Download App

विकलांग दलित प्रोफैसर जी एन साईबाबा आखिर किस जुर्म की सजा भुगत रहे हैं

अगर आप के विचारों को सब न मानें तो वे देशद्रोही हो जाएंगे? अगर ऐसा होगा तो जानवरों और इंसानों में फर्क क्या बचेगा. बिरसा मुंडा और भगत सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत से लड़ाई लड़ी थी तो क्या भगत सिंह भी गद्दार हो गए. समाज पत्थर की तरह रुका नहीं होता, वह बदलता रहता है.

और जब से बीजेपी की सरकार बनी है, एकएक संगठन को निशाना बनाया जा रहा है. अभी एक झूठे एनकाउन्टर में लोगों को मारा गया और एक फैक्ट फाइंडिंग टीम के वहां पहुंचने से ही पहले उसे गिरफ्तार कर लिया गया. दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कालेज में स्टूडैंट्स और टीचर्स को मारापीटा गया. ये मेरे पति के ज्ञान से डरते हैं. ब्लास्ट के आरोपी स्वामी असीमानंद को तो आप ने निर्दोष करार दे दिया. केंद्र और राज्य सरकार मल्टीनैशनल कंपनियों को आदिवासी क्षेत्र खनन के लिए देने को यह साजिश कर रही हैं.

आज से कोई 7 साल पहले यह और ऐसी बहुत सी बातें एक इंटरव्यू में वसंध कुमारी ने कहीं थीं. वसंध उन प्रोफैसर साईबाबा की पत्नी हैं जिन्हें हाल में ही बौंबे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने बरी किया है. उम्रकैद की सजा काट रहे प्रोफैसर साईबाबा को साल 2017 में गढ़चिरोली कोर्ट ने दोषी करार दिया था. उन पर और दूसरे 5 लोगों पर आरोप था कि वे प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी और उस के ग्रुप आरडीएफ यानी रिवोल्यूशनरी डैमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्य थे. इन पांचों महेश तिर्की, हेम मिश्रा, प्रशांत सांगलीकर, विजय तिर्की और पांडु नरोटे (जिन की मौत 22 अगस्त, 2022 को जेल में स्वाइन फ्लू से हो गई थी) को निचली अदालत ने यूएपीए के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई थी क्योंकि इन के कथित रूप से माओवादियों से संबंध थे. साईबाबा और दूसरे आरोपी हाईकोर्ट गए थे तो 14 अक्तूबर, 2022 को जस्टिस रोहित देव और अनिल पानसरे की बैंच ने सुनवाई के बाद अभियुक्तों को रिहा करने का आदेश दिया था.

कानूनी चक्रव्यूह में एक और अभिमन्यु

हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्रवाई को अमान्य बताते कहा था कि यूएपीए के तहत कार्रवाई के लिए जरूरी मंजूरी का अभाव था. अगले दिन ही महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. अपनी बेगुनाही और रिहाई की खुशी भी ये लोग नहीं मना पाए क्योंकि इन अभिमन्युओं के इर्दगिर्द कानूनी चक्रव्यूह रचा जा चुका था जिस में महाभारत का चक्रव्यूह रचने वाले गुरु द्रोणाचार्य के रोल में सिस्टम था. वही द्रोणाचार्य जिन्होंने अपने प्रिय क्षत्रिय शिष्य अर्जुन के लिए आदिवासी युवक एकलव्य का अंगूठा गुरुदक्षिणा के नाम पर झटक लिया था और बाद में अर्जुन के बेटे अभिमन्यु को ही मारने को कौरवों के कहने पर चक्रव्यूह बना दिया था. यानी, सिस्टम न द्वापर में किसी का सगा था न आज लोकतंत्र में है. वह दक्षिणापंथियों, सत्ताधीशों और षड्यंत्रकारियों की कठपुतली तब भी था और आज भी है.

तो 15 अक्तूबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने साईबाबा की रिहाई के आदेश पर रोक लगाते कहा था कि आरोपियों के खिलाफ आरोप गंभीर किस्म के हैं और हाईकोर्ट के फैसले की विस्तृत जांच की जरूरत है क्योंकि हाईकोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ गंभीर अपराध को देखते हुए मामले की मैरिट पर विचार नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों को नोटिस जारी करते हुए उन से जवाब मांगे थे. हाईकोर्ट से भी कहा गया था कि वह फिर से सुनवाई करे.

बौंबे हाईकोर्ट की जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मीकि एस ए मेनेजेस वाली नागपुर बैंच ने सुनवाई की और 5 मार्च, 2024 को इन आरोपियों को बरी कर दिया. इस बार कोर्ट ने कहा कि साईबाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति बिना दिमाग लगाए दे दी. अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में विफल रहा.
इस दौरान साईबाबा ने जो मानसिक यंत्रणाएं भुगतीं उन में एक यह भी शामिल थी कि उन की बीमार मां को देखने को भी उन्हें इजाजत नहीं मिली और उन का पैरालिसिस और बढ़ गया. उन के वकील और पत्नी बारबार उन्हें चिकत्सकीय सुविधाओं और इलाज की दरख्वास्त लगाते रहे जिन की कोई सुनवाई नहीं होनी थी, सो, नहीं हुई.
चक्रव्यूह की यह खूबी होती है उसे कोई तोड़ नहीं सकता. अब महाराष्ट्र सरकार फिर सुप्रीम कोर्ट चली गई है, फिर सुनवाई होगी और जाने कब क्या फैसला होगा. और जब कभी होगा भी तो जरूरी नहीं कि वह साईबाबा और दूसरे आरोपियों के हक में आए. और खुदा न ख्वास्ता आ भी गया तो ये लोग उस अपराध की सजा भुगत चुके हैं जो इन्होंने किया भी नहीं खासतौर से साईबाबा ने, जिन की जिंदगी ही एक सजा है क्योंकि वे वंचित तबके से हैं और उसी के भले के लिए एक जनून के तहत काम करते रहे थे. और यही उन का सब से बड़ा गुनाह था.

गुनाह साईबाबा के

दोटूक कहा जाए तो जी एन साईबाबा 47 सालों से एक नहीं, बल्कि कई उन गुनाहों की सजा एकसाथ भुगतते रहे हैं जो दरअसल उन्होंने कभी किए ही नहीं. उन का पहला गुनाह तो यही है कि वे एक ऐसे समुदाय में जन्मे जिसे सभ्य सवर्ण समाज हेय नजरों से देखता है. साईबाबा का दूसरा गुनाह यह है कि वे जन्म से 90 फीसदी विकलांग हैं, तीसरा गुनाह और भी संगीन कि वे इतने गरीब हैं कि जवानी तक अपने लिए व्हीलचेयर ही नहीं खरीद पाए. व्हीलचेयर भी वे साल 2003 में खरीद पाए थे जब कोचिंग के लिए दिल्ली गए थे, यहीं उन की मुलाकात वसंध कुमारी से हुई जो प्यार और फिर शादी में तबदील हुई.

आंध्रप्रदेश के एक गरीब किसान परिवार में जन्मे इस शख्स का अगला और सब से अहम गुनाह यह था कि इस ने शिक्षित होने की जुर्रत की और अपने दम पर डीयू में प्रोफैसरी हासिल कर ली.

चुपचाप नौकरी करते रहते तो साईबाबा से किसी को कोई तकलीफ न होती लेकिन वे दलित, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को जागरूक करने जैसा निकृष्ट काम कर रहे थे. इस बाबत वे 2 लाख किलोमीटर की यात्रा भी कर चुके थे, इसलिए वे यूपीए सरकार को भी अखर रहे थे और एनडीए सरकार की आंख की भी किरकिरी बन गए थे.
बकौल वसंध कुमारी, उन के इसी ज्ञान से दक्षिणपंथी भयभीत रहते थे. फिर एक दिन कुछ पुलिस वाले आए और उन्हें राष्ट्रद्रोह के आरोप में उठा कर ले गए. इस के बाद की संक्षिप्त रामायण ऊपर बताई जा चुकी है.

गिरफ्तारी के वक्त उन के पास से एक हार्ड डिस्क और कुछ कागजात, जिन्हें बाद में नक्सली साहित्य करार दिया गया, जब्त किए गए थे. जिस के बारे में 5 मार्च के फैसले में कोर्ट ने उदारतापूर्वक कहा कि नक्सली साहित्य पढ़ना कोई अपराध नहीं है. आरोपी नक्सली दर्शन के प्रति सहानुभूति रखते थे. इसे रखना यूएपीए के तहत अपराध का मामला नहीं बनता.

अब क्या होगा, कहा नहीं जा सकता लेकिन यह पूरे दावे और आत्मविश्वास से कहा जा सकता है कि इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूर एक जुमला बन कर रह गई है. सरकार को बोलने वालों से खास चिढ़ है. जो बोलता है उस का मुंह कैसेकैसे बंद किया जाता है, इस के सैकड़ोंहजारों उदाहरण मौजूद हैं.

ताजाताजा मामला निताशा कौल का है जो इत्तफाक से साईबाबा की तरह प्रोफैसर हैं. वे बेंगलुरु एक कौन्फ्रैंस में शिरकत करने ब्रिटेन से आई थीं. लेकिन केंद्र सरकार के इशारे पर उन्हें एयरपोर्ट पर ही रोक लिया गया था और 24 घंटे होल्डिंग सैल में लटकाएअटकाए रखा गया था. इस मामले पर रिपोर्ट आप इसी वैबसाइट पर पढ़ सकते हैं. शीर्षक है- ‘निताशा कौल से दक्षिणपंथी और सत्तावादी को डर क्यों?’.

ये सत्तावादी हर उस शख्स से डरते हैं जो धार्मिक शोषण की पोल खोलता है कि कैसे धर्मग्रंथों को हथियार बना कर कल के शूद्रों यानी आज के दलित, आदिवासी, पिछड़ों को गुलाम बनाए रखा गया, उन पर तरहतरह के जुल्म ढाए गए, उन की औरतों का बलात्कार किया गया, उन्हें शिक्षित नहीं होने दिया गया, उन्हें खेतों में बैलों की तरह जोता व भूखा रखा गया, ठाकुर का कुआं की तर्ज पर उन्हें पानी तक नहीं पीने दिया गया, उन की नंगी पीठ पर जबतब कोड़े बरसाए गए वगैरहवगैरह.

यह सब आज भी जारी है जिस पर कोई साईबाबा या निताशा कौल बोलते हैं तो उन्हें बोलने नहीं दिया जाता. इस पर भी वे नहीं मानते तो आज के धर्मग्रंथों यानी देशद्रोह टाइप के निरर्थक कानूनों की आड़ में सालों जेल में सड़ा दिया जाता है जिस से उन की हिम्मत तो टूटे ही, साथ ही, दूसरा कोई इस ट्रैक पर चलने की सोचे भी न.

मुझे 2 बार यूटीआई हो गया है, मेरी समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

सवाल
मेरी शादी को कुछ ही महीने हुए हैं. मुझे 2 बार यूटीआई हो गया है. मेरी समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

जवाब
शादी के बाद नयानया सैक्सुअल इंटरकोर्स होता है, इसलिए संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. जो महिलाएं नियमित यौन संबंध बनाती हैं, उस से ज्यादा संख्या में बैक्टीरिया ब्लैडर में चले जाते हैं. बारबार यौन संबंध बनाने से हुए संक्रमण को हनीमून सिस्टिरिस कहते हैं. अत: यौन संबंध बनाने के बाद यौन अंग को अच्छी तरह धो लें और यूरिन पास करें ताकि बैक्टीरिया शरीर से बाहर निकल जाएं. शारीरिक संबंध बनाने के बाद दर्द हो या फिर यूरिन पास करते समय जलन हो तो डाक्टर से संपर्क करें.

ये भी पढ़ें…

महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन का बढ़ता जोखिम

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन या यूटीआई (यह ट्रैक्ट शरीर से मुख्यरूप से किडनी, यूरेटर ब्लैडर और यूरेथरा से मूत्र निकालता है) एक प्रकार का विषाणुजनित संक्रमण है. यह ब्लैडर में होने वाला सब से सामान्य प्रकार का संक्रमण है लेकिन कई बार मरीजों को किडनी में गंभीर प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है जिसे पाइलोनफ्रिटिस कहते हैं.

यौनरूप से सक्रिय महिलाओं में यह अधिक होता है क्योंकि यूरेथरा सिर्फ 4 सैंटीमीटर लंबा होता है और जीवाणु के पास ब्लैडर के बाहर से ले कर भीतर तक घूमने के लिए इतनी ही जगह होती है. डायबिटीज होने से मरीजों में यूटीआई होने का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है.

डायबिटीज से बढ़ता है जोखिम

–     डायबिटीज के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है, इसलिए शरीर जीवाणुओं, विषाणुओं और फुंगी से मुकाबला करने में अक्षम हो जाता है. इस वजह से डायबिटीज से पीडि़त मरीजों को अकसर ऐसे जीवाणुओं की वजह से यूटीआई हो जाता है. इस में सामान्य एंटीबायोटिक काम नहीं आते हैं.

