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मेरी हर फिल्म को रीमेक माना जाता है: मनीष शर्मा

फिल्मकार मनीष शर्मा को 'बैंड बाजा बारात' और 'शुद्ध देसी रोमांस' जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है और उनका कहना है कि उनकी हर फिल्म को लोग किसी ओर फिल्म की रीमेक मानते हैं, जो गलतफहमी है. ऐसी रिपोर्ट हैं कि शर्मा की आगामी फिल्म 'फैन' हॉलीवुड फिल्म 'द फैन' से प्रेरित है, जिसमें रॉबर्ट डी नीरो मुख्य भूमिका में हैं.

अपनी फिल्म के प्रचार के लिए यहां एक संवाददाता सम्मलेन में शामिल हुए मनीष ने कहा, "जब लोग 'फैन' देख लेंगे, तो उन्हें अपने सवालों का सही जवाब मिल जाएगा. हमारी फिल्म और 'द फैन' के बीच कोई भी समानता नहीं है."

मनीष ने आगे कहा, "लोगों के मुताबिक, मेरी हर फिल्म किसी और फिल्म की रीमेक होती है. 'बैंड बाजा बारात' के वक्त भी ऐसा हुआ था. जब यह फिल्म बन रही थी तो लोग कहा करते थे कि मैं 'वेडिंग प्लानर' की रीमेक बना रहा हूं."

'फैन' फिल्म में शाहरुख को दोहरे किरदार में देखा जाएगा और मनीष का कहना है कि यह एकदम अलग फिल्म है. शाहरुख अभिनीत फिल्म शुक्रवार को रिलीज हो रही है. इसके अलावा उन्हें 'रईस' और गौरी शिंदे की फिल्म में भी देखा जाएगा.

रजनीकांत ने किया ‘कबाली’ की रिलीज का खुलासा

सुपरस्टार रजनीकांत इन दिनों अपनी आगामी फिल्म 'कबाली' को लेकर काफी चर्चा में बने हुए हैं. इस फिल्म की रिलीज डेट की जानकारी देते हुए रजनीकांत ने बताया बहुप्रतीक्षित तमिल फिल्म 'कबाली' दुनियाभर में मई या जून में रिलीज होगी. यह रजनीकांत की 161वीं फिल्म है. तमिल अभिनेता ने कहा, कि फिल्म मई के अंतिम सप्ताह या जून की शुरुआत में सिनेमाघरों में रिलीज की जाएगी. पा. रंजीत के निर्देशन में बनी इस फिल्म में रजनीकांत एक गैंगस्टर की भूमिका में नजर आएंगे. उनका किरदार असल जिंदगी में चेन्नई के डॉन कहे जाने वाले कबालीश्वरन से प्ररित है.

फिल्म में रजनीकांत के साथ अभिनेत्री राधिका आप्ते भी मुख्य भूमिका में नजर आएंगी. कबाली में फिल्माए गए मारधाड़ वाले दृश्यों की शूटिंग मलेशिया में की गई है. फिल्म में राधिका दिग्गज अभिनेता रजनीकांत की पत्नी की भूमिका में दिखेंगी. फिल्म में इन दोनों के अलावा दिनेश, धनसिका, प्रकाश राज, गजाराज और कलइरसन भी नजर आएंगे.

अभिनेता के रूप में तीन दशकों की अपनी यात्रा में रजनीकांत ने हिन्दी और दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम किया है. देश में बड़ी संख्या में उनके प्रशंसक हैं.

104 साल की उम्र में गुदवाया टैटू

अभी तक तो युवाओं के ही सिर चढ़ कर बोलता था टैटू का क्रेज लेकिन अब तो 104 साल के वृद्ध में भी इस के प्रति दीवानगी देखी गई तभी तो उन्होंने अपने 104वें जन्मदिन पर टैटू बनवा कर दुनिया के सामने एक अलग उदाहरण पेश किया. इस शख्स का नाम है जो जैक, जो ब्रिटेन का निवासी है. उन्होंने अपनी दाईं बांह पर कोई डिजाइन नहीं बनवाया बल्कि ‘जैको 6.4.1912’ गुदवाया है, जो उन के उपनाम और जन्मतिथि का मिश्रण है.

उन के इस कारनामे को देख कर दुनिया भी उन्हें सलाम करती है तभी तो उन का नाम गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में दर्ज किया गया है. जिस उम्र में लोग हिम्मत हार जाते हैं उस उम्र में अगर कोई ऐसा करने के बारे में सोचता है तो वाकई काबिलेतारीफ है.

टैटू गुदवाने के बारे में सोचते वक्त उन के मन में जरा भी डर नहीं था जबकि वे इस बात को भलीभांति जानते थे कि इस उम्र में स्किन में सुई गुदवाने से ज्यादा कष्ट होगा लेकिन हिम्मत हारना जो जैसे उन्होंने सीखा ही नहीं है और इस के लिए वे कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार थे. उन की यही हिम्मत टैटू गुदवाने के समय देखी भी गई.

