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बड़ी विचित्र है मक्खी

मक्खी को तो अपने आसपास मंडराते आप ने देखा ही होगा. यह एक ऐसा जीव है, जिस से हर कोई नफरत करता है. पास आते ही उसे भगाने का मन करता है लेकिन मक्खी लाख भगाने के बावजूद लगातार आसपास भिनभिनाती रहती है. मक्खी ढीठ होती है. उसे कितना भी भगाओ, फिर वापस आ जाती है. मक्खी में गजब की फुरती होती है. आप उसे मारने या भगाने के लिए जैसे ही हाथ उठाएंगे, उस से पहले ही वह छूमंतर हो जाएगी और आप हाथ मलते रह जाएंगे. छोटी सी मक्खी के दरअसल कईर् जटिल और विचित्र अंग होते हैं. मक्खी का शरीर मुख्यतया 3 भागों में बंटा होता है, सिर, छाती और पेट. मक्खी की छाती से दोनों तरफ 3-3 टांगें निकली होती हैं. प्रत्येक टांग 5 हिस्सों में बंटी होती है. टांग का आखिरी हिस्सा पैर होते हैं, जिन पर नीचे की तरफ 2 पंजे होते हैं. इन पंजों के नीचे छोटीछोटी गद्दियां होती हैं जिन से हमेशा लार जैसा चिपचिपा द्रव निकलता रहता है. इस चिपचिपे द्रव के कारण मक्खी कांच जैसी सतह पर उलटी लटकी रह सकती है और आसानी से टंगीटंगी ही चल भी सकती है.

मक्खी उलटीसीधी, आड़ीतिरछी भी उड़ लेती है. वह हवा के वेग और दिशा के बारे में अत्यधिक सतर्क रहती है. उस के सिर पर 2 ऐंटेना होते हैं जो उसे हवा की स्थिति से अवगत कराते हैं. इन से संकेत मिलते ही वह अनुकूल दिशा की ओर अपना रुख कर लेती है ताकि विपरीत परिस्थितियों का सामना करने से बचा जा सके. मक्खी में सूंघने की क्षमता भी जबरदस्त होती है. कोई चीज बनी नहीं कि वह हाजिर, मानो उस वस्तु के बनने का ही इंतजार कर रही थी. आप सोचते होंगे कि उस की नाक तो है नहीं, फिर उसे गंध का एहसास कैसे होता है  उस के ऐंटेना ही नाक का कम करते हैं. ऐंटेना से गंध पा कर वह अपने भोजन की तलाश में चल देती है.

 मक्खी में एक और विचित्र बात होती है, उस की देखने की शक्ति. उस की आंखें सिर पर 2 बड़ीबड़ी आकृतियों के रूप में दिखती हैं. इन में से हर आंख हजारों छोटेछोटे लैंसों से मिल कर बनी होती है और प्रत्येक लैंस सामने दिखाई देने वाली वस्तु का अलगअलग थोड़ा सा चित्र ग्रहण करता है, सभी लैंसों के अलगअलग मिले दृश्यों को मिला कर ही मक्खी पूरा दृश्य देख पाती है. मक्खी में सिर्फ 2 आंखें ही नहीं होतीं. सूक्ष्मदर्शी से देखा जाए तो उस के सिर पर सीधे ऊपर की तरफ देखने वाले 3 साधारण नेत्र भी दिखाई देते हैं. मक्खी का शरीर अत्यधिक लोचदार होता है. शायद इस की वजह काइटिन और प्रोटीन तत्त्व हैं, जिन से उस का शरीर बना होता है. मक्खी एक घंटे में 6 हजार बार अपने पंख फड़फड़ाती है.