–     लंबी अवधि की डायबिटीज ब्लैडर को आपूर्ति करने वाली नसों को प्रभावित कर सकती है जिस की वजह से ब्लैडर की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं जो यूरिनरी सिस्टम के बीच सिग्नल को प्रभावित कर ब्लैडर को खाली होने से रोक सकती हैं. परिणामस्वरूप, मूत्र पूरी तरह से नहीं निकल पाता है और इस की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

–     मेटाबोलिक नियंत्रण खराब होने से डायबिटीज से पीडि़त मरीज में किसी प्रकार के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है.

–     कुछ नई एंटीडायबिटीक दवाओं की वजह से मामूली यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन हो सकता है.

क्या हैं लक्षण

लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

–     पेशाब करते हुए दर्द होना.

–     पेशाब में जलन महसूस होना.

–     तत्काल पेशाब करने की जरूरत महसूस होना.

–     असमंजस.

–     क्लाउडी यूरिन.

–     पेशाब में से अजीब सी बदबू आना.

–     पेशाब में खून.

–     पेट के निचले हिस्से में दर्द.

–     पीठ में दर्द.

अपर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

–     सर्दी के साथ तेज बुखार.

–     उलटी होना.

–     पेट के निचले हिस्से में दर्द.

–     बगल में दर्द.

आमतौर पर इन लक्षणों का मतलब होता है कि संक्रमण किडनी तकपहुंच चुका है. इस गंभीर समस्या से नजात पाने के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत हो सकती है. तत्काल उपचार से लक्षणों से भी छुटकारा मिल सकता है और संक्रमण के फैलने से भी बचा जा सकता है. कई दुर्लभ मामलों में यूटीआई की वजह से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे किडनी को नुकसान या फिर किडनी फेल होना. यूटीआई का पता लगाने के लिए बैक्टीरिया और पस के लिए एक अत्यंत साधारण मूत्र परीक्षण काफी है. एंटीबायोटिक को ले कर संवेदनशीलता के लिए यूरिन कल्चर, पेट का अल्ट्रासाउंड और गंभीर मामलों में सीटी स्कैन किया जाता है.

उपचार

लोअर यूटीआई, जो जटिल नहीं होता है, का उपचार बाहरी रोगी के तौर पर ओरल एंटीबायोटिक के साथ डाक्टर की उचित देखरेख में किया जा सकता है. कोई भी रेनल या कार्डिएक बीमारी न होने पर विभिन्न प्रकार के ओरल फ्लुइड्स लेने की सलाह दी जा सकती है. उपचार करने वाले डाकटर की अनुमति से दर्द में राहत देने वाली सुरक्षित दवाएं दी जा सकती हैं. दर्दनिवारक दवाओं से आमतौर पर बचना चाहिए क्योंकि इन से किडनी को नुकसान हो सकता है.

जटिल यानी अपर यूटीआई के लिए अस्पताल में भरती होने के साथ लंबे समय तक एंटीबायोटिक लेनी पड़ती है.

पौलीस्टिक ओवरियन सिंड्रोम और डायबिटीज का संबंध

यह ऐसी परिस्थिति है जो बच्चे पैदा करने की उम्र की महिलाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है जहां उन के अंडाशय की सतह पर असामान्य छोटे दर्दरहित सिस्ट होते हैं. इस के अलावा उन में असामान्यरूप से अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरौन होते हैं और अन्य हार्मोन का असामान्य अनुपात होता है जिस के परिणामस्वरूप शरीर में इंसुलिन की मात्रा उच्च होने के साथ ही अनियमित मासिकचक्र होता है.

संकेत

–     अनियमित मासिकधर्म.

–     ओलिगोमेनोहोयिया यानी मासिकचक्र के दौरान कम रक्तस्राव.

–     चेहरे, छाती और निपल के पास अधिक बाल.

–     एक्ने.

–     बांझपन.

–     अधिक वजन.

कारक

इंसुलिन प्रतिरोध और वजन बढ़ना पौलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम यानी पीसीओएस के 2 प्रमुख कारक हैं. इंसुलिन प्रतिरोध की वजह से शरीर में सामान्य से अधिक इंसुलिन का उत्पादन होता है जिसे हाइपरइंसुलिनेमिया कहते हैं. अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से अंडाशय में अत्यधिक मात्रा में टेस्टोस्टेरौन होता है जिस की वजह से सामान्य अंडोत्सर्ग पैदा हो सकता है.

अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से वजन भी बढ़ सकता है जिसे टाइप 2 डायबिटीज और पीसीओएस से जोड़ा जा सकता है. पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कम उम्र में डायबिटीज होने का जोखिम चारगुना अधिक होता है.

पीसीओएस से पीडि़त कई मरीजों में मेटाबोलिक सिंड्रोम होते हैं जिन में पेट पर मोटापा, बैड कोलैस्ट्रौल सीरम ट्रिगलीसेराइड्स का बढ़ना, गुड कोलैस्ट्रौल का घटना, सीरम हाई डैंसिटी लिपोप्रोटिन और रक्तचाप बढ़ना शामिल हैं.

पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कोरोनरी आर्टरी कैल्शिफिकेशन और बढ़ा हुआ कैरोटिड इंटिमा की मोटाई देखने को मिलती है.

बचाव

–     जीवनशैली प्रबंधन, खाने पर ध्यान और व्यायाम करें.

–     वजन कम करें.

–     डाक्टर से सलाह कर इंसुलिन सैंसिटाइजर्स मैडिकेशन मेटफौर्मिन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

–     हार्मोनली मैडिकेशन.

जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस

जब गर्भवती मां में गर्भवती होने के दौरान पहली बार ग्लूकोज प्रतिरोध अनियमित पाया जाता है तो उसे जेस्टेशन डायबिटीज कहते हैं. ऐसी महिलाओं में भ्रूण द्वारा अधिक मात्रा में ग्लूकोज लेने के परिणामस्वरूप बड़े आकार के बच्चे को जन्म देने का जोखिम होता है. अधिक ब्लड ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित न करने पर नवजात बच्चे की मौत का खतरा बना रहता है.

जेस्टेशनल डायबिटीजका इलाज

–     औब्सेट्रेटीशियन की सलाह के साथ नियमित व्यायाम करें.

–     न्यूट्रीशनिस्ट के पास जाएं और कम कार्बोहाइड्रेट अनुपात वाला डाइट चार्ट बनवाएं.

–     हर दिन ब्लड ग्लूकोज का स्तर जांचें.

–     नियमितरूप से अपने डायबिटीज डाक्टर और औब्सेट्रेटीशियन से मिलें.

–     जरूरत पड़ने पर आप को इंसुलिन लेने की सलाह दी जा सकती है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान एंटी डायबिटीक दवाएं नहीं ली जा सकती हैं.

डिलीवरी के बाद क्या करें

–     जेस्टेशन डायबिटीज वाली महिलाओं में डायबिटीज होने का जोखिम सामान्य जेस्टेशन वाली महिलाओं के मुकाबले कम रहता है.

–     डिलीवरी के 6-12 हफ्तों बाद पोस्ट पारटम ओरल ग्लूकोज टौलरैंस किया जाना चाहिए और उस के बाद प्रत्येक 3 वर्षों में एक बार.

–     महिला को सख्त जीवनशैली का पालन अवश्य करना चाहिए और अपना वजन कम करने की कोशिश करनी चाहिए व बीएमआई बरकरार रखनी चाहिए.

–     नियमित एरोबिक और मांसपेशियों को मजबूती देने वाले व्यायाम अवश्य करने चाहिए.

–     महिलाओं में धूम्रपान अधिक नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि इस से इंसुलिन का स्तर बढ़ता है जिस से इंसुलिन प्रतिरोध पैदा होता है जिस के परिणामस्वरूप डायबिटीज बढ़ सकती है. या इस से ठीक उलट भी हो सकता है क्योंकि डायबिटीज से पीडि़त मरीज, जो धूम्रपान करता है, की बीमारी ठीक करना बहुत मुश्किल होता है.

–     धूम्रपान करने वाली महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले कार्डियोवैस्क्यूलर जटिलताएं विकसित होने का खतरा अधिक रहता है.

–     धूम्रपान करने वाली महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन का खतरा अधिक रहता है जिस की वजह से समय से रजोनिवृत्ति, हड्डियों में कमजोरी यानी ओस्टियोपोरोसिस जैसी चीजें हो सकती हैं.

–     कुछ अध्ययन बताते हैं कि मासिकचक्र में अनियमितता, ओवरियन सिस्ट इंफर्टिलिटी धूम्रपान से जुड़ी हैं.

–     गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं में समय से पहले जन्म देने, अस्थानिक गर्भावस्था, मृतबच्चे का जन्म, बच्चे के कम वजन जैसे खतरे होते हैं.

यूटीआई से कैसे बचें

–     सख्त ग्लाइकैमिक नियंत्रण.

–     अगर कोई रेनल या कार्डिएक समस्या न हो तो अधिक मात्रा में तरल लें.

–     अच्छा जेनाइटल हाइजिन बनाए रखें.

–     सैनिटरी नैपकिंस को बारबार बदलें.

–     ब्लैडर को लगातार खाली करती रहें.

–     प्रसूति रोग विशेषज्ञ से चर्चा करने के बाद रजोनिवृत्त हो चुकी महिलाएं एस्ट्रोजेन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं.

–     यौनसंबंध बनाने के बाद उचित साफसफाई पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

–     यूटीआई का खतरा पैदा करने वाली एंटीडायबिटीक दवाओं के बारे में डायबिटीक विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लें.

–     लैक्स ब्लैडर का उपचार किया जाना चाहिए.

थायरायड और डायबिटीज

–     थायरायड विकार एक पैथोलौजिकल स्थिति है जो डायबिटीज नियंत्रण को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है और इस में मरीज के परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता होती है.

–     थायरायड बीमारी डायबिटीज के सब से सामान्यरूप में पाई जाती है और यह अधिक उम्र के साथ जुड़ी होती है. खासतौर पर टाइप 2 डायबिटीज और टाइप 1 डायबिटीज में औटोइम्यून बीमारियां जुड़ी होती हैं.

–     थायरायड विकार शरीर के मेटाबोलिक नियंत्रण को प्रभावित करता है और इसलिए ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित करना मुश्किल होता है.

–     थायरायड प्रोफाइल मरीजों को औटोइम्यूनिटी पर संशय होने पर थायरायड औटोएंटीबौडी की भी जांच करानी चाहिए.

–     ब्लड ग्लूकोज प्रबंधन के साथ उचित ढंग से नजर रखने के साथ ही थायरायड का उचित उपचार किया जाना चाहिए.

जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस की स्थिति में गर्भधारण के दौरान नवजात को जान का खतरा रहता है.

-डा. अमृता घोष, डा. अनूप मिश्रा, (फोर्टिस अस्पताल, दिल्ली)

प्रेगनेंसी में खट्टा खाएं मगर संभल कर

घर में खुशखबरी आने वाली हो तो मोहल्ले भर में मिठाई बंटती है, मगर खुशखबरी देने वाली का मन खट्टा खाने को मचलता रहता है. अजी, आते वक्त कच्चे आम लेते आना… अजी, बाजार से नींबू ला दो… अजी, आज अचार खाने का बड़ा मन कर रहा है… अजी ये सुन सुन कर आजिज आ जाते हैं, मगर दिल है कि मानता नहीं खट्टा खाने से.

प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादातर महिलाओं में खट्टी चीजें खाने की इच्छा बहुत बढ़ जाती है. दरअसल इस दौरान मां के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलवा इस इच्छा को बढ़ाते हैं. खाने-पीने की अन्य आदतों में भी इस दौरान बदलाव आ जाते हैं. कुछ चीजें जो पहले बहुत अच्छी लगती थीं, वह इस दौरान खाने का मन ही नहीं करता है और जो चीजें पहले नहीं खाते थे, उनके प्रति ललक बढ़ती है. प्रेग्नेंट महिला का मन जब किसी खास चीज को खाने का करता है तो उसे अंग्रेजी में क्रेविंग कहते हैं. ज्यादातर महिलाएं गर्भावस्था के दौरान ज्यादा चटपटा, मसालेदार खाना और चटनी-अचार जैसी चीजें खूब खाने लगती हैं. खट्टी चीजें और अचार आदि नुकसान तो नहीं पहुंचाते, मगर इन्हें सीमा में रह कर ही खाना चाहिए. आइये देखें कि खट्टी चीजें गर्भवती को क्या फायदा और क्या नुकसान पहुंचाती हैं:

मजबूत होती है प्रतिरक्षा प्रणाली

खट्टी चीजें जैसे नींबू, कच्चा आम, आंवला या अचार गर्भवती की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती हैं. गाजर के बने अचार में विटामिन्स, कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम और कई अन्य पोषक तत्व खूब होते हैं, जो गर्भवती के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं. लेकिन ध्यान रखें कि अचार-चटनी इत्यादि का अत्यधिक सेवन न करें. कोशिश करें कि बाजार का बना अचार तो बिल्कुल इस्तेमाल न करें, बल्कि घर पर ही गाजर, गोभी, कटहल, बीन्स आदि का अचार डाल लें और उसे ही खाएं. दिन में एक कच्चा आंवला खाना फायदेमंद है.