उन की बेटी जैनी भी अपने पिता के बारे में यही कहती हैं कि मेरे पिता बहुत ही जिंदादिल इंसान हैं. वे अपनी जिंदगी में आने वाली हर चुनौती को खुशीखुशी ऐक्सैप्ट करते हैं और उसे पूरा कर के भी दिखाते हैं.

उन की लंबी उम्र का राज यही है कि वे हर मुश्किल सिचुऐशन में भी खुश रहना पसंद करते हैं और हार्डवर्क करने में विश्वास रखते हैं. हर कोई व्यक्ति उन का दोस्त, उन के साथ वक्त बिताना पसंद करता है ताकि उन में भी वो हिम्मत आ सके.

VIDEO: लता मंगेशकर ने की पाकिस्तानी ऑटो चालक की तारीफ

भारतरत्न स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को हिन्दी सिनेमाजगत में एक जगमगाता हुआ नाम माना जाता है. सुरों की इस मल्लिका को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका हैं. उन्होंने अपनी मधुर आवाज से दुनियाभर के लोगों को अपना दीवाना बनाया है. लेकिन अब ऐसा व्यक्ति सामने आया है जिसकी आवाज सुनकर लगा मंगेशकर भी उसकी सराहना के लिए मजबूर हो गई हैं.

दरअलस हाल ही में उन्होंने एक ऑटो रिक्शा चालक से बड़े गुलाम अली खां की शैली में 'ठुमरी' का विशुद्ध रूप सुनकर उसकी प्रशंसा की. वह खुशी से फूले नहीं समा रहा. ऑटो रिक्शा चालक मास्टर असलम की गाई ठुमरी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. कई लोग यह जानकर हैरान थे कि गुलिस्तान-ए-जौहर के 'परफ्यूम चौक' का निवासी यह गायक कराची में ऑटो रिक्शा चलाता है.

एक समाचारपत्र में मंगलवार को आई खबर के मुताबिक, सोशल मीडिया पर क्लिप अपलोड किए जाने के कुछ घंटों बाद ही लता मंगेशकर ने उसे अपने फेसबुक पेज पर शेयर कर लिया. लता ने साथ ही लिखा कि ऐसे कलाकारों को रिक्शा चलाने की जगह किसी मंच पर माइक्रोफोन के सामने खड़े होकर गाना चाहिए.

समाचारपत्र के मुताबिक, "लताजी से प्रशंसा कोई छोटी बात नहीं है. यह किसी की प्रतिभा को स्पष्ट मान्यता दिया जाना है." समाचारपत्र के अनुसार, असलम ने कहा, "मैंने जब इसके बारे में सुना, मेरी आंखों में आंसू आ गए. मैं उनका आभार कैसे प्रकट करूं. वह एक दिग्गज कलाकार हैं, गायन की देवी हैं और मैं केवल एक शौकिया गायक हूं. उनके सामने मैं धूल का एक कण भी नहीं हूं."

रणवीर सिंह के हीरो हैं बिग बी अमिताभ बच्चन

बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह ने काफी कम समय में हिन्दी सिनेमाजगत में एक खास नाम बना लिया है. लेकिन महानायक अमिताभ बच्चन से अपने बारे में प्रशंसा पाना किसी के भी सम्मान की बात है. हाल ही में एक कार्यक्रम में मेगास्टार अमिताभ बच्चन द्वारा अपनी प्रशंसा सुनकर रणवीर गदगद हो उठे हैं. रणवीर ने सोमवार की शाम हेल्लो कार्यक्रम में 'सुपरस्टार ऑफ द ईयर' का पुरस्कार जीता, वहींउन्होंने कहा कि अमिताभ ने जो भी मंच पर मेरे बारे में कहा है, मैं उससे गदगद हो उठा हूं.

रणवीर ने ट्विटर पर लिखा, "मेरे हीरो! अमिताभ बच्चन ने मंच पर जो कुछ भी कहा है, उससे मैं गदगद हूं और यह क्षण मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा." वहीं अमिताभ ने कहा कि उन्होंने 'बाजीराव मस्तानी' के अभिनेता के लिए जो कुछ भी कहा है, उनके हर शब्द का कोई न कोई अर्थ है.

बिग बी ने ट्विटर पर लिखा, "मेरे प्रत्येक शब्द का मतलब है और मैं लगातार हमेशा उनके लिए प्रार्थना करूंगा, यह भी सच है. आपको प्यार."

रणवीर इन दिनों आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बन रही फिल्म 'बेफिक्रे' की शूटिंग में व्यस्त हैं. इस फिल्म में उनके साथ अभिनेत्री वाणी कपूर भी मुख्य भूमिका निभाती हुई नजर आएंगी.

वहीं दूसरी तरफ अमिताभ बच्चन इन दिनों अभिनेत्री तापसी पन्नू के साथ शूजित सरकार की फिल्म 'पिंक' की शूटिंग में व्यस्त हैं. 'पीकू' के अभिनेता सुजॉय घोष द्वारा निर्मित फिल्म 'टीई3एन' पर भी काम कर रहे हैं. इसमें विद्या बालन और नवाजुद्दीन सिद्दीकी प्रमुख भूमिकाओं में हैं.

