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उम्र बढ़ने पर बढ़ती है उत्तेजना

जैसेजैसे महिलाओं की उम्र में वृद्धि होती है उन की सैक्स पावर में भी बढ़ोत्तरी होती है. इस आयुवर्ग की महिलाएं अपने साथी से बैड में नएनए प्रयोग की इच्छा रखती हैं. बढ़ती उम्र की महिलाओं के बारे में अभी तक यह धारणा थी कि उम्र बढ़ने पर सैक्स उत्तेजना कम हो जाती है.

न्यूयार्क में विपणन सेवा प्रदान करने वाली कंपनी ‘लिप्पे टेलर’ ने वैबसाइट ‘हैल्दीवुमेन डौट और्ग’ के साथ संयुक्त रूप से एक सर्वेक्षण किया जिस में 18 वर्ष से ले कर वृद्ध वय की 1 हजार महिलाओं को शामिल किया गया. सर्वे के दौरान 54 फीसदी प्रतिभागियों ने माना कि बढ़ती उम्र के साथ सैक्स का आनंद बढ़ने लगता है. इस सर्वेक्षण में सब से दिलचस्प पहलू यह निकल कर आया कि 45 से 55 वर्ष के आयुवर्ग के बीच की महिलाएं सैक्स को ले कर सर्वाधिक प्रयोगधर्मी पाई गईं.

उन्हें सैक्स के दौरान नए तरीके बहुत भाते हैं. मिलेनियम मैडिकल ग्रुप से संबद्ध चिकित्सकों में मिशिगन की नर्स प्रैक्टिशनर नैंसी बर्मन ने कहा, ‘‘महिलाएं जैसेजैसे उम्रदराज होती जाती हैं तथा अपने पति या साथी के साथ उन की नजदीकियां बढ़ती जाती हैं, तो उन्हें सैक्स में ज्यादा मजा आने लगता है, साथ ही वे उसे अधिक मजेदार बनाने पर भी ध्यान देने लगती हैं.’’

बनेगा मधुमक्खी जैसा रोबोट

कुछ वैज्ञानिकों ने मधुमक्खी जैसा रोबोट बनाने की योजना बनाई है. मधुमक्खियों पर किए गए शोध में अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हार्वर्ड के वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता डा. श्रीधर रवि ने पाया कि मधुमक्खियां हवा के सीधे प्रवाह में उड़ती हैं, जिस के कारण ये खराब मौसम में भी अपनी उड़ान आसानी से भर लेती हैं.

उन्होंने उड़ती हुई मधुमक्खियों का वीडियो रिकौर्ड किया तो कुछ रोचक तथ्य निकल कर सामने आए. उन्होंने पाया कि ये तेज हवा में अपनी गति धीमी कर लेती हैं, जिस से ये अधिक ऊर्जा का संचार करती हैं. डा. रवि इसी तर्ज पर एक रोबोट बनाने की योजना बना रहे हैं जो खराब मौसम में भी सटीक तथ्य उपलब्ध कराएगा.

पेशेवर बार्बी डौल मेकओवर के साथ बाजार में

बार्बी डौल! बार्बी डौल के प्रति दीवानगी केवल लड़कियों में नहीं है. सालोंसाल से लड़के भी इसकी खूबसूरती के कायल रहे हैं. सबके दिल पर राज करनेवाली बार्बी डौल का अब मेकओवर हो गया है. वैसे क्या आप जानते हैं आज बार्बी डौल की उम्र क्या होगी? इसका जवाब है 57 साल. गजब की लंबाई, पतली कमर, मदहोश कर देनेवाली बड़ी-बड़ी नीली आंखें- उफ बला की खूबसूरत रही है बार्बी! कहते हैं बार्बी का परफेक्ट फिगर ही इतने सालों तक इसकी लोकप्रियता का राज है.

लेकिन आज बार्बी के फिगर के बदलाव के साथ उसका मेक ओवर भी किया गया है. अब बार्बी कर्वी फिगर के साथ आयी है. और साथ में परिपक्व भी नजर आती है. गौरतलब है कि 9 मार्च 1959 में बार्बी का जन्म न्यूयौर्क में ट्वाय फेयर में हुआ था. तबसे उसके फिगर में जरा भी बदलाव नहीं आया. हां, समय-समय पर आंखों, बालों और स्कीन के रंग में बदलाव जरूर आया है. लेकिन कुल मिला कर हर बदलाव में बार्बी, बार्बी ही नजर आयी है.

बार्बी के कम से कम दस सबसे लोकप्रिय रूप हैं. 1959 से लेकर 1966 तक बार्बी का विंटेज रूप पसंद किया जाता रहा है. यह रूप विंटेज बार्बी डौल कलेक्शन कहलाता था. 1967 में बार्बी मौडर्न हो गयी. इस मौड बार्बी ने 1967 से लेकर 1973 के बीच बहुतों के दिलों में राज किया. लेकिन इस बीच 1971 में स्वीमिंग कौस्ट्यूम में मालीबू बार्बी आयी. भूरे बालोंवाली मालीबू बार्बी ने भी सबके दिनों में जगह बना ली. मालीबू ने 1977 तक राज किया.

इसके बाद सुपरस्टार बार्बी आयी 1977 में. गुलाबी गाउन में सुनहरे बाली वाली बार्बी ने तो अपने दिवानों के होश ही उड़ा दिया. लगभग 1990 तक इसका ट्रेंड बना रहा. लेकिन याद है इस बीच ब्लैक ब्यूटी का दौर भी आया था. तब 1988 में ब्लैक बार्बी बाजार में आयी. काले बालों, भूरे आंखों वाली ब्लैक बार्बी ने भी मन मोह लिया. लेकिन इस ब्लैक बार्बी को भारत में ज्यादा पूछ नहीं हुई. भारत में गुलाबी गाउनवाली सुपरस्टार बार्बी को ज्यदा पसंद किया गया.

