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मीनाक्षी दीक्षित ने क्यों चुनी फिल्म ‘‘लाल रंग’’…?

उत्तर भारत में बाह्मण परिवार में जन्मी व पली बढ़ी मीनाक्षी दीक्षित ने नृत्य के क्षेत्र में कुछ करने के मकसद से मुंबई में कदम रखा था. पर उन्हे मुंबई पहुंचते ही नृत्य के रियलिटी शो ‘‘डांस विद सरोज’’ के साथ जुड़ने का मौका मिला, जिसने उन्हे दक्षिण भारतीय फिल्मों में हीरोईन बनने का मौका दे दिया. लगभग छह साल तक दक्षिण भारतीय फिल्में कर जबरदस्त शोहरत बटोरने के बाद मीनाक्षी दीक्षित अपने करियर को लेकर खुश थी. पर तभी उन्हे उस वक्त कुंदन शाह की हिंदी फिल्म ‘‘पी से पी एम तक’’ में हीरोईन बनने का मौका मिला, जब इस फिल्म में वेश्या कस्तूरी का किरदार निभाने से माधुरी दीक्षित ने मना कर दिया था. यह एक अलग बात है कि फिल्म ‘‘पी से पी एम तक’’ को बाक्स आफिस पर सफलता नहीं मिली. और अब मीनाक्षी दीक्षित शीघ्र रिलीज हो रही नए निर्देशक सैय्यद अहमद अफजाल की फिल्म ‘‘लाल रंग’’ में रणदीप हुडा के साथ नजर आने वाली हैं. बौलीवुड पंडित इसे मीनाक्षी दीक्षित की तरफ से उठाया गया रिस्की कदम बता रहे हैं. लोगों की राय में कुंदन शाह जैसे निर्देशक के साथ असफल फिल्म करने के बाद मीनाक्षी दीक्षित को काफी सोचकर स्थापित निर्देशक की ही फिल्म करनी चाहिए थी.

मगर खुद मीनाक्षी दीक्षित अपने निर्णय को सही ठहराते हुए कहती हैं-‘‘बौलीवुड में सफलता का कोई तयशुदा फार्मूला नहीं है. किसी भी निर्देशक व कलाकार को आप महज उसकी एक फिल्म के आधार पर जज नहीं कर सकते. एक फिल्म की असफलता से यह कहना गलत होगा कि उस फिल्म के निर्देशक या कलाकार में प्रतिभा की कमी है. फिल्म ‘लाल रंग’ के निर्देशक सैय्याद अहमद अफजाल इससे पहले ‘यंगिस्तान’ जैसी फिल्म निर्देशित कर चुके हैं. पर मैंने फिल्म ‘लाल रंग’ स्क्रिप्ट के आधार पर चुनी. हमने ‘यंगिस्तान’ से पहले भी इन्ही निर्देशक के साथ एक फिल्म का आडीशन दिया था, पर बाद में वह फिल्म नही बन पायी थी. पर यह तय था कि हम दोनों भविष्य में काम करेंगे.

‘पी से पीएम तक’ के बाद वह मेरे पास इस फिल्म का आफर लेकर आए. मुझे स्क्रिप्ट पसंद आयी. इसके अलावा इसमें रणदीप हुड्डा जैसे बेहतरीन अभिनेता काम कर रहे थे. यह जगजाहिर है कि रणदीप हुड्डा ऐसी वैसी फिल्म नहीं करते हैं. देखिए, मेरे पास सलमान खान या किसी बड़े कलाकार के साथ वाली तीन चार फिल्में नही हैं कि मैं यह दावा करूं कि मैं बहुत चुनकर फिल्में करती हूं. मेरे पास जो आफर आए, उन्ही में से मैंने फिल्में की. फिल्म ‘पी से पीएम तक’ में मैंने बहुत लाउड किरदार निभाया था. जबकि ‘लाल रंग’ का किरदार बहुत सटल है.दोनों किरदारों में बहुत जबरदस्त विरोधाभास है. तो मुझे लगा कि एक कलाकार के रूप में यह एक यात्रा ही है. इसे करना चाहिए.’’

पर आपको नही लगता कि कलाकार की प्रतिभा को निखारने का काम निर्देशक का ही होता है? इस सवाल पर वह कहती हैं-‘‘यह सच है. हम कलाकार तो निर्देशक के हाथ की कठपुतली होते हैं. मैं तो नेचुरल कलाकार हूं. मैने कभी भी थिएटर नहीं किया. मैने अभिनय की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. ऐसे में हमारे लिए निर्देशक का इशारा काफी मायने रखता है. मैं तो खुद को निर्देशक को कलाकार मानती हूं.’’

मोबाइल यूजर्स के लिए नए अंदाज में ट्विटर

सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर को अब एक नए अंदाज में मोबाइल यूजर्स के लिए पेश किया गया है. ट्विटर का यह नया डिजाइन फिलहाल केवल एंड्रॉयड स्मार्टफोन यूजर्स के लिए लॉन्च किया गया है. ट्विटर ने ऐसा इसलिए किया है ताकि यूजर्स को ट्विटर चलाने मे आसानी हो. इसके नए एप का परीक्षण किया जा रहा है.

आपको बता दें कि ट्विटर के इस नए एप का इस्तेमाल केवल वही लोग कर सकते हैं जो इसके अल्फा और बीटा एप को इस्तेमाल करते हैं. इसमें ट्विटर के चार नए प्रमुख क्षेत्र मेन फीड, मोमेंट्स, नॉटिफिकेशन, डायरेक्ट मेसेज स्क्रीन के उपर नजर आएंगे.