वाह री छुट्टी…!

स्कूलों से छुट्टियां सारे वर्ष का सब से आनंदित समय होता है. पर क्यों? क्यों स्कूल के दिन हमें भारी लगते हैं जहां नया ज्ञान मिलता है, संगीसाथी मिलते हैं, तरहतरह के सवाल मिलते हैं और फिर उन के उत्तर भी मिलते हैं. जहां किताबों में जानकारी की नदियां हैं, लाइबे्ररी ज्ञान की विशाल झील है. जब चाहो उस में गोता लगाओ और बेहद उपयोगी जानकारी ले आओ. क्यों छुट्टी अच्छी लगती है, जब मालूम न हो कि सारा दिन क्या करना है? यदि पिता काम पर हों, मां घर पर हों तो परेशानी कि मां के काम करो या उन के काम में रुकावट न बनो. दोनों काम पर हों तो सारा दिन क्या करो. बाहर अब साथी नहीं दिखते. घरों में छतें कम हो रही हैं. पड़ोस वाली आंटियां भाव नहीं देतीं. पड़ोसी बच्चे दूसरे स्कूलों के हैं, अलग पसंद वाले हैं. फिर छुट्टी की ऐसी चाहत क्यों?

यह इसलिए कि हमारा देश छुट्टी मनाने को काम समझता है. 11 से 13 मार्च को रविशंकर नाम के गुरु ने सैकड़ों मंत्रियों, नेताओं, बच्चों से छुट्टी करवा दी कि यज्ञहवन देखो, रागरंग देखो, योग उपासना देखो. न ज्ञान, न काम, न प्रयोग, न सवाल. बस, समय बरबाद करने में प्रधानमंत्री भी लगे थे, केंद्रीय मंत्री और दिल्ली सरकार के मंत्री भी लगे रहे छुट्टी मनाने में. देश के लिए फैसलों से छुट्टी, लोगों की परेशानियां सुनने से छुट्टी. छुट्टी ही काम हो गया. वाह, जहां बुजुर्ग, सफल कहे जाने वाले समय की बरबादी को काम कहेंगे, वहां छुट्टी के प्रति ललक क्यों नहीं होगी. जहां मंत्री, अफसर, व्यापारी, मातापिता अपनीअपनी जिम्मेदारी छोड़ कर 3 दिन के लिए लाखों की संख्या में यमुना नदी को नष्ट करने को कर्तव्य कहेंगे वहां छुट्टी को महान नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.

ये सब लोग जो यहां जमा हुए, जिन्होंने यज्ञहवन में घी डाला, जिन्होंने भजन गाए, जिन्होंने प्रवचन दिए कुछ बनाते नहीं, कुछ सुधारते नहीं, कुछ ज्ञान नहीं देते, जीवन सुखद नहीं बनाते. वे बस, बहकाते हैं. मैं बैठाबैठा व्यस्त हूं, डिस्टर्ब न करो. हम 5 लाख, 10 लाख, 20 लाख लोग जमा हैं, हमारी छुट्टी है, हमारे लिए काम करो, खानेपीने का इंतजाम करो, बसें चलवाओ, रोशनी करवाओ. यही तो बच्चे करते हैं छुट्टी में. वहीं से सीखते हैं कि मां पिज्जा मंगवा दो क्योंकि खुद व्हाट्सऐप पर बिजी हैं, कोने में बैठ कर सुकून से. इस देश में छुट्टी ही मुक्ति है. छुट्टी ही सफलता है. छुट्टी ही लक्ष्य है. छुट्टी है तो परमज्ञान है. जो बड़े सिखाएंगे वही छोटे सीखेंगे. जय छुट्टी. जय हौलीडे. जय पूजा डे.

ईशान किशन: अंडर-19 भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान

3 वर्ष की अल्पायु में ही क्रिकेट का बल्ला थामने वाले ईशान की क्रिकेट के प्रति दीवानगी उम्र के साथसाथ बढ़ती गई और अपनी मेहनत व लगन के बल पर उस ने न केवल अंडर-19 क्रिकेट टीम में जगह बनाई बल्कि कप्तान बन बैठा. अब ईशान का लक्ष्य नैशनल टीम में शामिल होना है. उस के मातापिता को पूरा यकीन था कि उन का लाड़ला अवश्य एक दिन उन का नाम रोशन करेगा. हर मातापिता की तरह ईशान के पेरैंट्स भी चाहते थे कि उन का बेटा पहले पढ़ाई पूरी करे, उस के बाद ही अपने खेल के शौक को पूरा करे, लेकिन उस के साथ ऐसा नहीं हो सका. पढ़ाई से ज्यादा ईशान को क्रिकेट से लगाव था और क्रिकेट को ही वह जिंदगी का लक्ष्य मान चुका था. बचपन से ही प्लास्टिक के छोटे से बैट से उस की ऐसी यारी हुई कि बस उस के साथ ही सोना और जागना होता था. ईशान की दीवानगी आखिर रंग लाई और आज वह भारतीय क्रिकेट की अंडर-19 टीम का कप्तान बन गया. क्रिकेट का दीवाना ईशान किशन कहता है कि नैशनल क्रिकेट टीम में शामिल होना उस का लक्ष्य है.

