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‘ब्रा’ और ‘ब्रेस्ट’ को छुपाना नहीं, दिखाना चाहिए: सलोनी

‘एमटीवी गर्ल्स ऑन टॉप’ फेम सलोनी चोपड़ा ने इंस्टाग्राम पर अपनी एक तस्वीर के साथ महिलाओं के अंडरगारमेंट्स और शरीर को लेकर कुछ ऐसी बातें लिखी, जिसके बाद वो चर्चा में आ गई हैं. उन्होंने महिलाओं की ब्रेस्ट और ब्रा को लेकर एक नई बहस शुरू कर दी है.

सलोनी इंस्टाग्राम पर पोस्ट की गई इस फोटो में अपने हाथ में ब्रा लेकर खड़ी दिख रही हैं. इस फोटो के साथ उन्होंने लंबा-चौड़ा मैसेज लिखा है. उन्होंने लिखा, 'जिंदगी एक ब्रा की तरह है और महिलाओं को अपनी सेक्सुएलिटी के बारे में और खुले दिमाग का बनना पड़ेगा. हमारे ब्रेस्ट सिर्फ हमारे शरीर का एक हिस्सा हैं, हमारा सम्मान और गरिमा नहीं. समाज में ऐसे बीमार लोग भी हैं जिन्हें ब्रा का स्ट्रैप दिखने से भी दिक्कत है. ब्रा शरीर के एक अंग को ढंकने का एक कपड़ा भर है.'

उन्होंने आगे लिखा, 'हमारे समाज की यह कैसी दौहरी मानसिकता है, जो पुरुषों को तो आजादी देता है, लेकिन महिलाओं को नहीं. अगर पुरुष बिना शर्ट अैर पेंट के अपने घर में घूम सकते हैं, तो एक महिला अपनी ब्रा स्ट्रैप क्यों नहीं दिखा सकती है? अगर ऐसा होता है, तो लोगों को दिक्कत होने लगती है.

अपनी पोस्ट में सलोनी ने कहा कि ब्रेस्ट ऐसी चीज नहीं है जिसे छुपाया जाना चाहिए, ये बहुत सुंदर होती है. इसमें इतनी बड़ी बात क्या है? क्यों लोग लड़की के ब्रेस्ट देखकर असहज हो जाते हैं? क्या पुरुष इतने कमज़ोर होते हैं? ऐसे नहीं है कि हमारे ब्रेस्ट पवित्र होते हैं, वो सिर्फ़ हमारे शरीर का एक हिस्सा ही हैं.

सलोनी ने बताया, 'मुझे कुछ ऐसे पुरुष मिलते हैं, जो आपको नॉमर्ल लेगेंगे. लेकिन उनकी मानसिकता बहुत छोटी होती है. हालांकि शुरुआत में वो अपनी बातों से आपको बहुत अच्छा महसूस कराएंगे. लेकिन असल में ये ऐसे लोग होते हैं जो इंस्टाग्राम पर मॉडल्स को फॉलो करते हैं और पॉर्न फिल्में अपने मोबाइल फोन में रखते हैं.'

शाहरुख खान के योद्धा बनने की खबर महज पब्लिसिटी स्टंट?

पिछले दो माह से बॉलीवुड के साथ साथ मीडिया में चर्चाएं गर्म हैं कि आदित्य चोपड़ा की नई फिल्म में शाहरुख खान योद्धा के किरदार में नजर आएंगे. खबरें गर्म हैं कि वह एक अन्य फिल्म में गाइड के किरदार में नजर आएंगे. पिछले दो माह से इन खबरों को लेकर शाहरुख खान चुप थे. आदित्य चोपड़ा और यशराज फिल्म्स ने भी चुप्पी साध रखी थी. जबकि यह खबरें हर पत्र पत्रिका में छप रही थी. मगर अब जबकि यह खबरे छपना बंद हो गयी हैं, तो शाहरुख खान ने अपने ट्वीटर हैंडल का सहारा लेते हुए कहा है कि वह किसी भी फिल्म में योद्धा या गाइड नहीं बन रहे हैं.

अब सवाल उठना लाजमी है कि पिछले दो माह से वह चुप क्यों थे? उसी वक्त इस खबर का खंडन क्यों नहीं किया था? क्या इसी बहाने वह खुद को खबरों में रखे हुए थे और अब जबकि शाहरुख खान के योद्धा बनने की खबरें छपना बंद हो गयी है, तो शाहरुख खान ने ट्वीटर का सहारा लेकर खबरों का खंडन करके  फिर से खुद को खबरों में रखने का रास्ता निकाला है. तो क्या शाहरुख खान अपने प्रचार व अपने आपको सूर्खियों में रखने के लिए खुद ही गलत खबरे फैलाते रहे हैं?

बॉलीवुड से जुड़े सूत्रों की माने तो शाहरुख खान बेरोजगार हैं.मउनके पास एक भी फिल्म नहीं है. बेचारे घर पर खाली बैठकर कुछ तो करेंगे और यदि खबरों में नहीं रहेंगे, तो वह लोगों की नजरों से ही नहीं दिलो दिमाग से भी ओझल हो जाएंगे. इसी कारण वह कुछ दिन पहले फिल्मकार आनंद एल राय को जन्मदिन की बधाई देने पहुंच गए और उसकी तस्वीरें वायरल करवायी.

दो दिन पहले सलमान खान के साथ मुंबई की सड़कों पर सायकल चलाकर तस्वीरें वायरल करवायी. शाहरुख खान के एक अति नजदीकी सूत्र का दावा है कि सुर्खियों में रहने के लिए कुछ तो करते रहना चाहिए. यह तो मीडिया को सोचना चाहिए कि क्या छापें क्या नहीं?