इस नए वर्जन में यूजर्स टैप और स्वाइप करके ट्विटर को खोल सकते हैं. ट्विटर का यह नया वर्जन पुराने वर्जन से ज्यादा आसान होगा. ये चारों फीचर फोन में ऊपर की ओर एक बटन के रूप में दिखाई देंगी.

आपको बता दें कि ट्विटर ने अपने इस नए वर्जन में से कुछ गैर जरूरी फोल्टिंग और ट्वीट बटनों को भी हटा दिया गया है. जिससे ट्विटर को इस्तेमाल करते हुए यूजर्स को ज्यादा स्पेस मिलेगा.

और अब रियो में दीपा कर्माकर ने जीता गोल्ड मेडल

रियो ओलंपिक में इस बार एक भारतीय महिला जिम्नास्ट नजर आएगी. ऐसा इतिहास में पहली बार है कि कोई भारतीय महिला जिम्नास्ट ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर पाई है. दीपा कर्माकर ने इतिहास रचने के कुछ घंटे बाद ही गोल्ड मेडल भी जीत लिया.

दीपा ने रियो ओलंपिक खेलों की परीक्षण प्रतियोगिता में वाल्टस फाइनल में गोल्ड मेडल जीता. 22 साल की दीपा 14.833 प्वॉइंट के अपने बेस्ट प्रदर्शन के साथ महिला वाल्टस फाइनल में टॉप पर रहीं और इस वैश्विक प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता जो भारतीय जिम्नास्ट के लिए बड़ी उपलब्धि है.

दीपा ने पहले प्रयास में ही 14.833 प्वॉइंट जुटाए. उन्होंने अपने दूसरे और अंतिम प्रयास में 14.566 प्वॉइंट जुटाए. वाल्टस में दीपा के इस गोल्ड मेडल का हालांकि उनके ओलंपिक क्वालीफिकेशन से कोई लेना देना नहीं है.

भारतीय जिम्नास्टिक अधिकारियों ने बताया कि पहली बार किसी भारतीय महिला ने वैश्विक जिम्नास्टिक प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है.

‘खोटा सोना’ न बन जाए ‘सफेद सोना’

कपास यानी नरमा को भारत में ‘सफेद सोना’ भी कहा जाता है. लेकिन पिछले साल हरियाणा और पंजाब राज्यों में इस सफेद सोने पर सफेद मक्खी ने जम कर कहर बरपाया था. जिस से यह ‘सफेद सोना’ न रह कर ‘खोटा सोना’ बन गई थी और किसानों को हजारों लाखों रुपए की चपत लगी थी. सरकार को करोड़ों रुपए मुआवजे के तौर पर जारी करने पड़े थे. पिछली बार अनेक बीज कंपनियों व कीटनाशक कंपनियों के सारे दावे धरे रह गए और नरमा फसल पर सफेद मक्खी के प्रकोप को अनेक तरह के कीटनाशक भी नहीं रोक पाए.

इस बार इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर पंजाब सरकार ने सफेद मक्खी के काले साए से नरमा फसल को बचाने के लिए ‘वार प्लान’ तैयार किया है. इस योजना के तहत कपास की खेती में माहिर लोग और कृषि वैज्ञानिकों और अधिकारियों की टीमें तैनात की जाएगी. उस टीम में 200 से ज्यादा जानकार लोग होंगे और समयसमय पर नरमा फसल का मुआयना करेंगे. हरियाणा सरकार ने पिछले साल सफेद मक्खी से हुए नुकसान की भरपाई के लिए अब आ कर 967 करोड़ रुपए का मुआवजा जारी किया है, जो किसानों के बैंक खातों में सीधा जाएगा.

दूसरी तरफ धोखा खा चुके किसानों ने भी कमर कस ली है. कपास बोने वाले किसानों का कहना है कि हम नरमा फसल में उत्पादन के लिए बीज की अच्छी किस्म से ले कर बीजाई के खास तरीके अपनाएंगे और समयमसय पर जानकारों से सलाहमशवरा भी करेंगे. कृषि जानकारों का मानना है कि नरमा की अच्छी पैदावार के लिए सब से पहले खेत में नरमा पौधों की सही संख्या होना और पानी भी सिंचाई का साधन होना चाहिए. नरमा पौधों की सही संख्या के बाद पौधों के लए सही मात्रा में खाद व पानी की जरूरत होती है. उस के अलावा खास बात लंबी अवधि तक फल देने वाले बीज का चुनाव करना चाहिए.

प्रगतिशील किसानों का कहना है कि एक एकड़ में नरमा के 4 हजार से 4800 तकपौधे होने चाहिए. पौधों के बीच में 3 से सवा 3 फुट तक का फासला होना चाहिए. ताकि पौधों को बढ़ने के लिए सही जगह मिले और पौधों के बीच में सही फासला होने पर पौधों को हवा धूप ठीक से मिलेगी, जिस से उन में फुटाव ठीक होगा. माहिरों का कहना है मौसम के मिजाज का कुछ पता नहीं चलता, इसलिए हमें नरमा की बोआई सीधी न कर के डोलियों (मेंड़)पर करें. अगर किसान हाथ से बोआई करते हैं, तो बीज के साथ गोबर की खाद जरूर डालें.

