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लोग क्या कहेंगे: भाग 1

राजेश ने अपनी शादी के लिए प्रस्ताव रखा तो मनोहर लाल का परिवार यह सोच कर चिंतित था कि लोग क्या कहेंगे पर वृद्ध मां ने ऐसा क्या कहा कि सब का दिमाग घूम गया?

डिंगडोंग डिंगडोंग, दरवाजे की घंटी की आवाज सुनते ही सुलोचना हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. ‘‘इतनी देर हो गई बातों में, समय का पता ही न चला. 6 बज गए और ये आ गए.’’ उन के साथ बैठी प्यारी ननद गीता ने आंखें नचा कर कहा, ‘‘तो क्या हो गया, 6 ही तो बजे हैं, आप सब तो 9 बजे खाना खाने वालों में से हो.’’

‘‘वह तो ठीक है लेकिन राजेश आज सीमा को ले कर आने वाला जो है. मैं ने तो अभी तक कोई तैयारी भी नहीं की है.’’

राजेश सुलोचना का इकलौता बेटा है जो 5 साल पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने हैदराबाद चला गया था और 6 महीने पहले ही ट्रांसफर ले कर अपने शहर इंदौर वापस आया था. उस की उम्र 27 वर्ष की हो चुकी थी और न सिर्फ सुलोचना और उन के पति, बल्कि उन के सभी रिश्तेदार और पड़ोसी राजेश के लिए एक पत्नी की तलाश में लगे हुए थे.

आजकल के बच्चों के विचारों से वाकिफ सुलोचना और मनोहर लाल राजेश पर अपनी पसंद नहीं लादना चाहते थे और इस कारण जब राजेश ने उन के सु?ाए 10-12 प्रस्तावों को मना कर दिया तो उन्होंने उस से सीधी तरह उस की अपनी पसंद के बारे में पूछ लिया. राजेश ने बताया कि वह यहीं इंदौर में उस के औफिस में काम करने वाली अपनी जूनियर सीमा को पसंद करता है लेकिन अभी तक उस ने सीमा से इस बारे में कोई बात नहीं की है. सुलोचना ने राजेश से कहा कि वह सीमा को घर ले कर आए.

यह पिछले हफ्ते की ही बात थी और राजेश आज सीमा को ले कर घर आ रहा था. आज ही सवेरे सुलोचना की ननद गीता भी 3 महीने बाद भोपाल से आई थी और अपनी प्यारी भाभी के पिछले 3 महीनों का हिसाब विस्तारपूर्वक लेने में लगी हुई थी. गीता सुलोचनाजी के पति मनोहर लाल की लाड़ली 8 साल छोटी बहन थी. सुलोचना, मनोहर लाल और राजेश के अलावा घर में सुलोचना की सास मनोरमा भी रहती थीं. मनोरमा ने काफी तकलीफों का सामना करते हुए मनोहर लाल और गीता का पालनपोषण किया था. वे बेहद मेहनती और दिखावेबाजी से दूर रहने वाली महिला थीं.

घर के सभी सदस्य उन का बहुत सम्मान करते थे. सीमा के आने की बात सुनते ही गीता तुरंत नहाने और तैयार होने को चल पड़ी और सुलोचना ने किचन की राह संभाली. किचन में सारा काम बिखरा पड़ा था. औफिस से घर आए पति को चाय बना कर देना भी आवश्यक था और यह सब करतेकरते घड़ी में 6:30 बज गए. सुलोचना फिर से बाहर ड्राइंगरूम में आई और सामान थोड़ा सजाया. फिर किचन की तरफ बढ़ी ही थी कि दरवाजे की घंटी फिर से बज गई.

दरवाजे पर राजेश एक शालीन, संकोची दिखने वाली लड़की के साथ खड़ा था. ‘‘नमस्ते आंटी,’’ लड़की ने मीठी आवाज में सुलोचना का अभिनंदन किया. ‘‘नमस्ते बेटी. अंदर आओ, अंदर आओ,’’ कहते हुए सुलोचना ने सीमा को बैठने का इशारा किया और राजेश से बोली, ‘‘अरे बेटा, रोज तो 7:15-7:30 बजे तक घर आते हो, आज 6:45 बजे ही पहुंच गए. क्या सीमा को घर लाने की इतनी जल्दी थी?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं. रोज तो मैं शेयर टैक्सी से आता हूं पर आज सीमा के साथ इस की स्कूटी पर निकल पड़ा, इसलिए जल्दी पहुंच गया.’’ सीमा को देख कर सुलोचना को राजेश की पसंद पर गर्व हो आया. सीमा दिखने में तो आकर्षक थी ही, उस की बातचीत और कपड़े पहनने के लहजे से शालीनता स्पष्ट नजर आ रही थी. सुलोचना सीमा से उस की पढाई, शौक और घरपरिवार के बारे में बात करने लगी. हालांकि सीमा काफी खुशमिजाजी से ही बात कर रही थी फिर भी सुलोचना को पता नहीं क्यों उस के चेहरे पर कई बार गंभीरता के लक्षण आतेजाते नजर आए, खासकर जब वह सीमा के परिवार के बारे में पूछ रही थी.

मनोहर लाल और गीता ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया और राजेश ने सीमा से उन का परिचय कराना आरंभ किया. सुलोचना ?ाटपट किचन में जा कर नाश्ते की तैयारी में लग गई. कड़ाही में समोसे डालने के बाद सुलोचना ने मिक्सी में चटनी पीसना शुरू किया ही था कि ‘चींचीं’ की आवाज के साथ मिक्सी बंद हो गई. सुलोचना ने ?ाल्लाते हुए मनोहर लाल को आवाज लगाई, ‘‘अजी, जरा बिल्ंिडग के इलैक्ट्रिशियन को तो बुलाओ, यह मिक्सी फिर से खराब हो गई.’’

‘‘अभी पिछले हफ्ते ही तो ठीक करवाई थी,’’ मनोहर लाल बोले, ‘‘अब शाम को 7 बजे इलैक्ट्रिशियन कहां मिलेगा. अब तो मिक्सी कल ही ठीक होगी.’’

‘‘पर बिना चटनी के तो समोसे का कोई मजा ही नहीं आएगा,’’ सुलोचना का मुंह लटक गया, ‘‘बेटा राजेश, तू एक बार देखेगा क्या?’’

‘‘मम्मी, आप को तो पता ही है कि ये सब काम मु?ा से नहीं होते. आप चिंता न करो, आप के हाथ के समोसे तो इतने बढि़या होते हैं कि हम बिना चटनी के तो क्या, बिना तले ही खा लेंगे.’’

सुलोचना ने सीमा की ओर देखा और कहा, ‘‘इन दोनों बापबेटों से घर का कोई काम कहो तो इन का जवाब ऐसा ही होता है. हमारी बिल्ंिडग का इलैक्ट्रिशियन भी बहुत ढीला काम करता है. चलो, अब टोमैटो सौस के साथ ही समोसे खा लेंगे.’’

यह सुन कर सीमा उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘आंटी, मैं एक बार देखूं?’’

‘‘अरे नहीं बेटी, यह तो बिजली मिस्त्री का काम है. मिक्सी भी कितनी पुरानी है, कब से बदलने की सोच रही हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं आंटी, एक बार मु?ो देखने तो दीजिए,’’ सीमा ने किचन में पड़ा चाकू उठाया और तार के जले हुए हिस्से को साफ करने में जुट गई. उसे यह करता देख राजेश ने कहा, ‘‘बहुत बढि़या, तुम्हें यह काम भी आता है, यह तो मु?ो पता ही न था. हमारी आयरन पर भी जरा एक नजर डाल लो.’’

सीमा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जरूर, मैं वह भी कर दूंगी पर फिलहाल आप मु?ो एक स्क्रूड्राइवर और थोड़ा टेप खोज कर दीजिए.’’ जब तक राजेश स्क्रूड्राइवर खोज कर लाता, सीमा ने मिक्सी को उठा कर देखा और कहा, ‘‘आंटी, तार जलने में न तो मिक्सी का दोष है और न ही इलैक्ट्रिशियन का. इस के हवा के सारे छेद बंद हो गए हैं और इस वजह से मिक्सी गरम हो कर खराब हो जा रही है. कोई पुराना टूथब्रश मिलेगा क्या?’’

5 मिनट के अंदर सीमा ने तार का जला हुआ हिस्सा वापस जोड़ दिया और मिक्सी की पूरी सफाई कर डाली. ‘‘लीजिए आंटी, आप की मिक्सी फिर से सेवा में हाजिर है.’’ सुलोचना ने जैसे ही मिक्सी का बटन दबाया, मिक्सी चल पड़ी. ‘‘अरे मिक्सी की आवाज भी बहुत कम हो गई, बहुत अच्छे.’’

‘‘और क्या आंटी, आज के जमाने में इतनी बढि़या मिक्सी नहीं मिलती. आप इस का वजन तो देखो, असली तांबे के तारों से इस की मोटर बनी है.’’ अपनी प्यारी मिक्सी की तारीफ सुन कर सुलोचना प्रसन्न हो गई और बोली, ‘‘चलो बेटी, तुम बाहर सब के साथ बैठो, यहां गरमी में परेशान न हो, मैं अभी आती हूं.’’

‘‘नहीं आंटी, मैं भी आप का साथ देती हूं. मु?ो भी समोसे बनाना आ जाएगा.’’ सीमा के हाथों में गजब की फुरती थी और सुलोचना के बताए तरीके से उस ने फटाफट समोसे बना डाले. दोनों नाश्ते की प्लेटें ले कर बाहर आईं. राजेश जा कर मनोरमा को बुला लाया और सभी ने अच्छे से नाश्ता किया. मनोरमा ने सीमा से बातें तो थोड़ी ही कीं लेकिन उसे लगातार देखती जरूर रहीं.

‘‘अच्छा आंटी, 8 बज गए हैं, मैं चलती हूं. आप सभी के साथ बातों में सवा घंटा कैसे निकल गया, पता ही न चला.’’

‘‘क्या खाना नहीं खाओगी, सीमा?’’