संजय दत्त के सितारे हैं गर्दिश में

अपने अपराध की सजा काटने यानी कि जेल में लगभग पांच साल गुजारने के बाद संजय दत्त के अपने अभिनय करियर को संवारने के प्रयास विफल ही होते जा रहे हैं. जेल से बाहर निकलने के बाद संजय दत्त को लेकर कई फिल्मों की घोषणा होने के बावजूद अब तक एक भी फिल्म शुरू नहीं हो पा रही है. सूत्रों के अनुसार सिद्धार्थ आनंद की फिल्म की शूटिंग शुरू हो, इसके लिए फिल्म के अपने किरदार की मांग के अनुरूप अपने आपको तैयार करने के लिए संजय दत्त ने अपने बंगले के नीचे के हिस्से को ट्रेनिंग स्थल का रूप देकर कनिष्क शर्मा से ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी.

लोगों की उन पर नजर पड़े, इसके लिए बंगले की चार दीवारी पर हरे रंग का परदा लगावा था. संजय दत्त ने इस बात को खूब प्रचारित करवाया था. मगर अफसोस उनकी सारी मेहनत बेकार गयी. क्योंकि सिद्धार्थ आनंद ने फिलहाल इस फिल्म को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. अब सिद्धार्थ आनंद ने यह निर्णय क्यों लिया, यह रहस्य बना हुआ है. इसके अलावा अब संजय दत्त की किसी भी फिल्म के शूरू होने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है. इसलिए अब संजय दत्त के नजदीकी सूत्र कहने लगे हैं कि संजय दत्त के सितारे अभी भी गर्दिश में ही चल रहे हैं.

उधर संजय दत्त के सितारे इतने गर्दिश में है कि संजय दत्त के जीवन पर बनने वाली बायोपिक फिल्म का निर्माण भी अधर में लटका हुआ है. सूत्रों के अनुसार संजय दत्त की बायोपिक फिल्म में संजय दत्त का किरदार रणबीर कपूर निभाने वाले हैं, मगर जहां एक तरफ रणबीर कपूर का अपना करियर डगमग नजर आ रहा है. वहीं दूसरी तरफ अभी तक इस बायोपिक फिल्म के लिए दो हीरोइनों की तलाश भी पूरी नहीं हो पायी है. मजेदार बात यह है कि इस फिल्म की शूटिंग की तैयारियां करने की बजाय फिल्म के निर्माता राज कुमार हिरानी विदेश जाकर बैठे हुए हैं. यानी कि इस बायोपिक फिल्म पर भी ग्रहण ही लगा हुआ है.

इतना ही नहीं सूत्रों की माने तो कभी संजय दत्त के जिगरी दोस्त रहे सलमान खान के साथ उनका शीतयुद्ध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. तो दूसरी तरफ संजय दत्त के दूसरे यार अजय देवगन अपनी फिल्म में इस कदर व्यस्त हैं, कि उनके पास संजय दत्त की सुध लेने का समय ही नही है. बेचारे संजय दत्त उम्र के इस पड़ाव पर अपने करियर को संवारने की लड़ाई में अकेले पड़ गए है. सूत्रों की माने तो संजय दत्त की समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपनी किस्मत के सितारों को गर्दिश से कैसे उबारें.

सावधान ! लड़कियों के लिबास में हो सकता है लड़का

सुनसान सडक पर खडी अकेली लड़की को देखकर अच्छेअच्छे लोगों का दिल मचल जाता है. ऐसे लोग सावधान हो जायें. अकेली लड़की से मौजमस्ती करने की यह इच्छा आप पर भारी पड सकती है. ऐसी चाहत रखने वाले अपराधी गिरोह का शिकार हो सकते हैं. अपराधियों के साथ मिलकर लडकियां तो ऐसी साजिश रचती ही रहती हैं, अब लड़के भी इसका हिस्सा होने लगे है.

लड़के लड़कियों का लिबास पहन कर सूनसान सडक, पार्क, रेलवे स्टेशन पर देर रात खडे हो जाते हैं. इनको खडा देखकर राह चलते मनचले लोग सोचते हैं कि यह लड़की है और इनका लाभ उठाया जा सकता है. वह लड़की का लिबास पहने लड़के के झांसें में आ जाते हैं. लड़की बना लड़का सेक्स करने के लिये भी उकसाता है. जैसे ही उसे लेकर एंकात में पहुंच जाता है, वह उसको लूट लेता है. कई बार लड़की का लिबास पहने लड़की बने गिरोह में एक के अलावा ज्यादा लोग भी शामिल होते हैं.