मक्खी को जहां एक ओर मीठे और स्वादिष्ठ व्यंजन पसंद हैं, वहीं उसे गंदगी से भी कोई परहेज नहीं है. जीवित जीव हों या मरे हुए, वह उन के जिस्म पर बैठ कर समानरूप से आनंदित होती है. उसे परहेज है तो साफसुथरी जगह से. साफसुथरा वातावरण उसे रास नहीं आता. मक्खी अन्य उड़ने वाले कीटपंतगों की तुलना में बहुत धीमे उड़ती है. उस के उड़ने की अधिकतम गति 7-8 किलोमीटर प्रति घंटा होती है, लेकिन आमतौर पर उसे अधिक लंबी दूरी की यात्रा करने की जरूरत नहीं होती. मक्खी किसी भी वस्तु को चटखारे ले कर खाती है. प्रकृति ने उस के पैरों में स्वाद कलिकाएं प्रदान की हैं. किसी भी वस्तु पर बैठते ही उसे यह पता चल जाता है कि वह खट्टीमीठी, बासीताजी या जीवितमृत है  वस्तु के तरल, ठोस या लिसलिसे होने का पता भी स्वाद कलिकाएं लगा लेती हैं. मक्खी के दांत नहीं होते. इसलिए वह अपना भोजन चबाती नहीं, केवल चूसती है. चूसने का काम ‘रोस्ट्रम’ करता है. यह ऐंटेना के नीचे की ओर ट्यूब के आकार का होता है. मक्खी विशिष्ट तरीके से भोजन ग्रहण करती है. वह भोजन को सीधे मुंह में नहीं भरती. भोजन करने से पूर्व अपने शरीर से लार और पाचक रस उस पर टपकाती है. लार और पाचक रस मिल कर भोजन को घोल देते हैं. जब भोजन घुल जाता है तो वह उसे चूस लेती है.

मक्खी हर समय अपनी टांगें आपस में रगड़ती रहती है. इस प्रकार वह अपने शरीर को साफ करने का प्रयास करती है. मच्छर की भांति मक्खी काट नहीं सकती, मुंह से तो कदापि नहीं. मक्खी अपने अंडे देने के लिए गंदी जगह तलाशती है. कूड़ेकचरे के ढेर उस के रहने के स्थल हैं और वहीं वह अपने अंडे भी देती है. एक बार में मक्खी सौ अंडे देती है, यह अपने जीवन में 10 बार अंडे देती है. अंडे से लारवा बनने में आधे दिन से एक दिन तक का समय लगता है. कुछ दिन में ये लारवा ‘प्यूपा’ बन जाते हैं, जिन में से मक्खी बन कर निकलती है.  मक्खी अपनेआप में निर्दोष होती है. उस के शरीर में कोई रोगाणु नहीं पनपता. वह तो केवल इधरउधर के रोगाणुओं की संवाहक मात्र होती है. उदाहरण के लिए, किसी गंदगी से उठ कर जब वह किसी खाद्य सामग्री पर बैठती है तो गंदगी में व्याप्त रोगाणु स्वच्छ खाद्य सामग्री को भी दूषित कर देते हैं. मक्खी दिखने में छोटी भले ही हो, पर वह बड़ी खतरनाक होती है. वह कई जानलेवा बीमारियां फैलाती है. टाइफाइड, तपेदिक, हैजा, दस्त जैसे घातक रोगों के रोगाणु मक्खी ही अपने साथ लाती है.

मक्खी से बचने का एकमात्र उपाय घर और भीतर दोनों जगह साफसफाई रखना है. घर की खिड़कियों और रोशनदानों में बारीक जाली लगवानी चाहिए ताकि मक्खी घर में प्रवेश न कर सके. मक्खी से पेय पदार्थों और खाद्य सामग्रियों को बचाना नितांत आवश्यक है. दूध को जाली से ढक कर रखें. खाद्य सामग्री को भी कपड़े से ढक कर रखें ताकि मक्खियां रोगाणु न फैला सकें. जिन ठेलों पर कटे फल, चाटपकौड़ी या अन्य खानेपीने का सामान खुला बिकता हो, वहां से कोई चीज न खरीदें. मनुष्य मक्खियों से काफी परेशान है. मक्खियों को दूर रखने के लिए उस ने कुछ साधन, उपकरण और रसायन आदि भी बनाए हैं. ‘प्लाई पेपर’ में मक्खियां आ कर चिपक जाती हैं, फिर उड़ नहीं पातीं. कुछ ट्यूबलाइटें भी बाजार में मिलती हैं, जिन की विशिष्ट किरणों के कारण मक्खियां वहां नहीं फटकतीं. वैसे फिनाइल डाल कर घर में पोंछा लगाने से भी काफी हद तक मक्खियों से बचा जा सकता है.

पहले डीडीटी का छिड़काव मक्खियों का सफाया करने का कारगर उपाय था लेकिन मक्खियां भी कोई कम नहीं थीं, उन्होंने डीडीटी के विरुद्ध प्रतिरोधी क्षमता प्राप्त कर ली. परिणामस्वरूप तरहतरह के नए रसायनों का आविष्कार मक्खियों का खात्मा करने के लिए हुआ लेकिन अभी भी मक्खियों का सफाया करना इतना आसान नहीं है. 