‘‘नहीं आंटी, खाना तो मेरा घर पर तैयार पड़ा होगा. फिर कभी प्रोग्राम बनाती हूं.’’ और सब को नमस्कार कर सीमा निकल पड़ी.

 

विद्रोही अरुंधति : किस फैसले के खिलाफ थें पापा?

“अरु, हमारा प्रेम सफल तो होगा न?” अनुराग ने अरुंधति की लटों से खेलते हुए कहा।

“ऐसा क्यों कह रहे हो अनुराग? क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं या अपनेआप पर?”

“तुम अमीर घराने से और मैं आर्थिक चक्रव्यूह में फंसा किसी तरह पढ़ाई पूरी करने की कोशिश कर रहा हूं।”

“तो क्या हुआ? तुम इतने प्रतिभाशाली हो कि तुम्हें आसानी से अच्छी नौकरी मिल जाएगी। अब चलो, क्लास का टाइम हो गया, यह क्लास तो बंक कर लिया क्योंकि अजय सर पढ़ाते कम और ऊंघते ज्यादा हैं। अब अगला क्लास बहुत जरूरी है,” दोनों अकसर अजय सर का क्लास बंक कर अपने दिल की बातें करते रहते, कालेज के मैदान में लगे बेंच पर बैठ कर।

अरुंधति कोलकाता के एक बड़े बिजनेसमैन की इकलौती बेटी थी। उस की मां शोभा की साहित्य में काफी रुचि थी। बड़े नाजो से पाला था शोभा ने अपनी बेटी को। तितली सी चंचलता देख कर कभी मुग्ध होती तो कभी उस के भविष्य की चिंता में डूब जाती।

“मम्मा, आज मैं कालेज कैंटीन में ही कुछ खा लूंगी।”

“नाश्ता तो करती जा…”

“नहीं मम्मा, देर हो जाएगी… आज फर्स्ट पीरियड में ही मेरा प्रैक्टिकल है जिसे मिस नहीं करना चाहती। ओके, बाय…”

“अरे, रुक तो…एक ऐपल ही ले ले…” शोभा बेटी के पीछे दौड़ती, इस से पहले ही अरुंधति स्कूटी स्टार्ट कर चुकी थी। अकसर सुबह का यही दृश्य होता।

अरु इकलौती संतान थी शोभा की। शोभा को साहित्य से बहुत लगाव था। उस ने लगभग सभी महिला साहित्यकारों को पढ़ा था। मन्नू भंडारी और अरुंधति राय उस की प्रिय साहित्यकारों में से थीं। उन की रचनाओं से प्रभावित हो स्वयं भी जबतब लेखनी चला लिया करती थीं। वह अरुंधति राय की इतनी फैन कि उन के उपन्यास ‘द गौड आफ स्मौल थिंग्स’ के बुकर पुरस्कार मिलने पर सोच लिया था कि उस की पुत्री होगी तो वह उस का नाम अरुंधति ही रखेगी।

अरुंधति हर क्षेत्र में अच्छी, पर मस्तमौला स्वभाव की थी। उस का चित्त तो कभी स्थिर रहा ही नहीं। यह स्वभाव हमेशा ही उसे असमंजस में डाल देता। मम्मीपापा की तरफ से पूरी आजादी थी कि वह जिस भी क्षेत्र में कैरियर बनाना चाहे, वे उसे हमेशा सपोर्ट करेंगे। पर अरुंधति ठहरी चंचला… कभी विज्ञान अच्छा लगता तो कभी अभिनय। कभी पाककला सीखने की कोशिश करती, पर मन ऊबने पर खेल का मैदान दिखाई देता। कबड्डी बहुत अच्छा खेलती थी। मम्मीपापा के लाख समझाने पर विज्ञान का विषय ले कर कालेज में ऐडमिशन ले लिया था। शोभा जानती थी कि अरु जन्मजात प्रतिभासंपन्न है और जिस क्षेत्र का भी चुनाव करेगी उस में अच्छा ही करेगी, पर अरुंधति तो कुछ और ही थी जिस की कल्पना शोभा ने नहीं की थी कभी।

कालेज में एक लड़का था अनुराग जो अरुंधति के मन को भा गया। स्कूल के अनुशासित जीवन से निकलने के बाद कालेज का उन्मुक्त और बिंदास जीवन… यौवन की गलियों में प्रथम कदम… हर किसी को एक सतरंगी दुनिया में ले जाता है जहां वह किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करता। अरुंधति ने अब तक का जीवन अपनी शर्तों पर जीया था। उसे पूरा विश्वास था कि उस की पसंद पर मम्मीपापा को कोई ऐतराज नहीं होगा, पर जब उस ने उस लड़के से शादी करने की इच्छा जताई तो पापा एकदम से भड़क उठे,”आजादी देने का यह मतलब नहीं कि तुम मनमानी करो…”

पापा की आपत्ति से हतप्रभ रह गई वह। उसे लगा कि यह आजादी देना महज एक दिखावा है। पापा को अपने स्टेटस की पड़ी है। अनुराग हमारे स्तर से थोड़ी 19 जो बैठता है। यह विचार दिमाग में आते ही अरुंधति विद्रोही बन बैठी। 12वीं पास करने तक चुप रही। जैसे ही 18 की उम्र पार हुई, मम्मीपापा की मरजी के खिलाफ अनुराग से कोर्टमैरिज कर ली।

अरुंधति की मम्मी पर तो मानो वज्रपात ही हो गया था। कितने सपने संजोए थे बेटी के भविष्य के लिए। लाखों में एक दामाद ढूंढ़ कर लाएगी, पर उस ने आवेश में आ कर इतना बड़ा कदम उठा लिया। दरअसल, यह उम्र ही ऐसी होती है जहां ख्वाबों की दुनिया हकीकत पर भारी पड़ने लग जाती है। यदि सावधानी और धैर्य से काम न लिया जाए तो मामला नाजुक हो उठता है और फिर रिश्तों की जमीन में दरारें पड़ जाती हैं। अरुंधति के पापा अपनी जातिगत कट्टरता के साथसाथ अपनी सामाजिक साख को ले कर कुछ ज्यादा ही सजग थे।

अरुंधति द्वारा चुना गया लड़का न केवल दूसरी जाति का था, बल्कि उस की आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल थी। अनुराग के पिता कोलकाता में ही किसी फैक्टरी में मजदूर थे, मगर फैक्टरी में अधिक उम्र के मजदूरों की छंटनी के शिकार हो नौकरी से हटा दिए गए। 4 भाईबहन और वृद्ध मातापिता। बड़ा बेटा होने के नाते परिवार की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी। हालांकि वह पढ़ने में अव्वल था पर आर्थिक पहिया दलदल में धंसे होने के कारण ग्रैजुएशन के बाद जो भी नौकरी मिली उस ने तत्काल स्वीकार कर लिया। फिर तो जीवन की गाड़ी खींचने में ही उस की प्रतिभा जाया होने लगी। फिर भी उस ने छोटे भाईबहनों की पढ़ाई पर कोई आंच नहीं आने दी। अरुंधति ने शादी तो कर ली, पर उस का ग्रैजुएशन पूरा नहीं हो पाया जिस कारण उसे कहीं ढंग की नौकरी भी नहीं मिल सकती थी। दूसरे जौइंट फैमिली के कारण आएदिन किसी न किसी बात पर पैसों को ले कर घर में क्लेश बना ही रहता था।

बड़े ही संघर्ष के दिन थे अरुंधति के, मगर अनुराग के प्रेमिल व्यवहार एवं उस की पारिवारिक मजबूरी ने उसे अपने नेह की डोर में बांध रखा था। अरुंधति के पापा को उस स्थिति का अनुमान था। जैसाकि आमतौर पर होता है कि अमीर घराने की लड़कियां भावनाओं में बह कर ऐसा कदम तो उठा लेती हैं, मगर यथार्थ के कठोर धरातल का स्पर्श होते ही भावनाएं कपूर की भांति उड़ जाती हैं। अरुंधति के पिता इसी दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने अपने वकील से मिल कर बेटी के तलाक से संबंधित बातचीत भी कर ली थी। बस, जिस दिन बेटी ससुराल से तंग हो कर मायके आएगी उस के अगले दिन ही कोर्ट में तलाक की अर्जी दिलवा देंगे। वे शोभा को बराबर सांत्वना देते रहे,”शोभा, क्यों रोरो कर इतनी हलकान हो रही हो? हमारी बेटी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगी वहां। तुम तो उस का स्वभाव जानती ही हो। एक जगह टिक कर रह पाई है कभी…”

“वह तो ठीक है जी, पर अपनी ममता का क्या करूं? हम यहां ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे हैं और वहां वह छोटेछोटे सुख के लिए भी तरस रही होगी। एक मां का दिल कैसे माने…”
शोभा की तड़प और बढ़ गई।

“तुम क्या समझती हो, मुझे तकलीफ नहीं हो रही? कोई भी इंसान किस के लिए कमाता है। कड़ी मेहनत कर चार पैसे इकट्ठा करता है तो किस के लिए? अपनी संतान के लिए ही न?”

