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डिअर डैडः भावना रहित बचकानी फिल्म

पिता पुत्र के रिश्तों पर आधारित तनुज भरमार की फिल्म‘‘डिअर डैड’’कमजोर पटकथा, पिता पुत्र के रिष्तों को भी सही ढंग से परिभाषित न कर पाने वाली, भावना रहित और अति धमी गति वाली फिल्म है. फिल्म का एक भी पात्र उभरकर नहीं आता. फिल्म‘‘डिअर डैड’’की कहानी के केंद्र में दिल्ली में रह रहे नितिन (अरविंद स्वामी)और उनका 14 साल का बेटा शिवम् ( हिमांशु शर्मा) है. नितिन की एक बेटी विधि भी है. पर खुद नितिन ‘गे’है. नितिन के गूंगे पिता व बूढ़ी मॉं हिल स्टेशन मनाली के पास रहते हैं. नितिन ने अपनी पत्नी को तलाक देने का निर्णय कर लिया है. इस बात की जानकारी अपने बेटे शिवम् को देने के मकसद से ही नितिन अपने बेटे को उसके मसूरी के होस्टल में खुद छोड़ने जाने का निर्णय लेता है. सड़क रास्ते से जाते समय वह बेटे शिवम् को सच बता देना चाहता है. वह दो तीन बार प्रयास करता है,पर बता नहीं पाता है. इस बीच रास्ते में एक टीवी रियालिटी शो का सेलेब्रिटी आदित्य (अमन उप्पल  )मिलता है. रास्ते में नितिन अपने माता पिता से भी मिलने जाता है. दादा दादी से मिलकर शिवम् खुश है. वहीं पर अपने गूंगे पिता को नितिन बताता है कि व पूरी जिंदगी जिस सच को उनसे नही कह पाया,वह सच आज वह उन्हे बता देना चाहता है कि वह ‘गे’ है . यह बात शिवम् सुन लेता है. और शिवम् को अपने पिता नितिन से घृणा हो जाती है.

रास्तें में नितिन , शिवम् से कहता है कि वह इसी सच को बताने के लिए उसके साथ आता है और वह यह भी बता देता है कि नितिन व शिवम् की मां अलग हो रहे हैं. इससे शिवम् का गुस्सा बढ़ जाता है. वह दोस्तो के साथ जाना चाहता है पर रास्ते में पहाड़ी के गिरने से रास्ता बंद हो जाता है. सभी को एक होटल में रूकना पड़ता है. जहां वह अपने दोस्त को अपने पिता की बात बताता है और कहता है कि व चाहता है कि उसका पूरा परिवार एक साथ रहे. तब उसका दोस्त उसे सलाह देता है कि वह बंगाली बाबा की दवा अपने पिता को दे,तो उसके पिता ठीक हो जाएगें. बंगाली बाबा की दवा से नितिन के पेट का दर्द शुरू हो जाता है. उधर आदित्य, शिवम् को समझाता है कि उसके पिता उसके लिए कितना परेशन रहते है. आदित्य, शिवम्म से कहता है कि ‘जिंदगी में वह सिच्युएशन मत आने देना कि जब तुम्हे अपने पिता की जरुरत हो,तो वह तुम्हारे आस पास भी न हो.’’

उसके बाद शिवम् अपने दोस्तों के साथ मसूरी के होस्टल चला जाता है. नितिन वहीं से अकेले दिल्ली लौट आता है. नितिन का अपनी पत्नी से तलाक हो जाता है. शिवम् को गणित में अच्छे नंबर मिलने पर ट्रॉफी दी जाती है, तो वहां पर नितिन व शिवम् की मां अपने नए पति के साथ पहुॅचती है. शिवम् मां की बजाय पिता नितिन के साथ समय बिताता है . फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि पिता पुत्र के रिष्ते को सही ढंग से स्थापित ही नहीं किया गया. दोनो के बीच बेकार की बकवास दिखायी गयी है. फिल्म का एक भी पात्र सही ढंग से उभर नहीं पाया. एक भी पात्र दर्षक के मन में जिज्ञासा या अपने लिए सहानुभूति भी नहीं बटोरता.

‘गे’को मुद्दे का भी फिल्मकार सही परिपेक्ष्य में नहीं पेश कर पाया. पिता के गे होने का सच जानने के बाद शिवम् के अंदर जिस तरह का गुस्सा आना चाहिए था, वह भी नहीं आ पाया. यहां तक कि नितिन के पात्र में परिवार के बिखरने व बेटे के दूर होते जाने का जो दुःख व तकलीफ सही ढंग से नहीं उभरती. यहां तक कि कैमरामैन मुकेश भी पूरी तरह से असफल रहे. वह अपने कैमरे में प्राकृतिक सौंदर्य को भी कैद नहीं कर पाएं. फिल्म बहुत ही ज्यादा धीमी गति से बढ़ती है. मनोरंजन के नाम पर शून्य है.फिल्म की पटकथा व निर्देशन काफी कमजोर है. फिल्म में आदित्य के किरदार को जबरन ठॅूंसा गया है. कहानी में उसकी कहीं कोई आवष्यकता नजर नहीं आती. फिल्म‘‘रोजा’’से चर्चा में आए अरविंद स्वामी ने पूरे सोलह साल बाद अभिनय में वापसी की है,तो उनसे काफी उम्मीदे थी, मगर वह निराश ही करते हैं. शिवम् के किरदार में हिमांशू शर्मा के लिए करने को बहुत कुछ था, मगर वह भी असफल रहे. इसमें पटकथा व निर्देशन की कमी ज्यादा नजर आती है. फिल्म ‘‘डिअर डैड’’से दर्षक के हिस्से कुछ नही आना है.रत्नाकर एम और शान व्यास निर्मित तथा तनुज भरमार लिखित व निर्देषित फिल्म‘‘डिअर डैड’’के कैमरामैन मुकेश जी,संगीतकार उज्ज्वल कष्यप व राधव-अर्जुन तथा कलाकार हैं-अरविंद स्वामी,हिमांषु शर्मा,एकावल खन्ना,अमन उप्पल और भाविका भसीन.

अजहरः फिल्म की बजाय प्रभावहीन सीरियल व प्रभावहीन डॉक्यूमेंटरी

 ‘‘ब्लू’’ जैसी असफल फिल्म के निर्देशक टोनी डिसूजा से बहुत ज्यादा उम्मीद करना सही भी नहीं था. टोनी डिसूजा निर्देषित फिल्म ‘‘अजहर’’कहीं से भी एक फीचर फिल्म नहीं बल्कि एक घटिया टीवी सीरियल या घटिया डॉक्यूमेंटरी फिल्म ज्यादा लगती है. फिल्म के निर्देका टोनी डिसूजा का दावा है कि उनकी फिल्म ‘अजहर’ मशहूर क्रिकेटर मो.अजहरुद्दीन की बायोपिक फिल्म नही है, बल्कि उनकी जिंदगी पर आधारित नाटकीय फिल्म है. तो फिल्म को नाटकीय बनाने के चक्कर में टोनी डिसूजा ने पूरी फिल्म व इसके पात्र व तमाम दृष्यों को ही अविष्वसनीय बना दिया है. फिल्म की कहानी नब्बे के दशक की है. मो.अजहरूद्दीन ने 2002 के बाद क्र्रिकेट नहीं खेला. लेकिन क्रिकेट मैच के मैदान पर या अजहर के पहनावे में मैचो ’बनियाइन, डॉ.आथ्रो, गितांजली ज्वेलर्स के विज्ञापन दिखाए गए है. यह सारे वह प्रोडक्ट है,जिनकी पैदाइश 2002 के बाद की है. यानी कि निर्माता ने ‘इन फिल्म मेंकिंग एड’इकट्ठा करके अपनी फिल्म की लागत वसूल कर ली, पर वह यह भूल गए कि उनकी फिल्म की कहानी का काल क्या है. फिल्म देखकर दर्शक किसी अच्छी समझ के साथ सिनेमा घर से बाहर नही निकलता.

