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गरमियों में होंठों की देखभाल

गरमी के मौसम में भी होंठों का सूखना या फटना आम बात है. लेकिन इन की नियमित देखभाल और घरेलू उपचार से होंठों को ठीक किया जा सकता है. सब से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर होंठ फटते क्यों हैं? इस बारे में मुंबई के द कौस्मैटिक सर्जरी इंस्टिट्यूट के कौस्मैटिक सर्जन डा. मोहन थौमस बताते हैं कि गरमियों में गरम, सूखी हवा और लू के चलने से भी होंठ फटने लगते हैं. इन के फटने की और वजहें निम्न हैं:

  1. जब होंठों के सूख जाने पर उन्हें बारबार जीभ से चाटते हैं, तो लार होंठों की नमी को सोख लेती है. इस से होंठों पर पपड़ी बनती है और फिर जब आप पपड़ी निकालती हैं तो नीचे की परत सूख जाती है. इस तरह होंठों का फटना लगातार जारी रहता है.
  2. होंठों को नमीयुक्त बनाए रखने के लिए कोई ग्रंथि नहीं होती. गरम हवा में ड्राईनैस होती है, जिस से होंठ फटते हैं. अगर होंठ ज्यादा फटते हैं, तो यह शरीर के डीहाइड्रेशन की ओर संकेत करता है.
  3. अगर आप अपने होंठों को ठीक तरह से सनस्क्रीन से प्रोटैक्ट नहीं करती हैं तो भी वे फटते हैं.
  4. गरमी में धूल, मिट्टी, पर्यावरण प्रदूषण की वजह से भी होंठ फटते हैं.
  5. जब आप मुंह से सांस लेती हैं, तो गरम हवा होंठ के ऊपर से बाहर आती है, जिस से लिप कै्रक होता है.
  6. कुछ टूथपेस्ट कई बार होंठों की त्वचा को सूट नहीं करते. ऐसे में होंठों का फटना जारी रहता है.
  7. कई बार अगर खट्टे फल, जूस, सौस आदि होंठों में ऐलर्जी पैदा करें तो भी उन के फटने की संभावना रहती है.
  8. कुछ दवाओं के सेवन से भी होंठ फटते हैं. इसलिए उन दवाओं का सेवन करते हुए ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थ, जूस और पानी पीना चाहिए.

इस संदर्भ में कौस्मैटिक सर्जन डा. जेम्स डिसिल्वा बताते हैं कि यह जरूरी नहीं कि केवल धूप में जाने वाली महिलाओं के ही होंठ फटते हों. घर में रहने वाली महिलाओं को भी अगर गरम और सूखी हवा लगेगी, तो उन के भी होंठ फटेंगे. होंठों की त्वचा संवेदनशील होती है. अगर सही तरह से इन्हें लुब्रिकैंट नहीं करेंगी तो क्रैक्स आएंगे ही.

कुछ घरेलू उपायों को अपना कर आप स्वस्थ होंठ पा सकती हैं. मसलन:

  1. गरमी के मौसम में पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें. इस से शरीर की नमी के साथसाथ होंठों की नमी भी बनी रहेगी.
  2. सुबह ब्रश करते समय अगर लगे कि होंठों में ड्राईनैस है, तो लिप ब्रश को हलके हाथों से होंठों पर फेर लें. बाद में अच्छी तरह लिपबाम लगाएं.
  3. रात में सोते समय पैट्रोलियम जैली या कोकोनट औयल अथवा फ्रैश मलाई लगाएं. इस से होंठों के अंदर की नमी अंदर ही रहेगी और वे मुलायम रहेंगे.
  4. मेकअप करते समय लिपग्लौस का प्रयोग न कर यूवी रेज को सोख लेने वाला लिपबाम लगाएं. यह अच्छे ब्रैंड का ही खरीदें.
  5. होंठ ज्यादा फटें तो लिप मौइश्चराइजर और लिपबाम दोनों दिन में 3-4 बार लगाएं.
  6. खानपान में पोषक तत्त्वों की पर्याप्त मात्रा हो. विटामिन सी, विटामिन ई, हरी पत्तेदार सब्जियों और मौसमी फलों का सेवन हमेशा करें.
  7. गरमी के मौसम में लस्सी का सेवन जितना अधिक करेंगी होंठों की सेहत के लिए वह उतना ही अच्छा रहेगा.

डा. आमोद राव कहते हैं कि आजकल की लड़कियां स्लिमट्रिम होने के चक्कर में अपना खानपान सही तरीके से नहीं करतीं. जंक फूड खाती हैं. ऐसे में शरीर में पोषक तत्त्वों की मात्रा में कमी आ जाती है, जिस का असर सब से पहले होंठों पर ही पड़ता है. इस के अलावा धूम्रपान करने से भी होंठ फटते हैं.

होंठों को सुंदर बनाने के घरेलू नुसखे:

  1. थोड़ा सा शहद, चीनी और नीबू का रस मिला कर फ्रिज में रख लें. फिर जब भी समय मिले होंठों पर लगाएं. धूप में काम करने वाली महिलाएं इसे जरूर लगाएं.
  2. अगर होंठ अधिक फटे हों तो टमाटर के रस में देशी घी या मलाई मिला कर होंठों पर लगा कर त्वचा के चिकना होने तक लगा रहने दें.