“नहीं, तुम अपनी संतान के लिए कुछ नहीं सोचते। जल्लाद का दिल है तुम्हारा… नहीं तो कुछ करते नहीं? 1-1 दिन पहाड़ के समान लग रहा है मेरे लिए…” शोभा अपना आक्रोश नहीं दबा पाई।

“देखो, यदि स्वाभाविक तौर पर ही कोई काम हो जाए तो फिर उस के लिए अपनी टांग क्यों अड़ाएं? तुम बस यह समझो कि हमारी अरु उच्च शिक्षा के लिए विदेश गई है। पूरी होते ही लौट आएगी। 1-2 साल नियंत्रण में रखो अपनी ममता को। फिर सब ठीक हो जाएगा।”

मगर अरुंधति के पिता का अनुमान गलत साबित हुआ, मगर अनुराग को परखने में अरुंधति से कोई भूल नहीं हुई। शादी के बाद लड़कियां कितनी जिम्मेदार हो जाती हैं, अरुंधति उस की एक उत्कृष्ट उदाहरण थी। उस ने अपने पति की सच्ची सहधर्मिणी बनने का फर्ज निभाया। हालांकि कभीकभी झल्ला भी उठती थी। मानव सुलभ अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करते हुए अनुराग और उस के परिवार को संभालने की कोशिश करती रही।

शोभा किसी न किसी बहाने बिटिया की खबर लेती रहती। फोन करने पर अरुंधति कभीकभार ही रिप्लाई करती। स्वयं कितनी भी तकलीफ में रही, पर मां को इस की भनक भी न लगने दी। कभी किसी चीज का रोना नहीं रोया। शोभा समझ ही नहीं पा रही थी कि जो उस के मोहल्ले से अनुराग की आर्थिक बदहाली की जानकारी मिली, वह सही है या बेटी के साथ वार्तालाप में मिली संतुष्टि की महक वास्तविक है। ममता के मोह में अंधी हो कर बारबार कुरेदती रहती… तरहतरह की सुखसुविधाओं का लालच देती। शोभा की मंशा सिर्फ यही थी कि उस की बेटी को अभावों में न जीना पड़े।

अरुंधति को बहुत बुरा लग रहा था कि जहां मांबाप को अपने बच्चों को परिस्थितियों से जूझने, संघर्ष करने और धैर्य से उस का सामना करने की सीख देते हैं, वहीं उस के मातापिता मैदान छोड़ कर भागने की बात कर रहे हैं। कायरों की तरह पीठ दिखाने की बात कर रहे हैं। इस सोच की प्रतिक्रिया स्वरूप उस का मन विद्रोह कर उठा। विद्रोही तो थी ही। मन में एक संकल्प लिया जिस ने उसे इतनी हिम्मत दी कि उस ने ठान लिया कि चाहे जो हो जाए, वह अनुराग का साथ नहीं छोड़ेगी। उस की कुछ जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले ली।

10वीं कक्षा के स्तर तक विज्ञान विषय पर उस की अच्छी पकड़ थी। उस ने प्राइवेट ट्यूशन लेना शुरू किया। धीरेधीरे छात्रों की संख्या इतनी बढ़ गई कि उसे ट्यूशन 2 शिफ्टों में करना पड़ा। अच्छाखासा पैसा मिलने लगा तो उस ने अनुराग को किसी अच्छे संस्थान से एमबीए कर लेने की सलाह दी। मेधावी तो था ही, स्कौलरशिप मिलने की भी पूरी संभावना थी। अनुराग को उस की सलाह अच्छी लगी। अनुराग की मेहनत और अरुंधति का संकल्प एक नई खुशी ले कर आया। वह एक ख्यातिप्राप्त कंपनी का सीईओ बन गया।

अरुंधति मिठाई का डब्बा ले कर अपने पति अनुराग के साथ आज मायके गई है। उस के पापा अपने दामाद को देख कर फूले नहीं समा रहे और उस की मम्मी बड़े स्नेह से अपनी बेटी का मुखड़ा निहार रही थीं जो आत्मविश्वास की आभा से दमक रहा था।

मुझे पति की आदतें बिलकुल पसंद नहीं आती, क्या करूं?

सवाल

मेरा प्रेम विवाह 5 साल पहले हुआ था, लेकिन अब मुझे पति की आदतें बिलकुल पसंद नहीं आतीं. मैं बातबात पर उन से झगड़ती रहती हूं. मेरा उन से दूर जाने को दिल करता है?

जवाब

अकसर ऐसा होता है कि जो हमें अच्छा लग गया, हम उस के साथ जीवन बिताने को तैयार हो जाते हैं. उस समय हम उस की बुराइयों को अनदेखा कर देते हैं, लेकिन जब हम उस के साथ गृहस्थ जीवन बिताते हैं तो हमें उस की वही आदतें खटकने लगती हैं. बाद में यही बात लड़ाई व तनाव का कारण बनती है. आप के साथ यही हो रहा है. ऐसी बातों को खुद पर हावी न होने दें बल्कि यह सोच कर खुशीखुशी जीवन का निर्वाह करें कि हर इंसान में अच्छाइयां व बुराइयां दोनों होती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

नक्काशी: मयंक और अनामिका के बीच क्या हुआ था?

जीवन की वास्तविकता एक हद पर जा कर हम से शब्द छीन लेती है. विशुद्ध प्रेम के उज्ज्वल प्रकाश में निराशा का एक कतरा भी नहीं रहता और एक गहरी समझ का उदय होता है. मयंक और अनामिका के बीच एक समय कुछ ऐसी ही स्थिति आई.

रिटायरमेंट: क्या हुआ शर्माजी के साथ

नौकरी के आखिरी दिन शर्माजी ने लालची साथियों को लड्डू खिलाए थे. फिर भी उन की कुशलक्षेम पूछने कभी कोई नहीं आया. मेरी नौकरी का अंतिम सप्ताह था, क्योंकि मैं सेवानिवृत्त होने वाला था. कारखाने के नियमानुसार 60 साल पूरे होते ही घर बैठने का हुक्म होना था. मेरा जन्मदिन भी 2 अक्तूबर ही था. संयोगवश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन पर.

विभागीय सहयोगियों व कर्मचारियों ने कहा, ‘‘शर्माजी, 60 साल की उम्र तक ठीकठाक काम कर के रिटायर होने के बदले में हमें जायकेदार भोज देना होगा.’’ मैं ने भरोसा दिया, ‘‘आप सब निश्ंिचत रहें. मुंह अवश्य मीठा कराऊंगा.’’

इस पर कुछ ने विरोध प्रकट किया, ‘‘शर्माजी, बात स्पष्ट कीजिए, गोलमोल नहीं. हम ‘जायकेदार भोज’ की बात कर रहे हैं और आप मुंह मीठा कराने की. आप मांसाहारी भोज देंगे या नहीं? यानी गोश्त, पुलाव…’’ मैं ने मुकरना चाहा, ‘‘आप जानते हैं कि गांधीजी सत्य व अहिंसा के पुजारी थे, और हिंसा के खिलाफ मैं भी हूं. मांसाहार तो एकदम नहीं,’’ एक पल रुक कर मैं ने फिर कहा, ‘‘पिछले साल झारखंड के कुछ मंत्रियों ने 2 अक्तूबर के दिन बकरे का मांस खाया था तो उस पर बहुत बवाल हुआ था.’’

‘‘आप मंत्री तो नहीं हैं न. कारखाने में मात्र सीनियर चार्जमैन हैं,’’ एक सहकर्मी ने कहा. ‘‘पर सत्यअहिंसा का समर्थक तो हूं मैं.’’

फिर कुछ सहयोगी बौखलाए, ‘‘शर्माजी, हम भोज के नाम पर ‘सागपात’ नहीं खा सकते. आप के घर ‘आलूबैगन’ खाने नहीं जाएंगे,’’ इस के बाद तो गीदड़ों के झुंड की तरह सब एकसाथ बोलने लगे, ‘‘शर्माजी, हम चंदा जमा कर आप के शानदार विदाई समारोह का आयोजन करेंगे.’’ प्रवीण ने हमें झटका देना चाहा, ‘‘हम सब आप को भेंट दे कर संतुष्ट करना चाहेंगे. भले ही आप हमें संतुष्ट करें या न करें.’’

मैं दबाव में आ कर सोचने लगा कि क्या कहूं? क्या खिलाऊं? क्या वादा करूं? प्रत्यक्ष में उन्हें भरोसा दिलाना चाहा कि आप सब मेरे घर आएं, महंगी मिठाइयां खिलाऊंगा. आधाआधा किलो का पैकेट सब को दे कर विदा करूंगा. सीनियर अफसर गुप्ता ने रास्ता सुझाना चाहा, ‘‘मुरगा न खिलाइए शर्माजी पर शराब तो पिला ही सकते हैं. इस में हिंसा कहां है?’’

‘‘हां, हां, यह चलेगा,’’ सब ने एक स्वर से समर्थन किया. ‘‘मैं शराब नहीं पीता.’’

‘‘हम सब पीते हैं न, आप अपनी इच्छा हम पर क्यों लादना चाहते हैं?’’ ‘‘भाई लोगों, मैं ने कहा न कि 2 अक्तूबर हो या नवरात्रे, दीवाली हो या नववर्ष…मुरगा व शराब न मैं खातापीता हूं, न दूसरों को खिलातापिलाता हूं.’’

सुखविंदर ने मायूस हो कर कहा, ‘‘तो क्या 35-40 साल का साथ सूखा ही निबटेगा?’’ कुछ ने रोष जताया, ‘‘क्या इसीलिए इतने सालों तक आप के मातहत काम किया? आप के प्रोत्साहन से ही गुणवत्तापूर्ण उत्पादन किया? कैसे चार्जमैन हैं आप कि हमारी अदनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते?’’

एक ने व्यंग्य किया, ‘‘तो कोई मुजरे वाली ही बुला लीजिए, उसी से मन बहला लेंगे.’’ नटवर ने विचार रखा, ‘‘शर्माजी, जितने रुपए आप हम पर खर्च करना चाह रहे हैं उतने हमें दे दीजिए, हम किसी होटल में अपनी व्यवस्था कर लेंगे.’’

इस सारी चर्चा से कुछ नतीजा न निकलना था न निकला. यह बात मेरे इकलौते बेटे बलबीर के पास भी पहुंची. वह बगल वाले विभाग में बतौर प्रशिक्षु काम कर रहा था.

कुछ ने बलबीर को बहकाया, ‘‘क्या कमी है तुम्हारे पिताजी को जो खर्च के नाम से भाग रहे हैं. रिटायर हो रहे हैं. फंड के लाखों मिलेंगे… पी.एफ. ‘तगड़ा’ कटता है. वेतन भी 5 अंकों में है. हम उन्हें विदाई देंगे तो उन की ओर से हमारी शानदार पार्टी होनी चाहिए. घास छील कर तो रिटायर नहीं हो रहे. बुढ़ापे के साथ ‘साठा से पाठा’ होना चाहिए. वे तो ‘गुड़ का लाठा’ हो रहे हैं…तुम कैसे बेटे हो?’’