1992 में आयी मैकी बार्बी. लाल पोशाक में मैकी फेसवाली बार्बी विदेश में ज्यादा लोकप्रयत रही. 2000 में सिल्क स्टोन बार्बी का पदार्पण हुआ. इस बार्बी की गिनती फैशन मौडल कलेक्शन के रूप में हुई. हल्के सुनहरे बालों, नीली आंखों वाली पीच रंग की ड्रेस में बार्बी के लुक पुराने फिल्मों की अभिनेत्री मुमताज नजर आयी थी. 2009 में मैटेल ने 12 नई बार्बी डौल का एक कलेक्शन लांच किया. लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा पसंद की गयी लारा बार्बी, स्टेफी बार्बी और टैंगो बार्बी. गहरे भूरे बालों, नीली आंखों वाली काले ड्रेस में बार्बी को हर जगह पसंद किया गया. लारा के साथ स्टेफी और टैंगो बार्बी भी लोकप्रिय रही.

अब जब बार्बी 57 साल की हो चुकी है तो कोई एक जैसा भला कैसे रह सकता है! जाहिर है इस मेकअओवर के साथ बार्बी में परिपक्वता नजर आती है. यह परिपक्व बार्बी तीन तरह की है। एक छोटे कदकाठी वाली, दूसरी लंबी और तीसरी सुडौल बार्बी है. यह मेकओवर महज बार्बी की बनावट की नहीं है. इस नए कलेक्शन में बार्बी की 22 रंगों की आंखों और लगभग 24 हेयरस्टाइल और विभिन्न रंग-बिरंगे बालों वाली बार्बी बाजार में उतारी गयी है.

अब सवाल है कि 57 साल के बाद बार्बी में बदलाव लाने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी? कहते हैं कि हाल के वर्षों में दुनिया भर में बार्बी की कुल बिक्री में लगातार गिरावट आती जा रही थी. इसीलिए माना जा रहा है कि नया सिरे से बाजार पकड़ने की रणनीति के तहत बार्बी में बदलाव लाए गए हैं. वजह कोई भी रही हो, इस बदलाव को बच्चों के माता-पिता अच्छी नजर से नहीं ले पा रहे हैं. उनका आरोप है कि यह नई बार्बी बच्चों को व्यस्कों की दुनिया में ले जा रही है.  हालांकि जवाब में मैटेल का कहना है कि नई बार्बी पेशेवर बार्बी है. इनमें से कोई एस्ट्रोनौट है तो कंप्यूटर इंजीनियर. ये बार्बी समाज में सकारात्मक भूमिका निभानेवाली लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती है.

 

         

 

 

तापसी पन्नू क्यों घटा रही हैं अपना वजन…?

बौलीवुड में भले ही तापसी पन्नू कुछ खास सफलता न बटोर पा रही हों, मगर दक्षिण भारतीय फिल्मों में उनकी बड़ी मांग है. तापसी पन्नू की खासियत है कि वह अपने किरदार के साथ न्याय करने के लिए अपनी तरफ से पूरा होमवर्क और तैयारी करने के साथ साथ काफी मेहनत करती हैं. इन दिनों वह हिंदी, तेलगू व तमिल इन तीन भाषाओं में बन रही 1971 युद्ध के समय विशाखापट्टनम के पास डूबे पाकिस्तानी जलयान ‘‘पीएनएस गाजी” की अनकही कहानी और भारतीय जल सेना यानी कि नेवी पर आधारित फिल्म ‘‘गाजी’’ में रिफ्यूजी का किरदार निभा रही हैं. जिस पर काफी जुल्म हो चुका है. अब इस किरदार के लिए उन्हे दुबला पतला नजर आना है. इसलिए तापसी पन्नू इन दिनों अपना वजन कम करने में लगी हुई हैं. खुद तापसी कहती हैं-‘‘फिल्म में मेरा किरदार एक ऐसी लड़की का है,जो कि रिफ्यूजी है,जिस पर काफी जुल्म ढाया जा चुका है. इसलिए में अपना वजन कम कर रही हूं. इसके लिए अब मुझे सख्त डाइट का पालन करना पड़ रहा है.’’

सर्व विदित है 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान विशाखापट्टनम के पास पाकिस्तानी जलयान ‘‘पी एन एस गाजी’ ’डूबा था. पर उस वक्त भारतीय जलसेना यानी कि नेवी और इस जहाज पर सवार पाकिस्तानियों के बीच क्या हुआ था, इसका सच किसी को पता नहीं है. क्योंकि इस मसले से जुड़ी सभी फाइलें क्लासीफाइड हैं. उस जलयन की अनकही कहानी को अब तीन भाषाओं की फिल्म ‘‘गाजी’’ में लेकर आ रहे हैं फिल्मकार संकल्प.इस फिल्म में तापसी पन्नू के साथ राणा डग्गूबटी भी अभिनय कर रहे हैं.

सूत्र बताते हैं कि इस फिल्म के निर्देशक संकल्प और अभिनेता राणा डग्गूबटी ने एक साथ इस विषय पर रिसर्च किया है. फिल्म में तापसी पन्नू रिफ्यूजी है, तो वहीं राणा डग्गूबटी नेवल कमांडर की भूमिका में हैं. इस फिल्म का खास सेट हैदराबाद में लगाकर इसे फिल्माया जा रहा है. यह भारत की पहली जलयान आधारित युद्ध फिल्म होगी.