VIDEO: नरेंद्र मोदी के साथ अपनी इस हरकत पर शर्मिंदा है ये पाक मॉडल, मांग रही है माफी

पाकिस्तान की विवादित मॉडल कंदील बलोच आए दिन अपने बयानों और कामों की वजह से सुर्खियों में छायी रहती हैं. कभी वो टीम इंडिया के उप कप्तान विराट कोहली से प्यार का इजहार करती है तो कभी पाकिस्तान क्रिकेट टीम को गालियां देती है. अब कंदील ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से माफी मांगी है. कंदील ने वीडियो शेयर करते हुए पीएम मोदी से माफी मांगी है.

कंदील बलोच ने वीडियो शेयर करते हुए कहा कि मोदी को लेकर कोई विवाद नहीं है हम उनकी दिल से रिस्पेक्ट करते हैं. कंदील ने वीडियो में कहा है कि उन्होंने मोदी को रिसर्च किया और पढ़ा तो मैं बहुत शर्मिंदा हुई और मैने एक वीडियो में पता नही क्या कह डाला. कंदील ने माफी मांगते हुए कहा है कि मैं अपनी हरकत से बहुत शर्मिंदा हूं, मैं सबसे मांफी मांगती हूं.

आपको बता दें कि इससे पहले 20 फरवरी को कंदील ने एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें उसने पीएम मोदी को धमकी देते हुए कहा था कि चायवाला मोदी जी मेरे पास आपके लिए एक संदेश है. उन्होंने वीडियो में मोदी के लिए कई आपत्तिजनक बातें कही थी, लेकिन अब वो सबके लिए माफी मांग रही हैं.

ऊंची जातियों को भाजपा का बाय बाय

ऊंची जातियों की अगुवाई का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अब दूसरे दलों से मुकाबला करने के लिये अपने परंपरागत वोट बैंक से मुंह मोड लिया है. भाजपा की स्थापना के 36 वर्षो में 23 वर्ष ब्राहमण नेता ही उत्तर प्रदेश में पार्टी की कमान संभालते रहे है. कुछ साल ठाकुर और गुप्ता बिरादरी के नेता प्रदेश अध्यक्ष बने. पिछडे वर्ग के नेता बहुत कम समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहे.

पार्टी ने कुर्सी से हटते ही उनको हाशिये पर डाल दिया. अब भाजपा ऊंची जातियों को बाय बाय कर पिछडों और दलितों को साधने का गणित लगाकर चुनाव जीतना चाहती है. इस क्रम में केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के दूसरे प्रदेशों में भी ऊंची जातियों को दरकिनार करते पिछडा और दलित समीकरण पर भरोसा किया है. भाजपा ने जातीय समीकरण के साथ हिन्दुत्व की पहचान को ध्यान में रखा है. जिससे वोटर खासकर ऊंचे वर्ग को खुश रखा जा सके. उत्तर प्रदेश से लेकर अरूणाचल तक भाजपा ने इस फार्मूला को अपनाया है.

भाजपा ने उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, तेंलगाना और अरूणाचल प्रदेश में पार्टी के नये प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा की, तो उसमें से एक भी ऊंची जाति का प्रदेश अध्यक्ष नहीं शामिल हो सका. इनमे एक दलित, दो ओबीसी, एक पिछडा (लिंगायतद्ध), और एक अनुसूचित जाति से है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्या, पंजाब में विजय सांपला, कर्नाटक में बीएस यदुदरप्पा, तेलेगांना में के लक्ष्मण और अरूणाचल प्रदेश में तापिर गांव को पार्टी की कमान सौंप दी है.

इन नये प्रदेश अध्यक्षों में से करीब करीब सभी का राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के साथ काम करने का लंबा अनुभव रहा है. इससे जाहिर है कि भाजपा को नागपुर एजेंडे पर ही चलना है. संघ एक तरफ आरक्षण की समीक्षा और गरीब सवर्णो को आरक्षण दिये जाने की वकालत करता नजर आता है तो दूसरी तरफ ऊंची जातियों को बाय बाय भी कर रहा है.

भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्षों में इस बात का ख्याल रखा गया है कि उनमें हिन्दुत्व का फैक्टर जरूर दिखे. दलितों के मुकाबले पिछडे वर्ग के नेताओं में धर्मिक आस्था अधिक होती है, इनको हिन्दुत्व से जोडना सरल होता है, इसलिये संघ ने पिछडे वर्ग के उन नेताओं को महत्व देना शुरू किया है जो दलित वर्ग के ज्यादा करीब है. उत्तर प्रदेश में 40 फीसदी पिछडे वर्ग का वोट बैंक है. भाजपा की नजर में सबसे खास चुनावी लडाई उत्तर प्रदेश में है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत के लिये जरूरी है कि उत्तर प्रदेश मजबूत रहे.

उत्तर प्रदेश के नये प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या का संघ से पुराना नाता रहा है. पंजाब में विजय सांपला को प्रदेश की कमान दी गई. विजय सांपला केन्द्र सरकार में सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्री है. भाजपा उनको अपने मुख्यमंत्री के रूप में देख रही है. कर्नाटक में सत्ता खो चुकी भाजपा को केवल बीएस येदुदरप्पा ही संकटमोचन दिखे. तेलगांना में के लक्ष्मण संघ के करीबी है. कट्टरवादी नेता है. सानिया मिर्जा को पाकिस्तानी बहू कहकर विवाद को हवा दी थी. अरूणाचंल प्रदेश में तापिर गांव को प्रदेश अध्यक्ष बना कर चुनावी तैयारी शुरू कर दी है.

मंदिर में महिलायें: मिलेगा बराबरी का अधिकार..?

400 साल के बाद महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में अब पुरूषों के साथ महिलायें चबूतरे पर पूजा कर सकेंगी. शनि शिंगणापुर ट्रस्ट के महासचिव दीपक दादा साहेब ने कहा कि हमने संविधान का सम्मान करते सबको पूजा की अनुमति दे दी है. ट्रस्ट की अध्यक्ष अनीता शेटे ने कहा कि महिलाओं पर कोई रोकटोक नहीं होगी. यह मामला बाम्बे हाईकोर्ट तक गया था. कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा था कि यदि एक पुरूष किसी मूर्ति के सामने बैठ कर पूजा कर सकता है तो एक स्त्री क्यो नहीं? 8 अप्रैल को शाम 5 बजे दो महिलाओं ने मूर्ति पर तेल चढाया. 7 बजे पूजा की. पूरे मामले को इस तरह से समाज के सामने रखा जा रहा है जैसे पूजा के इस अधिकार के बाद महिलाओं की हालात में बहुत बदलाव हो जायेगा. महिलाओं की हालत बदल जायेगी. देश के करीब करीब सभी मंदिरों में महिलाओं को पूजा का अधिकार मिला है. बिहार के नालंदा में पावापुरी जलमंदिर से 5 किलोमीटर दूर आशापुरी मंदिर है, यहां अभी भी महिलाओं के शारदीय नवरात्रि में पूजा करने पर रोक लगी है.

शनि शिंगणापुर मंदिर में पूजा के अधिकार के बाद शिंगणापुर गांव के लोग इसका विरोध कर रहे है. विरोध करने वाले लोगों को कहना है कि मंदिर में औरतों प्रवेश को वह सही नहीं मानते है और इसका विरोध करेगे. इसको लेकर शिंगणापुर बंद का आयोजन भी किया गया है. गांव की पंचायत ‘भूमाता रणरागिणी ब्रिगेड’ का विरोध कर रही है. इस संस्था ने ही शनि शिंगणापुर मंदिर में औरतों के प्रवेश को लेकर आंदोलन चलाया था. देश में ऐसी बहुत सी जगहें और मंदिर है जिनमें लिंग और जाति के भेदभाव के आधार पर प्रवेश नहीं दिया जाता है. इस बात को लेकर कभी महिलायें तो कभी दलित आंदोलन करते है. धीरे धीरे बहुत सारी जगहों पर प्रवेश मिलने लगा. आजादी के बाद से इस तरह के अधिकार देकर ऐसा दिखावा किया जा रहा है जैसे कि दलित और औरतों को बराबरी का अधिकार दे दिया गया है.

