story in hindi
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अपनी शादी का वीडियो देखते हुए मैं ने पड़ोस में रहने वाली वंदना भाभी से पूछा, ‘‘क्या आप इस नीली साड़ी वाली सुंदर औरत को जानती हैं?’’
‘‘इस रूपसी का नाम कविता है. यह नीरज की भाभी भी है और पक्की सहेली भी. ये दोनों कालेज में साथ पढ़े हैं और इस का पति कपिल नीरज के साथ काम करता है. तुम यह समझ लो कि तुम्हारे पति के ऊपर कविता के आकर्षक व्यक्तित्व का जादू सिर चढ़ कर बोलता है,’’ मेरे सवाल का जवाब देते हुए वे कुछ संजीदा हो उठी थीं.
‘‘क्या आप मुझे इशारे से यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि नीरज और कविता भाभी के बीच कोई चक्कर है?’’
‘‘मानसी, सच तो यह है कि मैं इस बारे में कुछ पक्का नहीं कह सकती. कविता के पति कपिल को इन के बीच के खुलेपन से कोई शिकायत नहीं है.’’
‘‘तो आप साफसाफ यह क्यों नहीं कहतीं कि इन के बीच कोई गलत रिश्ता नहीं है?’’
‘‘स्त्रीपुरुष के बीच सैक्स का आकर्षण नैसर्गिक है. यह देवरभाभी के पवित्र रिश्ते को भी दूषित कर सकता है. जल्द ही तुम्हारी कविता और कपिल से मुलाकात होगी. तब तुम खुद ही अंदाजा लगा लेना कि तुम्हारे साहब और उन की लाडली भाभी के बीच किस तरह के संबंध हैं.’’
‘‘यह बात मेरी समझ में आती है. थैंक यू भाभी,’’ मैं ने उन के गले से लग कर उन्हें धन्यवाद दिया और फिर उन्हें अच्छा सा नाश्ता कराने के काम में जुट गई.
पहले मैं अपने बारे में कुछ बता देती हूं. प्रकृति ने मुझे सुंदरता देने की कमी शायद जीने का भरपूर जोश व उत्साह दे कर पूरी की है. फिर होश संभालने के बाद 2 गुण मैं ने अपने अंदर खुद पैदा किए. पहला, मैं ने नए काम को सीखने में कभी आलस्य नहीं किया और दूसरा यह है कि मैं अपने मनोभाव संबंधित व्यक्ति को बताने में कभी देर नहीं लगाती हूं.
मेरा मानना है कि इस कारण रिश्तों में गलतफहमी पैदा होने की नौबत नहीं आती है. जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने में मेरे इन सिद्धांतों ने मेरा बहुत साथ दिया है. तभी वंदना भाभी की बातें सुनने के बावजूद कविता भाभी को ले कर मैं ने अपना मन साफ रखा था.
हम शिमला में सप्ताह भर का हनीमून मना कर कल ही तो वापस आए थे. मैं तो वहां से नीरज के प्रेम में पागल हो कर लौटी हूं. लोग कहते हैं कि ऐसा रंगीन समय जिंदगी में फिर कभी लौट कर नहीं आता. अत: मैं ने तय कर लिया कि इस मौजमस्ती को आजीवन अपने दांपत्य जीवन में जिंदा रखूंगी.
उसी दिन कपिल भैया ने नीरज को फोन कर के हमें अपने घर रात के खाने पर आने के लिए आमंत्रित किया था. वहां पहुंचने के आधे घंटे के अंदर ही मुझे एहसास हो गया कि इन तीनों के बीच दोस्ती के रिश्ते की जड़ें बड़ी मजबूत हैं. वे एकदूसरे की टांग खींचते हुए बातबात में ठहाके लगा रहे थे.
मुझे कपिल भैया का व्यक्तित्व प्रभावशाली लगा. वे जोरू के गुलाम तो बिलकुल नहीं लगे पर कविता का जादू उन के भी सिर चढ़ कर बोलता था. मेरे मन में एकाएक यह भाव उठा कि यह इनसान मजबूत रिश्ता बनाने के लायक है. अत: मैं ने विदा लेने के समय भावुक हो कर उन से कह दिया, ‘‘मैं ने तो आप को आज से अपना बड़ा भाई बना लिया है. इस साल मैं आप को राखी बांधूंगी और आप से बढि़या सा गिफ्ट लूंगी.’’
‘‘श्योर,’’ मेरी बात सुन कर कपिल भैया के साथसाथ उन की मां की आंखें भी नम हो गई थीं. मुझे बाद में नीरज से पता चला कि उन की इकलौती छोटी बहन 8 साल की उम्र में दिमागी बुखार का शिकार हो चल बसी थी.
अगले दिन शाम को मैं ने फोन कर के नीरज से कहा कि वे कपिल भैया के साथ आफिस से सीधे कविता भाभी के घर आएं.
वे दोनों आफिस से लौटीं. कविता भाभी के पीछेपीछे घर में घुसे. यह देख कर उन सब ने दांतों तले उंगलियां दबा ली थीं कि कविता भाभी का सारा घर जगमग कर रहा था. मैं ने कविता भाभी की सास के बहुत मना करने के बावजूद पूरा दिन मेहनत कर के सारे घर की सफाई कर दी थी.
कविता भाभी की सास खुले दिल से मेरी तारीफ करते हुए उन सब को बारबार बता रही थीं, ‘‘तेरी बहू का जवाब नहीं है, नीरज. कितनी कामकाजी और खुशमिजाज है यह लड़की.’’
‘‘तुम अभी नई दुलहन हो और वैसे भी ये सब तुम्हें नहीं करना चाहिए था,’’ कविता भाभी कुछ परेशान और चिढ़ी सी प्रतीत हो रही थीं.
‘‘भाभी, मेरे भैया का घर मेरा मायका हुआ और नई दुलहन के लिए अपने मायके में काम करने की कोई मनाही नहीं होती है. अपनी कामकाजी भाभी का घर संवारने में क्या मैं हाथ नहीं बंटा सकती हूं?’’ उन का दिल जीतने के लिए मैं खुल कर मुसकराई थी.
‘‘थैंक यू मानसी. मैं सब के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर औपचारिक से अंदाज में मेरी पीठ थपथपा कर वे रसोई की तरफ चली गईं.
मुझे एहसास हुआ कि उन की नाराजगी दूर करने में मैं असफल रही हूं. लेकिन मैं भी आसानी से हार मानने वालों में नहीं हूं. उन्हें नाराजगी से मुक्त करने के लिए मैं उन के पीछेपीछे रसोई में पहुंच गई.
‘‘आप को मेरा ये सब काम करना
अच्छा नहीं लगा न?’’ मैं ने उन से भावुक हो कर पूछा.
‘‘घर की साफसफाई हो जाना मुझे क्यों अच्छा नहीं लगेगा?’’ उन्होंने जबरदस्ती मुसकराते हुए मुझ से उलटा सवाल पूछा.
‘‘मुझे आप की आवाज में नापसंदगी के भाव महसूस हुए, तभी तो मैं ने यह सवाल पूछा. आप नाराज हैं तो मुझे डांट लें, पर अगर जल्दी से मुसकराएंगी नहीं तो मुझे रोना आ जाएगा,’’ मैं किसी छोटी बच्ची की तरह से मचल उठी थी.
‘‘किसी इनसान के लिए इतना संवेदनशील होना ठीक नहीं है, मानसी. वैसे मैं नाराज नहीं हूं,’’ उन्होंने इस बार प्यार से मेरा गाल थपथपा दिया तो मैं खुशी जाहिर करते हुए उन से लिपट गई.
उन्हें मुसकराता हुआ छोड़ कर मैं ड्राइंगरूम में लौट आई. वे जब तक चाय बना कर लाईं, तब तक मैं ने कपिल भैया और नीरज को अगले दिन रविवार को पिकनिक पर चलने के लिए राजी कर लिया था.
रविवार के दिन हम सुबह 10 बजे घर से निकल कर नेहरू गार्डन पहुंच गए. मैं बैडमिंटन अच्छा खेलती हूं. उस खूबसूरत पार्क में मेरे साथ खेलते हुए भाभी की सांसें जल्दी फूल गईं तो मैं उन के मन में जगह बनाने का यह मौका चूकी नहीं थी, ‘‘भाभी, आप अपना स्टैमिना बढ़ाने व शरीर को लचीला बनाने के लिए योगा करना शुरू करो,’’ मेरे मुंह से निकले इन शब्दों ने नीरज और कपिल भैया का ध्यान भी आकर्षित कर लिया था.
‘‘क्या तुम मुझे योगा सिखाओगी?’’ भाभी ने उत्साहित लहजे में पूछा.
‘‘बिलकुल सिखाऊंगी.’’
‘‘कब से?’’
‘‘अभी से पहली क्लास शुरू करते हैं,’’ उन्हें इनकार करने का मौका दिए बगैर मैं ने कपिल भैया व नीरज को भी चादर पर योगा सीखने के लिए बैठा लिया था.
‘‘मुझे योगा भी आता है और एरोबिक डांस करना भी. मेरी शक्लसूरत ज्यादा अच्छी नहीं थी, इसलिए मैं ने सजनासंवरना सीखने पर कम और फिटनेस बढ़ाने पर हमेशा ज्यादा ध्यान दिया,’’ शरीर में गरमाहट लाने के लिए मैं ने उन्हें कुछ एक्सरसाइज करवानी शुरू कर दीं.
‘‘तुम अपने रंगरूप को ले कर इतना टची क्यों रहती हो, मानसी?’’ कविता भाभी की आवाज में हलकी चिढ़ के भाव शायद सब ने ही महसूस किए होंगे.
मैं ने भावुक हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं टची नहीं हूं, बल्कि उलटा अपने साधारण रंगरूप को अपने लिए वरदान मानती हूं. सच तो यही है कि सुंदर न होने के कारण ही मैं अपने व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास कर पाई हूं. वरना शायद सिर्फ सुंदर गुडि़या बन कर ही रह जाती… सौरी भाभी, आप यह बिलकुल मत समझना कि मेरा इशारा आप की तरफ है. आप को तो मैं अपनी आइडल मानती हूं. काश, कुदरत ने मुझे आप की आधी सुंदरता दे दी होती, तो मैं आज अपने पति के दिल की रानी बन कर रह रही होती.’’
