पड़ोस में शादी थी. शादी के हर कार्यक्रम में दूल्हे की चाची, जो दूसरे शहर में रहती थीं, सजधज कर ढोलक बजाने बैठ जातीं या फिर एकदम चटक मेकअप और गहरे गले के ब्लाउज पहन अदाएं दिखलाती रहतीं. जब दुलहन विदा हो कर आ गई तो मंडप के नीचे गानेबजाने का कार्यक्रम चल पड़ा.

मेरे पति घर चलने का इशारा कर रहे थे. उन का इशारा देख कर दूल्हे की मां बोल पड़ीं कि विदा करा कर बहू को घर लाए हैं, आप लोगों को बिना डांस देखे हम जाने नहीं देंगे. इस पर चाचीजी भी हाथ हिला कर बोलीं, ‘चलिए, आइए मैदान में, प्रतियोगिता हो जाए.’

सभी आ कर बैठ गए. कोई गाने लगा तो कोई ठुमके लगाने लगा. एक ने तो जेब से नोट निकाल कर चाची को दिखाए. फिर होंठ में नोट रख गरदन हिलाहिला कर पकड़ने का इशारा करने लगे.

उस की इस हरकत पर मैं ने अपने पति से गुस्से में कहा, ‘यह क्या तमाशा है.’ वे बोले, ‘अरे, नाचनेगाने वाली जो बुलाई गई है उसी को तो वे नोट देंगे.’ मैं ने जब उन्हें बताया कि वे दूल्हे की चाची हैं. यह सुनते ही उन के होश उड़ गए और बोले, ‘अरे, हम लोग तो कुछ और ही समझे थे.’ अब तो वहां से खिसकने में ही सब ने भलाई समझी.

– दीपा पांडे, लखनऊ (उ.प्र.)

*

हम एक विवाह समारोह में इंदौर गए. वहां वधू को गिफ्ट देने के लिए एक दुकान से रोटीमेकर खरीदा. उसी में उस का वारंटी कार्ड भी डलवा दिया, ताकि कभी कोई परेशानी हो तो वे स्वयं सर्विसिंग करवा सकें.

कुछ दिनों के बाद मैं अपने बौस के साथ एक रिसैप्शन में भोपाल गया. वहां उन्होंने मेरी राय से एक रोटीमेकर खरीद कर वधू को गिफ्ट किया.

मेरे भांजे की शादी शुजालपुर में तय हुई. जब हम सगाई कर के लौट रहे थे तो हमारे हाथ में उन के द्वारा दिए गए गिफ्ट थे. कोई गिफ्ट छोटा, कोई बड़ा था. मुझे जो गिफ्ट मिला था वह कौन सा था, मैं भूल गया. दीदी ने जो दिया, मैं ले आया. घर पहुंचा तब रात हो गई थी. गिफ्ट डिक्की में ही रह गया.

2-3 दिन बाद हमारी मैरिज एनिवर्सरी थी. बौस के साथ जहां रिसैप्शन में गया था, उन की कंपनी वहां नए प्रोडक्ट को लौंच कर रही थी. उन्होंने हमें विश किया और गिफ्ट भी दिया. दूसरे दिन बच्चों के साथ बातें करते हुए गिफ्ट खोले तो दंग रह गए. दोनों रोटीमेकर, जिन के वारंटी कार्ड हम ने ही डलवाए थे, हमारे सामने रखे थे. ये सब कैसे हुआ, पता नहीं, पर ऐसा भी होता है.

– मोनाली हरीश जैन, मुंबई (महा.)

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