बलबीर तमतमाया हुआ घर आया. मैं लौट कर स्नान कर रहा था. बेटा मुझे समझाने के मूड में बोला, ‘‘बाबूजी, विभाग वाले 50-50 रुपए प्रति व्यक्ति चंदा जमा कर के ‘विदाई समारोह’ का आयोजन करेंगे तो वे चाहेंगे कि उन्हें 75-100 रुपए का जायकेदार भोज मिले. आप सिर्फ मिठाइयां और समोसे खिला कर उन्हें टरकाना चाहते हैं. इस तरह आप की तो बदनामी होगी ही, वे मुझे भी बदनाम करेंगे. ‘‘आप तो रिटायर हो कर घर में बैठ जाएंगे पर मुझे वहीं काम करना है. सोचिए, मैं कैसे उन्हें हर रोज मुंह दिखाऊंगा? मुझे 10 हजार रुपए दीजिए, खिलापिला कर उन्हें संतुष्ट कर दूंगा.’’

‘‘उन की संतुष्टि के लिए क्या मुझे अपनी आत्मा के खिलाफ जाना होगा? मैं मुरगे, बकरे नहीं कटवा सकता,’’ बेटे पर बिगड़ते हुए मैं ने कहा. ‘‘बाबूजी, आप मांसाहार के खिलाफ हैं, मैं नहीं.’’

‘‘तो क्या तुम उन की खुशी के लिए मद्यपान करोगे?’’ ‘‘नहीं, पर मुरगा तो खा ही सकता हूं.’’

अपना विरोध जताते हुए मैं बोला, ‘‘बलबीर, अधिक खर्च करने के पक्ष में मैं नहीं हूं. सब खाएंगेपीएंगे, बाद में कोई पूछने भी नहीं आएगा. मैं जब 4 महीने बीमारी से अनफिट था तो 1-2 के अलावा कौन आया था मेरा हाल पूछने? मानवता और श्रद्धा तो लोगों में खत्म हो गई है.’’ पत्नी कमला वहीं थी. झुंझलाई, ‘‘आप दिल खोल कर और जम कर कुछ नहीं कर पाते. मन मार कर खुश रहने से भी पीछे रह जाते हैं.’’

कमला का समर्थन न पा कर मैं झुंझलाया, ‘‘श्रीमतीजी, मैं ने आप को कब खुश नहीं किया है?’’ वे मौका पाते ही उलाहना ठोक बैठीं, ‘‘कई बार कह चुकी हूं कि मेरा गला मंगलसूत्र के बिना सूना पड़ा है. रिटायरमेंट के बाद फंड के रुपए मिलते ही 5 तोले का मंगलसूत्र और 10 तोले की 4-4 चूडि़यां खरीद देना.’’

‘‘श्रीमतीजी, सोने का भाव बाढ़ के पानी की तरह हर दिन बढ़ता जा रहा है. आप की इच्छा पूरी करूं तो लाखों अंटी से निकल जाएंगे, फिर घर चलाना मुश्किल होगा.’’ श्रीमतीजी बिगड़ कर बोलीं, ‘‘तो बताइए, मैं कैसे आप से खुश रहूंगी?’’

बलबीर को अवसर मिल गया. वह बोला, ‘‘बाबूजी, अब आप जीवनस्तर ऊंचा करने की सोचिए. कुछ दिन लूना चलाते रहे. मेरी जिद पर स्कूटी खरीद लाए. अब एक बड़ी कार ले ही लीजिए. संयोग से आप देश की नामी कार कंपनी से अवकाश प्राप्त कर रहे हैं.’’ बेटे और पत्नी की मांग से मैं हतप्रभ रह गया.

मैं सोने का उपक्रम कर रहा था कि बलबीर ने अपनी रागनी शुरू कर दी, ‘‘बाबूजी, खर्च के बारे में क्या सोच रहे हैं?’’ मैं ने अपने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम अभी स्थायी नौकरी में नहीं हो. प्रशिक्षण के बाद तुम्हें प्रबंधन की कृपा से अस्थायी नौकरी मिल सकेगी. पता नहीं तुम कब तक स्थायी होगे. तब तक मुझे ही घर का और तुम्हारा भी खर्च उठाना होगा. इसलिए भविष्यनिधि से जो रुपए मिलेंगे उसे ‘ब्याज’ के लिए बैंक में जमा कर दूंगा, क्योंकि आगे ब्याज से ही मुझे अपना ‘खर्च’ चलाना होगा. अत: मैं ने अपनी भविष्यनिधि के पैसों को सुरक्षित रखने की सोची है.’’

श्रीमतीजी संभावना जाहिर कर गईं कि 20 लाख रुपए तक तो आप को मिल ही जाएंगे. अच्छाखासा ब्याज मिलेगा बैंक से. उन के इस मुगालते को तोड़ने के लिए मैं ने कहा, ‘‘भूल गई हो, 3 बेटियों के ब्याह में भविष्यनिधि से ऋण लिया था. कुछ दूसरे ऋण काट कर 12 लाख रुपए ही मिलेंगे. वैसे भी अब दुनिया भर में आर्थिक संकट पैदा हो चुका है, इसलिए ब्याज घट भी सकता है.’’

बलबीर ने टोका, ‘‘बाबूजी, आप को रुपए की कमी तो है नहीं. आप ने 10 लाख रुपए अलगअलग म्यूचुअल फं डों में लगाए हुए हैं.’’

मैं आवेशित हुआ, ‘‘अखबार नहीं पढ़ते क्या? सब शेयरों के भाव लुढ़कते जा रहे हैं. उस पर म्यूचुअल फंडों का बुराहाल है. निवेश किए हुए रुपए वापस मिलेंगे भी या नहीं? उस संशय से मैं भयभीत हूं. रिटायर होने के बाद मैं रुपए कमाने योग्य नहीं रहूंगा. बैठ कर क्या करूंगा? कैसे समय बीतेगा. चिंता, भय से नींद भी नहीं आती…’’ श्रीमतीजी ने मेरे दर्द और चिंता को महसूस किया, ‘‘चिंतित मत होइए. हर आदमी को रिटायर होना पड़ता है. चिंताओं के फन को दबोचिए. उस के डंक से बचिए.’’

‘‘देखो, मैं स्वयं को संभाल पाता हूं या नहीं?’’ तभी फोन की घंटी बजी, ‘‘हैलो, मैं विजय बोल रहा हूं.’’

‘‘नमस्कार, विजय बाबू.’’ ‘‘शर्माजी, सुना है, आप रिटायर होने जा रहे हैं.’’

‘‘हां.’’ ‘‘कुछ करने का विचार है या बैठे रहने का?’’ विजय ने पूछा.

‘‘कुछ सोचा नहीं है.’’ ‘‘मेरी तरह कुछ करने की सोचो. बेकार बैठ कर ऊब जाओगे.’’

‘‘मेरे पिता ने भी सेवामुक्त हो कर ‘बिजनेस’ का मन बनाया था, पर नहीं कर सके. शायद मैं भी नहीं कर सकूंगा, क्यों जहां भी हाथ डाला, खाली हो गया.’’ विजय की हंसी गूंजी, ‘‘हिम्मत रखो. टाटा मोटर्स में ठेका पाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराओ. एकाध लाख लगेंगे.’’

बलबीर उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘ठेका ले कर देखिए, बाबूजी.’’ ‘‘बेटा, मैं भविष्यनिधि की रकम को डुबाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.’’

बलबीर जिद पर उतर आया तो मैं बोला, ‘‘तुम्हारे कहने पर मैं ने ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया था न? 7 लाख रुपए डूब गए थे. तब मैं तंगी, परेशानी और खालीहाथ से गुजरने लगा था. फ ांके की नौबत आ गई थी.’’ बलबीर शांत पड़ गया, मानो उस की हवा निकल गई हो.

तभी मोबाइल बजने लगा. पटना से रंजन का फोन था. आवाज कानों में पड़ी तो मुंह का स्वाद कसैला हो गया. रंजन मेरा चचेरा भाई था. उस ने गांव का पुश्तैनी मकान पड़ोसी पंडितजी के हाथ गिरवी रख छोड़ा था. उस की एवज में 50 हजार रुपए ले रखे थे. पहले मैं रंजन को अपना भाई मानता था पर जब उस ने धोखा किया, मेरा मन टूट गया था.

‘‘रंजन बोल रहा हूं भैया, प्रणाम.’’ ‘‘खुश रहो.’’

‘‘सुना है आप रिटायर होने वाले हैं? एक प्रार्थना है. पंडितजी के रुपए चुका कर मकान छुड़ा लीजिए न. 20 हजार रुपए ब्याज भी चढ़ चुका है. न चुकाने से मकान हाथ से निकल जाएगा. मेरे पास रुपए नहीं हैं. पटना में मकान बनाने से मैं कर्जदार हो चुका हूं. कुछ सहायता कीजिएगा तो आभारी रहूंगा.’’ मैं क्रोध से तिलमिलाया, ‘‘कुछ करने से पहले मुझ से पूछा था क्या? सलाह भी नहीं ली. पंडितजी का कर्ज तुम भरो. मुझे क्यों कह रहे हो?’’

मोबाइल बंद हो गया. इच्छा हुई कि उसे और खरीखोटी सुनाऊं. गुस्से में बड़बड़ाता रहा, ‘‘स्वार्थी…हमारे हिस्से को भी गिरवी रख दिया और रुपए ले गया. अब चाहता है कि मैं फंड के रुपए लगा दूं? मुझे सुख से जीने नहीं देना चाहता?’’ ‘‘शांत हो जाइए, नहीं तो ब्लडप्रेशर बढे़गा,’’ कमला ने मुझे शांत करना चाहा.

सुबह कारखाने पहुंचा तो जवारी- भाई रामलोचन मिल गए, बोले, ‘‘रिटायरमेंट के बाद गांव जाने की तो नहीं सोच रहे हो न? बड़ा गंदा माहौल हो गया है गांव का. खूब राजनीति होती है. तुम्हारा खाना चाहेंगे और तुम्हें ही बेवकूफ बनाएंगे. रामबाबू रिटायरमेंट के बाद गांव गए थे, भाग कर उन्हें वापस आना पड़ा. अपहरण होतेहोते बचा. लाख रुपए की मांग कर रहे थे रणबीर दल वाले.’’ सीनियर अफसर गुप्ताजी मिल गए. बोले, ‘‘कल आप की नौकरी का आखिरी दिन है. सब को लड्डू खिला दीजिएगा. आप के विदाई समारोह का आयोजन शायद विभाग वाले दशहरे के बाद करेंगे.’’