असल बात यह है कि महिलायें हो या दलित किसी को भी बराबरी का अधिकार नहीं है. इनको अभी भी भेदभाव की नजर से देखा जाता है. मंदिरों में प्रवेश करने से न दलितों के हालात बदलेगें और न औरतों के. हिन्दू धर्म में बहुत पहले औरतों को देवी का दर्जा दिया गया था. दूसरी तरफ इन देवी स्वरूप औरतों को आज भी अपने अधिकार के लिये लड़ना पड़ रहा है. पढे लिखे वर्ग से लेकर अनपढ़ वर्ग तक में भेदभाव कायम है. आज भी ‘लड़की पढ़ाओ लड़की बचाओं’ जैसे नारे देने की जरूरत सरकारों को पड रही है. आज भी लडकी का सुरक्षित रहना कठिन काम है. जरूरत इस बात की है कि लडकी को देवी बनाने की जगह बराबरी का हक मिले. वह मंदिर में प्रवेश पा कर बराबरी का अधिकार पा लेगी, ऐसी सोच खुद को भुलावा देने जैसी है. यह एक तरह का धार्मिक षडयंत्र है, औरतों को धर्म के आंडबर से बांधने के लिये. जो औरतें इस बात से खुश हो रही है वह पूरी तरह से भुलावे में है.

महिलाओं को घूरने का ये है स्वस्थ बहाना

एक ओर जहां भारत में महिलाओं को घूरने को अपराध माना जाता है, वहीं न्यू इंग्लैंड जर्नल औफ मैडिसिन के एक सर्वे के अनुसार, प्रतिदिन महिलाओं को 10 मिनट तक निहारना पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है.

किस पौइंट को घूरते हैं पुरुष

अमेरिका की यूनिवर्सिटी औफ नेब्रास्का लिनकोलन के अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, आई ट्रैकिंग तकनीक के जरीए जाना गया है कि लड़के लड़कियों को घूरते समय उन के चेहरे के बजाय उन की बौडी और उन की फिगर को ज्यादा देर तक देखना पसंद करते हैं. जिन महिलाओं की कमर पतली हो या उन का ब्रैस्ट साइज बड़ा हो तो पुरुष को उन्हें निहारना काफी भाता है.

घूरने का स्वस्थ बहाना

अब पुरुषों को महिलाओं के ब्रैस्ट को घूरने या निहारने का एक और बहाना भी मिल गया है. एक स्टडी के मुताबिक ब्रैस्ट निहारने से लाइफ बढ़ती है. न्यू इंग्लैंड जर्नल औफ मैडिसिन में छपी जर्मन रिसर्च के मुताबिक, रोजाना औसतन 10 मिनट तक महिलाओं के बूब्स को घूरने वाले पुरुष बाकी पुरुषों के मुकाबले 5 साल ज्यादा जीते हैं. है न कमाल की बात.

स्टडी में यह दावा किया गया है कि 10 मिनट ब्रैस्ट को घूरना आधे घंटे जिम में वर्कआउट करने के बराबर है सिन च्यू डैली और चाइना प्रैस रिपोर्ट्स के मुताबिक 5 साल में करीब 200 पुरुषों पर किए गए सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है.

घूरने का लाभ

स्टार औनलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, जो पुरुष महिलाओं की ब्रैस्ट को घूरते हैं उन का ब्लडप्रैशर सामान्य रहता है व दिल की बीमारियां नहीं होती और धड़कनें की गति धीमी रहती है. मगर भारत में जरा संभल कर घूरिएगा महिलाओं को, कहीं घूरने की आदत से आप को जेल की हवा न खानी पड़े.

स्किनी जीन्स पहनती हैं, तो जरा संभल जाइए

फैशनेबल दिखने की ख्वाहिश हर महिला की होती है और इस ख्वाहिश के चलते वे फैशन ट्रेंड को फॉलो करती करती हैं. इसी ट्रेंड के चलते  अगर आप भी सेक्सी और ग्लैमरस दिखने के लिए स्किनी जींस पहनती है, तो ठहर जाइये, ऐसा करना आप की सेहत के साथ खिलवाड़ हो सकता है. हाल में हुई एक रिसर्च के अनुसार, बहुत ज्यादा टाइट जींस पहनने से नर्व्स और टांगों की मसल्स पर उल्टा असर हो सकता है साथ ही बहुत ज्यादा चिपकी हुई जींस पहनने से मोटे होने का खतरा बढ़ जाता है. दरअसल होता क्या है कि जब आप ये टाइट जींस पहनती हैं तो आपके मसल्स उसके आकार में ढल जाते हैं लेकिन जब आप इसे उतारती हैं तो आपके मसल्स ढीले पड़ जाते हैं. इसका सबसे ज्यादा असर जांघ, हिप्स और पेट पर पड़ता है. ये जींस पेट, हिप्स, घुटने और एंकल के पास काफी टाइट होती है. अगर इसे बहुत देर तक पहने रखा गया तो उन बॉडी पार्ट्स पर प्रेशर बन जाता है, जिससे नर्व्स पर असर पड़ता है.