खाना आसानी से पचता है

अचार में कई तरह के मसाले पड़ते हैं, जैसे राई, हींग, कलौंजी, सौंफ आदि, जो गैस की समस्या को तो खत्म करते ही हैं, अचार में मौजूद बैक्टीरिया गर्भवती की आंत में पहुंच कर गुड बैक्टीरिया को बढ़ाने में मदद करता है. इससे पाचन तंत्र में सुधार होता है, खाना जल्दी और आसानी से पचता है और अपच व जलन की शिकायत दूर हो जाती है. गर्भ में पल रहे शिशु के अच्छे विकास के मां के शरीर में पोटैशियम, सोडियम जैसे खनिज तत्वों का बैलेंस बना रहना बहुत जरूरी होता है. अचार का सेवन शरीर में खनिज तत्वों का बैलेंस बनाए रखने में भी मदद करता है. यह मां और बच्चे दोनों के लिए अच्छा है.

लेकिन ध्यान रहे कि खट्टी चीजें या अचार इत्यादि एक लिमिट से ज्यादा नहीं खाने चाहिएं. यदि आप हर वक्त अचार, चूरन या खट्टी गोलियां खाती रहती हैं तो इससे आपके शरीर को और गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान भी हो सकता है. खट्टे की अधिकता से महिलाओं में निम्न समस्याएं देखी जाती हैं –

ब्लड प्रैशर

अचार, चूरन, खट्टी गोलियों आदि में नमक की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. अतिरिक्त सोडियम पेट में जाने से गर्भवती महिला को ब्लड प्रैशर की समस्या हो सकती है. यह मां के साथ गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी बहुत नुकसानदायक हो सकता है. इसकी वजह से मां को सिरदर्द, चक्कर, चिड़चिड़ाहट या कमजोरी जैसी समस्याएं होने लगती हैं. ब्लड प्रैशर बढ़ने से हार्ट पर असर पड़ता है. इससे पैल्पिटेशन और हार्टबीट बढ़ने की सम्भावना पैदा हो जाती है. इसलिए खट्टा खाएं मगर एक लिमिट में.

डिहाइड्रेशन

अचार, चटनी या खट्टी गोलियों में सोडियम की मात्रा अधिक होने की वजह से गर्भवती महिला को डिहाइड्रेशन की परेशानी हो सकती है. शरीर में जरूरत से ज्यादा नमक पहुंचने पर शरीर उससे मुक्ति पाने के लिए पसीने और मूत्र की मात्रा को बढ़ा देता है, ताकि इन माध्यमों से अतिरिक्त नमक शरीर से बाहर निकल जाएं, लेकिन इस वजह से बदन में पानी की कमी हो जाती है. शरीर में पानी की कमी का असर गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के साथ गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ सकता है. इसलिए अधिक नमक वाले खट्टे पदार्थाें का सेवन न करें. कुछ महिलाएं इन दिनों में कच्चे नींबू या कच्चे आम में नमक लगा-लगा कर खाती हैं, यह बहुत गलत है. हल्का सा नमक छिड़क कर खाना ही ठीक है. सफेद नमक की जगह काले नमक का इस्तेमाल फायदेमंद होता है.

सूजन

शरीर में पानी की कमी की वजह से गर्भवती स्त्री को बॉडी में सूजन की समस्या भी हो सकती है. दरअसल अचार आदि का अधिक सेवन करने पर बॉडी में सोडियम की मात्रा अधिक होने लगती है, जिससे गर्भवती महिला को शरीर में सूजन महसूस होने लगती है.

एसिडिटी

बाजाद में बिकने वाले अचार में कई तरह के एसिड और प्रिजरवेटिव्स डाले जाते हैं. इनका अधिक सेवन करने पर गर्भवती महिला को एसिडिटी, सीने में जलन जैसी परेशानियां पैदा हो सकती हैं. इसकी वजह से पाचन-तंत्र प्रभावित होता है और खाना ठीक से नहीं पचता. इस कारण बदनदर्द, बेचैनी, सिरदर्द, नींद की कमी जैसी समस्याएं मां को होने लगती हैं और इसका असर गर्भस्त शिशु पर बुरा पड़ता है.

इन बातों का  रखें ध्यान

  • प्रेग्नेंट महिलाओं को डिहाइड्रेशन से बचने के लिए अचार का सेवन करने के साथ पानी का सेवन भी भरपूर मात्रा में करना चाहिए.
  • बाजार के अचार-चटनी की जगह गर्भवती महिलाओं को घर में बने ताजे अचार-चटनी का सेवन करना चाहिए.
  • जिन गर्भवती महिलाओं को गैस की समस्या अधिक रहती है उन्हें अचार के सेवन से परहेज करना चाहिए.
  • अचार, चटनी आदि खाने के कारण यदि आपको किसी तरह की एलर्जी या गले में खराश-खांसी की समस्या हो जाती है तो खट्टी चीजों का सेवन न ही करें.

अपना अपना मापदंड

रिश्तोें को मापने का नजरिया हर इनसान का अलगअलग होता है. जरूरी नहीं कि यह नजरिया औरों के अनुकूल भी हो. रिश्तों को ले कर ऐसा ही कुछ अलग नजरिया था शुभा का.

अजय कुछ दिन से चुपचुप सा है. समझ नहीं पा रही हूं कि क्या वजह है. मैं मानती हूं कि 18-20 साल की उम्र संवेदनशील होती है, मगर यही संवेदनशीलता अजय की चुप्पी का कारण होगी यह मानने को मेरा दिल नहीं मान रहा. अजय हंसमुख है, सदा मस्त रहता है फिर उस के मन में ऐसा क्या है, जो उसे गुपचुप सा बनाता जा रहा है.

‘‘क्या अकेला बच्चा स्वार्थी हो जाता है, मां?’’

‘‘क्या मतलब…मैं समझी नहीं?’’

सब्जी काटतेकाटते मेरे हाथ रुक से गए. अजय हमारी इकलौती संतान है, क्या वह अपने ही बारे में पूछ रहा है?

‘‘मैं ने मनोविज्ञान की एक किताब में पढ़ा है कि जो इनसान अपने मांबाप की इकलौती संतान होता है वह बेहद स्वार्थी होता है. उस की सोच सिर्फ अपने आसपास घूमती है. वह किसी के साथ न अपनी चीजें बांटना चाहता है न अधिकार. उस की सोच का दायरा इतना संकुचित होता है कि वह सिर्फ अपने सुखदुख के बारे में ही सोचता है…’’ कहताकहता अजय तनिक रुक गया. उस ने गौर से मेरा चेहरा देखा तो मुझे लगा मानो वह कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो.

‘‘मां, आप भी तो उस दिन कह रही थीं न कि आज का इनसान इसीलिए इतना स्वार्थी होता जा रहा है क्योंकि वह अकेला है. घर में 2 बच्चों में अकसर 1 बहन 1 भाई होने लगा है और बहन के ससुराल जाने के बाद बेटा मांबाप की हर चीज का एकमात्र अधिकारी बन जाता है.’’

‘‘बड़ी गहरी बातें करने लगा है मेरा बच्चा,’’ हंस पड़ी मैं, ‘‘हां, यह भी सत्य है, हर संस्कार बच्चा घर से ही तो ग्रहण करता है. लेनादेना भी तभी आएगा उसे जब वह इस प्रक्रिया से गुजरेगा. देने का सुख क्या होता है, यह वह कैसे जान सकता है जिस ने कभी किसी को कुछ दिया ही नहीं.’’

‘‘तो फिर दादी आप से इतनी घृणा क्यों करती हैं? क्या आप उन का अपमान करती रही हैं? जिस का फल वह आप से नफरत कर के आप को देना चाहती हैं?’’

अवाक् रह गई मैं. अजय का सवाल कहां से कहां चला आया था. कुछ दिन पहले वह अपनी दादी के साथ रहने गया था. मैं चाहती तो बेटे को वहां जाने से रोक सकती थी क्योंकि जिस औरत ने कभी मुझ से प्यार नहीं किया वह मेरे खून से प्यार कैसे करेगी? फिर भी भेज दिया था. मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा मेरे कहने पर अपना व्यवहार निर्धारित करे.

20 साल का बच्चा इतना भी छोटा या नासमझ नहीं होता कि उसे रिश्तों के बारे में उंगली पकड़ कर चलाया जाए. रिश्तों की समझ उसे उन रिश्तों के साथ जी कर ही आए तो वही ज्यादा अच्छा है. अजय जितना मेरा है उतना ही वह अपनी दादी का भी है न.

‘‘मां, दादी तुम से इतनी नफरत क्यों करती हैं?’’ अजय ने अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘तुम दादी से ही पूछ लेते, यह सवाल मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’

हंस पड़ी मैं, यह सोच कर कि 3-4 दिन अपनी दादी के साथ रह कर मेरा बेटा यही बटोर पाया था. अब समझी मैं कि अजय इतना चुप क्यों है.

‘‘4 दिन मैं वहां रहा था मां. दादी ने जब भी आप से संबंधित कोई बात की उन की जबान की मिठास कड़वाहट में बदलती रही. एक बार भी उन के मुंह से आप का नाम नहीं सुना मैं ने. बूआ आईं तो उन्होंने भी आप के बारे में कुछ नहीं पूछा. पिछले दिनों आप अस्पताल में रहीं, आप का इतना बड़ा आपरेशन हुआ था. आप का हालचाल ही पूछ लेतीं एक बार.’’

‘‘तुम पूछते न उन से… पूछा क्यों नहीं…तुम्हारे पापा से भी मैं अकसर पूछती हूं पर वह भी कोई उत्तर नहीं देते. मुझे तो इतना ही समझ में आता है कि तुम्हारे पापा की पत्नी होना ही मेरा सब से बड़ा दोष है.’’

‘‘क्यों? क्या तुम्हारी शादी दादी की इच्छा के खिलाफ हुई थी?’’

‘‘नहीं तो. तुम्हारी दादी खुद गई थीं मेरा रिश्ता मांगने क्योंकि तुम्हारे पापा को मैं बहुत पसंद थी.’’

‘‘क्या पापा ने अपनी मां और बहन को मजबूर किया था इस शादी के लिए?’’

‘‘यह बात तुम अपने पापा से पूछना क्योेंकि कुछ सवालों का उत्तर मेरे पास है ही नहीं. लेकिन यह सच है कि तुम्हारी दादी ने हमारे 22 साल के विवाहित जीवन में कभी मुझ से प्यार के दो मीठे बोल नहीं बोले.’’

‘‘तुम तो उन के साथ भी नहीं रहती हो जो गिलेशिकवे की गुंजाइश उठती हो. जब भी हम घर जाते हैं या दादी यहां आती हैं वह आप से ज्यादा बात नहीं करतीं. हां, इतना जरूर है कि उन के आने से पापा का व्यवहार  बहुत अटपटा सा हो जाता है…अच्छा नहीं लगता मुझे… इसीलिए इस बार मैं उन के साथ रहने चला गया था यह सोच कर कि शायद मैं अकेला जाऊं तो उन्हें अच्छा लगे.’’

‘‘तो कैसा लगा उन्हें? क्या अच्छा लगा तुम्हें उन का व्यवहार?’’

‘‘मां, उन्हें तो मैं भी अच्छा नहीं लगा. एक दिन मैं ने इतना कह दिया था कि मां आलू की सब्जी बहुत अच्छी बनाती हैं. आप भी आज वैसी ही सब्जी बना कर खिलाएं. मेरा इतना कहना था कि दादी को गुस्सा आ गया. डोंगे में पड़ी सब्जी उठा कर बाहर डस्टबिन में गिरा दी. भूखा ही उठना पड़ा मुझे. रोेटियां भी उठा कर फेंक दीं. कहने लगीं कि इतनी अच्छी लगती है मां के हाथ की रोटी तो यहां क्या लेने आया है, जा, चला जा अपनी मां के पास…’’

अवाक् रह गई थी मैं. एक 80 साल की वृद्धा में इतनी जिद. बुरा तो लगा था मुझे लेकिन मेरे लिए यह नई बात नहीं थी.

‘‘क्या मैं अपनी मां के हाथ के खाने की तारीफ भी नहीं कर सकता हूं… आप का नाम लिया उस का फल यह मिला कि मुझे पूरी रात भूखा रहना पड़ा, ऐसा क्यों, मां?’’

मैं अपने बच्चे को उस क्यों का क्या उत्तर देती. मन भर आया मेरा. मेरा बच्चा पूरी रात भूखा रहा इस बात का अफसोस हुआ मुझे, मगर इतना संतोष भी हुआ कि मेरे सिवा कोई और भी है जिसे मेरी ही तरह अपमानित कर उस वृद्धा ने घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया. इस का मतलब अजय इसी वजह से जल्दी वापस चला आया होगा.

‘‘मेरे साथ तो तेरी दादी का व्यवहार ऐसा ही है. डोली से निक ली थी उस पल भी उन्होंने ऐसा ही व्यवहार किया था. तुम्हारे पापा ने तुम्हारी बूआ से बस, इतना ही कहा था कि दीदी, जरा शुभा को कुछ खिला देना, उस ने रास्ते में भी कुछ नहीं खाया. पर भाई के शगुन करना तो दूर, मांबेटी ने रोनापीटना शुरू कर दिया और उन के रोनेधोने से घर आए तमाम मेहमान जमा हो गए थे.’’