‘‘अरे, मुझे क्यों बीच में घसीट लिया और कौन कहता है कि तुम मेरे दिल की रानी नहीं हो?’’ नीरज का हड़बड़ा कर चौंकना हम सब को जोर से हंसा गया.
‘‘वह तो मैं ने यों ही डायलौग मारा है,’’ और मैं ने आगे बढ़ कर सब के सामने ही उन का हाथ चूम लिया.
वह मेरी इस हरकत के कारण शरमा गए तो कपिल भैया ठहाका मार कर हंस पड़े. हंसी से बदले माहौल में भाभी भी अपनी चिढ़ भुला कर मुसकराने लगी थीं.
कविता भाभी योगा सीखते हुए भी मुझे ज्यादा सहज व दिल से खुश नजर नहीं आ रही थीं. सब का ध्यान मेरी तरफ है, यह देख कर शायद कविता भाभी का मूड उखड़ सा रहा था. उन के मन की शिकायत को दूर करने के लिए मैं ने तब कुछ देर के लिए अपना सारा ध्यान भाभी की बातें सुनने में लगा दिया. उन्होंने एक बार अपने आफिस व वहां की सहेलियों की बातें सुनानी शुरू कीं तो सुनाती ही चली गईं.
जल्द ही मैं उन के साथ काम करने वाले सहयोेगियों के नाम व उन के व्यक्तित्व की खासीयत की इतनी सारी जानकारी अपने दिमाग में बैठा चुकी थी कि उन के साथ भविष्य में कभी भी आसानी से गपशप कर सकती थी.
‘‘आप के पास बातों को मजेदार ढंग से सुनाने की कला है. आप किसी भी पार्टी की रौनक बड़ी आसानी से बन जाती होंगी,
कविता भाभी,’’ मेरे मुंह से निकली अपनी इस तारीफ को सुन कर भाभी का चेहरा फूल सा खिल उठा था.
उस रात को नीरज ने जब मुझे मस्ती भरे मूड में आ कर प्यार करना शुरू किया तब मैं ने भावुक हो कर पूछा, ‘‘मैं ज्यादा सुंदर नहीं हूं, इस बात का तुम्हें कितना अफसोस है?’’
‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ वह मस्ती से डूबी आवाज में बोले.
‘‘अगर मैं भाभी से अपनी तुलना करती हूं तो मेरा मन उदास हो जाता है.’’
‘‘पर तुम उन से अपनी तुलना करती ही क्यों हो?’’
‘‘आप के दोस्त की पत्नी इतनी सुंदर और आप की इतनी साधारण. मैं ही क्या, सारी दुनिया ऐसी तुलना करती होगी. आप भी जरूर करते होंगे.’’
‘‘तुलना करूं तो भी उन के मुकाबले तुम्हें इक्कीस ही पाता हूं, यह बात तुम हमेशा के लिए याद रख लो, डार्लिंग.’’
‘‘सच कह रहे हो?’’
‘‘बिलकुल.’’
‘‘मैं शादी से पहले सोचती थी कि कहीं मैं अपने साधारण रंगरूप के कारण अपने पति के मन न चढ़ सकी तो अपनी जान दे दूंगी.’’
‘‘वैसा करने की नौबत कभी नहीं आएगी, क्योंकि तुम सचमुच मेरे दिल की रानी हो.’’
‘‘आप अगर कभी बदले तो पता है क्या होगा?’’
‘‘क्या होगा?’’
मैं ने तकिया उठाया और उन पर पिल पड़ी, ‘‘मैं तकिए से पीटपीट कर तुम्हारी जान ले लूंगी.’’
वह पहले तो मेरी हरकत पर जोर से चौंके पर फिर मुझे खिलखिला कर हंसता देख उन्होंने भी फौरन दूसरा तकिया उठा लिया.
हमारे बीच तकियों से करीब 10 मिनट तक लड़ाई चली. बाद में हम दोनों अगलबगल लेट कर लड़ने के कारण कम और हंसने के कारण ज्यादा हांफ रहे थे.
‘‘आज तो तुम ने बचपन याद करा दिया, स्वीट हार्ट, यू आर ग्रेट,’’ उन्होंने बड़े प्यार से मेरी आंखों में झांकते हुए मेरी तारीफ की.
‘‘तुम्हें बचपन की याद आ रही है और मेरे ऊपर जवानी की मस्ती छा गई है,’’ यह कह कर मैं उन के चेहरे पर जगहजगह छोटेछोटे चुंबन अंकित करने लगी. उन्हें जबरदस्त यौन सुख देने के लिए मैं उन की दिलचस्पी व इच्छाओं का ध्यान रख कर चल रही हूं. अपना तो यही फंडा है कि एलर्ट हो कर संवेदनशीलता से जिओ और नएनए गुण सीखते चलो.
मेरी आजीवन यही कोशिश रहेगी कि मैं अपने व्यक्तित्व का विकास करती रहूं ताकि हमारे दांपत्य में ताजगी व नवीनता सदा बनी रहे. उन का ध्यान कभी इस तरफ जाए ही नहीं कि उन की जीवनसंगिनी की शक्लसूरत बहुत साधारण सी है.
वे होंठों पर मुसकराहट, दिल में खुशी व आंखों में गहरे प्रेम के भाव भर कर हमेशा यही कहते रहें, ‘‘मानसी, तुम्हारा जवाब नहीं.’’
जयश्री बिरमी घर में बेरोजगार बैठे एक शख्स को इश्क का बुखार चढ़ा और लड़की उसे मिल भी गई लेकिन जब वह उस से मिलने गया तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए… यों ही मैं घूमने निकला तो बस स्टौप पर एक सुंदर सी कन्या को देख रुक सा गया. वह बेहद सुंदर थी. साड़ी पहने उस की लंबी सी चोटी, सुंदर आंखें, छरहरे बदन को मैं बस देखता ही रह गया. तभी एक बस आई और वह उस में बैठ कर चली गई. मैं हक्काबक्का बस को जाते देखता रह गया. ?ट से अपनेआप को संभाला और घड़ी देखी तो 11 बजे थे. वहां से चल तो दिया लेकिन दूसरे दिन इसी वक्त यहां फिर आने के इरादे के साथ.
वैसे भी पढ़ाई पूरी हो गई थी मगर नौकरी या कामधंधा नहीं था तो इस दौरान इश्क की पींगें ही चढ़ा ली जाएं, यह सोच कर दूसरे दिन बनठन कर बस स्टौप पर पहुंचा तो वह भी बस में चढ़ने की कतार में खड़ी थी. उसे देख कर दिल बहुत जोर से धड़का जैसे गले से बाहर ही आ जाएगा. मैं भी कतार में खड़ा हो उस की ओर देख उस के सौंदर्य का नजरों से ही पान करने लगा. कल जो सुंदरता देखी थी वह और भी ज्यादा दिखनी शुरू हो गई और खयालों की दुनिया में जाने से ज्यादा उस के हुस्न का अवलोकन करना ज्यादा बेहतर सम?ा. बस आई तो हाथ में टिफिन ले वह बस में जा बैठी. हम भी पीछे हो लिए. एक ही सीट खाली देख थोड़ी उदारता का प्रदर्शन करते हुए उसे बैठने दे पास में खड़े हो कर आंखों से उस के सौंदर्य का हवाई अवलोकन करने लगा. अब वह भी थोड़ी बेतकल्लुफ सी बैठीबैठी मेरी गतिविधियों से अवगत होते हुए भी मु?ो नजरअंदाज कर रही थी.
मगर अब मेरी हिम्मत खुल गई थी और अब तो बेधड़क देखता रहा उस की सुहानी मूरत को. बस, एक ही बात का दुख था कि जब से देखा है उसे, इतनी बार बस में मिला उस से, लेकिन उस की आवाज नहीं सुनी जो मेरे हिसाब से चांदी की घंटी सी मीठी होनी चाहिए थी. उस का स्टैंड आ गया था तो वह उतर गई. पीछेपीछे मैं भी उतर गया और कुछ खुल कर उस के सामने हंस दिया. जवाब में उस के भी होंठ हलके से फड़फड़ाए थे. दूसरे दिन मिलने की आशा के साथ मैं भी घर की ओर चल पड़ा. सुबह उठते ही उसी के खयालों से दिनचर्या शुरू की और 10 बजते ही बस स्टौप पहुंच इंतजार में लग गया. सामने से होंठों पर मुसकान लिए वह आ गई और बस की लाइन में खड़ी हो गई तो मैं भी पीछे जा कर खड़ा हो गया. थोड़ी देर में बस आई तो आगे वह और पीछे मैं बस में चढ़ गए. संयोग से आज एक सीट पूरी खाली थी. मैं ने भी नारी सम्मान को मान देते हुए उसे बैठ जाने के लिए इशारे से बोला.
वह खिड़की के पास बैठ गई और मैं उस के साथ में बैठ इतरा रहा था. कंडक्टर आया तो उस ने अपने पर्स से पैसे निकाले तो कंडक्टर ने बिना पूछे ही टिकट पकड़ा दिया. इस पर वह मुसकरा कर रह गई. मेरा उस की आवाज सुन पाने का जो ख्वाब था वह टूट गया. टिकट के पैसे दे उस ने पर्स हम दोनों के बीच में रख दिया तो अपनी भी हिम्मत बढ़ी और पर्स को छू कर ऐसा महसूस होने लगा जैसे उस के गरम हाथों को छू लिया हो. मैं ने हिम्मत इकट्ठी की और जेब में से पैन निकाला व एक छोटी सी परची पर लिखा और उसे दूसरे दिन बस स्टौप के पास वाले बगीचे में मिलने बुला लिया. चिट्ठी उस के पर्स के बाहर वाले पौकेट में डाली और उस के उतरने से पहले ही बस से उतर गया. सारी रात सो नहीं पाया मैं कि पता नहीं वह आएगी भी या नहीं. दूसरे दिन समय होते ही बगीचे की ओर चल दिया जहां वह पहले से ही बैठी थी. सुंदर साड़ी, बालों में गजरा लगाए और होंठों पर हलकी सी लाली शायद कुदरती ही थी. मैं भी इधरउधर देख उस की ओर चल दिया और जा कर उस की बगल में बैंच पर बैठ गया तो वह थोड़ी अदा से मुसकराई.
