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छोटे कारोबारी सौ फीसदी एफडीआई के खिलाफ

वित्त साल 2016-17 के लिए फरवरी में पेश किए गए बजट में खाद्य पदार्थों की मार्केटिंग व उन के निर्माण के क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की मंजूरी के खिलाफ छोटे कारोबारी खड़े हो गए हैं.

खिलाफत करने वाले छोटे कारोबारियों का मानना है कि यह मंजूरी एक तरह से मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की मंजूरी की तरह ही है.

साल 2014 में भाजपा ने कहा था कि उन की सरकार बनने पर मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की इजाजत नहीं दी जाएगी. खाने की चीजों की मार्केटिंग व निर्मण में सौ फीसदी एफडीआई की खिलाफ करने वालों में एफडीआई वाच कैंपेन, कनफेडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट), भारतीय उद्योग व्यापार मंडल, द हाकर्स फैडरेशन, जनपहल व फेडरेशन आफ एसोसिएशन आफ महाराष्ट्र के साथसाथ कई दूसरे कारोबारी एसोसिएशन भी शामिल हैं.

सरकार का मानना है कि लिए गए फैसले से किसानों की आमदनी दोगुनी करने में मदद मिलेगी. इस के अलावा बरबाद होने वाले फलों व सब्जियों को प्रोसेस्ड कर के बेचा जा सकेगा.

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया ने खाद्य क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई की इजाजत को गलत बताते हुए कहा कि इस से दुनियाभर की रिटेल कंपनियों को देश के फूड मार्केट पर शिकंजा कसने का मौका मिलेगा, नतीजतन किसानों को कोई लाभ नहीं होगा. शायद सरकार ने खाद्य पदार्थों की खराबी पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की साल 2010 की रिपोर्ट पर गौर नहीं किया है, जिस में खाने की चीजों की खराबी बेहद मामूली बताई गई है.                        

अब करें एटीएम और पासवर्ड के बिना ट्रांजैक्शन

अगर आप अपना एटीएम कार्ड घर पर भूल गए हैं या आप का कार्ड चोरी हो गया है तो पैसे कैसे निकालें, इस बात की टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. अब आप बिना एटीएम कार्ड और पासवर्ड के भी एटीएम मशीन से पैसे निकाल पाएंगे. इस में न तो कार्ड मशीन में फसने की टैंशन होगी और ना ही कोई दूसरा आप का कार्ड इस्तेमाल कर पाएगा.जी हां, डीसीबी बैंक ने यह सुविधा शुरू की है, जिस में ग्राहक बिना कार्ड और पासवर्ड के अपनी बायोमीट्रिक जानकारियों के ट्ठारा ट्रांजैक्शन कर सकते हैं. देश में इस तरह का पहला एटीएम शुरू किया गया है जो आधार के डेटा से औपरेट होता है. यूजर एटीएम पर या तो 12 अंकों का नंबर डाल सकते हैं या फिर कार्ड स्वाइप कर सकते हैं. इस के बाद पहचान के लिए बायोमीट्रिक जानकारियों की जरूरत होगी. इस में स्कैनर की सहायता से आप के फिंगर प्रिंट्स की जांच की जाएगी और आप आसानी से ट्रांजैक्शन कर पाएंगे.

छोटे बच्चों के लिए ये ‘खास जूता’

छोटे बच्चे जब चलना सीखते हैं तब उन का खास ध्यान रखना पड़ता है ताकि उन्हें चोट ना लगे. क्योंकि इस दौरान कई बार बच्चे चलतेचलते गिर जाते हैं, उन का संतुलन बिगड़ जाता है. लेकिन अब आप का बच्चा बिना लड़खड़ाए टाइल्स, कारपेट और कहीं पर भी चल सकेगा. जी हां प्रतिष्ठित कार निर्माता कंपनी बीएमडब्लू ने बच्चों के लिए एक खास तरह का जूता तैयार किया है, जिसे पहनने के बाद बच्चे गिरेंगे नहीं और आसानी से चल सकेंगे. यह जूता 3 साल तक के बच्चों के लिए बनाया गया है और काफी हलका है ताकि पहनने के बाद किसी तरह की प्रौब्लम न हो. कंपनी ने इस जूते का नाम ‘एक्सड्राइव बेबी शूज’ रखा है. इस में नई तकनीक का इस्तेमाल कर रबर के ऐसे सोल बनाए गए हैं जो एक सैकेंड के दसवें हिस्से से भी कम समय में सतह की स्थिति को भांप कर अपनी दिशा बदल देगा और बच्चों का संतुलन बना रहेगा. इंटरनैट पर इस खास जूते को देख कर लोग हैरान हैं.

