तितली
यह तितली फूलों से पराग इकट्ठा कर शहद बनाने वाली नहीं है, फिर भी अपनी छटपटाहट से दर्शकों को चौंकाती जरूर है. फिल्म का प्रमुख किरदार तितली अपने 2 भाइयों के साथ रहता है और छोटीमोटी चोरियां करता है. उस का सपना है 3 लाख रुपए जुटा कर एक मौल में पार्किंग स्पेस खरीदना. इसीलिए वह अपने भाइयों की हां में हां मिला कर लूटपाट का धंधा करता है. साथ ही, वह हर वक्त छटपटाता भी रहता है कि कब वहां से भाग निकले. उस की यही छटपटाहट दर्शकों को बांधे रखती है कि वह अपने भाइयों के चंगुल से कैसे निकल पाता है. ‘तितली’ कम बजट की नए हीरो-हीरोइन को ले कर बनाई गई फिल्म है. इस फिल्म को दिवाकर बनर्जी और प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक दिवंगत यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा ने मिल कर बनाया है. फिल्म देख कर बहुत शर्म महसूस हुई कि जो यश चोपड़ा हमेशा से साफसुथरी, पारिवारिक फिल्में बनाया करते थे, उन के बेटे ने गालियों से भरपूर ऐसी फिल्म बनाई है. इस फिल्म को विदेशी फिल्म समारोहों में भले ही दर्जनों अवार्ड्स मिले हों लेकिन गालियों के दम पर अवार्ड्स जीतना गर्व की बात नहीं कही जा सकती.
‘तितली’ की कहानी 3 भाइयों की है. सब से बड़ा भाई विक्रम (रणवीर शोरी), मंझला बावला (अमित स्याल) और सब से छोटा तितली (शशांक अरोड़ा) है. तीनों भाई मिल कर छोटीमोटी चोरियां करते हैं. घर में कोई महिला नहीं है. विक्रम की बीवी अलग रहती है और उस से तलाक चाहती है. पैसे कमाने की चाह में विक्रम और बावला मिल कर तितली की शादी नीलू (शिवानी रघुवंशी) से करा देते हैं. नीलू दहेज में सामान के अलावा ढाई लाख की एफडी भी साथ में लाती है. शादी के बाद नीलू अपने प्रेमी प्रिंस के पास जाना चाहती है. तितली और नीलू में डील होती है कि तितली उसे उस के प्रेमी से मिलवाएगा और वह उसे ढाई लाख रुपए दे देगी. तितली को ढाई लाख रुपए मिल जाते हैं और वह मौल में पार्किंग स्पेस खरीदने पहुंचता है लेकिन उस के अंदर की छटपटाहट उसे रोक देती है. उधर नीलू अपने प्रेमी से मिलने जाती है तो उसे पता चलता है कि वह शादीशुदा है. वह अपने मायके लौट आती है. तितली थकहार कर नीलू के मायके पहुंच जाता है और उस से अपनी गलती की माफी मांगता है. दोनों फिर से एक हो जाते हैं. फिल्म की विशेषता इस की कहानी और किरदार हैं. फिल्म में किरदारों का रहनसहन निम्न वर्ग का दिखाया गया है जो हर वक्त आपस में झगड़ते हैं और गालीगलौज करते हैं. निर्देशक ने एक बेरोजगार युवा की पैसे पाने की ललक को खूबसूरती से दिखाया है. पैसे पाने के लिए वह अपनी पत्नी का हाथ इंजैक्शन से सुन्न कर उस की कलाई तोड़ देता है ताकि उस का बड़ा भाई उस की पत्नी से एफडी पर साइन न करा सके. फिल्म का माहौल दर्शकों को कुछ हद तक बांधे रखता है. शशांक अरोड़ा की ऐक्ंिटग अच्छी है. रणवीर शोरी कुछ खास नहीं कर सका है. फिल्म कलात्मक टच लिए हुए है. मल्टीप्लैक्स कल्चर की यह फिल्म टिकट खिड़की पर भीड़ जुटा पाएगी, इस में संदेह है. फिल्म में गीतों की गुंजाइश नहीं थी, पार्श्व संगीत ठीकठाक है. छायांकन अच्छा है.