मैं भी जवाब में हंस दिया. मैं अपनी ओर से पता नहीं क्याक्या पूछता रहा और बताता रहा लेकिन वह हंस कर सिर हलके से हां या न कहती रही. इस से मेरे सब्र ने जवाब दे दिया. मैं ?ां?ाला कर बोल ही पड़ा, ‘‘आप जवाब क्यों नहीं दे रही हो, गूंगी हो क्या?’’ इस पर उस ने उंगली से मेरी जेब की ओर इशारा किया जहां पैन था. मैं ने उसे वह दे दिया. उस ने अपने बैग में से एक छोटा सा कागज का टुकड़ा निकाल कुछ लिखा और मेरी ओर बढ़ा दिया. उस में लिखा था, ‘मैं पूर्णतया सुन सकती हूं लेकिन बोल पाने में असमर्थ हूं. क्या आप मु?ा से शादी करेंगे?’
अपनी तो बैंड बज गई, सोचा, वैसे भी बेकार हूं, दोस्त लोग ताना मारेंगे कि गूंगी ही मिली. मैं एक ?ाटके से उठ कर बिना पूछे, बिना देखे चल पड़ा. मैं वहां से जल्द से जल्द भाग जाना चाहता था. पैन लेने को भी नहीं रुका. तभी पीछे से एक मधुर चांदी की घंटी सी आवाज आई, ‘‘अपना पैन तो लेते जाएं, जनाब.’’ मैं जड़वत वहीं खड़ा रह गया. काटो तो खून नहीं. मगर अब कर भी क्या सकता था. उस ने मेरी परीक्षा ली थी, जिस में मैं फेल हो चुका था. पैन लेने की हिम्मत नहीं थी. कैसे करता उस का सामना और अब तो मुट्ठियां बांध पहले धीरेधीरे और बाद में ?ाट से दौड़ बगीचे से बाहर भागा और बाहर आ कर देखा तो कलेजा गले को आया हुआ था और पसीने से कपड़े गीले हो गए थे. इश्क का बुखार उतर चुका था.
स्नातक करने के बाद पिता के कहने पर मीना ने बीएड भी कर लिया था. एक दिन पिता ने मीना को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘मीना, मैं चाहता हूं कि अब तुम्हारे हाथ पीले कर दूं. तुम्हारे छोटे भाईबहन भी हैं न. बेटे, एकएक कर के अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहता हूं.’’
नाराज हो गई थी वह पापा से, शादी की बात सुन कर, ‘‘पापा, प्लीज, मुझे शादी कर के निबटाने की बात न करें. मैं आगे पढ़ना चाहती हूं. मुझे एमए कर के पीएचडी भी करनी है.’’
कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘अगर तुम्हारी पढ़ने की इतनी ही इच्छा है तो मैं तुम्हारे रास्ते का रोड़ा नहीं बनूंगा. जितनी मरजी हो पढ़ो.’’
पापा की बात सुन कर वह उस दिन कितना खुश हुई थी. लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु के कारण उत्तरदायित्व के एहसास ने महत्त्वाकांक्षाओं पर विजय पा ली थी. मीना ने 20 साल की छोटी उम्र में ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी.
7 साल बाद जब 2 बड़े भाई और बहन ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली तो उन्होंने कहा था, ‘‘जीजी, आप ने हमारे लिए बहुत किया है. अब हमें घर संभालने दीजिए.’’
जिम्मेदारियों के कंधे बदलते ही मीना ने सोच लिया कि वह अब ब्याह कर के अपना घर बसा लेगी. 3 साल बाद 30 वर्षीय मीना की शादी 35 वर्षीय सुशांत से हो गई.
शादी के 2 वर्ष बाद जब मीना ने पुत्री को जन्म दिया तो वह खुशी से फूली नहीं समाई. मीना की सास ने बच्ची का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘इस बार लक्ष्मी आई है, ठीक है. पोते का मुंह कब दिखा रही हो?’’
बेटी नीता, अभी 2 साल की भी नहीं हुई थी कि घर के बुजुर्गों ने मीना पर बेटे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया. जल्द ही मीना गर्भवती हुई और समय पूरा होने पर उस ने फिर बेटी को जन्म दिया. दूसरी बेटी मीता के जन्म पर सब के लटके हुए चेहरों को देख कर मीना ने सुशांत से कहा, ‘‘सुशांत, हमारी इस बेटी का भी जोरशोर से स्वागत होना चाहिए. बेटियां, बेटों से किसी तरह भी कम नहीं हैं. किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के बजाय, हम बेटियों को ऊंची से ऊंची शिक्षा देंगे. फिर देखिए, कल आप उन पर गर्व करेंगे.’’
‘‘ठीक है मीना, तुम इतनी भावुक मत बनो. यह मेरी भी तो बेटी है, जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा.’’
कुछ दिन तो सबकुछ ठीक रहा. फिर घर में बेटे की रट शुरू हो गई. मीना के संस्कार उसे इजाजत नहीं देते थे कि वह घर के बड़ों से बहस करे. उस ने सुशांत से बात की.
‘‘सुशांत, हम इन 2 बेटियों की परवरिश अच्छी तरह करेंगे. मैं ने आप से पहले भी कहा था, तो फिर यह जिद क्यों?’’
सुशांत पर अपने मातापिता का प्रभाव इतना था कि वे भी उन की ही भाषा बोलते थे. वे मीना को समझाने लगे, ‘‘मीना, हमें एक बेटे की बहुत चाह है. कल को ये बेटियां ब्याह कर अपनेअपने घरों को चली जाएंगी, तो हमारी देखभाल के लिए बेटा ही साथ रहेगा न.’’
सुशांत का उत्तर सुन कर भड़क गई मीना, ‘‘सुशांत, क्या मैं ने अपने परिवार को नहीं संभाला? फिर हमारी बच्चियां हमारा सहारा क्यों नहीं बनेंगी? वास्तव में अपने बच्चों से ऐसी अपेक्षा हम रखें ही क्यों?’’
मीना की एक न चली. वह तीसरी बार भी गर्भवती हुई और उस ने फिर एक बेटी को जन्म दिया.
3 बच्चों की परवरिश, फिर स्कूल का काम, दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करना मीना को काफी मुश्किल लग रहा था. इस का असर मीना के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा.
3 बेटियों के बाद मीना पर जब फिर से दबाव डालने का सिलसिला शुरू हुआ तो वह चुप नहीं रह सकी. बरदाश्त की हद जब पार हो गई तो जैसे बम फूट पड़ा, मीना चीख उठी, ‘‘मैं कोई बच्चा पैदा करने की मशीन हूं? मेरी उम्र 40 पार कर चुकी है. ऐसे में एक और बच्चा पैदा करने का मेरे स्वास्थ्य पर क्या असर होगा, सोचा है आप ने? बस, बहुत हो गया. मुझ पर दबाव डालना बंद कीजिए.’’
मीना की सास अवाक् खड़ी बहू का मुंह देखती रह गईं. मीना भी वहां खड़ी नहीं रह सकी. अपने कमरे में पहुंच कर फूटफूट कर रोने लगी. सुशांत ने मीना को गले से लगा कर शांत कराया. शांत होने पर मीना मन ही मन सोचने लगी कि उस ने इस अनावश्यक दबाव के खिलाफ आवाज उठा कर कोई गलत नहीं किया है. थोड़े दिन तक तो सब शांत रहा. एक दिन सुशांत ने मीना से कहा, ‘‘मीना, क्यों न हम एक अंतिम कोशिश कर लेते हैं. अब की बार चाहे लड़का हो या लड़की, मैं तुम से वादा करता हूं, फिर कभी इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा. प्लीज, मान जाओ.’’
कोमल स्वभाव की मीना पति की बातों में आ गई. इस बार जब वह गर्भवती हुई तो 3 बच्चों की परवरिश, ऊपर से बढ़ती उम्र उस के स्वास्थ्य पर हावी होने लगी. मीना को हार कर लंबी छुट्टी लेनी पड़ी, जो वेतनरहित थी.
समय पूरा होने पर मीना ने एक बेटे को जन्म दिया. अपनी मनोकामना पूरी होते देख, सब के चेहरों पर खुशी देखते बनती थी. उन की ये खुशी क्षणभंगुर साबित हुई. बच्चे को अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी. उसे औक्सीजन दी जाने लगी. डाक्टरों ने बताया, ‘‘बच्चे के शरीर में औक्सीजन की कमी होने की वजह से मस्तिष्क को सही समय पर औक्सीजन नहीं मिल पाई, इसलिए उस के दोनों हाथ और पैर विकृत हो गए हैं.’’
ऐसा शायद गर्भावस्था के दौरान मीना की बढ़ती उम्र और कमजोरी के कारण हुआ था. इस के बाद पैसा पानी की तरह बहाने के बावजूद मीना का बेटा अरुण स्वस्थ नहीं हो पाया था. वह जिंदगीभर के लिए अपाहिज बन गया.
मीना और सुशांत पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. पहले तो सुशांत बेटा चाहते थे, जो उन के बुढ़ापे की लाठी बने. अब उन्हें यह चिंता सताने लगी कि उन के बाद उन के बेटे की देखभाल कौन करेगा.
करीब 1 साल तक छुट्टी लेने के बाद मीना फिर से स्कूल जाने लगी. पहले वाली मीना और इस मीना में जमीनआसमान का अंतर था. पहले कितनी सुघड़ रहा करती थी मीना. अब तो कपड़े भी अस्तव्यस्त रहा करते थे. दिनरात की चिंता ने उसे समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया था.
बच्चियां मां को सांत्वना देतीं, ‘‘मां, आप पहले की तरह हंसतीबोलती क्यों नहीं हैं? भाई की देखभाल हम सब मिल कर करेंगे. आप चिंता मत कीजिए.’’
बच्चियों की बातें सुन कर मीना उन्हें गले लगा लेती. अपनेआप को बदलने की कोशिश भी करती, पर फिर वही ‘ढाक के तीन पात.’ वास्तव में बच्चियों की बातों से मीना आत्मग्लानि से भर जाती थी. वह अपनेआप को कोसती, ‘अरुण को इस दुनिया में ला कर मैं ने बच्चियों के साथ अन्याय किया है. एक और बच्चे को इस दुनिया में न लाने के अपने निर्णय पर मैं अटल क्यों नहीं रह सकी? अपनी इस कायरता के लिए दूसरे को दोष देने का क्या फायदा? अन्याय के खिलाफ कदम न उठाना भी किसी गुनाह से कम तो नहीं.’