अपराधी गिरोह इस काम के लिये ऐसे लडकों का चुनाव करते है जो बोलचाल और देखने सुनने में मेकअप के बाद किसी सुदंर लड़की की तरह दिखते हैं. इसके बाद इनको एक कमरे में लड़की का लिबास पहनने और मेकअप करने के लिये समय दिया जाता है. एक से दो घंटे की मेहनत के बाद मेकअप करके जब यह लोग बाहर निकलते है तो किसी लड़की की ही तरह दिखते है. एक गिरोह में 4 से 5 लोग होते हैं. लड़की बने लड़के के साथ दूर गिरोह के दूसरे सदस्य भी खडे रहते हैं, जिससे जरूरत पडने पर वह इसकी मदद कर सके. जब लड़की बना लड़का लूटने के लिये शिकार को एकांत जगह लेकर जाता है, तब गिरोह के बाकी लोग भी वहां आ जाते हैं. ऐसे में यह लोग अपने शिकार पर पूरी तरह से कब्जा करके उसे लूट लेते हैं. वह शिकायत लेकर पुलिस के पास न जाये इसकी धमकी भी देते हैं.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस तरह के कई गिरोह लूटपाट करने में लगे थे. इस बात की तमाम बार शिकायत भी हुई. कई बार कुछ लोग पकडे भी गये. इसके बाद भी यह सिलसिला रूका नही. सामाजिक संगठन ‘पावर विंग’ को इस तरह की कई शिकायते मिल रही थी. ‘पावर विंग’ की महिला सदस्यों ने इस गिरोह को रंगे हाथ पकडने का प्लान बनाया. जब यह लोग सूनसान जगह पहुंचे, तो लड़की के लिबास पहने लड़का आया और इनको समझाने लगा. पूरी बात समझ कर जब यह लोग उसके साथ एंकात में गये, तो वहां दूसरे लोग भी आ गये और लूटपाट करने की कोशिश शुरू की. ‘पावर विंग’ के बाकी सदस्यों ने इन को पकडा. पकडे गये नीतीश और आकाश ने पहले ‘पावर विंग’ के लोगों को धमकाने की कोशिश की.

जब मामला एसएसपी मंजिल सैनी की जानकारी में आया तो उनकी पहल पर नकली लिबास पहने लोगों पर मुकदमा कायम हुआ. सामाजिक संगठन ‘पावर विंग’ ने कहा कि हम अपराध के खिलाफ एक मुहिम चला रहे है. इस बीच यह पता चला कि लड़की का लिबास पहने लड़के अपराधिक घटनाओं को अंजाम देने का काम कर रहे हैं, तब हमने यह पर्दाफाश किया.                      

देखें केतकी कपाड़िया की शॉर्ट फिल्म ‘माय वॉयस’

मुम्बई की फिल्ममेकर केतकी कपाड़िया ने शॉर्ट फिल्म ‘माय वॉयस’ का निर्देशन किया है. केतकी का कहना है कि उनकी ये शॉर्ट फिल्म दीपिका पादुकोण अभिनित ‘माय च्वॉयस’ का जवाब है.

गौरतलब है कि होमी अदजानिया द्वारा निर्देशित इस वीडियो को लोगों ने खासा पसंद किया था और इस शॉर्ट फिल्म ने काफी सुर्खियां भी बटोरी थी.

30 से ज्यादा शॉर्ट फिल्म्स बना चुकी केतकी कपाड़िया की शॉर्ट फिल्म ‘माय वॉयस’ को कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, प्रसिद्ध फिल्ममेकर बसु चैटर्जी और गीतकार योगेश ने लॉन्च किया.

15 से ज्यादा सामाजिक विषयों विशेष कर महिला मुद्दों पर शॉर्ट फिल्म्स बना चुकी केतकी की ये शॉर्ट फिल्म ‘माय वॉयस’, ‘माय च्वॉयस’ का जवाब है या नहीं आप खुद देख लीजिए.

रिलीज हुआ ‘जग घुमिया’ का फीमेल वर्जन

'सुल्तान' का रोमांटिक गाना 'जग घुमिया' बीते दिनों ही रिलीज किया गया था. आज इसका फीमेल वर्जन जारी किया गया. अनुष्का शर्मा ने ट्विटर पर अपने फैन्स के साथ इस गाने को शेयर किया.

आपको बता दें कि इस गाने को आवाज नेहा भसीन ने दी है. इस सॉन्ग में भी सुल्तान और आरफा रोमांस ‍करते नजर आ रहे हैं. गाने को लिखा है इरशाद कामिल ने. संगीत ‍दिया है विशाल-शेखर ने.

अनुष्का और सलमान के फैन्स के लिए यह सॉन्ग भी एक तोहफे के समान ही है. बीते दिनों सलमान ने अपने फैन्स के लिए यही सॉन्ग अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर शेयर किया था. इसके साथ सलमान ने लिखा था 'एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी तो फिर…सुनो 'जग…मेरी आवाज में.'

आदित्य चोपड़ा के प्रोडक्शन में बनी इस फिल्म को निर्देशित किया है अली अब्बास जफर ने. सलमान खान के लीड रोल को इसमें साथ मिला है अनुष्का शर्मा का. दोनों इसमें रेसलर के रोल में हैं.

सलमान खान की फिल्म सुल्तान का ये गीत उस समय चर्चा में आया जब इसे मशहूर सिंगर अरिजीत सिंह की जगह फिल्म के निर्माता आदित्य चोपड़ा ने पाकिस्तान के मशहूर गायक राहत अली खान से गवाया. यह मामला अब शांत हो चुका है परन्तु इस पर सिंगर नेहा भसीन ने कहा कि मैं निर्देशक अली अब्बास जफर को अच्छी तरह जानती हूं. मैंने पहले भी उनकी दो फिल्मों में गाना गाया था.

उन्होंने ही मुझसे अपनी फिल्म के रोमांटिक गीत जग घूमिया के फीमेल वर्जन के लिए संपर्क किया. मैं सलमान की फिल्म का हिस्सा बनकर बेहद खुश हूं. मेरे इस गीत को लोगों से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है, नेहा ने कहा कि 'मैं इस बारे में कुछ बोलना ही नहीं चाहती. यह सलमान और अरिजीत के बीच का मामला है. मैं उन्हें लेकर कोई पर्सनल कमेंट नहीं करूंगी'. नेहा ने कहा की सलमान खान कभी किसी के लिए बुरा नहीं कर सकते है.