कैसे चुनें सही हेयर कंडीशनर

बालों की सुरक्षा के लिए आप समय समय पर इन्हें जरूरी ट्रीटमैंट देती रहती हैं. इन्हीं ट्रीटमैंट्स में एक है- हेयर कंडीशनिंग. घरेलू नुसखों के साथसाथ बाजार में कई कंडीशनर भी उपलब्ध हैं, जो हर प्रकार के बालों के लिए बनाए गए हैं. मगर इन का चुनाव सावधानी के साथ करना चाहिए वरना इन का विपरीत प्रभाव बालों की सेहत को बिगाड़ भी सकता है.

अकसर महिलाएं इस बात को नजरअंदाज कर शैंपू और कंडीशनर की आकर्षक पैकिंग और उन के विज्ञापनों पर ही गौर करती हैं. कंडीशनर में मौजूद इनग्रीडिएंट्स उन के लिए महत्त्व नहीं रखते. जबकि सब से पहले किसी भी प्रोडक्ट पर दिए गए निर्देशों को ध्यानपूर्वक पढ़ लेना बहुत जरूरी होता है. एक अध्ययन के मुताबिक 70% महिलाओं को पता ही नहीं होता कि कंडीशनर का इस्तेमाल क्यों किया जाता है. वे तो बस इसे एक प्रक्रिया के तौर पर बालों में लगा लेती हैं, तो कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो हर बार शैंपू और कंडीशनर बदल लेती हैं. ऐसे में बालों का खराब होना तय होता है. इन में से कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्हें कंडीशनर के इस्तेमाल करने का ढंग और उस के फायदों के बारे में तो पता होता है, लेकिन यह पता नहीं होता है कि उन के बालों के टैक्स्चर पर कौन सा हेयर कंडीशनर फायदेमंद साबित होगा. आइए, जानें कि किस तरह बालों के टैक्स्चर को समझ कर उन पर कौन सा कंडीशनर लगाना चाहिए:

पतले और महीन बाल

बालों के पतले होने के 2 कारण हो सकते हैं- या तो बालों को सही ट्रीटमैंट नहीं दिया जा रहा है या फिर आनुवंशिकता की वजह से भी बालों का टैक्स्चर महीन हो सकता है. लेकिन इन्हें सही ट्रीटमैंट के जरीए कुछ हद तक दुरुस्त किया जा सकता है. खासतौर पर हलके और वौल्यूमाइजिंग फौर्मूला बेस्ड कंडीशनर ऐसे बालों के लिए सब से अच्छा विकल्प साबित होते हैं. दरअसल, ऐसे बालों को भारीपन के साथ ही चमक की भी जरूरत होती है और इस के लिए जरूरी है कि बालों में नमी रहे. लेकिन ऐसे बालों के लिए कंडीशनर चुनते वक्त यह जरूर देख लें कि उस में बायोटिन, कैफीन, पैंथेनोल और अमोनिया ऐसिड जैसे तत्त्वों का इस्तेमाल न किया गया हो. साथ ही, ऐसे बालों पर कंडीशनर को क्राउन एरिया पर लगने से बचाना चाहिए और जड़ों से लगभग 2 इंच बाल छोड़ कर कंडीशनर लगाना चाहिए.

नौर्मल एवं मीडियम बाल

ऐसे बालों को मैंटेन रखने के लिए हाईड्रेशन लैवल में संतुलन बनाए रखना जरूरी है. अच्छी बात है कि आप के बाल शाइनी और हैल्दी हैं, लेकिन उन की इस खूबी को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उन्हें जरूरी ट्रीटमैंट मिलता रहे. ऐसे बालों के लिए विटामिन ए, सी और ई युक्त कंडीशनर का इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही यूकलिप्टस और व्हीट प्रोटीन वाले कंडीशनर भी ऐसे बालों में नमी बनाए रखते हैं.

घुंघराले बाल

घुंघराले बालों में मौइश्चराइजिंग कंडीशनर ही लगाना चाहिए. ऐसे कंडीशनर बालों को शाइनिंग देते हैं और पोषण भी. ऐसे बालों के लिए कंडीशनर का चुनाव करते वक्त यह जरूर देख लें कि उस में शामिल सामग्री में प्रोटीन जरूर हो. इस के अतिरिक्त ऐसे बालों में शीया बटर, औलिव औयल और ग्लिसरीन युक्त कंडीशनर भी फायदेमंद साबित होते हैं. ये बालों में हाईड्रेशन और इलास्टिसिटी को भी बनाए रखते हैं.

मोटे बाल

यदि बाल मोटे और कड़े टैक्स्चर वाले हैं तो सब से पहले उन्हें मुलायम बनाया जाए, जिस के लिए कंडीशनर में ऐवोकाडो का तेल और सोया मिल्क जैसे इनग्रीडिएंट्स का शामिल होना बेहद जरूरी है. यह ऐसे बालों को भारी और सिल्की बनाएगा और साथ ही वौल्यूम को भी स्मूद करेगा.