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प्रेम रतन धन पायो
करीब 27 साल पहले बनी राजश्री प्रोडक्शंस की फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ ने कामयाबी के सभी रिकौर्ड तोड़ डाले थे. उस के बाद ‘हम साथसाथ हैं’ और ‘हम आप के हैं कौन’ ने भी खूब धूम मचाई. इन फिल्मों से यह स्पष्ट हो गया कि सूरज बड़जात्या साफसुथरी पारिवारिक फिल्में ही बनाते हैं. लेकिन सचाई यह है कि उन की फिल्मों में अगर नयापन ढूंढ़ा जाए तो वह नदारद मिलेगा. उन की हर फिल्म की स्टाइल लगभग एक जैसी होती है. लंबेलंबे सीन, आदर्शवादी किरदार, गानों की भरमार और एक सुपर स्टार का आकर्षण. उन की नई फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ में भी नयापन नहीं दिखा. फिल्म का नायक सलमान खान एक सुपरस्टार है, दर्शकों में उस का आकर्षण है. फिल्म में उस के किरदार को एकदम आदर्शवादी दिखाया गया है. लेकिन फिर भी फिल्म में कुछ कमी दिखाई देती है.
इस बार फिल्म की कहानी भी पारिवारिक कम, राजसी षड्यंत्र की ज्यादा लगती है. इसीलिए फिल्म में रोचकता कम हो गई है. ‘हम आप के हैं कौन’ की चुहलबाजी ‘दीदी तेरा देवर दीवाना.’ इस फिल्म में गायब है. फिल्म की नायिका सोनम कपूर में भी न तो चुलबुलापन दिखा न ही वह खुल कर हंसी है. सूरज बड़जात्या ने हालांकि फिल्म को काफी भव्य बनाया है. खूबसूरत सैट लगाए हैं, शीशमहल का सैट तो देखने लायक है. फिल्म में ग्लौसी लुक है. खूबसूरत दृश्य आंखों को चौंधियाते हैं. फिर भी फिल्म में गंभीरता की कमी खटकती है. फिल्म एक सिनेमाई ड्रामा बन कर रह गई है. फिल्म की कहानी शुरू होती है एक सीधेसादे रामभक्त प्रेम दिलवाले (सलमान खान) की प्रेमलीला (रामलीला नहीं) से. इस प्रेमलीला में कुछ मनचले सीता के किरदार से छेड़छाड़ करते हैं तो प्रेम उन्हें बाहर खदेड़ देता है.
इस प्रेमलीला में कमाई गई धनराशि को वह राजकुमारी मैथिली (सोनम कपूर) के एक एनजीओ को दान कर देता है. वह राजकुमारी मैथिली से एक बार मिलना चाहता है. उधर राजकुमारी मैथिली की शादी प्रीतमपुर के युवराज विजय (सलमान की दूसरी भूमिका) के साथ उस के राजतिलक के बाद होनी तय हुई है. प्रेम दिलवाला अपने दोस्त कन्हैया (दीपक डोबरियाल) के साथ प्रीतमपुर जाने का प्रोग्राम बनाता है. इसी बीच विजय सिंह का सगा भाई अजय (नील नितिन मुकेश) एक षड्यंत्र रच कर विजय सिंह पर जानलेवा हमला कराता है. रियासत के दीवान (अनुपम खेर) को जब महाराज विजय सिंह के हमशक्ल प्रेम दिलवाले के बारे में पता चलता है तो वह प्रेम को विजय सिंह बनने पर मजबूर कर देता है, विजय सिंह को छिपा देता है और उस का गुपचुप इलाज कराता है. अब प्रेम दिलवाला महाराज विजय सिंह बन कर राजकुमारी मैथिली से मिलता है. वह उस से प्यार करने लगता है. महल में रहते हुए प्रेम दिलवाला सारे षड्यंत्र को बेनकाब करता है और महाराज विजय सिंह को उस की अमानत राजकुमारी मैथिली को सौंप देता है. परंतु मैथिली तो प्रेम दिलवाले को पसंद करने लगी थी. अत: महाराजा विजय सिंह मैथिली की शादी प्रेम दिलवाला से करवा देते हैं.
फिल्म की इस कहानी की शुरुआत श्लोक और रामलीला से होती है. यह कहानी एकदम काल्पनिक लगती है. निर्देशक द्वारा राजसी षड्यंत्र की बात करना आज के युग में बेमानी लगता है. मध्यांतर से पहले बना फिल्म का माहौल मध्यांतर के बाद बिखर सा जाता है. फिल्म के अधिकांश सीन लंबे हो गए हैं. इस बार सूरज बड़जात्या सलमान के किरदार को पावरफुल बनाने में असफल साबित हुए हैं. फिल्म में 10 गाने हैं. इन गानों की वजह से फिल्म बेवजह लंबी खिंच गई है. टाइटल सौंग के अलावा कोई गाना याद नहीं रह पाता. फिल्म की पटकथा फीकी बन कर रह गई है. फिल्म में कई अतार्किक बातें भी भरी हुई हैं. महाराजा विजय सिंह की बहनों वाला प्रसंग नाटकीय ज्यादा हो गया है. राजकुमारी मैथिली की भूमिका में सोनम कपूर फिल्म की कमजोर कड़ी है. अनुपम खेर जंचा है. नील नितिन मुकेश का किरदार कमजोर है. छायांकन अच्छा है. फिल्म का क्लाइमैक्स जबरन लंबा खींचा गया है. फिल्म के अंत में एक गाना और डाला गया है, जिस की जरूरत नहीं थी.