हर्षवर्धन राणे: रच रहे हैं इतिहास पर इतिहास

भारतीय सिनेमा भी क्षेत्रवाद का शिकार है. हिंदी फिल्मों की इंडस्ट्री को बौलीवुड के नाम से पहचाना जाता है. जबकि अन्य भाषाओं की फिल्मों को क्षेत्रीय भाषा की फिल्में कहा जाता है. इनमें से मलयालम, तमिल, तेलगू और कन्नड़ इन चार भाषाओं में बनने वाली फिल्मों को दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री कहा जाता है. अब तक का इतिहास गवाह है कि दक्षिण भारतीय फिल्मों में अभिनय कर नाम कमाने के बाद तमाम हीरोईन बौलीवुड में आकर अपना नाम रोशन कर चुकी हैं. मगर दक्षिण भारतीय फिल्मों का कोई भी हीरो अब तक बौलीवुड में लंबे समय तक टिक नहीं पाया. जबकि कमल हासन, सूर्या, राणा डग्गूबटी सहित कई दक्षिण भारतीय हीरो बौलीवुड में यदा कदा काम करते रहते हैं.

तो दूसरी तरफ अब तक बौलीवुड में नाम कमाने के बाद कुछ कलाकार दक्षिण भारतीय फिल्मों से जुड़े हैं. मगर दक्षिण भारत में इन कलाकारों को हीरों नही बल्कि विलेन के रूप में ही काम मिला. मगर ग्वालियर में जन्में एक डाक्टर पिता के बेटे हर्षवर्धन राणे ने हिंदी टीवी सीरियल ‘‘लेफ्ट राइट लेफ्ट’’ में अभिनय कर शोहरत बटोरी और फिर उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्मों में बतौर हीरो अभिनय करने का मौका मिल गया.

महज तीन साल के अंदर हर्षवर्धन दक्षिण भारत की आठ फिल्मों में बतौर हीरो अभिनय कर जबरदस्त शोहरत बटोर चुके हैं. इस तरह हर्षवर्धन ने सिनेमा जगत में एक नए इतिहास को रचा है. दक्षिण भारतीय फिल्मों में व्यस्तता के चलते हर्षवर्धन राणे ने संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘रामलीला: गोलियों की रासलीला’’ में अभिनय करने का आफर ठुकरा दिया था. उसके बाद हर्षवर्धन राणे ने जान अब्राहम निर्मित फिल्म ‘‘सत्रह को शादी’’ तथा विनय सप्रू व राधिका राव निर्देशित फिल्म ‘‘सनम तेरी कसम’’ जैसी हिंदी फिल्में की है. इन दो हिंदी फिल्मों में से ‘‘सनम तेरी कसम’’ पांच फरवरी को तथा दूसरी फिल्म ‘‘सत्रह को शादी’’ इस साल के अंत तक रिलीज होगी.

दक्षिण भारतीय फिल्मों में बतौर हीरो फिल्में कर नया इतिहास रचने की बात स्वीकार करते हुए खुद हर्षवर्धन राणे ने कहा-‘‘मैंने दक्षिण भारत में बतौर हीरो आठ फिल्में की हैं. हर फिल्म में अलग तरह का किरदार निभाया है. मैं पहला उत्तर भारत का रहने वाला हिंदी भाषी बंदा हूं,जो कि उत्तर भारत से जाकर दक्षिण भारत में हीरो बना. अन्यथा हिंदी भाषी कलाकार वहां पर विलेन के रूप में काम करते हैं. इतना ही नहीं वहां पर हर फिल्म में हीरो बनने के लिए तमाम कलाकार तैयार बैठे होते हैं.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए हर्षवर्धन राणे कहते हैं-‘‘दक्षिण भारत के लोगों के साथ मेरे बहुत अजीब से रिश्ते बन गए हैं. जब मैंने हिंदी फिल्म साइन की थी,तो इसकी खबर मिलते ही वहां के लोगों और वहां के फिल्मकारों ने बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मेरी फेसबुक पर लिखी. मुझे फेसबुक पर दो लाख लोग लाइक करते हैं. दक्षिण भारत के दर्शक मुझे अपना बच्चा मानते हैं. मैंने तो वहां पर काम करते हुए अभिनय सीखा. मैं तो अपनी गलतियों से सीखता चला गया. दक्षिण भारत के दर्षकों ने मुझे ग्रो होते हुए देखा है. मुझे लगता है कि मुझे वहां एक परिवार मिल गया है.मैं हर फिल्म में काम करते हुए सोचता हूं कि मैं ऐसा काम करूं कि जो लोग मेरी फिल्म देखें,कहें कि मैंने अच्छा काम किया.’’

इस साल बौलीवुड में हर्षवर्धन राणे के अलावा अनिल कपूर के बेटे व सोनम कपूर के भाई हर्षवर्धन कपूर भी कदम रख रहे हैं. हर्षवर्धन कपूर को राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में रोमांटिक किरदार में चुना है. ऐसे में हर्षवर्धन राणे खुद को कितना असुरक्षित महसूस करते हैं? इस सवाल के जवाब में हर्षवर्धन राणे बड़े आत्मविश्वास के साथ कहते हैं-‘‘जी हूं! इस साल बालीवुड में दो हर्षवर्धन आ रहे हैं. एक मैं हूं और एक अनिल कपूर के बेटे हर्ष वर्धन कपूर हैं. उन्हें जब से राकेश ओम प्रकाश मेहरा फिल्म ‘मिर्जिया’ दी है, तभी से बौलीवुड ने उन्हें अपना बना लिया है. मैं चाहता हूं कि मेरी फिल्म रिलीज के बाद लोग मेरी भी फिल्म की चर्चा करें. बौलीवुड के लोग मुझे भी अपना प्यार दें.’’