औयली बाल

वैज्ञानिक तौर पर जिन की स्कैल्प ड्राई होती है उन के बाल औयली होते हैं. दरअसल, ड्राईनैस की वजह से स्कैल्प पर मौजूद औयल ग्लैंड तेल निकालना शुरू कर देती है, जिस से बाल ग्रीसी दिखने लगते हैं. कई महिलाएं बाल औयली होने की वजह से कंडीशनर को नजरअंदाज करने लगती हैं. लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसे बालों में कंडीशनर को बालों के निचले हिस्से में लगाना चाहिए और वह भी स्प्रिंग की तरह बालों को घुमाघुमा कर कंडीशनर लगाने से फायदा होता है.         

धर्म की सियासत

पहले गौमाता और फिर वंदेमातरम, योग, सूर्य नमस्कार और अब भारत माता के नाम पर जो आंधीतूफान देश में चलाया जा रहा है, इस सब का मतलब एक ही है, किसी तरह फिर से पौराणिक जमाने को देश पर थोप दिया जाए, जिस में पैदाइश से ही सबकुछ तय हो कि कौन समाज में किस जगह होगा. ऊंची जातियों वाले राज करें, बीच वाले सेवा करें और सब से नीचे वाले अछूत जानवरों की तरह रहें.

पिछड़ी जातियां और अछूत (अब के दलित) सदियों से खाने में मांस भी खाते रहे हैं, क्योंकि उन्हें जीने के लिए जो मिल जाता खाते थे. ब्राह्मणों और उन की देखादेखी वैश्यों ने मांस खाने पर थोड़ी पाबंदी लगाई थी, पर कभी भी कहीं भी इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया. जैन धर्म ने मांसमच्छी और जीव को न खाने की वकालत की थी, पर आज भी जैन बहुत थोड़े से हैं.

मांस न खाने के पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि ये लोग खुद पशु नहीं पालते थे. मांस खाना है तो आखिर तक पशु की देखभाल करनी होगी. उस को खिलाना होगा, उस की बीमारी की चिंता करनी होगी. पशुओं को अनाज की तरह न कोठरों में भरा जा सकता है, न जमीन में दबा कर छिपा कर रखा जा सकता है. मीट न खाने वालों को अनाज दूसरों की मेहनत से मिलता था और जहां से मिला उसे जमा किया जा सकता है. मांस के खिलाफ हल्ला इसलिए किया जा रहा है कि साबित किया जा सके कि जो मीट खाते हैं वे नीच हैं, अछूत हैं, अधर्मी हैं. जो अनाज खाते हैं, वे ऊंचे हैं, उन के कोठार भरे हैं. वे दान में बोरे के बोरे अनाज ले सकते हैं. जो लोग बराबरी की मांग कर रहे हैं, उन्हें नीचा दिखाने के लिए यह नाटकबाजी की जा रही है, ताकि कहा जा सके कि सत्ता की चाबियां तो खास लोगों के हाथों में हैं. हां, अगर वे भी मीट खा लें तो सब ठीक है, क्योंकि वे जन्म से ऊंचे हैं.

अभी राजस्थान में चित्तौड़गढ़ में मेवाड़ विश्वविद्यालय में 4 जम्मूकश्मीरी छात्रों की पिटाई कर दी गई कि वे जो मांस खा रहे थे, वह गौमांस था. गौमांस के नाम पर आजकल कहीं भी किसी को भी भड़का दो, तो 100-200 की भीड़ जमा हो ही जाती है. अब पुलिस ने भड़काने वालों को गिरफ्तार किया है, क्योंकि जो मांस खाया जा रहा था वह बकरे का था. यह सारी ऊधमबाजी असल में पुराणवादी सोच को फिर से लागू करने के लिए की जा रही है. असल में यह बताया है कि जिस घर में पैदा हुए हो, वहीं के बन कर रहो. ज्यादा सीढि़यां न चढ़ो. कन्हैया कुमार की तरह गिरफ्तार करा देंगे, रोहित वेमुला की तरह खुदकुशी करने पर मजबूर कर देंगे.

क्यों होना चाहती हैं तब्बू अदृश्य ?

तब्बू को 14 साल की उम्र में ‘हम नौजवान’ फिल्म में देव आनंद ने अपनी बेटी के रूप मे लौंच किया था. इस फिल्म में उन्होंने एक रेप विक्टिम की भूमिका निभाई थी. तब्बू के हिसाब से वह एक फिल्मी माहौल में पलीबढ़ी थीं, पर फिल्मों में आने का शौक नहीं था. उन्हें फिल्मों में लाया गया, लेकिन जब काम करने लगीं तो रुचि बढ़ती गई. उन की लगभग सभी फिल्में बौक्स औफिस पर कामयाब रहीं. इस का श्रेय वे दर्शकों को देती हैं, जो उन्हें हर भूमिका में देखना चाहते हैं. 80 और 90 के दशक में तब्बू ने कई हिट फिल्में दीं, जिन में ‘माचिस’, ‘विरासत’, ‘अस्तित्व’, ‘चांदनी बार’, ‘मकबूल’, ‘द नेम सेक’ आदि प्रमुख हैं.