आज ज्यादातर किसान देशी कपास न बो कर बीटी कपास की ही बीजाई करते हैं. बीटी कपास के लिए किसान को यह भी जानना जरूरी है कि उस के लिए ज्यादा खुराक चाहिए. कुछ क्षेत्रों में जहां खारा पानी है, वहां एक एकड़ में कम से कम 8 से 10 ट्राली प्रति एकड़ गोबर की खाद खेत तैयार करते समय जरूर डालें, क्योंकि नरमा में पौधे ज्यादा नमक सहन नहीं कर पाते और गोबर खाद डालने से उन्हें ताकत मिलेगी. अंगरेजी में एक कहावत है ‘वैल बिगेन इज हाफ डन’ यानी किसी काम की अगर शुरुआत अच्छी हो तो समझ लो कि आधा काम निबट गया. यह बात खेती में भी लागू होती है. खेती की शुरुआत बीज से होती है. बीज ही खेती का मुख्य आधार है. बीज पर ही फसलों का उत्पादन टिका होता है. अच्छे बीज जहां औसतन 20 से 30 फीसदी ज्यादा पैदावार देते हैं. वहीं खराब बीजों से मेहनत, पैसा और समय दोनों बदबाद हो जाते हैं.

इस महान क्रिकेटर ने कहा, ‘भारतीय क्रिकेट से निराश हूं’

टी20 क्रिकेट की चमक धमक से खुद को दूर रखने वाले इयान बाथम का मानना है कि भारत को समझना होगा कि खेल के इस सबसे छोटे प्रारूप के अलावा भी क्रिकेट है.

लारेस विश्व खेल पुरस्कारों के इतर इस महान ऑलराउंडर ने भारतीय पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा, ‘फिलहाल मैं भारतीय क्रिकेट से निराश हूं. क्रिकेट 20 ओवर के मैचों से कहीं अधिक है, उन्हें यह समझने की जरूरत है. भारत के खिलाफ इंग्लैंड के मुकाबले मुझे हमेशा रोमांचित करते हैं लेकिन फिलहाल मुझे नहीं पता कि क्या कहना है.’ बाथम के निराश होने के पीछे ठोस वजह है. भारत ने इंग्लैंड के दौरे पर पिछली दो सीरीज 0-4 और 1-3 के अंतर से गंवाई जबकि 2012 में इंग्लैंड से घरेलू सीरीज में भी हार गया.

बाथम ने कहा, ‘भारत टेस्ट क्रिकेट में कहां जा रहा है. टीम के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. क्या यह ट्वेंटी20 से संतुष्टता है. भारत को पता लगाना होगा.’ भारत भले ही आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में तीसरे स्थान पर हो लेकिन बाथम इससे सहमत नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘देखिये मुझे रैंकिंग समझ में नहीं आती. मेरे हिसाब से इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया सर्वश्रेष्ठ टेस्ट क्रिकेट खेल रहे हैं.’

VIDEO: जानिए विराट कोहली के टैटू और उनकी पूरी कहानी

भारतीय क्रिकेट की दुनिया के चमकते सितारे विराट कोहली जितनी अपनी कलात्मक बैटिंग स्टाइल के लिए जाने जाते हैं उतने ही अपने डैशिंक लुक के लिए भी मशहूर हैं.अक्सर लोग खासकर लड़कियां इस 27 साल के नौजवान के टैटू पर फिदा हो जाती हैं.

हो भी क्यों ना.. क्योंकि कोहली के पूरे हाथ में एक-दो नहीं बल्कि बहुत सारे बड़े-बड़े टैटू हैं जिनके बारे में लोग अक्सर जानने के लिए बेचैन रहते हैं. इसी कारण कोहली ने अब खुद ही अपने फैंस की इस बैचेनी को दूर करने का फैसला कर लिया है और उन्होंने एक वीडियो के जरिये अपने टैटू के राज को दुनिया से शेयर किया है.

ये खूबसूरत वीडियो अनस्क्रिप्टेड पर शेयर किया गया है, जिसे आप भी जरूर सुनिए, दावा है कि मतलब जानकर आप भी हैरान रह जायेंगे..

नियाग्रा: जलप्रपातों का राजा

कनाडा में रहते हुए हमें 1 साल हो गया था. इस 1 साल के दौरान वहां के कई दर्शनीय स्थल देख चुके थे. विश्वप्रसिद्ध नियाग्रा जलप्रपात जो हमारे टोरंटो के घर से 60 किलोमीटर दूर था, फिर भी कई कारणों से न देख पाए. दिल्ली से कुछ मित्र आए तो मित्रों के कहने पर नियाग्रा फौल्स देखने का प्रोग्राम बना लिया. लगभग 3.8 करोड़ की आबादी वाले कनाडा में हजारों की संख्या में भारतीय भी रहते हैं. लेक ओंटारियो के टोरंटो हार्बर पर बसा लगभग 25 लाख की आबादी वाला शहर टोरंटो, कनाडा के ओंटारियो प्रांत का मुख्य शहर होने के साथसाथ मुख्य व्यापारिक एवं आर्थिक केंद्र भी है.