 

 

क्या शुरू होगा रीमेक फिल्मों का नया दौर

बौलीवुड में कुछ फिल्मों के रीमेक हो चुके हैं, इनमें से कुछ सफल तो कुछ असफल रहे हैं. पर सूत्रों के अनुसार रीमेक फिल्मों का नया दौर जोर शोर से शुरू होने वाला है. सूत्रों के अनुसार बौलीवुड से लंबे समय से जुड़े हुए दीपक मुकुट अब एक बार फिर सक्रिय हो रहे हैं. दीपक मुकुट ने अतीत में कई बड़े बड़े स्टार कलाकारों के साथ फिल्में बनायी थी. वह मशहूर वितरक व एक्जीबीटर भी रहे हैं. अभी भी वह बहुत बड़े फिल्म एक्जीबीटर हैं. बीच में वह फिल्म निर्माण करने की बजाय टीवी सीरियलों के निर्माण व सेटेलाइट चैनलों के साथ जुड़ गए थे.

कुछ वर्षों तक उन्होने सेटेलाइट चैनलों के लिए फिल्मों की खरीद फरोख्त का भी काम किया. पर विनय सप्रू व राधिका राव निर्देशित फिल्म ‘‘सनम तेरी कसम’’ से दीपक मुकुट एक बार फिर फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कूदे हैं. सूत्र बताते हैं कि अब दीपक मुकुट हर साल तीन उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण करना चाहते हैं.

इसी सिलसिले में जब हमने  दीपक मुकुट से उनकी भविष्य की योजनाओं पर बात की, तो दीपक मुकुट ने कहा-‘‘हमारा फिल्म इंडस्ट्री का बहुत लंबा अनुभव रहा है. मेरे पिता कमल मुकुट जी भी फिल्मों से जुड़े रहे हैं. हमने एक ही बात सीखी है कि करना है, तो कुछ अच्छा करो, अन्यथा न करो. हमने वही कोशिश फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ में की है. यह एक साफ सुथरी संजीदा पारिवारिक तथा संगीतमय प्रेम कहानी वाली फिल्म है. इस साल हम तीन फिल्मों के निर्माण की घोषणा करने वाले हैं. हम पहले भी फिल्में बनाते रहे हैं. मैने पहले दूरदर्शन, ‘जीटीवी’ व ‘बी फार यू’ सहित कई चैनलों के लिए टीवी सीरियल बनाए हैं. हमने सेटेलाइट चैनलों के लिए फिल्मों की मार्केटिंग भी की है.

फिर मैं सेटेलाइट बिजनेस में चला गया. कई सेटेलाइट चैनलों के लिए ट्रेडिंग की है. आज मेरे पास 125 फिल्मों की नगेटिब और उनके अधिकार हैं. मैं इन फिल्मों के रीमेक बनाने वाला हूं. मेरे पास अपनी खुद की भी कुछ फिल्में हैं, जिनका रीमेक बनाना चाहता हूं. ‘‘चमेली की शादी’’, ‘‘नायक’, ‘‘बीस साल बाद’’, ‘‘सुरक्षा’’ के रीमेक बनाने के लिए काम शुरू कर चुका हूं. मैं हर साल कम से कम तीन बेहतरीन फिल्में बनाना चाहता हूं. अच्छा सिनेमा देना चाहता हॅू. ‘वैल्यू फार मनी ’में यकीन करता हूं. मैं खुद भी सिनेमा का पुराना दर्शक हूं.’’

दीपक मुकुट उन फिल्मकारों में से हैं, जो कि ‘ग्रैंड मस्ती’, ‘क्या सुपर कूल हैं हम 3’’ या ‘‘मस्तीजादे’’ जैसी फिल्मों के समर्थक नहीं है. दीपक मुकुट कहते हैं-‘‘मैं ऐसी फिल्मों का पक्षधार नहीं हूं. आज कुछ फिल्में पार्न कामेडी या सेक्स कामेडी या एडल्ट कामेडी के प्रचार के साथ रिलीज हो रही हैं. वह गलत है. हो सकता है कि इन फिल्मों को कुछ दर्शक मिल रहे हों, पर यह कहना कि हर दर्शक ऐसी फिल्में देखना चाहता है, पूरी तरह से गलत है. ऐसी फिल्मों की हर इंसान तारीफ भी नहीं करता है.’’

‘नीरजा’ के लिए भाइयों ने नहीं लिया पैसा

नीरजा भनोट के बलिदान पर बनी फिल्म नीरजा के लिए नीरजा के भाई अखिल और अनीष भनोट ने यह साफ किया है कि उन्होंने अपनी बहन पर बनी बायोपिक फिल्म नीरजा के लिए एक भी पैसा बतौप फीस या किसी प्रकार की रॉयल्टी नहीं ली है.

बॉलीवुड के इतिहास में यह पहली बार होगा कि किसी बायोपिक कैरेक्टर के रिलेटिव ने मुफ्त में फिल्म बनाने दी है. तीन साल पहले आई फिल्म भाग मिल्खा भाग याद है न ! इसी के दौरान मिल्खा सिंह ने फिल्म के लिए 1 रुपए शगुन के तौर पर लेने की बात सामने आई थी. जो अपने आप में एक महान कृत्य था. इसी के बाद से ही लोगों को पता चला कि किसी व्यक्ति के जीवन पर बनने वाली फिल्म जिसे बायोपिक फिल्म कहा जाता है उस पर फिल्म निर्माताओं को अच्छी खासी रकम उनके परिजनों को देना होता है.

