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चुनावी घोषणापत्र में शामिल होगें बच्चों के मुददे

वैसे तो उत्तर प्रदेश में विधनसभा चुनावों का समय आ रहा है. सभी राजनीतिक दल इसकी तैयार में लग गये है. उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी चुनावी तैयारी में जुट गया है. बाल आयोग ऐसे 50 बच्चों को तैयार कर रहा है जो अपने अधिकार और मुद्दों को लेकर जागरूक है. यह बच्चे अपनी मांगों को लेकर एक ड्राफ्ट तैयार कर रहे है. इसे लेकर यह बच्चे हर राजनीतिक दल के प्रमुखों लोगों से मिलेगे. बच्चों मांग वाले बिन्दुओं को चुनावी घोषणापत्रा में शामिल करने की मांग करेगे. उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ‘एवरी लाॅस्ट चाइल्ड मिशन’ पर काम कर रहा है. जिससे समाज के अंतिम बच्चे तक को उसका अधिकार दिलाया जा सके. इस मिशन में शामिल बच्चे बाल आयोग की अध्यक्ष जूही सिंह के साथ उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक से मिलने राजभवन गये. बच्चों ने अपना मांग पत्रा राज्यपाल को दिया.
 
बाल आयोग की अध्यक्ष जूही सिंह ने जब से अपना पदभार संभाला बच्चों को लेकर नयेनये काम करने में लगी रही. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्राी अखिलेश यादव के साथ बच्चों की बाल संसद का आयोजन किया. संसद डिपंल यादव के साथ बच्चों के न्यूट्रीशन, पोषण कार्यक्रम को आगे बढाया. जूही सिंह ने बाल संरक्षण गृहों का निरीक्षण करने के काम को पूरे प्रदेश में किया. जूही सिंह उत्तर प्रदेश के जिस शहर जाती थी वहां की संस्थाओं से मिलकर बच्चों की बेहतरी के लिये काम करती थी. कम समय में बाल आयोग की पूरी टीम के साथ बच्चों को एक मुकाम दिलाने का काम किया. ‘सेव द चिल्ड्रेन’ संस्था ने एक साल की सर्वे रिपोर्ट में पाया कि केवल राजधनी लखनउ में ही 10 हजार 771 स्ट्रीट चिल्ड्रेन है. इनमें 30 प्रतिशत लडकियां है. इनमें से 13 से 18 साल की बच्चियां हयूमन ट्रैफकिंग गिरोह के निशाने पर रहती है.
 
 
‘सेव द चिल्ड्रेन’ संस्था की अंजलि सिंह ने कहा कि इन बच्चों को समाज की मुख्यधरा में शामिल करना किसी चुनौती जैसा है.बाल आयोग की अध्यक्ष जूही सिंह ने कहा कि इतने सारे बच्चों को सडक पर होना चिंता का विषय है. मुख्यमंत्राी ने इसको संज्ञान में लिया है. सरकार बहुत सारी योजनाओं में इनको अधिकार देने का काम कर रही है. यह समस्या एक दिन की नहीं है.अगर पहली की सरकारों ने बच्चों के मुददो पर काम किया होता तो हालात यह नहीं होते. जूही सिंह ने ‘एवरी लाॅस्ट चाइल्ड मिशन’ का ब्रांड एम्बेंसडर मिस ग्रैंड इंटरनेशनल वर्तिका सिंह को बनाया है. राज्यपाल ने बाल आयोग की इस पहल की सराहना की. बाल आयोग से तैयार 50 बच्चे अपनी मांगों को लेकर चुनाव के पहले सभी नेताओं से मिलकर बच्चों की मांग को चुनावी मुददा बनाने का दबाव बनायेगे.
                            
 

कृषि वानिकी खेत की मेड़ों पर पेड़ लगाएं ज्यादा कमाएं

वक्त के साथसाथ खेती का नक्शा भी बदल रहा है. लोग ज्यादा और जमीन कम, यानी पैदावार घटने के पूरेपूरे आसार. ऐसे में कृषि वानिकी एक बेहतर रास्ता साबित हो सकता है. इस में खेती के साथसाथ बागबानी का फायदा भी मिल जाता है और आमदनी में भी इजाफा हो जाता है. कहावत है कि पैसे पेड़ों पर नहीं लगते, लेकिन अगर नए तरीकों से आम, अमरूद, जामुन, बेर, आंवला, सेब, लीची, नीबू, बेल, शहतूत व शीशम आदि की उम्दा किस्मों के पेड़ लगाए जाएं तो भरपूर कमाई की जा सकती?है. गांवों व खेतों का तिहाई हिस्सा अगर पेड़ों से भरा हो तो माहौल व आबोहवा भी अच्छी बनी रहती है.

दरअसल बदलते जमाने में खेतीबारी के पुराने तौरतरीकों के सहारे किसानों का गुजारा नहीं होता. लिहाजा आमदनी में इजाफा करने के लिए नई जुगत करना लाजिम है. मसलन फसलें उगाने के साथसाथ इलाकाई पेड़ लगाना काफी फायदे का सौदा है. इसलिए राज्यों व केंद्र की सरकारें कृषि वानिकी को बढ़ावा दे रही हैं. कृषि वानिकी का मतलब व मकसद फसलों के साथ पेड़ लगा कर जमीन का बेहतर इस्तेमाल करना है, ताकि कम जमीन में भी ज्यादा आमदनी मुमकिन हो सके. कृषि वानिकी के तहत खेतों के आसपास खाली पड़ी जमीन व मेड़ों आदि पर पेड़ उगाए जाते हैं, साथ ही साथ बेहतर ढंग से फसलों, पेड़ों व जानवरों का इंतजाम किया जाता है. कृषि वानिकी वह जरीया है, जिस से किसी हद तक जंगलों के अंधाधुंध कटान की भरपाई हो सकती है. इसी की बदौलत घटते पेड़ों को बचाया व बढ़ाया जा सकता?है. साथ ही साथ किसान भी कृषि वानिकी की राह अपना कर खुद को माली तौर पर मजबूत कर सकते?हैं, क्योंकि लकड़ी, चारे व ईंधन आदि की मांग लगातार बहुत तेजी से बढ़ रही है. इस के अलावा कागज, लुगदी, माचिस, प्लाईवुड व नई तकनीक से बनी कंपोजिटवुड यानी बनावटी लकड़ी आदि के लिए पूरी जमीन का बेहतर इस्तेमाल करना जरूरी?है. जिस रफ्तार से पेड़ काटे जा रहे?हैं, उतने पेड़ लगाए नहीं जा रहे?हैं. लिहाजा जंगलात के महकमों ने सामाजिक वानिकी के साथ कृषि वानिकी को भी खास अहमियत देना तय किया है.

