रूसी करतूतों का परदाफाश
एंटी डोपिंग के स्वतंत्र आयोग ने मांग की है कि रूस पर ओलिंपिक सहित सभी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भागीदारी पर प्रतिबंध लगे. आयोग ने कहा है कि वर्ल्ड एंटी डोपिंग यानी वाडा की हिदायत के बावजूद मास्को प्रयोगशाला में मौजूद डोपिंग के 1400 नमूने नष्ट कर दिए गए.
खेलों में डोपिंग का मामला आएदिन उठता रहता है और समयसमय पर वाडा इस पर कार्यवाही करता रहता है. बावजूद इस के, डोपिंग के मामले कम होने के बजाय बढ़ ही रहे हैं. अगस्त महीने में तुर्की की एथलीट अजल्ह चैकिर अल्पतेकिन से 2012 के ओलिंपिक खेलों में 1500 मीटर दौड़ में जीता गया स्वर्ण पदक छीन लिया गया और उन पर 8 साल का बैन भी लगाया गया है. इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय एथलेटिक्स एसोसिएशनों के महासंघ यानी आईएएएफ ने जांच के बाद 28 खिलाडि़यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का फैसला किया था. ऐसे एक नहीं, कई मामले हैं और सैकड़ों एथलीट सवालों के घेरे में हैं. कइयों के रक्त नमूने लिए जा चुके हैं और जांच चल रही है पर इस का खिलाडि़यों पर असर कम ही दिखाई पड़ रहा है. अगर ऐसा होता तो डोपिंग का एक भी मामला सामने नहीं आता. डोपिंग मामले को ले कर खिलाडि़यों को खुद ही सतर्क रहना होगा. क्योंकि यह मामला ऐसा है कि एक बार आप इस चक्कर में पड़ गए तो समझ लीजिए, कैरियर खत्म. विदेशी खिलाड़ी तो इस के लिए बदनाम हैं ही भारत भी अब इस की चपेट में बदनाम होने लगा है. अधिकारियों का सुस्त रवैया और खिलाड़ी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. शौर्टकट अपनाने के चक्कर में वे ऐसी प्रतिबंधित दवाओं का सेवन कर लेते हैं जिन से कुछ देर के लिए शरीर में चुस्तीफुरती तो आ जाती है पर सेहत पर क्या असर पड़ता है शायद उन्हें मालूम नहीं. खिलाडि़यों को अगर बेहतर भविष्य और लंबे समय तक खेलना है तो इस से बाहर आना होगा. और खासकर उन नए खिलाडि़यों को इस से सबक लेने की जरूरत है जिन को खेल में अभी बहुत आगे बढ़ना है.
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