गौरतलब है की अभी हाल ही में अरिजीत सिंग ने बजरंगी भाईजान को एक पत्र लिख कर सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी और उनसे आने वाली फिल्म सुल्तान से उनका गीत नहीं हटाने का अनुरोध किया था. खबरों के मुताबिक, तुम ही हो के गायक ने 'जग घुमिया' गीत गाया था लेकिन बाद में इसे राहत के आवाज में फिर से रिकॉर्ड किया गया.

फिलहाल आप इस सॉन्ग के फीमेल वर्जन का लुत्फ उठाइए.

Miss पाकिस्तान की इन हॉट तस्वीरों ने इंटरनेट पर मचाई धूम

सोशल मीडिया प्लेटफार्म आजकल काबिल व्यक्ति को उसकी मंजिल तक पहुचाने का ज़रिया बन गए हैं. खूबसूरत लोगों को मॉडलिंग असाइनमेंट, उनकी इन्स्टाग्राम प्रोफाइल देख कर मिलने लगे हैं. सिंगर और डांसर्स, फेसबुक पर अपनी कला का प्रदर्शन कर लोगों की नज़रों में आ रहे हैं. सीधे शब्दों में कहें तो सोशल मीडिया पर सक्रियता एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में आगे बढ़ने के लिए अनिवार्य हो गई है.

पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान की एक सुपर मॉडल इन्स्टाग्राम पर पोस्ट की गयी अपनी हॉट तस्वीरों के चलते काफी पॉपुलर हो रही है. इस ब्यूटी क्वीन का नाम है ‘शंज़य हयात’.  हयात को वर्ष 2013 में मिस पाकिस्तान वर्ल्ड के खिताब से नवाज़ा गया था.  शंज़य ख़ुद को और आगे ले जाने के लिए आजकल जिम में काफी मेहनत भी कर रही हैं.

आप भी देखिए शंज़य हयात की कुछ खास तस्वीरें…

जब बच्चा जाए घर से दूर

बात चाहे पढ़ाई की हो या कैरियर की, तेजी से बढ़ती संभावनाओं ने क्षेत्रों को विस्तार दे दिया है, इस के चलते कई युवा व किशोर अपने घर व शहरों से दूर दूसरी जगह लक्ष्य तलाशने भी जाते हैं. अब ऐसे में कई बार सुरक्षा व सुविधा की दृष्टि से उन्हें किसी रिश्तेदार या परिचित के साथ रखने जैसे फैसलों पर भी माता पिता को अमल करना पड़ता है. वैसे भी पढ़ाई के लिए नए स्थान पर जाना. निश्चित रूप से बेहद रोमांचक होता है लेकिन कभीकभी रिलोकेटिंग, दूसरी जगह पर जाना, तनावपूर्ण हो सकता है, यह अनुभव जितना अधिक अद्भुत होता है उतनी ही चिंता इस बात की होती है कि घर के सुविधाजनक माहौल को छोड़ने के बाद आप नए माहौल में किस तरह ढल पाएंगे.

किसी की भी जिंदगी में जगह बदलना तनावपूर्ण होता है और इस दौरान व्यवस्थित बने रहना और भी मुश्किल काम है. इस के लिए पैकिंग की थकाऊ प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और सब से बड़ी बात अपने परिवार को छोड़ कर एकदम नए माहौल, नए लोगों के बीच जाना पड़ता है और यह काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. इसी समय अपनी मूविंग प्रोसेस को कम तनावपूर्ण बनाने के लिए पहले से ही खुद को तैयार करना और दूसरी प्लानिंग करना महत्त्वपूर्ण होता है शेफोर्ड फ्युचुरिस्टिक स्कूल की ऐक्जीक्यूटिव डायरैक्टर और शैमरौक प्लेक स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा बता रही हैं नए माहौल में व्यवस्थित ढंग से रहने और नए स्थान पर जाने के जनाव से निपटने के कुछ सुझाव जो पेरैंट्स और बच्चे को अपनाने चाहिए.

नई शुरुआत के लिए बच्चे को तैयार कीजिए

नई जगह जाने से पहले, आप को बच्चे को नए माहौल में ढलने के लिए मानसिक रूप से तैयार करने की जरूरत होती है. नई जगह पर जाने में स्वाभाविक तौर पर थोड़ी चिंता होती है लेकिन इस चिंता को भयानक डर में न बदलने दें. इसलिए यह सोच कर अपने घर, नए पड़ोसी और आसपास के माहौल की चिंता न करें कि आप का संपूर्ण अनुभव खतरनाक होगा.

जिस जगह जा रहे हैं वहां की पूरी जानकारी

नए स्थान पर जाने के साथ ही कई चुनौतियां भी सामने आती हैं इसलिए खुद और बच्चे को पहले से ही तैयार करें और उस स्थान के बारे में पूरी जानकारी लें. सुनिश्चित करें कि आप लोकल मार्केट, नजदीकी अस्पताल, अपने पड़ोसी, स्थानों और सुरक्षा इत्यादि के बारे में अच्छे से जानते हैं.