तब्बू आज भी दर्शकों में लोकप्रिय हैं. फिर चाहे फिल्म ‘दृश्यम’ हो या ‘चीनी कम’ अथवा ‘फितूर’ सभी में दमदार अभिनय किया है. तब्बू का निजी जीवन हमेशा सुर्खियों में रहा. पहले उन का नाम दक्षिण के अभिनेता नागार्जुन के साथ जुड़ा. वे शादीशुदा थे और अपनी पत्नी को तलाक नहीं देना चाहते थे. इसलिए तब्बू उन से अलग हो गईं. इस के बाद उन का नाम उपेन पटेल के साथ जुड़ा जो उन से 10 साल छोटा था. लेकिन यह भी अफवाह ही निकली. अभी तब्बू अकेली रहती हैं. अपना पूरा समय घूमने और किताबें पढ़ने में बिताती हैं. 2011 में उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था. स्वभाव से शांत तब्बू से ऐरियल इंडिया द्वारा आयोजित महिला दिवस पर एक कार्यक्रम के दौरान मुलाकात हुई. पेश हैं, उस दौरान की गई बातचीत के खास अंश:

महिला सशक्तीकरण के नाम पर कितना काम हो रहा है और कितना करना जरूरी है?

महिलाएं आजकल आगे आ रही हैं. उन की स्थिति यकीनन बदल रही है पर अभी बहुत काम करने की जरूरत है. जो बदलाव हम शहरों में देखते हैं वे गांवों में नहीं हैं. इस के लिए मां को अपनी बेटियों को वैसे ही बड़ा करना पड़ेगा जैसा बेटों को करती हैं. बच्चे परिवार से ही सीखते हैं. बेटियों को इज्जत देने के लिए बेटों को पहले सिखाना होगा. मेरे परिवार में पुरुष हो या महिला सब की बातें सुनी जाती हैं. यही सीख हर परिवार में होनी चाहिए. मैं ने फिल्में भी अधिकतर महिलाप्रधान ही की हैं. महिला जब पुरुष के लिए उदाहरण बनेगी, तब जा कर और अधिक जागरूकता बढ़ेगी.

पहली फिल्म से अब तक आप अपनेआप में कितना ग्रोथ पाती हैं?

पहले बात करना नहीं आता था. बहुत रिजर्व रहती थी, इंट्रोवर्ट थी. अब सब से बात कर पाती हूं. अच्छा लगता है कि मैं अपनी बातें सही तरह से कह पाती हूं. पहले लोग मेरे बारे में न जाने क्याक्या कहते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. मैं ने काफी अलगअलग लोगों के साथ काम किया है. ऐसे में ग्रो होना स्वाभाविक है.

हिंदी सिनेमा जगत में पहले से कितना बदलाव महसूस करती हैं. नए लोगों के साथ काम करने में कितनी सहज होती हैं?

अब पहले से ज्यादा बदलाव आया है. रही नए लोगों के साथ काम करने की बात तो नए लोगों के काम करने का ढंग अलग है लेकिन मुझे अधिक फर्क इसलिए महसूस नहीं होता, क्योंकि पहले जब वे नए थे तो मैं ने उन के साथ काम किया. अब उन के बड़े निर्देशक बनने के बाद भी मैं उन के साथ काम कर रही हूं. इन में विशाल भारद्वाज, मधुर भंडारकर आदि हैं.

आप अपनी जर्नी को कैसे देखती हैं?

कोई जर्नी नहीं महसूस करती. लगता है अभी शुरू हुई है. यह क्षेत्र ऐसा है जहां हर फिल्म के साथ एक नया चैलेंज आता है. मैं फिल्म की कहानी निर्देशक और अपनी भूमिका पर अधिक तवज्जो देती हूं.

आप की खुद की फिल्मों में से कौन सी फिल्म आप के दिल के करीब है?

‘हम साथसाथ हैं’, ‘मकबूल’, ‘विरासत’, ‘चाची-420’, ‘चांदनी बार’ आदि सभी फिल्मों से कुछ न कुछ मैं ने सीखा है. फिल्मों में अभिनय भी मैं ने फिल्मों में काम करते ही सीखा. मैं प्रोडक्शन या डाइरैक्शन में नहीं जाना चाहती. टीवी में जाने का शौक है पर अच्छा औफर नहीं है.

खाली समय में क्या करती हैं?

खली समय में गाने सुनना, किताबें पढ़ना, दोस्तों के साथ फिल्में देखना आदि पसंद है. मैं बड़ेबडे़ नौवल नहीं पढ़ती. पढ़ने का शौक मुझे अपनी नानी से मिला है. मेरी बहन फरहा को भी किताबें पढ़ने का बहुत शौक है.

अगर आप को सुपर पावर मिले तो क्या करना चाहेंगी?

मैं अदृश्य हो कर सभी के घरों में घुस कर जानना चाहती हूं कि वे मेरे बारे में क्या सोचते हैं.

ग्लैमर वर्ल्ड में आने के लिए यूथ को क्या मैसेज देना चाहती हैं?

इस क्षेत्र में आने के लिए मानसिक रूप से स्ट्रौंग होना आवश्यक है. आजकल सभी फिल्म मेनस्ट्रीम में है, क्योंकि मल्टीप्लैक्स अधिक है और दर्शक भी अलगअलग फिल्में देखना पसंद करते हैं.

किसी फिल्म को रिमेक देखना चाहती हैं?

नहीं. रिमेक अच्छा नहीं बनता. सीक्वल अच्छा बनता है. बशर्ते कहानी को सही तरीके से लिखा गया हो.