फिल्म की कहानी क्रिकेटर मो.अजहरूद्दीन पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगने के बाद अजहरुद्दीन की जबानी शुरू होती है. बीच बीच में अदालती प्रक्रिया भी चलती रहती है. यह कहानी है हैदराबाद के मो.अजहरुद्दीन(इमरान हाषमी)की. जिनके नाना (कुलभूषण खरबंदा) को अजहर के बचपन में ही देश के लिए सौ क्रिकेट मैच खेलने की क्षमता नजर आ जाती है. अपने नाना के सपनो को पूरा करने के लिए मो.अजहरुद्दीन मुंबई पहुॅच जाते हैं. करियर के शुरूआती तीन मैचों में लगातार शतक बनाकर वह शोहरत बटोरते हैं और उन्हे वरिष्ठ खिलाड़ियो की अवहेलना कर भारतीय क्रिकेट टीम का कैप्टन बना दिया जाता है. वह कई मैच जीतते हैं. इसी बीच वह नौरीन(प्राची देसाई)से शदी भी कर लेते हैं. जब वह सफल भारतीय क्रिकेट कैप्टन के रूप में शोहरत बटोर रहे थे, तभी लंदन में अजहर की नजर बौलीवुड स्टार संगीता बिजलानी (नरगिस फाखरी )पर पड़ती है और अजहर, संगीता को अपना दिल दे बैठते है. अपनी पत्नी नौरीन से इस सच को बयां करने की बजाय एक क्रिकेट मैच जीतने पर ट्रॉफी लेते समय अजहर खुलेआम ऐलान कर देते हैं कि इस ट्रॉफी हकदार उनके दिल के करीब रहने वाली संगीता बिजलानी है. बहरहाल,जब उन पर आरोप लगता है कि उन्होने बुकी एम के शर्मा(राजेश शर्मा)से मैच फिक्सिंग के लिए एक करोड़ रूपए लिए है,तो उन्हे क्रिकेट खेलने से मना कर दिया जाता है. तब अजहर अदालत पहुॅचते हैं. अजहर के दोस्त व वकील रेड्डी (कुणाल कपूर)लड़ते है. जबकि क्रिकेट एसोसिएशन की तरफ से मीरा (लारा दत्ता)केस लड़ती हैं. 12 साल तक मुकदमा चलता है.अंत में अदालत उन्हे मैच फिक्सिंग के इल्जाम  से बरी कर देती है.

फिल्म में अजहर के किरदार में इमरान हाषमी कहीं से भी फिट नहीं बैठते. पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर सही भाव नही आए. अजहर की जिंदगी में जो उतार चढ़ाव रहे हैं या उन्होने जिस तरह से दो दो शदियां की, उसे लेकर भी अजहर की भावनाएं दर्शकों के दिलो तक नहीं पहुॅच पाती. फिल्म के पटकथा लेखक व संवाद लेखक रजत अरोड़ा बहुत बुरी तरह से असफल रहे हैं. कई जगह पर पटकथा के स्तर पर कन्फ्यूजन नजर आता है. संवाद भी स्तरीय नही है. संवाद लेखक के तौर पर अजहर के मुँह से ‘देश’ के साथ साथ बार ‘कौम’की बात करके वह क्या कहना चाहते हैं, यह तो वही जाने. पूरी फिल्म देखकर यही लगता है कि लेखक व निर्देशक का सारा ध्यान सिर्फ मो.अजहरुद्दीन को सही इंसान दिखाने पर ही केंद्रित रहा,जिसके चलते फिल्म की ऐसी की तैसी हो गयी.
फिल्म निर्देशक का दायित्व होता है कि वह फिल्म की कहानी व पटकथा के मद्दे नजर सभी पात्रों के लिए उपयुक्त कलाकारों का चयन करे,पर इस कसौटी पर वह असफल रहे है. अजहर ही नही किसी भी पात्र के लिए वह कलाकारो का सही चुनाव नहीं कर पाए. अजहर के किरदार में इमरान हाषमी ,कपिल देव के किरदार में वरूण वडोला, रवि शस्त्री के किरदार में गौतम गुलाटी भी अपने किरदारां के साथ न्याय करने में असफल रहे हैं. प्राची देसाई एक अच्छी अदाकारा है. इसमें कोई दो राय नहीं. नरगिस फाखरी भी संगीता बिजलानी के किरदार में नहीं जम पायी.व कील रेड्डी के किरदार में कुणाल रॉय कपूर प्रभाव डालने में अफसल रहे हैं. फिल्म के अदालती दृष्य भी बहुत घटिया बने हैं. फिल्म में एक दो गाने ठीक बने हैं.
एकता कपूर की कंपनी ‘‘बालाजी मोशन पिक्चर्स’’और सोनी पिक्चर्स द्वारा निर्मित दो घंटे साढ़े ग्यारह मिनट की फिल्म‘‘अजहर’’के लेखक रजत अरोड़ा, निर्देशक टोनी डिसूजा,संगीतकार प्रीतम व अमाल तथा कलाकार हैं- इमरान हाशमी, प्राची देसाई,नरगिस फाखरी, लारा दत्ता,कुणाल रॉय कपूर,गौतम गुलाटी,वरूण वडोला आदि.

विधायक की बहन की हत्या अपनी ही सरकार को लाए कठघरे में

बिहार के भोजपुर जिले के बड़हरा के राजद विधायक सरोज यादव की बहन शैली देवी के साथ 9 अप्रैल, 2016 को कुछ अपराधियों ने बदसलूकी की और जब अपराधियों को पता चला कि वे एक विधायक की बहन हैं, तो अपनी पहचान छिपाने की नीयत से उन्होंने शैली देवी की हत्या कर डाली.

अपराधियों ने लोहे की छड़ से शैली देवी के सिर पर हमला कर दिया. जख्मी हालत में उन्हें अस्पताल में भरती किया गया, पर 12 अप्रैल, 2016 को उन की मौत हो गई. पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई है कि बदसलूकी के दौरान आटोरिकशा से गिरने से शैली देवी के सिर पर गहरी चोट लगी थी, पर विधायक सरोज यादव इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. शैली देवी को 9 अप्रैल, 2016 को गंभीर हालत में आईसीयू में भरती कराया गया था. पटना मैडिकल कालेज अस्पताल के सुपरिंटैंडैंट डाक्टर लखींद्र प्रसाद ने बताया कि उन के दिमाग में गहरी चोट लगी थी, जिस से वे कोमा में चली गई थीं.

