सुन कर पिता मायूस हो सिर पर हाथ रख कर बैठ गए, जानते वे भी सब थे, कैसे उन का खुद का खून, बुढ़ापे, व्यापार का सहारा अपने सामने विदा होते देख उन का घमंड अंदर ही अंदर चूरचूर हो चुका था. किसी से क्या स्वीकार करते?

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