22 साल पुरानी वह घटना आज फिर आंखों के सामने साकार हो उठी.

‘‘ ‘भाभी, यह क्या पागलपन है? आते ही बहू को अपना यह क्या रूप दिखा रही हो. बेटे ने उस की जरा सी चिंता कर के ऐसा कौन सा पाप कर दिया जो बेटा छिन जाने का रोना ले कर बैठ गई हो… घरघर मांएं हैं, घर घर बहनें हैं… तुम क्या अनोखी मांबहन हो जो बहू का घर में पैर रखना ही तुम से सहा नहीं जा रहा. हमारी मां ने भी तो अपना सब से लाड़ला बेटा तुम्हें सौंपा था. क्या उस ने कभी ऐसा सलूक किया था तुम से, जैसा तुम कर रही हो?’ ’’ पति की बूआ ने किसी तरह सब ठीक करने का प्रयास किया था.

तब का उन का वह रूप और आज का उन का यह रूप. उन की जलन त्योंत्यों बढ़ती रही ज्योंज्यों मेरे पति अपने परिवार में रमते रहे.

हम साथ कभी नहीं रहे क्योंकि पति की नौकरी सदा बाहर की रही, लेकिन यह भी सच है, यदि साथ रहना पड़ता तो रह भी न पाते. मेरी सूरत देखते ही उन का चेहरा यों बिगड़ जाता है मानो कोई कड़वी दवा मुंह में घुल गई हो. अकसर मैं सोचती हूं कि क्या मैं इतनी बुरी हूं.

मैं ने ऐसा कभी नहीं चाहा कि मैं एक बुरी बहू बनूं मगर क्या करूं, मेरी बुराई इसी कड़वे सच में है कि मैं अपने पति की पत्नी बन कर ससुराल में चली आई थी. मेरा हर गुण, मेरी सारी अच्छाई उसी पल एक काले आवरण से ढक सी गई जिस पल मैं ने ससुराल की दहलीज पर पैर रखा था. मेरा दोष सिर्फ इतना सा रहा कि अजय के पिता को अजय की दादी मानसिक रूप से कभी अपने से अलग ही नहीं कर पाईं. लाख सफल मान लूं मैं स्वयं को मगर ससुराल में मैं सफल नहीं हो पाई. न अच्छी बहू बन सकी न ही अच्छी भाभी.

‘‘दादी अकेली संतान थीं न अपने घर में…बूआ भी अकेली बहन. यही वजह है कि दादी और बूआ ने अपने खून के अलावा किसी को अपना नहीं माना. जो बेटे में हिस्सा बांटने चली आई वही दुश्मन बन गई. मैं भले ही उन का पोता हूं लेकिन तुम से प्यार करता हूं इसलिए मुझे भी अपना दुश्मन समझ लिया.

‘‘मां, दादी की मानसिकता यह है कि वह अपने प्यार का दायरा बड़ा करना तो दूर उस दायरे में जरा सा रास्ता भी बनाना नहीं चाहतीं कि हम दोनों को उस में प्रवेश मिल सके. वह न हमारी बनती हैं न हमें अपना बनाती हैं. हमतुम भला कब तक बंद दरवाजे पर सिर फोड़ते रहेंगे.

‘‘जाने दो उन्हें, मां… मत सोचो उन के बारे में. अगर हमारे नसीब में उन का प्यार नहीं है तो वह भी कम बदनसीब नहीं हैं न, जिन के नसीब में हम दोनों ही नहीं. जिसे बदला न जा सके उसे स्वीकार लेना ही उचित है. वह वहां खुश हम यहां खुश…’’

सारी कहानी का सार मेरे सामने परोस दिया अजय ने. पहली बार लगा, ससुराल में कोई साथी मिल गया है जो मेरी पीड़ा को जीता भी है और महसूस भी करता है. सब ठीक चल रहा था फिर भी अजय उदास रहता था. मैं कुरेदती तो गरदन हिला देता.

मेरी एक सहेली के पति एक शाम हमारे घर आए तो सहसा मैं ने अपने मन की बात उन से कह दी. उन के बडे़ भाई एक अच्छे मनोवैज्ञानिक हैं.

‘‘भैया, आप अजय को किसी बहाने से उन्हें दिखा देंगे क्या? मैं कहूंगी तो शायद न उसे अच्छा लगेगा न उस के पापा को. हर पल चुपचुप रहता है और उदास भी.’’

उन्होंने आश्वासन दे दिया और जल्दी ही ऐसा संयोग भी बन गया. मेरी उसी सहेली के घर पर कोई पारिवारिक समारोह था. परिवार सहित हम भी आमंत्रित थे. सभी परिवार आपस में खेल खेल रहे थे. कोई ताश, कोई कैरम.  सहेली के जेठ भी वहीं थे, जो बड़ी देर तक अजय से बतियाते रहे थे और ताश भी खेलते रहे थे. उस दिन अजय खुश था. न कहीं उदासी थी न चुप्पी.

दूसरे दिन उन का फोन आया. मेरे पति से उन की खुल कर बात हुई. मेरे पति चुप रह गए.

‘‘क्या बात है, क्या कहा डाक्टर साहब ने?’’

कुछ देर तक मेरे पति मेरा चेहरा बड़े गौर से पढ़ते रहे फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘अजय अकेलेपन से पीडि़त है. उस के यारदोस्त 2-2, 3-3 भाईबहन हैं. उन के भरेपूरे परिवार को देख कर अजय को ऐसा लगता है कि एक वही है जो संसार में अकेला है.’’

क्या कहती मैं? एक ही संतान रखने की जिद भी मेरी ही थी. अब जो हो गया सो हो गया. बीता वक्त लौटाया तो नहीं जा सकता न. शाम को अजय कालिज से आया तो मन हुआ उस से कुछ बात करूं…फिर सोचा, भला क्या बात करूं… माना मांबेटे दोनों काफी हद तक दोस्त बन कर रहते हैं फिर भी भाईबहन की कमी तो है ही. पति अपने काम में व्यस्त रहते हैं और मेरी अपनी सीमाएं हैं, जो नहीं है उसे पूरा कैसे करूं?

अजय की हंसी धीरेधीरे और कम होने लगी थी. मैं ने जोर दे कर कुरेदा तो सहसा बोला, ‘‘मां, क्या मेरा कोई भाईबहन नहीं हो सकता?’’

हैरान रह गई मैं. अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ मुझे. बड़े गौर से मैं ने अपने बेटे की आंखों में देखा और कहा, ‘‘तुम 20 साल के होने वाले हो, अजय. इस उम्र में अगर तुम्हारा कोई भाई आ गया तो लोग क्या कहेंगे, क्या शरम नहीं आएगी तुम्हें?’’

‘‘इस में शरम जैसा क्या है, अधूराअधूरा सा लगता है मुझे अपना जीना. कमी लगती है, घर में कोई बांटने वाला नहीं, कोई मुझ से लेने वाला नहीं… अकेले जी नहीं लगता मेरा.’’

‘‘मैं हूं न बेटा, मुझ से बात करो, मुझ से बांटो अपना सुख, अपना दुख… हम अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘आप तो मुझ से बड़ी हैं… आप तो सदा देती हैं मुझे, कोई ऐसा हो जो मुझ से मांगे, कोई ऐसा जिसे देख कर मुझे भी बड़े होने का एहसास हो… मैं स्वार्थी बन कर जीना नहीं चाहता… मैं अपनी दादी, अपनी बूआ की तरह इतने छोटे दिल का मालिक नहीं बनना चाहता कि रिश्तों को ले कर निपट कंगाल रह जाऊं, मेरा अपना कौन होगा मां. सुखदुख में मेरे काम कौन आएगा?’’

‘‘तुम्हारे पापा हर सुखदुख में तुम्हारी बूआ के काम आते हैं न. मां की एक आवाज पर भागे चले जाते हैं लेकिन जब उन की पत्नी अस्पताल में पड़ी थी तब कौन आया था उन के काम? क्या दादी या बूआ आई थीं यहां. मुझे किस ने संभाला था? कौन था मेरे पास?

‘‘रिश्तों के होते हुए भी क्या कभी तुम ने हमारे परिवार को सुखदुख बांटते देखा है? उम्मीद करना मनुष्य की सब से बड़ी कमजोरी है, अजय. वही सुखी है जिस ने कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं की. जीवन की लड़ाई हमेशा अकेले ही लड़नी पड़ती है और सुखदुख में काम आता है हमारा चरित्र, हमारा व्यवहार. किसी के बन जाओ या किसी को अपना बना लो.

‘‘मैं 15 दिन अस्पताल में रही… कौन हमारा खानापीना देखता रहा, क्या तुम नहीं जानते? हमारा आसपड़ोस, तुम्हारे पापा के मित्र, मेरी सहेलियां. तुम्हारे दोस्त ने तो मुझे खून भी दिया था. जो लोग हमारे काम आए क्या वे हमारे सगेसंबंधी थे? बोलो?

‘‘भाईबहन के न होने से तुम्हारा दिल छोटा कैसे रह जाएगा? रिश्तों के होते हुए हमारा कौन सा काम हो गया जो तुम्हारा नहीं होगा. किसी की तरफ प्यार भरा ईमानदार हाथ बढ़ा कर देखना अजय, वही तुम्हारा हो जाएगा. प्यार बांटोगे तो प्यार मिलेगा.’’

‘‘मुझे एक भाई चाहिए, मां,’’ रोने लगा अजय.

‘‘जिन के भाई हैं क्या उन का झगड़ा नहीं देखा तुम ने? क्या वे सुखी हैं? हर घर का आज यही झगड़ा है… भाई ही भाई को सहना नहीं चाहता. किस मृगतृष्णा में हो… कल अगर तुम्हारा भाई तुम्हारा साथ छोड़ कर चला जाएगा तो तुम्हें अकेले ही तो जीना होगा…अगर हमारी संपत्ति को ले कर ही तुम्हारा भाई तुम से झगड़ा करेगा तब कहां जाएगी रिश्तेदारी, अपनापन जिस के लिए आज तुम रो रहे हो?

‘‘अजय, तुम्हारी अपनी संतान होगी, अपनी पत्नी, अपना घर. तब तुम अपने बच्चों के लिए करोगे या भाई के लिए? तुम से 20 साल छोटा भाई तुम्हारे लिए संतान के बराबर होगा. दोनों के बीच पिस जाओगे, जिस तरह तुम्हारे पापा पिसते हैं, मां की बिना वजह की दुत्कार भी सहते हैं और बहन के ताने भी सहते हैं…अच्छा पुत्र, अच्छा भाई बनने का पूरा प्रयास करते हैं तुम्हारे पापा फिर भी उन्हें खुश नहीं कर सके. उन का दोष सिर्फ इतना है कि उन्हें अपनी पत्नी, अपने बच्चे से भी प्यार है, जो उन की मांबहन के गले नहीं उतरता.

‘‘कल यही सब तुम्हारे साथ भी होगा. जरूरत से ज्यादा प्यार भी इनसान को संकुचित और स्वार्थी बना देता है. तुम्हारी दादी और बूआ का तुम्हारे पापा के साथ हद से ज्यादा प्यार ही सारी पीड़ा की जड़ है और यह सब आज हर तीसरे घर में होता है, सदा से होता आया है. जिस दिन पराया खून प्यारा लगने लगेगा उसी दिन सारे संताप समाप्त हो पाएंगे.

‘‘शायद तुम्हारी पत्नी का खून मुझे पानी जैसा न लगे…शायद मेरी बहू की पीड़ा पर मेरी भी नसें टूटने लगें… शायद वह मुझे तुम से भी ज्यादा प्यारी लगने लगे. इसी शायद के सहारे तो मैं ने अपनी एक ही संतान रखने का निर्णय लिया था ताकि मेरी ममता इतनी स्वार्थी न हो जाए कि बहू को ही नकार दे. मैं अपनी बेटी के सामने अपनी बहू का अपमान कभी न कर पाऊं इसीलिए तो बेटी को जन्म नहीं दिया…क्या तुम मेरे इस प्रयास को नकार दोगे, अजय?’’

आंखें फाड़ कर अजय मेरा मुंह देखने लगा था. उस के पापा भी पता नहीं कब चले आए थे और चुपचाप मेरी बातें सुन कर मेरा चेहरा देख रहे थे.

‘‘जीवन इसी का नाम है, अजय. वे घर भी हैं जहां बहुएं दिनरात बुजुर्गों का अपमान करती हैं और एक हमारा घर है जहां पहले दिन से मेरी सास मेरा अपमान कर रही हैं, जहां बेटी के तो सभी शगुन मनाए जाते हैं और बहू का मानसम्मान घर की नौकरानी से भी कम. बेटी का साम्राज्य घर के चप्पेचप्पे पर है और बहू 22 साल बाद भी अपनी नहीं हो सकी.’’

आवेश में पता नहीं क्याक्या निकल गया मेरे मुंह से. अजय के पापा चुप थे. अजय भी चुप था. मैं नहीं जानती वह क्या सोच रहा है. उस की सोच कुछ ही शब्दों से बदल गई होगी ऐसी उम्मीद भी नहीं की जा सकती लेकिन यह सत्य मेरी समझ में अवश्य आ गया है कि जीवन को नापने का सब का अपनाअपना फीता होता है. जरूरी नहीं किसी के पैमाने में मेरा सच या मेरा झूठ पूरी तरह फिट बैठ जाए.