विधायक सरोज यादव के करीबी रिश्तेदार कहते हैं कि यह नीतीश कुमार का कैसा सुशासन है? जब सत्तारूढ़ दल के एक विधायक की बहन और परिवार ही महफूज नहीं हैं, तो आम आदमी की क्या बिसात? प्रशासन शैली देवी की जान तो वापस नहीं ला सकता, पर हत्यारों को फांसी के फंदे तक तो पहुंचा सकता है. गौरतलब है कि 9 अप्रैल, 2016 को विधायक सरोज यादव की 40 साला बहन शैली देवी दवा लेने अपने गांव टोला इंगलिशपुर से आटोरिकशा से चांदी बाजार गांव गई थीं. दवा लेने के बाद वे आरा लौटने के लिए आटोरिकशा में सवार हुईं. उन के साथ 4 और लोग भी उस में सवार हो गए.

आटोरिकशा को चांदी बाजार से जमीरा होते हुए आरा जाना था, लेकिन आटोरिकशा ड्राइवर ने जमीरा की तरफ नहीं जा कर आटोरिकशा को बहियारा की ओर मोड़ दिया. शैली देवी ने जब ड्राइवर से कहा कि वह गलत रास्ते पर जा रहा है, तो ड्राइवर उन से अंटशंट बोलने लगा और आटोरिकशा में सवार बाकी लोगों ने भी उन के साथ बदसलूकी करना शुरू कर दिया. उन के गहने भी छीन लिए. जब शैली देवी ने बदमाशों का विरोध किया और कहा कि उन का भाई विधायक है, तो अपराधियों के होश उड़ गए. इस के बाद अपराधियों ने उन के सिर पर लोहे की छड़ से हमला कर दिया. खून से लथपथ होने के बाद जब शैली देवी बेहोश हो गईं, तो उन्हें चलते आटोरिकशा से सड़क के किनारे फेंक दिया गया. इस के बाद सभी अपराधी वहां से फरार हो गए. सरोज यादव रोतेबिलखते कहते हैं कि उन की बहन की हत्या राजनीतिक वजह से की गई है. उन्होंने वारदात की हाई लैवल जांच कराने की मांग की है. विधायक ने पुलिस पर आरोप लगाया है कि नामजद लोगों को थाने से छोड़ दिया गया है. दरअसल, शैली देवी से बदसलूकी के मामले के बाद पुलिस मिथिलेश और संतोष को आटोरिकशा समेत पकड़ कर थाने लाने में कामयाब हो गई थी, पर कुछ देर की पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया था.

आटोरिकशा ड्राइवर का नाम मिथिलेश कुमार है और वह नरवीपुर गांव का रहने वाला है. उस के साथ संतोष कुमार की भी पहचान की गई है. पुलिस दोनों की खोज में लगी हुई है, पर वे फरार हैं. शैली देवी की मौत के बाद विधायक सरोज यादव ने अपना आपा खो दिया है. वे भूल गए हैं कि राज्य में उन की ही सरकार है. वे अपने समर्थकों के साथ सड़कों पर उतर आए. कोइलवर थाना क्षेत्र के कायमनगर गांव के नजदीक सड़क को पूरी तरह से ठप कर दिया गया. सैकड़ों लोग सड़क के बीचोंबीच बैठ गए. पुलिस और प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की गई. इस से आरापटना हाईवे पर तकरीबन 5 घंटे तक जाम लगा रहा. विधायक सरोज यादव के समर्थक आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. राजद विधायक द्वारा सड़क जाम कर देने से पुलिस के हाथपैर फूल गए. कोइलवर थाने के थानेदार संजय कुमार दलबल के साथ मौके पर पहुंचे और जाम को हटाने की गुजारिश की.

विधायक सरोज यादव ने फिलहाल खुद और अपने समर्थकों पर तो काबू पा लिया है और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हत्यारों को गिरफ्तार कराने का भरोसा दिलाया है, पर राजद के सूत्रों की मानें तो सरोज यादव अपनी बहन के हत्यारों को जेल पहुंचाए बगैर चैन से नहीं बैठने वाले हैं. इस से राजद और राज्य सरकार दोनों के लिए नई मुसीबत खड़ी हो सकती है.

थानेदार को पटक कर मारने की धमकी

पिछले साल 23 नवंबर को राजद विधायक सरोज यादव ने आरा के चरपोखरी थाने के थानेदार कुंवर गुप्ता को जान से मारने की धमकी दी थी. थानेदार का कुसूर इतना ही था कि उस ने पहली बार विधायक बने सरोज यादव की पैरवी सुनने से इनकार कर दिया था. सरोज यादव ने थानेदार को फोन किया, तो थानेदार ने उन्हें पुलिस के सीनियर अफसरों से बात करने की सलाह दी. इस से विधायक का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उन्होंने थानेदार को पटक कर जान से मारने की धमकी दे डाली. दरअसल, सरोज यादव चरपोखरी थाने के तहत बडीहा गांव में कुछ दिनों पहले हुई मुकेश यादव और संजय यादव की हत्या के मामले में आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने का निर्देश दे रहे थे.

थानेदार ने कहा कि उस मामले की जांच सीनियर अफसर कर रहे हैं, इसलिए इस सिलसिले में एसपी से बात की जाए तो सही रहेगा. यही सुन कर विधायक सरोज यादव भड़क गए थे.

क्रिकेट का शौक औरतों के लिए बुरा नहीं

इंडियन मौडल आरशी खान ने अपने कपड़े उतारे, वीडियो बनवाया और सप्रेम पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान शाहिद अफरीदी व भारतीय क्रिकेट टीम को अर्पित भी कर दिया पर चाहे वीडियो को खूब देखा गया, जीत न गोरों को मिली, न भूरों को, जीत मिली वैस्टइंडीज के अश्वेत खिलाडि़यों को, जिन्होंने इंगलैंड को आखिरी ओवर तक उम्मीद में रख कर आखिर की 4 बौलों से टी-20 विश्व कप जीत लिया. टी-20 वैसे खेल कम सर्कस ज्यादा है पर भारतपाकिस्तान और बंगलादेश में तो यह हिंदू व इसलाम धर्म के बाद का धर्म है. क्रिकेट के खिलाफ बोलने वाले क्रिकेटद्रोही ही नहीं देशद्रोही भी हैं और तीनों देश कोई भी सीरीज जीतने पर खिलाडि़यों को मालामाल भी करते हैं, उन्हें ऊंचे सम्मानों से भी  नवाजते हैं. एक सम्मान आरशी खान ने भी दिया पर दोनों टीमें हार गईं.

टी-20 से क्रिकेट रोमांचक हो गया है और 5 दिन चलने वाले उबाऊ टिपटिप की जगह यहां रनों की झड़ी ही अच्छी लगती है. भारत ने इस बार वैसे देश प्रेम की तरह की क्रिकेट में कप जीतना ही है का प्रचार कम किया था पर फिर भी मैदान दर्शकों से भरे थे और आंखें टीवी सैटों से चिपकी थीं. अब क्रिकेट दमखम का खेल होने लगा है और मंझोले से कद वाले भारतीयों की आस्टे्रलिया पर जीत काफी सुखद लगी थी पर फिर सेमीफाइनल में वैस्टइंडीज ने उस सुख की नली को बंद कर के ठंडी हवा बंद कर दी. अब यह खेल औरतों में भी पौपुलर होने लगा है और जिस शाम वैस्टइंडीज की पुरुष टीम जीती उसी दिन वैस्टइंडीज की महिला टीम भी जीती.