नई तकनीक: टायलेट में नहीं आएगी बदबू

बदबूदार टायलेट में घुसते ही नाक सिकोड़ कर उस पर हाथ रख कर बैठना पड़ता है. साथ ही हर दिन टायलेट में सैकड़ों लीटर पानी बरबाद हो जाता है, ताकि टायलेट में बदबू न आए. आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर औैर उन के छात्र ने बिना बदबू वाली टायलेट बनाने के खयाल को जन्म दिया. बस, फिर क्या था, कुछ समय की मेहनत के बाद वे ऐसा टायलेट बनाने में कामयाब रहे. मेक इन इंडिया कार्यक्रम के दौरान पैन आईआईटी पेवेलियन में स्वच्छ भारत और मेक इन इंडिया जैसी मुहिम पर जोर देने वाले इस टायलेट को पेश किया गया.

ऐसे टायलेट के इस्तेमाल से हर दिन देशभर के हजारों टायलेटों में लाखों लीटर पानी की बचत हो सकती है. फिलहाल सौ से ज्यादा संस्थाओं के सहयोग से देशभर में कईर् जगहों पर इस टेक्नोलोजी पर बने टायलेट इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं. मुंबई में भी कई जगहों पर ये टायलेट कामयाबी के साथ काम कर रहे हैं. प्रोफेसर विजय राघवन चेरियार और उन के छात्र उत्तम बनर्जी ने एक कंपनी बना कर इस की मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की. प्रोफेसर विजय राघवन का कहना है कि वे टायलेट में जाने वाले पानी को बरबाद होने से बचाना चाहते हैं. साथ ही वे मलमूत्र से खाद और दूसरी उपयोगी चीजें तैयार करना चाहते हैं.

सामान्य टायलेट में पेशाब करने के बाद फ्लश के जरीए बड़ी मात्रा में पानी यों ही बरबाद हो जाता है. ऐसा मुख्य तौर पर सफाई और बदबू से बचने के लिए किया जाता है. इस टायलेट में पेशाब करने के बाद उस के नीचे जाने पर एक विशेष प्रकार का मेकैनिज्म ऊपर तैरने लगता है औैर फिर पेशाब निकल जाने के बाद उस एरिया को वही मेकैनिज्म ब्लौक कर देता है, जिस से उस में से किसी तरह की बदबू बाहर नहीं आ पाती है. ऐसे में इस तरह के टायलेट न केवल सूखे से प्रभावित इलाकों में, बल्कि भविष्य में देशभर में पानी की परेशानी को देखते हुए काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं. प्रोफेसर विजय राघवन चेरियार का कहना है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तर्ज पर वे मलमूत्र को भी दोबारा इस्तेमाल में लाना चाहते हैं. वैसे भी पानी के साथ मिलने के बाद मूत्र बेकार हो जाता है. अगर इसे पहले ही प्रोसेस किया जाए, तो यह इस्तेमाल में लाया जा सकता है. साथ ही मल की प्रोसेसिंग के जरीए खाद भी बनाई जा सकती है.

प्रोफेसर विजय राघवन चेरियार का कहना है कि भविष्य में उन की योजना औरतों के लिए खास तरह के टायलेट बनाने की है.

ओबामा ने प्रियंका को दिया व्हाइट हाउस में डिनर का न्योता

बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने डिनर का न्योता भेजा है. ओबामा हर साल व्हाइट हाउस में डिनर का एक खास प्रोग्राम रखते हैं. इसी डिनर के लिए प्रियंका को न्योता दिया गया है. बराक ओबामा और वाशिंगटन में प्रथम महिला मिशेल ओबामा इस डिनर मेजबान होंगे.

हालांकि प्रियंका बिजी शेड्यूल के चलते डिनर पर नहीं जा पाएंगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि वह अमेरिकी टीवी शो 'क्वांटिको' की शूटिंग में बिजी हैं और अभी तक उनके डिनर पर जाने की बात की पुष्टि नहीं की गई है.

गेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले हफ्ते होने वाले व्हाइट हाउस डिनर में प्रियंका शिरकत कर पाएंगी या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हुई है क्योंकि वह आजकल  'क्वांटिको' और 'बेवॉच' की शूटिंग में बिजी हैं.

क्वांटिको से इंटरनेश्नल फेम पा चुकी प्रियंका के फेम में दिन पर दिन बढ़ोतरी हो रही है. हाल ही में प्रियंका ने दुनिया के सबसे बडे अवॉर्ड ऑस्कर के रेड कारपेट पर जलवे बिखेरे थे.