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शानदार
‘शानदार’ फिल्म अपने टाइटल के अनुरूप शानदार नहीं है. वैडिंग डैस्टिनेशन पर आधारित इस फिल्म में निर्देशक वह कमाल नहीं दिखा सका है जो वह अपनी पिछली फिल्म ‘क्वीन’ में दिखा चुका है. ‘क्वीन’ फिल्म का गाना ‘सारा लंदन ठुमकता…’ आज भी दर्शकों की जबान पर थिरकता है. फिल्म में शाहिद कपूर और आलिया भट्ट की जोड़ी परदे पर पहली बार आई है. दोनों की कैमिस्ट्री जमी खूब है लेकिन फिल्म की कहानी और पटकथा इतनी ज्यादा कमजोर है कि यह फिल्म शीघ्र ही भूल जाने वाली बन गई है. शाहिद कपूर ने जो उम्दा ऐक्टिंग फिल्म ‘हैदर’ में की थी उस पर उस ने पानी फेर दिया है. आलिया भट्ट की तो क्या कहें, अपनी निजी जिंदगी में हमेशा चुटकुले सुनाती यह छोरी इस फिल्म में भी गूगल गर्ल बनी नजर आती है. दर्शकों को लुभाने के लिए उस ने एक बिकिनी सीन भी किया है, फिर भी वह दर्शकों पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाई है. फिल्म की शुरुआत कार्टून कैरेक्टरों से होती है. ये ग्राफिक्स और कार्टून दिलचस्प लगते हैं लेकिन शीघ्र ही फिल्म वैडिंग डैस्टिनेशन पर पहुंच जाती है. निर्देशक ने इस वैडिंग को दिखाने के लिए करोड़ों रुपए फूंक डाले हैं.
कहानी की थीम भारीभरकम दुलहन और अमीरों की चोंचलेबाजी है. भारीभरकम दुलहन की त्रासदी को इस फिल्म से पहले ‘दम लगा के हइशा’ फिल्म में देखा जा चुका है. फिल्म की कहानी शुरू होती है वैडिंग से. एक अमीर घर की लड़की ईशा (सना कपूर) की शादी एक सिंधी परिवार के युवक रौबिन (दिलजीत दोसांझ) से हो रही है. यह शादी 2 अमीर घरानों के बीच एक सीक्रेट डील की तरह है. ईशा की दादी (सुषमा सेठ) अपने परिवार को दिवालिया होने से बचाने के लिए यह शादी करा रही है. ईशा मोटी है, इसीलिए रौबिन शादी में ईशा का मजाक उड़ाता है. इस शादी का वैडिंग प्लानर है जोगिंदर (शाहिद कपूर), जिसे पहली नजर में ईशा की बहन आलिया (आलिया भट्ट) से प्यार हो जाता है. उधर ईशा के पिता विपिन अरोड़ा (पंकज कपूर) को लगता है कि इस शादी के बाद उस के दिन फिर जाएंगे. वह हर वक्त सबकुछ छोड़छाड़ कर भागने की बातें करता रहता है. उधर शादी के दौरान जोगिंदर और आलिया छिपछिप कर आपस में मिलते हैं. विपिन अरोड़ा को भी जोगिंदर और आलिया के प्यार की भनक लग जाती है. यहां यह भी क्लीयर हो जाता है कि आलिया विपिन अरोड़ा की सगी बेटी नहीं है. शादी की तैयारियों के बीच जोगिंदर और आलिया ईशा को एहसास कराते हैं कि वह कितनी स्पैशल है. परिस्थितियां इस प्रकार घटती हैं कि ईशा की दादी का देहांत हो जाता है. ईशा अपने पिता को ईशा और जोगिंदर के प्यार के बारे में बताती है. विपिन ईशा की शादी कराने से इनकार कर देता है और आलिया और जोगिंदर का मिलन कराता है. फिल्म की सब से बड़ी खामी इस की पटकथा है. शाहिद कपूर का काम कुछ अच्छा है. सना कपूर ने भी अच्छी ऐक्ंिटग की है. आलिया ग्लैमरस लगी है. पंकज कपूर की ऐक्ंिटग सब से अच्छी है. अधिकांश फिल्म की शूटिंग लंदन में की गई है. संगीत अमित त्रिवेदी का है. एक गीत ‘गुलाबो…’ अच्छा बन पड़ा है. छायांकन अच्छा है.