कमला ने भी घर से निकलते समय कहा था, ‘‘लड्डू बांट दीजिएगा.’’

बलबीर भी जिद पर आया, ‘‘मैं भी अपने विभाग वालों को लड्डू खिलाऊंगा.’’ ‘‘तुम क्यों? रिटायर तो मैं होने वाला हूं.’’

वह हंसते हुए बोला, ‘‘बाबूजी, रिटायरमेंट को खुशी से लीजिए. खुशियां बांटिए और बटोरिए. कुछ मुझे और कुछ बहनबेटियों को दीजिए.’’ मुझे क्रोध आया, ‘‘तो क्या पैसे बांट कर अपना हाथ खाली कर लूं? मुझे कम पड़ेगा तो कोई देने नहीं आएगा. हां, मैं बहनबेटियों को जरूर कुछ गिफ्ट दूंगा. ऐसा नहीं कि मैं वरिष्ठ नागरिक होते ही ‘अशिष्ट’ सिद्ध होऊं. पर शिष्ट होने के लिए अपने को नष्ट नहीं करूंगा.’’

मैं सोचने लगा कि अपने ही विभाग का वेणुगोपाल पैसों के अभाव का रोना रो कर 5 हजार रुपए ले गया था, अब वापस करने की स्थिति में नहीं है. उस के बेटीदामाद ने मुकदमा ठोका हुआ है कि उन्हें उस की भविष्यनिधि से हिस्सा चाहिए. रामलाल भी एक अवकाश प्राप्त व्यक्ति थे. एक दिन आए और गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘शर्माजी, रिटायर होने के बाद मैं कंगाल हो गया हूं. बेटों के लिए मकान बनाया. अब उन्होंने घर से बाहर कर दिया है. 15 हजार रुपए दे दीजिए. गायभैंस का धंधा करूंगा. दूध बेच कर वापस कर दूंगा.’’

रिटायर होने के बाद मैं घर बैठ गया. 10 दिन बीत गए. न विदाई समारोह का आयोजन हुआ, न विभाग से कोई मिलने आया. मैं ने गेटपास जमा कर दिया था. कारखाने के अंदर जाना भी मुश्किल था. समय के साथ विभाग वाले भूल गए कि विदाई की रस्म भी पूरी करनी है. एक दिन विजय आया. उलाहने भरे स्वर में बोला, ‘‘यार, तुम ने मुझे किसी आयोजन में नहीं बुलाया?’’

मैं दुखी स्वर में बोला, ‘‘क्षमा करना मित्र, रिटायर होने के बाद कोई मुझे पूछने नहीं आया. विभाग वाले भी विभाग के काम में लग कर भूल गए…जैसे सारे नाते टूट गए हों.’’ कमला ताने दे बैठी, ‘‘बड़े लालायित थे आधाआधा किलो के पैकेट देने के लिए…’’

बलबीर को अवसर मिला. बोला, ‘‘मांसाहारी भोज से इनकार कर गए, अत: सब का मोहभंग हो गया. अब आशा भी मत रखिए…आप को पता है, मंदी का दौर पूरी दुनिया में है. उस का असर भारत के कारखानों पर भी पड़ा है. कुछ अनस्किल्ड मजदूरों की छंटनी कर दी गई है. मजदूरों को चंदा देना भारी पड़ रहा है. वैसे भी जिस विभाग का प्रतिनिधि चंदा उगाहने में माहिर न हो, काम से भागने वाला हो और विभागीय आयोजनों पर ध्यान न दे, वह कुछ नहीं कर सकता.’’

विजय ने कहा, ‘‘यार, शर्मा, घर में बैठने के बाद कौन पूछता है? वह जमाना बीत गया कि लोगों के अंदर प्यार होता था, हमदर्दी होती थी. रिटायर व्यक्ति को हाथी पर बैठा कर, फूलमाला पहना कर घर तक लाया जाता था. अब लोग यह सोचते हैं कि उन का कितना खर्च हुआ और बदले में उन्हें कितना मिला. मुरगाशराब खिलातेपिलाते तो भी एकदो माह के बाद कोई पूछने नहीं आता. सचाई यह है कि रिटायर व्यक्ति को सब बेकार समझ लेते हैं और भाव नहीं देते.’’ मैं कसमसा कर शांत हो गया…घर में बैठने का दंश सहने लगा.

माया का मोह: कांग्रेस क्यों बनाएगी पीएम फेस?

मायावती को कांग्रेस पीएम का फेस बनाना चाहती है, यह अफवाह है. इस के लिए 2 तारीखें भी अफवाह के रूप में सामने हैं. पहली 9 मार्च है, दूसरी तारीख लोकसभा चुनाव की अचारसंहिता लगने के बाद की बताई जा रही है. दूसरी तारीख के पक्ष में तर्क यह दिया जा रहा है कि चुनाव आचारसंहिता लगने के बाद ईडी, सीबीआई का डर खत्म हो जाएगा. इस के बाद मायावती खुल कर अपने पत्ते खोल सकेंगी. इस रणनीति के बीच कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और मायावती के बीच सीधी बातचीत को माना जा रहा है. इसे राजनीति का बड़ा उलटफेर बताया जा रहा है.

मायावती लगातार इस बात का खंडन करती रही हैं कि वे किसी गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. असल में मायावती गठबंधन के पक्ष में नहीं रहती हैं. चुनाव के पहले तो गठबंधन बहुत ही कम करती हैं. एकदो बार ही बसपा ने गठबंधन किया है.

1993 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का जब गठबंधन हुआ था उस समय यह फैसला कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने किया था. इस के बाद भाजपा के सहयोग से मायावती 3 बार यूपी सीएम बनीं. कभी भाजपा के साथ गठबंधन नहीं किया. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपाबसपा मिल कर चुनाव लड़ीं और चुनाव बाद अलग हो गईं.

मायावती ने दलित राजनीति की फसल काट कर अपना राजनीतिक हित साधने का काम किया है. दलित विचारधारा से जुड़े लोग मायावती को दलित नेता नहीं मानते. अंबेडकरवादी विचारधारा के लोगों का मानना है कि मायावती और कांशीराम की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा ने दलित आंदोलन को नुकसान पहुंचाया जिस से उन का विस्तार यूपी से बाहर नहीं जा पाया.

‘बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा’ यह वादा भी कांशीराम के साथ ही साथ खत्म हो गया. मायावती ने जब अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाया, उस के बाद ही बसपा परिवारवाद की राह पर चली गई. दलित आंदोलन और बाबा का मिशन खत्म हो गया.

बसपा का जनाधार नहीं है

मायावती ने गठबंधन इसलिए भी नहीं किया क्योंकि बसपा का उत्तर प्रदेश के बाहर जनाधार कम है. पंजाब में अकाली दल के साथ बसपा का गठबंधन हो जाता है, क्योंकि वहां पर कांशीराम के कारण बसपा का प्रभाव रहा है. मायावती के गठबंधन न करने के पीछे उन का अक्खड़ स्वभाव है.

दूसरे, वे राजनीतिक रूप से वफादार नहीं रही हैं. कांशीराम और मुलायम के बीच राजनीतिक गठबंधन टूटने का सब से बड़ा कारण मायावती की महत्त्वाकांक्षा रही है. मुलायम सिंह ने कांशीराम से माफी मांगी. इस के बाद भी गठबंधन टूट गया.

1995 में पहली बार भाजपा के सहयोग से मायावती मुख्यमंत्री बनीं. पर 1996 का विधानसभा चुनाव अलगअलग लड़ा. 1997 में बसपा भाजपा ने 6-6 माह की सरकार चलाने का गठबंधन बनाया. पहले 6 माह सरकार चलाने के बाद मायावती ने भाजपा का साथ छोड़ कर सरकार गिरा दी.
2002 के विधानसभा चुनाव के बाद यही कहानी पूरी तरह से दोहराई गई. मायावती पहले मुख्यमंत्री बनीं. फिर भाजपा का मौका आने से पहले सरकार गिरा दी. भाजपा से सहयोग से 1995, 1997 और 2002 में मायावती मुख्यमंत्री बनीं पर कभी गठबंधन नहीं किया.

रिश्तों का नहीं रखा मान

भाजपा के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीबी रहे लालजी टंडन मायावती को अपनी बहन मानते थे. मायावती उन को राखी बांधने रक्षाबंधन पर उन के घर जाती थीं. 2003 में जब मायावती ने भाजपाबसपा की सरकार छोड़ी, लालजी टंडन से मायावती के संबंध खराब हुए. तो मायावती ने सारे रिश्ते भूल कर उन को ‘लालची टंडन’ कहना शुरू किया.

2019 में अखिलेश और मायावती ने मिल कर चुनाव लड़ा तब ये दोनों रिश्ते में ‘बूआ भतीजा’ बन गए थे पर जैसे ही चुनाव बीता, बसपा को 10 सीटें मिलीं. मायावती ने आरोप लगाया कि सपा के वोटरों ने वोट नहीं दिया और गठबंधन छोड़ दिया.

मायावती ने अपना काम निकाला और रिश्ता तोड़ लिया. उन की इस इमेज के कारण ही कांग्रेस के साथ उन का गठबंधन नहीं हो पाया. अक्खड़ स्वभाव ऐसा कि कब किस की वे बेइज्जती कर दें, कोई कह नहीं सकता.

बसपा से गठबंधन करने के लिए कांग्रेस नेता प्रिंयका गांधी लगातार प्रयास करती रहीं. मिलने की सहमति देने के बाद भी मायावती ने अपने दरवाजे नहीं खोले. कांग्रेस की नजर में मायावती भरोसेमंद नेता नहीं हैं. इसी भरोसे वाले संकट के कारण कांग्रेस ने इंडिया ब्लौक की पूरी कमान नीतीश कुमार को नहीं दी थी. बाद में कांग्रेस का डर सही साबित हुआ. नीतीश एनडीए के साथ चले गए.