विश्व को भारत की देन है ‘कुंग-फू शैली’: टाइगर श्रॉफ

बहुत कम लोगों को इस बात का इल्म है कि मार्शल ऑर्ट की विधा कुंग-फू का जनक भारत है. हाल ही में इस संदर्भ में कई तथ्य सामने आए हैं. 'बागी' फिल्म के ट्रेलर में अपने एक्शन से लोगों को हैरान करने वाले अभिनेता टाइगर श्रॉफ का कहना है कि कुंग-फू कला विश्व को भारत की ही देन है. मार्शल आर्ट की इस विधा को भारतीय बौद्ध संत बोधिधर्मा ने आविष्कृत किया.

लोगों के बीच में यह भ्रांति है कि कुंग-फू का जनक चीन है, क्योंकि वहां के नागरिक इसे अधिक सीखते हैं और उन्होंने इसे आत्मरक्षा के लिए अपनाया है. हालांकि, इससे यह साबित नहीं होता कि यह विधा चीन की देन है.

संत बोधिधर्मा को कुंग-फू का पिता कहा जाता है. चीन के शाओलिन में उनके नाम पर कई मंदिर बने हैं. इसलिए कयास लगाए जाते रहे हैं कि छठी सदी के दौरान संत बोधिधर्मा चीन गए थे.

इस सदी के दौरान चीन का कोई अस्तित्व नहीं था, संत तो हिंदकुश क्षेत्र के हिमालय पर्वत के उस पार के लोगों को बौद्ध धर्म का ज्ञान देने गए थे, लेकिन वह वहीं बस गए और साथ में अपने नायाब आविष्कार का ज्ञान वहां के लोगों में बांटा. यहीं कारण है कि उस क्षेत्र में इस विधा का पूरा विकास हुआ.

इस पर टाइगर श्रॉफ ने कहा, 'यह विधा भारत की देन है.' कुंग-फू, मार्शल आर्ट की सबसे पुरानी विधा है, जिसमें बिना किसी हथियार के युद्ध किया जाता है. यह बात निश्चित है कि बोधिधर्मा जहां भी गए अपने साथ मार्शल ऑर्ट का यह नायाब रूप साथ लेकर गए.

शाओलिन में बने नए मंदिर में बोधिधर्मा रह गए और अन्य बौद्ध संतों के हाथों इस कला को सौंप दिया, जिसे हम आज कुंग-फू के नाम से जानते हैं. बोधिधर्मा इस कला के आविष्कारक और महान लड़ाका थे. समय के साथ उनकी इस विधा का विकास पूरे विश्व में हुआ.

शिल्पा शेट्टी ने बताया सुखी वैवाहिक जीवन का राज

स्वयं को मध्यमवर्गीय सोच की महिला बताने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी का कहना है कि किसी भी वैवाहिक जीवन में 'चर्चा और बहस' होना एक आम बात है. अभिनेत्री ने व्यवसायी राज कुंद्रा से शादी की है. शिल्पा ने कहा, मेरा मानना है कि किसी भी शादी में चर्चा और बहस आम बात है, लेकिन आप इसका समाधान कैसे निकालते हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है.

उल्लेखनीय है कि हाल में करिश्मा कपूर-संजय कपूर, ऋतिक रोशन-सुजैन खान तथा अरबाज खान-मलाइका अरोड़ा खान ने अपने वैवाहिक जीवन की खटपट से तंग आकर अलग होने का फैसला किया है.

शिल्पा ने कहा, आप अपने मसलों को कैसे भी निपटाएं, लेकिन एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि आप उन्हें अपने शादीशुदा जीवन के दायरे में रहकर ही निपटाएं. इसीलिए मुझे लगता है कि मेरी सोच मध्यमवर्गीय है. एक सफल वैवाहिक जीवन के लिए भरोसा व एक-दूसरे के प्रति सम्मान बहुत जरूरी है. शिल्पा और राज की शादी 2009 में हुई थी. उनका एक बेटा है, जिसका नाम वियान है.

सौर ऊर्जा से लहलहा रही फसलें

सौर ऊर्जा की अहमियत को अब पढ़ेलिखे लोगों के साथसाथ छोटे किसान व तमाम आम लोग भी समझने लगे हैं. राजस्थान में हजारों किसान सौर ऊर्जा का भरपूर फायदा ले रहे हैं. ऐसे किसानों का मानना है कि वाकई यह पैट्रोलडीजल वगैरह का बेहतर उपाय है. सरकार द्वारा सब्सिडी दिए जाने से किसानों के लिए सोलर ऊर्जा पैनल व पंपसेट लगाना और भी आसान हो गया है.

सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के इस काम में सैकड़ों कंपनियां व एजेंसियां लगी हुई हैं. जो किसान सब्सिडी पाना चाहते हैं, वे अपने प्रदेश व जिले के कृषि व उद्यानिकी विभाग में आवेदन कर के सब्सिडी के साथ सौर ऊर्जा प्लांट लगवा सकते हैं. इस के अलावा घरों की छतों पर भी सौर ऊर्जा प्लांट लगवा कर पूरे घर को रोशन किया जा सकता है.