18 जुलाई, 1998 को पटना में जन्मे किशन का बचपन से ही क्रिकेट से लगाव था. अपने बड़े भाई राज किशन को क्रिकेट खेलते देख ईशान में भी क्रिकेट का शौक पैदा हुआ और उस ने बल्ला थाम लिया. बड़े भाई राज ने क्रिकेट के प्रति ईशान की दीवानगी देख उसे क्रिकेट के गुर सिखाने शुरू कर दिए. ईशान मानता है कि उस के बडे़ भाई ने उस की खातिर अपने क्रिकेट के शौक को कुरबान कर दिया. 2008 में ईशान ने पहली बार छत्तीसगढ़ के खिलाफ बिहार की ओर से मैच खेला. उस के बाद वर्ष 2012 में झारखंड की अंडर-16 क्रिकेट टीम में उसे शामिल किया गया. 17 दिसंबर, 2014 को ईशान ने रणजी ट्रौफी ग्रुप सी में प्रथम श्रेणी के क्रिकेट से अपने कैरियर की धमाकेदार शुरुआत की. झारखंड और असम के बीच खेले गए मैच में ईशान ने 60 रन बना कर क्रिकेट के महारथियों को अपनी ओर आकृष्ट किया.

पटना डीपीएस से 9वीं कक्षा की पढ़ाई के बाद 2011 में वह रांची चला गया और वहां स्टील अथौरिटी औफ इंडिया (सेल) की रांची टीम के साथ जुड़ गया. सेल की ओर से ईशान ने 2013 और 2014 में जम कर क्रिकेट खेला. उस के बाद झारखंड क्रिकेट टीम अंडर-16 और फिर अंडर-18 में उस ने अपनी जगह बना ली. साल 2014 में वह झारखंड की रणजी टीम के लिए चुना गया. 2015 के आखिरी रणजी मैच में जम्मू के खिलाफ ईशान ने 109 रन बना कर क्रिकेटप्रेमियों के दिल में अपनी जगह बना ली. 2015 में वह ट्राई नेशन सीरीज के लिए भारतीय टीम से खेला. कोलंबो में भारतीय टीम ने श्रीलंका को हरा कर खिताब पर कब्जा कर लिया.

ईशान ने फर्स्ट क्लास के 10 मैच खेले और 736 रन बनाए, जिस में उस का हाई स्कोर 109 रन रहा. ईशान ने लिस्ट ए में खेले गए 6 मैचों में 149 रन बनाए और उस का हाईस्कोर 44 रन रहा. टी-20 के खेले गए 14 मैचों में ईशान के बल्ले से कुल 235 रन निकले, जिस में उस का हाईस्कोर 48 रन था. बाएं हाथ का बैट्समैन और विकेटकीपर ईशान भारतीय क्रिकेट टीम के धुरंधर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को अपना आदर्श मानता है. धोनी के बाद क्रिकेट में झारखंड का परचम लहराने के लिए तैयार ईशान के पिता प्रणव कुमार पांडे को पूरा यकीन है कि उन का बेटा जल्द ही भारतीय क्रिकेट टीम का दमदार चेहरा बनेगा. ईशान की मां सुचित्रा सिंह बताती हैं कि 3 साल की उम्र से ही ईशान ने बल्ला थाम लिया था और उम्र बढ़ने के साथसाथ क्रिकेट के प्रति उस की दीवानगी भी बढ़ती गई. उस की स्कूल की कौपीकिताबों में क्रिकेट खिलाडि़यों के फोटो रखे रहते थे. सैकड़ों बार इस के लिए उसे डांट पड़ी पर उस का जनून कम नहीं हुआ.

ईशान स्कूल से घर आता और प्रैक्टिस के लिए मैदान में पहुंच जाता था. उस की लगन को देख कर पिता ने 2005 में बिहार क्रिकेट संघ की एकेडमी में उसे दाखिला दिला दिया. उसी साल देहरादून में एसआईएस क्रिकेट टूरनामैंट में ईशान को जब पहली बार बैस्ट क्रिकेटर का अवार्ड मिला तो लगा कि अब उसे क्रिकेट में ही कैरियर बनाना चाहिए. पटना क्रिकेट संघ के सचिव अजय नारायण शर्मा कहते हैं कि उन्होंने तो 6-7 साल पहले ही ईशान को भारतीय क्रिकेट का स्टार मान लिया था. ईशान ने अपनी मेहनत और लगन से साबित कर दिया कि प्रतिभा को निखरने से रोका नहीं जा सकता. बिहार क्रिकेट संघ के अध्यक्ष मृत्युंजय तिवारी को अफसोस है कि बिहार का होने के बाद भी ईशान जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी को झारखंड से खेलने का मौका मिला. वे कहते हैं कि अगर बिहार क्रिकेट संघ जिंदा होता तो उस के जैसे कई खिलाडि़यों को दूसरे राज्यों से नहीं खेलना पड़ता.

