दीवाली की छुट्टियों में बच्चे भी घर आए थे, तो सभी ने साथ में फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया. जब हम टाकीज में पहुंचे तो फिल्म शुरू हो गई थी और हाल में अंधेरा था. हम सभी अंधेरे में ही जा कर सीट पर बैठ गए.

लगभग 15 मिनट बाद मुझे लगा कि मेरे पैरों में दर्द हो रहा है. मैं ने सोचा, ऐसे ही हो रहा होगा क्योंकि कभीकभी कमर व पैरों में मुझे दर्द हो जाता है. सो, मैं ने फिल्म में ध्यान लगाने की कोशिश की. 15 मिनट और बीते, अब ऐसा लग रहा था जैसे दर्द पैरों से कमर की तरफ जा रहा है. कुछ देर बाद तेज जलन भी होने लगी. अब बैठना भी मुश्किल हो रहा था. बड़ी अजीब हालत थी. मैं दर्द व जलन से परेशान हो रही थी और सभी लोग फिल्म के मजे ले रहे थे. मैं उन का मजा खराब नहीं करना चाहती थी.

इस तरह आधा घंटा मैं और बैठी रही लेकिन जब स्थिति असहनीय हो गई तो मैं ने सोचा कि मुझे घर जाना चाहिए. बिटिया पास में बैठी थी, मैं ने उस से अपनी परेशानी बताई. उस ने कहा, ‘‘आई, जरा खड़ी होना,’’ और उस ने मोबाइल की टौर्च जला कर सीट का मुआयना किया व जोर से हंस पड़ी. मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ वह बोली, ‘‘आई, खुद ही देख लो.’’ और मैं ने देखा वहां सीट पर कागज में ढेर सारी तली मिर्चें पड़ी थीं, मैं अंधेरे में उन पर ही बैठ गई थी.

- वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)

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