क्रिकेट का शौक औरतों के लिए बुरा नहीं है. इस में भागदौड़ कम है. फुटबौल हौकी की तरह पूरे मैदान का चक्कर नहीं है. इस में खिलाडि़यों की टक्कर भी नहीं होती. बौल से हाथपैर में मामूली ही चोट लगती है और इसीलिए इसे यहां गलीगली में अपनाया जाना चाहिए. अब तो लड़कियां हर जगह टीशर्ट और पैंट पहनने लगी हैं, इसलिए पोशाक का भी चक्कर नहीं. यह टी-20 खत्म हो गया हो तो क्या तंबोला की जगह इसे खेलने का प्लान बनाइए. मजा आएगा. बाहर की हवा मिलेगी. पार्क, गली, सड़क, मैदान जहां संभव हो वहां पैंट टौप पहनिए और बल्ला पकडि़ए. राजकमारी केट विंसलैट ने भारत में आ कर स्कर्ट में ही बल्ला घुमा डाला था.

ठंडा बस्ता

पहला पीरियड शुरू हो चुका था. सभी कक्षाओं के कक्षाध्यापक अपनीअपनी कक्षाओं में जा चुके थे. तभी एनसीसी कक्ष से बाहर आते विनय सर की नजर केशव पर पड़ी, जो पूरे 15 मिनट लेट था. विनय सर ने केशव को बुलाया और लेट आने पर दंड देते हुए कहा, ‘‘जाओ, पूरे ग्राउंड के 3 चक्कर लगा कर आओ. तुम पूरे 15 मिनट लेट हो.’’

केशव 10वीं कक्षा का छात्र था. वह बोला, ‘‘सर, मुझे माफ कर दीजिए. मैं हमेशा समय पर स्कूल आता हूं. आज ही लेट हो गया हूं. आगे से ध्यान रखूंगा.’’

विनय सर का अपना अलग मिजाज था. उन का स्वभाव और व्यवहार सारे शिक्षकों से अलग था. छात्र उन की आज्ञा का उल्लंघन करें यह उन्हें बरदाश्त नहीं था. इस से पहले भी विनय सर कई छात्रों को कठोर दंड दे चुके थे. उन छात्रों के अभिभावकों से झगड़ा होने पर विद्यालय के शिक्षकों ने विनय सर को समझाया भी था और कार्यवाही होने पर बचाया भी था. अपनी आदत के अनुसार विनय सर बोले, ‘‘तुम्हें ग्राउंड के 3 चक्कर तो लगाने ही पड़ेंगे?’’

केशव विनम्रता से बोला, ‘‘सर, आप कोई और सजा दे दें, मेरे पैर में चोट लगी है, जिस कारण मैं ग्राउंड के 3 चक्कर नहीं लगा सकता.’’ केशव के मुंह से इतना सुनना था कि विनय सर तमतमा उठे और उन्होंने 3-4 थप्पड़ केशव को जड़ दिए.

केशव थप्पड़ खाने के बाद अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा. घर आ कर उस ने पूरी बात अपने मम्मीपापा को बताई. उस की मां बोलीं, ‘‘ऐसे कौन से सर हैं, जिन्होंने तुम्हें इतना मारा है? उन की इतनी हिम्मत.’’

केशव के पिताजी बोले, ‘‘मैं अभी देखता हूं तुम्हारे सर को. उन की इतनी हिम्मत कैसे हुई़.’’ वे केशव के साथ उस के विद्यालय की ओर चल पड़े.

केशव के चाचा भी उन के साथ हो लिए, ‘‘मैं मीडिया को खबर करता हूं. अपने दोस्त को भी बुलाता हूं.’’

यह सब घटनाक्रम मात्र आधे घंटे में घटित हो गया. मीडिया के लोग अपने कैमरों के साथ विद्यालय पहुंच गए. केशव अपने मातापिता, चाचा और पड़ोसियों को साथ ले कर स्कूल आ गया. ऐसा लग रहा था जैसे ये सभी इकट्ठा हो कर विनय सर की अक्ल ठिकाने लगाने, उन्हें सबक सिखाने आ गए हों. एकदो व्यक्तियों ने तो अतिउत्साह दिखाते हुए विनय सर का कौलर ही पकड़ लिया. प्रिंसिपल सर द्वारा बीचबचाव करने के कारण उन की ज्यादा हिम्मत नहीं हुई. बाद में वे विनय सर की शिकायत करने थाने भी पहुंचे. इधर विनय सर ने भी थाने में अपनी तरफ से रिपोर्ट लिखवा दी. मीडिया वालों ने तत्परता दिखाते हुए छात्र और उस की मां के स्टेटमैंट ले कर टीवी चैनल्स पर दिखाए. पूरे दिन विनय सर और छात्रपक्ष के लोग थाने के चक्कर लगाते हुए अपनाअपना पक्ष रखते रहे. थाना इंचार्ज सरल स्वभाव के समझदार व्यक्ति थे, बोले, ‘‘आप दोनों अपनाअपना पक्ष इतने दावों के साथ रख रहे हैं. पर इतना जान लें कि एफआईआर दर्र्ज होने पर दोनों को परेशानी होगी. आगे आप दोनों समझदार हैं, जैसा आप लोग कहेंगे हम वैसी कार्यवाही कर देंगे.’’

थाना इंचार्ज की बात सुन कर विनय सर के होश ठिकाने आ गए. वे समझ गए कि यदि एफआईआर दर्ज हुई तो वे सस्पैंड हो सकते हैं, तिस पर केस चलेगा सो अलग. दूसरी ओर केशव के चाचा, जो पहले बड़े उग्र हो रहे थे. थाना इंचार्ज की बातें सुन कर एकदम शांत हो गए. 5 मिनट में ही विनय सर और केशव के परिजनों के बीच समझौता हो गया.केशव और उस की मां कहने लगे, ‘‘सर की कोई गलती नहीं, उन्होंने मेरे बेटे को नहीं मारा.’’

उधर बेटे ने भी बयान दिया, ‘‘मुझे सर ने नहीं मारा.’’  फिर मामला सुलझ गया. पुलिस ने भी मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

पर्स है भानुमती का पिटारा नहीं

वैसे तो सदियों से पर्स का इस्तेमाल रुपएपैसे और जरूरत की वस्तुएं रखने के लिए किया जाता रहा है. परंतु वर्तमान में पर्स पर्स न रह कर झोला बन गया है, जिस में रुपएपैसे के अलावा मेकअप की चीजें, लिपस्टिक, कांपैक्ट, फाउंडेशन, परफ्यूम, झुमके, टौप्स, पाजेब, बैंगल्स, क्लिप, हेयर बैंड, बालों में उलझी कंघी, 2-4 गंदे रूमाल, एकाध इंगलिश नौवल के साथसाथ लंचबाक्स और पानी की बोतल मिल जाएगी.