कनाडा को झीलों का देश भी कहा जाता है. लेक ओंटारियो, लेक हारोन, लेक ईरी, ज्योर्जियन बे आदि ऐसी कई झीलें हैं. हरेभरे जंगल, मीलों लंबी बड़ीबड़ी झीलें, प्राकृतिक सौंदर्य के केंद्र विश्वप्रसिद्ध वाटर फौल्स, मनमोहक बीचेस, सुंदर एवं आकर्षक पार्क्स, आलीशान म्यूजियम्स, आकाश को छूती इमारतें, टावर्स, मौल्स, मनोरंजन के अत्याधुनिक केंद्रों आदि की यहां कोई कमी नहीं है. हमारी रुचि खासतौर से कनाडा के वाटर फौल्स देखने में ज्यादा थी. वैसे तो दुनिया में ऊंचे, रंगबिरंगे इंद्रधनुष तथा प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण अनेक जलप्रपात हैं लेकिन कनाडा का नियाग्रा फौल्स अपनी भव्यता, चौड़ाई, गिरते पानी की गर्जना तथा गिरते पानी की बूंदों से बनते अत्यंत मनमोहक इंद्रधनुष के कारण विश्वप्रसिद्ध है. इस की मनोहारी छवि और छटा को देखने के लिए विश्व के दूरदूर के देशों से पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं.

पानी ने सदा मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित किया है. चाहे वह पानी नदी का हो, झील का हो, समुद्र का हो, जंगलों में कलकल करते झरने का हो या गरजतेउफनते प्रपात हों. गिरता पानी मन मोह लेता है. गर्जना करते पानी की नन्हीनन्ही बूंदों का हवा में उछल कर शरीर पर गिरना या जलप्रपात के गिरते पानी से उठती धुंध आप को रोमांचित कर देती है. कनाडा में अनेक दर्शनीय नैनाभिराम वाटर फौल्स हैं जिन में नियाग्रा अपनी सुंदरता के लिए विश्व में प्रसिद्ध है. नियाग्रा फौल्स के विषय में तो हम बचपन से ही पढ़तेसुनते आए थे, सो नियाग्रा फौल्स देखने की मन के अंदर उत्सुकता कुछ अधिक ही थी.

नियाग्रा फौल्स

नियाग्रा फौल्स देखने के लिए हम निवास स्थान से सुबह ही निकल पड़े. करीब 1 घंटे की ड्राइव के बाद हम फौल्स के करीब आ गए. गाड़ी पार्किंग की समस्या को हल कर हम नियाग्रा फौल्स की ओर पैदल ही चल पड़े. हम अपनी बेचैनी को रोक नहीं पारहे थे. अभी हम थोड़ी दूर ही चले थे कि हमारे कानों में पास ही कहीं पानी के गिरने की आवाजें आने लगीं. आज हमें स्कूल के वे दिन याद आ रहे हैं जब हम किताबों में नियाग्रा फौल्स के बारे में पढ़ते थे. कभी सोचा भी न था कि एक दिन हम साक्षात अपनी आंखों से इसे देखेंगे.

थोड़ी ही दूर चले थे कि हमें नियाग्रा फौल्स दिखाई देने लगा. हमारे सामने ही लेक ओंटारियो का 125 फुट नीचे पानी का अथाह भंडार नियाग्रा नदी में गर्जना के साथ गिर रहा था. नियाग्रा दुनिया के 9 अजूबों में तो शामिल नहीं है पर प्रकृति की अनूठी, अप्रतिम, नैनाभिराम कृति, विश्व के किसी भी चमत्कार से कम नहीं है. संसार की एक अजीब एवं अद्भुत रचना हमारी आंखों के सामने प्रकृति की शक्ति का आभास करा रही थी. उठती धूप में थोड़ी ही देर में एक इंद्रधनुष आकाश में बल्कि नियाग्रा फौल्स के ऊपर बनता दिखाई देने लगा और कुछ ही क्षणों में एक मनमोहक, चित्ताकर्षक व आंखों के अंदर गहराई तक सामने वाला दृश्य हमारे सामने था.

थोड़ी देर में इंद्रधनुष पता नहीं कहां विलीन हो गया और दूसरे ही क्षण नए रूप, नए आकार, नई छटा के साथ नियाग्रा फौल्स फिर हमारी आंखों के सामने था. विश्व में शायद ही और कहीं इतना सुंदर, इतना साफ और बड़े आकार वाला, गिरते पानी के ऊपर उसे अपने अंक में भरता हुआ इंद्रधनुष आप को दिखाई दे. पानी के गिरने से उठती हुई धुंध और पानी की नन्हीनन्ही बूंदें जो हवा में उड़ कर हम पर आ कर गिरती थीं तो हम रोमांचित हो उठते थे. एक अजीब सी सिहरन और अलौकिक आनंद मिलता. हौर्स शू के आकार के इस 790 मीटर क्यूब घेरे वाले नियाग्रा प्रपात में करीब 1,834 मीटर क्यूब पानी प्रति सैकंड 125 फुट नीचे गिरता है. पानी का इतना विशाल भंडार जब नदी के अंदर और 125 फुट नीचे गिरता है तो चारों तरफ गिरते पानी की एक विचित्र गर्जना सुनाई देती है. भव्यता, शक्ति और प्रकृति का अनूठा संगम हमारे सामने था, आंखों की प्यास नहीं बुझ रही थी.