वैसे हम बता दें कि बौलीवुड में चर्चा है कि मधुर भंडारकर तब्बू की हिट फिल्म ‘चांदनी बार’ का सीक्वल बना रहे हैं, जिस में मुख्य भूमिका में तब्बू ही रहेंगी. इस फिल्म का नाम ‘चांदनी बार 2 रूबी बार’ होगा.

फिफ्टी शेड्स ऑफ़ विलेनः बैड मैन इज गुड मैन

एक दौर में खौफ का दूसरा नाम बन चुके चन्दन तस्कर वीरप्पन को पकड़ने में प्रशासन को 20 साल लग गए.  इस चंदन तस्कर ने 97  पुलिस वालों, 184  नागरिकों और 900 हाथियों को मारा. बेहद हिंसक और क्रूर दिमाग वाले इस शख्स पर निर्देशक राम गोपाल वर्मा हिंदी फिल्म बना रहे हैं. फिल्म का कन्नड़ वर्जन पहले से ही कामयाब हो चुका है. रामू कहते हैं कि उन्हें हीरो की साफ़ सुथरी छवि से ज्यादा विलेन की खूंखार अदाएं ज्यादा भाती हैं. इसलिए उनकी फिल्मों के ज्यादातर किरदार बैडमैन इमेज वाले होते हैं.

फिल्मों के आरंभिक दौर में आदर्श हीरो की छवि के आगे विलेन पिद्दी सा लगता था. सूदखोर महाजन हो या सोने का स्मगलर. जब हीरो की किक विलेन पर पड़ती तो दर्शक जमकर ताली और सीटी बजाते. विलेन का किरदार करने वाले रंजीत जैसे कलाकारों को किसी सोसायटी में रहने के लिए चरित्र प्रमाण पत्र देना पड़ता था, बेचारे असल जिदगी के भी विलेन बन गए थे. उस ज़माने में अगर कोई हीरो विलेन का रोल करले तो करियर चौपट समझो. पर अब हालात उलट हैं. फिल्म का विलेन हीरो पर इस कदर भारी पड़ता है कि अवार्ड समेत दर्शकों की तालियाँ भी बटोर ले जाता है. बीते सालों में रिलीज फिल्मों के पैटर्न को देखें तो हीरो की गुडमैन इमेज पर बैडमैन भारी रहा है. शायद इसलिए अब नायक की भूमिकाओं में आते रहे एक्टर विलेन का रोल बड़े मजे से करते हैं.

हीरो विलेन का फार्मूला ध्वस्त :

फिल्मों में हीरो और विलेन की विभाजन रेखा अगर किसी ने तोड़ी है तो वह है समानांतर सिनेमा. मुख्याधारा के सिनेमा में जहाँ हीरो-विलेन का फार्मूला प्योर ब्लैक एंड व्हाइट शेड पर था तो वहीँ समानान्तर सिनेमा में हीरो और विलेन के शेड्स ग्रे थे. खामोश, अर्धसत्य, पार, आक्रोश, भूमिका, एक रुका हुआ फैसला, मंथन, मंडी जैसी फिल्मों में हीरो और विलेन के बीच का फर्क बेहद धुंधला है. इनमें नकारात्मक किरदार में वे एक्टर नजर आये जो आमतौर पर सकारात्मक भूमिकाओं के लिए जाने जाते थे. मसलन अमोल पालेकर ने खामोश और भूमिका में निगेटिव किरदार से सबसे ज्यादा चौंकाया. फिल्म बदलापुर तो फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि विलेन कौन है कौन हीरो है. इस तरह हीरो विलेन की विभाजन रेखा को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई इस नए सिनेमा ने. देखतेदेखते मुख्यधारा की फिल्मों के भी पुराने फॉर्मूले ध्वस्त होते चले गए. प्रभावशाली कहानी और तगड़े किरदार अहम होते गए. आज के दौर के फिल्मकार भी अधिक प्रयोगधर्मी हैं और कलाकार भी. यही कारण है कि हीरो बेहिचक विलेन के रोल कर लेते हैं. दरअसल निगेटिव के बहाने हीरो के मुकाबले विलेन के किरदार के ज्यादा शेड्स होते हैं. जो उसे निगेटिव रोल करने के लिए मजबूर करते हैं.

अभिनेता राणा दुगाबती बताते हैं, बाहुबाली की कहानी जब डायरेक्टर राजामौली सर ने मुझे फिल्म की कहानी बताई तो मुझे विलेन का रोल हीरो से ज्यादा अच्छा लगा. फिल्म बाहुबली में विलेन का किरदार निभाने के बाद मैंने महसूस किया कि हर एक्टर को अपने करियर में विलेन का रोल करना चाहिए.

विलेन चला, हीरो पिटाः

आमिर खान जब विलेन बनकर धूम 3 में बैंक लूटते हैं ताे फिल्म के हीरो को दर्शकों ने मिनटों में भुला दिया, वह फिल्म अर्थ में भी निगेटिव शेड में आ चुके हैं. जॉन अब्राहम ने रेस और शूटआउट एट वडाला में कुख्यात अपराधी मान्या सुर्वे का किरदार कर खूब वाहवाही बटोरी. खिलाड़ी कुमार भी रजनीकांत के साथ फिल्म रोबोट के सीक्वल में विलेन के अवतार में नजर आयेंगे. इसे पहले वह वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा में कथित तौर पर दाउद की भूमिका में थे और फिल्म अजनबी के निगेटिव रोल ने तो उन्हें अवार्ड भी दिलाये. विवेक ओबराय का करियर ही फिल्म कम्पनी से बतौर विलेन स्टार हुआ. शाहरुख खान का तो करियर ही बैडमैन किरदारों से बना है. उनकी फिल्में मसलन बाजीगर, डर, अंजाम और डॉन उनकी खलनायक छवि के लिए जानी जाती हैं. इन फिल्मों के हीरो कौन थे, किसी को याद नहीं.