कुछ महिलाओं के पर्स की स्थिति उस डस्टबिन जैसी होती है जिस में कूड़ा डाला तो जाता है पर निकाला नहीं जाता. कुछ के पर्स में टौफी, चौकलेट के साथ बर्गर, पैटीज और समोसे के अवशेष भी मिल जाते हैं, जिन की बदबू को पर्स में रखी परफ्यूम की खुशबू भी मिटा नहीं पाती.

पर्स में बिना ध्यान दिए अनावश्यक चीजें ठूंसते रहने के कारण उस का वजन बढ़ जाता है और भारी पर्स उठाने के कारण कई प्रकार की बीमारियों का खतरा भी पैदा हो जाता है. कैलिफोर्निया के डा. एडम हाल ने अपने एक अनुसंधान में पाया कि भारी पर्स की वजह से महिलाएं कंधे, गरदन व कमर के दर्द की शिकार हो सकती हैं. डा. एडम ने अपनी खोज में पाया कि स्पोंडिलाइटिस, रीढ़ की हड्डी में दर्द, हाथों की उंगलियों में दर्द, कलाई में दर्द आदि की शिकायत भारी पर्स लटकाने की वजह से हो सकती है.

डा. एडम का मानना है महिलाओं का शरीर नाजुक होता है. ऐसे में भारी पर्स अधिक समय तक कंधे पर लटकाए रहने से ढेर सारी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. भारी पर्स स्वास्थ्य ही नहीं, व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता है. भारी पर्स चाल को बिगाड़ता है जोकि व्यक्तित्व का माइनस प्वाइंट है.

क्या रखें पर्स में

एक आदर्श पर्स में एक नोटबुक, ढेर सारे विजिटिंग कार्ड्स और छोटेछोटे कागज पर लिखे नंबर और पते के बजाय एक छोटी टेलीफोन डायरी, 2 साफ रूमाल, कुछ दवाएं, जो आप के लिए जरूरी हों, 1 लिपस्टिक, कंघी, 2 पेन और जरूरत भर के पैसे ही होने चाहिए. लंचबाक्स और पानी की बोतल पर्स में न ठूंसें.

कैसा पर्स लें

  1. पर्स न तो ज्यादा बड़ा हो, न ही छोटा.
  2. जिस उद्देश्य के लिए पर्स ले रही हैं, उस का ध्यान रखें.
  3. पर्स सस्ता, सुंदर व टिकाऊ हो.
  4. रैक्सीन के बजाय लेदर या जूट का पर्स लें.
  5. पर्स में जरूरत के मुताबिक ही पाकेट्स हों.

ध्यान देने योग्य बातें

  1. पर्स में फालतू व भारी सामान न रखें.
  2. समयसमय पर पर्स की सफाई करें और उस में रखा फालतू सामान निकाल दें.
  3. पर्स में पूरी डे्रसिंग टेबल ही न समेट लें. 1-2 जरूरत की चीजें ही रखें.
  4. पायल, झुमके, कंगन, चूडि़यां आदि उतार कर पर्स में न रखें.
  5. पानी की बोतल, लंचबाक्स, छतरी आदि पर्स में ठूंसने के बजाय अलग पोलीथिन या बैग में ले जाएं.
  6. पर्स को घरेलू सामान, सब्जी आदि ले जाने का झोला न बनाएं.
  7. पर्स में खाने की सामग्री मसलन टौफी, बिस्कुट, चौकलेट आदि न रखें. इस से पर्स में चींटियां आ सकती हैं.  

उत्तर प्रदेश की बसों में कडंक्टर बेचेगा पानी

उत्तर प्रदेश सरकार ने बस यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बस में ही पीने की पानी वाली बोतल उपलब्ध कराने की योजना शुरू की है.इस योजना के पहले चरण में 20 क्षेत्रों की 200 किलोमीटर से अधिक दूरी वाली बसों में बस कंडक्टर को पानी की बोतल बेचने का काम दिया गया है.पानी को ठंडा रखने के लिये आइसबाक्स की व्यवस्था होगी.एक आइसबाक्स में 1 लीटर की 25 और आधा लीटर की 10 बोतले आयेगी. 1 लीटर पानी की बोतल 14 रूपये और आधा लीटर पानी की बोतल की कीमत 9 रूपये रखी गई है.इन बोतलों पर परिवहन नीर लिखा होगा.पानी की बोतलों के बेचने पर तय रकम कमीशन के रूप में कडंक्टर को मिलेगी.परिवहन राज्यमंत्री यासर शाह ने लखनऊ के कैसरबाग बस स्टेशन से इस सेवा की शुरूआत की.1500 बसों में शुरू की गई यह सेवा एक माह में ही 3000 बसों तक में पहुंच जायेगी.

उत्तर प्रदेश में बस सेवा यातायात का प्रमुख जरीया है.अभी भी ज्यादातर बसे खटारा है और समय पर नहीं चलती है.इससे यात्रियों को बहुत सारी असुविधाओं का सामना करना पडता है.बस यातायात दूसरे प्रदेशों के मुकाबले महंगा और असुविधा जनक है.इसमें सुधार की बहुत सारी गुजांइश है.प्रदेश सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है.परिवहन राज्यमंत्री यासर शाह ने बताया कि जल्द ही 1500 नई बसें यात्रियों की सुविधा के लिये उपलब्ध होगी.प्रदेश सरकार ने बढी संख्या में प्राइवेट बसों को अनुबंधित किया हुआ है.इसके साथ बोल्वों बसों को बढाने की योजना है.सरकार के इस कदम से जनता को राहत मिलेगी.एक शहर से दूसरे शहर के बीच रोज सफर करने वालों को लिये सरकार रैपिड  लाइन सेवा शुरू करेगी.यह बसे तय समय से चलेगी जिससे सफर करने वाले को राहत मिल सकेगी.

परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक आशीष गोयल ने कहा कि परिवहन नीर अच्छी क्वालिटी का होगा.जिससे सफर के दौरान पीने योग्य पानी मिल सकेगा.सफर के दौरान साफ पानी बहुत जरूरी होता है.पानी लेने के लिये बस के यात्रियों को बस से उतरने की जरूरत नहीं रहेगी.आशीश गोयल ने कहा कि रोडवेज के कर्मचारियों की मेहनत का ही नतीजा है कि ज्यादातर घाटे में रहने वाला विभाग अब लाभ में आ गया है.यात्रियों के लिये सफर को सुविधाजनक, आरामदायक और सुरक्षित बनाने के लिये और भी प्रयास किये जा रहे है.बस स्टेशनों की हालत सुधारी जा रही है.बस स्टेशनों पर वाईफाई और दूसरी यात्री सुविधाओं को बढाया जा रहा है.

समर वेकेशन को फन टाइम बनाने के ए टू जेड तरीके

लम्बे  बोरिंग  दिन , पसीने वाली चिपचिपाती गर्मियां लेकिन फिर भी बच्चों को गर्मियों का बेसब्री से इन्तजार रहता है क्योंकि गर्मियों में मिलती है उन्हें लंबी छुट्टियाँ जिनका वे पूरे साल इंतज़ार करते हैं गर्मियों की छुट्टियाँ जहाँ बच्चों को मौज मस्ती का बहाना देती है वही पेरेंट्स को टेंशन भी देती हैं कि समर वेकेशन में बच्चों को  कैसे व्यस्त रखा जाए जिससे वे मौज मस्ती करने के साथ साथ हर रोज़ कुछ नया भी सीख सकें .मीनल अरोड़ा ( डायरेक्टर ,शेमरोक एंड शेमफोर्ड ग्रुप ऑफ़ स्कूल्स)  बता रही हैं कुछ ऐसे तरीके जिनसे बच्चों के लिए समर वेकेशन फन टाइम के साथ लर्निंग टाइम भी बन जाए.