नियाग्रा फौल्स के पास ही नियाग्रा नदी के दूसरी तरफ एक दूसरा अति सुंदर एवं दर्शनीय फौल्स है, जिस का नाम अमेरिकन फौल्स है. नियाग्रा नदी के एक तरफ कनाडा तथा दूसरी तरफ अमेरिका है. अमेरिकन फौल्स नियाग्रा फौल्स की अपेक्षा थोड़ा छोटा है किंतु उस की भव्यता एवं सौंदर्य अद्भुत है. पानी उतनी ही ऊंचाई से नीचे उसी नियाग्रा नदी में गिरता है. गर्जना कुछ कम है. प्रपात के उस पार आईलैंड और पहाड़ पर बने होटल्स और भी सुंदर दिखाई देते हैं. जलप्रपात के सामने रेलिंग के पास खड़े लोग तथा आसपास बैठ कर देखने वाले दर्शक मंत्रमुग्ध हो कर एकटक गिरते हुए जल को निहार रहे हैं. ऊपर से गिरते जल के कण तथा पानी से बनी धुंध जहां शरीर में सिहरन का संचार कर रही है, वहीं मन के अंदर फूटती खुशी की लहर कि हम ने विश्व के इस अद्भुत नजारे को अपनी आंखों से देखा, समा नहीं रही थी.

जलप्रपात के ठीक नीचे नियाग्रा नदी में नावों में बैठे हुए हम लोग इस के सौंदर्य का पान कर रहे थे. नाव के अतिरिक्त नियाग्राम जलप्रपात एवं लेक ओंटारियो के आसपास के क्षेत्रों को जैट बोट, हैलिकौप्टर तथा रोपवे से भी देख सकते हैं. लगभग 300 से अधिक पर्यटकों से भरी बोट जब ऊपर से फौल्स के गिरते पानी के नीचे दौड़ती है तो आप पानी से भीग कर रोमांचित हो उठते हैं. नीचे नियाग्रा नदी में चलती बोट से हम प्रपात को नीचे से ऊपर देख रहे थे. विचित्र अनुभव था. नियाग्रा फौल्स की सुंदरता को यदि आप और भी पास से देखना चाहें तो उसे हौर्नब्लोअर कू्रज द्वारा भी देखा जा सकता है. हैलिकौप्टर द्वारा नियाग्रा फौल्स के ऊपर उड़ कर उस के अत्यंत मनोरम तथा विहंगम दृश्य का आनंद ले सकते हैं. 12 मिनट की यह उड़ान आप को नियाग्रा फौल्स तथा उस के आसपास के अनेकानेक दर्शनीय स्थलों की सैर कराती है. जीवन का अभूतपूर्व अनुभव.

जलप्रपात और उस के आसपास के क्षेत्र को रोज शाम को रंगबिरंगी रोशनी से सुसज्जित किया जाता है. इस समय दोपहर के 4 बजे थे. हमारे पास काफी समय था, इसलिए हम पास में ही कनाडा के अत्यंत प्रसिद्ध एवं मनमोहक मनोरंजन के केंद्र, क्लिफटन हिल की ओर बढ़ चले.

क्लिफ्टन हिल

दुनिया में हर प्रकार के और हर वर्ग के लिए मनोरंजन, खानेपीने, म्यूजियम्स, थिएटर्स, शौपिंग मौल्स आदि का एकसाथ मिलने वाला एक ही स्थान है जो नियाग्रा के आसपास ‘क्लिफ्टन हिल’ के नाम से जाना जाता है. यहां पर आप बिना किसी थकावट के 5-6 घंटे आराम से घूमते हुए बिता सकते हैं. क्लिफ्टन हिल कनाडा का सब से अधिक रोमांचकारी मनोरंजन का केंद्र है. यहां सब से अधिक देखने लायक 175 फुट ऊंचा स्काईव्हील है जिस के घूमते हुए गोंडास में बैठ कर हम रात में फ्लड लाइट्स से जगमगाते फौल्स और आतिशबाजी का मजा ले सकते हैं. डायनासोर एडवैंचर गोल्फ का करीब 50 लाइफस्टाइल डायनासोर का कलैक्शन और आग की उठती हुई लपटों का ज्वालामुखी यहां के मुख्य आकर्षण हैं. ‘सफारी नियाग्रा’ में कई प्रकार के पक्षियों का संग्रह एवं अनेक रोगों तथा आदतों वाले पक्षियों को देख कर हम विस्मित रह गए.

ग्रेट कनाडा

नियाग्रा फौल्स के पास ही एक और पर्यटन स्थल है ‘ग्रेट कनाडा’. यह कनाडा का दूसरा सब से बड़ा मनोरंजन का केंद्र है. यहां का भूतिया घर देख कर आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे. यहां पर पास में ही बना हुआ मोम का पुतलाघर हर टूरिस्ट की पहली पसंद है. 7 बज चुके थे. फायरवर्क्स और नियाग्रा का इल्युमिनेशन देखने के लिए हम एक बार फिर नियाग्रा की ओर चल पड़े. लगभग 20 मिनट में ही हम नियाग्रा फौल्स पहुंच गए. रात के 8 बजे का समय था. थोड़ी ही देर में वहां पर फायरवर्क्स का प्रोग्राम शुरू हो गया जिस से आतिशबाजी के रंगबिरंगे पटाखों से सारा आसमान गूंज उठा. अभी हम आतिशबाजी की तंद्रा से उबरे भी न थे कि एक अद्भुत दृश्य एकाएक कहां से हमारी आंखों के सामने आ गया. लगता था कि आसमान में कई रंगों के सूर्य निकल कर जलप्रपात के पानी को रंग रहे हों. नियाग्रा फौल्स को कई रंगों की रोशनी से इल्युमिनेट किया जा रहा था. 250 मिलियन कैंडल पावर वाली 21 जिनोन फ्लड लाइट्स 5 रंगों के प्रकाश से जलप्रपात को रंग रही थीं. आंखों में समा जाने वाला यह एक यादगार दृश्य था.