अहम मुद्दा

केंद्र सरकार के किसान कल्याण मंत्रालय ने किसानों को बढ़ावा देने के लिए एग्रो फारेस्ट्री यानी कृषि वानिकी को राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) में शामिल कर लिया?है. इसी गरज से पिछले दिनों राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति 2014 जारी की गई थी. इस नीति के तहत देश भर में सभी खेतों की मेड़ों पर पेड़ लगाने का मकसद तय किया गया है. दरअसल परंपरागत खेती में प्रति हेक्टेयर लागत बढ़ने से किसानों की आमदनी कम हो रही है. लिहाजा आम फसलें, फूल, सब्जी, मसाले या जड़ीबूटी आदि के साथ मेड़ों पर या खेतों के अंदर लाइनों में पेड़ लगाए जा सकते?हैं. लेकिन ध्यान रहे कि अपने इलाके की मिट्टी व आबोहवा के मुताबिक अच्छी बढ़वार वाली किस्मों के पेड़ ही लगाने चाहिए. इस के लिए सब से पहले बागबानी या जंगलात महकमे से अपने इलाके के लिए मुफीद पेड़ों के बारे में तकनीकी जानकारी व ट्रेनिंग लें. उस के बाद माकूल जगह चुनें. बीज हों तो उन्हें थैलियों में उगाएं या जंगलात महकमे की सरकारी नर्सरी से पौध लाएं. कृषि वानिकी के अलावा तजरबेकार किसान खेत के किसी हिस्से में नर्सरी लगा कर पौध बेचने का काम भी कर सकते हैं.

जानकारी हासिल करें

आमतौर पर किसान यूकेलिप्टस, पौपलर, सुबबूल, शीशम, बांस, आंवला, सागौन व जैट्रोफा आदि के पेड़ लगाते?हैं. वैसे नई किस्मों के पेड़ व उन्हें लगाने की तकनीकों पर वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून व राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के माहिरों ने काफी खोजबीन की है. उन्होंने कम लागत में उम्दा पेड़ लगा कर धन कमाने के कई नायाब तरीके निकाले?हैं. उन्हें अपना कर फायदा उठाया जा सकता है. मसलन बर्मा ड्रेक नाम के पेड़ किसानों के लिए सोने की खान साबित हो सकते हैं. इन की छंटान से जलाऊ लकड़ी व तैयार पेड़ से उम्दा किस्म की कीमती इमारती लकड़ी मिलती?है. इस के बीजतेल का इस्तेमाल साबुन बनाने में व दूसरे हिस्सों का इस्तेमाल दवाएं आदि बनाने में किया जाता है. इस बारे में तजरबेकार जानकारों से सलाहमशविरा किया जा सकता है. कृषि वानिकी को?बढ़ावा देने, उस पर खोजबीन करने व किसानों को बीज, पौध, सलाह व ट्रेनिंग देने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक केंद्र झांसी (उत्तर प्रदेश) में काम कर रहा है. इस केंद्र के माहिरों ने किसानों के लिए बहुत सी ऐसी फायदेमंद तकनीकें निकाली हैं, जिन से खेती के साथ पेड़ लगा कर या बागबानी कर के आमदनी में खासी बढ़ोतरी की जा सकती है.

खेती संग पेड़ों से फायदे

बाढ़ व सूखे आदि में फसल खराब होने से हुए नुकसान की पूरी भरपाई तो पेड़ नहीं कर पाते, लेकिन फिर भी वे अपने उगाने वाले किसानों को सहारा जरूर देते हैं. पेड़ों से जलावन मिल जाता है, लिहाजा गोबर ईंधन बनने से बच जाता है व खाद बनाने में काम आता है. ऐसे में महंगी रासायनिक खाद कम डालनी पड़ती है. पेड़ों से खेती में काम आने वाले औजारों व इमारतों के लिए लकड़ी व जानवरों के लिए चारा मिलता है. साथ ही पेड़ों की गिरी हुई पत्तियों को सड़ा कर खाद बनती है. खेतों के आसपास पेड़ होने से कई फायदे हैं. मसलन पेड़ तेज हवाओं से फसलों को बचाते हैं. पेड़ों पर मधुमक्खियों को छत्ते लगाने की जगह आसानी से मिल जाती है. उन से मोम व शहद मिलता है. साथ ही जिन फसलों पर मधुमक्खियां बैठती हैं, उन में परागण अच्छा होता है. लिहाजा उपज बढ़ती है. पेड़ की जड़ों से जमीन का कटाव रुकता है और मिट्टी व पानी की बचत होती है. साथ ही पेड़ों की बिक्री से किसानों को एक मुश्त पैसा मिल जाता है. उत्तर प्रदेश में तैनात एक वन अधिकारी के मुताबिक किसानों को बगैर सोचेसमझे नहीं, बल्कि खासतौर पर ऐेसे पेड़ लगाने चाहिए, जो तेजी से बढ़ने वाले हों, ताकि कम वक्त में ही किसान उन से पक्की आमदनी हासिल कर सकें. पेड़ों की जड़ें लंबीगहरी और उन के तने सीधे होना बेहतर होता?है.

खेती महकमे के एक अफसर ने बताया कि जिन पेड़ों के बीज 2 दल के होते हैं, उन्हें उगाना किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद रहता है, क्योंकि ऐसे पेड़ जमीन में कुदरती नाइट्रोजन जमा करते हैं. उन से मुफ्त में मिली नाइट्रोजन फसलों के काम आती है. औषधीय पौधों से भी आमदनी ज्यादा होती है. इन की पौध वन विभाग की नर्सरी से ली जा सकती है. जनवरी में किसान पौपलर की पौध लगा सकते हैं. जनवरी में ही खैर, सिरस, आंवला, हरड़, सागौन, शीशम, सुबबूल, कदंब व आकाशमोनी के बीज जमा कर सकते हैं. पाली बैग में बीज बोने के लिए 4 हिस्से छनी मिट्टी में, 2 हिस्से बालू व 1 हिस्सा गोबर की सड़ी खाद मिलाएं व 4-6 इंच चौड़ी, 7-9 इंच लंबी थैली के 3 चौथाई हिस्से तक भरें. पौध रोपते वक्त लाइनों व पौधों की दूरी पेड़ की किस्म के हिसाब से 1 से 6 मीटर तक रखें.

जानकारी रखें

हालांकि राज्यों में जंगलात के महकमे वानिकी, सामाजिक वानिकी व कृषि वानिकी को बढ़ाने देने की स्कीमों के तहत तकनीक, बीज व पौध आदि मुहैया कराने और जंगली जानवरों से हुए नुकसान का मुआवजा देने आदि की सहूलियतें भी देते?हैं. यह बात अलग है कि ज्यादा किसानों तक उन की जानकारी नहीं पहुंचती. चूंकि सरकारी मुलाजिम किसानों के फायदे व नियमकायदे की बातें हर किसी को आसानी से नहीं बताते, लिहाजा किसानों का जागरूक रहना बेहद जरूरी?है. ज्यादातर किसान नहीं जानते कि उत्तर प्रदेश में मगरमच्छ, घडि़याल, बाघ, भेडि़या, हाथी व तेंदुआ आदि जंगली जानवरों द्वारा जख्मी किए गए लोगों को 1 लाख रुपए, मारे गए लोगों के वारिसों को 5 लाख रुपए व गाय, भैंस, घोड़ा, खच्चर, ऊंट या बैल आदि पालतू जानवरों द्वारा मारने पर 40 हजार रुपए तक मुआवजा वन विभाग द्वारा दिया जाता है.