सोलर प्लांट से मिली कामयाबी

जयपुर जिले की चाकसू तहसील के रहने वाले किसान रामकेश को जब कृषि सुपरवाइजर कैलाश जाट ने सौर ऊर्जा प्लांट के बारे में जानकारी दी, तो वह खुश हो गया.

रामकेश ने अपने खेत पर खेततलाई तो बनवा रखी थी, लेकिन बिजली विभाग में 3 साल पहले आवेदन लगाने के बावजूद बिजली कनेक्शन नहीं मिल रहा था. ऐसे में कृषि सुपरवाइजर के बताए अनुसार उसे सौर ऊर्जा प्लांट लगवाने में फायदा नजर आया, तो उस ने सौर ऊर्जा प्लांट लगवाने की ठानी.

कृषि सुपरवाइजर ने उसे सोलर प्लांट पर मिलने वाली तमाम जानकारी मुहैया कराई, तो रामकेश ने सोलर प्लांट के लिए कृषि व उद्यानिकी विभाग में औनलाइन फार्म जमा करा दिया. कुछ ही समय बाद रामकेश का चयन सोलर प्लांट लगाने के लिए हो गया. उस ने 3 हजार वाट व 3 हार्सपावर के सोलर पंपसेट के लिए सोलर कंपनी के नाम 85 हजार रुपए का बैंक ड्राफ्ट जमा करा दिया.

3 साल पहले लगाए गए सोलर पंपसेट से आज रामकेश की इलाके में जागरूक व कामयाब किसान के तौर पर पहचान है. रामकेश के हरेभरे खेतों में लहलहाती फसल को देख कर आज हर कोई सोलर पंपसेट लगाने की तमन्ना रखता है. रामकेश ऐसे लोगों को भरपूर मदद भी करता है. अब तो रामकेश ने अपने खेत में बोरिंग भी करवा ली है, जिस से सोलर पंपसेट का वह भरपूर फायदा ले रहा है.

मौजूद सोलर प्लांट

सरकार किसानों के खेतों में सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के लिए हर साल अपना टारगेट तय करती है. वह इस के लिए कंपनियों का चुनाव करती है. ये कंपनियां अनुदान के आधार पर सोलर प्लांट लगाती हैं. वहीं सैकड़ों कंपनियां खुले में भी इस काम में लगी हुई हैं. कंपनियां व उन के प्रतिनिधियों से कोई भी व्यक्ति सोलर प्लांट लगवा सकता है. ये कंपनियां भी सरकार से अनुदानित कंपनियों के बराबर ही सोलर प्लांट लगाने की कीमत वसूल करती हैं.

यहां सोलर प्लांट लगाने के काम में लगी कंपनियों की जानकारी दी जा रही है. कोई भी किसान सीधे कंपनियों से संपर्क कर के घर या खेतों पर सोलर प्लांट लगवा सकता हैं.

राजस्थान में सौर ऊर्जा पंप सेट के लिए टारगेट तय

सौर ऊर्जा पर आधारित पंप परियोजना में साल 2015-16 के जिलेवार टारगेट भी तय किए जा चुके हैं. सरकार ने पात्रता रखने वाले किसानों को तुरंत इस योजना का फायदा दिलाने के लिए कहा है.

उद्यानिकी विभाग द्वारा जारी गाइडलाइन में साल 2014-15 में लाटरी से चुने गए किसानों को प्राथमिकता के आधार पर फायदा पहुंचाने की बात कही गई है. समूचे प्रदेश में 4,702 पंपसेट लगाने का टारगेट तय किया गया है.

ऐसे मिलेगा अनुदान का फायदा

नए निर्देश के अनुसार, विद्युत कनेक्शन लौटाने वाले किसानों को पूरा अनुदान देय होगा. साथ ही जिन किसानों के विद्युत कनेक्शन नहीं हैं और डिस्कौम की वरीयता सूची में भी नहीं हैं, इस के लिए उन को 60 फीसदी अनुदान मिलेगा.

गौरतलब है कि पूर्व में इस तरह का नियम नहीं था. हकदार किसानों को 75 फीसदी अनुदान दिया जाता था. लेकिन अब सरकार ने सभी किसानों को सोलर पंप योजना के लाभ से जोड़ने के लिए यह फैसला लिया है.