ए-एक्टिविटीज –इन छूटियों में अपने बच्चे को पूरा दिन टीवी या विडियो गेम्स में लगे रहने देने कि बजाय उसे किसी व्यक्तिगत या ग्रुप एक्टिविटी में शामिल करवाइए .फिर चाहे वह कोई डांस क्लास हो या कैलीग्राफी क्लास.उसे कहिये कि वह पुरानी पत्र पत्रिकाओं से पिक्चर्स काट कर कोलाज बनाए .

बी -बोरियत दूर करने के उपाय –बच्चे को कुछ आर्ट व क्राफ्ट की किताबें  ला कर दें जिनसे वह पेंटिंग व क्राफ्ट की चीजें बना सके .उसका परिचय प्रकृति से करवाएं  उसे उगते सूरज को व रात में चाँद सितारों को निहारने को कहें.अपने दोस्त के लिए कार्ड बनाने को कहें.

सी –समर कैंप  –अपने शहर के आसपास होने वाले समर कैंप में अपने बच्चे का दाखिला कराएँ .फिर चाहे वह एडवेंचर कैंप हो आर्ट कैंप हो डांस या एरोबिक कैंप हो . बच्चे की रूचि के अनुसार उस कैंप में उसका दाखिला कराएँ .इससे बच्चे के टैलेंट को उभरने का मौका मिलेगा .

डी -डेस्टिनेशन –पूरे साल  लंबी छुट्टियों कि कमी के कारण आप कहीं घूमने फिरने नहीं जा पाते इसलिए इन गर्मियों की छुट्टियों में अपने बच्चों को किसी हिल स्टेशन  बीच या रिसोर्ट पर ले जाइए .परिवार के साथ बिताया गया यह समय आपके और बच्चों के लिए एक सुखद यादगार बन जाएगा .

इ -एस्सेन्शिअल्स –गर्मियां अपने साथ लेकर आती है चिलचिलाती धुप,और चिपचिपापन . गर्मियों को पूरी तरह एन्जॉय करने के लिए अपने साथ हमेशा रखिये पानी, छाता सनग्लासेस, सनस्क्रीन लोशन, हैण्ड सैनिटैजेर, कैप, हैट्स ताकि आप पूरी तरह गर्मी के मजे ले सकें

एफ-फ़ूड-गर्मियों की छुट्टियों में  अपने बच्चे को एक्टिव और एनरजेटिक रखने के लिए उन्हें दीजिये हेल्दी व फ्रेश फ़ूड .गर्मियों को कूल स्टाइल में सेलिब्रेट करने के लिए बनाइये  ठन्डी लस्सी ,मिल्क शेक्स फ्रूट स्नैक्स, वेजिटेबल सैंडविच  और सलाद .

जी गेम्स-बच्चों को गर्मियों की छुट्टियों में मानसिक और शारीरिक रूप से एक्टिव रखने के लिए दिन में उन्हें इंडोर गेम्स जैसे स्क्रेबल चैस और शाम के समय आउटडोर गेम्स जैसे बैडमिंटन वोलीबोल व फूटबाल खेलने के लिए प्रेरित कीजिये .

एच हेयरस्टाइल– हर रोज़ बच्चे को नए नए हेयर स्टाइल के जरिये दीजिये नया लुक .अगर बेटी है तो फ्रेंच ब्रेड, हाई पोनीटेल और बेटा है तो ट्राई कीजिये स्पाईकी व फंकी हेयर कट .

 आई –इनक्विसटिव माइंड- अपने बच्चे के उत्सुकतापूर्ण स्वभाव कि सराहना करते हुए उसे ऐसी गेम्स खेलने को कहें जिससे उसकी जानकारी बढ़ने के साथ साथ उसकी दिमागी कसरत भी हो .उसे कोई गीत कविता लिखने को कहें उसे बेकार पड़ी चीजों से कुछ रचनात्मक बनाने को कहें .

जे –जूसेस व ड्रिंक्स –गर्मियों से राहत दिलाने के लिए बच्चे को मिल्कशेक, चोकलेट शेक,  मेंगो स्मूदी लेमनेड ,वाटरमेलन स्लश बनाकर दें .इसे और रोचक और मज़ेदार बनाने के लिए इन ड्रिंक्स को आकर्षक कार्टून वाले ग्लासेज  और स्ट्रॉ के साथ दें

के- किड्स वीयर-खाने पीने के अलावा अपने बच्चों को आकर्षक ढंग से सजाइए संवारिये भी इसके लिए जहाँ अपनी प्रिंसेस को लेयर्ड फ्रॉक और गाउन से संवारिये वहीँ अपने चेम्प को केप्रीस और शॉर्ट्स से स्मार्ट लुक दीजिये .साथ  ही  कलरफुल फुटवियर से उन्हें दीजिये स्टाइलिश लुक .

एल -लिटिल शेफ-इन गर्मियों अपने स्मार्ट किड्स को दीजिये थोड़ी सी ट्रेनिंग लिटिल शेफ बनने की .उन्हें सिखाइए स्वीट कॉर्न चाट , सैंडविच जैसी नो फ्लेम नो फायर वाली  रेसिपी  जिन्हें बनाने में उन्हें न केवल मज़ा आये बल्कि वे खुद अपने बनें खाने की तारीफ भी कर सकें .ऐसी पार्टी में उनके दोस्तों को बुलाना न भूलें

 एम-मूवीज- बच्चों के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाइये ,चाहें तो डीवीडी खरीद कर या मूवी डाउनलोड करके उनके साथ बैठ कर देखें.मूवी का पूरा मज़ा लेने के लिए फ्रूट जूस व् पॉपकॉर्न बनाना न भूलें .बच्चों को आपका यह आईडिया बेहद पसंद आएगा

एन- न्यूट्रीशन--इन गर्मियों अपने बच्चों में डालिए फ़ूड की हेल्दी हैबिट्स.उन्हें दीजिये बैलेंस्ड और हेल्दी डाइट.खाना बनाते  वक्त फ्राइंग की बजे कीजिये बेकिंग स्टिमिंग और बोइलिंग .साथ ही बदलिए उसकी टीवी के आगे बैठ कर भोजन करने की आदत भी .

ओ –आउटिंग–गर्मियों की छुट्टियों में    अपने बच्चे के लिए प्लान कीजिये एजुकेशनल आउटिंग.उसे अपने शहर के ऐतिहासिक म्यूजियम, अम्युस्मेंट पार्क, ज़ू की सैर के लेकर जाइए इससे उसकी जानकारी तो बढेगी ही आपको भी अपने बच्चे के साथ समय बिताने का मौका मिलेगा.