मैं ने अपने जीवन को उसी फीते से नापा है जो फीता मेरे अपनों ने मुझे दिया है. मैं यह भी नहीं कह सकती कि अगर मेरी कोई बेटी होती तो मैं बहू को उस के सामने सदा अपमानित ही करती. हो सकता है मैं दोनों रिश्तों में एक उचित तालमेल बिठा लेती. हो सकता है मैं यह सत्य पहले से ही समझ जाती कि मेरा बुढ़ापा इसी पराए खून के साथ कटने वाला है, इसलिए प्यार पाने के लिए मुझे प्यार और सम्मान देना भी पड़ेगा.

हो सकता है मैं एक अच्छी सास बन कर बहू को अपने घर और अपने मन में एक प्यारा सा मीठा सा कोना दे देती. हो सकता है मैं बेटी का स्थान बेटी को देती और बहू का लाड़प्यार बहू को. होने को तो ऐसा बहुत कुछ हो सकता था लेकिन जो वास्तव में हुआ वह यह कि मैं ने अपनी दूसरी संतान कभी नहीं चाही, क्योंकि रिश्तों की भीड़ में रह कर भी अकेला रहना कितना तकलीफदेह है यह मुझ से बेहतर कौन समझ सकता है जिस ने ताउम्र रिश्तों को जिया नहीं सिर्फ ढोया है. खून के रिश्ते सिर्फ दाहसंस्कार करने के काम ही नहीं आते जीतेजी भी जलाते हैं.

तो बुरा क्या है अगर मनुष्य खून के रिश्तों से आजाद अकेला रहे, प्यार करे, प्यार बांटे. किसी को अपना बनाए, किसी का बने. बिना किसी पर कोई अधिकार जमाए सिर्फ दोस्त ही बनाए, ऐसे दोस्त जिन से कभी कोई बंटवारा नहीं होता. जिन से कभी अधिकार का रोना नहीं रोया जाता, जो कभी दिल नहीं जलाते, जिन के प्यार और अपनत्व की चाह में जीवन एक मृगतृष्णा नहीं बन जाता.

समर्पण: बेमेल संबंधों पर एक बेहतरीन कहानी

नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद मैं नियमित रूप से सुबह की सैर करने का आदी हो गया था. एक दिन जब मैं सैर कर घर लौट रहा था तो लगभग 26-27 साल की एक लड़की मेरे साथसाथ घर आ गई. वह देखने में बहुत सुंदर थी. मैं ने झट से पूछ लिया, ‘‘हां, बोलो, किस काम से मेरे पास आई हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हम लोगों का एक आर्केस्ट्रा गु्रप है. मैं रिहर्सल के बाद रोज इधर होते हुए अपने घर जाती हूं. आज इधर से गुजरते हुए  आप दिखाई दिए तो मैं ने सोचा, आप से मिल ही लूं.’’

मैं ने बताया नहीं कि मैं भी उसे नोटिस कर चुका हूं और मेरा मन भी था कि उस से मुलाकात हो.

‘‘थोड़ा और बताओगी अपने कार्यक्रमों और ग्रुप में अपनी भूमिका के बारे में.’’

‘‘यहीं खडे़खडे़ बातें होंगी या आप मुझे घर के अंदर भी ले जाएंगे.’’

‘‘यू आर वेलकम. चलो, अंदर चल कर बात करते हैं.’’

ड्राइंग रूम में बैठने के बाद उस ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम सुधा है, वैसे हम कलाकार लोग स्टेज पर किसी और नाम से जाने जाते हैं. मेरा स्टेज का नाम है नताशा. हमारे कार्यक्रम या तो बिजनेस हाउस करवाते हैं या हम लोग शादियों में प्रोग्राम देते हैं. मैं फिल्मी गानों पर डांस करती हूं.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कार्यक्रमों के अलावा और क्या करती हो?’’

‘‘मैं एम.ए. अंगरेजी से प्राइवेट कर रही हूं,’’ सुधा ने बताया, ‘‘मेरे पापा का नाम पी.एल. सेठी है और वह पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते हैं.’’

सुधा ने खुल कर अपने परिवार के बारे में बताया, ‘‘मेरी 3 बहनें हैं. बड़ी बहन की शादी की उम्र निकलती जा रही है. मुझ से छोटी बहनें पढ़ाई कर रही हैं. मां एक प्राइवेट स्कूल की टीचर हैं. घर का खर्च मुश्किल से चलता है. प्रोफेसर साहब, मैं ने आप की नेमप्लेट पढ़ ली थी कि आप रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, इसलिए आप को प्रोफेसर साहब कह कर संबोधित कर रही हूं. हां, तो मैं आप को अपने बारे में बता रही थी कि मुझे हर महीने कार्यक्रम से साढ़े 3 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है, जो मैं बैंक में जमा करवा देती हूं.’’

मैं ने सुधा के पूरे शरीर पर नजर डाली. गोरा रंग, यौवन से भरपूर बदन और उस पर गजब की मुसकराहट.

सुधा ने पूछा, ‘‘आप के घर पर कोई दिखाई नहीं दे रहा है. लोग कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

मैं ने सुधा को बताया, ‘‘मेरे घर पर कोई नहीं है. मैं ने शादी नहीं की है. मेरा एक भाई और एक बहन है. दोनों अपने परिवार के साथ इसी शहर में रहते हैं. वैसे सुधा, मैं शाम को इंगलिश विषय की एम.ए. की छात्राओं को ट्यूशन पढ़ाता हूं. तुम आना चाहो तो ट्यूशन के लिए आ सकती हो.’’

सुधा ने हामी भर दी और बोली, ‘‘मैं शीघ्र ही आप के पास ट्यूशन के लिए आ जाया करूंगी. आप समय बता दीजिए.’’

सुधा के निमंत्रण पर मैं ने एक दिन उस का कार्यक्रम भी देखा. निमंत्रणपत्र देते हुए उस ने कहा, ‘‘प्रोफेसर साहब, आप से एक निवेदन है कि मेरे पापा भी कार्यक्रम को देखने आएंगे. आप अपना परिचय मत दीजिएगा. मैं सामने आ जाऊं तो यह मत जाहिर कीजिएगा कि आप मुझे जानते हैं. कुछ कारण है, जिस की वजह से मैं फिलहाल यह जानपहचान गुप्त रखना चाहती हूं.’’

ट्यूशन पर आने से पहले सुधा ने पूछा, ‘‘सर, कोचिंग के लिए आप कितनी फीस लेंगे?’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम से फीस नहीं लेनी है. तुम जब भी मेरे घर आओ किचन में चाय या कौफी बना कर पिला दिया करना. हम दोनों साथसाथ चाय पीने का आनंद लेंगे तो समझो फीस चुकता हो गई.’’

‘‘सर, चाय तो मुझे भी बहुत अच्छी लगती है,’’ सुधा बोली, ‘‘एक बात पूछ सकती हूं, आप ने शादी क्यों नहीं की?’’

मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था किंतु अब तक हम एकदूसरे के इतने निकट आ चुके थे कि बडे़ ही सहज भाव से मैं ने उस से कहा, ‘‘पहले तो मातापिता की जिम्मेदारी मुझ पर थी, फिर उन के देहांत के बाद मैं मन नहीं बना पाया. मातापिता के जीवन काल

में एक लड़की मुझे पसंद आई थी, लेकिन वह उन्हें नहीं अच्छी लगी. बस, इस के बाद शादी का विचार छोड़ दिया.’’

सुधा अकसर सुबह रिहर्सल के बाद सीधे मेरे घर आती और ट्यूशन का समय मैं ने उसे साढे़ 5 बजे शाम का अकेले पढ़ने के लिए दे दिया था.

उस का मेरे घर आना इतना अधिक हो गया था कि महल्ले वाले भी रुचि दिखाने लगे. कब वह मेरे घर आती है, कितनी देर रुकती है, यह बात उन की चर्चा का विषय बन गई थी. जब मैं ने उन के इस आचरण पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो वे खुदबखुद ठंडे पड़ गए. हां, इस चर्चा का इतना असर जरूर पड़ा कि जो छात्राएं 4-5 बजे शाम को ग्रुप में आती थीं वे एकएक कर ट्यूशन छोड़ कर चली गईं.

इस बात की परवा न तो मैं ने की और न ही सुधा पर इन बातों का कोई असर था. मेरे भाई और बहन ने भी मुझे इस बारे में व्यंग्य भरे लहजे में बताया था, किंतु उन्होंने ज्यादा पूछताछ नहीं की.

सुधा को साउथइंडियन डिशेज अच्छी लगती थीं. अत: उसे साथ ले कर मैं एक रेस्तरां में भी जाने लगा था. वहां के वेटर भी हमें पहचानने लगे थे. एक दिन जब देर रात सुधा रेस्तरां पहुंची तो वेटर ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप के पापा का फोन आया था. वह थोड़ी देर से आएंगे. आप बैठिए, मैं आप के लिए पानी और चाय ले कर आता हूं.’’

मैं जब रेस्तरां में पहुंचा तो सुधा ने हंसते हुए बताया, ‘‘प्रोफेसर, आज बड़ा मजा आया. वेटर कह रहा था आप के पापा लेट आएंगे. यहां के वेटर्स मुझे आप की बेटी समझते हैं.’’

इस पर मैं ने भी चुटकी ले कर कहा, ‘‘मेरी उम्र ही ऐसी है, इन की कोई गलती नहीं है. यह भ्रम बना रहने दो.’’

डिनर से पहले सुधा ने कहा, ‘‘प्रोफेसर, आप का मेरे जीवन में आना एक मुबारक घटना है.’’

वह बहुत ही भावुक हो कर कह रही थी. मुझे लगा जैसे किसी बहुत ही घनिष्ठ संबंध के लिए मुझे मानसिक रूप से तैयार कर रही हो. मैं अकसर उस के डांस की तारीफ किया करता था और उसे यह बहुत अच्छा लगता था.

एक दिन शाम को हम दोनों चाय पी रहे थे तो बडे़ प्यार से उस की पीठ सहलाते हुए मैं ने कहा, ‘‘सुधा, तुम्हें तो पता ही है कि रिटायरमेंट होने पर मुझे काफी अच्छी रकम मिली है. मेरी जरूरतें भी बहुत सीमित हैं. मेरा एक योगदान अपने परिवार के लिए स्वीकार करो. हर महीने तुम्हें मैं 1 हजार रुपए दिया करूंगा. वह तुम अपने एकाउंट में जमा करवाती रहना.’’

मेरी यह योजना सुधा को बेहद पसंद आई. उस की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. वह बोली, ‘‘अब मैं पूरी तरह से आप को समर्पित हूं. आप जो भी मुझे प्यार से देंगे उसे मैं अपना हक समझ कर खुशी से स्वीकार करूंगी,’’ और फिर एकाएक आगे बढ़ कर उस ने

मेरा माथा चूमलिया. कहने लगी, ‘‘प्रोफेसर, आप से मिलने के बाद मेरी कई मुश्किलें हल होती दिखाई देती हैं.’’

मैं ने महसूस किया कि एकदूसरे का सामीप्य तनमन को प्यार के रंग में भिगो देता है. हमारे जीवन मेें वे कुछ अनमोल क्षण होते हैं जिन से हमें जीवन भर ऊर्जा और जीने का मकसद मिलता है.

जवानी की दहलीज पर खड़ी सुधा पूरी उमंग और जोश में थी. उसे प्रेम के प्रथम अनुभव की तलाश थी, उसे चाहिए था जी भर कर प्यार करने वाला एक प्रौढ़ और पुरुषार्थी प्रेमी, जो शायद उस ने मुझ में ढूंढ़ लिया था. नाजुक और व्यावहारिक क्षणों में कभीकभी नैतिकता बहुत पीछे रह जाती है.

घनिष्ठता के अंतरंग क्षणों में, चाय की चुस्कियां लेते हुए साहस कर सुधा ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रोफेसर, कौन थी वह भाग्यशाली लड़की जो आप को पसंद आई थी. उस का नाम क्या था. देखने में कैसी लगती थी?’’

उस की रुचि देख कर मैं ने अपनी अलबम के पृष्ठ पलट कर, उसे कृष्णा की फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘उस का नाम कृष्णा था. बहुत सुंदर और अच्छी लड़की थी.’’

फोटो देख कर उसे झटका सा लगा लेकिन स्पष्टतौर पर उस ने जाहिर नहीं होने दिया.

‘‘इस से अधिक मुझ से कुछ मत पूछना, सुधा,’’ मैं ने कहा.

उस दिन मेरा मन हुआ काश, सुधा आज देर तक मेरे घर रुके और हम लोग प्यार भरी बातें करें, पर देर होने के कारण वह जल्दी ही चली गई.