उद्यानिकी विभाग द्वारा जारी सोलर पंप के टारगेट में इस साल नहरी किसानों का भी खास खयाल रखा गया है. इंदिरा गांधी नहर परियोजना लाभान्वित बीकानेर जिले के लिए 600, जैसलमेर के लिए 205, श्रीगंगानगर के लिए 538 और हनुमानगढ़ के लिए 173 सौर ऊर्जा पंपसेटों का टारगेट रखा गया है. इस के अलावा जयपुर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों में बागबानी फसल के बढ़ते दायरे को देखते हुए सोलर पंप के टारगेट पहले से बढ़ा कर रखे गए हैं.

सेटेलाइट से भी जुड़ेंगे सौर ऊर्जा प्लांट

सोलर ऊर्जा का डाटा संग्रहित करने व संयंत्र की मौनिटरिंग के लिए उद्यानिकी विभाग अब प्रदेश में नई व्यवस्था लागू करने जा रहा है. इस के तहत किसान के खेत में लगे संयंत्र को अब सेटेलाइट से जोड़ा जाएगा. इस से सौर ऊर्जा संयंत्र पंप की निगरानी भी हो सकेगी, साथ ही संयंत्र से जुड़ी किसान की समस्या का शिकायत से पहले ही समाधान संभव हो सकेगा.

गौरतलब है कि प्रदेश में सोलर सिंचाई पंप योजना को ले कर किसानों का रुझान साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. सोलर पंप को सेटेलाइन से जोड़ने के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इस से संयंत्र से जुड़ी हर पल की जानकारी विभाग और संयंत्र लगाने वाली कंपनी के पास मुहैया हो सकेगी. गौरतलब है कि सौर ऊर्जा के मेगा प्रोजेक्ट में रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है. किसान के खेत में लगने वाले सोलर पंपसेट में इस तकनीक का प्रयोग प्रदेश में पहली बार होगा.

ऐसे होगी सिस्टम की मौनिटरिंग

सोलर ऊर्जा संयंत्र के माहिरों के अनुसार संयंत्र के मौड्यूल व कंट्रोलर में एक चिप लगाई जाएगी. इस से सेटेलाइट हर पंप से जुड़ सकेगा. यह चिप आरएफआईडी यानी रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेंटीफिकेशन तकनीक से लैस होगी. इस से संयंत्र से जुड़ी तमाम जानकारी कंपनी को उपलब्ध होती रहेगी. इस से संयंत्र की ट्रेकिंग भी संभव है.

सेटेलाइट से सेंसर संयंत्र की निगरानी कंपनी और विभागीय स्तर पर होगी. इस के लिए जिला स्तर पर डाटा सेंटर बनाए जाएंगे. डाटा संग्रहण के लिए मोबाइल नेटवर्क होना बेहद जरूरी होगा. डाटा एक्सिस करने के लिए पासवर्ड का इस्तेमाल किया जाएगा और संग्रहित डाटा के आधार पर ही भविष्य की योजना बनाई जाएगी.

रिमोट सेंसिंग तकनीक पर आधारित होंगे सोलर प्लांट

नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय से रिमोट सेंसिंग तकनीक आधारित सोलर सिंचाई पंप लगाने के निर्देश मिले हैं. साल 2015-16 में स्थापित होने वाले तमाम संयंत्र इस तकनीक से लैस होंगे. प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया अभियान के तहत यह कवायद शुरू की गई है. इस के तहत जवाहरलाल नेहरू सोलर मिशन के तहत वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए जारी गाइडलाइन में सोलर पंप संयंत्र को रिमोट सेंसिंग तकनीक से जोड़ने का प्रावधान किया गया है. इस के तहत उद्यान विभाग इस वित्तीय वर्ष में उन्हीं कंपनियों को अहमियत देगा, जो रिमोट सेंसिंग तकनीक आधारित संयंत्र की आपूर्ति किसान को कर सकें.

– एसपी सिंह, उद्यानिकी आयुक्त, जयपुर

सोलर प्लांट लगाने वाली जयपुर में स्थित कंपनियां व संपर्क नंबर :

श्री राधेश्याम सौर सेवा :08048016637.

न्यू जर्सी निगम :07053137627.

जैनटेक प्राइवेट लिमिटेड :09643206106.

न्यू लाइट आफ इंजीनियर्स : 08046050766.

नीधीशवार्म पावर कारपोरेशन : 9873148460.

गीता इलेक्ट्रोनिक्स : 09643007989.

चरम सीमा संचार : 08048105644.

एम पावर ग्रीन प्रा. लिमिटेड : 08045317354.

ग्रीन मोर ऊर्जा उत्पाद प्रा. लिमिटेड : 09643338086.

राजस्थान इलेक्ट्रोनिक्स उपकरण प्रा. लिमिटेड : 08043051759.

कांपैक्ट व्यापार सेवाएं :08042984205.