एक सूची बनाएं

अपनी पूरी जानकारी के अनुसार एक सूची बनाएं जो आप को बाजार से खरीदनी है और जो चीजें घर से ले जानी हैं. उन्हें भी लिख लें. इस से नए स्थान पर आप को परेशानी नहीं आएगी. आप अधिक व्यवस्थित हो पाएें और रिलोकेशन आप के लिए तनाव रहित काम बन जाएगा. साथ ही यह सुनिश्चित करें कि शिक्षा से संबंधित और नौन ऐकेडेमिक, डाक्यूमैंट, पैनकार्ड, लाइसैंस, पासपोर्ट, मार्कशीट, सर्टिफिकेट्स आदि जैसी चीजें सुरक्षापूर्वक अपने साथ रख ली है.

प्राथमिकता तय करें

अब जब पूरी सूची तैयार हो गई है तो जिन कामों को सब से पहले करना हो, उन का निर्धारण करें. सब से पहले बाजार से जरूरी सामान खरीदने की सलाह दी जाती है और फिर उन्हें पैक करना आरंभ करें. यह भी गौर करें कि ऐसी कोई एक्टिविटी है जिसे इस व्यस्ततम समय में टाला जा सकता है.

सिर्फ आवश्यक सामान पैक कर ले जाएं

आप सोचें कि आप के बच्चे को किस चीज की सब से ज्यादा जरूरत है और वह क्या ले जाना चाहता है. जरूरी सामानों और ऐसे ही रखे जाने वाले सामानों के बीच अंतर करें.

उदाहरण के लिएः शूज और बूट सीमित संख्या में रखें क्योंकि इस से आप का बैग भारी हो सकता है.

बौक्स पर लेबल लगाएं

बच्चों के सामान को अलगअलग बौक्स में रखें और उन पर लेबल लगाएं. उदाहरण के लिए उन में सभी कपड़े एक कार्टून में रखें, जूते दूसरे कार्टून में, किताबें दूसरे कार्टून में. जिस से सामान खोलते समय आसानी हो.

मौसम के अनुसार पैक करें कपड़े

बच्चे के सभी कपड़े एक साथ न रखें. मौसम को ध्यान में रख कर ही कपड़ों का चुनाव करें. जिस से यात्रा के दौरान उन का बैग भारी नहीं होगा और उन को परेशानी भी नहीं होगी.

कमरे के लेआउट को तय करें

नए स्थान पर सामान ले जाने से पहले सुनिश्चित करें कि आप को कौन सी चीजें कहां रखनी हैं. यदि लेआउट तैयार होगा तो सामान रखने में आसानी होगी.

कैंपस का दौरा करें

याद रखें शुरूआत में नई जगह जाना तनावपूर्ण होता है. कालेज से पहले ही परिचित हो तो कालेज परिसर का भ्रमण करें. इस से कक्षा को ढूंढ़ने में लगने वाले अनावश्यक तनाव को भी दूर करने में मदद मिलेगी.

अगर इन सब बातों का ध्यान रखा जाएगा तो नई जगह पर जाने पर कोई भी समस्या नहीं आएगी और आप को नई जगह पर एक अपनेपन का एहसास होगा.

मेन’स फैशन में ‘इन’ है नोजपिन

नोज रिंग फौर मैन! चौंक गए? अरे, यह सुनकर आप तो लगे नाक-भौं सिकोड़ने! हो सकता है आपको यह एक बड़े हद तक ‘गर्ली थिंग’ लगे. पर आजकल यही ट्रेंड फैशन की दुनिया में यह ‘इन’ है. फिलहाल यह ट्रेंड मौडलिंग की दुनिया और शो बिजनेस से जुड़े लोगों तक ही सीमित है. मजे की बात यह है कि फैशन की दुनिया में ताल से ताल मिलाकर चलनेवाली लड़कियों के लिए भी यह बहुत ही ‘कूल’ है. लड़कियों द्वारा इस ट्रेंड का स्वागत करने के बाद जल्द ही यह चलन में जाएगा.

पिछले साल पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश जिन मलिक ने नोजपिन के साथ अपनी एक पिक्चर इंस्टाग्राम में पोस्ट की थी. तब से फैशन की दुनिया ने नोटिस तो किया था. इसके बाद एक के बाद एक लेनी क्रेवित्ज, जेमी कैंपबेल, टुपाक शकुर, जस्टिन बीबर, क्रिस ब्राउन रैपर और पौप सिंगर इस कड़ी से जुड़ते चले गए. जहां तक भारत का सवाल है तो बौलीवुड हंक और जेन एक्स के ट्रेंड सेटर रणवीर सिंह ओफिसियल इंडिया नामक पत्रिका के कवर पेज में नोज पिन के साथ दिखे. मुंबई में काला घोड़ा फेस्टिबल के दौरान स्टेज पर आयुष्मान खुराना को नोज स्टड के साथ देखा गया. वैसे भारत में रणवीर सिंह और आयुष्मान खुराना से पहले अक्षय कुमार का नोजस्टड अवतार सामने आ चुका है.

कोई आठ-दस साल पहले मैन ज्वेलरी का ट्रेंड शुरू हुआ था. हालांकि तबभी क्लासिक मैन शोवनिज्म के हिमायतियों ने फैशन की दुनिया के इस नए ट्रेंड को अपनाने में झिझक थी. लेकिन धीरे-धीरे इसे स्वीकार कर लिया गया. दरअसल, मैन्स ज्वेलरी शब्द में एयररिंग के कारण इसे स्वीकार करने में झिझक थी, वरना आमतौर पर कड़े से लेकर ब्रेसलेट, अंगूठी, कफलिंक, चेन पहनने से किसीको कभी कोई गुरेज नहीं रहा था. पर धीरे-धीरे इयररिंग / इयरस्टड को भी इस तर्क के साथ स्वीकार कर लिया गया कि पुराने जमाने में राजा-रजवाड़े-सामंत ऐसे जेवर पहना करते थे. इससे आभिजात्य का एक एहसास होता है.