सुधा के निमंत्रण पर एक शाम मैं प्रोग्राम देख रहा था. फिल्मी कलाकार की तरह सुधा नृत्य पेश कर रही थी. हाल खचाखच भरा हुआ था. ‘बीड़ी जलाइ ले’ और ‘कजरारे कजरारे’ जैसे मशहूर गानों पर सुधा अपने हर स्टेप पर दर्शकों की वाहवाही बटोर रही थी. तालियों की गड़गड़ाहट से बारबार हाल गूंज उठता था. प्रोग्राम के अंत में मेरे पास से गुजरते हुए सुधा ने मुझ से धीमे स्वर में पूछा, ‘‘प्रोफेसर, कैसा लगा मेरा डांस?’’ मैं ने धीमे स्वर में सराहना करते हुए कहा, ‘‘तुम वाकई बहुत अच्छा डांस करती हो.’’

दूसरे दिन सुधा शाम को 5 बजे मेरे घर पहुंची. घर में प्रवेश करते ही बोली, ‘‘प्रोफेसर, चाय बना कर लाती हूं, फिर ढेर सारी बातें करेंगे.’’

वह चाय ले कर आई और मेरे पास बैठ गई.

‘‘प्रोफेसर, आप ने ‘निशब्द’ फिल्म देखी है?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘हां, देखी है, मुझे अच्छी भी लगी थी,’’ मैं ने बताया.

सुधा मेरे इतने पास बैठी थी कि मन हुआ मैं उस के नरम गालों को स्पर्श कर अपने हाथों से उसे प्यार करूं. कृष्णा की याद आज ताजा हो उठी थी. उसे मैं इसी तरह प्यार किया करता था.

उस दिन ट्यूशन का कोई काम नहीं हो पाया. बस, नजदीकियां बढ़ा कर, हम दोनों एकदूसरे को प्यार करते रहे. जाते समय सुधा ने बडे़ प्यार से मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘‘निशब्द’ में अमिताभ बच्चन ने जिया से कितना जीजान से प्यार किया है. उम्र को भूल जाइए प्रोफेसर, मुझे आप से वैसा ही बेबाक प्यार चाहिए. अपने स्वाभिमान को भी बनाए रखिए और मुझ से प्रेम करते रहिए, मेरा दिल कभी नहीं तोडि़एगा.’’

मेरे भीतर कुछ ऐसा परिवर्तन हो चुका था कि उम्र की सीमा को लांघ कर मैं ने सुधा को अपनी बांहों में कस लिया और प्यार करने लगा, ‘‘नैतिकता की बात मत सोचना सुधा. मेरे साथ आज आनंद में डूब जाओ,’’ मैं बोलता रहा, ‘‘कुदरत ने शायद हम दोनों को इसीलिए मिलाया है कि हम प्रेम की ऐसी मिसाल कायम करें जिस का अनुभव अपनेआप में अद्भुत हो.’’

एक झटके में मुझ से अलग होते हुए सुधा बोली, ‘‘प्रोफेसर, हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे. ‘निशब्द’ में भी ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया है. अमिताभ ने जिया से कोई यौन संपर्क नहीं किया. चलो, वह तो कहानी थी. हम वास्तव में प्यार करते रहेंगे. बस, एक यौन संपर्क को छोड़ कर,’’ एक पल रुक कर वह फिर बोली, ‘‘मैं एक बात और आप को बताना चाहती हूं कि जो फोटो कृष्णा की आप ने दिखाई थी वह मेरी मां की है. मेरी मां का नाम कृष्णा है. प्यार तो किया है आप से मैं ने और जिंदगी भर करती रहूंगी.’’

यह जान कर मेरे पैरों तले जमीन सरक गई. आश्चर्यचकित मैं सुधा के चेहरे की ओर देखता रहा. झील सी गहरी आंखों में अब भी मेरे लिए प्यार उमड़ रहा था. होंठों पर मधुर मुसकान थी. सुधा मेरी निगाहों में इतने ऊंचे

स्तर तक उठ चुकी थी, जिस महानता को मेरा निस्वार्थ प्रेम छू तक नहीं सकता था.

क्षण भर को मुझे लगा था, शायद तकदीर ने सुधा के रूप में मेरा पहला प्यार मुझे लौटा दिया है. दूसरे ही क्षण मैं अपने विचार पर मन ही मन हंस दिया कि अगर कृष्णा से विवाह भी हो गया होता तो सुधा जैसी ही सुंदर लड़की होती…

मैं अपने विचारों में खोया था, इतने में सुधा ने अपना फैसला सुना दिया, ‘‘प्रोफेसर, यह मत सोचना कि मैं आप के पास आना बंद कर दूंगी. मैं एक बोल्ड लड़की हूं. आप को अपने मन की बात बता रही हूं. मां को बता चुकी हूं, अब मैं शादी नहीं करूंगी. आज के माहौल में जहां दहेज के लोभी लोग लड़कियों को तंग करते हैं, जला देते हैं या तलाक जैसे नर्क में ढकेल देते हैं, मैं शादी के चक्कर में नहीं पड़ूंगी. मैं अपनी मर्जी की मालिक हूं. आप चाहोगे तो आप के पास आ कर रहने लगूंगी. नहीं चाहोगे तो भी आप के पास आती रहूंगी.

‘‘प्यार में चिर सुख की चाह होती है. यौन संबंध और विवाह की आवश्यकता से ऊपर उठ चुकी है आप की सुधा. आप के संरक्षण में

बहुत सुरक्षित रहूंगी,’’ मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर शेक हैंड करते हुए उस ने कहा.

मेरी आंखों में आंसू छलक उठे थे. मैं उस को जाते हुए देखता रहा, बोझिल मन लिए और निशब्द. लेकिन वह गई नहीं, वापस लौट आई.

‘‘तुम क्या सोचते थे, मैं तुम्हें आंसुओं के साथ छोड़ जाऊंगी. तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा. आप से तुम संबोधन पर आ गई हूं. ‘तुम’ में अपनापन लगता है. तुम रिटायर तो हो ही नहीं सकते. रिटायर काम से हुए हो जिंदगी से नहीं. हम दोनों आज से नई जिंदगी शुरू कर रहे हैं. कल सुबह सामान के साथ आ रही हूं,’’ हंसते हुए उस ने कहा, ‘‘अब तो मुसकरा दो…अब की सामान ले कर आ रही हूं. अच्छा…जाती हूं वापस आने के लिए.’’

जीत: क्या रमेश ने अपने मां-बाप के सपने को पूरा किया?

रमेश चंद की पुलिस महकमे में पूरी धाक थी. आम लोग उसे बहुत इज्जत देते थे, पर थाने का मुंशी अमीर चंद मन ही मन उस से रंजिश रखता था, क्योंकि उस की ऊपरी कमाई के रास्ते जो बंद हो गए थे. वह रमेश चंद को सबक सिखाना चाहता था. 25 साला रमेश चंद गोरे, लंबे कद का जवान था. उस के पापा सोमनाथ कर्नल के पद से रिटायर हुए थे, जबकि मम्मी पार्वती एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं. रमेश चंद के पापा चाहते थे कि उन का बेटा भी सेना में भरती हो कर लगन व मेहनत से अपना मुकाम हासिल करे. पर उस की मम्मी चाहती थीं कि वह उन की नजरों के सामने रह कर अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेतीबारी करे.

रमेश चंद ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस में भरती होगा और जहां कहीं भी उसे भ्रष्टाचार की गंध मिलेगी, उस को मिटा देने के लिए जीजान लगा देगा. रमेश चंद की पुलिस महकमे में हवलदार के पद पर बेलापुर थाने में बहाली हो गई थी. जहां पर अमीर चंद सालों से मुंशी के पद पर तैनात था. रमेश चंद की पारखी नजरों ने भांप लिया था कि थाने में सब ठीक नहीं है. रमेश चंद जब भी अपनी मोटरसाइकिल पर शहर का चक्कर लगाता, तो सभी दुकानदारों से कहता कि वे लोग बेखौफ हो कर कामधंधा करें. वे न तो पुलिस के खौफ से डरें और न ही उन की सेवा करें.

एक दिन रमेश चंद मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था. उस ने देखा कि एक आदमी उस की मोटरसाइकिल देख कर अपनी कार को बेतहाशा दौड़ाने लगा था.

रमेश चंद ने उस कार का पीछा किया और कार को ओवरटेक कर के एक जगह पर उसे रोकने की कोशिश की. पर कार वाला रुकने के बजाय मोटरसाइकिल वाले को ही अपना निशाना बनाने लगा था. पर इसे रमेश चंद की होशियारी समझो कि कुछ दूरी पर जा कर कार रुक गई थी. रमेश चंद ने कार में बैठे 2 लोगों को धुन डाला था और एक लड़की को कार के अंदर से महफूज बाहर निकाल लिया.

दरअसल, दोनों लोग अजय और निशांत थे, जो कालेज में पढ़ने वाली शुभलता को उस समय अगवा कर के ले गए थे, जब वह बारिश से बचने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी घर जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी. निशांत शुभलता को जानता था और उस ने कहा था कि वह भी उस ओर ही जा रहा है, इसलिए वह उसे उस के घर छोड़ देगा. शुभलता की आंखें तब डर से बंद होने लगी थीं, जब उस ने देखा कि निशांत तो गाड़ी को जंगली रास्ते वाली सड़क पर ले जा रहा था. उस ने गुस्से से पूछा था कि वह गाड़ी कहां ले जा रहा है, तो उस के गाल पर अजय ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कहा था, ‘तू चुपचाप गाड़ी में बैठी रह, नहीं तो इस चाकू से तेरे जिस्म के टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा.’

तब निशांत ने अजय से कहा था, ‘पहले हम बारीबारी से इसे भोगेंगे, फिर इस के जिस्म को इतने घाव देंगे कि कोई इसे पहचान भी नहीं सकेगा.’ पर रमेश चंद के अचानक पीछा करने से न केवल उन दोनों की धुनाई हुई थी, बल्कि एक कागज पर उन के दस्तखत भी करवा लिए थे, जिस पर लिखा था कि भविष्य में अगर शहर के बीच उन्होंने किसी की इज्जत पर हाथ डाला या कोई बखेड़ा खड़ा किया, तो दफा 376 का केस बना कर उन को सजा दिलाई जाए. शुभलता की दास्तान सुन कर रमेश चंद ने उसे दुनिया की ऊंचनीच समझाई और अपनी मोटरसाइकिल पर उसे उस के घर तक छोड़ आया. शुभलता के पापा विशंभर एक दबंग किस्म के नेता थे. उन के कई विरोधी भी थे, जो इस ताक में रहते थे कि कब कोई मुद्दा उन के हाथ आ जाए और वे उन के खिलाफ मोरचा खोलें.

विशंभर विधायक बने, फिर धीरेधीरे अपनी राजनीतिक इच्छाओं के बलबूते पर चंद ही सालों में मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ गए. सिर्फ मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता ही इस बात को जानती थीं कि उन की बेटी शुभलता को बलात्कारियों के चंगुल से रमेश चंद ने बचाया था. बेलापुर थाने में नया थानेदार रुलदू राम आ गया था. उस ने अपने सभी मातहत मुलाजिमों को निर्देश दिया था कि वे अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करें, ताकि आम लोगों की शिकायतों की सही ढंग से जांच हो सके. थोड़ी देर के बाद मुंशी अमीर चंद ने थानेदार के केबिन में दाखिल होते ही उसे सैल्यूट किया, फिर प्लेट में काजू, बरफी व चाय सर्व की. थानेदार रुलदू राम चाय व बरफी देख कर खुश होते हुए कहने लगा, ‘‘वाह मुंशीजी, वाह, बड़े मौके पर चाय लाए हो. इस समय मुझे चाय की तलब लग रही थी…

‘‘मुंशीजी, इस थाने का रिकौर्ड अच्छा है न. कहीं गड़बड़ तो नहीं है,’’ थानेदार रुलदू राम ने चाय पीते हुए पूछा.

‘‘सर, वैसे तो इस थाने में सबकुछ अच्छा है, पर रमेश चंद हवलदार की वजह से यह थाना फलफूल नहीं रहा है,’’ मुंशी अमीर चंद ने नमकमिर्च लगाते हुए रमेश चंद के खिलाफ थानेदार को उकसाने की कोशिश की.

थानेदार रुलदू राम ने मुंशी से पूछा, ‘‘इस समय वह हवलदार कहां है?’’

‘‘जनाब, उस की ड्यूटी इन दिनों ट्रैफिक पुलिस में लगी हुई है.’’

‘‘इस का मतलब यह कि वह अच्छी कमाई करता होगा?’’ थानेदार ने मुंशी से पूछा.

‘‘नहीं सर, वह तो पुश्तैनी अमीर है और ईमानदारी तो उस की रगरग में बसी है. कानून तोड़ने वालों की तो वह खूब खबर लेता है. कोई कितनी भी तगड़ी सिफारिश वाला क्यों न हो, वह चालान करते हुए जरा भी नहीं डरता.’’

इतना सुन कर थानेदार रुलदू राम ने कहा, ‘‘यह आदमी तो बड़ा दिलचस्प लगता है.’’

‘‘नहीं जनाब, यह रमेश चंद अपने से ऊपर किसी को कुछ नहीं समझता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि या तो इस का ट्रांसफर यहां से हो जाए या हम ही यहां से चले जाएं,’’ मुंशी अमीर चंद ने रोनी सूरत बनाते हुए थानेदार से कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आज उस को यहां आने दो, फिर उसे बताऊंगा कि इस थाने की थानेदारी किस की है… उस की या मेरी?’’