स्किन टाइट (स्किनी) जींस पहनने से शरीर में ब्लड सप्लाई रुक सकती है. हाल ही में ऐसा ही एक मामला ऑस्ट्रेलिया में सामने आया जहां स्किन टाइट जींस पहनने से 35 साल की महिला के पैरों के पीछे का हिस्सा फूल गया. महिला की परेशानी इतनी बढ़ गई कि उसके शरीर से जींस को काटकर अलग करना पड़ा. अब तो आप समझ गई होंगी कि फैशन के दौर में सेहत की अनदेखी न करने में ही समझदारी है

ज्यादा सोते हैं तो सावधान हो जाइए

क्या आप को सोना पसंद है, सोने के लिए आप किसी भी तरह का कौंप्रोमाइज करना पसंद नहीं करते, जब भी समय मिलता है आप सो जाते हैं तो जरा सावधान हो जाइए, क्योंकि कहीं आप की सोने की आदत आप को समय से पहले ही मृत्यु के करीब ना ले जाए यानी कम उम्र में ही आप की मृत्यु ना हो जाए. चौंक गए ना कि भला सोने से मृत्यु कैसे हो सकती है. लेकिन यह सच है ज्यादा सोने हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि जो लोग नौ घंटे से अधिक सोते हैं उन की उम्र नौ घंटे से कम सोने वाले लोगों की तुलना में कम होती है. शोध में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि जो लोग रात में ज्यादा सोते हैं और दिन में शारीरिक श्रम कम करते हैं उन में जल्दी मृत्यु का खतरा होता है.

नींद पर अध्ययन के अलावा शोध में यह भी पाया गया है कि अधिक समय तक बैठे रहने और कोई श्रम ना करने वालों की मौत भी जल्दी हो सकती है. अपने शोध के आधार पर शोधकर्ताओं ने लोगों को शारीरिक श्रम और व्यायाम करने की सलाह दी है. ऐसा करने से सोने और बैठे रहने से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. शोधकर्ताओं के अनुसार हमें इन आदतों को गंभीरता से लेना चाहिए. क्योंकि ये आदतें हमारे शरीर के लिए उतनी ही खतरनाक होती हैं जितना की धूम्रपान, तंबाकू और शराब. ज्यादा सोने से डायबिटीज, ओबेसिटी, सिरदर्द, पीठदर्द, तनाव और दिल क बीमारी का खतरा भी बढ़ जाता है, इसलिए अगर स्वस्थ रहना चाहते हैं तो 6-7 घंटे की ही नींद लें. जब कभी आप शारीरिक श्रम ज्यादा करें तो 7-8 घंटे सो सकते हैं लेकिन अगर ज्यादा समय तक जीवित रहना है तो इसे रोज की हैबिट ना बनाएं.

पाकिस्तानी अभिनेत्री सबा कमर होंगी इरफान की हीरोईन

बौलीवुड में पाकिस्तानी अभिनेत्रियों का आगमन लगातार जारी है. अब मशहूर पाकिस्तानी माडल व अभिनेत्री सबा कमर भी बौलीवुड में कदम रखने जा रही हैं. सूत्रों की माने चर्चित पाकिस्तानी फिल्म ‘‘मंटो’’ में नूर का किरदार निभाकर जबरदस्त शोहरत बटोर चुकी सबा कमर को भारतीय फिल्म निर्माता दिनेश विजन अपनी फिल्म में इरफान खान के साथ हीरोईन के तौर पर ले रहे हैं. सूत्रों की माने तो इस फिल्म का निर्माण अगस्त माह में शुरू होगा.

फरहा खान को क्यों नहीं मिल रही दो हीरोईनें…?