आजकल हौलीवुड से लेकर बौलीवुड में नोजपिन या नोजस्टड का चलन चल पड़ा है. फिर वह अभिनेता हो या गायक – हर कोई अपने ‍फंकी लुक के लिए नोजस्टड / नोजपिन को बड़े ही शिद्दत के साथ कैरी कर रहा है. इयररिंग ने पुरुषों के बीच अपनी जगह एक बड़े हद तक बना ली है. लड़कों के नोज पिय‍रसिंग को लड़कियों ने बहुत बड़े कूल अंदाज में स्वीकार किया है.

लड़कियों की पसंदीदा ज्वेलरी अचानक लड़कों के बीच इतनी लोकप्रिय आखिर क्यों और कैसे हो गयी? दरअसल, यह ट्रेंड अभी फैशन-म्युजिक-अभिनय की दुनिया से निकल कर समाज के जेन एक्स तक पहुंच चुकी है. लेकिन इसके औपचारिक रूप से ज्यादा बढ़त नहीं मिलेगी. कुछ तो इस फैशन ट्रेंड को पानी का बुदबुदा ही मान रहे हैं. अभी-अभी कौलेज में कदम रखनेवाले प्रांजल पटनायक का कहना है कि दफ्तर या कामकाजी दुनिया में इसे कभी एंट्री नहीं मिलेगी. इयर पियरसिंग तक तो ठीक है, लेकिन नोज पियरसिंग बड़े पैमाने पर स्वीकार नहीं होगा.

बावजूद इसके बंगाल के संस्कारी परिवार से ताल्लुकात करने वाले टेक्नोलोजी के दूसरे वर्ष के छात्र रजत मजूमदार का मानना है कि नोजपिन को फैशन स्टेटमेंट के तौर पर स्वीकारना सबके वश का नहीं होगा. इयररिंग से यह बराबरी नहीं पर पाएगा. वहीं वेब डिजाइनिंग का कोर्स करने वाले राजदीप गोयल का कहना है कि हडप्पा-मोहनजोदाड़ों सभ्यता के दौरान महिलाओं की ही तरह पुरूषों में नाक में जेवर पहनने का चलन था. इसके अलावा भारत में बहुत सारे आदिवासी जाति व जनजाति समुदाय के बीच यह ट्रेंड है.

इसीलिए इस ट्रेंड को ‘गर्ली थिंग’ कह कर इस फैशन ट्रेंड की आलोचना करनेवालों को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए तर्क यह दिया जा रहा है कि लड़कियां अगर जिन्स या चिनोस पहन सकती हैं, स्पोर्ट्सशूज कहन सकती हैं तो हम नोजपिन क्यों नहीं कैरी कर सकते हैं? इस ट्रेंड से प्रभावित होकर हाल ही में सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई थी. यह पोस्ट मुंबई के लड़के का था, जिसमें उसने लिखा था कि अपनी मां के ज्वेलरी बौक्स से उसने नोजपिन निकाल पहना है. इस पोस्ट में लाइक की बाढ़ उमड़ पड़ी थी. 

बहरहाल, अब सवाल यह है कि कैसा नाक इस नए ट्रेंड के लिए सही होता है? जाहिर है नुकीले नाक में नोजपिन हो या नोचस्टड फबते हैं. साथ में इस ट्रेंड को कैरी करने लायक स्मार्टनेस भी जरूरी है. ढीलीढाली पर्सनलिटी में यह बिल्कुल नहीं जचेंगा.

जहां तक मौके का सवाल है तो ग्रूमिंग एक्सपर्ट शुभम बसु का कहना है कि रोजमर्रा के दिनों में कभी-कभार डेमिन के साथ काले रंग का स्टड पहना जा सकता है. यह एथनिक लुक देगा. हां, खास मौके पर शेरवानी या चकटदार रंग के धोती-पैंट में भारी किस्म का नोजपिन पहना जा सकता है. पाटर्क्ष या कैजुअल वेयर के साथ मेटल पिन फबता है.

कितने असंवेदनशील हो गए हैं हम

गत 29 जून को सोशल मीडिया पर राजस्थान महिला आयोग की सदस्या सोम्या गुर्जर की कुछ तस्वीरें वायरल हुईं, जिसमें वे एक रेप सर्वाइवर के साथ सेल्फी क्लिक करती नजर आई  दिलचस्प बात बात तो यह है कि इस  में चेयरपर्सन सुमन शर्मा भी नजर अस रही थी, जिनकी नजर फ्रेम की ओर ही था. तस्वीरें वायरल होते ही सौम्या गुर्जर के इस व्यवहार की निंदा होने लगी और आनन फानन मे राष्ट्रीय महिला आयोग ने दोनों को पेश होने  का समन  भेजा. विवाद बढ़ता देख सौम्या ने इस्तीफा दे दिया. वस्तुतः सेल्फी और  सोशल मीडिया का क्रेज इस कदर लोगों के सर चढ़ कर बोलने लगा है कि इसके जोश मे इंसान कई दफा ऐसा कुछ कर जाता है जो उसकी संवेदनशीलता पर  सवाल खड़े कर दे. कुछ समय पहले अपने औफिशियल फेसबुक पेज और ट्विटर पर 74 वर्षीय महानायक, अमिताभ बच्चन ने अपने उद् गार कुछ इस तरह प्रगट किए थे कि मेरा प्यारा दोस्त गुजर गया. बातें करताकरता वह अचानक दुनिया को अलविदा बोल कर चला गया. मैं सदमे में था. बहुत दर्दभरे लमहे थे वो. अपने दोस्त की अंतिम विदाई देखने दिल्ली गया था. मगर उस माहौल में भी कुछ लोगों को सेल्फी की सूझ रही थी. डिसगस्टिंग. लोगों की संवेदनशीलता कहां चली गई है? जाने वाले के लिए उन के दिल में सम्मान और दर्द नहीं. ऐसे मौके पर भी सेल्फी लेने की कोई कैसे सोच सकता है?