पी-पज्ज़ल्स-अपने बच्चे की दिमागी कसरत के लिए उसे खेलने को दीजिये सुडोकु ,वर्ड चेन जैसी गेम्स.इन गेम्स में उनके दोस्तों को भी शामिल कीजिये.

क्यु- क्विज – अपने बच्चे की जनरल नोलेज बढ़ने के लिए उसके दोस्तों के साथ प्लान कीजिये क्विज कांटेस्ट .  क्विज के लिए एक थीम निर्धारित कीजिये और दो टीम बनाकर उन में प्रतियोगिता  करवाइए और जितने वाली टीम को पुरस्कार दीजिये .

आर-रीडिंग हैबिट्स- इन गर्मियों अपने लाडलों को लाकर दिजीये कुछ  रंग बिरंगी मजेदार रोचक कहानियों की किताबें  जिससे उनका ज्ञान तो बढेगा ही साथ उन्हें इन कहानियों  से सीख भी मिलेगी .

एस –स्पोर्ट-गर्मियों के लंबे दिनों में उन्हें प्रेरित कीजिये उनके मनपसंद खेल को खेलने के लिए .फिर चाहे वह स्विमिंग हो या हॉर्स राइडिंग.इस से  उनको फिजिकल फिटनेस भी मिलेगी .

टी-ट्रेवल –जब भी बाहर जाएँ अपने बच्चे की ट्रेवलिंग की टिप्स अवश्य दीजिये जैसे इस दौरान स्वस्थ व सुरक्षित कैसे रहा जाए .अपने वेहिकल की मेंटेंस की जानकारी दें साथ ही फर्स्ट एड किट ,टिश्यू  आदि हमेशा अपने साथ रखने की सलाह देना न भूलें.

यू -यूवी स्मार्ट गर्मियों के दौरान अपने बच्चे को यूवी प्रोटेक्शन दीजिये .स्किन टैनिंग से बचाने के लिए जब भी वे घर से निकलें उन्हें सनस्क्रीन लोशन, सनग्लासेज  और छाता लेकर जाने को कहें .साथ ही घरेलु उपाय के तौर पर एलोवेरा जेल व् गुलाब जल लगाने को कहें .

वी- वैराइटी-हर गर्मियों की तरह वही समरकैंप वही ट्रिप की जगह नयी जगहें एक्स्प्लोर कीजिये ताकि वे बोर न हों इन्टरनेट पर उनके मनोरंजन के लिए नया सर्च कीजिये.

डब्लू -वाटर फन –गर्मियों से रहत पाने के लिए पानी से जुडी  एक्टिविटीज जैसे वाटर रेस,वाटर बास्केटबॉल, वाटर पार्क ,स्विमिंग जैसी एक्टिविटी ज्वाइन कराइए .

एक्स- एक्स्ट्रा फन –इन गर्मियों की में नयापन लाने के लिए मोर्निंग वाक फोटोग्राफी पुरानी फॅमिली एल्बम देखने को कहें .ओल्ड ऐजहोम्स या अनाथाश्रम जाने को कहें इस से उन्हें बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा .

वाई- योगा-इन गर्मियों बच्चों को पढाइए फिटनेस का पाठ .उन्हें संगीत के साथ योग सिखने के लिए प्रेरित कीजिये जो उनमें अनुशासन के साथ फिटनेस भी देगा .

जेड- जेस्ट– इस वेकेशन में अपने बच्चों में और उत्साह और जोश जगाने के लिए प्लान कीजिये उनके दोस्तों के साथ  पजामा पार्टी , वाटर पूल पार्टी ,बारिश के मज़े लेना .ये मस्ती उनकी वेकेशन को यादगार बना देगी .  

  लेकिन ए टू जेड की इस मस्ती  कराने में बच्चों के होमवर्क को मत भूलिएगा .ध्यान रहे आपका बच्चा जो भी करे पूरे जोश के साथ करे ताकि उसकी ये छुटियाँ उसके लिए यादगार बन जाए .

‘‘बुद्धा इन ट्रैफिक जाम :ज्वलंत मुद्दे पर शुष्क मगर सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म’’

इंटेलेक्चुअल आतंकवाद की कलई खोलने के साथ साथ आदिवासियों की भलाई की बात करने वाले नक्सली किस तरह महज खून की नदियॉं बहाने के लिए भोलेभाले आदिवासियों को नुकसान पहुॅचाने के साथ साथ उनका षोशण करते है,इस बात को रेखांकित करने वाली फिल्म का नाम है-‘‘बुद्धा इन ट्रैफिक जाम’’. फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने अपनी इस फिल्म के माध्यम से यह भी बताने का प्रयास किया है कि राजनेता और नक्सलियों की मिली भगत से आदिवासियों का भला नहीं हो पा रहा है.

फिल्म‘बुद्धा इन ट्रैफिक जॉम’’की कहानी षुरू होती है बस्तर से.जहॉं एक रानीतिक पार्टी का नेता नन्हें सिंह आदिवासी की पिटाई यह कह कर करता है कि वह सरकार के साथ नही बल्कि नक्सलियों के साथ है.तो वहीं नक्सल प्रमुख गोपाल सिंह उसी आदिवासी की पिटायी कर उसके बेटे को उठा ले जाता है कि वह नक्सलियो की बजाय सरकार के साथ है. उधर दिल्ली के आईएमएम के प्रोफेसर प्रोफेसर राजन बाटकी(अनुपम खेर)एमबीए के विद्यार्थियों को जो शिक्षा दे रहे है,वह भी हर विद्यार्थी को क्रांतिकारी या यॅूं कहे कि कॉमरेड बनाना चाहते है.

कहानी आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि राजनेता नन्हें सिंह,नक्सल चीफ और प्रोफेसर राजन तीनो एक साथ पढे़ हुए हैं और तीनो ने योजना बनाकर अलग अलग जगह व कार्यक्षेत्र चुने.इनका मकसद वाम विचार धारा का प्रसार,सरकार को अस्थिर करना और सड़को पर खून की नदियॉं बहाते हुए सिविल वार करना है.जब प्रोफसर राजन के विष्वविद्यालय का होनहार छात्र विक्रम पंडित (अरूणोदय सिंह),अचानक सफलता पूर्वक सोशल मीडिया पर कट्टरपंथियों के खिलाफ नैतिकता को लेकर आंदोलन चलाकर सूर्खियों आ जाता है तो प्रोफेसर राजन उसे कामरेड बनाकर अपनी योजना का हिस्सा बनाते हुए क्रांतिका अगुवाकर बनाना चाहते हैं.इसलिए वह उसके साथ एक खेल शुरू करते हैं.पता चलता है कि प्रोफेसर राजन की असलियत से अनजान राजन की पत्नी शीतल बाटकी(पल्लवी जोषी)आदिवासियों की मदद के लिए एनजीओ चला रही चारू सिद्धू(माही गिल )को ‘द पॉटरी क्लब’’के नाम पर सरकार से  डोनेशन लेकर देती रहती है.इस बार 22 करोड़ रूपए मिलने वाले है,मगर अचानक सरकार की जॉच एजंसियों को पता चलता है कि एनजीओ नक्सलियो को धन पहुॅचा रहे है.और तभी पता चलता है कि चारू भी नक्सली चीफ की दाहिना हाथ है.बहरहाल,.विक्रम को अहसास होता है कि वह एक एसी साजिश का हिस्सा बनने वाले थे,जिससे उनकी अपनी जिंदगी के साथ साथ देश भी खतरे में पड़ जाता.