फ्रोजन नियाग्रा

कनाडा में ठंड बहुत होती है. साल के 7-8 महीने ठंड, बर्फ और बर्फीली हवाओं के कारण आप घर से बाहर नहीं निकल सकते. पर इन दिनों में आप वहां के कुछ टूरिस्ट स्पौट देख कर ऐंजौय जरूर कर सकते हैं. इन में मुख्य है फ्रोजन नियाग्रा फौल्स. पिछले साल हम जूनजुलाई में नियाग्रा देख चुके थे पर बर्फ का जमा हुआ फ्रोजन नियाग्रा देखने का अवसर अभी तक नहीं मिला था. फरवरी का महीना था. ठंडी, बर्फीली हवाएं चल रही थीं. तापमान -38 डिगरी सैंटीग्रेड था. हम अपनेआप को गरम कपड़ों, फर की टोपी से कानों को पूरी तरह ढक कर, पैरों में लंबे जूते, गरम मोजे पहन कर नियाग्रा देखने चल पड़े. एक घंटे की ड्राइव के बाद रात के करीब 8 बजे हम नियाग्रा प्रपात के सामने खड़े थे.

नियाग्रा प्रपात देख कर आश्चर्य होना स्वाभाविक था कि क्या यह वही नियाग्रा है जिसे हम ने 7 महीने पहले गरजता, दहाड़ता, उछलता, कूदता शक्ति का प्रतीक बना दर्शकों को अपने मोहपाश में बांधते हुए देखा था. आज शांत पड़ा था. हजारों टन पानी जमा हुआ, शांत पसरा पड़ा था जैसे कोई बर्फ का मैदान. नियाग्रा नदी पूरी तरह जमी हुई. फौल्स उस से नीचे नदी तक जमा हुआ. एक बूंद भी पानी नहीं गिर रहा था. न ही पानी की बूंदों की फुहार हम पर गिर कर सिहरन पैदा कर रही थी. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि प्रपात का हजारों टन पानी जो 123 फुट नीचे नियाग्रा में गिर कर गर्जना करता लोगों का मनोरंजन करता था, आज चुपचाप निरीह, असहाय, शांत और बेबस पड़ा है. प्रकृति का एक और अजूबा. इस अजूबे को नमस्कार कर हम ठंड में बैठ कर गरमगरम कौफी पीते प्रकृति की इस अद्भुत घटना के मर्म को समझने का असफल प्रयास करने लगे. बर्फ सा जमा हुआ नियाग्रा देखना भी अपनेआप में एक रोमांचक अनुभव था.

बलात्कार के गुनाहगार

हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान दिल्ली चंडीगढ़ रास्ते से गुजर रही गाडि़यों को रोक कर उन्हें जलाया ही नहीं गया, औरतों के साथ जबरन बलात्कार के मामले भी हुए. हालांकि इन बलात्कारों की पुलिस में शिकायत नहीं हुई, क्योंकि ये औरतें उन घरों से थीं, जो अपना नाम अखबारों में उछलवाना नहीं चाहते. वैसे भी बलात्कार के गुनाहगार कब पुलिस व कानून के आगे झुकते हैं? अगर गांवगांव, कसबेकसबे में बलात्कार हो रहे हैं, तो इस की वजह यही है कि बलात्कारी जानता है कि उस का कुछ बिगड़ेगा नहीं, क्योंकि बिगड़ेगा तो औरत भी बदनाम होगी. समाज ने ऐसा कानून बना रखा है कि बलात्कारी से ज्यादा उस औरत को गुनाहगार माना जाता है, जो शिकार हुई हो. बलात्कारी तो अपनों में शेर का बच्चा माना जाता है. यह मामला ऐसा है, जैसे काला धन रखने वाले कई बार चोरी होने पर शिकायत नहीं करते, क्योंकि वे साबित कैसे करेंगे कि उन के पास वह कमाई आई कहां से.

आयकर कानून और बलात्कार पर सामाजिक सोच एक तरह की सी है और इस से देश ही नहीं, पूरी दुनिया परेशान है. हमारे यहां गांवकसबे में यह कुछ ज्यादा है, क्योंकि हमारे यहां औरतों की कानूनी हालत वैसी ही है, जैसी सेठों के पास रखे काले धन की होती है. अभी हाल तक जब धन कालासफेद नहीं होता था, तब हर पैसे की वही हालत थी. उसे छिपा कर रखो, वरना कोई ले उड़ेगा. कानून और व्यवस्था ने पैसे को तो काफी बचा लिया है, पर औरतों की इज्जत को नहीं और हर जना इसे तारतार करने में लगा रहता है. सैक्स को इस तरह काले अंधेरे में डाल दिया है. औरत की इज्जत ऐसी हो गई है कि जब मरजी छीन लो.

इस का नुकसान हरेक को होता है. बलात्कार का भी नशा हो जाता है. एक बार वह इस का घूंट चखने के बाद और चाहता है. कभी बाजारू औरतों के पास जाता?है, कभी अनजानी औरतों से छेड़खानी करता है, तो कभी घर वालियों को भी नहीं बख्शता. यह जबरदस्ती हर औरत को हर समय डर के साए में रहने को मजबूर कर देती है. बलात्कार करने वाले अपने घरों की औरतों के बलात्कार का दरवाजा भी खोल देते हैं. जब मालूम हो कि पति या भाई ने किसी जानीअनजानी का बलात्कार किया था, तो वह किस मुंह से घर में उन्हीं से अपनों को बचाएगा, जो इस राज को जानते हैं. आमतौर पर मांबहन की जो गालियां दी जाती हैं, वे जबान पर चढ़ी ही इसलिए हैं.