जंगली जानवर अगर किसानों की फसल को नुकसान पहुंचाते?हैं, तो खेती या गन्ना महकमे से तय रकम किसानों को मुआवजे में दी जाती है. यदि जंगली जानवरों से किसानों के मकान को नुकसान होता?है, तो 5 से 25 हजार रुपए तक का मुआवजा उत्तर प्रदेश के वन विभाग से पीडि़तों को दिया जाता है, बशर्ते 24 घंटे में ऐसी घटना की सूचना वन विभाग के नजदीकी दफ्तर को दे दी जाए.

इस स्कीम में एक अजीब पेंच है कि इस में केवल जंगली हाथियों व गैंडों से हुआ नुकसान ही माना जाता है, जबकि नीलगाय, जंगली सुअर, बंदर फसलों को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. लिहाजा उन्हें भी स्कीम में शामिल करना जरूरी है, लेकिन ज्यादातर किसानों को ऐसी इमदाद व मुआवजे आदि की भनक तक नहीं लगती. सरकारी महकमों के ज्यादातर मुलाजिम अपनी जेबें भरने के लिए किसानों की मदद करने की बजाय उन्हें तंग करते हैं.

पेड़ों का कटान

मेरठ के किसान रामपाल का कहना?है कि वे चाह कर भी अपने खेतों के आसपास पेड़ नहीं लगाते, क्योंकि राज्य सरकारों ने निजी पेड़ काटने के नियम बड़े टेढ़े बना रखे हैं. पेड़ काटने या हटाने की मंजूरी वन विभाग से लेनी पड़ती है. लकड़ी लाने व ले जाने के लिए भी अलग से परमिट लेना पड़ता है, जो घूस दिए या धक्के खाए बगैर आसानी से नहीं मिलता.

बहुत से किसान नहीं जानते कि उत्तर प्रदेश में पेड़ बचाने के कानून 1976 और वन उपज नियमावली 1978 को आसान बना कर कई बदलाव किए गए हैं. आम, नीम, पीपल, बरगद, महुआ व साल के कटान पर साल 2020 तक पाबंदी है. इन्हें काटने की मंजूरी के लिए अर्जी देने के 35 दिनों तक जवाब न मिलने पर किसान पेड़ काट सकते?हैं.

इन के अलावा उत्तर प्रदेश में अगस्त, अरू, उत्तीस, कैजूरिना, जंगल जलेबी, पापुलर, फराश बकाइन, विलायती बबूल, बबूल, सूबबूल, अयार, कठबेर, यूकेलिप्टस, रोबिनिया, बाटल, विलो, सिरिस, खडि़क, जामुन, ढाक, पेपर मलबरी, बेर, सहजन, शहतूत व आंवले सहित 28 किस्म के पेड़ काटने व उन्हें लाने ले जाने पर पाबंदी नहीं?है. ऐसी बातों की जानकारी किसानों को जरूर होनी चाहिए.

बिक्री नहीं प्रोसेसिंग करें

पेड़ तो हर कोई उगा सकता?है, लेकिन असल बात है उस की मार्केटिंग करना. तैयार पेड़ों की बिक्री किसानों को इस तरह करनी चाहिए कि उन्हें उन के पेड़ों की वाजिब कीमत ही नहीं भरपूर मुनाफा भी मिले. इस के लिए किसी खरीदार कंपनी से करार भी किया जा सकता है, क्योंकि माचिस व प्लाई बोर्ड आदि बनाने वाली कंपनियां किसानों से पहले ही पेड़ खरीद का कांट्रैक्ट कर लेती हैं.

इस के अलावा राज्यों के वन निगम भी तयशुदा कीमतों पर बहुत से पेड़ों की खरीद करते?हैं. लकड़ी की कीमत पेड़ों की किस्म, उन की क्वालिटी, गोलाई व ऊंचाई के मुताबिक मिलती?है. लेकिन ज्यादातर किसान कटान, चीरान व ढुलान आदि के झंझटों से बचने के लिए खड़े पेड़ों का ही सौदा कर देते हैं. बहुत से किसान अपने पेड़ों को कटवा कर खुद डिपो या कारखानों तक ले जाते हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर व सहारनपुर आदि जिलों में पापुलर की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है, लेकिन किसान खुद अपनी लकड़ी की प्रोसेसिंग नहीं करते. इस से उन्हें कृषि वानिकी का पूरा फायदा नहीं मिल पाता. वे अपने पेड़ों के तने कटवा कर ट्रैक्टर ट्राली में भर कर उन्हें प्लाईवुड व बोर्ड आदि बनाने वाले कारखानों को बेचने के लिए ले जाते हैं.

किसानों को चाहिए कि वे तकनीक सीखें व अपने पेड़ों की कीमत व अपनी आमदनी बढ़ाएं. वे अकेले या मिल कर खुद अपनी उत्पादन इकाई लगाएं और प्लाई, बोर्ड, माचिस व लकड़ी के चम्मच व बरतन आदि बनाएं. वे लकड़ी आधारित सजावटी चीजें बनाने का उद्योग भी लगा सकते?हैं. इस से उन्हें ज्यादा फायदा होगा. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद व रामपुर में ऐसी बहुत सी इकाइयां कामयाबी से चल रही हैं. किसान उन्हें देखें, काम सीखें व आगे आएं. इस बारे में ज्यादा जानकारी इस पते से ली जा सकती है: निदेशक, राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान केंद्र, पाहुज बांध, झांसी 284003, उत्तर प्रदेश.

 

 

 

अब जनरल भी एससी, एसटी, ओबीसी के समान

 

गुजरात सरकार ने राज्य दिवस के मौके पर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है. इस फैसले के बाद गुजरात देश का पहला राज्य बन गया है जहां आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण का फैसला किया गया है.

सरकार इसके लिए ऑर्डिनेंस लेकर आएगी. सरकार का ऑर्डिनेंस आने से शिक्षा और नौकरी में सवर्णों को भी लाभ मिलेगा. इस आदेश का फायदा पाटीदार समुदाय को भी मिलेगा जो आरक्षण की मांग को लेकर काफी दिनों से आंदोलन कर रहे हैं.

यह फैसला बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल की मौजूदगी में लिया गया. गुजरात सरकार के मंत्री विजय रूपानी ने बताया कि ऐसे परिवार जिनकी सालाना आय 6 लाख से कम है वह इस आरक्षण के दायरे में होंगे. जनरल कैटिगरी में आने वाले आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को भी आरक्षण का मिलेगा. 1 मई को इस पर नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा.

हम आपको बता दें कि सबसे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आर्थिक आधार पर आरक्षण की पैरवी की थी. अब गुजरात से इसकी शुरुआत ने एक अलग तरह का संकेत देने का काम किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह क्षेत्र में इस फैसले के लागू होने के बाद देश में इसकी दिशा तय होगी.

किसान की कहानी उन्हीं की जबानी

ग्राम मिलक रावली निवारी के 55 साल के किसान देवेंद्र सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद के कृषि वैज्ञानिकों से मधुमक्खी पालने के तरीकों के बारे में साल 2005 में जानकारी प्राप्त की और एक मधुमक्खी पालने का केंद्र शुरू किया. उस केद्र में पहले साल मधुमक्खी के 5 बक्से रखे. 1 बक्से की कीमत 2 हजार रुपए फ्रेम के साथ थी.