अगर नहीं पढ़ी ये खबर, तो कभी नहीं कर पाएंगे दिल्ली मेट्रो में सफर

अगर आप दिल्ली मेट्रो से सफर करते हैं, तो आपके लिए ये खबर बेहद अहम है. ये खबर खास है, क्योंकि अगर आपने इस खबर को नहीं पढ़ा, तो आगे से मेट्रो में सफर नहीं कर पाएंगे. दिल्ली मेट्रो में सुरक्षा के लिहाज से एक बड़ा फैसला लिया गया है.

अगर आप मफलर या मास्क से अपना चेहरा ढ़ककर दिल्ली मेट्रो में सफर करते हैं तो अब आगे से नहीं कर पाएंगे. मेट्रो ने चेहरा ढ़ककर दिल्ली मेट्रो में सफर करने पर रोक लगा दी है.

ऐसा सुरक्षा के लिहाज से किया गया है, क्योंकि हाल ही में राजेंद्र प्लेस स्टेशन पर दो अज्ञात लोग ने मेट्रो कंट्रोल रूम में घुसकर 12 लाख रुपए लूट लिए, जिसके बाद डीएमआरसी ने नया दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा है कि यात्रियों को किसी प्रकार के कपड़े, मफलर, दुपट्टा या सर्जिकल मास्क आदि से चेहरा ढंकने की अनुमति नहीं होगी.

डीएमआरसी के निर्देश के मुताबिक सिर्फ गंभीर रूप से बीमार लोगों को ही चेहरे ढंकने की अनुमति होगी. चेहरा ढ़ककर किसी को भी मेट्रो में सफर करने की अएनुमति नहीं होगी. ऐसा इसलिए ताकि सभी चेहरे सुरक्षाकर्मी देख सकें और चेहरा सीसीटीवी कैमरों में कैद हो सकें.

स्टार्टअप का जमाना

देश में स्टार्टअप की शुरुआत ने नए कीर्तिमान बनाए हैं. माना जा रहा है कि अगले 3-4 वर्ष में हजारों नए स्टार्टअप ऐसे होंगे जहां अरबों रुपए का कारोबार हो रहा होगा. स्टार्टअप इसलिए महत्त्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि अब आईआईटी और आईआईएम से निकलने वाले युवा कोई नौकरी पकड़ने के बजाय स्टार्टअप शुरू करने को तरजीह देने लगे हैं.

कई प्रतिष्ठित कंपनियों के नियोक्ता यह देख कर परेशान हैं कि जब वे किसी नामी आईआईटी या आईआईएम संस्थान में लगने वाले जौब मेले में नौकरी के लिए युवाओं का चयन करने जाते हैं, तो उन में से 15-20 फीसदी युवा लाखों रुपए महीने का वेतन ठुकरा देते हैं. पहले ऐसा नहीं था. आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि युवा नौकरी के बड़े औफर्स ठुकराने लगे हैं?

इस सवाल का एक जवाब है स्टार्टअप. अब काबिल नौजवान किसी नामी संस्थान से ऊंची डिग्री लेने के बाद नौकरी करने के बजाय अपना स्टार्टअप शुरू करने के बारे में सोचने लगे हैं. वे किसी कंपनी में लाखों रुपए की नौकरी करने के स्थान पर अपना स्टार्टअप शुरू कर खुद मालिक बनने और अपने जैसे योग्य युवाओं को शानदार पैकेज वाली नौकरी देने का सपना देखने लगे हैं. इसी सोच का असर है कि पिछले कुछ वर्षों में देश में सैकड़ों स्टार्टअप खुल गए हैं और बेमिसाल कामयाबी के आधार पर वे दूसरों को भी स्टार्टअप खोलने की प्ररेणा देने लगे हैं.

क्या है स्टार्टअप

प्राय: स्टार्टअप ऐसी कंपनी को कहा जाता है, जो अभी अपने शुरुआती दौर में है यानी किसी उद्यमी ने अपने किसी विचार को मूर्त रूप देना शुरू किया है. एक तरह से यह प्रायोगिक तौर पर किसी व्यवसाय की शुरुआत करना हुआ. ऐसी कंपनियां छोटे स्तर पर शुरू की जाती हैं और आगे बाजार में टिके रहने के लिए इन्हें अकसर किसी पूंजीपति से अतिरिक्त धन (फंडिंग) की जरूरत होती है. 90 के दशक में अनेक डौटकौम (इंटरनैट) कंपनियों की स्थापना के दौर में यह शब्द चलन में आया था, पर 21वीं सदी के पहले दशक में ऐसी दर्जनों स्टार्टअप कंपनियां अस्तित्व में आईं. आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों से डिग्री हासिल करने के बाद युवाओं ने फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, शादी डौटकौम जैसे स्टार्टअप न सिर्फ शुरू किए बल्कि उन की सफलता ने साबित कर दिया कि कैसे देश में हजारों नए रोजगार और बेशुमार पूंजी पैदा की जा सकती है.