खूबियों से भरपूर सोलर सिस्टम स्प्रे मशीन

सरकार व वैज्ञानिक किसानों की खुशहाली के लिए मशीनों से खेती करने की बात करते हैं. मगर छोटी या मध्यम जोत के किसान यदि मशीनी खेती करना भी चाहें, तो ज्यादातर मशीनों के बिजली या ईंधन चालित होने की वजह से लागत बढ़ जाती है.

इतना सब होने के बावजूद अगर मशीन बिजली चालित है, तो ग्रामीण इलाकों में बिजली की कटौती एक बड़ी समस्या बन कर उभरती है. ऐसे में किसानों द्वारा सूर्य की रोशनी से चलने वाले कृषि यंत्रों को अपनाना बेहतर साबित होगा. इस से न सिर्फ बिजली या ईंधन पर आने वाली लागत शून्य होगी, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.

हाल ही में मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित एक फर्म ने सूरज की रोशनी से चलने वाली एक स्प्रे पंप मशीन ईजाद की है, जो बिक्री के लिए बाजार में आ चुकी है. फर्म ने इसे ‘धूप सोलर स्प्रे पंप 999’ के नाम से बाजार में उतारा है. यह मशीन इनबिल्ट बैटरी से लैस होने के कारण डीसी पावर से चलती है और जरूरत पड़ने पर छोटे इन्वर्टर के रूप में भी इस्तेमाल की जा सकती है.

खूबियां : फर्म के दावों के मुताबिक इस सोलर सिस्टम स्प्रे मशीन की निम्न खूबियां हैं:

* खेतों व बागों में पोशक तत्त्वों व दवाओं के छिड़काव के लिए ज्यादातर किराए पर मशीन ली जाती है या बिजली और ईंधन द्वारा चालित मशीनें इस्तेमाल होती हैं, जिन पर काफी लागत आती है. यह सोलर सिस्टम स्प्रे पंप मशीन पूरी तरह से सूरज की रोशनी से चलती है. लिहाजा शुरुआती लागत के बाद कोई खर्च नहीं होता है.

* इसे किसान पीठ पर लाद कर या किसी जगह रख कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

* एकसाथ 2 फव्वारा प्रेशर की कूवत.

* 100 पीएसआई की प्रेशर मोटर.

* 16 लीटर स्प्रेयर पंप का टैंक.

* उच्च गुणवत्ता वाला स्प्रे पाइप.

* उच्च गुणवत्ता का बैटरी बैकअप सिस्टम.

* पंप सेट का कुल वजन 7 किलोग्राम से कम.

* अच्छी गुणवत्ता वाली सिलिकान सोलर प्लेट.

* रात में छिड़काव के लिए लेड लाइट का इंतजाम.

* मशीन में मोबाइल चार्जिंग की भी सुविधा.

* बैटरी चार्जिंग सुविधा होने के कारण छिड़काव के साथसाथ चार्जिंग होने और 1 बार चार्ज कर लेने पर दिन भर छिड़काव करने की सुविधा.

* सौ फीसदी ईंधन या बिजली की बचत.

कीमत : बाजार में इस की कीमत 6 हजार रुपए है. सोलर प्लेट और पंप की कुछ सालों की गारंटी भी है.

मौजूदगी : कंपनी के लखन पाटीहार का दावा है कि यह मशीन मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात व राजस्थान सूबों के खास शहरों में भी मिलती है.

ज्यादा जानकारी के लिए कंपनी के मोबाइल नंबरों 07316999950, 09165416309 व 09009354050 पर संपर्क किया जा सकता है.

कंपनी के दफ्तर का पता है : 7, पटेल विहार कालोनी, कनाडिया रोड, बंगाली चौराहा, इंदौर, मध्य प्रदेश.    

बजट: किसानों को राहत या लुभाने का नया अंदाज

साल 2015-16 का बजट गांव, गरीब व किसानों के लिए है, ऐसा कहा जा रहा है. वित्तमंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण व की गई घोषणाओं से हट कर कुछ नया करने की झलक मिलती है. उदाहरण के तौर पर पिछले साल खेती के लिए कुल तय रकम 25 हजार करोड़ रुपए को इस बार बढ़ा कर 44 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है.

अपना इंतजाम पक्का

बजट के अनुसार इस साल सरकारी खर्च में होने वाली बढ़ोतरी के मद्देनजर सेवा कर में कृषि सेस का उपकर लगा कर सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने का तो पक्का इंतजाम कर लिया है, लेकिन किसानों की आमदनी अगले 5 सालों में बढ़ कर दोगुनी होने की बात की गई है. ऐसी बातें तो पहले भी कही जा चुकी हैं.

