सोशल मीडिया ने थोक में गैर पंजीकृत पत्रकार पैदा कर दिए हैं. इन फुरसतियों का एक पसंदीदा काम अफवाह फैलाना भी है जिस का लुत्फ ही अलग है, फिर भले ही इस से किसी की प्रतिष्ठा और भावनाएं जुड़ी हों. बीते दिनों ट्रैजिडी किंग के खिताब से नवाजे गए अभिनेता दिलीप कुमार, मुंबई के एक अस्पताल में भरती हुए तो सोशल मीडिया के इन खिलाडि़यों ने खबर बना दी कि दिलीप साहब नहीं रहे. कइयों ने तो बगैर सचाई की जांच किए उन्हें श्रद्धांजलि भी दे डाली.

इस से पहले कादर खान और शशिकपूर की मौत की अफवाहें भी उड़ाई गई थीं यानी मान यह लिया गया है कि किसी बीमार बुजुर्ग के अस्पताल जाने का एक ही मतलब होता है. दिक्कत तो यह है कि इन खबरचियों को कोई सजा आसानी से नहीं दी जा सकती जिन्हें हर काम को पहले कर दिखाने का आत्मसुख और श्रेय चाहिए रहता है.

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