मिसाल के तौर पर वर्ष 2007 में महज 40 हजार रुपए से शुरू किए गए स्टार्टअप ‘फ्लिपकार्ट’ ने यह उदाहरण पेश किया है कि करोड़ों रुपए का कारोबार करने के लिए सब से ज्यादा जरूरी चीज है जज्बा. नई सोच के साथ शुरू किए गए अन्य स्टार्टअप ने फ्लिपकार्ट जैसी ही सफलताएं दोहराई हैं.

भारत एक नया स्टार्टअप मुल्क

स्टार्टअप कंपनियों की मौजूदगी बढ़ने से हमारा देश दुनिया में सब से युवा स्टार्टअप मुल्क बन गया है. आंकड़ों के मुताबिक देश में 72 फीसदी स्टार्टअप कंपनियों के संस्थापक 35 साल से कम उम्र के युवा हैं. इसे एक शानदार उपलब्धि माना जा सकता है. यही नहीं, रोजगार तलाश करने वाले प्रतिभाशाली युवा बड़ी कंपनियों के बजाय इन से काम कराना पसंद कर रहे हैं. खुद सरकार को स्टार्टअप कंपनियों में देश का बेहतर भविष्य दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री कार्यालय भी उन्हें प्रोत्साहित करने की योजना पर काम कर रहा है.

आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों की सरकारों ने स्टार्टअप कंपनियों को वित्तीय मदद देने और जरू री इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने की योजना पर काम शुरू कर दिया है. इस प्रोत्साहन के पीछे यह विचार काम कर रहा है कि इस से बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन होगा जो बेरोजगार युवाओं के लिए सब से ज्यादा जरूरी चीज है.

नौकर नहीं, मालिक बनें

हमारे देश में एक दौर ऐसा भी था जब सरकारी नौकरी को सब से सुरक्षित माना जाता था. इस के बाद प्राइवेट सैक्टर में ऊंची नौकरी को प्रतिष्ठा की नजर से देखने का दौर भी आया, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आमद के साथ थोड़ा फीका पड़ गया लेकिन जैसी सनसनी पिछले एक दशक के भीतर स्टार्टअप कंपनियों ने अपनी कामयाबी से फैलाई है, उस से एक नई उम्मीद की किरण देश में जगी है. अब ज्यादातर युवा अपना स्टार्टअप शुरू करने को एक रुतबे की बात मानते हैं, इसी सोच का नतीजा है कि देश में पिछले 5 वर्ष में कई बेहतरीन स्टार्टअप शुरू हुए हैं जिन्होंने बाजार का रुख ही बदल कर रख दिया है.

नौसकौम 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 3,100 स्टार्टअप थे, जिन की संख्या 2020 तक बढ़ कर 11,500 होने का अनुमान है. टैक्सी बुकिंग, भोजन का और्डर, औनलाइन शौपिंग, फ्लाइट, होटल आदि की बुकिंग से ले कर कई ऐसे काम हैं, जिन में पहले कई झंझट थे, पर स्टार्टअप कंपनियों ने ईकौमर्स का सहारा ले कर ये सारे काम इतने आसान कर दिए हैं कि अब वे चुटकी बजाते ही हो जाते हैं. यही नहीं अब कई बड़ी पुरानी कंपनियों में भी स्टार्टअप कंपनियों को ले कर दिलचस्पी जग रही है और वे इस में या तो निवेश कर रही हैं या फिर अपना कामकाज इन्हें सौंप रही हैं.

जैसे 2015 में दिग्गज आईटी कंपनी इन्फोसिस ने घोषणा की है कि वह करीब ढाई करोड़ डौलर का निवेश भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में करेगी. टाटा की सहयोगी इलैक्ट्रौनिक कंपनी क्रोमा अपने कामकाज का कुछ हिस्सा स्टार्टअप कंपनियों को सौंप चुकी है.

ये उदाहरण साबित करते हैं कि देश में स्टार्टअप में निवेश के लिए कितना उत्साही माहौल है. इस उत्साह का कारण यह है कि यहां उपभोग का एक बड़ा बाजार उपलब्ध है. ऐसे ग्राहकों की भारी संख्या मौजूद है जो इंटरनैट से जुड़ कर खरीदबिक्री का दायरा बढ़ा रहे हैं. बड़े शहरों में ही नहीं, गांवकसबों में भी तकनीक के सहारे व्यवसायी अपना सामान बेचने में सफल हो रहे हैं. ग्राहकों को औनलाइन शौपिंग के जरिए वह सुविधा मिल रही है कि वे देश के किसी भी कोने में बैठ कर अपनी इच्छानुसार कोई सामान खरीद सकते हैं.