गौरतलब है कि सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह हर साल महंगाई भत्ते व सालाना बढ़ोतरी के जरीए करीब 15 से 20 फीसदी तक बढ़ जाती है. बेशक गांव व गरीबों के नाम पर चली बहुत सी स्कीमों में पानी की तरह पैसा बहाया जाता रहा है, लेकिन किसानों की आमदनी बढ़ाने का ऐसा कोई तरीका अभी तक नहीं निकाला गया है.

यह बात आज किसी से छिपी नहीं है कि ऊपर से चला पैसा, घपले, घोटालों  गड़बड़ी के कारण नीचे गांवगरीब तक पूरा नहीं पहुंचता. ज्यादातर सरकारी कर्मचारी निकम्मे हैं व भ्रष्ट हैं. वे गांव, गरीब व किसानों के फायदे की ज्यादातर बातों की जानकारी छिपा कर रखते हैं.

लिहाजा ज्यादातर विकास योजनाओं की किसानों को खबर तक नहीं दी जाती. अकसर मक्कार, असरदार, दबंग नेता आपस में बंदरबांट कर लेते हैं और गरीब किसानों को मिलने वाली छूट, कर्ज व दूसरी सुविधाएं हड़प जाते हैं. यही वजह है कि सरकार की तरफ से चल रही कोशिशों के बावजूद छोटे किसान परेशान हैं.

हाल में की गई आर्थिक समीक्षा के मुताबिक राशन, रसोई गैस, रेल व बिजली आदि में गरीबों को सालाना 1 लाख करोड़ रुपए की भारी छूट दी जा रही है, लेकिन इस का बड़ा हिस्सा आज भी अमीरों के खाते में जा रहा है. काफी हद तक गरीबों के हक छीने जा रहे हैं. लिहाजा इस पर सख्ती से नकेल कसना बेहद जरूरी है.

बदलाव जरूरी

गांवों में खुशहाली लाने के लिए सिर्फ बजट में अरबोंखरबों की रकम खर्च के लिए रख देना ही काफी नहीं है. खेती, बागबानी व उस से जुड़े दूसरे विभागों के बुनियादी ढांचे और काम करने के तरीकों में सुधार करना भी जरूरी है. इस के लिए कड़े व सही कदम उठाना भी लाजिम है, वरना कोई नतीजा नहीं निकलेगा.

बजट से पहले की आर्थिक समीक्षा में साफ कहा गया है कि पिछले साल यूरिया पर दी गई कुल छूट 50,300 करोड़ रुपए थी, लेकिन इस में से सिर्फ 35 फीसदी 17,500 करोड़ रुपए की छूट ही छोटे किसानों के हिस्से में आई, जबकि कुल छूट का करीब 2 तिहाई हिस्सा दूसरे ले गए. छोटे किसानों की लूट का यह सिलसिला बंद होना बेहद जरूरी है.

कड़े कदम

यूरिया पर दी जा रही सारी छूट सीधे किसानों को उन के बैंक खातों में दी जानी चाहिए. साथ ही साथ यूरिया की बिक्री को खुला कर दिया जाए तो खास बोआई के वक्त होने वाली यूरिया की कमी व कालाबाजारी खत्म हो सकती है और किसानों को बेवजह होने वाली परेशानी से राहत मिल सकती है.

अब यह भी तय किया जाना चाहिए कि अपनी जोत के मुताबिक एक किसान कितनी बोरी छूट वाली यूरिया खरीद सकता है. साथ ही खरीदार की पहचान के लिए बायोमैट्रिक पहचान प्रणाली लागू होनी चाहिए. इस के अलावा मसला सिर्फ यूरिया में छूट की लूट का ही नहीं, न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति में झोल का भी है.

कई खास फसलों की सरकारी खरीद नीति पर भी नए सिरे से गौर किया जाना चाहिए, क्योंकि कम से कम दाम तय करने का फायदा भी छोटे किसानों को पूरा नहीं मिल रहा है. यदि किसी उपज का बाजार भाव नीचे गिर कर उस के न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम रहे तो सरकार को उस की कम से कम 50 फीसदी भरपाई करनी चाहिए.

नई तकनीक

आजकल स्मार्ट फोन का जमाना है. अमीर देशों में किसान मोबाइल फोन से ट्यूबवैल चलाने व बंद करने और कीड़ेमार दवा के छिड़काव व दूसरे कामों में औटोमैटिक उड़ने वाले ड्रोन का इस्तेमाल बखूबी कर रहे हैं, लेकिन हमारे देश में अभी ये सारी तकनीकें व मशीनें महंगी होने से हर किसान के बस की नहीं हैं. इन पर कोई छूट नहीं दी गई है.