उन्होंने सिर्फ 10 हजार रुपए में मधुमक्खी पालने का काम शुरू किया. इस काम से देवेंद्र सिंह को 15 हजार रुपए की कीमत का शहद प्राप्त हुआ और साल 2006 में उन्होंने 10 बक्से तैयार किए. उन 10 बक्सों से देवेंद्र सिंह ने 36 हजार रुपए का शहद बेचा. साल 2007 में उन्होंने 30 बक्से तैयार किए, जिन से उन को 72 हजार रुपए की आमदनी हुई थी.

मधुमक्खी पालने के काम से?ज्यादा आमदनी देख कर उन की इस काम में रुचि बढ़ गई. साल 2008 में उन्होंने 60 बक्से तैयार किए, जिन से उन्हें 1 लाख, 36 हजार रुपए की अमादनी हुई थी. साल 2009 में उन्होंने 120 बक्से तैयार किए. उस से उन्हें 2 लाख 88 हजार रुपए की आमदनी हुई.

देवेंद्र सिंह ने बताया कि साल 2009 में 2 लाख 88 हजार रुपए की आमदनी होने के बाद उन के मधुमक्खी के बक्से चोरी हो गए थे. केवल 10 बक्से बचे थे. साल 2010 में देवेंद्र सिंह को काफी नुकसान हुआ, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने मधुमक्खी पालने के काम को फिर से शुरू किया. आज देवेंद्र सिंह के पास 150 बक्से तैयार?हैं, जिन से उन्हें करीब 3 लाख रुपए की आमदनी होती है. देवेंद्र सिंह ने दावा किया है कि इस काम में कम खर्च से?ज्यादा आमदनी होती है. यह काम बेरोजगारों के लिए बहुत ही फायदेमंद है.

कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद के वैज्ञानिकों से देवेंद्र सिंह ने मधुमक्खी पालने के तरीके के साथ पशु पालने की जानकारी भी साल 2005 में ली थी. पशु पालने के तरीके की जानकारी के बाद देवेंद्र ने 1 गाय व 1 भैंस पालना शुरू किया. वैज्ञानिकों से मिली जानकारी व पशुओं के रखरखाव की जानकारी का इस्तेमाल कर के पशुओं के दूध के धंधे से उन्हें हर साल 65 हजार रुपए से?ज्यादा की आमदनी हुई. देवेंद्र सिंह के बड़े बेटे गौरव इस काम में उन की मदद करते?हैं.

देवेंद्र सिंह ने बताया कि उन के पास 1 हेक्टेयर जमीन?है. उस जमीन में वे खरीफ व रबी की फसल में मक्का (हरा चारा), उड़द, गेहूं व गन्ने की खेती करते हैं. उन्होंने केंचुआ खाद तैयार करने का काम भी शुरू किया है.

देवेंद्र सिंह ने केंचुए पालने की जानकारी कृषि वैज्ञानिकों से साल 2008 में ली थी और अपने खेत में केंचुआ खाद तैयार करने का काम शुरू किया था. उन्होंने कुल 5 हजार रुपए के केंचुए खरीद कर इस काम को शुरू किया. इस काम से उन्होंने 25 हजार रुपए के केंचुए बेचे और 60 हजार रुपए की केंचुआ खाद बेची, जिस में घर के पशुओं के गोबर की खाद का इस्तेमाल किया गया था.

साल 2009 में देवेंद्र सिंह ने 75 हजार रुपए के केंचुए और 80 हजार रुपए की केंचुआ खाद बेची?थी, जिस से उन्हें 67 हजार रुपए की कुल आमदनी हुई. साल 2010 में देवेंद्र सिंह ने 1 लाख 50 हजार रुपए के केंचुए और 1 लाख रुपए की केंचुआ खाद बेची?थी, जिस में उन्हें 1 लाख 62 हजार रुपए की आमदनी हुई थी. साल 2011 में देवेंद्र सिंह ने 2 लाख रुपए के केंचुए और 2 लाख 30 हजार रुपए की केंचुआ खाद बेची, जिस से उन्हें 2 लाख 42 हजार रुपए का फायदा हुआ.

साल 2012 में उन्होंने 2 लाख 50 हजार रुपए के केंचुए और 1 लाख 50 हजार रुपए की केंचुआ खाद बेची?थी, जिस से उन्हें 3 लाख 2 हजार रुपए की शुद्ध आमदनी हुई थी. साल 2013 में देवेंद्र सिंह ने 2 लाख 25 हजार रुपए के केंचुए और 1 लाख 80 हजार रुपए की केंचुआ खाद बेची थी, जिस से 2 लाख 97 हजार रुपए की कुल आमदनी हुई. साल 2014 में देवेंद्र सिंह ने 2 लाख 75 हजार रुपए के केंचुए और 2 लाख रुपए की केंचुआ खाद बेची, जिस से उन्हें 3 लाख 70 हजार रुपए का फायदा हुआ.

साल 2015 में देवेंद्र सिंह ने 1 लाख 25 हजार रुपए के केंचुए और 90 हजार रुपए की केंचुए खाद बेची, जिस से उन्हें 1 लाख 70 हजार रुपए की आमदनी हुई, जबकि उन के पास 500 क्विंटल केंचुआ खाद अभी बेचने के लिए रखी है.

देवेंद्र सिंह ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद उन के लिए एक वरदान साबित हुआ है, क्योंकि इस से पहले उन्हें जानकारी के लिए पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में जाना पड़ता था. देवेंद्र सिंह का कहना है कि फसलों के लिए बीज के रखरखाव, मिट्टी की जांच, अच्छे बीज, पशुपालन, मुरगीपालन, बकरीपालन, सुअरपालन के बारे में जानकारी किसानसभा द्वारा दी जाती है. वैज्ञानिक तरीके से खेती कर के उन की आमदनी दोगुनी हो गई है. उन का परिवार अब बहुत सुखी है.           

– डा. प्रमोद मडके, डा. अनंत कुमार (कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद)

खेती से जुड़े मई के अहम काम

तपिश से भरा मई का महीना हर किसी की हालत खराब कर देता है. हर वक्त तो एसी की छांव तले रहना मुमकिन नहीं होता, लिहाजा गरमी का कहर झेलना लाजिम है. वैसे?भी हिंदुस्तान का हर घर अभी एसी के दायरे में नहीं आता. और जब बात खेती के होनहारों यानी किसानों की हो, तब तो आराम हराम होता है. किसान गरमी के थपेड़े व लपट झेलते हुए बदस्तूर अपना कर्म निभाते रहते हैं और धरती का दामन चीर कर अनाज व अन्य फसलें उगाते रहते हैं.

इस साल मार्च का मौसम खेती व किसानों को रास नहीं आया था. बिन बुलाई बरसात ने मार्च में किसानों का?भट्ठा बैठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और मौसम की उलटपलट का आलम यह रहा कि अप्रैल में भी दबा कर गरमी पड़ी.