एक तो बढ़ती उम्र में कमजोर शरीर, ऊपर से यह मानसिक पीड़ा.
मानसिक चिंताएं शरीर को दीमक की तरह खोखला कर जाती हैं. दुखों का सामना न कर पाने की स्थिति में दुर्बल शरीर, कमजोर इमारत की तरह भरभरा कर गिर जाता है. यही हाल हुआ मीना का. एक रात जब वह सोई तो, फिर उठ नहीं सकी. वह चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी. मीना की सास की बूढ़ी हड्डियों में इतना दम कहां था कि वे सबकुछ संभाल सकें. कुछ ही दिनों में वे भी इस दुनिया से कूच कर गईं.
पत्नी और मां की विरह वेदना से ग्रसित सुशांत एक जिंदा लाश बन कर रह गए. उन की 2 बड़ी बेटियां जैसे रातोंरात बड़ी हो गईं. लड़कियां बारीबारी से अपने भाई का ध्यान रखतीं. दोनों बड़ी बहनें, भाई की दैनिक जरूरतों, खानेपीने का ध्यान रखतीं. नीता ने अपनी सब से छोटी बहन प्रिया को हिदायत दे रखी थी कि वह अरुण के पास बैठ कर पढ़ाई करे.
कहानी की पुस्तकें जोर से पढ़े ताकि अरुण भी उन का मजा ले सके. लड़कियां बारीबारी से अपने भाई को पढ़ाती भी थीं. पर वह अपने विकृत हाथों की वजह से कुछ लिख नहीं पाता था. उस के हाथों के मुकाबले उस के पांव कम विकृत थे. लड़कियों ने महसूस किया कि अरुण के पैरों की उंगलियों के बीच पैंसिल फंसा देने पर वह लिखने लगा था. उस की लिखावट अस्पष्ट होने पर भी, जोर देने पर पढ़ी जा सकती थी. कभीकभी अरुण कागज पर आड़ीतिरछी रेखाएं खींचता था, तो कुछ चित्र उभर कर आ जाता. बहनों ने जब देखा कि अरुण चित्रकारी में रुचि ले रहा है, तो उन्होंने उस के लिए एक गुरु की तलाश शुरू कर दी. इस के लिए उन्हें कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. घर बैठे ही इंटरनैट में उन्हें एक ऐसा गुरु मिल गया जो अपने हाथों से अक्षम बच्चों को पैरों की मदद से चित्रकारी करना सिखाता था. अरुण बहुत मन लगा कर सीखता था. देखते ही देखते वह इस कला में माहिर हो गया.
एक दिन ऐसा भी आया जब बहनों ने अरुण के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई. प्रदर्शनी काफी कामयाब रही. अरुण के चित्रों को बहुत सराहा गया. चित्रों की अच्छी बिक्री हुई और बहुत से और्डर भी मिले. फिर अरुण ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बहनों ने अरुण का नाम विकलांगों की श्रेणी में ‘गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स’ में भी दर्ज करा दिया. एक विदेशी संस्था, जो विकलांगों की मदद करती थी, ने इसे देखा और इस तरह अरुण के पास विदेशों से ग्रीटिंग कार्ड्स डिजाइन करने के और्डर आने लगे. अरुण अब डौलर में कमाने लगा.
सुशांत अब काफी संभल चुके थे. वक्त घावों को भर ही देता है. एकएक कर के उन्होंने अपनी 2 बड़ी बेटियों की शादियां कर दीं. छोटी अभी पढ़ रही थी. अरुण अब बड़ा हो गया था, इसलिए उस की देखभाल में दिक्कतें आने लगी थीं. ऐसा लगा जैसे प्रकृति ने उन की सुन ली थी. मीता इस बार जब मायके आई तो अपने साथ असीम को ले कर आई, जो बेहद ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ था. असीम पढ़ालिखा था पर बेरोजगार था. वह मीता के पति के पास नौकरी की तलाश में आया था. अरुण, असीम को मोटी रकम पगार के तौर पर देने लगा. असीम जैसा साथी पा कर अरुण बेहद खुश था.
आज टीवी वाले घर पर आए हुए हैं. वे अरुण का इंटरव्यू लेना चाहते हैं. कैमरा अरुण की तरफ घुमा कर कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता ने अरुण का परिचय देने के बाद कहा, ‘‘अरुण से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए. हाथपैर सहीसलामत रहने पर भी लोग अपनी असमर्थता का रोना रोते रहते हैं. अपने पैरों की उंगलियों की सहायता से अरुण जिस तरह जानदार चित्र बनाता है, वैसा शायद हम हाथ से भी नहीं बना सकते. अरुण ने यह साबित कर दिया है कि जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. अरुण, अब आप को बताएगा कि वह अपनी सफलता का श्रेय किसे देता है.’’
अरुण ने कहा, ‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी बहनों की बदौलत हूं. मैं ने अपनी मां को बचपन में ही खो दिया था. बहनों ने न सिर्फ मुझे मां का प्यार दिया बल्कि मेरी प्रतिभा को पहचान कर, मेरे लिए गुरुजी की व्यवस्था भी की. आज मैं अपने पिता, गुरुजी और सब से बढ़ कर अपनी बहनों का आभारी हूं.’’
अरुण की बातें कुछ अस्पष्ट सी थीं, इसलिए असीम, अरुण द्वारा कही बातों को दोहराने के लिए आगे आया. सुशांत वहां और ठहर नहीं सके. उन्होंने अपनेआप को कमरे में बंद कर लिया. मीना का फोटो हाथ में ले कर विलाप करने लगे, ‘‘मीना, देख रही हो अपने बच्चों को, उन की कामयाबी को. काश, आज तुम हमारे बीच होतीं. तुम्हें तो शुरू से ही अपनी बच्चियों पर विश्वास था. मैं ही तुम्हारे विश्वास पर विश्वास नहीं कर सका और तुम्हें खो बैठा. लेकिन आज मैं फख्र के साथ कह सकता हूं कि ऐसी होती हैं बेटियां क्योंकि उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए पूरे घर को संभाला, यहां तक कि मुझे भी. अपने भाई को काबिल बनाया और मेरी एक आवाज पर दौड़ी चली आती हैं.’’
उस दिन आकाश से बाजार में भेंट हो जाना कामिनी के लिए सुखद संयोग था. साथसाथ चलते बातचीत होती रही. जीवन में घट रही घटनाओं को आकाश से साझा किया तो वह चौंक उठा,”कैसे अजीबोगरीब आदमी हैं तुम्हारे पति। भूल गईं कि मैं ने तुम्हें नागचंपा इत्र भेंट करते हुए क्या कहा था? नागचंपा की पत्तियों के आकार जैसे नाग के फन क्यों नहीं दिखाए जब महीप तुम पर अत्याचार कर रहा था. फिर उस स्वामी को भी सह रही हो. क्यों? स्वामी ने छूने की जब पहली कोशिश की तो तुम नागचंपा पेड़ की लकड़ी सी क्यों नहीं बन गईं? वह गलीज तुम्हारी इच्छा, तुम्हारी इज्जत यहां तक कि तुम्हारी कोमल भावनाओं पर अपनी कुटिल कुल्हाड़ी चलाता रहा, क्यों नहीं तब नागचंपा की सख्त लकड़ी बन नीचता की उस कुल्हाड़ी की धार निस्तेज कर दी तुम ने? नागचंपा के फूलों सी तुम्हारी उजली देह की महक और पत्तियों की छाया लेता रहा वह. कितना समझाया था विवाह से पहले मैं ने. क्या लाभ हुआ उस का?” सब सुनने के बाद व्यग्र हो आकाश ने प्रश्न कर डाले.
“तो क्या करूं?” आकाश के प्रश्न के उत्तर में कामिनी ने प्रतिप्रश्न कर कुछ क्षणों की चुप्पी साध ली फिर बोली, “महीप ने जीवन नर्क बना दिया. स्वामी के आश्रम में मन पक्का कर कुछ घंटों चुपचाप अपनी देह सामने रख देती हूं, उस के बाद तो शांति है. कोई कुछ कहता नहीं, उलटे स्वामी के नजदीक होने से वहां का हर कार्यकर्त्ता मुझे सम्मान देता है.”
“तुम शायद समझ नहीं पा रही स्वामी का खेल. तुम्हारे पति के दिमाग में यह ठूंस दिया कि महीने में 1 बार ही बनाना है संबंध. नतीजतन महीप करीब ही नहीं आ पाया तुम्हारे. इस से न तो आपसी अंडरस्टैंडिंग बनी न दोनों को शरीर का सुख मिला. महीप को भी पति सुख की चाह तो होती ही होगी. अपनी उस इच्छा को दबाने से कुंठित प्रवृति का होता जा रहा है वह. गुस्सा उतरता है तुम पर. तुम्हें वह गर्भधारण न करने पर पापी समझ रहा है. इधर तुम महीप के बरताव से परेशान स्वामी के सामने समर्पण कर रही हो, उस के सामने जिस के कारण तुम पापी कहलाई जा रही हो. दान के नाम पर पैसा भी तुम्हारे घर से जा रहा है. कुछ समझी? असली गुनहगार महीप नहीं स्वामी है.”
“मैं ने तो बहुत कोशिश की महीप को स्वामी की असलियत बताने की, लेकिन वह उन के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहता,” कामिनी बेबस दिख रही थी.
“स्वामी बहुत शातिर है. पहले अपने प्रवचनों से पत्नियों का आत्मविश्वास तोड़ता है फिर ऐक्सप्लोयट करता है. तुम पति के सामने स्वामी की पोल न खोलो इसलिए तुम्हारे गुस्से को प्रसाद का नाम दे कर एक तरफ तुम्हें अपनी ओर कर लिया, तो दूसरी ओर तुम्हारे पति के मन में हीनभावना उत्पन्न कर उस की हिम्मत तोड़ रहा है. वह मूर्ख महीप मन ही मन व्याकुल हो कर भी स्वामी की कलाई नहीं छोड़ रहा.”
“मेरी जिंदगी यों ही चलेगी क्या अब?” कामिनी निराशा के गर्त में डूब रही थी.
“महीप तुम्हारे नजदीक आ जाए तो स्वामी की पट्टी उस की आंखों से उतर जाएगी. कुछ सोचता हूं. कल मिलोगी?”
“ठीक है. मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना दे दो. बता देना जहां मिलना हो. घर पर मम्मीपापा के सामने तो बात नहीं हो सकेगी.”