स्टार्टअप सफल क्यों हुए

अगर इस सवाल का जवाब खोजा जाए कि देश में सैकड़ों बड़ी कंपनियों के रहते स्टार्टअप सफल क्यों हुए, तो इस का उत्तर आसानी से मिल जाता है. कुछ साल पहले फिल्म का टिकट खरीदने के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता था, पिज्जा मंगाने के लिए फोन करने या खुद रेस्तरां जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.

औनलाइन शौपिंग से ले कर होटल या फ्लाइट की बुकिंग के लिए दुकान पर जाना या एजेंट की मदद लेना ही एकमात्र चारा था. पर मोबाइल इंटरनैट के प्रचलन में आते ही इंटरनैट पर इन सारी चीजों को मुहैया कराने वाले स्टार्टअप सामने आए, जिन से घंटों का काम चुटकियों में करना मुमकिन हो गया.

स्टार्टअप कंपनियों की सफलता का आलम यह है कि अब ज्यादातर मांबाप चाहते हैं कि उन की संतानें या तो अपना स्टार्टअप बनाएं या फिर किसी अच्छे स्टार्टअप के साथ जुड़ कर काम करें.

शादी जैसे मामलों में भी स्टार्टअप से जुड़े युवाओं को प्राथमिकता दी जाने लगी है. स्टार्टअप की सफलता का एक मुख्य आधार मोबाइल इंटरनैट का तेज प्रसार भी है. हमारे देश में आज 35 से 40 करोड़ लोग इंटरनैट से जुड़े हुए हैं. वे इंटरनैट का इस्तेमाल ईमेल भेजने से ले कर फेसबुक, व्हाट्सऐप का प्रयोग करने के अलावा औनलाइन शौपिंग करने में कर रहे हैं.

यही नहीं, देश में मोबाइल इंटरनैट काफी तेजी से बढ़ रहा है, इस कारण यह अनुमान लगाया जा रहा है कि स्टार्टअप के मामले में अमेरिका ने जो मुकाम 20 वर्ष में और चीन ने जिस जगह को 10 साल में हासिल किया है, भारत के युवा वह लक्ष्य अगले 5 वर्ष में ही हासिल कर लेंगे. आज करीब 4 करोड़ लोग रोजाना मोबाइल इंटरनैट पर सक्रिय रहते हैं, इस के आधार पर कहा जा सकता है कि वे ऐसे संभावित ग्राहक हैं जिन की तलाश सैकड़ों स्टार्टअप को हो सकती है.

कैसे करें शुरुआत

ध्यान रहे कि कोई भी नया स्टार्टअप व्यवसाय शुरू करने जैसा ही कठिन है. लेकिन जिस तरह सरकारें और कई बड़ी कंपनियां स्टार्टअप को मदद मुहैया करा रही हैं, उस में स्टार्टअप शुरू करना अक्लमंदी का काम कहलाएगा. फिर भी स्टार्टअप के लिए एक रूपरेखा बना लेना समझदारी होगी और इस के लिए इन बातों पर विचार करना जरूरी है :

–       क्या हम कोई ऐसा सामान या सेवा देने जा रहे हैं जिस की लोगों को जरूरत है?

–       अगर दूसरी कंपनियां हमारे स्टार्टअप जैसे काम कर रही हैं, तो उन से अलग और बेहतर होने की कितनी गुंजाइश है?

–       क्या मेरा स्टार्टअप मुझे व मेरे स्टार्टअप में काम करने वाले अन्य युवाओं के लिए आर्थिक तौर पर फायदेमंद होगा?

–       अगर स्टार्टअप सफल नहीं रहा तो प्लान बी क्या है यानी नुकसान की स्थिति में खुद के लिए व अन्य कर्मचारियों के भविष्य के लिए कोई योजना है या नहीं?

–       क्या यह स्टार्टअप पेटेंट नियमों और देश के कानूनों का ध्यान रख पाएगा? कोई सेवा या सामान ग्राहकों तक कैसे पहुंचेगा और उत्पादन के लिए कच्चा माल आदि कहां से मिलेगा? क्या जिन लोगों को स्टार्टअप में काम करने के लिए भरती किया जा रहा है, वे वास्तव में योग्य व समर्थ हैं?

–       क्या निवेश के लिए बैंकों और बड़ी कंपनियों से बात की गई है? निवेश या तो खुद किया जा सकता है या फिर बैंक से लोन ले कर, किसी को स्टार्टअप में हिस्सेदारी दे कर या इस काम के लिए बड़ी पूंजी मुहैया कराने वाले लोगों के जरिए. जो सामान या सेवा दी जाने वाली है, उस के बारे में पहले से कोई फीडबैक उपलब्ध है या नहीं?

इन गलतियों से बचें

अकेले शुरुआत ल्ल अगर किसी व्यवसाय का खुद को या परिवार में किसी सदस्य को कोई पूर्व अनुभव नहीं है, तो स्टार्टअप के लिए अकेले शुरुआत करने से बचना चाहिए. अच्छा होगा कि इस में किसी योग्य व्यक्ति को साझीदार बनाया जाए.