फिल्म से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जब नीरजा के बलिदान पर फिल्म बनाने की योजना को लेकर टीम नीरजा के दोनों भाई से मिली थी तो दोनों भावुक हो गए थे. अपनी वीरांगना बहन की कहानी को देश की कहानी बनने को लेकर वो काफी रोमांचित हो उठे. पर जैसे ही निर्माताओं ने कहानी पर फिल्म बनाने के लिए निश्चित रकम की पेशकश की तो उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि वे ऐसा कहकर नीरजा के बलिदान को छोटा कर रहे हैं.

नीरजा मिडिल क्लास फैमिली से थीं और उनके जाने के बाद उनके परिजनों का इस प्रकार का बर्ताव आज भी यह बताता है कि संस्कार अगर कहीं कूट-कूटकर भरे हैं तो सामान्य लोगों के परिवार में ही हैं. सूत्र यह भी बताते हैं कि नीरजा के बलिदान को लेकर उनके परिवार में एक अलग का गर्व देखने को मिलता है पर घमंड उन्हें रत्ती भर नहीं है. परिवार के हर सदस्य ने फिल्म के कंटेट, सीन को अपनी तरफ से हरी झंडी दे दी है.

फिल्म के निर्माताओं का कहना है कि नीरजा भनोट की कहानी अभी तक चंद लोगों तक ही सीमित थी. लेकिन फिल्म के रिलीज होने साथ ही देश का हर बच्चा-बच्चा नीरजा की दिलेरी की दास्तां से वाकिफ होगा. और वाकिफ हो भी क्यों नहीं. जिस युवती ने अपनी जान की बाजी लगाकर 359 लोगों की जान बचाई हो. जिसके लिए उसे न तो ट्रेनिंग दी गई थी और न ही कोई हथियार. वो तो बस पैमएम की फ्लाइट की क्रू मेंबर थी. उसके बाकी के साथी मुसीबत के समय में उसका साथ छोड़कर भाग गए. ऐसे में उनकी शहादत पर पूरे देश को नाज़ होना बनता है.

फिल्म के निर्माता प्रसिद्ध फोटोग्राफर अतुल कासबेकर और निर्देशक राम माधवानी हैं. फिल्म 19 फरवरी को रिलीज होने वाली है.

रूममेट्स के साथ तालमेल जरूरी

जब हम गांवों से किसी बड़े शहर में आते हैं तो हमारे पास सपनों और इच्छाओं के सिवा कुछ नहीं होता. एक नए शहर में आ कर सपनों को साकार करने की कोशिश में सब से पहले हमें एक सुरक्षित आशियाने की तलाश रहती है. पर शहरों की बढ़ती आबादी ने एक ठिकाने की तलाश को न केवल मुश्किल बना दिया है बल्कि महंगा भी कर दिया है. यही वजह है कि एक ही फ्लैट या कमरे को 3-4 लोग मिल कर शेयर करते देखे जा सकते हैं.

जरूरी नहीं कि वे सब आपस में एकदूसरे को पहले से ही जानते हों. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे हम स्कूल या कालेज के होस्टल में रहते थे, बस, फर्क इतना है कि कालेज के होस्टल की जिम्मेदारी वार्डन पर होती थी जबकि यहां हमें रहने और खाने की जिम्मेदारी खुद उठानी होती है. ग्रुप में रहने का यह तरीका न केवल सस्ता है बल्कि हमारी कई तरह की परेशानियों का हल भी है.

ग्रुप में युवकयुवतियां या केवल युवतियां या फिर केवल युवक भी हो सकते हैं. ये अलगअलग शहरों या प्रदेशों से आए हुए अलगअलग धर्म, संस्कृति या भाषा के भी हो सकते हैं. आपसी समझदारी और सामंजस्य के साथ शहरों में युवा अपने सपनों को साकार करने में जुट जाते हैं.

यहां मुश्किल तब आती है जब हम अपनी पुरानी आदतों से पीछा नहीं छुड़ा पाते और दूसरे दोस्तों के साथ सामंजस्य बैठाने में असमर्थ रहते हैं. हमारे बीच की छोटीमोटी मतभिन्नता कब गंभीर रूप ले लेती है, पता ही नहीं चलता. इस का परिणाम यह होता है कि ग्रुप में लड़ाईझगड़े या मनमुटाव हो जाता है और फलत: ग्रुप टूट जाते हैं.

ऐसे में फिर से हमें एक नए शहर में आने वाली मुसीबतों से दोचार होना पड़ता है. तो क्यों न हम ऐसी स्थिति आने से पहले ही यथार्थ को समझते हुए थोड़ी सी समझदारी दिखाएं और अपने रूममेट्स के साथ तालमेल बना कर रखें. यहां दी गई बातों पर अमल कर आप अपने रूममेट्स के साथ तालमेल बना सकते हैं :

– अगर फ्लैट में 2 कमरे हैं तो आप अलगअलग रूम में रह सकते हैं, लेकिन एक ही कमरा होने पर स्थान की कमी हो जाती है, जिस से सबकुछ व्यवस्थित रखना पड़ता है. ऐसे में ‘यह मेरा सामान है, फैला रहने दो’ जैसी बातें बोल कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह न मोड़ें.- अगर आप ने रूम में साफसफाई के लिए कोई सहायक नहीं रखा है तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि घर में किसी प्रकार की गंदगी न बिखेरें. कम से कम अपने आसपास की सफाई जरूर कर लें. इस से आप के सफाई पसंद दोस्त को अच्छा लगेगा. वीकेंड पर आप सभी मिल कर किचन, बाथरूम जैसी जगहों को साफ कर सकते हैं. यह रूम में रहने वाले किसी एक मैंबर की जिम्मेदारी नहीं है कि वही सफाई पर ध्यान दे.