अक्खड़ स्वभाव के साथ ही साथ वे राजनीतिक रूप से भरोसेमंद नहीं हैं. हो सकता है कि वे चुनाव इंडिया ब्लौक के साथ लड़ें और चुनाव के बाद वे कहीं और खड़ी हो जाएं. यह बात सही है कि मायावती के मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना है.

2009 में जब वे उत्तर प्रदेश की मुख्यंमत्री थीं, बसपा ने ‘यूपी हुई हमारी, अब दिल्ली की बारी’ का नारा दिया था. बसपा केवल 21 सांसद ही जिता पाई. जिस से यह सपना टूट गया. भाजपा के साथ हाल के कुछ सालों में उन के संबंध अच्छे हैं ही, 1995 से 2003 तक भाजपा के सहयोग से वे मुख्यमंत्री बनीं. ऐसे में कांग्रेस मायावती को पीएम फेस बनाएगी, यह कोरी अफवाह ही है.

कांग्रेस के पास हैं प्रभावी चेहरे

कांग्रेस के पास पीएम फेस के प्रभावी चेहरे हैं. इन में पहला नाम अशोक गहलोत का है, जो राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हैं. उत्तर भारत से ले कर दक्षिण तक उन का नाम है. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वे केंद्रीय मंत्री रहे. राजस्थान सरकार में मंत्री रहे. 2 बार मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने कांग्रेस संगठन को संभाला है. वफादारी और बातचीत में उन का कोई जवाब नहीं है.

तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन भी बहुत पंसद किए जाते हैं. वे भी देश में चर्चित चेहरे हैं. सिद्धारमैया कर्नाटक में 2013 से 2018 मुख्यमंत्री रहे. वे केंद्र में भी मंत्री रहे. अनुभवी नेता हैं. जो लोग दक्षिणउत्तर की बात कर के इन को खारिज करते हैं उन को समझना चाहिए कि पीवी नरसिम्हा राव इस देश के सफलतम प्रधानमंत्री माने जाते हैं. वे दक्षिण से आए और एच डी देवगौड़ा भी प्रधानमंत्री रहे हैं.

इस के साथ ही साथ इंडिया ब्लौक में शामिल ममता बनर्जी भी मुखर और प्रभावी नेता हैं. उन को भी पीएम फेस के रूप में पेश किया जा सकता है. वे वफादार होने के साथ ही कांग्रेस को समझती भी हैं. राहुल और सोनिया के साथ काम भी किया है और उन के आपसी संबंध भी मधुर हैं. ऐसे में यह कहना गलत है कि कांग्रेस के पास पीएम फेस की कमी है.

ख्वाब पूरे हुए: भाग 3

‘‘अच्छे दिनों का तो पता नहीं, लेकिन मैं इतना जरूर जान गया हूं कि इस लाइन में कोई सुरक्षित भविष्य नहीं है. आज पता है, क्या हुआ?’’

‘‘क्या हुआ नकुल?’’ मन्नो ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘आज मेरे काम का टार्गेट पूरा होने ही वाला था कि तभी अचानक से कंप्यूटर ने दिखाया कि मैं अभी टार्गेट पूरा करने से दूर हूं. एक पुराने सहकर्मी ने मु?ो बताया कि इन लोगों के पास एक ऐसा सौफ्टवेयर है जो पूरे होते टार्गेट को अधूरे में बदल देता है. ऐसे में तो इन लोगों के लिए काम करना बिलकुल बेकार है. यहां अपनी दिनरात की हाड़तोड़ मेहनत की कोई वैल्यू

ही नहीं. यह तो कोरी गुलामी से

कम नहीं.’’

‘‘चलोचलो, नकुल, बहुत रात हो गई है. अब सो जाओ. इस बात पर कल सोचेंगे,’’ मन्नो ने नकुल को अपने पास खींचते हुए कहा.

अगले दिन सुबह से मौसम खराब था. रहरह कर बारिश हो रही थी. शाम से जो मूसलाधार बारिश हुई, देररात तक चालू रही. रात को एक बजने को आया था. नकुल का कहीं अतापता नहीं था. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था. मन्नो हैरानपरेशान बिस्तर पर करवटें बदल रही थी कि तभी बरसात में बुरी तरह से भीगा हुआ नकुल घर में घुसा. उस ने हाथ में पकड़ा एक पैकेट उस की ओर बढ़ाया और मुदित तनिक हंसते हुए उस से कहा, ‘‘देख, इस में क्या है?’’

‘‘ओह नकुल, जल्दी से कपड़े बदलो, नहीं तो बीमार पड़ जाओगे,’’ बोलते हुए जो मन्नो ने पैकेट खोला, वह उत्तेजित हो खुशी से चिल्ला उठी, ‘‘अरे वाह, मेरी पसंद के नर्गिसी कोफ्ते और दाल मखनी लाए हो. आज कौन सी लौटरी लग गई तुम्हारी कि इन सब का जुगाड़ कर लिया?’’

कपड़े बदल कर छींकते हुए नकुल ने बिस्तर पर बैठते हुए 800 के तनिक भीगे हुए नोट उसे दिखाए  और फिर प्रसन्न मन उस से बोला, ‘‘दुनिया में अच्छे लोग भी हैं, यार. आज एक क्लाइंट के यहां घनघोर अंधड़ बरसात में टाइम पर एकसाथ 10,000 रुपए के पिज्जा की डिलीवरी दी तो उस ने खुश हो कर मु?ो 1,000 रुपयों की टिप दी. उन के बच्चे की बर्थडे पार्टी थी. मु?ो बढि़या खाना भी खिलाया. सो, मैं तेरे लिए तेरा मनपसंद खाना ले आया.’’

‘‘ओह, नकुल, तुम बहुत अच्छे हो. मेरा कितना खयाल रखते हो.’’

महीनों बाद उन दोनों के चेहरों पर मुसकराहट आई और दोनों तृप्त, संतुष्ट एकदूसरे की बांहों में गुंथ सोए. अगला दिन उन के लिए बेहद मायूसीभरा साबित हुआ. कहते भी हैं न, मुफलिसी और बुरे समय का चोलीदामन का साथ है. अगले दिन नकुल पिज्जा की डिलीवरी ले कर रात के 12 बजे शहर के सुदूर इलाके में एक क्लाइंट के घर जा रहा था कि तभी फिर से बदमाशों के एक गैंग ने उसे पकड़ लिया और उस से खाने के पैकेट छीन लिए, साथ ही उसे मारपीट कर उस का मोबाइल भी छीन लिया.

वह रोताधोता घर आया. बिना मोबाइल के डिलीवरी एक्जीक्यूटिव की नौकरी संभव न थी. सो, दोनों पतिपत्नी गमजदा अपने बुरे समय का रोना रो रहे थे कि तभी मन्नो ने कुछ सोच कर नकुल से कहा, ‘‘नकुल, सामने की खोली वाले धूनी काका महीनेभर से बीमार पड़े हैं. उन का सब्जी बेचने का ठेला यों ही बेकार खड़ा हुआ है. क्यों न हम कुछ दिनों के लिए उन का ठेला ले कर उन की तरह सब्जी बेचने का काम करें. मैं अभी काकी से इस बाबत बात कर के आती हूं.’’

काकी ने उसे अपना ठेला मुफ्त में काका के ठीक होने तक दे दिया. दोनों पतिपत्नी काका के सलाहमशवरे से उन से कुछ रुपए उधार ले कर सब्जी खरीद लाए और घरघर फेरी लगा कर बेचने निकल पड़े. शाम तक उन दोनों ने सब्जी बेच कर 600 रुपए कमा लिए. बस, तभी से उन के समय पर लगा ग्रहण धीमेधीमे हटने लगा. महीनेभर तक धूनी काका का ठेला उन के पास रहा. महीनेभर में उन्होंने एक ठेला खरीदने लायक रुपए कमा लिए. अब उन की जिंदगी पहले की तुलना में आसान हो गई थी. लेकिन दोनों की ही सम?ा में आ गया था कि एक सुविधासंपन्न जिंदगी जीने के लिए पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. सो, दोनों ने ही बीए का फौर्म प्राइवेट परीक्षा के लिए भर दिया.

अब उन्हें सब्जी बेचने का काम करते हुए पूरे 2 वर्ष हो चले थे. उन की दालरोटी सहज भाव से चल रही थी. दोनों की बीए की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी. दोनों ने ही निर्णय लिया कि नकुल सब्जी का ठेला लगाता रहेगा और मन्नो बीएड की प्रवेश परीक्षा देगी. मन्नो बीएड में दाखिला लेने के लिए कड़ी मेहनत करने लगी. आखिरकार उस की लगन रंग लाई और उसे बीएड में प्रवेश मिल गया. समय के साथ मन्नो का बीएड पूरा हुआ और उस ने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया. मन्नो को नौकरी के लिए अप्लाई किए सालभर बीत गया था.

उस दिन नकुल दोपहर के वक्त घर पर ही था, तभी मन्नो के नाम रजिस्टर्ड डाक आई. नकुल ने लिफाफा खोला और खुशी के अतिरेक से भर्राए गले से चीख पड़ा, ‘‘मन्नो, हमारा समय बलवान हो गया है, तेरी सरकारी नौकरी लग गई.’’

मन्नो को गोद में उठा कर वह चक्करघिन्नी की भांति गोलगोल घूम पड़ा. फिर उसे गोद से उतार कर उस से बोला, ‘‘थैंक यू जानू, जिंदगी का हर लमहा मेरा साए की तरह साथ देने के लिए. अब ततुम्हारी पक्की सरकारी नौकरी लग जाएगी. हमारे सारे दुखदर्द दूर.’’ दोनों हंसतेचहकते आने वाले भविष्य के सतरंगी सपनों में खो गए.