ऐसी ही अग्निपथ में संजय दत्त ने कांचा चीना का निगेटिव रोल कर दर्शकों को चौंका दिया. वह तो फिल्म खलनायक में बैडमैन बनकर बनकर बेस्ट एक्टर का पुरस्कार पा चुके थे. जबकि इस्पेक्टर राम की आदर्श नायक वाली भूमिका में जैकी श्रोफ अनदेखे रह गए. विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म परिंदा में नाना पाटेकर ने साइको विलेन के किरदार में जान फूँक  दी और दर्शक अनिल कपूर को भूल गए. फिल्म ऐतराज में प्रियंका का विलेन अवतार करीना कपूर पर भारी पड़ा. इनके अलावा अजय देवगन, इमरान हाशमी, वरुण धवन, नवज़ुदीन, सैफ अली खान से लेकर रेखा, काजोल, मनीषा और बिपाशा जैसे कलाकार जब भी परदे पर बैडमैन बनें है, फिल्म का हीरो पिटा है.

बड़े दिलचस्प बात है कि पचास के दशक में प्रेम नाथ ने कई फिल्मों में नायक की भूमिका निभाई और इनमें कई हिट भी रहीं, लेकिन उन्होंने नायिकाओं के पीछे पेड़ों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हुए नगमें गाना रास नहीं आया और उन्होंने नायक की भूमिका निभाने की तमाम पेशकशों को नामंजूर कर दिया. इसके बदले में उन्होंने खलनायक की भूमिकाएं निभाने को तरजीह दी .

बदलते सामाजिक सरोकारः

दरअसल फिल्में समाज का आइना होती हैं. समाज जिस तरह बदलता है दर्शको में भी बदलाव आता है. अब  मां मुझे नौकरी मिल गयी, बहन की शादी के लिए पैसे जोड़ रहा हूँ, ईमानधर्म से ऊपर कुछ नहीं होता है, सत्यकाम का वंशज हूँ और इंसानियत की बातें करने वाले नायकों का मजाक बनता है और सिस्टम के साथ खिलवाड़ कर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबने वालों को रॉबिनहुड बनाकर दबंग का तमगा दिया जाता है. चूंकि निगेटिव  किरदार दर्शकों के दिमाग में जल्दी बस जाते हैं. इसलिए इन्हें हाथोंहाथ लिया जाता है. जब विलेन सिगरेट का कश फूंकते हुए क्राइम सिंडिकेट का सरगना बन जाता है तो वह दयावान, डी, गौडमदर, वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई और चार्ल्स सरीखा का नायक बन जाता है. अब जंजीर का एंग्री यंग मैन नहीं अब तक छप्पन का एनकाउंटर किंग दया नायक का जमाना है. यही वजह है कि वरुण धवन, श्रद्धा कपूर और प्रियंका चोपड़ा जैसे कलाकर निगेटिव रोल करने के लिए उत्सुक रहते हैं.

समाज में अमीरी और रॉयल जिन्दगी जीने वाले को नायक समझा जा रहा है. विजय माल्या किस तरस से पैसे कम रहा है, इस बात पर कोई ध्यान नहीं देता, उसकी रंगीन लाइफ और मॉडलों के साथ मौजमस्ती की छवि ने उसे भी नायक बना दिया तो फिर फिल्मों में नायक भी ऐयाश और क़ानून तोड़ने वाला दिखता है. सरेअाम कानून की आँखों में धूल झोंककर धूमनुमा बैंक लूटने वाले नायक की नक़ल कर समाज में न जाने कितने सिरफिरे इसी तर्ज पर अपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. आसाराम बापू जैसे न जाने कितने तथाकथित साधू संत हैं जो अपने अपराधों एक लिए जेल में बंद हैं. इसके बावजूद उनकी तस्वीरों की पूजा लाखों घरों में हो रही है. पैरवी के लिए अदालतों के बाहर उनके भक्तों की भीड़ देखकर अंदाजा हो जाता है कि समाज में नायक की दरकार किसी को नहीं है. सबको विलेन ही टेम्प्टिंग लगता है.

कुछ ख़ास विलेनः

  1. बेटमैन का जोकर
  2. जेसिका जोन्स का पर्पल मैन
  3. शोले का गब्बर
  4. ओमकारा के लंगड़ा त्यागी
  5. कहानी का बॉब विश्वास
  6. हनीबेल लेक्टर का साइको
  7. इनग्लॉरियस बास्टर्ड्स का कर्नल  डेयरडेविल्स का विल्सन
  8. मिस्टर इंडिया का मोगेंबो
  9. राम लखन का बैड मैन केसरिया     
  10. कालीचरण का लायन
  11. संघर्ष का लज्जा शंकर पाण्डेय

कोहली पर लगा 12 लाख रुपये का जुर्माना

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरु के कप्तान विराट कोहली पर राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स के खिलाफ आईपीएल के मैच के दौरान धीमी ओवरगति के लिये 12 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया है.