‘‘हैप्पी न्यू ईअर’’ को मिली अपार सफलता के बावजूद नृत्य निर्देशक से निर्देशक बनी फरहा खान को उनकी नई फिल्म के लिए दो हीरोईन की तलाश है. जो कि नहीं मिल रही है. वास्तव में फराह खान की नई फिल्म की कहानी के केंद्र में दो औरतें हैं. इसके लिए उन्हे दो सशक्त अदाकाराओं की तलाश है. मगर बौलीवुड में हालात यह हैं कि दो अभिनेत्रियां एक ही फिल्म में एक दूसरे के साथ अभिनय करने को तैयार ही नहीं है.

अपनी इस व्यथा को व्यक्त करते हुए फरहा खान कहती हैं-‘‘मेरी अगली फिल्म दो औरतों की कहानी है. जिसके लिए कलाकारों का चयन करना मेरे लिए टेढ़ी खीर हो गया है. इतनी तकलीफ तो मुझे अपनी फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईअर’ के लिए कलाकारों के चयन में भी नहीं हुई थी. पहले दो कलाकार सिनेमा के प्रति पैशन के साथ अपने काम को इमानदारी से अंजाम देते थे. पर अब तो दो कलाकारों के बीच दोस्ती या झगड़ा भी ठीक से नहीं नजर आता है. क्योंकि अब इनके बीच कोई बांडिंग ही नहीं रही. अब तो दो महिला कलाकार एक साथ काम करने में रूचि ही नहीं रखती. बड़ी मुश्किल से मैने दो अभिनेत्रियों से अपनी फिल्म के लिए बात की है. मगर इनमें से किसी ने भी शूटिंग के लिए तारीख नहीं दी है. इसलिए मैं इनके नाम नहीं ले सकती. जब यह शूटिंग के लिए तैयार होगी, तभी मैं आश्वस्त हो सकती हूं कि यह मेरी फिल्म में अभिनय करेंगी.

करीना और सैफ के करियर पर लगा सवालिया निशान

बौलीवुड में मिथ है कि शादी करने के बाद हीरोईनों का करियर ठप हो जाता है. लेकिन ऐसा बहुत कम हुआ है कि शादीशुदा हीरोईन के पति का करियर भी ठप हो जाए. मगर इन दिनों सैफ अली खान और करीना कपूर खान दोनों के करियर पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं. एक तरफ करीना कपूर खान और उनके पति सैफ अली खान, दोनो के पास फिलहाल कोई काम नहीं है. तो दूसरी तरफ दोनो के नाम ‘पनामा पेपर्स लीक’ मे भी बताए जा रहे हैं.

सैफ अली खान सिर्फ अभिनेता ही नहीं, बल्कि फिल्म निर्माता भी हैं. पिछले कुछ वर्षो के दौरान बतौर अभिनेता सैफ अली खान की ‘‘बाम्बे टाकीज’’, ‘‘गो गोवा गान’’, ‘बुलेट राजा’’, ‘‘हमशक्ल्स’’, ‘‘हैप्पी एंडिंग’’, ‘‘डाली की डोली’’ और ‘फैंटम’ जैसी फिल्मों की बाक्स आफिस पर बड़ी दुर्गति हुई, तो दूसरी तरफ सैफ अली खान की होम प्रोडक्शन में बनी फिल्में भी बाक्स आफिस पर धराशाही होती आ रही हैं. मजेदार बात यह है कि सैफ अली खान ने ‘‘एजेंट विनोद’’को निर्माण किया था, जिसमें उन्होने खुद ही करीना के साथ अभिनय किया था, पर यह फिल्म कुछ खास नही चली थी.

इसके बाद सैफ अली खान ने अपनी बहन के उस वक्त के प्रेमी व अब पति कुणाल खेमू के लिए फिल्म ‘गो गोवा गान’ का निर्माण किया था, जिसमें उन्होने भी अभिनय  किया था, पर इस फिल्म को सफलता नहीं मिली. इसके बाद सैफ अली खान ने अपनी पत्नी करीना कपूर की बुआ के लड़के अरमान जैन के लिए फिल्म ‘‘लेकर हम दीवाना दिल’’ का निर्माण किया. इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा. इसके बाद सैफ अली ने 2014 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘हैप्पी एंडिंग’’ का निर्माण किया, जिसमें उन्होने खुद ही दोहरी भूमिका निभायी, पर इस फिल्म को भी सफलता नहीं मिली. अब सूत्र दावा कर रहे हैं कि सैफ अली खान ने फिल्मों के निर्माण से तोबा कर लिया है. जिसके चलते अब तक फिल्म निर्माण में उनके सहयोगी रहे दिनेश विजन ने अलग कंपनी बनाकर फिल्मों का निर्माण करना शुरू किया है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो करीना कपूर के पास एक मात्र फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ है, जिसकी वह शूटिंग पूरी कर चुकी हैं. उनकी हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘की एंड का’ ने दर्शकों को निराश ही किया. यह एक अलग बात है कि इसके निर्माता ने जिस तरह से फिल्म के अंदर कई प्रोडक्ट बेचते हुए फिल्म बनायी है, उसके चलते निर्माता को आर्थिक नुकसान नहीं हुआ होगा, पर फिल्म के कलाकारों के करियर को नुकसान हुआ.