बहरहाल, मौसम व हालात के झमेले के बीच कर्मयोगी किसान हमेशा डटे रहते?हैं और उन के कामों का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता?है. पेश?है मई के दौरान किए जाने वाले खेती के कामों का एक बयोरा:

* गेहूं की कटाई की मुहिम खत्म होने के बाद खाली खेतों को अगली फसल के लिहाज से तैयार करना एक खास मकसद होता है.

* गेहूं के साथसाथ जई व जौ वगैरह फसलें दे चुके खेतों की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें ताकि पिछली फसल के बचेखुचे हिस्से खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाएं और मिट्टी भी मुलायम हो जाए. पिछली फसल का मोटामोटा कचरा बटोर कर खेत से अलग कर देना चाहिए.

* मई की गरमी का खास फायदा यह होता?है कि इस के ताप से तमाम कीड़ेमकोड़े झुलस कर खत्म हो जाते?हैं. इसीलिए करीब 2 हफ्ते के अंतराल से खेतों की लगातार जुताई करते रहना चाहिए. ऐसा करने से गरमी व लू का असर मिट्टी में अंदर तक जाता?है और वहां मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया व फफूंदी खत्म हो जाते?हैं.

* मिट्टी को भरपूर धूप का सेवन कराना काफी मुफीद साबित होता?है. इस से मिट्टी का बाकायदा इलाज यानी उपचार हो जाता?है और मिट्टी अगली फसल के लिए उम्दा तरीके से तैयार हो जाती?है.

* मेहनत और होशियारी से तैयार किए गए खेतों में बारिश का मौसम शुरू होने के बाद खरीफ की फसलों की बोआई उम्दा तरीके से की जा सकेगी. कायदे से तैयार किए गए खेतों में दूसरे खेतों के मुकाबले बेहतर नतीजे मिलते?हैं.

* मई में अपने ईख के खेतों का भी खास खयाल रखें और 2 हफ्ते के अंतर से बराबर सिंचाई करते रहे, ताकि खेतों में नमी बरकरार रहे.

* गन्ने यानी ईख के खेतों में सिंचाई के साथसाथ निराईगुड़ाई भी करते रहें ताकि फालतू के खरपतवार न पैदा हो सकें.

* गन्ने की फसल में कीड़ों व रोगों का खतरा बराबर बना रहता?है, लिहाजा उन के मामले में सतर्क रहें. जरा भी जरूरत महसूस हो तो कृषि वैज्ञानिक की मदद ले कर कीटों व रोगों का इलाज कराएं.

* अगर धान की अगेती किस्म की नर्सरी डालने का इरादा हो, तो मई के आखिर तक डाल सकते?हैं. नर्सरी में कंपोस्ट खाद या गोबर की खाद का इस्तेमाल जरूर करें. इस के अलावा फास्फोरस व नाइट्रोजन का भी सही मात्रा में इस्तेमाल करें.

* धान की नर्सरी डालने में ध्यान रखने वाली बात यह है कि हर दफे जगह बदल कर ही नर्सरी डालें. धान की नर्सरी से अच्छा नतीजा पाने के लिए सिंचाई में कोताही न बरतें.

* अगर सिंचाई का पूरा इंतजाम हो तो चारे के लिहाज से ज्वार, बाजरा व मक्के की बोआई करें. पानी की किल्लत होने पर इन फसलों की बोआई न करें, क्योंकि इन फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत होती है.

* मई महीने के आसपास बरसीम, लोबिया व जई की बीज वाली फसलें तैयार हो जाती?हैं. ऐसे में उन की कटाई का काम खत्म करें.

* मई के अंतिम हफ्ते में अरहर की अगेती किस्मों की बोआई करें, मगर बोआई से पहले जुताई कर के व खाद वगैरह मिला कर खेत ढंग से तैयार करना लाजिम है.

* तेल की खास फसल सूरजमुखी के खेतों की सिंचाई करें, क्योंकि मई के गरम मौसम में खेत में नमी रहना बेहद जरूरी?है.

* सूरजमुखी की सिंचाई के वक्त इस बात का खास खयाल रखें कि पौधों की जड़ें न खुलने पाएं. अगर पानी की धार से जड़ें खुल जाएं, तो उन पर मिट्टी चढ़ाना न भूलें. मिट्टी चढ़ाने से पौधों को मजबूती मिलती है और वे तेज हवाओं को भी झेल लेते हैं.

* मई के आसपास सूरजमुखी की फसल को बालदार सूंड़ी व जैसिड रोग का काफी खतरा रहता?है. ऐसा होने पर कृषि वैज्ञानिकों की राय ले कर माकूल इलाज करें.

* गाजर, मूली, मेथी, पालक, शलजम, पत्तागोभी, गांठगोभी व फूलगोभी की बीज वाली फसलें आमतौर पर मई तक तैयार हो जाती?हैं. ऐसे में उन की कटाई का काम खत्म करें. बीजों को निकालने के बाद सुखा कर उन का कायदे से भंडारण करें.

* पहले डाली गई तुरई की नर्सरी के पौधे तैयार हो चुके होंगे, लिहाजा मई के आखिर तक उन की रोपाई करें.

* तुरई की नर्सरी डालने का इरादा हो, पर अभी तक डाली न हो, तो यह काम फौरन खत्म करें. ज्यादा देर करने पर नर्सरी डालने का समय बीत जाएगा.

* खेत को अच्छी तरह तैयार करने के बाद बरसात के मौसम वाली भिंडी की बोआई करें, बोआई से पहले निराईगुड़ाई कर के खेत के तमाम खरपतवार निकाल दें.

* अपने प्याज के खेतों का मुआयना करें. अगर खेत में नमी कम लगे तो तुरंत हलकी सिंचाई करें. मई के आखिर तक प्याज की पत्तियों को खेत पर झुका दें, ऐसा करने से?प्याज की गांठें उम्दा होंगी.

* अमूमन मई में लहसुन की फसल तैयार हो जाती?है, लिहाजा उस की खुदाई करें. खुदाई के बाद फसल को 3 दिनों तक खेत में सूखने दें. 3 दिन बाद लहसुनों को उठा कर साफ व सूखी जगह पर रखें.

* मई के आसपास अकसर लीची के फलों के फटने की शिकायत सामने आती?है. इस की रोकथाम के लिए लीची के गुच्छों व पेड़ों पर पानी का अच्छी तरह छिड़काव करना कारगर रहता है.

* अपने आम, अमरूद, नाशपाती, आलूबुखरा, पपीता, लीची व आंवला के बागों की 10-15 दिनों के अंतराल पर ढंग से सिंचाई करते रहें. मई के दौरान सिंचाई में लापरवाही बरतना ठीक नहीं?है, क्योंकि गरमी की वजह से बागों का पानी बेहद तेजी से सूखता है.

* अपने फलों के बगीचों की सफाई का पूरा खयाल रखें. सफाई न होने से फसल पर असर पड़ता है.

* अगर तुलसी की बोआई करनी हो तो इस के लिए मई का महीना मुफीद रहता?है.

* मई में ही औषधीय फसल सफेद मूसली की भी बोआई करें. यह काफी मुनाफे वाली फसल होती है.

* एक अन्य औषधीय फसल सर्पगंधा की नर्सरी डालने के लिहाज से भी मई का महीना बेहद मुनासिब होता?है.

* मई के तीसरे हफ्ते में पहाड़ी इलाकों में रामदाना की बोआई करें. बोआई से पहले बीजों को फफूंदीनाशक से उपचारित करना न भूलें.

* मई के आखिरी हफ्ते में पहाड़ी इलाकों में मंडुआ की बोआई भी की जा सकती?है.

* सूरजमुखी के खेत में मधुमक्खियों के बक्से रखें. बक्सों को छायादार जगह पर ही रखें. बक्सों के आसपास टबों में पानी भर कर रखें ताकि मधुमक्खियों को पानी की खोज में भटकना न पड़े.

* मई की गरमी में अकसर मछली पालने वाले तालाब सूखने लगते?हैं, लिहाजा उन की मरम्मत कराएं ताकि उन का पानी बाहर न निकल सके. तालाब की सफाई का भी खयाल रखें.

* मई में मवेशियों को लू लगने का खतरा रहता?है, लिहाजा उन्हें बारबार साफ व ताजा पानी पिलाएं. लू लगने पर पशु के सिर पर बर्फ की पोटली रखें व डाक्टर को दिखाएं.

* गरमी की वजह से गायभैंस के छोटे बच्चों को अकसर दस्त की शिकायत हो जाती है, ऐसे में उन्हें दूध कम पीने दें. बीमार बच्चे को दूसरे बच्चों से अलग रखें. जरूरी लगे तो डाक्टर को बुलाएं.

* मुरगियों को गरमी से बचाने के लिए उन के शेडों के अंदर कूलरों का इंतजाम करें या शेड की जालियों पर जूट के परदे लगा कर उन्हें पानी से भगोते रहें.

* मवेशियों के खाने का खास खयाल रखें. उन्हें बासी व खराब चारा न दें, वरना हैजा होने का खतरा रहता है.

धान में आईपीएम प्रदर्शनों की कामयाबी की कहानी

किसानों की जबानी

हाल ही में ‘वित्त पोषित, विज्ञान एवं प्रौद्यौगिक परिषद लखनऊ’ और ‘आयोजक कीट विज्ञान विभाग सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ’ द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ‘राइस प्रोडक्शन एंड एक्सटेंशन स्ट्रेटेजीस फार सस्टेनेबल मैनेजमेंट आफ राइस पेस्ट्स इन वेस्टर्न प्लेन जोन आफ यूपी’ परियोजना के सौजन्य से प्रदर्शन लगाए गए और प्रशिक्षण दिए गए हैं, जिस में अच्छे नतीजे सामने आए. किसानों की जबानी पेश है इन नतीजों का खुलासा:

* मेरे पास 60 बीघे जमीन है, जिस में से 20 बीघे जमीन में मैं धान लगाता हूं. कीटोंबीमारियों की वजह से धान की उपज कम होती?थी. साल 2013-14 में मैं डा. राजेंद्र सिंह व उन के सहयोगियों के संपर्क में आया था. तब से मेरे व आसपास के सभी किसानों के खेतों पर प्रदर्शन होने व प्रशिक्षण दिए जाने से धान के कीड़ों व बीमारियों की जानकारी हासिल हुई. नतीजतन धान की उपज में 2-3 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से इजाफा हुआ.

-सत्तेंद्र सिंह पुत्र वीर सिंह, गांव सिवाया, दौराला, मेरठ.

* मेरे संपर्क में 20 किसान रहते?हैं. वे सभी धान की खेती करते हैं. हम सभी किसानों के धान की फसल में कीटों द्वारा सब से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता था. डा. राजेंद्र सिंह?द्वारा हमारे खेतों पर किए गए प्रदर्शनों व प्रशिक्षणों के जरीए हमें बहुत सारा ज्ञान प्राप्त हुआ. अभी तक हम बिना सोचविचारे कीटनाशकों का बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे थे, जिस वजह से खर्च बढ़ रहा था और लोगों की सेहत खराब होने के साथसाथ जमीन व वातावरण पर भी खराब असर पड़ रहा था. मैं डा. साहब से गुजारिश करता हूं कि वे ऐसे कार्यक्रम हमेशा चलाते रहें.

-मुस्तफा पुत्र मौम्हद यासीन, गांव समोली, दौराला, मेरठ.

* आईपीएम विधि क्या है, यह तो सभी किसान डा. राजेंद्र सिंह द्वारा लगाए गए प्रदर्शन व प्रशिक्षण के जरीए जान गए हैं. इस विधि द्वारा कम लागत से ज्यादा उत्पादन लिया गया?है. इस से साफ है कि पहले फेरोमोन ट्रैप से कीटों का पता लगाया गया और फिर अंड परजीवी ट्राईकोग्रामा से तनाछेदक व पत्तीमोड़क कीटों की रोकथाम की गई. इस के अलावा रस्सी घुमाने जैसी तकनीक से?भी पत्तीमोड़क कीटों का सफाया किया गया. नतीजतन बिना कीटनाशक दवाओं के धान का उत्पादन हुआ, जिस से उस चावल की मांग बढ़ गई.

-यामीन पुत्र कल्लू, गांव समोली, दौराला, मेरठ.

फसल कटाई के लिए रीपर मशीन

एक दौर था जब खेती के सभी काम हाथ से करने होते थे और उन कामों को निबटाने के लिए कईकई दिन लग जाते थे. लेकिन वही काम अब कृषि यंत्रों ने आसान कर दिए हैं. साथ ही मशीनों के इस्तेमाल से समय की भी बचत होती?है. इस सिलसिले में ‘फार्म एन फूड’ ने लुधियाना में स्थित अमर एग्रीकल्चर मशीनरी ग्रुप से कुछ जानकारी ली. अमर ग्रुप कृषि मशीनों के प्रमुख निर्माताओं में से?एक है. देशविदेश में भी इस की मशीनें निर्यात होती हैं. इस ग्रुप ने पिछली 3 पीढि़यों से इस उद्योग में अपनी जड़ें जमा रखी हैं. ये लोग बेहतरीन मशीनें बनाते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर इन के 150 डीलर हैं, जो इन की बनाई कृषि से संबंधित तमाम तरह की मशीनें जैसे फसल कटाई मशीन, बोआई मशीन, थ्रैशर व हार्वेस्टर वगैरह बेचते हैं.

साल 1994 में अमर ग्रुप को उस की मशीनों की क्वालिटी के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा था.

इन के बनाए कृषि यंत्रों को किसानों में काफी पसंद किया जाता है, जिसे गेहूं, धान, जई, ज्वार, बाजरा जैसी फसलों की कटाई के लिए इस्तेमाल किया जाता?है. यह ग्रुप 2 प्रकार के रीपर बनाता है, जिन्हें किसान अपनी पहुंच के अनुसार खरीद सकते हैं.

स्वचालित रीपर 120 : इसे 1 आदमी द्वारा चलाया जाता है. यह फसल की जमीन से 3 से 4 इंच की ऊंचाई से कटाई करता है और लाइन में फसल कट कर गिरती जाती है. यह रीपर फसल की 120 सेंटीमीटर की चौड़ाई में कटाई करता?है. इसे डीजल इंजन के साथ जोड़ कर बनाया गया है. यह पैट्रोल इंजन के साथ भी मिलता है.