क्या है आईपीएल का आधिकारिक बयान?

आईपीएल के एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के कप्तान विराट कोहली पर जुर्माना लगाया गया है, चूंकि राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स के खिलाफ मैच में उनकी टीम की ओवरगति धीमी थी. चूंकी धीमी ओवरगति के मामले में आईपीएल की आचार संहिता के तहत यह कोहली का पहला अपराध था इसलिए उन्हें 12 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया है.

 

 

पोर्न स्टार से बॉलीवुड स्टार बनी सनी लियोनी अब नए रोल में

अभिनेत्री सनी लियोनी ने बॉलीवुड में अपने अभिनय से लोगों के दिलों को जीता है और अब वह लेखिका के रूप में भी अपने करियर में नई भूमिका निभाने को तैयार हैं.

सनी ने ‘स्वीट ड्रीम्स’ नामक एक किताब लिखी है जिसमें 12 लघु कहानियां है.मस्तीजादे की अभिनेत्री ने बताया कि लेखन की बात उनके दिमाग में कभी नहीं थी लेकिन उनके पास कुछ विचार थे जिन्हें उन्होंनें कलमबद्ध नहीं किया था.

 सनी ने एक साक्षात्कार में बताया, ‘मेरे दिमाग में लेखन नहीं था. मैं वर्षों से अलग-अलग कहानियों और विचारों के बारे में सोच रही थी लेकिन वास्तव में मैंने कभी कुछ लिखा नहीं. यह पहली बार है जब मैंने इस तरह का कुछ लिखा है. जब में छोटी थी तो मैं एक डायरी रखती थी, मेरी मां ने इसे पढ़ा और उसके बाद मैंने डायरी नहीं लिखी.’

34 वर्षीय अभिनेत्री ने बताया कि जब प्रकाशन गृह जगरनॉट बुक ने 12 लघु कहानियों के लेखन के लिए उनसे संपर्क किया तो उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया और इसे तीन महीनों के भीतर पूरा किया.

देखिए 7 घंटों का फिल्म का ट्रेलर…!

आपने देखा होगा किसी भी बॉलीवुड फिल्म का ट्रेलर ज्यादा से ज्यादा 2-3 या 4 मिनट का होता है. अधिकतर फिल्मों का ट्रेलर 3 मिनट के अंदर ही सिमट जाता है. लेकिन हम आपसे कहे कि हॉलीवुड की एक ऐसी फिल्म है जिसका ट्रेलर ही 7 घंटों का है तो आप सोच में पड़ जाएंगे के पूरी फिल्म कितने देर की होगी.

फिल्म का नाम एंबीयंस है जिसका दूसरा ट्रेलर जारी किया गया है.आपको सबसे ज्यादा हैरानी तब होगी जब आप सोच रहें होंगे कि 7 घंटे का फिल्म का ट्रेलर है तो फिल्म दो-चार दिनों में पूरी होगी. लेकिन ऐसा नहीं है. यह फिल्म पूरे एक महीने में खत्म होगी. दावा किया जा रहा है कि फिल्म की कुल अवधि 720 घंटे की होगी. क्योंकि फिल्म का ट्रेलर ही 7 घंटे 20 मिनट का है तो फिल्म (24X30=720) घंटे की होगी. 

फिल्म को स्वीडन के एक निर्देशक बना रहे हैं. यह दुनिया में अबतक की सबसे लंबी फिल्म होगी जिसका  ट्रेलर ही 439 मिनट यानी सात घंटे 20 मिनट का है. डायरेक्टर आंद्रेस वेबर्ग ने अपनी इस फिल्म का छोटा ट्रेलर भी पिछले साल जारी किया था जो 72 मिनट का था पर अब वे इसका बड़ा ट्रेलर 2018 में जारी करने जा रहे हैं जो सात घंटों से ज्यादा का होगा.

फिल्म की कहानी दो परफॉर्मेंस आर्टिस्टों के संबंधों पर आधारित है जो दक्षिणी स्वीडन में समंदर किनारे मिलते हैं वहीं पर पूरी फिल्म बन जाती है. बताया जा रहा है कि फिल्म सिंगल शाट में तैयार की गई है और इसमें कोई भी कट नहीं होगा. यानी इसे शूट करना आसान काम नहीं होगा. फिलहाल फिल्म के 31 दिसंबर 2020 को रिलीज होने की उम्मीद है. साथ ही फिल्म की कुल अवधि पर सस्पेंस अब भी कायम है.

दिसंबर तक हो सकती है रिलायंस जियो की 4G सर्विस लॉन्च

शेयरिंग और ट्रेडिंग पैक्ट के बाद अनिल अंबानी की कंपनी आरकॉम और मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो आपस में स्पेक्ट्रम साझा करेंगी. रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल अंत तक कंपनी रिलायंस जियो के 4जी सर्विस की सॉफ्ट लॉन्चिंग करेगी और इस साल दिसंबर तक इसका कमर्शियल लॉन्च किया जाएगा.