दरअसल महानायक को देखते ही लोग सबकुछ भूल कर उन के साथ सेल्फी लेने की होड़ में जुट गए थे. जाहिर है, किसी भी संवेदनशील इंसान को इस तरह की घटना झिंझोड़ कर रख सकती है.

कुछ ऐसा ही वाक्या सऊदी अरब में हुआ, एक टीनएजर लड़के ने अपने मृत दादा के साथ अपनी मुसकुराती हुई सेल्फी उतारी और इसे ‘गुडबाय ग्रैंडफादर’ शीर्षक के साथ सोशल मीडिया में पोस्ट कर दिया. इस फोटो में साफ दिख रहा था कि अस्पताल के बेड पर बुजुर्ग मृत अवस्था में पड़े हैं. उन का मुंह हलका सा खुला हुआ था और उन की नकल उड़ाता टीनएजर पोता थोड़ी जीभ बाहर निकाल कर हलकी मुसकान के साथ अपनी सेल्फी लेता है और इसे औनलाइन पोस्ट कर देता है. बाद में सउदी अरेबिया के अधिकारियों का ध्यान इस पर गया और इस केस की खोजबीन शुरू की गई क्योंकि यह घटना लोगों की भावनाओं के साथ एक तरह के खिलवाड़ जैसा था.

हाल ही में मेक्सिको की एक यंग मेडिकल स्टूडेंट ने यूनिफौर्म पहन कर, गले में स्टैथोस्कोप लटका कर बेड पर लेटी एक गंभीर रूप से बीमार महिला के साथ स्माइलिंग सेल्फी ली और वाट्सअप पोस्ट डाला, ‘‘मैं ड्यूटी पर थी, तभी एक मरती हुई महिला को देखा तो उस के साथ सेल्फी ले ली. यह पोस्ट सोशल मीडिया पर भी तुरंत वायरल हो गई और लोग एक बीमार व्यक्ति के प्रति ऐसी असंवेदनशीलता पर उस लड़की को लानत देने लगे.’’

वेनेजुएला के एक स्टूडेंट ने तो हद ही कर दी, जब उस ने लेबर पेन से जूझ रही महिला के आगे खड़े हो कर सेल्फी ली और इस सेल्फी को कैप्शन दिया, ‘लेडी, मैं तुम्हारे बेबी की डिलीवरी करा सकता हूं, मगर पहले मुझे सेल्फी ले लेने दो.’ इस घटना ने भी लोगों में रोष की लहर पैदा कर दी थी.ऐसी एक दो नहीं हज़ारों घटनाएं मिलेंगी. ‘पेज थ्री’ फिल्म में एक दृश्य था, जिस में किसी सेलिब्रिटी के मरने पर एकत्र हुई सलिब्रिटी महिलाओं को टीवी पर नजर आने और खूबसूरत दिखने की इतनी उत्सुकता थी कि वे मृतका के प्रति संवेदना रखने या उस के परिजनों को सांत्वना देने के बजाए लागतार इसी प्रयास में उलझी नजर आईं कि कब और किस अंदाज में उन्हें तस्वीरें खिंचवानी हैं, या शूट करवाना है. दरअसल यही है सोशल नेटवर्किंग के ताने बाने व भुलावों  में उलझे इंसान की हकीकत. आज के समय में सोशल मीडिया के बढ़ते जुनून और संयुक्त परिवारों के गुम होते वजूद ने बच्चों को भावनात्मक रिश्तों से दूर और यांत्रिक व आभासी रिश्तों के करीब ला दिया है. लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, वाट्सअप वगैरह पर अपने जीवन की छोटी से छोटी बातें शेयर कर रहे हैं. पर आसपास मौजूद लोगों के जीवन की बड़ीबड़ी बातों के प्रति भी भावहीन बने रहते हैं.

सोशल मीडिया पर भेजे जा रहे बेकार के मैसेजेज, फोटोज, वीडियोज पर कमेंट्स या लाइक्स भेजने में समय व्यर्थ करना बहुत भाता है. पर बीमार, वृद्ध या अकेले व्यक्ति की तकलीफ महसूस कर उस के साथ थोड़ा वक्त बिताना उन्हें स्वीकार नहीं होता. लोग वर्चुअल वर्ल्ड में कुछ इस कदर खोने लगे हैं कि हकीकत की दुनिया रिश्ते हाथ से फिसलते जा रहे हैं.