– इसी तरह घर की छोटीमोटी जिम्मेदारियों में अपना सहयोग देने के लिए सहर्ष तैयार रहें. आप की टालमटोल की आदत आप के सहयोगियों को नापसंद हो सकती है. वैसे भी सब्जी, दूध, राशन आदि लाने जैसे काम किसी एक के भरोसे न छोड़ें.

– अगर आप थोड़े लापरवाह हैं तो इस की सजा अपने दोस्तों को न दें. लापरवाही तो सभी करते हैं जैसे प्रैस, टीवी, कंप्यूटर चलता छोड़ देना, सुबह बिस्तर से उठने के बाद लाइट या पंखा बंद न करना, रात को गेट का दरवाजा बंद न करना जैसी बहुत सी छोटीमोटी जिम्मेदारियां हैं जिन्हें आप ने घर में भले ही न किया हो पर यहां नहीं चलेगा. वैसे भी अच्छी आदतें सीखने की कोई उम्र नहीं होती. इन की आदत डालिए और तनाव से बचिए.

– रुपएपैसे भी रूममेट्स के साथ रिश्ते बिगाड़ देते हैं. इसलिए समय पर रूम का किराया या अन्य खर्च का हिसाब करते रहें. पैसों के मामले में खुल कर हिसाबकिताब करें. इस में संकोच की गुंजाइश बिलकुल न रखें. आप का रूम में रहने पर कितना खर्च हो सकता है यह जान कर ही आप रहने जाएं अन्यथा बाद में हो सकता है कि आप को नुकसान उठाना पड़े. हां, उधार देने के मामले में भी सतर्क रहें. अगर आप रूममेट्स को पहले से नहीं जानते तो उधार देने से बचें.

– आप जितने भी लोग एक जगह रह रहे हों, ध्यान रहे आपस में एकदूसरे की बुराई कदापि न करें. कोई भी बात, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, सब के सामने करें या रखें. अगर किसी की बात खटक रही हो तो आपस में बैठ कर इस का हल निकाला जा सकता है.

– अपने रूममेट्स की प्राइवेसी को सम्मान देना चाहिए. उन के हर पर्सनल मैटर को जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. अगर आप का दोस्त जरूरी समझेगा तो बता देगा. दूसरी बात अपने रूममेट्स की पर्सनल बातें किसी तीसरे तक न पहुंचाएं. ऐसा करना कई बार झगड़े की वजह बन जाता है.

 रूममेट्स के आने वाले दोस्तों या रिश्तेदारों से सही ढंग से पेश आना चाहिए. अगर रूममेट्स के रिश्तेदार या दोस्त अधिक आते हैं या परेशान करते हैं तो इस पर खुल कर बात करनी चाहिए. इस में शर्माने जैसी कोई बात नहीं है, क्योंकि यह घर आप का भी है.

– जब आप के रूममेट्स अलग धर्म और प्रदेशों से संबंध रखते हों तो उन का रहनसहन भी आप से भिन्न होगा ही. इसे इश्यू नहीं बनाना चाहिए. किसी के रीतिरिवाज, भाषा, सभ्यता और संस्कृति को ले कर मजाक या कमैंट पास नहीं करना चाहिए. दूसरों को आप के इस व्यवहार से ठेस पहुंच सकती है.

 अपने रूममेट्स के साथ एक स्वस्थ रिश्ता विकसित करने के लिए उन के दुखदर्द में सहयोगी बनना चाहिए. एकदूसरे को हमेशा इमोशनल सपोर्ट देते रहना चाहिए. अधिकतर अपना घर छोड़ कर काम के सिलसिले में दूसरे शहरों में रहने आते हैं, ऐसे में रूममेट्स में आपसी स्नेह होना जरूरी है. समय पर एकदूसरे के काम आना आप के रिश्तों को मजबूत करेगा और यह रूममेट्स से शुरू हुआ रिश्ता जीवन भर की दोस्ती के रिश्ते में भी बदल सकता है.   

नाइट शिफ्ट: सुरक्षित वातावरण जरूरी

आज कड़ी प्रतियोगिता का दौर है. ऐसे में उस का असर हर क्षेत्र पर पड़ना लाजिमी है, फिर चाहे वह मनोरंजन हो या जौब. नतीजा, कल तक जो नौकरी सुबह के 9 से शाम 5 बजे की होती थी आज देर रात से शुरू हो कर सुबह तक चलती है, खासकर कौरपोरेट, एमएनसी, आईटी व बीपोओ सैक्टर में. ऐसे में स्वास्थ्य के साथसाथ और भी कई तरह की समस्याएं सामने आती हैं. ये समस्याएं न सिर्फ युवतियों के लिए बल्कि युवकों के लिए भी परेशानी का सबब बनती हैं. हां, यह बात अलग है कि युवकों की अपेक्षा युवतियों के लिए सुरक्षा का सवाल कहीं ज्यादा होता है.

कई साल पहले बेंगलुरु में एक बीपीओ में काम करने वाली युवती की इज्जत को कैब ड्राइवर ने तारतार कर दिया. बेंगलुरु ही क्यों, राजधानी दिल्ली में भी कई ऐसी वारदातों को कैब ड्राइवर अंजाम दे चुके हैं. अत: नाइट शिफ्ट में सब से जरूरी है सुरक्षा का खास ध्यान रखना. ऐसे में आप को निम्न पहलुओं को ध्यान में रखना होगा :

– जहां तक हो सके एकल वातावरण में काम न करें. एकल वातावरण से मतलब ऐसे औफिस में जहां युवतियों की संख्या युवकों के मुकाबले कम हो या फिर न के बराबर हो. नाइट शिफ्ट में काम करते समय हमेशा गरिमापूर्ण कपड़े पहनें.