घर पहुंच कर कामिनी सुकून महसूस कर रही थी, उधर आकाश समाधान खोजने में जुटा था. रात 10 बजे आकाश का मैसेज आया कि कामिनी उस से 2 दिन बाद कालेज की कैंटीन में मिले, कल नहीं.
कामिनी निर्धारित दिन सहेलियों से मिलने का बहाना बना कर कैंटीन चली आई. आकाश भी नियत समय पर आ गया. कामिनी के पास ही कुरसी ले कर बैठते हुए बोला,“मैं ने तुम को 2 दिन बाद आने को इसलिए कहा था कि अपने एक मित्र की सहायता से महीप के बारे में कुछ पता लगवाऊं. वह दोस्त महीप के गांव का रहने वाला है. उस ने कई बातें बताई हैं मुझे. सब से पहले उस बात का जिक्र करूंगा जिस से मुझे यह सोचने में मदद मिली कि हमें क्या करना चाहिए.”
“बताओ न फिर जल्दी,” कामिनी अधीर हो रही थी.
“कई वर्षों पहले महीप के गांव में एक महिला के अंदर देवी आया करती थी और महीप उस को बहुत सम्मान देता था. उस की हर बात मानता था.”
“अच्छा तो क्या हुआ उस का बाद में?”
“होगा क्या, जब तक गांव में रही, देवी आने का नाटक कर खूब लूटा लोगों को. बाद में पति के साथ गांव छोड़ कर चली गई. खैर, असली मुद्दा यह नहीं है कि उस का क्या हुआ. मैं तो तुम्हें यह कहना चाह रहा था कि तुम्हें भी अपने पति के सामने देवी होने का ढोंग करना होगा.”
“लेकिन क्यों? यह कैसा समाधान है?”
“यही है समाधान. तुम्हारे पति को पाखंडी लोगों पर विश्वास है तो इस का फायदा उठाओ. वह देवी को अवश्य सम्मान देगा, तब देवी बनीं तुम अपनी बात मनवा लेना. मैं महीप के जीवन और परिवार से जुड़ी कुछ बातें बता दूंगा जो मेरे दोस्त ने मुझे बताई हैं. वे सब किस्से तुम अपनी शक्ति से पता लगने का नाटक करना. महीप का ध्यान कहीं और किसी अन्य शक्ति में लगेगा तो स्वामी के बंधन से खुद ब खुद आजाद हो जाएगा.”
“तुम कहते हो तो कोशिश कर लूंगी,” कामिनी सहमति में सिर हिला कुरसी से उठ खड़ी हो गई.
“एक बात और,” आकाश कामिनी को रोकते हुए बोला, “याद है न तुम कैसे भारी सी आवाज निकालती थीं. उसी तरह बोलना देवी बन कर.”
कामिनी की हंसी छूट गई, “हां, अच्छा याद दिलाया. एक दिन मैं खुद से बात करते हुए महीप की आवाज निकाल रही थी, लेकिन महीप को इस बारे में कुछ पता नहीं.”
“जब समय मिले फोन पर इस बारे में जानकारी देती रहना.”
चलने से पहले आकाश ने उसी अंदाज में कामिनी को ‘औल द बैस्ट’ कहा जैसे परीक्षा से पहले कहा करता था.
कासगंज लौटने के बाद कामिनी योजनानुसार देवी बनने के अवसर की तलाश में रहने लगी. एक दिन वह नहा कर निकली तो आंगन में खड़े हो कर भारी आवाज में जोरजोर से चिल्लाने लगी, “मुझे मीठा चाहिए कुछ गरमगरम. पूरी और आलू की सब्जी खाऊंगी और पान भी. मीठा पान. अभी…”
कमरे से भागता हुआ महीप आंगन में आया और कामिनी को खींचता हुआ अंदर कमरे में ले गया. कामिनी आंखें निकाल गुर्रा कर बोली, “जो कहा है करो जल्दी. जाओ, अभी चाहिए, जो मैं ने मांगा है.”
महीप को उस महिला की याद आ गई जिस पर गांव में देवी आती थी. कामिनी में किसी दैवीय शक्ति का प्रवेश महीप को डरा रहा था. ‘देवी की इच्छा पूरी न की तो श्राप दें देंगी’ सोचते हुए महीप भागाभागा बाजार गया. गाजर का हलवा, पूरियां हलवाई से पैक करने को कहा तब तक पान खरीदा फिर उलटे पांव दौड़ते हुए घर आ गया. कामिनी झूम रही थी. दोनों चीजें उस के सामने रख महीप चुपचाप खड़ा हो गया. एक पूरी और थोड़ा सा हलवा खा कर कामिनी ने बाकी उस की ओर बढ़ा दिया,”लो, खाओ तुम भी.” पान भी आधा उसे दे दिया.
महीप सब खा कर आनंदित तो हुआ लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला. अभी तक वह आश्रम में अधिक से अधिक दान देने के चक्कर में अपना मन मारे रहता था.
कुछ देर झूमने के बाद कामिनी बिस्तर पर जा कर लेट गई. 10 मिनट यों ही लेटे रहने के बाद धीरे से आंखें खोल कर देखा. महीप उस के पास ही बैठा था. कामिनी धीमी आवाज में बोली, “मुझे क्या हुआ था अभी कुछ याद नहीं. थकान बहुत हो रही है. पानी पीती हूं.” महीप चुपचाप उठ कर उस के लिए पानी ले आया. कुछ देर बाद बिना कुछ कहे काम पर निकल गया. कामिनी को महीप का बदला हुआ रूप अच्छा लग रहा था.
2 दिन निकल गए। तीसरे दिन कामिनी फिर नहाने के बाद कमरे में नाश्ता कर रहे महीप के सामने आ कर खूब मोटी, भारी आवाज बना कर बोली, “मुझे साड़ी चाहिए, गुलाबी रंग की. ठीक वैसी ही जैसी तुम ने मालती को दी थी 5 साल पहले. मालती तो तुम से फिर भी क्रोधित ही रही थी लेकिन मैं प्रसन्न हो जाऊंगी. अभी मैं जा रही हूं. तुम जल्दी ही सारा सामान एकत्र कर मेरी तसवीर के आगे रखने के बाद कामिनी को सजा देना. समझ गए न? उसे अपने हाथों से साड़ी पहनाना, बिंदी, सिंदूर लगाना,” बात पूरी करते ही कामिनी झूमने लगी, फिर लेट गई.
महीप हतप्रभ था. मालती कई वर्ष उस की प्रेमिका रही थी. दोस्त की बहन मालती ने उस से अनेक उपहार लिए थे फिर नाराजगी का झूठा नाटक कर किसी और से विवाह कर लिया था. महीप को डर था कि देवी द्वारा बताया मालती का किस्सा कहीं कामिनी को भी पता न लग गया हो. कामिनी अपने सामान्य रूप में आई तो मालती का नाम तक न लिया. चैन की सांस लेते हुए महीप ने देवी का बताया सामान खरीदा और कामिनी को सजाने के लिए छुट्टी का दिन चुना.
“आप मुझे सजाएंगे? कोई खास बात है क्या?” कामिनी ने अनजान बनते हुए पूछा.
“बस यों ही. तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती शायद. सजतीधजती नहीं हो आजकल,” महीप ने बात बना दी.
कामिनी के गोरे मखमली बदन पर साड़ी लपेटते हुए महीप को एक सुखद अनुभव हो रहा था. मेकअप किया तो लगा ऐसे स्पर्श की अनुभूति तो पहले हुई ही नहीं थी. उस का रोमरोम कामिनी के जिस्म को पाने की लालसा करने लगा.
आकाश ने महीप के विषय में जो जानकारी जुटाई थी उस में महीप के एक मित्र अजीत का विशेष उल्लेख था. महीप स्वामीजी का चेला बनने से पहले देवी वाली महिला का भक्त होने के साथसाथ बचपन के दोस्त अजीत के बहुत करीब था. अपनी समस्याएं, उलझनें, विचार वह अजीत के साथ साझा किया करता था. इस बार देवी बनी कामिनी ने अजीत का नाम लिया और महीप के समक्ष यादें ताजा करवा दीं. उस दिन जब कामिनी सामान्य हुई तो महीप ने उसे अपने मित्र अजीत के विषय में बहुत कुछ बताया,”मेरा बहुत मन करता है अजीत से मिलने का,” कहते हुए महीप की आंखें नम हो गईं.
कामिनी ने आकाश को उस दिन मैसेज किया कि शायद समय आ रहा है, धीरेधीरे महीप स्वामी के पंजे से मुक्त हो सकता है.
2 दिन बाद नहा कर जब कामिनी बाहर निकली तो जोरजोर से हंसने लगी. महीप हाथ जोड़ सिर झुकाए सामने खड़ा रहा. देवी ने भारीभरकम आवाज में कहा, “इस के बाद अब मैं कब आऊंगी पता नहीं. जातेजाते इतना कहना चाहती हूं कि सुगंधित साबुन…” कामिनी ने अपनी बात पूरी नहीं की थी कि महीप को लगातार हाथ जोड़े अपनी ओर ताकते उसे हंसी आने लगी. किसी तरह अपनी हंसी दबा कर बात वहीं छोड़ वह चुपचाप बिस्तर पर जा कर लेट गई.
महीप ने अनुमान लगाया कि देवी चाहती हैं कि वह अच्छा सा खुशबूदार साबुन खरीद उस का प्रयोग कामिनी पर करे. उस दिन शाम को चंदन की खुशबू वाला साबुन ले कर वह घर आया. कामिनी को दिखाते हुए बोला, “जब तुम्हें मैं अपने हाथों से सजाता हूं तो अच्छा लगता है न? देखो यह नहाने का महकदार साबुन ले कर आया हूं. तो कल सुबह… समझ गईं न?”
कामिनी लाज से लाल हो गई. उस की झुकी पलकें और मुसकान लिए गुलाबी होंठ देख महीप का दिल फूल सा खिल उठा. रातभर वह यह सोच कर ही रोमांचित हुआ जा रहा था कि क्या सचमुच ऐसा हो सकेगा?
अगले दिन कामिनी उठी तो सिर चकरा रहा था. बोली, “अपच जैसा हो रहा है. महीना भी नहीं आया.”
“डाक्टर के पास चलते हैं.” महीप आज पहली बार कामिनी की चिंता करता दिख रहा था.