गलत स्थान का चयन ल्ल जिस सामान या सेवा की जहां जरूरत है, उसी से जुड़ा स्टार्टअप वहां खोला जाए. अगर स्थान चयन में गलती कर दी गई, तो नुकसान की भरपाई करना मुश्किल हो सकता है.

प्रतिस्पर्धा से भय ल्ल अगर यह डर सता रहा है कि जिस सामान या सेवा को ले कर आप का स्टार्टअप आ रहा है, वह तो बाजार में पहले से मौजूद है, तो इस डर को मन से निकाल देना चाहिए. ध्यान रहे कि बाजार में वही टिकता है, जो बेहतर होता है. हमेशा दूसरों से बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए.

बदलाव का संकोच ल्ल आज जिस का सिक्का चल रहा है, जरूरी नहीं कि कल भी वही सेवा या सामान बिके. इसलिए स्टार्टअप को नए बदलावों और चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए.

धीमी शुरुआत ल्ल स्टार्टअप की सुस्त शुरुआत सारी मेहनत पर पानी फेर सकती है. जोरदार प्रचार और कड़ी प्रतिस्पर्धा ही जीत की कुंजी है.

कम पूंजी ल्ल जितने धन की जरूरत है, अगर उस से काफी कम पैसा ले कर स्टार्टअप शुरू किया जा रहा है, तो सफलता मिलने में काफी कठिनाई आ सकती है.

ज्यादा पैसा ल्ल इसी तरह वैंचर कैपिटलिस्ट या बैंक से जरूरत से ज्यादा कर्ज लेना भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है, क्योंकि दोनों ही अपनी पूंजी, पर अधिक ब्याज लेने या ज्यादा कमाई करने से नहीं चूकेंगे.

खुद मेहनत से बचना ल्ल अगर शुरुआत से ही यह मान लिया गया कि आप स्टार्टअप के मालिक हैं, तो ऐसे स्टार्टअप को बचाए रखना नामुमकिन हो जाता है.

ग्राहकों को न पहचान पाना ल्ल अगर किसी स्टार्टअप को यही नहीं मालूम कि उस के सामान व सेवाओं के ग्राहक कौन व कहां हैं, तो ऐसा स्टार्टअप खड़ा नहीं हो सकता.

कहां से लें मदद

केंद्र और राज्य सरकारें देश में स्टार्टअप के लिए बेहतर माहौल बना रही हैं, इसलिए अगर कोई युवा बेहतरीन विचार के साथ सरकारी संगठनों या निजी कंपनियों के पास सलाह और पूंजी की मांग करने जाता है, तो उसे वहां से पूरी मदद मिल सकती है. फिर भी अन्य कंपनियों की तरह स्टार्टअप को कुछ बुनियादी तैयारियां अवश्य कर लेनी चाहिए. जैसे, उसे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी अथवा सोल प्रोपराइटरशिप के तहत अपने स्टार्टअप का पंजीरकण कराना होगा.

किसान सुविधा एप से मुट्ठी में जानकारी

खेत से खलिहान तक, खलिहान से मंडी तक किस चीज में है तेजी, किस मे है मंदी, किस फसल में कौन सा बीज बोएं, क्या खाद डालें, बीमारी होने पर क्या कीटनाशक दवाएं डालें, कैसा रहेगा मौसम, कैसे होगी मिट्टी जांच, क्या है किसानों के लिए नई स्कीमें, पशुओं की देखभाल वगैरह ऐसे अनेक सवाल हैं, जिन का के जवाब अब आप को मोबाइल पर ही मिल जाएंगे. कहीं भी दूर जाने की जरूरत नहीं. जी हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की इन्हीं समस्याओं के लिए ‘किसान सुविधा एप’ लांच किया है, जिसे अपने एंड्राइड मोबाइल पर लोड करने के बाद किसानों को खेतीकिसानी से संबंधित हर प्रकार की सटीक जानकरी लगातार मिल सकेगी.

इस ‘किसान सुविधा एप’ से जुड़े होंगे देश के जानेमाने कृषि वैज्ञानिक व एक्सपर्ट लोग, जो किसानों की समस्याओं के समाधान इस एप के जरीए चुटकियों में करेंगे. प्रधानमंत्री ने रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम के दौरान ‘किसान सुविधा एप’ की जम कर तारीफ की. उन्होंने कहा कि आप इसे  ट्राई तो कीजिए कुछ कमी होगी तो मुझे शिकायत कीजिए. आप की हर परेशानी दूर की जाएगी. मोदी सरकार की किसानों को लुभाने की मुहिम के तहत उठाया गया यह कदम तारीफ के लायक कहा जा सकता  है. वाकई मोदी को किसानों की काफी फिक्र  है. इस से मोदी के आनलाइन प्रेम का भी पता चलता  है. वे लगातार आधुनिक बन रहे हैं.

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