लोकतंत्र में बढ़ रही तानाशाही

लोकतंत्र का अर्थ यह माना जाता है कि जो भी काम होंगे वे जनता के हित में उन के चुने हुए प्रतिनिधि करेंगे. जिस देश में जितने अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त रहता है उस देश को उतना ही अधिक लोकतांत्रिक समझा जाता है. इस प्रकार भारत देश संसार के लोकतांत्रिक देशों में सब से बड़ा है. यहां मताधिकारप्राप्त नागरिकों की संख्या विश्व में सब से बड़ी है. भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 326 के तहत वयस्कों को वोट डालने का अधिकार दिया है. वोटर के लिए जरूरी है कि वह 18 वर्ष या उस से अधिक उम्र का हो, भारत का निवासी हो.

भारत में 1935 के ‘गवर्नमेंट औफ इंडिया एक्ट’ के अनुसार केवल 13 प्रतिशत जनता को वोट का अधिकार प्राप्त था. मतदाता की अहर्ता प्राप्त करने की बड़ीबड़ी शर्तें थीं. केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था. इस में विशेष रूप से वे लोग ही थे जिन के कंधों पर विदेशी शासन टिका हुआ था. आजाद भारत में वोट का अधिकार सभी को दिया गया.

लोकतंत्र के बाद भी हमारे देश में लोक यानी जनता की जगह पर तंत्र यानी अफसर और नेताओं का राज चलता है. इस में जनता घरेलू मामलों से ले कर अदालतों तक के बीच चक्की में गेहूं की तरह पिसती है. अंत में उस का आटा ही बन जाता है. अब शायद कोई ही ऐसा हो जो इस चक्की में पिस न रहा हो. घर के अंदर तक कानून घुस गया है. पतिपत्नी के बीच से ले कर घर के बाहर सीढ़ी और छत आप की अपनी नहीं हैं. जो जमीन आप अपनी समझ कर रखते हैं, असल में वह आप की नहीं होती है.

लोकतंत्र में जो तंत्र का हिस्सा है वह लोक को अपनी जायदाद समझता है. कानून लोक के लिए तंत्र के हिसाब से चलता है. अगर हम इस को घर के अंदर से देखें तो आप अपनी सुविधा के अनुसार न तो छत पर कोई कमरा बनवा सकते हैं और न घर से बाहर निकलने के लिए सीढ़ियां. तंत्र को देख रहे अफसर अपने हिसाब से नियम बनाते हैं. हाउस टैक्स, प्रौपर्टी टैक्स नियम अफसर बनाते हैं. जनता से कभी पूछा नहीं जाता है. यही अफसर जनता के हित में अलग तरह से काम करते हैं जबकि अफसरों, नेताओं के हित में अलग तरह से काम होता है.

लोकतंत्र में तानाशाही बढ़ती जा रही है. वोट पाने के लिए वोटर को लुभाया जा रहा है और विपक्ष को डराया जा रहा है. यह उसी तरह से है जैसे घर के मालिक को तमाम तरह के टैक्स से परेशान किया जा रहा है. रोजगार पाने के लिए भटक रहे छात्रों को परेशान किया जा रहा है. नौकरी के लिए परीक्षा होती है तो पेपर आउट करा दिया जाता है. बेरोजगारी का आलम यह है कि चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी वाले छात्र लाइन लगा कर खड़े होते हैं. नेताओं के पास इतना पैसा है कि वे वोट को मैनेज करते हैं.
सत्ता को बनाए रखने के लिए यह प्रयास होता है कि विपक्षी को चुनाव न लड़ने दिया जाए. बाहुबली नेता धनजंय सिंह के मसले में उन का कहना है कि ‘चुनाव लड़ने से रोकने के लिए यह किया जा रहा है.’ ऐसे उदाहरण कई हैं जहां लोकतंत्र में तानाशाही दिखती है.

आम आदमी पार्टी का मसला हो, सांसद महुआ मोइत्रा का मामला हो, तमाम उदाहरण सामने हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ले कर भी उन की ऐसी ही घेराबंदी की गई थी. असल में लोकतंत्र की बात करने वाला या लोकतंत्र के जरिए ही सत्ता संभालने वाला कब तानाशाह बन जाता है, इस का पता नहीं चलता.
दुनियाभर में इस के उदाहरण भरे पड़े हैं. नेपोलियन, हिटलर और पुतिन जैसे शासकों ने अपनी शुरुआत लोकतंत्र से की, बाद में तानाशाह बन गए. भारत में जिस तरह से विरोधी नेताओें को चुनाव लड़ने से रोका जा रहा है उस से तानाशाही बढ़ने का खतरा साफतौर पर दिख रहा है.

भारत में पितृसत्ता की वजह से लैंगिक भेदभाव, ये करते हैं महिलाओं का जीवन नियंत्रित

हाल ही में यूनिसेफ द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारतीय महिलाएं शिक्षा पूरी करने के तुरंत बाद शादी के बजाय नौकरी करने को तवज्जुह देती हैं. यूनिसेफ के यूथ प्लेटफौर्म ‘युवाह’ और ‘यू रिपोर्ट’ द्वारा किए गए सर्वे में देश के 18-29 साल के 24,000 से अधिक युवा इस में शामिल हुए.

सर्वे के परिणाम में 75 फीसदी युवा महिलाओं और पुरुषों का मानना है कि पढ़ाई के बाद नौकरी हासिल करना महिलाओं के लिए सब से जरूरी कदम है. इस से अलग 5 फीसदी से भी कम लोगों ने पढ़ाई के तुरंत बाद शादी की वकालत की.

महिलाएं नौकरी करना चाहती हैं फिर भी जब श्रम बल में उन की भागीदारी देखते हैं तो वह बहुत कम मिलती है. पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस जुलाई 2021-जून 2022) के आंकड़े बताते हैं कि 29.4 प्रतिशत महिलाएं (15-49 वर्ष की उम्र की) ही भारतीय श्रम बल में योगदान दे रही हैं. पुरुषों में यह दर 80.7 फीसदी है. भारत में महिलाओं की श्रम बल में कमी का एक बड़ा कारण महिलाओं के लिए निर्धारित जैंडर रोल्स हैं. जैंडर के आधार पर तय की गई भूमिका के कारण महिलाओं से घरपरिवार को ज्यादा महत्त्व देने की अपेक्षा की जाती है.

दरअसल भारतीय समाज में पितृसत्ता की वजह से लैंगिक भेदभाव होता है और छोटी बच्चियों से ले कर महिलाओं तक के जीवन को नियंत्रित किया जाता है. वे क्या चाहती हैं, उन्हें क्या पहनना है, क्या पढ़ना और क्या करना है, इन सब को तय करने में पितृसत्ता अहम भूमिका निभाती है.

आज के तकनीकी विकास के इस आधुनिक युग में भी औरतों को पारंपरिक रूप से तय भूमिकाओं के दायरे में रहना पड़ता है. उन्हें बचपन से ही घरपरिवार और रिश्तों को संभालने की हिदायतें दी जाती हैं और इन्हीं के बीच कहीं उन की भूमिका सीमित कर दी जाती है. भले ही सालदरसाल लड़कियों ने ऊंची शिक्षा की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है और लड़कों से बेहतर रिजल्ट भी लाती हैं लेकिन नौकरी की बातें आते ही उन के प्रति लोगों का रवैया बदल जाता है. वे नौकरी करने का सपना ही देखती रहती हैं और उन की शादी कर दी जाती है.

महिलाओं की नौकरी में भागीदारी आवश्यक क्यों है

जब महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होती हैं तो वह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक पहलू होता है. अधिकतर देश जो तेजी से विकास कर रहे हैं वहां कार्यश्रम में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के समान है. खुद महिलाओं के उत्थान और व्यक्तित्व विकास के लिए भी यह जरूरी है.

महिलाओं का नौकरी करना वर्तमान समय में इसलिए भी आवश्यक होता जा रहा है क्योंकि परिवार की जरूरतें इतनी बढ़ रही हैं कि उन की पूर्ति के लिए पतिपत्नी दोनों ही काम करें तब ही वे अपने बच्चों को अच्छा जीवन दे सकते हैं. वैसे भी आधुनिक समय में महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, ऐसे में नौकरी करने से उन्हें अपनी शिक्षा का सही प्रयोग करने का मौका मिलता है. सभी महिलाएं चाहती हैं कि वे अपने स्वयं के खर्च खुद उठाएं तथा स्वावलंबी बनें और अपने परिवार के भरणपोषण में पूरा सहयोग दें. वे किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहना चाहतीं क्योंकि उन के पास नौकरी करने के लिए आवश्यक शैक्षिक डिग्रियां हैं.

मनोवैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो घर के काम तो दिनभर चलते रहते हैं लेकिन जो महिलाएं नौकरी करती हैं वे ज्यादा सक्रिय रहती हैं तथा सभी कामों को समय पर निबटा कर अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाती हैं. इस वजह से उन की मानसिक और शारीरिक स्थिति अच्छी रहती है. अपने सहयोगियों के साथ जा कर बातचीत करने से उन का मूड भी बूस्ट अप होता है. पूरा दिन घर के कामों में व्यस्त रहने और इधरउधर की व्यर्थ की बातें करने से तो अच्छा है कि वे कोई न कोई नौकरी कर लें ताकि उन के पास कोई काम भी रहे और कुछ इनकम भी हो जाए.

आर्थिक निर्भरता बनाती है सशक्त

नौकरी करने वाली महिलाएं सामाजिक और आर्थिक रूप से अपटूडेट रहती हैं. वे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से खुद का बेहतर खयाल रख पाती हैं. पुरुषों की पैसों की धौंस भी कम होती है. घरेलू महिलाओं की तरह उन्हें अपनी जरूरतों और पसंद की चीजें लेने में किसी तरह का कोई समझौता नहीं करना पड़ता. धनोपार्जन न करने की स्थिति में बहुत बार महिलाओं को दुर्व्यवहार सहने के लिए विवश होना पड़ता है जबकि नौकरी वाली महिलाएं ऐसे समय में सबल होती हैं.

आर्थिक आत्मनिर्भरता उन को निर्णय लेने की शक्ति देती है और यह शक्ति कई रूढ़ियों को बदल सकती है. जीवनसाथी के अस्वस्थ होने या मृत्यु होने की दशा में किसी के मुहताज होने से बेहतर है कि अपनी आर्थिक सुरक्षा का इंतजाम खुद ही कर लिया जाए. नौकरी इस के लिए उत्तम उपाय है.