जिन दंगाइयों ने हरियाणा में बेगुनाहों को रौंदा था, उन्होंने पूरे राज्य को बदनाम कर दिया है. अब हरियाणा में से गुजरने वाला हर परिवार डरता रहेगा कि न जाने कौन कब किस कोने से आ जाए और आंदोलन हो या न हो उस की औरतों को दबोच ले. वैसे ही हरियाणा में औरतें कम मिलती हैं. अब हरियाणा के मर्दों पर बलात्कारी होने का ठप्पा और लग गया है. वहां बेटी को देने का मतलब है उसे पति की सुरक्षा नहीं देना, भेडि़यों के बीच छोड़ना. पति भी भेडि़या हो, कौन जाने.

प्यार के सीन मुश्किल: पत्रलेखा

हिंदी फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ से ऐक्टिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाली 26 साल की पत्रलेखा मेघालय के शिलौंग शहर की रहने वाली हैं. उन्हें बचपन से ही ऐक्टिंग करने का शौक था, जिस में इन के मातापिता ने साथ दिया. इस समय पत्रलेखा फिल्म ‘लव गेम्स’ में लीड हीरोइन का रोल निभा रही हैं. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश:

आप ने ऐक्टिंग के क्षेत्र में आने की कैसे सोची?

मैं बचपन से ही ऐक्टिंग करना चाहती थी. मैं असम में बोर्डिंग स्कूल में गई. वहां जितने भी कल्चरल प्रोग्राम होते थे, मैं उन में भाग लेती थी. थिएटर और डांस मेरा शौक था. फिर कालेज के लिए मुंबई आई, पर मुझे तो ऐक्टिंग करनी थी.

कालेज के आखिरी साल के दौरान मेरी पहचान एक शख्स से हुई, जो इश्तिहारों के लिए काम करता था. मैं ने उस की मदद ली और उस ने मेरा पोर्टफोलियो बनवा कर सभी विज्ञापन हाउसों में भेजा. उस शख्स ने मुझे एक इश्तिहार भी दिलवाया, जिस से मुझे 5 हजार रुपए मिले थे.

इस के बाद मैं ने कई इश्तिहारों में काम किया. लेकिन मुझे फिल्म नहीं मिल रही थी. फिर मैं ने कास्टिंग डायरैक्टर अतुल मोंगिया से पूछा कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मुझे काम क्यों नहीं मिल रहा है? उन्होंने मुझे वर्कशौप करने की सलाह दी.

मैं ने बैरी जौन और कई ऐक्टिंग क्लासेस में वर्कशौप की. इस से मुझे पता चल गया था कि कैमरे के आगे क्या करना है. फिर मुझे फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ मिली. उस में सब ने मेरी ऐक्टिंग की तारीफ की.

आप के लिए शिलौंग से मुंबई आ कर रहना कितना मुश्किल था?

मेरे लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था, क्योंकि मैं 5वीं क्लास से बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रही थी. मुझे अपना काम खुद करने की आदत है. मुंबई में पैसों की समस्या नहीं आई. मेरे मातापिता ने हमेशा मेरा साथ दिया, पर यह बिजी शहर है. यहां किसी के पास समय नहीं है. सब जैसे भाग रहे हैं. ऐसे में मैं शिलौंग के अपनेपन को याद करती हूं.

क्या आप को कभी कंप्रोमाइजजैसे शब्दों का सामना करना पड़ा?

सच बताऊं तो नहीं. जब आप को किसी काम के लिए औफर्स आते हैं, तो वे सामने वाले की बौडी लैंग्वेज को देखते हैं. अगर उन्हें कुछ महसूस हुआ, तभी ऐसी नौबत आती है. मैं सोचती हूं, वह साफसाफ कह देती हूं.

आप की फिल्म लव गेम्सकैसी है?

यह एक थ्रिलर रोमांटिक फिल्म है. पहली फिल्म में मैं ने साधारण घरेलू औरत का किरदार निभाया था, लेकिन इस फिल्म में मेरा किरदार एक चालाक, सैक्सी और मजबूत औरत का है. ऐसी स्टोरी मैं ने कभी नहीं सुनी, इसलिए मुझे काफी तैयारियां करनी पड़ीं. अपने किरदार को समझने के लिए मैं हाई सोसाइटी की कई पार्टियों में गई.

इस तरह की फिल्मों में लव सीन ज्यादा होते हैं. ऐसे सीन करना आप के लिए कितना आसान रहा?

ऐसे सीन करने में थोड़ी दिक्कत होती है. फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ में भी मैं ने ऐसे सीन किए थे. तब मैं राजकुमार राव के साथ थी. मैं ने डायरैक्टर हंसल मेहता को यह बात बताई थी. तब कैमरामैन और उन के सामने हम दोनों ने ऐक्टिंग की थी.

इस फिल्म में भी समस्या आई, पर मुझे समझना पड़ा कि यह भी एक तरह का डायलौग है, जिसे फिल्माना है.

आप के और राजकुमार राव के संबंधों की काफी चर्चा है. यह बात कितनी सही है?

हम दोनों काफी समय से रिलेशनशिप में हैं. मैं शादी और रिलेशनशिप दोनों को अहमियत देती हूं. मेरे लिए दोनों एकसमान हैं.

आप अगर कलाकार न होतीं, तो क्या होतीं?

तो अपने पिता की तरह चार्टेड अकाउंटैंट होती.

आप कितनी फैशनेबल हैं?