क्लिनिक पर गए तो खुशखबरी मिली, कामिनी के मां बनने के संकेत थे.
घर पहुंचकर कामिनी लेट गई. महीप उस के समीप बैठ कर भविष्य के सपने देख रहा था कि दरवाजे की घंटी बज गई. बेमन से महीप ने दरवाजा खोला तो आश्चर्यचकित रह गया. स्वामीजी आए थे. अंदर घुसते ही बोले, “बहुत दिनों से तुम लोग नहीं आए तो मैं ने सोचा आज मैं ही कामिनी से मिलने चलता हूं.”
महीप को स्वामीजी का केवल कामिनी से मिलने की इच्छा जताना बिलकुल अच्छा नहीं लगा, फिर भी उन को आदर से बैठाते हुए बोला, “कामिनी की तबीयत ठीक नहीं है. आप बैठिए उसे बुलाता हूं.”
अधीर स्वामीजी उठ कर बैडरूम तक पहुंच गए. उसे बेटी कहते हुए बाहुपाश में कस गालों को चूम लिया. महीप के लिए स्वामीजी का यह रूप बिलकुल नया था. दोनों को आश्रम में जल्द हाजिर होने की आज्ञा दे कर वे चले गए.
स्वामीजी के प्रति महीप का क्रोध देख कामिनी बोली, “मैं ने आप को कितनी बार समझाने की कोशिश की इन के बारे में, लेकिन आप ने कभी सुनना ही नहीं चाहा. अनुष्ठान के बहाने न जाने कितनी लड़कियों का शोषण किया होगा इस स्वामी ने.”
“अब क्या होगा? यह तो तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ेगा,” घबराया सा महीप बोला.
“आप को डरने की जरूरत नहीं है. हम पुलिस के पास चलेंगे. इस के द्वारा शोषित कुछ लड़कियों के मोबाइल नंबर हैं मेरे पास, उन से भी बात करती हूं.”
महीप अब तक आश्रम में दिए दान का मोटामोटा हिसाब लगा पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था. कामिनी ने आकाश को मैसेज कर पूरी बात बताते हुए यह भी लिखा, “जब मुझे विश्वास हो जाएगा कि महीप पूरी तरह बदल गए हैं तब अपने देवी बनने का सच बता दूंगी.”
आकाश ने जवाब दिया, “अपने पति को फूलों की सुगंध और पत्तियों की छांव देते हुए सुधारने का काम काबिल ए तारीफ है. इस के अलावा तुम मजबूत लकड़ी बन कर स्वामी जैसे लोगों के होश ठिकाने लगवाने का काम भी कर रही हो. तो कामिनी आज फख्र से कहता हूं कि तुम हो नागचंपा.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में जो कहा उस से सिद्ध हो गया कि वे कांग्रेस और राहुल गांधी से कितना भयभीत हैं. सांसद में अपने भाषण के दौरान सब से ज्यादा 85 बार देश, 43 बार कांग्रेस, 31 बार भारत, 19 बार विपक्ष, 14 बार महंगाई, 9 बार परिवारवाद, 8 बार किसान-युवा, 7 बार भ्रष्टाचार, 7 बार नेहरू, 5 बार बेटियों और 2 बार इंदिरा गांधी का नाम नरेंद्र मोदी ने लिया.
नरेंद्र मोदी ने कहा, “एक ही प्रोडक्ट को कई बार लौंच करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान पर ताला लगने की नौबत आ गई है. देश के साथसाथ कांग्रेस भी परिवारवाद का खमियाजा भुगत रही है. यह विपक्ष कई दशक तक सत्ता में बैठा था, वैसे ही इस विपक्ष ने कई दशक तक विपक्ष में बैठने का संकल्प लिया है. जनता के आशीर्वाद से ये अगले चुनाव में दर्शक दीर्घा में दिखेंगे.”
मोदी ने 2024 लोकसभा चुनाव के रिजल्ट पर कहा, “देश का माहौल बता रहा है कि अब की बार 400 पार. अकेले भाजपा 370 सीटें जीतेगी.”
यह बड़बोलापन, दरअसल, नरेंद्र मोदी की पहचान बन चुकी है. राहुल गांधी एक बार फिर जब भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकल पड़े हैं तो सत्ता में बैठे हुए भाजपा के चेहरे नरेंद्र मोदी और उन की सरकार के बारे में अगर यह कहा जाए कि वे थरथर कांप रहे हैं और उन का सिंहासन डोल रहा है तो गलत नहीं होगा.
अगर हम लंबे समय के घटनाक्रम को, तथ्यों को छोड़ भी दें तो असम में 22 जनवरी, 2024 को, जब प्रधानमंत्री अयोध्या में रामराम कर रहे थे, जिस तरह राहुल गांधी को शंकर देव के मंदिर में जाने से रोका गया वह हास्यास्पद ही कहा जा सकता है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान बाधाएं खड़ी की जा रही हैं. उस से यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी के व्यक्तित्व और काम से भारतीय जनता पार्टी भयभीत है.
यह सीधासीधा मनोविज्ञान है कि अगर आप किसी से भयभीत नहीं हैं तो उसे बेवजह रोकेंगेटोकेंगे नहीं. आज आम आदमी भी नरेंद्र मोदी से यह कहना चाहता है कि आप अपना काम करिए और राहुल गांधी और विपक्ष को अपना काम करने दीजिए. देश की जनता स्वयं तय कर लेगी कि कौन और क्या देश के हित में है.
नरेंद्र मोदी की घबराहट यह बताती है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वे मोदी और उन की पार्टी कौन्फिडैंट नहीं हैं. आत्मविश्वास की कमी के कारण ही जब ‘इंडिया’ गठबंधन बना तो ‘इंडिया’ नाम पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया गया.
शंकर देव मंदिर जाने से रोका
22 जनवरी को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में थे तब राहुल गांधी असम में शंकर देव मंदिर की सीढ़ियां चढ़ना चाहते थे. मगर असम की हेमंत बिस्वा की भाजपाई सरकार ने राहुल को रोकने की हिमाकत कर डाली.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को असम में अलोकतांत्रिक ढंग से रोक दिया गया. राहुल गांधी यहां प्रसिद्ध शंकर देव मंदिर जाना चाहते थे और राज्य सरकार ने सुरक्षा कारण गिनाते हुए उन्हें मंदिर दर्शन की अनुमति नहीं दी.
इस के बाद राहुल गांधी का काफिला वहीं बीच सड़क पर रुक गया और विरोधस्वरूप राहुल गांधी सड़क पर ही करीब ढाई घंटे बैठे रहे. बाद में राहुल गांधी ने ‘एक्स’ पर लिखा कि- ‘भारत की सांस्कृतिक विविधता को शंकर देवजी ने भक्ति के माध्यम से एकता के सूत्र में पिरोया, लेकिन आज मुझे उन्हीं के स्थान पर माथा टेकने से रोका गया. मैं ने मंदिर के बाहर से ही भगवान को प्रणाम कर उन का आशीर्वाद लिया. अमर्यादित सत्ता के विरुद्ध मर्यादा का यह संघर्ष हम आगे बढ़ाएंगे.’
असम में राहुल गांधी को कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ हैबरगांव में रोक दिया गया और आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी गई. देररात यह यात्रा असम के दायरे से बाहर आ गई और यात्रा ने मेघालय की सीमा में प्रवेश किया, जहां स्थानीय लोगों व कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी का तिरंगा लहरा कर अभूतपूर्व स्वागत किया. यात्रा को आगे बढ़ाने से पहले राहुल गांधी ने असम में नुक्कड़ सभा की. असम के नगांव में राहुल गांधी ने राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाया. राहुल गांधी ने कहा, “क्या यह प्रधानमंत्री मोदी तय करेंगे कि मंदिर में कौन जाए.”
राहुल ने राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा, “क्या यह प्रधानमंत्री मोदी तय करेंगे कि मंदिर में कौन जाएगा? कानून व्यवस्था संकट के दौरान सभी लोग वैष्णव संत श्रीमंत शंकर देव के जन्मस्थान पर जा सकते हैं, लेकिन केवल मैं नहीं जा सकता.”
भाजपा के चेहरों को यह लगता है कि राहुल गांधी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है. इंडिया गठबंधन मजबूत होता जा रहा है. गत वर्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अभूतपूर्व सफलता मिली थी, शायद यही कारण है कि राहुल गांधी की यात्रा को रोकने की कोशिश जारी है.
सवाल
मैं 24 वर्षीया युवती हूं. मेरा सारा दिन कंप्पूटर पर काम करते बीतता है. कुछ दिनों से मेरी आंखों में दर्द होने लगा है. कृपया उचित समाधान बताएं ?
जवाब
घंटों कंप्यूटर के आगे काम करने वाले लोगों में ड्राई आई की समस्या आम है. दरअसल, यह समस्या कंप्यूटर स्क्रीन पर आंखें एकटक लगातार गड़ाए रखने से उपजती है. इस के फलस्वरूप पलक झपकने की कुदरती गति धीमी पड़ जाती है और आंखों की बाहरी सतह को प्राकृतिक रूप से नम रखने वाले आंसुओं की सूक्ष्म धारा टूट जाती है. नतीजतन आंखें शुष्क पड़ जाती हैं.
ड्राई आई की समस्या से उबरने के लिए जरूरी है कि आप पलकें समयसमय पर झपकाती रहें. काम करते हुए बीचबीच में कुछ देर के लिए कंप्यूटर छोड़ कर कोई दूसरा काम कर लें.
आंखों को नम बनाए रखने के लिए दिन में 3-4 बार आंखों में टियरप्लस या रिफ्रैश जैल आई ड्रौप्स भी इस्तेमाल में ला सकती हैं. समस्या फिर भी जस की तस रहे तो बेहतर होगा कि किसी आई स्पैशलिस्ट से परामर्श कर लें.
अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों में कोई चमत्कार होने वाला है, इस की उम्मीद विपक्षी दलों को नहीं है. वे अपनी पहचान व महत्ता बनाए रखने के लिए सीट शेयरिंग की जो बात कर रहे हैं वह यह जताती है कि देश की राजनीति 2 हिस्सों में बंट चुकी है. एक ओर वे ताकतें हैं जो पौराणिक व्यवस्था को वोट के जरिए फिर से स्थापित कर देश के संस्थानों को, पुराणों के युग की तरह, कुछ हाथों में रखना चाहती हैं जबकि दूसरी ओर वे लोग हैं जो 1947 में आजादी मिलने के बाद लागू की गई गैरधार्मिक संवैधानिक प्रणाली को यथावत रखना चाहते हैं.