कुछ लोग कहते हैं कि नौकरी करने वाली महिलाओं को घर के काम और बच्चों को संभालने के लिए कामवाली और आया वगैरह रखनी पड़ती है. इस वजह से सारे रुपए उसी में चले जाते हैं. पर वास्तव में ऐसा नहीं है. नौकरी वाली को जितने खर्च करने होते हैं उस से ज्यादा घरेलू महिलाएं खर्च कर देती हैं. आइए देखते हैं इस खर्च का ब्योरा:

जब आप घर में रहती हैं और नौकरी नहीं कर रही होती हैं तो आप के खर्च इस तरह के हो सकते हैं-

किटी पार्टी का खर्च

मेकअप प्रोडक्ट्स पर खर्च

पार्लर जाना

शौपिंग, खासकर, महंगी साड़ियों और हैवी सूट्स की खरीदारी

बच्चों को संभालने के लिए आया

बरतन-कपड़े के लिए कामवाली

रोजरोज मेहमानों के आने पर तरहतरह के पकवान तैयार करना

मंदिर, भजन कीर्तन या फिर धार्मिक त्योहारों पर खर्च

कहीं घूमने जाना

पड़ोस में कभी शादी, कभी बर्थडे तो कभी कुछ और औकेजन पर उपहार देने का खर्च

फोन का लंबा चौड़ा बिल, क्योंकि काम खत्म कर के औरतें फोन पर ही लगी रहती हैं

टीवी में तरहतरह के चैनल के लिए केबल का खर्च

सहेली के साथ बाहर जाने के खर्चे

जब आप औफिस जाती हैं, यानी, कामकाजी हैं उस समय आप के खर्च

घर के काम करने या खाना बनाने के लिए कामवाली

औफिस जाने के लिए कुछ प्रोफैशनल ड्रैस की शौपिंग

आनेजाने का किराया

कभीकभार आउटिंग के लिए रुपए

 

फुजूल वक्त-खर्च बचाए

जब आप जौब करती हैं तो आप के पास समय नहीं होता कि फालतू की किटी पार्टी अटेंड करें, धार्मिक उत्सवों और गीतसंगीत या भजनकीर्तन के कार्यक्रमों में शामिल हों, मंदिर जाएं या फिर घर में रिश्तेदारों को बुलाएं और पड़ोसियों से मिलें. आप के पास समय की कमी होती है. ऐसे में आप फालतू समय या रुपए खर्च करने से बचती हैं.

जो लड़कियां नौकरी करती हैं और जो नहीं करतीं दोनों को ही बच्चे को संभालने के लिए आया और घर के काम के लिए कामवाली रखनी ही होती है. अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ कभीकभार मिलना तो स्वाभाविक है. इस में ऐसा भारी खर्च नहीं होता है. अगर आप को 20 हजार रुपए की छोटी सी मासिक सैलरी भी मिल रही है तो भी यह फायदे का सौदा है.

आप अपने घर की देखभाल या खाना पकाने के लिए कामवाली रखती हैं तो उसे अपनी सैलरी से रुपए दे सकती हैं. आनेजाने में या दूसरे छोटेमोटे खर्च होते हैं तो वे भी खुद मैनेज कर सकती हैं और उस के बाद भी आप के पास थोड़े रुपए बच जाएंगे जिन्हें आप अपने मेकअप या कपड़ों पर खर्च कर सकती हैं. आप को किसी से पैसे मांगने नहीं होंगे. आप आत्मनिर्भर रहेंगी.

आप जब जौब करती हैं तो आप की सोच भी काफी बदल जाती है. आप बौद्धिक रूप से मजबूत और स्ट्रौंग सोच वाली महिला बन जाती हैं. आप का बातव्यवहार, आप की सोच और आप की पर्सनैलिटी सबकुछ बहुत ही इंप्रूव हो जाती है क्योंकि आप जब कौर्पोरेटर वर्ल्ड से संबंध रखती हैं तो खुद को उस लैवल में ले आती हैं. आप की इंग्लिश और बातचीत का तरीका बेहतर हो जाता है. आप प्रेजैंटेबल बनती हैं और आप को अपनी बात रखने का जज्बा आता है. आप के अंदर एक ज्यादा स्मार्ट, ज्यादा आत्मविश्वासी और ज्यादा मजबूत औरत का जन्म होता है. इसलिए नौकरी जरूर करनी चाहिए.

आप को नौकरी के लिए अगर कुछ कंप्रोमाइज करने पड़ रहे हैं या आप को समय लगाना पड़ रहा है तो यह सोचिए कि जब घर में होतीं तो आप वह समय बरबाद ही करतीं. उस का कोई सही इस्तेमाल न होता. पर अभी आप उस के बदले कमाई कर रही हैं. आप के पास उम्मीद है कि आप अपनी जिंदगी में ऊंचे से ऊंचे ओहदे तक पहुंच सकती हैं. आप के अंदर काबिलीयत है तो आप की कमाई भी बढ़ेगी और फिलहाल अगर आप को कम सैलरी मिल रही है तो भी कुछ तो मिल रहा है न.

कुछ रकम तो आप के हाथ में बच जाती है. वरना घरेलू महिलाओं के हाथ में कुछ रुपए आते नहीं उलटे उन्हें अपने पति या सास से पैसे मांगने पड़ते हैं. अपने छोटेछोटे खर्चों के लिए फिलहाल आप आत्मनिर्भर हैं. आप अपने खर्च को खुद से मैनेज कर सकती हैं और घरवालों को जरूरत होने पर दे भी सकती हैं.

अपने ऊपर विश्वास रहता है. समय के साथ काबिलीयत बढ़ती है. कभी परेशानी का मौका आए यानी कुछ बुरा हो गया तो आप को पता होता है कि आप सक्षम हैं और आप जौब कर अपना खर्च वहन कर सकती हैं. फिर आप को यह टैंशन नहीं रहती कि आप की जिंदगी आगे कैसे चलेगी. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना एक मजबूत औरत के लिए बहुत जरूरी है.

काम करने वाली महिलाएं होती हैं ज्यादा इंप्रैसिव

आप नौकरी नहीं करती हैं, मगर आप गोरी हैं, सुंदर हैं और ब्यूटीपार्लर में रुपए खर्च कर और भी खूबसूरत हो जाती हैं तो भी आप सामने वाले को इतना इंप्रैस नहीं कर सकतीं जितनी एक साधारण शक्लसूरत की आत्मनिर्भर कामकाजी लड़की कर सकती है. अगर उस का रंग सांवला है, वह ज्यादा खूबसूरत भी नहीं है लेकिन फिर भी उस की पर्सनैलिटी में जो आत्मविश्वासभरा चार्म रहेगा और बौद्धिक रूप से इतनी मजबूत रहेगी कि सामने वाला उस से बातें करने के बहाने ढूंढेगा.

उस के पास बात करने के लिए बहुत से टौपिक होंगे. इसलिए लोग उस से आकर्षित होंगे. जबकि एक घरेलू महिला कितनी भी कोशिश कर ले, उस के पास खाना, कपड़ा या फैशन और पतिबच्चों से बढ़ कर ज्यादा कुछ कहने के लिए बात नहीं होती. जब महिला जौब कर रही होती है तो उसे दीनदुनिया की खबर रहती है. वह हर तरह से जागरूक होती है. उसे बहुत सी जानकारियां होती हैं. वे देशदुनिया के बारे में बात कर सकती हैं, इसलिए उन के दोस्त भी ज्यादा होते हैं और वे दोस्त उन के मानसिक लैवल के होते हैं.

ज्यादा खुशमिजाज होती हैं कामकाजी महिलाएं

आमतौर पर लोग मानते हैं कि घर और बाहर की जिम्मेदारी अच्छी तरह संभालना बेहद जटिल काम है. महिलाओं को शादी के बाद सिर्फ घर ही संभालना चाहिए. जबकि वास्तविकता यह है कि यदि घर पर रहने का कोई विशेष कारण नहीं है तो आप को बाहर निकल कर नौकरी जरूर करनी चाहिए. यह आप को न सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि आप ज्यादा खुशमिजाज भी रहेंगी. अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि कामकाजी महिलाओं को गृहिणियों की अपेक्षा अवसाद और तनाव का खतरा कम होता है और वे ज्यादा खुश रहती हैं.

मजबूत मां की छवि

हर मां का सपना होता है कि उस का बच्चा बड़ा हो कर एक सफल और बेहतर इंसान बने. इस के लिए हर मां अपने बच्चे के पालनपोषण और पढ़ाई पर भी खूब ध्यान देती है. पर किसी भी बच्चे के व्यक्तित्व विकास में पढ़ाईलिखाई के साथसाथ उस के पारिवारिक माहौल का भी बहुत बड़ा योगदान होता है. जब बच्चा अपनी मां को एक मजबूत कामकाजी महिला के रूप में देखता है तो शुरू से ही उसे यह समझ आने लगता है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना कितना ज्यादा जरूरी है. यही वजह है कि कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों के सामने अकसर एक आदर्श बन जाती हैं.

मेरे पति का किसी से अफेयर चल रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 30 वर्षीय विवाहित युवक हूं. हमारा दांपत्य सुखद है. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. पर कुछ समय से पत्नी की हरकतों से संदेह होने लगा है कि शायद उस का मेरे अलावा भी किसी से चक्कर चल रहा है.

मैं ने उस से साफसाफ पूछा नहीं है. डरता हूं कि यदि मैं ने उस से इस विषय में बात की तो वह इस बात से आहत न हो जाए कि मैं उस पर भरोसा नहीं करता. बताएं क्या करूं?

जवाब

आप मानते हैं कि आप की पत्नी आप से प्रेम करती है, बावजूद इस के आप शंकित हैं कि उसका किसी से चक्कर चल रहा है. आप को बेवजह शक नहीं करना चाहिए जब तक कि कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिलता.

यदि आप का शक बेबुनियाद हुआ तो इस से आप की पत्नी का आहत होना स्वाभाविक है. इस से आप का दांपत्य जीवन भी प्रभावित होगा. इसलिए सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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