वह देश के कई कोनों में मौजूद समाजवाद और पॅूंजीवाद के बीच उलझकर रह जाता है.तो देश के जंगलों के भीतर गहरे व ज्वलंत साजिषकर्ता देश को पंगु बनाने के ज्वलंत साजिशकर्ता देश को पंगु बनाने के लिए तत्पर हैं.इन लोगों ने कुलीन समाज के साथ संबंध भी स्थापित कर लिया है.विक्रम का इंटरनेट अभियान उसे वेब की दुनिया की गहरी साजिष में फंसा देती है.फिल्म की कहानी स्टेबलिमेंट/सिस्टम की भयावह संचरना के बीच जीवित बचे रहने की कथा है.यह फिल्म पॅूंजीवाद और समाजवाद के लंबे संघर्ष के साथ ही समकालीन भारत के लिए आवष्यक क्रांति को परिभाषित करती है.

फिल्मकार विवके अग्निहोत्री ने देश के एक ज्वलंत मुद्दे को चुना है,उन्होने नक्सलियों के खिलाफ बहुत सटीक बात कही है और आदिवासियो की मदद करने या आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए बिचौलियो को खत्म करने का रास्ता बताया है.यह पहली फिल्म है जिसमें समस्या को रेखांकित करने के साथ साथ समस्या का निदान भी बताया गया है.मगर ‘हेट स्टेरी’जैसी इरेटिक फिल्म निर्देषित कर चुके विवके अग्निहोत्री ने इस फिल्म में भी दो जगह सेक्स संबंध/संभोग दृष्यों को रखा है,जबकि इनकी जरुरत नहीं थी. एक दो दृष्यो में भाषण बाजी भी हो गसी .उससे बचा जा सकता था. कुल मिलाकर फिल्मकार विवक अग्निहोत्री ने एनजीओ,सरकार,सिस्टम, नक्सलियो की सॉंठ गॉंठ का जो काला व कच्चा चिट्ठा पेश किया है, वो लोगों को सोचने पर मजबूर करती है.पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब देश के हर क्षेत्र और स्कूल व कालेज में शिक्षक के रूप में भी भ्रष्ट लोग बैठे हो तो आम इंसान इनसे कैसे सचेत होगा.

जहॉं तक अभिनय का सवाल है तो अनुपम खेर, पल्ल्वी जोषी,अरूणोदय सिंह ने बेहतीन परफार्मेंस दी है. फिल्म मे सारे गाने पार्ष्व में है,कुछ गाने अच्दे है ओर सही सिच्युएशन मे रखे गए है. मगर बसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह फिल्म आम दर्षको तक पहुंच सकेगी? मुष्किल है. शयद यही वजह है कि फिल्म पूरे दो साल के बाद रिलीज हो पा रही है. यह पूरी तरह से अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहो मे ही शहरत बटोरने वाली फिल्म है. पर फिल्म दर्षक को सोचने पर मजबूर करती है.
फिल्म के लेखक निर्देशक विवेक अग्निहोत्री, संगीतकार रोहित शर्मा,कैमरामैन अत्तर सिंह सैनी हैं.

गांगुली से सहमत नहीं हैं ये क्रिकेट दिग्गज

पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली का मानना है कि महेंद्र सिंह धोनी 2019 विश्व कप तक सीमित ओवरों की टीम की अगुवाई नहीं कर पाएंगे और वह चाहते हैं कि कोहली को जल्द ही इन प्रारूपों में भी कप्तान बना देना चाहिए. कोहली इस समय शानदार फॉर्म में हैं और वह अभी इंडियन प्रीमियर लीग में सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज हैं.

पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर और मोहम्मद अजहरुद्दीन दोनों की राय गांगुली से काफी अलग है. धोनी को हटा कोहली को टी20 और सीमित ओवर का कप्तान बनाने पर असहमत हैं ये दो क्रिकेट दिग्गज.

सुनील गावस्कर का मानना है कि स्टार बल्लेबाज विराट कोहली को अभी सभी तीन प्रारूपों का कप्तान बनाने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और उन्हें टेस्ट टीम की अगुवाई करते हुए सीखने का मौका देना चाहिए. उन्हें अपनी भूमिका में परिपक्व बनने देना चाहिए. 2019 विश्व कप अभी काफी दूर है.

वहीं मोहम्मद अजहरुद्दीन ने कहा कि महेंद्र सिंह धोनी ने अपने करियर में क्रिकेटर के तौर पर इतना कुछ हासिल किया है और उन्हें अपने भविष्य पर फैसला करने का अधिकार मिलना चाहिए.

अजहर ने कहा, ‘‘यह गांगुली की निजी राय है और मैं इसका सम्मान करता हूं. इसके साथ ही यह धोनी पर निर्भर करता है कि वह अपने भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं. मैं गांगुली की राय का सम्मान करता हूं लेकिन मेरा मानना है कि धोनी को यह फैसला करने मौका दिया जाना चाहिए कि उन्हें कब संन्यास लेना है.’’

उन्होंने भारत के वनडे और टी20 टीम के कप्तान के बारे में कहा, ‘‘धोनी इस मौके का हकदार है. वह सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक है. उसने सभी प्रमुख टूर्नामेंट जीते हैं और खेल के सभी प्रारूपों में भारत को नंबर एक बनाया है. मेरा मानना है कि हमें उसके प्रदर्शन को नहीं भूलना चाहिए.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए इस पर अपनी राय देना बहुत मुश्किल है. यह पूरी तरह से धोनी पर निर्भर करता है कि वह मानसिक तौर पर कैसा महसूस करता है और खेल कितना कड़ा बन गया है. हमें धोनी को संन्यास पर फैसला लेने का मौका देना चाहिए.’’

गांगुली ने कहा था कि धोनी का विश्व कप 2019 तक बने रहना संभव नहीं है और इसलिए विराट कोहली को सभी प्रारूपों का कप्तान बनाया जाना चाहिए. लेकिन अजहर ने कहा, ‘‘कई बार लोगों की जिंदगी में उतार चढ़ाव आता रहता है और अभी धोनी की फॉर्म अच्छी नहीं है. लेकिन उन्होंले टीम का नेतृत्व अच्छी तरह से किया है और जो खिलाड़ी उनकी कप्तानी में खेले उनके लिए वह प्रेरणास्रोत है.’’

उनका मानना है कि धोनी के संन्यास लेने के बाद भारत को कोहली को यह जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए. अजहर ने कहा, ‘‘देश में इस पर कोई दूसरी राय नहीं है कि विराट को टी20 और वनडे में अगला कप्तान होना चाहिए. वह पहले ही टेस्ट मैचों में कप्तान है.’’

उच्चतम न्यायालय के लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने को लेकर बीसीसीआई परेशानी में है लेकिन अजहर का मानना है कि बीच का रास्ता निकाला जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘बोर्ड को लगता है कि लोढ़ा रिपोर्ट को जस का तस लागू करना संभव नहीं है. यदि दोनों पक्ष समझौता करते हैं तो यह खेल के लिए अच्छा होगा.

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