– नाइट शिफ्ट में किस मानसिकता के सहयोगी आप के साथ काम करते हैं, उन का रवैया कैसा है, यह समझना भी जरूरी है. अगर आप को उन के व्यवहार पर शक है तो इस की वजह से मन ही मन घुटने के बजाय अपने सहयोगी को बताएं.

नाइट शिफ्टकर्मियों को आमतौर पर पिकअप और ड्रौपिंग की सुविधा मिलती है, ऐसे में आप को विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है. वैसे तो नई गाइडलाइंस में इस बात की सख्त हिदायत दी गई है कि पिकअप और ड्रौपिंग के समय पहले और आखिर में कोई युवती नहीं होगी. मतलब ड्राइवर किसी भी युवती का पहले पिकअप नहीं कर सकता है और न ही सब से आखिर में ड्रौप करेगा. उस से पहले कैब में कोई पुरुष कर्मचारी जरूर होना चाहिए, साथ ही कंपनी की तरफ से एक सुरक्षागार्ड भी होगा. बावजूद इस के आप को अपनी सेफ्टी के लिए मानसिक स्तर पर हमेशा तैयार रहना चाहिए.

ड्राइवर यदि नियमों का पालन नहीं करता या फिर आनाकानी करता है तो इस की सूचना आप अपने औफिस में देना न भूलें.

कैब ड्राइवर से ज्यादा दोस्ती न गांठें और न ही उस से उखड़ेउखड़े रहें. बहुत से हादसों के जिम्मेवार सिर्फ कैब ड्राइवर ही होते हैं.

अपने मोबाइल में पुलिस कंट्रोलरूम और निकटवर्ती थाने का नंबर अवश्य रखें. औफिस में कार्यरत सहयोगियों के नंबर्स भी आप के पास होने चाहिए. आजकल कई ऐसे मोबाइल ऐप आ गए हैं जो खासतौर से महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं. इन ऐप्स को अपने मोबाइल में डाउनलोड कर के रखें.

घर से औफिस के रूट की जानकारी जरूर रखें. ऐसी कैब का चुनाव कभी न करें जो आप को घर से दूर ही ड्रौप कर देती है.

नाइट शिफ्ट के दौरान होने वाली पार्टी से बचें. अगर नहीं बच सकती तो पहले अपनी सुरक्षा को ले कर निश्चिंत हो लें, तभी पार्टी अटैंड करें.

पार्टी के दौरान ड्रिंक्स को ले कर खासतौर से सजग रहें. ड्रिंक्स में नशा मिलाना सब से आसान है.

बेशक आप के इर्दगिर्द सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम ही क्यों न हो, फिर भी अपने पर्स में छोटेमोटे औजार, मिर्च पाउडर आदि हमेशा रखें ताकि हमलावर पर तत्काल हमला किया जा सके.

मनोवैज्ञानिक जितेंद्र नागपाल कहते हैं कि कोई भी घटना अचानक नहीं होती, पहले से कुछ न कुछ प्रयोग जरूर किए जाते हैं. अत: जरा भी कहीं कुछ खटका लगे तो इग्नोर न करें बल्कि उस पर ऐक्शन लें और सतर्क रहें.

नाइट शिफ्ट व्यक्तिगत अनुभव

बिगड़ता है स्वास्थ्य

मैं एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी टीसीएस में बतौर सौफ्टवेयर इंजीनियर 5 साल नाइट शिफ्ट में काम कर चुका हूं. नाइट शिफ्ट में काम करना वाकई कष्टदायक अनुभव रहा है. रात की शिफ्ट में काम करने के बाद मैं पूरा दिन इसी प्रयास में रहता कि मुझे अच्छी नींद आ जाए और रात को कोशिश यह होती कि मुझे  नींद न आए ताकि मैं ठीक से अपना काम कर सकूं.

लेकिन मेरे लिए दिन में सोना उतना ही कठिन था जितना कि रात को जागना.

ऐसे में मुझे अकसर ऐसा लगता कि मैं पूरे हफ्ते ठीक से कभी सो ही नहीं पाया हूं. नतीजा, अपनेआप को कभी फ्रैश फील नहीं कर पाता था और हमेशा चिड़चिड़ापन रहता. दिन में सोने के दौरान घर में या फिर आसपास अगर कोई कुछ कर रहा होता तो उस की वजह से नींद में बारबार खलल पड़ता. नींद न आने के बावजूद घर में अकेले पड़े रहने की मजबूरी होती. इस दौरान मेरे सभी दोस्त औफिस में होते थे.

नाइट शिफ्ट में काम करने से मेरे स्वास्थ्य पर भी असर पड़ने लगा था. खाने व सोने का सही समय न होने के कारण  पेट भी खराब रहने लगा था. मैं बैचलर होने की वजह से बाहर ही खाना खाता था, लेकिन देर रात कैंटीन बंद होने की वजह से मुझे मजबूरन ठेले पर खाना पड़ता था, जहां शुद्धता का बिलकुल ध्यान नहीं रखा जाता. मेरे कई दोस्त तो रात में जागने के लिए स्मोकिंग वगैरा का सहारा लेते थे.

कई बार तो नाइट शिफ्ट में भी औफिस औवर्स बदल जाते और तब देर रात औफिस जाना होता. ऐसे में असुरक्षा का साया हमेशा मुझे परेशान करता था. कुल मिला कर नाइट शिफ्ट की जौब को मैं किसी भी लिहाज से सही नहीं समझता. इसी वजह से मैं ने उस कंपनी को बदलने में अपनी भलाई समझी.