तभी थाने के कंपाउंड में एक मोटरसाइकिल रुकी. मुंशी अमीर चंद दबे कदमों से थानेदार के केबिन में दाखिल होते हुए कहने लगा, ‘‘जनाब, हवलदार रमेश चंद आ गया है.’’

अर्दली ने आ कर रमेश चंद से कहा, ‘‘नए थानेदार साहब आप को इसी वक्त बुला रहे हैं.’’

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार रुलदू राम को सैल्यूट मारा.

‘‘आज कितना कमाया?’’ थानेदार रुलदू राम ने हवलदार रमेश चंद से पूछा.

‘‘सर, मैं अपने फर्ज को अंजाम देना जानता हूं. ऊपर की कमाई करना मेरे जमीर में शामिल नहीं है,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

थानेदार ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यह थाना है. इस में ज्यादा ईमानदारी रख कर काम करोगे, तो कभी न कभी तुम्हारे गरीबान पर कोई हाथ डाल कर तुम्हें सलाखों तक पहुंचा देगा. अभी तुम जवान हो, संभल जाओ.’’

‘‘सर, फर्ज निभातेनिभाते अगर मेरी जान भी चली जाए, तो कोई परवाह नहीं,’’ हवलदार रमेश चंद थानेदार रुलदू राम से बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, तुम्हारे ये प्रवचन सुनने के लिए मैं ने तुम्हें यहां नहीं बुलाया था,’’ थानेदार रुलदू राम की आवाज में तल्खी उभर आई थी.

दरवाजे की ओट में मुंशी अमीर चंद खड़ा हो कर ये सब बातें सुन रहा था. वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. हवलदार रमेश चंद के बाहर जाते ही मुंशी अमीर चंद थानेदार से कहने लगा, ‘‘साहब, छोटे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहिए. आप ने हवलदार को उस की औकात बता दी.’’

‘‘चलो जनाब, हम बाजार का एक चक्कर लगा लें. इसी बहाने आप की शहर के दुकानदारों से भी मुलाकात हो जाएगी और कुछ खरीदारी भी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं जरा क्वार्टर जा कर अपनी पत्नी से पूछ लूं कि बाजार से कुछ लाना तो नहीं है?’’ थानेदार ने मुंशी से कहा.

क्वार्टर पहुंच कर थानेदार रुलदू राम ने देखा कि उस की पत्नी सुरेखा व 2 महिला कांस्टेबलों ने क्वार्टर को सजा दिया था. उस ने सुरेखा से कहा, ‘‘मैं बाजार का मुआयना करने जा रहा हूं. वहां से कुछ लाना तो नहीं है?’’

‘‘बच्चों के लिए खिलौने व फलसब्जी वगैरह देख लेना,’’ सुरेखा ने कहा.

मुंशी अमीर चंद पहले की तरह आज भी जिस दुकान पर गया, वहां नए थानेदार का परिचय कराया, फिर उन से जरूरत का सामान ‘मुफ्त’ में लिया और आगे चल दिया. वापसी में आते वक्त सामान के 2 थैले भर गए थे. मुंशी अमीर चंद ने बड़े रोब के साथ एक आटोरिकशा वाले को बुलाया और उस से थाने तक चलने को कहा. थानेदार को मुंशी अमीर चंद का रसूख अच्छा लगा. उस ने एक कौड़ी भी खर्च किए बिना ढेर सारा सामान ले लिया था. अगले दिन थानेदार के जेहन में रहरह कर यह बात कौंध रही थी कि अगर समय रहते हवलदार रमेश चंद के पर नहीं कतरे गए, तो वह उन सब की राह में रोड़ा बन जाएगा. अभी थानेदार रुलदू राम अपने ही खयालों में डूबा था कि तभी एक औरत बसंती रोतीचिल्लाती वहां आई.

उस औरत ने थानेदार से कहा, ‘‘साहब, थाने से थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है, जहां पर बदमाशों ने रात को न केवल मेरे मर्द करमू को पीटा, बल्कि घर में जो गहनेकपड़े थे, उन पर भी हाथ साफ कर गए. जब मैं ने अपने पति का बचाव करना चाहा, तो उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. इस से मुझे भी चोट लग गई.’’

थानेदार ने उस औरत को देखा, जो माथे पर उभर आई चोटों के निशान दिखाने की कोशिश कर रही थी. थानेदार ने उस औरत को ऐसे घूरा, मानो वह थाने में ही उसे दबोच लेगा. भले ही बसंती गरीब घर की थी, पर उस की जवानी की मादकता देख कर थानेदार की लार टपकने लगी थी. अचानक मुंशी अमीर चंद केबिन में घुसा. उस ने बसंती से कहा, ‘‘साहब ने अभी थाने में जौइन किया है. हम तुम्हें बदमाशों से भी बचाएंगे और जो कुछवे लूट कर ले गए हैं, उसे भी वापस दिलाएंगे. पर इस के बदले में तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम, साहबजी?’’ बसंती ने हैरान हो कर मुंशी अमीर चंद से पूछा.

‘‘हम अभी तुम्हारे घर जांचपड़ताल करने आएंगे, वहीं पर तुम्हें सबकुछ बता देंगे.’’

‘‘जी साहब,’’ बसंती उठते हुए बोली.

थानेदार ने मुंशी से फुसफुसाते हुए पूछा, ‘‘बसंती से क्या बात करनी है?’’

मुंशी ने कहा, ‘‘हुजूर, पुलिस वालों के लिए मरे हुए को जिंदा करना और जिंदा को मरा हुआ साबित करना बाएं हाथ का खेल होता है. बस, अब आप आगे का तमाशा देखते जाओ.’’ आननफानन थानेदार व मुंशी मौका ए वारदात पर पहुंचे, फिर चुपके से बसंती व उस के मर्द को सारी प्लानिंग बताई. इस के बाद मुंशी अमीर चंद ने कुछ लोगों के बयान लिए और तुरंत थाने लौट आए. इधर हवलदार रमेश चंद को कानोंकान खबर तक नहीं थी कि उस के खिलाफ मुंशी कैसी साजिश रच रहा था.

थानेदार ने अर्दली भेज कर रमेश चंद को थाने बुलाया.

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार को सैल्यूट मारने के बाद पूछा, ‘‘सर, आप ने मुझे याद किया?’’

‘‘देखो रमेश, आज सुबह बसंती के घर में कोई हंगामा हो गया था. मुंशीजी अमीर चंद को इस बाबत वहां भेजना था, पर मैं चाहता हूं कि तुम वहां मौका ए वारदात पर पहुंच कर कार्यवाही करो. वैसे, हम भी थोड़ी देर में वहां पहुंचेंगे.’’

‘‘ठीक है सर,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

जैसे ही रमेश चंद बसंती के घर पहुंचा, तभी उस का पति करमू रोते हुए कहने लगा, ‘‘हुजूर, उन गुंडों ने मारमार कर मेरा हुलिया बिगाड़ दिया. मुझे ऐसा लगता है कि रात को आप भी उन गुंडों के साथ थे.’’ करमू के मुंह से यह बात सुन कर रमेश चंद आगबबूला हो गया और उस ने 3-4 थप्पड़ उसे जड़ दिए.

तभी बसंती बीचबचाव करते हुए कहने लगी, ‘‘हजूर, इसे शराब पीने के बाद होश नहीं रहता. इस की गुस्ताखी के लिए मैं आप के पैर पड़ कर माफी मांगती हूं. इस ने मुझे पूरी उम्र आंसू ही आंसू दिए हैं. कभीकभी तो ऐसा मन करता है कि इसे छोड़ कर भाग जाऊं, पर भाग कर जाऊंगी भी कहां. मुझे सहारा देने वाला भी कोई नहीं है…’’

‘‘आप मेरी खातिर गुस्सा थूक दीजिए और शांत हो जाइए. मैं अभी चायनाश्ते का बंदोबस्त करती हूं.’’

बसंती ने उस समय ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि उस के उभार नजर आ रहे थे. शरबत पीते हुए रमेश की नजरें आज पहली दफा किसी औरत के जिस्म पर फिसली थीं और वह औरत बसंती ही थी. रमेश चंद बसंती से कह रहा था, ‘‘देख बसंती, तेरी वजह से मैं ने तेरे मर्द को छोड़ दिया, नहीं तो मैं इस की वह गत बनाता कि इसे चारों ओर मौत ही मौत नजर आती.’’ यह बोलते हुए रमेश चंद को नहीं मालूम था कि उस के शरबत में तो बसंती ने नशे की गोलियां मिलाई हुई थीं. उस की मदहोश आंखों में अब न जाने कितनी बसंतियां तैर रही थीं. ऐन मौके पर थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद वहां पहुंचे. बसंती ने अपने कपड़े फाड़े और जानबूझ कर रमेश चंद की बगल में लेट गई. उन दोनों ने उन के फोटो खींचे. वहां पर शराब की 2 बोतलें भी रख दी गई थीं. कुछ शराब रमेश चंद के मुंह में भी उड़ेल दी थी.

मुंशी अमीर चंद ने तुरंत हैडक्वार्टर में डीएसपी को इस सारे कांड के बारे में सूचित कर दिया था. डीएसपी साहब ने रिपोर्ट देखी कि मौका ए वारदात पर पहुंच कर हवलदार रमेश चंद ने रिपोर्ट लिखवाने वाली औरत के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. डीएसपी साहब ने तुरंत हवलदार रमेश चंद को नौकरी से सस्पैंड कर दिया. अब सारा माजरा उस की समझ में अच्छी तरह आ गया था, पर सारे सुबूत उस के खिलाफ थे. अगले दिन अखबारों में खबर छपी थी कि नए थानेदार ने थाने का कार्यभार संभालते ही एक बेशर्म हवलदार को अपने थाने से सस्पैंड करवा कर नई मिसाल कायम की. रमेश चंद हवालात में बंद था. उस पर बलात्कार करने का आरोप लगा था. इधर जब मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता को इस बारे में पता लगा कि रमेश चंद को बलात्कार के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया है, तो उस का खून खौल उठा. उस ने सुबह होते ही थाने का रुख किया और रमेश चंद की जमानत दे कर रिहा कराया. रमेश चंद ने कहा, ‘‘मैडम, आप ने मेरी नीयत पर शक नहीं किया है और मेरी जमानत करा दी. मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

चंद्रकांता बोली, ‘‘उस वक्त तुम ने मेरी बेटी को बचाया था, तब यह बात सिर्फ मुझे, मेरी बेटी व तुम्हें ही मालूम थी. अगर तुम मेरी बेटी को उन वहशी दरिंदों से न बचाते, तो न जाने क्या होता? और हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ती. आज हमारी बेटी शादी के बाद बड़ी खुशी से अपनी जिंदगी गुजार रही है.

‘‘जिन लोगों ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है, उन के मनसूबों को नाकाम कर के तुम आगे बढ़ो,’’ चंद्रकांता ने रमेश चंद को धीरज बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं आज ही मुख्यमंत्रीजी से इस मामले में बात करूंगी, ताकि जिस सच के रास्ते पर चल कर अपना वजूद तुम ने कायम किया है, वह मिट्टी में न मिल जाए.’’ अगले दिन ही बेलापुर थाने की उस घटना की जांच शुरू हो गई थी. अब तो स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनीअपनी शिकायतें लिखित रूप में दे दी थीं. थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद अब जेल की सलाखों में थे. रमेश चंद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत गया था.

फिर से हुई बर्बरता : क्यों सुरक्षित नहीं हैं महिलाएं

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 300 किलोमीटर दूर दुमका में एक रात को शर्मनाक घटना घटी. 28 साल की एक स्पैनिश महिला के साथ गैंगरेप किया गया. उस महिला ने अपने पार्टनर के साथ 5 साल पहले मोटरसाइकिल पर दुनिया घूमने का प्लान किया था. लगभग 36 देश और एक लाख 70 हजार किलोमीटर का सफर तय करने के बाद वे लोग झारखंड में आए थे और यहां से नेपाल जाने वाले थे. मगर किस को पता था कि यहां आने के बाद उन की जिंदगी बदल जाएगी. उस रात वह अपने पार्टनर के साथ रात के वक्त मेकशिफ्ट टैंकट में रुकी हुई थी और तब महिला के साथ 1 नहीं, 2 नहीं, बल्कि 7 लोगों ने गैंगरेप किया.

इस बात की जानकारी स्पैनिश महिला ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर के दी और कहा कि हमारे साथ कुछ ऐसा हुआ है जो हम नहीं चाहेंगे कि किसी और के साथ हो. 7 लोगों ने मेरा रेप किया. तब लोग इस घटना से अवगत हुए.

पीड़ित महिला ने एफआईआर में बताया है कि सातों आरोपी उस पर वारदात के दौरान लगातार लात-मुक्के बरसाते रहे. इतना ही नहीं, पीड़ित विदेशी महिला ने बताया कि रेप के आरोपियों ने उस के पति के हाथों को भी बांध दिया और उसे भी पीटते रहे.

फिलहाल 7 आरोपियों में से 3 को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया है. साथ ही, पीड़िता के पति को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपए दिए गए हैं.