आज केंद्रीय सत्ता पर ऐसी पार्टी काबिज है जो धर्म विशेष की कट्टरता को लगातार बढ़ावा दे रही है, जिस के चलते देश में हर तरफ धार्मिक ताकतों का बोलबाला है. हालांकि यह ज्यादा दिन नहीं चल सकता क्योंकि हिंदू धर्म जन्म से ही भेद करता है कि कौन क्या पा सकता है. कुछ अपवाद हैं पर हिंदू धर्म का सामाजिक गठन इस तरह का है कि राजनीति, प्रशासन, व्यापार, व्यवहार आदि में जन्म से तय हुई कुछ जातियों का बोलबाला है.
भारतीय जनता पार्टी की राममंदिर मुहिम से पहले यह काम कांग्रेस चुपचाप बिना ढोल पीटे कर रही थी. आज यह काम भाजपा नगाड़े पीट कर कर रही है. यह शोर इतना है कि जो जन्म से तय वर्णव्यवस्था के शिकार हैं और देश की जनसंख्या के 90 फीसदी के आसपास होंगे, वे सोचते हैं कि जो शोर मचा रहे हैं वही ही ठीक होंगे. सो, काफी संख्या में वे भी शोर मचाने वालों में शामिल हो गए हैं.
भारतीय जनता पार्टी की इस कट्टर सोच पर ब्रेक लगाने के लिए कांग्रेस ने जो ‘इंडिया’ गठबंधन बनाने की कोशिश की है, वह कुछ सफल प्रतीत हो रही है. यह लोकतंत्र और अच्छी सामाजिक व्यवस्था दोनों के लिए जरूरी है. जरूरी नहीं कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में उसे जीत ही मिले, उस की प्रभावशाली उपस्थिति ही देश की संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए काफी है. पौराणिक सोच के उलट, देश का संविधान हर व्यक्ति को बराबर मानता है और इस संविधान के अंतर्गत बने सैकड़ों कानूनों में औरतों को भी बराबर के हक मिले हुए हैं.
हमारे पुराण, रीतिरिवाज, त्योहार, पारिवारिक व्यवस्था भेदभावों से भरे हैं जिन में न केवल ऊंची जातियों में ऊंचनीच है बल्कि पिछड़ी और अछूत जातियों को बराबर का हिस्सा भी नहीं मिल सकता. ऊंची सवर्ण जातियों की औरतें भी 1947 से पहले अपने घरों में गुलाम सी थीं. वह सोच आज वापस आए, यह किसी सभ्य व्यक्ति को मंजूर नहीं होना चाहिए. लेकिन अफसोस है कि धर्मप्रचार इतना ज्यादा किया जा रहा है कि हर वर्ग के लोग और उन की औरतें भी अपने को ‘जंजीरें पहनाने वाली व्यवस्था’ का जश्न मनाने को तैयार बैठे हैं.
बहरहाल, ‘इंडिया’ गठबंधन की उपस्थिति पौराणिक व्यवस्था के बुलडोजर को रोकने या उसे धीमा करने के लिए काफी है. यह बुलडोजरी संस्कृति हमेशा अहल्याओं, सीताओं, द्रौपदियों, शकुंतलाओं को पैदा करती रही है.
आज जरूरत है कि न केवल हर नागरिक को निर्माण और शासन में हिस्सा मिले, बल्कि हर औरत को बराबर का सम्मान भी मिले. यह संभव तभी है जब देश की शासन व्यवस्था में भारतीय जनता पार्टी के सामने एक मजबूत विपक्ष खड़ा हो जो छोटीछोटी जातियों में बिखर कर देश को एक ऊंची जाति/पार्टी का गुलाम न बनने दे.
रोज की तरह आज भी मीरा को सुबहसुबह औफिस जाने की जल्दी थी. सो, मीरा ने अपने पति राज को आवाज लगाते हुए गाड़ी की चाबी लाने को कहा. जैसे ही मीरा गाड़ी के पास पहुंची और चाबी मांगी तो राज ने कहा, ‘ओह, मैं तो लाना ही भूल गया.’ तब फिर क्या, मीरा गुस्सा होने लगी, ‘तुम से तो कुछ कहना ही बेकार है वैगरहवैगरह और बड़बड़ाती हुई चाबी लेने जाने लगी. तो राज बोला, ‘अरे यार, मैं तो मजाक कर रहा था, यह रही चाबी.’ मीरा बोली, ‘यह भी कोई वक्त है मजाक करने का?’
राज ने कहा, ‘अच्छा, तो अब तुम ही बताओ कि मुझे किस समय, किस दिन और कितने बजे मजाक करना चाहिए?’
राज के इन प्रश्नों का मीरा के पास कोई उत्तर न था क्योंकि ऐसा कहा और माना जाता है कि सुबह की 5-10 मिनट की हंसी या मजाक आप का पूरा दिन अच्छा व खुशनुमा बना देती या सकती है पर यहां सवाल है कि क्या हम वाकई ऐसा कर पाते हैं? या कोई हमें हंसाने की कोशिश कर रहा तो भी क्या हम सहन या स्वीकार कर पाते हैं? शायद इसलिए क्योंकि आप का हंसी या मजाक तभी अच्छा है जब वह सामने वाले को स्वीकार्य हो. राज ने कुछ ऐसा ही सोच कर मीरा के साथ मजाक किया था लेकिन यहां माहौल खुशनुमा होने के बजाय तनावभरा हो गया.
सो, आखिर हंसीमजाक करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि माहौल बना रहे खुशनुमा या खुशियोंभरा :
जब आप की हंसी से कोई चिढ़ रहा हो : आप की हंसी से कोई चिढ़ रहा है, आप की हंसी उस को अच्छी न लग रही हो तो उस समय अपनी हंसी को रोक देना ही बेहतर होगा क्योंकि तब माहौल खुशनुमा होने के बजाय तनावभरा हो जाएगा.
जब कोई दुखी या परेशान हो : इंसान किसी परेशानी में है तो उस समय किसी का हंसना उलटा भी पड़ सकता है. हो सकता है माहौल अच्छा होने के बजाय तनावभरा हो जाए. इसलिए जिन से भी आप हंसीमजाक कर रहे हो उन का मूड जानना आवश्यक है. यहां इस बात को सम झना चाहिए कि किसी दूसरे पर हंसना तभी अच्छा लगता है जब तक उसे बुरा नहीं लग रहा.
मूड को पहचानें : आजकल तकरीबन सभी कपल्स जौब करते है लेकिन कई बार ऐसा होता है कि आप घर पर हैं और आप का पार्टनर औफिस गया है तो ऐसे में घर आने पर उस का मूड जान कर ही हंसीमजाक करें. हो सकता है कि पार्टनर कुछ परेशान या तनाव में हो. ऐसे में आप के मजाक करने से बात बिगड़ सकती है, इसलिए यहां मूड को जानना जरूरी है.
खाने की टेबल पर बनाएं खुशनुमा माहौल : आजकल की भागमभाग वाली दिनचर्या में कभीकभी ही ऐसा मौका आता है कि घर के सभी लोग साथ बैठ कर खाना खाएं. इसलिए इस समय आप डिजिटल दुनिया से दूर रहें और एकदूसरे से हंसीमजाक करें व घर में बनाएं एक खुशनुमा माहौल ताकि कुछ समय तनाव से दूर रह सकें.
पिकनिक और पर्यटन स्थान पर : जब आप अपने दोस्तों, बच्चों या परिवार संग कहीं पिकनिक पर या घूमनेफिरने जाएं तो एकदूसरे संग खूब हंसीमजाक करें. इस के लिए चुटकुले, कुछ पुरानी बातें, किस्सेकहानियां सुनें और सुनाएं, गेम्स आदि खेलें और डिजिटल दुनिया से दूरी बनाए रखें क्योंकि अकसर हम सैल्फी लेने और उस को पोस्ट करने में लग जाते हैं.
शादी समारोह या कोई और खुशी के अवसर पर : शादी समारोह या किसी और खुशी के अवसर पर मजा तो तभी आता है जब कुछ हंसीमजाक, एकदूसरे की खींचातानी आदि हो, वरना शादी का कुछ खुशगवार माहौल ही नहीं बनता. इसलिए ऐसे मौकों पर एक खुशनुमा माहौल जरूर बनाएं. इस के लिए हंसी और ठहाके लगाना न भूलें.
मनुष्य के भीतर का डर उसे अंधविश्वासों की ओर अग्रसर करता है. अंधविश्वास मानवीय कमजोरियों व अज्ञानता के कारण पनपते और फलतेफूलते हैं. हम सभी भावनाओं से संचालित होते हैं और अपने प्रियजनों से प्रेम करते हैं व जब उन के किसी अनिष्ट की आशंका होती है तो वह डर हमें आस्थाओं और अंधविश्वासों की ओर ले जाता है. उदाहरण के लिए, हम कहीं जाने के लिए निकले और बिल्ली हमारे रास्ते से निकल गई और हमारे साथ कोई दुघर्टना घटित हो गई तो हमारा कमजोर मन यही कहेगा कि बिल्ली रास्ता काट गई थी, इसीलिए यह अनिष्ट हुआ.
मानव मन की इस कमजोरी का फायदा चालाक, स्वार्थी और लालची लोगों ने उठाया और उसे अंधविश्वासों के जाल में फंसा दिया. अंधविश्वास और अनिष्ट की शंका के समाधान के लिए लोग इन बाबाओं, शंकाओं का समाधान करने वालों के पास जाएंगे और ये लोग अपनी स्वार्थपूर्ति करेंगे.
हमारे समाज में तर्क और विज्ञान से ज्यादा महत्त्व लोग आस्था और विश्वास को देते हैं जो कि अशिक्षा और गरीबी से उत्पन्न मानसिक दुर्बलता का होता है. अंधविश्वासों की पराकाष्ठा तब होती है जब लोग तर्क, विवेक, बुद्धि को ताक पर रख कर अंधविश्वासों के मायाजाल में फंस कर दूसरों की जिंदगियों से भी खेल जाते हैं. तांत्रिकों के कहने पर धनदौलत, खजाना मिलने या निसंतान होने पर बच्चे के लिए किसी निर्दोष की बलि तक चढ़ा देते हैं ऐसे लोग.