दूसरी सब से बड़ी व जरूरी बात यह है कि तेल, गैस, सोने व विमानईंधन आदि पर अमीरों को बंट रही गैर जरूरी सब्सिडी का बोझ घटा कर किसानों को सस्ते ब्याज पर कर्ज मुहैया कराया जाए, ताकि वे खुदकुशी करने पर मजबूर न हों. यदि गुरबत की वजह से किसानों की जमीनें बिकने की नौबत आती रही तो वे खेती कैसे करेंगे

सरकार की नीयत वाकई किसानों को राहत पहुंचाने व उन की आमदनी बढ़ाने की है तो कम से कम  इतना जरूर किया जाना चाहिए कि गांव और खेती के नाम पर बंट रही सरकारी सब्सिडी का फायदा गरीब व जरूरतमंद किसानों को ही मिले, अमीरों को नहीं. मंडी में लगने वाले टैक्स कम व बिचौलिए कम से कम हों ताकि किसानों की उपज सीधे उपभोक्ताओं को मिले. तभी किसानों की आमदनी बढ़ेगी.

खेती को बढ़ावा देने और किसानों के भले की बहुत सी बातें इस से पहले भी बजट के दौरान बढ़ाचढ़ा कर की जाती रही हैं. बात तो तब है जबकि किसानों को माली हिफाजत मिले. खेती में उन का जोखिम घटे और उन की जानकारी व आमदनी बढ़े. इस के लिए रिसर्च स्टेशनों में हो रही खोजबीन व तकनीकी जानकारी का कारगर प्रचारप्रसार मुफ्त व्हाटसऐप वगैरह के जरीए चालू करना होगा.

खेतीकिसानी से जुड़ी सारी सहूलियतें किसानों को एक ही छत के नीचे मुहैया कराई जानी चाहिए, ताकि उन्हें बेवजह इधरउधर धक्के न खाने पड़ें. छोटी व किफायती मशीनों के इस्तेमाल पर खास जोर दिया जाना चाहिए, ताकि कम जोत वाले किसानों का समय, धन व मेहनत बचे और वे भी ज्यादा पैदावार ले कर अपनी माली हालत सुधार सकें.

फूड प्रोसेसिंग

खेती से ज्यादा कमाई करना आज भी ज्यादातर किसानों के लिए एक चुनौती है. इस के लिए खास मुहिम चला कर गांवों में ही मौके बढ़ाए जाने चाहिए, ताकि किसान खुद तकनीक सीख कर फूड प्रोसेसिंग की अपनी इकाई लगा सकें और अपनी उपज से तैयार माल बना कर उस की कीमत बढ़ा सकें. ऐसा करना मुश्किल नहीं है.

मसले सुलझें

हर साल चीनीमिलों पर गन्ने की कीमतों का अरबोंखरबों रुपए का बकाया, दलहन व तिलहन की पैदावार में पिछड़ापन, पूरा प्रसंस्करण न होने से करीब 40 फीसदी अनाजों, फलों व सब्जियों की बरबादी और अधिक पैदावार होने पर किसानों को उन की उपज की वाजिब कीमत न मिलने जैसे मसले हल होने जरूरी हैं. तभी किसान कर्ज के जाल व सूद की मार से उबर कर चैन की सांस ले सकते हैं और उन के सपने सच हो सकते हैं.

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए खासतौर पर तकनीकी जानकारी, सस्ती मशीनें, औजार, बेहतर बीज व आर्थिक मदद दी जाए, ताकि किसानों को उन की उपज की कीमत ज्यादा मिले. इस के लिए सभी राज्य सरकारों को भी अब बिना देर किए आगे आना चाहिए, वरना केंद्र सरकार का बजट किसानों का हो कर भी कारगर सुधार नहीं कर पाएगा.

असर दिखना जरूरी है

गांवों व खेती की दशा सुधारने के लिए केंद्र व राज्यों की सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं व धन की कमी नहीं है. आजकल देश में प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा, डिजिटल साक्षरता, डेरी योजना, मिट्टी की जांच व बीजों की परख, फसल बीमा योजना व कृषि उन्नति योजना आदि चल रही हैं, लेकिन इन के फायदों के साथसाथ तमाम अनसुलझे सवाल भी मौजूद हैं.

भोलेभाले किसान भारीभरकम बजट का हिसाब भले ही न जानते हों, लेकिन सरकारी दावों की जमीनी हकीकत बहुत अच्छी तरह से समझते हैं. लिहाजा उन के मसलों पर ध्यान देना जरूरी है. खेती में बढ़ती लागत पर काबू पाना जरूरी है. किसानों के कर्ज पर गौर करना भी जरूरी है. साथ ही सरकारी योजनाओं का असर दिखना भी बेहद जरूरी है, ताकि गांवों, गरीबों व किसानों के हालात सुधर सकें और उन की तसवीर बदल कर बेहतर हो सके.   

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