कैमिकल लोचा

तुलसी हेल्थ केअर के मनोवैज्ञानिक डॉक्टर गौरव गुप्ता कहते हैं कि दरअसल हमारी भावनाएं जैव रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उत्प्रेरित होती हैं. यह प्रक्रिया कुछ खास गंथियों द्वारा संपन्न की जाती हैं. जो भी भावनाएं हम महसूस करते हैं, वो मस्तिष्क में होने वाले राससायनिक परिवर्तनों के कारण ही उत्पन्न होते हैं. मगर आज सूचना क्रांति व सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से सूचनाओं की बाढ़ सी आ गई है. लोग  महज  50-100 लोगो से नहीं, हजारों लोगों से एकसाथ जुड़े हुए हैं. जाहिर है अब हमारे दिमाग में भावनाएं जगाने के लिए बहुत सारे उत्प्रेरक हैं. लेकिन इतने उत्प्रेरकों को हैंडल करने की हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमता नहीं है. हमारा शरीर सीमित मात्रा में ही रसायनों को स्रावित करता है, चाहे वो एंजाइम हो, हार्मोंस हों या मस्तिष्क के रसायन जो हमारी भावनाओं को नियंत्रित करते हैं. यही वजह है कि लोग ज्यादा संवेदनहीन व आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं.

सही परवरिश भी जरूरी

कहीं न कहीं, हमारी बदलती जीवनशैली और पारिवारिक व सामाजिक मूल्यों का घटता स्तर भी इस के लिए जिम्मेदार है. यदि परिवार में प्रारंभ से ही बच्चों को क्षमा, दया, करुणा, प्रेम, सहयोग आदि गुणों से पोषित किया जाए तो कोई वजह नहीं कि बड़े हो कर भी उन के हृदय की संवेदनशीलता कम होगी . मगर आजकल तो बच्चे शुरू से एकल परिवारों में पलते हैं. उन्हें संयुक्त परिवारों में मिलने वाले आपसी प्रेम, सहयोग और सम्बद्धता का अहसास नहीं होता.

अपने मांबाप के स्वार्थी रवैये से उन का साक्षात्कार होता है और बड़े हो कर भी उन की जिंदगी में अकेलापन ही होता है. जिसे वे सोशल मीडिया में दोस्त बना कर बांटना चाहते हैं. वर्चुअल वर्ल्ड का सहारा लेते हैं.

कुछ लोगों के लिए अपनी खुशी अपनी भावनाएं ही अहम होती हैं. इसके परे उन्हें कुछ नजर नही आता. ऐसे आत्मकेंद्रित ,असंवेदनशील व्यक्ति को आप इमोशनली चैलेंज्ड कह सकते हैं. वे भावनात्मक खिंचाव को महसूस या आत्मसात नहीं कर पाते. उन के लिए भावुकता, संवेदनशीलता आदि बेकार की बातें होती हैं. उन्हें सिर्फ स्वयं से मतलब होता है, वे आत्ममुग्धता के शिकार होते हैं. वे भले ही स्वंय यह बात न कहें या इस सत्य को स्वीकार न करें, मगर उन की बौडी लैंग्वेज, हावभाव और उदासीन रवैया सबकुछ बोल देता है. कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि संवेदनहीन  व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होते.  हर क्षण खुद को अच्छा दिखाने की चिंता लोगों को मानसिक तनाव और अवाद की ओर ले जा रही है.वे जीवन मे अकेले रह जाते हैं.

जरूरी है कि हम जिंदगी के प्रति अपना रवैया बदलें

ऑथर एंड रिलेशनशिप वैलनेस एक्सपर्ट भावना मोंगे कहती हैं कि जितनी तेजी से समाज में लोग अपने जीवन में व्यस्त होते चले जा रहे हैं, उतनी ही तेजी से समाज असंवेदनशील हो रहा है. इस का सरल सा कारण है समय का आभाव और लोगों का जिंदगी के प्रति रवैया. इन रिश्तों को न समझ पाने के कारण और जिंदगी में तेजी से भागने के कारण, लोग और भी ज्यादा असंवेदनशील होते जा रहे हैं. इस का नतीजा यह है कि किसी को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता. समाज में क्या गलत हो रहा है या क्या सही हो रहा है – लोग केवल इस के बारे में बात करते हैं, हँसते  हैं या अफसोस जाहिर करते हैं, और उस के बाद फिर अपने रास्ते पे चल देते हैं.

इस के अलावा एक और कारण जो कि समाज को असंवेदनशील बना रहा है  वो है लोगों के बीते हुए कल के अनुभव. ऐसे बहुत से कड़वे अनुभव होते हैं जिन से हम उबर नहीं पाते और हमारी आंखों पे एक पट्टी पड़ जाती है. इन कड़वे अनुभवों की वजह से हम एक खोल में चले जाते हैं और हमारा मन बाहर नहीं निकलना चाहता. हमें इन पूर्ण कड़वे अनुभवों से बाहर निकलते हुए ये समझना होगा कि हर व्यक्ति अलग है और हर परिस्थिति भी अलग है. मात्र पुराने अनुभवों की वजह से हम इस तरह असंवेदनशील नहीं हो सकते हैं. ये पूरा समाज एक परिवार के सामान है और यहां हम सभी को एकदूसरे की जरूरत है. यह संभव नहीं कि हम अपनी जिंदगी से सोशल मीडिया का वजूद समाप्त कर दें, मगर इसे कम जरूर किया जा सकता है. हमें इस के प्रयोग की सीमाएं तय करनी होंगी.

सोशल मीडिया की गिरफ्त से बाहर आने के लिए जरूरी है कि हम इस वर्चुअल वर्ल्ड की आभासी दुनिया और यहां मिलने वाले लाइक्स व कमेंट्स की परवाह छोड़ें और रियल लाइफ में अपने करीब रह रहे लोगों के साथ सपनों की दुनिया बनाएं. ठहरे, सांस लें और जिंदगी और रिश्तों को समझें, रिश्ते जो केवल वे अपने घर में ही नहीं निभाते, बल्कि अपने औफिस में, अपने पड़ोस में और यहां तक कि अंजान लोगों से भी बांटते हैं.

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