दुमका में स्पैनिश महिला के साथ हुए गैंगरेप का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक और गैंगरेप की वारदात सामने आ गई. यह मामला भी झारखंड से जुड़ा है. यहां के पलामू इलाके में छत्तीसगढ़ से आई एक महिला कलाकार का गैंगरेप हुआ.

पुलिस ने इस केस में 2 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. जानकारी के मुताबिक नशीली दवा खिला कर गाड़ी में मौजूद लोगों ने ही सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया. वे सभी और्केस्ट्रा कलाकार थे और महिला भी उन के साथ ही थी. दरअसल पीड़ित कलाकार छत्तीसगढ़ की रहने वाली है, और्केस्ट्रा ग्रुप के साथ कार्यक्रम के लिए हुसैनाबाद पहुंची थी. लौटने के दौरान विश्रामपुर थाना क्षेत्र में पीड़िता को 4 युवकों ने नशीला पदार्थ खिला कर उस के साथ दुष्कर्म किया और उस के बाद पीड़िता को लावारिस हालत में सड़क किनारे छोड़ दिया. स्थानीय ग्रामीणों ने घायल युवती को अस्पताल पहुंचाया. पुलिस ने इस केस में 2 आरोपियों को गिरफ्तार किया है.

विदेशी महिलाओं से जुड़ा यह मामला नया नहीं है. इस से पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं. इस से पहले 23 सितंबर, 2023 को झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में एक युवती के साथ उस समय गैंग रेप किया गया जब वह अपने मंगेतर के साथ बाहर निकली थी. 22 साल की युवती के साथ बलात्कार करने के बाद बदमाशों का ग्रुप उसे एक सुनसान जगह पर छोड़ कर व उस का बैग और मोबाइल ले कर भाग गया. मंगेतर ने मौके से भाग कर पुलिस को फोन कर के सूचना दी थी.

अभी हाल ही में केरल में 5 लोगों के एक गिरोह ने एक विदेशी महिला के साथ दुर्व्यवहार किया था. उन्होंने उस के साथ बदसलूकी की और महिला का रिजौर्ट तक पीछा किया. यह एक बड़ा सवाल है कि देश में महिलाएं और लड़कियां आखिर कैसे सुरक्षित रहेंगी जबकि देश की ही नहीं, बल्कि विदेशी महिलाओं के साथ भी बदसलूकी की जा रही है. ऐसी घटनाएं आएदिन दोहराई जाती हैं.

आज फिर से लोग इस के बारे में बात कर रहे हैं. लोग बहस कर रहे हैं, नेतागण एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं. महिला सुरक्षा के मुद्दे पर फिर से वादे किए जा रहे हैं. दफ्तर से अकेली आती लड़की फिर से डर रही है. इस के बाद क्या होगा? इस के बाद फिर से सब भुला दिया जाएगा. फिर अपने आसपास की कोई लड़की किसी की हवस और दरिंदगी का शिकार बन जाएगी तो फिर से बहस और दोषारोपण का दौर शुरू हो जाएगा. मगर सवाल वहीं रह जाएगा कि आखिर महिलाएं सुरक्षित कब हो पाएंगी?

देश की सरकार तो एक तरफ महिला सशक्तीकरण का दावा करती आ रही है लेकिन नतीजा कुछ भी निकलता नहीं दिखता है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में 2021 में 1 जनवरी से 15 जुलाई के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध के 6,747 मामले दर्ज किए गए थे और 2022 में यह संख्या बढ़ कर 7,887 हो गई. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2020 में देशभर में बलात्कार के कुल 28,046 मामले दर्ज किए गए.

बदहाल कानून व्यवस्था

देशभर में हो रही ऐसी घटनाएं इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि देश की कानून व्यवस्था की स्थिति बदहाल है. न्याय प्रक्रिया बहुत सुस्त है. प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाता नहीं. महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अभी बहुतकुछ किया जाना बाकी है.

एक महिला अभी भी अपने देश, शहर, महल्ले, गली, घर के अंदर सुरक्षित महसूस नहीं करती है. सालदरसाल ये आंकड़े बढ़ते ही चले जा रहे हैं और हम धीरेधीरे इसी असलियत के साथ जीना सीख रहे हैं. घर के अंदर जब किसी बेटी का रेप होता है तो उसे चुप रहने की सलाह दी जाती है. घर के बाहर बेटी-बहन का रेप न हो जाए, इस डर से उन के बढ़ते कदमों पर बेड़ियां जड़ दी जाती हैं. आखिर महिलाएं कब खुल कर जी पाएंगी और कब उन्हें आगे बढ़ने के लिए सुरक्षित माहौल मिलेगा.

झट प्यार पट ब्रेकअप : क्या आपका प्यार कहीं खो सा गया है

कुछ समय से सैलिब्रिटी ब्रेकअप्स सुर्खियों में छाए हुए हैं. पहले सलमानकैटरीना, फरहानअधुना, बिपाशाजौन अचानक अलग हो गए अब मलाइकाअरबाज ने अगल हो कर सब को हैरान कर दिया. छोटे परदे के मशहूर अभिनेता करण सिंह ग्रोवर का अपनी पहली पत्नी श्रद्धा निगम से तलाक, फिर जेनिफर से विवाह और फिर तलाक, फिर बिपाशा बसु से विवाह. यह रिश्ता कितने दिन या हमेशा चलेगा, यह देखना बाकी है. जैसे ही हम किसी सैलिब्रिटी को देख कर सोचते हैं कि वाह, क्या जोड़ी है. पता चलता है कि उस जोड़ी का भी ब्रेकअप हो चुका है और हमारा आधुनिक रिश्तों पर विश्वास डगमगाने लगता है.

रणबीर और दीपिका की जोड़ी देखते ही बनती थी, आज भी दोनों के फैंस दोनों को साथ देखना चाहते हैं. रितिक रोशन ने जब सुजैन से विवाह किया तो कइयों के दिल टूटे पर अब ये भी अलग हो चुके हैं.

हौलीवुड की जान ब्रैडपिट और जेनिफर का प्यार एक मिसाल था, पर ऐंजेलिना से ब्रैडपिट के संबंध होने पर इन का भी ब्रेकअप हो गया. बेन हिंजिस और लौरेन बुशनैल, कैटीपैरी और ओलैंडो ब्लूम, रिचर्ड पैरी और जेन फोंडा, निकी मिनाज और मीक मिल का ब्रेकअप भी सब को हैरान कर गया था.

टीवी की मशहूर हस्ती दिव्यांका त्रिपाठी और शरद मल्होत्रा दोनों ‘बनूं मैं तेरी दुलहन’ के सैट पर मिले थे. यह रिश्ता 7 साल चला पर फिर टूट ही गया. करण पटेल और काम्या पंजाबी का संबंध भी काफी चर्चा में रहा पर रिश्तों में अचानक आई खटास से ब्रेकअप भी हो गया. करण ने धूमधाम से अंकिता भार्गव से फिर जल्दी विवाह भी कर लिया.

आम लोगों में भी बढ़ता अलगाव

जहां मशहूर हस्तियों के टूटते रिश्तों के कई उदाहरण रोज देखने को मिलते हैं, वहीं आम लोगों के जीवन में भी इस तरह के रिश्ते कमजोर पड़ते दिख रहे हैं. झट प्यार भी होता है पर ब्रेकअप की खबर आते भी देर नहीं लग रही. पवई निवासी जूही और प्रशांत का 4 सालों से अफेयर था, दोनों के दोस्तों के ग्रुप में यह बात तय थी कि जल्द ही दोनों विवाह भी कर लेंगे. अलगअलग जाति थी पर दोनों के परिवार आधुनिक थे. दोनों के परिवार को यह संबंध पता भी था पर जब जूही के परिवार ने इस विवाह के लिए हामी नहीं भरी तो जूही ने प्रशांत से दूरी बनानी शुरू कर दी. आधुनिक, सुशिक्षित जूही का पीछे हटना सब को हैरान कर गया. जूही ने बहुत ही सहजता से तर्क दिया कि कौन फैमिली की टैंशन मोल ले. जितना साथ रहना था रह लिए. अब आगे देखते हैं.

बात सुननेपढ़ने में मामूली सी है पर अब रिश्ते सचमुच कमजोर पड़ते दिख रहे हैं. जूही का इतना व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रशांत को तोड़ गया. वह कई दिन तक आहत रहा. जूही ने 6 महीने के अंदर मातापिता की मरजी से एक लड़के से विवाह भी कर लिया. जीवन में आगे बढ़ने में कोई बुराई नहीं पर प्रश्न यह है कि आधुनिक रिश्ते इतने कमजोर क्यों हैं?

रिश्ते निभाना आजकल जटिल क्यों हो रहा है? क्या हम प्रेम करना भूल गए हैं? या उस से भी बुरा यह है कि हम यही भूल गए हैं कि प्रेम है क्या? आजकल के रिश्ते इतनी जल्दी क्यों टूट रहे हैं, कारणों पर एक नजर:

– हम शायद त्याग के लिए, समझौते के लिए, बिना किसी शर्त के प्यार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं. हम आजकल हर चीज सुगमता से पा लेना चाहते हैं. हम पलायन कर जाते हैं, हम अपना प्यार पूर्णतया विकसित ही नहीं होने देते. समय से पहले ही सब पा लेना चाहते हैं या सब छोड़ देते हैं.

– यह वह प्यार है ही नहीं जिस की हमें तलाश है. हम लाइफ में अब उत्तेजना और रोमांच चाहते हैं. हमें मूवीज और पार्टियों के लिए एक साथी चाहिए, न कि कोई ऐसा जो हमारे मौन को भी समझ ले. हम साथ समय तो बिताते हैं पर यादें नहीं सहेजते. हम बोरिंग लाइफ नहीं चाहते. हम अब जीवनसाथी नहीं, बस इसी समय वर्तमान का साथी सोच रहे होते हैं. हम अब किसी रहस्य की सुंदरता में यकीन नहीं करते, क्योंकि अब हमें साहसपूर्ण रोमांच भाता है.

– हमारे पास प्यार का समय ही नहीं है, रिश्तों को निभाने का धैर्य हम में बचा ही नहीं. शहरी भागदौड़ के बाद प्यार की जगह ही नहीं बचती. हम भौतिक सपने देखने वाले व्यस्त इंसान हो गए हैं. रिश्ते अब सुविधा से ज्यादा कुछ भी नहीं.

– हमें हर चीज में फौरन खुशी चाहिए. चाहे वह हमारी औनलाइन पोस्ट हो, कैरियर हो या वह इंसान जिसे हम प्यार करते हैं. रिश्तों में गंभीरता समय के साथ आती है, दूसरे व्यक्ति से पूर्णतया जुड़ने में सालों लग जाते हैं. अब प्यार के लिए समय और धैर्य कम ही पड़ जाते हैं.

– हम विकल्पों में विश्वास करने लगे हैं. हम सोशल लोग हैं, हम लोगों को जानने की बजाय बस उन से मिलते हैं. हम लालची हो गए हैं. हमें सब कुछ चाहिए. हम जरा से आकर्षण पर भी रिश्ता शुरू कर देते हैं और थोड़ा सा अपेक्षाकृत अच्छा साथी मिलने पर फौरन पुराने से बाहर आ जाते हैं.

– टैक्नोलौजी हमें एकदूसरे के बहुत ज्यादा पास ले आई है. इतना पास कि सांस लेना मुश्किल हो गया है. हमारी शारीरिक उपस्थिति की जगह टैक्स्ट्स, वौइस मैसेज, स्नैप चैट्स, वीडियो कौल्स ने ले ली है. हमें एकदूसरे के साथ समय बिताने की जरूरत ही महसूस नहीं होती, हमारे पास एकदूसरे के बारे में पहले ही बहुत जानकारी होती है, बात करने के लिए कुछ रह ही नहीं जाता.

– प्यार और सैक्स को अलगअलग ही देखा

जाने लगा है. सैक्स अब आसान है, निष्ठा रखना मुश्किल है. रिश्तों के बाहर सैक्स अब बड़ी बात नहीं रही. प्यार की जगह हमारे जीवन में सीमित रह गई है.

– यह व्यावहारिक पीढ़ी है, जो तर्क जानती है. हमें पागलपन की हद तक प्यार करना नहीं आता. हम अपना हितअहित सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाते हैं. प्यार में दीवानों की तरह किसी को देखने भागे जाने का समय अब किसी के पास नहीं.

– हम प्यार में कमिटमैंट और दिल टूटने से डरते हैं. हम अब आंख बंद कर किसी के प्यार में पड़ कर अपनी लाइफ खराब नहीं कर सकते.

इंसान का सब से जरूरी गुण प्यार है. हम शायद धीरेधीरे इस शब्द के माने ही भूल रहे हैं. आधुनिक समय में रह रहे हम कहीं

प्यार का वजूद, महत्त्व ही न भूल जाएं, यह विचारणीय है. रिश्तों से प्यार, सहयोग, समर्पण कहीं पूरी तरह से न खो जाए, इस बात का

ध्यान रखना होगा. मशीन की तरह न जी कर जीवनरूपी पौधे को प्यार भरे रिश्तों से सींचना होगा ताकि चारों ओर हवाओं में प्यार भरे रिश्तों की खुशबू आए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें