वक्त के साथसाथ खेती का नक्शा भी बदल रहा है. लोग ज्यादा और जमीन कम, यानी पैदावार घटने के पूरेपूरे आसार. ऐसे में कृषि वानिकी एक बेहतर रास्ता साबित हो सकता है. इस में खेती के साथसाथ बागबानी का फायदा भी मिल जाता है और आमदनी में भी इजाफा हो जाता है. कहावत है कि पैसे पेड़ों पर नहीं लगते, लेकिन अगर नए तरीकों से आम, अमरूद, जामुन, बेर, आंवला, सेब, लीची, नीबू, बेल, शहतूत व शीशम आदि की उम्दा किस्मों के पेड़ लगाए जाएं तो भरपूर कमाई की जा सकती?है. गांवों व खेतों का तिहाई हिस्सा अगर पेड़ों से भरा हो तो माहौल व आबोहवा भी अच्छी बनी रहती है.
दरअसल बदलते जमाने में खेतीबारी के पुराने तौरतरीकों के सहारे किसानों का गुजारा नहीं होता. लिहाजा आमदनी में इजाफा करने के लिए नई जुगत करना लाजिम है. मसलन फसलें उगाने के साथसाथ इलाकाई पेड़ लगाना काफी फायदे का सौदा है. इसलिए राज्यों व केंद्र की सरकारें कृषि वानिकी को बढ़ावा दे रही हैं. कृषि वानिकी का मतलब व मकसद फसलों के साथ पेड़ लगा कर जमीन का बेहतर इस्तेमाल करना है, ताकि कम जमीन में भी ज्यादा आमदनी मुमकिन हो सके. कृषि वानिकी के तहत खेतों के आसपास खाली पड़ी जमीन व मेड़ों आदि पर पेड़ उगाए जाते हैं, साथ ही साथ बेहतर ढंग से फसलों, पेड़ों व जानवरों का इंतजाम किया जाता है. कृषि वानिकी वह जरीया है, जिस से किसी हद तक जंगलों के अंधाधुंध कटान की भरपाई हो सकती है. इसी की बदौलत घटते पेड़ों को बचाया व बढ़ाया जा सकता?है. साथ ही साथ किसान भी कृषि वानिकी की राह अपना कर खुद को माली तौर पर मजबूत कर सकते?हैं, क्योंकि लकड़ी, चारे व ईंधन आदि की मांग लगातार बहुत तेजी से बढ़ रही है. इस के अलावा कागज, लुगदी, माचिस, प्लाईवुड व नई तकनीक से बनी कंपोजिटवुड यानी बनावटी लकड़ी आदि के लिए पूरी जमीन का बेहतर इस्तेमाल करना जरूरी?है. जिस रफ्तार से पेड़ काटे जा रहे?हैं, उतने पेड़ लगाए नहीं जा रहे?हैं. लिहाजा जंगलात के महकमों ने सामाजिक वानिकी के साथ कृषि वानिकी को भी खास अहमियत देना तय किया है.
अहम मुद्दा
केंद्र सरकार के किसान कल्याण मंत्रालय ने किसानों को बढ़ावा देने के लिए एग्रो फारेस्ट्री यानी कृषि वानिकी को राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) में शामिल कर लिया?है. इसी गरज से पिछले दिनों राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति 2014 जारी की गई थी. इस नीति के तहत देश भर में सभी खेतों की मेड़ों पर पेड़ लगाने का मकसद तय किया गया है. दरअसल परंपरागत खेती में प्रति हेक्टेयर लागत बढ़ने से किसानों की आमदनी कम हो रही है. लिहाजा आम फसलें, फूल, सब्जी, मसाले या जड़ीबूटी आदि के साथ मेड़ों पर या खेतों के अंदर लाइनों में पेड़ लगाए जा सकते?हैं. लेकिन ध्यान रहे कि अपने इलाके की मिट्टी व आबोहवा के मुताबिक अच्छी बढ़वार वाली किस्मों के पेड़ ही लगाने चाहिए. इस के लिए सब से पहले बागबानी या जंगलात महकमे से अपने इलाके के लिए मुफीद पेड़ों के बारे में तकनीकी जानकारी व ट्रेनिंग लें. उस के बाद माकूल जगह चुनें. बीज हों तो उन्हें थैलियों में उगाएं या जंगलात महकमे की सरकारी नर्सरी से पौध लाएं. कृषि वानिकी के अलावा तजरबेकार किसान खेत के किसी हिस्से में नर्सरी लगा कर पौध बेचने का काम भी कर सकते हैं.
जानकारी हासिल करें
आमतौर पर किसान यूकेलिप्टस, पौपलर, सुबबूल, शीशम, बांस, आंवला, सागौन व जैट्रोफा आदि के पेड़ लगाते?हैं. वैसे नई किस्मों के पेड़ व उन्हें लगाने की तकनीकों पर वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून व राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के माहिरों ने काफी खोजबीन की है. उन्होंने कम लागत में उम्दा पेड़ लगा कर धन कमाने के कई नायाब तरीके निकाले?हैं. उन्हें अपना कर फायदा उठाया जा सकता है. मसलन बर्मा ड्रेक नाम के पेड़ किसानों के लिए सोने की खान साबित हो सकते हैं. इन की छंटान से जलाऊ लकड़ी व तैयार पेड़ से उम्दा किस्म की कीमती इमारती लकड़ी मिलती?है. इस के बीजतेल का इस्तेमाल साबुन बनाने में व दूसरे हिस्सों का इस्तेमाल दवाएं आदि बनाने में किया जाता है. इस बारे में तजरबेकार जानकारों से सलाहमशविरा किया जा सकता है. कृषि वानिकी को?बढ़ावा देने, उस पर खोजबीन करने व किसानों को बीज, पौध, सलाह व ट्रेनिंग देने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक केंद्र झांसी (उत्तर प्रदेश) में काम कर रहा है. इस केंद्र के माहिरों ने किसानों के लिए बहुत सी ऐसी फायदेमंद तकनीकें निकाली हैं, जिन से खेती के साथ पेड़ लगा कर या बागबानी कर के आमदनी में खासी बढ़ोतरी की जा सकती है.
खेती संग पेड़ों से फायदे
बाढ़ व सूखे आदि में फसल खराब होने से हुए नुकसान की पूरी भरपाई तो पेड़ नहीं कर पाते, लेकिन फिर भी वे अपने उगाने वाले किसानों को सहारा जरूर देते हैं. पेड़ों से जलावन मिल जाता है, लिहाजा गोबर ईंधन बनने से बच जाता है व खाद बनाने में काम आता है. ऐसे में महंगी रासायनिक खाद कम डालनी पड़ती है. पेड़ों से खेती में काम आने वाले औजारों व इमारतों के लिए लकड़ी व जानवरों के लिए चारा मिलता है. साथ ही पेड़ों की गिरी हुई पत्तियों को सड़ा कर खाद बनती है. खेतों के आसपास पेड़ होने से कई फायदे हैं. मसलन पेड़ तेज हवाओं से फसलों को बचाते हैं. पेड़ों पर मधुमक्खियों को छत्ते लगाने की जगह आसानी से मिल जाती है. उन से मोम व शहद मिलता है. साथ ही जिन फसलों पर मधुमक्खियां बैठती हैं, उन में परागण अच्छा होता है. लिहाजा उपज बढ़ती है. पेड़ की जड़ों से जमीन का कटाव रुकता है और मिट्टी व पानी की बचत होती है. साथ ही पेड़ों की बिक्री से किसानों को एक मुश्त पैसा मिल जाता है. उत्तर प्रदेश में तैनात एक वन अधिकारी के मुताबिक किसानों को बगैर सोचेसमझे नहीं, बल्कि खासतौर पर ऐेसे पेड़ लगाने चाहिए, जो तेजी से बढ़ने वाले हों, ताकि कम वक्त में ही किसान उन से पक्की आमदनी हासिल कर सकें. पेड़ों की जड़ें लंबीगहरी और उन के तने सीधे होना बेहतर होता?है.
खेती महकमे के एक अफसर ने बताया कि जिन पेड़ों के बीज 2 दल के होते हैं, उन्हें उगाना किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद रहता है, क्योंकि ऐसे पेड़ जमीन में कुदरती नाइट्रोजन जमा करते हैं. उन से मुफ्त में मिली नाइट्रोजन फसलों के काम आती है. औषधीय पौधों से भी आमदनी ज्यादा होती है. इन की पौध वन विभाग की नर्सरी से ली जा सकती है. जनवरी में किसान पौपलर की पौध लगा सकते हैं. जनवरी में ही खैर, सिरस, आंवला, हरड़, सागौन, शीशम, सुबबूल, कदंब व आकाशमोनी के बीज जमा कर सकते हैं. पाली बैग में बीज बोने के लिए 4 हिस्से छनी मिट्टी में, 2 हिस्से बालू व 1 हिस्सा गोबर की सड़ी खाद मिलाएं व 4-6 इंच चौड़ी, 7-9 इंच लंबी थैली के 3 चौथाई हिस्से तक भरें. पौध रोपते वक्त लाइनों व पौधों की दूरी पेड़ की किस्म के हिसाब से 1 से 6 मीटर तक रखें.
जानकारी रखें
हालांकि राज्यों में जंगलात के महकमे वानिकी, सामाजिक वानिकी व कृषि वानिकी को बढ़ाने देने की स्कीमों के तहत तकनीक, बीज व पौध आदि मुहैया कराने और जंगली जानवरों से हुए नुकसान का मुआवजा देने आदि की सहूलियतें भी देते?हैं. यह बात अलग है कि ज्यादा किसानों तक उन की जानकारी नहीं पहुंचती. चूंकि सरकारी मुलाजिम किसानों के फायदे व नियमकायदे की बातें हर किसी को आसानी से नहीं बताते, लिहाजा किसानों का जागरूक रहना बेहद जरूरी?है. ज्यादातर किसान नहीं जानते कि उत्तर प्रदेश में मगरमच्छ, घडि़याल, बाघ, भेडि़या, हाथी व तेंदुआ आदि जंगली जानवरों द्वारा जख्मी किए गए लोगों को 1 लाख रुपए, मारे गए लोगों के वारिसों को 5 लाख रुपए व गाय, भैंस, घोड़ा, खच्चर, ऊंट या बैल आदि पालतू जानवरों द्वारा मारने पर 40 हजार रुपए तक मुआवजा वन विभाग द्वारा दिया जाता है.
जंगली जानवर अगर किसानों की फसल को नुकसान पहुंचाते?हैं, तो खेती या गन्ना महकमे से तय रकम किसानों को मुआवजे में दी जाती है. यदि जंगली जानवरों से किसानों के मकान को नुकसान होता?है, तो 5 से 25 हजार रुपए तक का मुआवजा उत्तर प्रदेश के वन विभाग से पीडि़तों को दिया जाता है, बशर्ते 24 घंटे में ऐसी घटना की सूचना वन विभाग के नजदीकी दफ्तर को दे दी जाए.
इस स्कीम में एक अजीब पेंच है कि इस में केवल जंगली हाथियों व गैंडों से हुआ नुकसान ही माना जाता है, जबकि नीलगाय, जंगली सुअर, बंदर फसलों को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. लिहाजा उन्हें भी स्कीम में शामिल करना जरूरी है, लेकिन ज्यादातर किसानों को ऐसी इमदाद व मुआवजे आदि की भनक तक नहीं लगती. सरकारी महकमों के ज्यादातर मुलाजिम अपनी जेबें भरने के लिए किसानों की मदद करने की बजाय उन्हें तंग करते हैं.
पेड़ों का कटान
मेरठ के किसान रामपाल का कहना?है कि वे चाह कर भी अपने खेतों के आसपास पेड़ नहीं लगाते, क्योंकि राज्य सरकारों ने निजी पेड़ काटने के नियम बड़े टेढ़े बना रखे हैं. पेड़ काटने या हटाने की मंजूरी वन विभाग से लेनी पड़ती है. लकड़ी लाने व ले जाने के लिए भी अलग से परमिट लेना पड़ता है, जो घूस दिए या धक्के खाए बगैर आसानी से नहीं मिलता.
बहुत से किसान नहीं जानते कि उत्तर प्रदेश में पेड़ बचाने के कानून 1976 और वन उपज नियमावली 1978 को आसान बना कर कई बदलाव किए गए हैं. आम, नीम, पीपल, बरगद, महुआ व साल के कटान पर साल 2020 तक पाबंदी है. इन्हें काटने की मंजूरी के लिए अर्जी देने के 35 दिनों तक जवाब न मिलने पर किसान पेड़ काट सकते?हैं.
इन के अलावा उत्तर प्रदेश में अगस्त, अरू, उत्तीस, कैजूरिना, जंगल जलेबी, पापुलर, फराश बकाइन, विलायती बबूल, बबूल, सूबबूल, अयार, कठबेर, यूकेलिप्टस, रोबिनिया, बाटल, विलो, सिरिस, खडि़क, जामुन, ढाक, पेपर मलबरी, बेर, सहजन, शहतूत व आंवले सहित 28 किस्म के पेड़ काटने व उन्हें लाने ले जाने पर पाबंदी नहीं?है. ऐसी बातों की जानकारी किसानों को जरूर होनी चाहिए.
बिक्री नहीं प्रोसेसिंग करें
पेड़ तो हर कोई उगा सकता?है, लेकिन असल बात है उस की मार्केटिंग करना. तैयार पेड़ों की बिक्री किसानों को इस तरह करनी चाहिए कि उन्हें उन के पेड़ों की वाजिब कीमत ही नहीं भरपूर मुनाफा भी मिले. इस के लिए किसी खरीदार कंपनी से करार भी किया जा सकता है, क्योंकि माचिस व प्लाई बोर्ड आदि बनाने वाली कंपनियां किसानों से पहले ही पेड़ खरीद का कांट्रैक्ट कर लेती हैं.
इस के अलावा राज्यों के वन निगम भी तयशुदा कीमतों पर बहुत से पेड़ों की खरीद करते?हैं. लकड़ी की कीमत पेड़ों की किस्म, उन की क्वालिटी, गोलाई व ऊंचाई के मुताबिक मिलती?है. लेकिन ज्यादातर किसान कटान, चीरान व ढुलान आदि के झंझटों से बचने के लिए खड़े पेड़ों का ही सौदा कर देते हैं. बहुत से किसान अपने पेड़ों को कटवा कर खुद डिपो या कारखानों तक ले जाते हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर व सहारनपुर आदि जिलों में पापुलर की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है, लेकिन किसान खुद अपनी लकड़ी की प्रोसेसिंग नहीं करते. इस से उन्हें कृषि वानिकी का पूरा फायदा नहीं मिल पाता. वे अपने पेड़ों के तने कटवा कर ट्रैक्टर ट्राली में भर कर उन्हें प्लाईवुड व बोर्ड आदि बनाने वाले कारखानों को बेचने के लिए ले जाते हैं.
किसानों को चाहिए कि वे तकनीक सीखें व अपने पेड़ों की कीमत व अपनी आमदनी बढ़ाएं. वे अकेले या मिल कर खुद अपनी उत्पादन इकाई लगाएं और प्लाई, बोर्ड, माचिस व लकड़ी के चम्मच व बरतन आदि बनाएं. वे लकड़ी आधारित सजावटी चीजें बनाने का उद्योग भी लगा सकते?हैं. इस से उन्हें ज्यादा फायदा होगा. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद व रामपुर में ऐसी बहुत सी इकाइयां कामयाबी से चल रही हैं. किसान उन्हें देखें, काम सीखें व आगे आएं. इस बारे में ज्यादा जानकारी इस पते से ली जा सकती है: निदेशक, राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान केंद्र, पाहुज बांध, झांसी 284003, उत्तर प्रदेश.