    – विकास कुमार झा, सौफ्टवेयर इंजीनियर

नाकाफी होती है सुरक्षा

मैं पिछले 7 साल से आईटी सौफ्टवेयर में काम कर रही हूं. नाइट शिफ्ट में जौब की मुख्य परेशानी शारीरिक और मानसिक स्तर पर तो होती ही है, लेकिन सब से मुख्य परेशानी युवतियों के लिए सुरक्षा को ले कर है. वैसे तो नाइट शिफ्ट में कैब की सुविधा होती है और उस में एक सुरक्षागार्ड भी मुहैया करवाया जाता है, लेकिन युवतियों की सुरक्षा के लिए यह काफी नहीं है और न ही युवतियां किसी भी लिहाज से इन के भरोसे खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं. वजह यह है कि न तो इन गार्ड्स को किसी भी आपातस्थिति से निबटने के लिए किसी किस्म की ट्रेनिंग दी जाती है और न ही सुरक्षा के लिए इन के पास कोई हथियार होता है, सिवा एक डंडे को छोड़ कर.

कुल मिला कर युवतियों की सुरक्षा न के बराबर ही होती है. तो अगर आप नाइट शिफ्ट में काम कर रही हैं तो आप को अपनी सुरक्षा अपने स्तर से करने के लिए हमेशा तैयार रहना होगा.

दूसरी मुख्य समस्या छुट्टियों को ले कर होती है. नाइट शिफ्ट शाम 6 बजे से शुरू हो कर सुबह 3-4 बजे तक होती है. अगर आप नाइट शिफ्ट कर रहे हैं तो आप को केवल 3 छुट्टियां ही मिलती हैं, गांधी जयंती, 26 जनवरी और 15 अगस्त. तमाम इंडियन फैस्टिवल्स को तो आप भूल जाइए. हालांकि नाइट शिफ्ट के दौरान प्रति शिफ्ट आप को ज्यादा पैसे मिलते हैं, लेकिन वह पैसे आप की दवा और बीमारी में कब लग जाते हैं आप को पता भी नहीं चलता.

– इंदु गौतम, आईटी सौफ्टवेयर

वाराणसी: वरुणा और अस्सी नदियों की कहानी

वाराणसी का पौराणिक नाम ‘काशी’ है. किंतु वर्तमान नाम ‘वाराणसी’ यहां की वरुणा और अस्सी नदियों पर रखा गया है. इसे बनारस नाम अंगरेजों के शासनकाल में दिया गया. गंगा नदी के पश्चिमी किनारे पर अर्द्धचंद्राकार में बसे इस शहर में इतने घाट बने हैं कि इसे घाटों का शहर भी कहा जाता है. दरअसल, यहां का हर घाट पंडों की कमाई का जरिया है जो मोक्ष और गंगा मैया के नाम पर दानदक्षिणा के रूप में भीख मांगते नजर आते हैं. सैलानियों को यहां के पंडों से बच कर सुबह के समय गंगा की खूबसूरती का मजा लेना चाहिए. यहां का कत्थक नृत्य घराना संगीत की दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखता है.  बनारसी साड़ी अपनी चमक व डिजाइन के लिए देशभर में काफी लोकप्रिय है.

दर्शनीय स्थल

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय : लगभग 200 एकड़ क्षेत्र में फैले इस विश्वविद्यालय की स्थापना पंडित मदनमोहन मालवीय ने की थी, जिस के मूल में मुख्यत: संस्कृत, भारतीय कला की शिक्षा का उद्देश्य था. लेकिन आजकल यहां हर विषय पढ़ाया जाता है. यह भारत का सब से बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय भी है.

सारनाथ : वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर सारनाथ एक बौद्ध स्थल है. यह बनारसगाजीपुर मार्ग पर स्थित है. यहां पर सम्राट अशोक के शासनकाल में बनाए गए अनेक स्तूप हैं. अशोक ने यहां एक स्तूप बनवाया था. इस स्तूप के समीप खंभे का निर्माण करवाया था जिस पर 4 शेर बने हुए हैं, जो आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न है.

सारनाथ संग्रहालय : सारनाथ में एक पुरातात्त्विक संग्रहालय भी है जहां बुद्ध की प्रतिमाएं और शिलालेख रखे हुए हैं. यहां पर प्राचीन काल के बरतन कुछ बेहतरीन चित्र, बौद्ध धर्म की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का चित्रण मौजूद है. यहां गुप्त काल का सब से बड़ा संग्रह मौजूद है.

काशी विश्वनाथ मंदिर : इस मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहल्याबाई होल्कर ने 1717 में करवाया था. दशाश्वमेघ घाट के पास यह मंदिर एक संकरी गली में स्थित है.

भारत माता मंदिर : भारत माता को समर्पित यह बनारस का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां देवीदेवताओं की मूर्तियां मौजूद नहीं हैं. इस मंदिर में भारत का मानचित्र उकेरा गया है. एकमात्र ऐसा मंदिर होने के कारण पर्यटक इस की ओर खिंचे चले आते हैं.

घाट : बनारस के घाट पर्यटन स्थलों में प्रमुख स्थान रखते हैं. शाम-ए-अवध और सुबह-ए-बनारस का जवाब नहीं. बनारस का जीवन गंगा किनारे स्थित 100 से भी ज्यादा घाटों के इर्दगिर्द घूमता नजर आता है. सूर्य की पहली किरण जब अपना आंचल लहराती है तो इन घाटों की खूबसूरती देखते बनती है.        

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