हो रही देरी का खुलासा

रिलायंस इंडस्‍ट्रीज ने उसकी 4जी सर्विस में हो रही देरी के बारे में खुलासा किया है. कंपनी ने बताया कि वह रिलायंस कम्यूनिकेशंस (आरकॉम) के साथ स्‍पेक्‍ट्रम इंटीग्रेशन होने का इंतजार कर रही है, इसके अलावा कंपनी 4जी सर्विस को लॉन्‍च करने से पहले अपने यूजरबेस को भी बढ़ाना चाहती है.

जियो इंफोकॉम का लक्ष्‍य

रिलायंस जियो के स्‍ट्रेटजी एंड प्‍लानिंग हेड अंशुमान ठाकुर ने बताया कि रिलायंस जियो इंफोकॉम का लक्ष्‍य कमर्शियल लॉन्‍च से पहले 90 फीसदी जनसंख्‍या को कवर करने का है और यह अभी तक तकरीबन 70 फीसदी के स्‍तर पर पहुंच चुकी है. उन्‍होंने कहा कि अभी हम पांच लाख यूजर्स के साथ रिलायंस जियो की टेस्टिंग कर रहे हैं और इस सर्विस को कमर्शियली लॉन्‍च करने से पहले हम इसमें कुछ लाख लोगों को और जोड़ना चाहते हैं.

कब होगी कमर्शियली लॉन्‍च

पहले महीने में ही जियो का औसत डाटा उपभोग प्रति यूजर 18 जीबी को पार कर चुका है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है. इस दौरान औसत वॉइस उपयोग 250 मिनट रहा. कंपनी ने कहा है कि वह दिसंबर तक अपनी इस सर्विस को पूरी तरह से लॉन्‍च कर देगी. ठाकुर ने कहा कि अभी बीटा टेस्‍ट चल रहा है और कमर्शियल लॉन्‍च की तारीख अभी तय नहीं की गई है. उन्‍होंने कहा कि कमर्शियल लॉन्‍च से पहले स्‍पेक्‍ट्रम इंटीग्रेशन बहुत जरूरी है और अभी हम इस पर पूरा ध्‍यान दे रहे हैं. रिलायंस जियो ने कहा कि इस सेवा को शुरू करने में देरी के पीछे कोई तकनीकी खामी नहीं है. कंपनी ने यह भी कहा कि नेटवर्क को अनुकूलतम बनाने में समय लग रहा है और वह सुनिश्चित करना चाहती है कि उसकी सेवा बाधारहित और बेहतर हो.

सर्किल एरिया

रिलायंस जियो  ने आरकॉम के साथ 17 सर्किल में 800 मेगाहर्ट्ज स्‍पेक्‍ट्रम साझा करने का समझौता किया है. इसमें से 9 सर्किल के लिए टेलीकॉम डिपार्टमेंट से अनुमति मिल चुकी है, यह सर्किल हैं मुंबई, उत्‍तर प्रदेश पूर्व, मध्‍य प्रदेश, बिहार, ओडिशा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, आसम और उत्‍तरपूर्व. इन सर्किल में स्‍पेक्‍ट्रम इंटीग्रेशन 15 दिन के अंदर पूरा हो जाएगा. हालांकि जियो और आरकॉम अपने नौ-सर्किल में स्‍पेक्‍ट्रम ट्रेडिंग सौदे के लिए टेलीकॉम डिपार्टमेंट की मंजूरी का इंतजार कर रहा है, जिसके जल्‍द ही मिलने की उम्‍मीद है. इसके बाद प्रमुख बाजार जैसे दिल्‍ली, कोलकाता, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्‍ट्र, पंजाब, यूपी ईस्‍ट, यूपी वेस्‍ट और पश्चिम बंगाल में 4जी सर्विस शुरू की जा सकेगी. मंजूरी के बाद आरकॉम अपने 4जी स्‍पेक्‍ट्रम के इस्‍तेमाल का अधिकार जियो को दे सकेगा.

यूपी के तीन निशानेबाज कोच बन सकते हैं अंतर्राष्ट्रीय जज

उत्तर प्रदेश के तीन कोच अब निशानेबाजी के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में जज बन सकेंगे. उत्तर प्रदेश शूटिंग टीम के प्रबंधक रोहित जैन ने आज बताया कि पश्चिम बंगाल के आसनसोल में अंतरराष्ट्रीय शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन की ‘बी जज लाइसेंस कोर्स’ की परीक्षा हुई थी. इसे रोहित जैन, आगरा के हिमांशु मित्तल और लखनऊ के फरीदुद्दीन ने उत्तीर्ण की है.  

उन्होंने बताया कि इस कोर्स को 36 लोगों ने पास किया, जिनमें से छह विदेशी और शेष भारतीय हैं. जैन ने बताया कि कोर्स के बाद चार परीक्षाएं ली गयीं. पहला स्थान मित्तल को मिला. दूसरे स्थान पर हिमाचल प्रदेश के विक्रांत राणा रहे. स्वयं मुझे तीसरा स्थान हासिल हुआ. पश्चिम बंगाल के अंकित ढल भी तीसरे स्थान पर रहे.

उन्होंने बताया कि इस परीक्षा को पास करने वाले कोच निशानेबाजी की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं मसलन ओलंपिक,  राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में निर्णायक की भूमिका निभा सकते हैं.

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