वित्त साल 2016-17 के लिए फरवरी में पेश किए गए बजट में खाद्य पदार्थों की मार्केटिंग व उन के निर्माण के क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की मंजूरी के खिलाफ छोटे कारोबारी खड़े हो गए हैं.
खिलाफत करने वाले छोटे कारोबारियों का मानना है कि यह मंजूरी एक तरह से मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की मंजूरी की तरह ही है.
साल 2014 में भाजपा ने कहा था कि उन की सरकार बनने पर मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की इजाजत नहीं दी जाएगी. खाने की चीजों की मार्केटिंग व निर्मण में सौ फीसदी एफडीआई की खिलाफ करने वालों में एफडीआई वाच कैंपेन, कनफेडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट), भारतीय उद्योग व्यापार मंडल, द हाकर्स फैडरेशन, जनपहल व फेडरेशन आफ एसोसिएशन आफ महाराष्ट्र के साथसाथ कई दूसरे कारोबारी एसोसिएशन भी शामिल हैं.
सरकार का मानना है कि लिए गए फैसले से किसानों की आमदनी दोगुनी करने में मदद मिलेगी. इस के अलावा बरबाद होने वाले फलों व सब्जियों को प्रोसेस्ड कर के बेचा जा सकेगा.
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया ने खाद्य क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई की इजाजत को गलत बताते हुए कहा कि इस से दुनियाभर की रिटेल कंपनियों को देश के फूड मार्केट पर शिकंजा कसने का मौका मिलेगा, नतीजतन किसानों को कोई लाभ नहीं होगा. शायद सरकार ने खाद्य पदार्थों की खराबी पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की साल 2010 की रिपोर्ट पर गौर नहीं किया है, जिस में खाने की चीजों की खराबी बेहद मामूली बताई गई है.
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