बागेश्वर धाम के एक बाबा की निरर्थक बातों को सोशल मीडिया जिस तरह प्रसारितप्रचारित कर रहा है उस से अच्छी तरह से समझ जा सकता है कि देश को अंधविश्वासों के किस अंधेरे गर्त में धकेला जा रहा है. बलात्कारी बाबा राम रहीम की प्रशंसा में अभी भी अखबार रंगे रहते हैं. जेल में भी उस पर अधिकारियों की कृपादृष्टि रहती है और उसे वर्ष में कई बार पैरोल पर रिहा कर दिया जाता है. अंधविश्वास का राजनीति और स्वार्थ से बड़ा गठजोड़ है और उसी कारण अंधविश्वासों की दुकान खूब फलफूल रही है क्योंकि जनता को मूर्ख बना कर, तरहतरह के मायाजालों में उलझ कर, जनता के विवेक को कुंद कर के ही सत्ता पर कब्जा बनाए रखा जा सकता है और जिंदगी में ऐशोआराम के मजे लूटे जा सकते हैं. इस में बाबा और नेता दोनों शामिल हैं. ये बाबा बड़ी चालाकी से आम जनता के विवेक को शून्य कर देते हैं.
आगरा में कोठी मीना बाजार में महाराज रामभद्राचार्य के श्रीराम कथावाचन में स्वामीजी ने नारा दिया- ‘मरें मुलायम-कांशीराम, जोर से बोलो जय श्रीराम.’ भीड़ भी साथसाथ नारे लगा रही थी. मजे की बात यह है कि इस भीड़ में बहुत से मुलायम सिंह और कांशीराम के समर्थक भी रहे होंगे लेकिन धर्म एवं अंधविश्वास का नशा किस तरह बुद्धि व विवेक को कुंद कर देता है, यह यहां देखा जा सकता है.
धार्मिक कट्टरता और कटुता
इसी तरह 10 अप्रैल, 2023 के अपने कथावाचन में स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि ‘‘चरित्र केवल हिंदू नारी के पास है, विदेशी महिलाओं के पास न चित्त है और न चरित्र.’’ कथा में असंख्य महिलाएं निहाल होहो कर महाराजजी के चरणों में लोट रही थीं और भावविभोर हो कर अश्रु बहा रही थीं.
यह भी सत्य है कि मंत्र, जप, तप इत्यादि का गुणगान वे ही लोग करते हैं जो धर्म के प्रति हद दर्जे के रिजिड हैं. अन्यथा जो नहीं मानते इन बातों को, उन्हें तो कुछ नहीं होता यदि वे व्रत, पूजा, उपवास, हवन, यज्ञ इत्यादि न भी करें तो.
आजकल धार्मिक कट्टरता एवं कटुता व असहिष्णुता का माहौल इस कदर बढ़ गया है कि यदि ऐसे लोगों के बीच बैठ जाओ तो भले ही उन की बात से सहमत न हो फिर भी उन का विरोध करना उचित नहीं लगता. भले ही चुप रह जाओ और वही करो जो सही समझते हो. अंधश्रद्धा और धार्मिक कट्टरता किसी भी तर्क, बहस को खुलेदिल से समझने और स्वीकारने को राजी नहीं है.
आज गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अव्यवस्था, भ्रष्टाचार आदि तरहतरह की मुसीबतों से त्रस्त आम आदमी की भीड़ पलायनवादी रास्ता अपना कर शांति व सुकून की तलाश में बाबाओं की शरण में जाती है जो बड़ी धूर्तता से इन का इस्तेमाल अपने ऐशोआराम व प्रसिद्धि के लिए करते हैं. एक बाबा जिस के लगभग 10,000 भक्त हैं, कहता है कि मेरे शिष्य मुझे कुछ न दें, बस, प्रतिदिन 1 रुपया मैं उन से स्वीकारूंगा. अब प्रतिदिन 1 रुपया अपने 10 लाख भक्तों से लिए तो 10 लाख रुपए हो गए बाबा के. इन बाबाओं की राजनेताओं से कैसी सांठगांठ होती है, यह जगजाहिर है. जैसेजैसे चुनाव नजदीक आते हैं, बाबा अपना काम करने लगते हैं और जनता के विवेक को शून्य कर उसे अंधविश्वासों व आस्थाओं के जाल में फंसा कर उस का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए करने लगते हैं.
ध्यान भटकाते धार्मिक मुद्दे
यही माइंड गेम है जो हिटलर-मुसोलिनी, व्लादिमीर पुतिन, शी जिनपिंग और न जाने कितने विश्व के सत्ता के प्रेमी राजनेता खेलते रहे हैं और खेल रहे हैं. विश्वास को ही जब कट्टरता का आवरण पहना कर अपरिवर्तनीय, असहिष्णु बना दिया जाता है तो वह अंधविश्वास का रूप ले लेता है.
न्यायालय द्वारा आसाराम बापू को बलात्कार के केस में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है लेकिन हैरत की बात तो यह है कि अभी भी आप को समाज में आसाराम के शिष्य और भक्त मिल जाएंगे जो कि समाज के विवेक, बुद्धिहीन लोगों की अंधभक्ति को दर्शाता है.
हमारा समाज बुरी तरह से अंधविश्वासों के जाल में जकड़ा हुआ है. जीवन के कदमकदम पर हमारी गतिविधियों पर अंधविश्वासों ने डेरा जमाया हुआ है. छत पर कौवा बोले तो कोई मेहमान आने वाला है. घर का कोई सदस्य या मेहमान जाए तो तुरंत झड़ू नहीं लगाते. आंख फड़के तो कुछ होने वाला है. शरीर पर अगर छिपकली गिर जाए तो धन मिलेगा. सांप को मारा तो अगले जन्म में बदला लेगा. बाहर जाते समय कोई छींक दे तो थोड़ी देर रुक कर जाना होता है वरना अनिष्ट होने की आशंका होती है. किसी शुभ काम को करने जाने से पहले दहीचीनी खिला कर भेजा जाता है. गर्भावस्था में नारियल खाने से बच्चा गोरा पैदा होगा. घर से निकलते समय रास्ते में सफाई वाला दिखे तो अच्छा होगा. अर्थी दिखने का भी अर्थ होता है. सोना खोना अशुभ होता है. सोना पाना शुभ होता है. पीपल के पेड़ को काटते नहीं हैं क्योंकि उस पर आत्माओं का वास होता है आदिआदि. कुल मिला कर भारत अंधविश्वासों का गढ़ है. ऐसा नहीं है कि अंधविश्वास केवल भारत में ही प्रचलित हैं, संसार के हर देश के समाज में कुछ न कुछ अंधविश्वास प्रचलित हैं क्योंकि ये मानवीय कमजोरियों के परिणाम हैं. हां, भारतीय समाज में अंधविश्वासों की अति ही है जो कि हमारे तर्कहीन दृष्टिकोण और परिश्रम से ज्यादा भाग्य पर यकीन होने की पुष्टि करते हैं.
रहीसही कसर टीवी धारावाहिकों, सोशल मीडिया और धर्मभीरु जनता से वोट के भूखे नेताओं ने पूरी कर दी है जो शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि जैसी किसी भी समस्या का समाधान नहीं चाहते और उस का सरल सा, सब से आसान उपाय है जनता को धर्म व अंधविश्वासों के जंजाल में उलझए रखो. हर टीवी धारावाहिक में पूरा परिवार ज्यादातर समय पूजापाठ में ही लगा रहता है और यहां शगुनअपशगुन होते ही रहते हैं. पूजा के बीच में दीपक बुझ जाए तो अपशगुन. मूर्ति गिर जाए तो अपशगुन.
नायिका के हाथ में मंदिर से अचानक फूल आ कर गिर जाता है तो शगुन. सिंदूर अचानक फैल कर सीधे नायिका की मांग पर आ कर गिरता है और नायक से उस का रिश्ता ईश्वर द्वारा जोड़ दिया जाता है. उस के भीतर आत्मा भी आ जाती है जो उस से अपने काम कराती है. बस, यही सब दिखाया जाता है हमारे धारावाहिकों में जिन का विवेक, बुद्धि, तर्क, विज्ञान, शिक्षा से दूरदूर का संबंध नहीं होता है. गूगल पर आप सर्च करो तो उस पर औरत को वश में करने के उपाय, चाणक्य नीति के अनुसार चरित्रहीन या चरित्रवान औरत के लक्षण या फिर राशि के अनुसार आप के व्यक्तित्व की पहचान जैसे लेख आते रहते हैं जो यूजर या पाठक पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हैं और उसे अंधविश्वासों के इस दलदल में धकेलते हैं. गूगल प्लेस्टोर पर एस्ट्रो टौक जैसी ऐप्स उपलब्ध हैं जहां 24 घंटे ज्योतिष आप को सलाह देने को उपलब्ध हैं.
कुतार्किक बनता देश
हर वह व्यक्ति जो किसी भी बात को बिना तर्क की कसौटी पर कसे विवेकहीन हो कर मानता है या अंधानुकरण करता है वह शिक्षित या अशिक्षित कोई भी हो सकता है. ऐसे लोगों को आसानी से बरगलाया जा सकता है. ये लोग देश व समाज की प्रगति नहीं होने देते. अनपढ़ या अशिक्षित ही नहीं, पढ़ेलिखे, शिक्षित भी तर्कहीन विश्वासों के मायाजाल में उलझे हुए हैं.
एक पोंगापंथी, रूढि़वादी, अंधविश्वासों के जाल में उलझ हुई जनशक्ति वाला समाज देश की प्रगति में अपना कोई योगदान नहीं देता है. तर्क और विज्ञान से वास्ता न रख कर वह बस, अंधानुकरण को अपनाता है. भारतीय समाज को इस भ्रमजाल से निकालने की आवश्यकता
है किंतु निराशा की बात यह है कि सत्ताप्राप्ति के लिए हमारे नेतृत्वकर्ता भी जनता की भावनाओं को इन्हीं तरीकों से भुनाते हैं और अन्य वर्ग, जिन में अधिकारी, कर्मचारी भी शामिल हैं, सरकारों के नक्शेकदम पर चल कर उन्हीं की नीतियों को बढ़ावा देने में लगे हैं. देखना यह है कि यह सब कब तक चलता रहेगा और देश कब इस मानसिक गुलामी से उबरता है?