जो आरामदायम हो, मैं वैसे कपड़े पहनती हूं.

आप को खाने में क्या पसंद है?

बंगाली मिठाई मेरी फेवरिट डिश है. मैं चावल के साथ झींगा मछली, कश्मीरी चिकन और पुलाव खाना बहुत पसंद करती हूं.

आप किस तरह की फिल्में करना चाहती हैं?

मैं ‘द डर्टी पिक्चर्स’ और ‘कहानी’ जैसी फिल्में करना चाहती हूं.                 

वैवाहिक बंधन की ढीली पड़ती गांठ

इंस्टेंट फ़ूड की संस्कृति में जन्मों जन्मों तक साथ रहने, हर सुख दुःख में एक दूसरे का साथ निभाने वाले सात फेरों की वैवाहिक बंधन की गांठ ढीली पड़ती दिखाई दे रही है. विवाह अब  पवित्र रिश्ता नहीं रह कर महज एक कांट्रेक्ट रह गया है, जहाँ विवाह का अर्थ स्वच्छंदता और मनमर्जी मात्र रह गया है, जहाँ पतिपत्नी अब महज पार्टनर बन कर रह गये हैं .

आम लोगों की वैवाहिक  ज़िन्दगी का  बदला यह रूप बॉलीवुड नगरी पर भी दिखाई दे रहा है. बॉलीवुड एक्टर्स की ग्लैमर भरी  ज़िन्दगी जो आम लोगो  को बाहर से  खुशियों से भरी नज़र आती हों लेकिन असल में स्थितियां उनके लिए भी आम आदमी की ज़िन्दगी की तरह एक जैसी ही बनती बिगड़ती हैं. पिछले कुछ समय में हमने कई बॉलीवुड कपल्स के सालों के रिश्ते को टूटते हुए देखा है. ये  टूटते रिश्ते  आखिर सिवा अकेलेपन, रिश्तों में कडवाहट और ख़बरों की सुर्खिया बनने  के अलावा और भला क्या देते हैं.

बॉलीवुड में आए दिन किसी न किसी जोड़ी के टूटने की खबर आ रही है. हाल ही में करिश्मा कपूर और उनके पति संजय कपूर के रिश्तों की डोर के  टूटने की खबर समाचार पत्र की सुर्खियाँ बनी. 29 सितंबर, 2003 को दोनों ने बड़े धूम धाम से शादी की थी. ये संजय कपूर की दूसरी, जबकि करिश्मा की पहली शादी थी. 14 साल पहले अभिनेत्री करिश्मा कपूर और कारोबारी संजय शादी के जिस बंधन में बंधे थे अब उनमें तलाक पर समझौता हो गया है. दोनों के बीच बच्चों की कस्टडी को लेकर पेंच फंसा हुआ था जो आपसी समझौते से सुलझा लिया गया है.

दोनों के बीच तलाक का जो फॉर्मूला तैयार किया गया है उसके मुताबिक दोनों बच्चे करिश्मा के पास ही रहेंगे. संजय हर महीने 2 वीकेंड बच्चों के साथ बिता सकेंगे. गर्मी और जाड़े की छुट्टियों का आधा वक्त भी संजय बच्चों के साथ वक्त गुजार सकेंगे. बच्चों के बालिग होने पर पढ़ाई और शादी का आधा खर्च संजय ही देंगे. इसके साथ ही मुंबई में संजय कपूर के पिता का मकान करिश्मा के नाम हो जाएगा. साथ ही संजय ने दोनों बच्चों के लिए 14 करोड़ का बॉन्ड खरीदा है. इस बॉन्ड के जरिए बच्चों को खर्च के लिए हर महीने 10 लाख रुपए मिलेंगे. इसके एवज में करिश्मा ने मुंबई में दर्ज दहेज़ उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का केस वापस ले लिया है.

दरअसल, शादी से कुछ सालों के बाद ही दोनों की बीच दरार की खबरें आने लगीं, इसी बीच संजय की जिंदगी में दिल्ली की सोशलिस्ट प्रिया चटवाल आईं, जिसके बाद करिश्मा ने संजय से किनारा कर लिया. आए दिन  दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे .संजय ने आरोप लगाया कि करिश्मा कपूर ने सिर्फ संजय के पैसों की वजह से उनसे शादी की. संजय के इस आरोप का जवाब करिश्मा के पिता रणधीर कपूर ने खुद मीडिया में आकर  दिया और कहा कि कपूर खानदान के पास इतना पैसा कि उन्हें किसी के पैसे की जरूरत ही नहीं है.

बॉलीवुड में ऐसे स्टार्स  की फेहरिस्त लम्बी हैं, जिन्होंने पूरे गाजेबाजे के साथ शादी की और फिर कुछ ऐसा हुआ कि उनका  विवाह भी टूटते परिवार की कहानी का हिस्सा हो गया. बॉलीवुड अभिनेता ऋतिकरौशन और उनकी पत्नी सुजैन , अभिनेता आमिर खान और उनकी पत्नी रीनादत्ता ,अभिनेता संजय दत्त और उनकी पत्नी  रियापिल्लै, एक्टर, डायरेक्टर, डांसर और कोरियोग्राफर प्रभू देवा और उनकी पत्नी रामलथ के बिखरते रिश्ते इसी कड़ी का हिस्सा हैं . इन सितारों को तलाक के एवज में एलिमनी के रूप में बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी. दरअसल तलाक विवाह के समय हमेशा खुश रहने के सपने को चूर चूर कर देता है .

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