* इस रीपर का हैंडल पकड़ कर किसान को इस के साथसाथ फसल कटाई के लिए चलना पड़ता?है.

* इस में 5 हार्स पावर का डीजल इंजन होता है.

* यह 1 एकड़ फसल की 2 घंटे में कटाई कर देता है और इस में तेल की खपत 2 लीटर प्रति घंटा है.

* इस की कीमत तकरीबन 95,000 रुपए है.

अमर रीपर 220?: इस रीपर को?ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. इसे किसी भी 45 हार्स पावर के ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता?है. यह 2 मौडल में मिलता है. यह फसल को जमीन से 3-4 इंच की ऊंचाई पर काटता?है. यह फसल की 220 सेंटीमीटर की चौड़ाई में कटाई करता?है.

पहला मौडल 2 बेल्ट वाला रीपर है, जिस की कीमत 57,500 रुपए है और दूसरा मौडल 3 बेल्ट वाला रीपर है, जिस की कीमत 67,500 रुपए है. 3 बेल्ट वाले रीपर से ज्यादा ऊंचाई वाली फसलें (ज्वारबाजरा आदि) भी काट सकते हैं.

किसान अपनी पसंद का रीपर खरीद कर अपनी फसल तो समेट ही सकते हैं, दूसरे किसानों की फसल की कटाई कर के अपनी आमदनी में इजाफा भी कर सकते?हैं.

कंपनी मशीन खरीद की तारीख से 6 महीने की गारंटी भी देती है. इस के अलावा भी अगर आप क्रौप रीपर या किसी अन्य मशीन के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ अदविंदर सिंह से उन के मोबाइल नंबर 09780000067 पर बात कर सकते हैं. कंपनी के अन्य नंबर हैं 91 161-2491780, 2493128, 2814039, इन नंबरों पर भी जानकारी ली जा सकती है. 

कुछ कहती हैं तसवीरें

रेशमी बहार : अफगानिस्तान महज फसाद के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि उस की पहचान रेशम के कारोबार की वजह से भी है. रेशम के कीड़े व उन के कोकून देखने में भले नहीं लगते, मगर उन से बनने वाला रेशम कमाल का होता है.

 

 

 

अन्नदाता के मातमी आंसुओं पर मनाया जा रहा जश्न

यह बेहद हैरत भरी खबर है कि पिछले 4 सालों में मध्य प्रदेश के किसान बिगड़ती फसलों के कारण बुरी हालत में जा पहुंचे हैं. उन के द्वारा आत्मघाती कदम उठा कर अपना जीवन खत्म करने की कोशिशें हो रही हैं. गौरतलब है कि इन्हीं हालात में पिछले 4 सालों से मध्य प्रदेश को सर्वाधिक उत्पादकता का कृषि कर्मण अवार्ड मिलता आ रहा है.

साल 2014-15 के लिए प्रदेश को एक बार फिर से 5 करोड़ रुपए के इनाम से नवाजा गया है. जिस के जश्न में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रदेश के सिहौर जिले के भोरपुर में आमंत्रित कर के एक बड़ा किसान सम्मेलन आयोजित कराया. इस आयोजन पर करोड़ों रुपए की फुजूलखर्ची की गई. साल 2014-15 में मध्य प्रदेश में हुए 328 लाख टन के फसल उत्पादन को देश का सर्वाधिक फसल उत्पादन बताया गया है, जबकि यह वही साल था, जिस में पूरे सूबे में भयंकर बारिश व ओलों की वजह से 36 जिलों की फसलें तबाह हुई थीं. फरवरी 2015 से अप्रैल 2015 तक केंद्रीय सर्वेक्षण दल ने मध्य प्रदेश के फसल नुकसान को 35 फीसदी माना था, जबकि राज्य सरकार का फसल नुकसान का दावा 50 फीसदी से ज्यादा का था.

प्रदेश सरकार की पांचों उंगलियां घी में

मध्य प्रदेश में कर्ज में डूबे किसान लगातार आत्महत्या करने में जुटे हैं. हर साल आत्महत्या के आंकड़ों में इजाफा हो रहा है. नेशनल क्राइम रिपोर्ट 2014 में  मध्य प्रदेश के किसान आत्महत्या के मामले में देश में तीसरे स्थान पर थे, जहां 1108 किसानों ने आत्महत्या की थी. प्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एक सवाल के जवाब में कहा था कि 1 जुलाई 2015 से 30 अक्तूबर 2015 के दौरान प्रदेश के 193 किसानों ने अपनी जान दे दी थी. लेकिन बावजूद इस के प्रदेश सरकार की सेहत सुधरी हुई है. एक ओर बरबादी के नाम पर केंद्र से सैकड़ों करोड़ रुपए के राहत पैकेज लिए जा रहे हैं, तो दूसरी ओर सर्वाधिक उत्पादकता का 5 करोड़ रुपए का अवार्ड भी प्रदेश सरकार की झोली में पिछले 4 सालों से आ रहा है.

किसानों की हालत बदतर

मध्य प्रदेश में किसानों की हालात बद से बदतर बनी हुई है. प्रदेश की 60 फीसदी कृषि आज भी बारिश के पानी पर आधारित है. प्रदेश में नदियों का बहाव कम होने के कारण सिंचाई के साधन विकसित नहीं हो पाए हैं. लेकिन बरसात के पानी को जमा करने के माकूल हालात के बाद भी प्रदेश सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया है. एक दशक पहले लाई गई बलराम तालाब योजना के तहत खेतखेत तालाब बना कर सिंचाई के इंतजाम को मजबूत करना था, लेकिन प्रदेश में 60 फीसदी बलराम तालाब कागजों में ही बन कर रह गए. सरकारी पैसे का दोहन नौकरशाहों व नेताओं द्वारा किया गया है. हालत यह है कि अब प्रदेश की सरकार इस योजना को बंद करने पर विचार कर रही है.

प्रदेश में प्रस्तावित बांध योजनाएं भी कई राजनेताओं व उद्योगपतियों के कहने से रोकी गई हैं. रायसेन जिले में प्रस्तावित मकोदिया डैम परियोजना के जरीए विदिशा व रायसेन के 90 गांवों की 62350 हेक्टेयर जमीन को सींचने की योजना बनाई गई थी, लेकिन उस पर अमल नहीं किया गया.

खादबीज से मुनाफाखोरी

सूबे में साल 2015 में राज्य सहकारी समितियों के जरीए बेचा गया उर्वरक बाजार मूल्य से महंगा था, जिस से करोड़ों रुपए का मुनाफा प्रदेश के किसानों से कमाया गया है. प्रदेश में अनुदान आधारित आदान स्प्रिंकलर पाइप सिंचाई पंप, टै्रक्टर व हार्वेस्टर वगैरह राज्य सरकार की संस्था एमपी एग्री के जरीए मुहैया किए जाते हैं, जिन का मूल्य बाजार से कई गुना ज्यादा है. सरकारी बीज निगम से दिया जाने वाला बीज भी बाजार से महंगा रहता है.