करीना कपूर के पास फिलहाल किसी नई फिल्म का आफर नहीं है. यह एक अलग बात है कि करीना कपूर खान अभी भी दावा कर रही हैं कि उनके पास कई फिल्मों के आफर हैं, पर वह तय नही कर पा रही है कि कौन सी फिल्म करे. करीना का यह तर्क बौलीवुड के पंडितों के गले नहीं उतर रहा. तो दूसरी तरफ करीना कपूर खान के पति सैफ अली खान का भी कमोबेश यही हाल है. सैफ अली के पास भी विशाल भारद्वाज की एकमात्र फिल्म ‘‘रंगून’’ ही है, जिसमें शाहिद कपूर व कंगना रनोट भी हैं. इसके अलावा सैफ अली के पास भी कोई फिल्म नही हैं. यह हालात तब है, जब पिछले दिनों यह खबर बाजार में फैल चुकी है कि सैफ अली खान ने एक फिल्म के लिए अपनी पारिश्रमिक राशि अठारह करोड़ से घटाकर छह करोड़ कर दी है. यूं कहने के लिए सैफ अली की चार फिल्में शुरू हो सकती हैं. मगर कब इसका जवाब सैफ के पास नही है.

कहा जा रहा है कि अब्बास मस्तान अपनी ‘रेस’ के सिक्वल में सैफ अली खान को ले रहे हैं, पर यह फिल्म ठंडे बस्ते में बंद हो चुकी हैं. इसी फिल्म के साथ सुनील खेत्रपाल भी उन्हे लेकर जो फिल्म बनाने वाले थे, उसे ठंडे बस्ते में डाल दी है. इतना ही नहीं सैफ अली, फरहान अख्तर व रितेश सिद्धवानी की एक फिल्म करने वाले थे, मगर पारिश्रमिक राशि को लेकर इनके बीच इतनी मचमच हुई कि अब यह फिल्म नहीं बनने वाली है. जबकि 2014 से ही ‘शेफ’ के रीमेक का मसला अटका हुआ है. यदि सूत्रों पर यकीन किया जाए, तो इस फिल्म के बनने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. अपने करियर के इस पड़ाव से सैफ अली खान बहुत ही ज्यादा परेशान हैं. सैफ अली का परेशान होना स्वाभाविक है. क्योंकि जानकर बताते हैं कि अब तक सैफ की फिल्में असफल होती थीं, पर सैफ के पास हमेशा तीन चार फिल्में होती थी. यह पहला मौका है, जब उनके पास ‘रंगून’ के अलावा कोई फिल्म नहीं है.

करियर के इस बुरे दौर में ‘‘पनामा पेपर्स लीक’’ में करीना कपूर खान और सैफ अली खान का नाम आने से सैफ अली की चिंता ज्यादा बढ़ गयी है. ‘‘पनामा पेपर्स लीक’’ के अनुसार 2010 में करीना कपूर खान व सैफ अली खान ने अन्य दस लोगों के साथ मिलकर ‘‘विजन स्पोर्ट्स प्रा.लिमिटेड’’ कंपनी बनाकर ‘आइपीएल’ में पुणे की टीम की फ्रेंचाइजी पाने का प्रयास किया था. इसी कंपनी में ‘ओबडुरेंट कंपनी’ की भी हिस्सेदारी थी. बाद में यह कंपनी बंद कर दी गयी थी. यानी कि सैफ अली खान और करीना कपूर खान पर चौतरफा मुसीबतें आ गयी हैं. जिसके चलते सैफ अली की समझ में नही आ रहा है कि वह क्या करें…

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