भ्रष्टाचार

प्रदेश में किसानों को शून्य फीसदी की दर से मिलने वाला किसान क्रेडिट कार्ड, उर्वरक व बीज वगैरह मुहैया कराने की जिम्मेदारी सहकारी समितियों को दी गई है. मगर पूरी तरह सत्ताधारी राजनेताओं के कब्जे वाली ये संस्थाएं किसानों के शोषण में जुटी हुई हैं.

बैंकिंग लेनदेन सहित अन्य सभी रिकार्ड्स को तकनीक आधारित कंप्यूटर व्यवस्था से दूर रखा गया है. आज भी इन संस्थाओं में करोड़ों रुपए का लेनदेन पेन व रजिस्टर के जरीए हुआ करता है और फेरबदल कर के किसानों की रकम को इधरउधर किया जाता है. प्रदेश के रीवा, मंदसौर, पन्ना, रायसेन, होशंगाबाद व सिहौर जिलों की सहकारी संस्थाओं में 50 करोड़ से ज्यादा के गबन व भ्रष्टाचार के मामलों  की जांच सालों से रुकी पड़ी है. राज्य सरकार ने एक विधेयक के जरीए इन बेईमान सहकारी संस्थाओं को आरटीआई के दायरे से भी बाहर कर दिया है. ऐसा किए जाने से अब आम आदमी को इन संस्थाओं के काले चिट्ठे खंगालने का हक भी नहीं रहा है.

नई प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना

नई प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना पहले से सिर्फ इसलिए बेहतर है कि इस में किसानों से लिया जाने वाला बीमा प्रीमियम कम है. वहीं खेतों में बोआई के 1 पखवाड़े बाद से होने वाले नुकसान को बीमा नुकसान के तहत रखा गया है. लेकिन प्रस्तावित बीमा पालिसी में उन मसलों पर सुधार की भरपूर गुंजाइश है, जिन के कारण किसानों को फसलबीमा का वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता है. पिछली बीमा पालिसी में बड़ी कमी यह थी कि खेतों में अनुमानित उत्पादन को बीमा रकम न मान कर किसानों को मिलने वाले किसान क्रेडिट कार्ड लोन को बीमा राशि माना गया था. इस रकम का 50 फीसदी हिस्सा रबी फसल की अधिकतम बीमा राशि हुआ करती है. लेकिन नई प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना में इस निर्धारण में कहीं कोई तब्दीली दिखाई नहीं दे रही है.

आवश्यकता भूमि रकबे के आधार पर उत्पादन निर्धारण की होनी चाहिए. नई बीमा योजना की एक अन्य कमी आग से होने वाले नुकसान की है. कुदरती रूप से बिजली गिरने को प्रधानमंत्री फसल दुर्घटना बीमा योजना में शामिल किया गया है. लेकिन गरमी के दिनों में लगने वाली आग व खेतों से निकलने वाली बिजली लाइनों से होने वाले शार्ट सर्किट को नुकसान के तहत शामिल नहीं किया गया है. नई  बीमा पालिसी में भी टेक्नोलाजी व डिजिटल आकलन की बात की गई है, लेकिन साधनों की कमी का खुलासा नहीं किया गया है. फसल के नुकसान के बाद बीमे की रकम न मिलने की हालत में किसान व बीमा कंपनी के बीच विवादों को निबटाने के लिए स्वतंत्र आयोग या न्यायायिक प्राधिकरण बनाने का प्रावधान भी प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना में नहीं रखा गया है. ऐसे हालात में किसानों को जल्दी न्याय मिलने में दिक्कत होती है. इस मसले पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए.

प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना को प्रधानमंत्री जीवनज्योति योजना से जोड़ कर किसानों की निजी दुर्घटना की भरपाई की बात दोहराई गई है. लेकिन अपने जीवन को दांव पर लगा कर खुले आसमान के नीचे हर हालात में काम करने वाले किसान जो कीटनाशकों सहित तमाम जहरीले रसायनों की वजह से अकसर टीबी, दमा व कैंसर जैसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, उन के इलाज की गारंटी इस बीमा योजना में नहीं रखी गई है. देश के प्रधानमंत्री ने नई बीमा योजना के तहत अकेले किसान के हुए नुकसान की भरपाई की बात कही है. लेकिन फसलबीमा ड्राफ्ट में फसलबीमा नुकसान को खेत इकाई के आधार पर दिए जाने की बात कहीं नहीं की गई है. पिछली योजना के मुताबिक बीमा कंपनी को फायदा पहुंचाने के मकसद से प्रदेश भर में खेती के कुल रकबे में 60 फीसदी गेहूं के लिए व 40 फीसदी हिस्सा अन्य फसलों के लिए माना जा रहा है.

यदि किसान 100 फीसदी हिस्से में गेहूं की बोआई करता है, तो उस के नुकसान की भरपाई बीमा कंपनियां 60 फीसदी गेहूं की फसल मान कर किया करती हैं. नई फसलबीमा योजना में इस तरह का कोई भी खुलासा नहीं किया गया है. आजकल देश के कई हिस्सों के साथ मध्य प्रदेश के 23 जिले सूखे की चपेट में हैं. आने वाले वक्त में इन जिलों में अन्न के साथसाथ पानी व चारे के लिए भी दिक्कत होने के आसार हैं. इस के लिए प्रदेश की सरकार प्रधानमंत्री से बात करने वाली है. इन हालात में प्रदेश की सरकार कृषि कर्मण अवार्ड का प्रदर्शन कर के खुद को किसानों की हितैषी बताने की कोशिश कर रही है. लेकिन हकीकत यह है कि कर्ज से दबे प्रदेश के किसान लगातार अपने खात्मे में लगे हैं. कोई फांसी के फंदे को चुन रहा है, तो कोई कीटनाशक पी कर खुद को खत्म कर रहा है. ऐसे में प्रदेश की सरकार को उत्पादन का ढोल पीटने के बजाय किसानों का दर्द समझना चाहिए. जब हालात बेहतर हो जाएं, तब वाहवाही लूटी जा सकती है.

पीएम मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ पर फिदा हुए किंग खान

अभिनेता शाहरूख खान ने केंद्र सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की सराहना करते हुए उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहल बताया जिससे देश में रोजगार पैदा हो रहे हैं.

शाहरूख ने संवाददाताओं से कहा, ‘मेक इन इंडिया संभवत: हमारे सम्माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक सबसे महत्वपूर्ण पहल है, जो भारत और विदेशों में कंपनियों को हमारे अपने देश में और हमारी जमीन पर उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित करती है और इस तरह रोजगार निर्माण, कौशल विकास करती है.’

50 वर्षीय शाहरूख, भाजपा नेता शाइना एनसी की पुस्तक ‘मूवर्स एंड मेकर्स’ के विमोचन के मौके पर बोल रहे थे. यह पुस्तक मेक इन इंडिया पहल को समर्पित है. शाहरूख ने कहा कि मेक इन इंडिया के माध्यम से नये तकनीकी विस्तार कई पीढ़ियों के लिए लाभकारी होंगे. इस मौके पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी उपस्थित थे.

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