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फिल्मी हस्तियों का कैरियर खराब करता नशा

पंकज उधास की गजल ‘शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए, ये मेरे यार के जैसी है न छोड़ी जाए…’ हर उस शराब पीने वाले पर लागू होती है, जो नशे के आगे अपना सबकुछ कुरबान कर बैठता है और जब तक संभलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. शराब की वजह से कैरियर और जिंदगी की बरबादी फिल्म इंडस्ट्री में तो कुछ ज्यादा ही देखने को मिलती है. पुराने कलाकारों की अगर बात करें तो ओ पी नैय्यर, के एल सहगल, भगवान दादा, राजेश खन्ना, मीना कुमारी, दिव्या भारती जैसे कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने शराब के कारण न सिर्फ अपना कैरियर दांव पर लगाया, बल्कि अपनी जान की बाजी भी लगा दी.

आज भी बौलीवुड में कई ऐसे सितारे हैं, जिन्होंने शराब की लत के कारण अपना कैरियर और जिंदगी चौपट कर दी, प्रस्तुत हैं, ऐसे ही कुछ नशे की लत के शिकार कलाकारों की कहानी उन्हीं की जबानी…

धर्मेंद्र

मैं 15 साल की उम्र से शराब पी रहा था. लिहाजा, शराब की लत मुझे बचपन से ही लग गई थी, लेकिन शराब कभी इतनी नहीं पी थी कि वह मेरे सिर चढ़ कर बोले. एक समय के बाद जब मेरा कैरियर कामयाबी के शिखर पर था, उस वक्त मेरी शराब पीने की आदत कुछ ज्यादा ही बढ़ गई, जिस वजह से मेरा दिमाग भी गरम रहने लगा. मुझे छोटीछोटी बात पर गुस्सा आ जाता था, जिस का असर मेरे कैरियर पर भी पड़ा. उस के बाद घर वालों के प्यार और सपोर्ट के चलते मैं ने शराब पर काफी हद तक काबू पा लिया और अब तो मैं बहुत कम शराब पीता हूं, क्योंकि पूरी तरह से छोड़ना बहुत मुश्किल है.

संजय दत्त

मुझे शराब से भी ज्यादा ड्रग्स लेने की लत लग गई थी. छोटी उम्र में मां का प्यार, पिता का दुलार, इतनी प्रसिद्धि और पैसे ने मुझे बिगड़ैल बच्चा बना दिया था, जिस कारण मुझे बचपन से ही ड्रग्स की लत लग गई. 22 साल की उम्र में मेरी पहली फिल्म ‘रौकी’ हिट हो गई. उस के बाद ‘विधाता’ आई, वह भी हिट हुई. लिहाजा, सफलता के चलते मेरी ड्रग्स की आदत और ज्यादा बढ़ गई. नशा वास्तव में बहुत बुरा होता है, अगर एक बार इस की लत लग जाए फिर किसी तरह नहीं छूटती. ऐसे में अगर आप अच्छे इंसान भी हों तो भी यह ड्रग्स की आदत आप को बुरे की कैटेगरी में खड़ा कर देती है. फिल्मों की सफलता और जवानी के जोश में मेरी नशे की आदत इतनी बढ़ गई कि मेरे पिता सुनील दत्त को मुझे अमेरिका के नशामुक्ति केंद्र में भेजना पड़ा ताकि मैं ड्रग्स की लत छोड़ सकूं. उस के 3 साल बाद मैं नौर्मल जिंदगी में वापस आ पाया.

मनीषा कोइराला

मैं ने 1991 में ‘सौदागर’ फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत की थी. उस के बाद कई फिल्मों में सफलता हासिल की और मेरा अभिनय कैरियर भी अच्छाखासा चल रहा था कि अचानक मुझे शराब पीने का शौक चढ़ा. बाद में मेरा यही शौक लत बन गया, जिस के बाद मैं काफी शराब पीने लगी. उस का असर मेरे कैरियर पर भी पड़ा. अभी मैं शराब के नशे से छुटकारा पाना ही चाहती थी कि मेरी पर्सनल लाइफ में भी उथलपुथल शुरू हो गई. मेरी शादी टूट गई, उस के बाद मुझे कैंसर हो गया, लेकिन अब मैं शराब और कैंसर दोनों से छुटकारा पा चुकी हूं और फिर से अभिनय के मैदान में उतर रही हूं.

सलमान खान

मुझे भी शराब की लत थी. मेरा मानना है कि शराब पीना बुरा नहीं है, लेकिन शराब में डूबना बुरा है, क्योंकि जब आप अधिक पीने लगते हैं, तो आप का खुद पर से कंट्रोल हट जाता है और आप कई गलत हरकतें कर बैठते हैं, जो आप की जिंदगी के लिए जी का जंजाल बन जाती हैं. ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ. पिछले कुछ सालों में मुझ पर शराब का नशा कुछ ऐसा चढ़ा कि मैं सबकुछ खो बैठा था. गुस्सा मेरे अंदर इतना बढ़ गया था कि मैं छोटीछोटी बातों पर भी भड़क जाता था, लेकिन कुछ समय बाद मैं ने घर वालों के प्यार की बदौलत शराब पर काफी हद तक काबू पा लिया और मैं पहले वाला सीधासादा सलमान बन गया.

हनी सिह

हिंदुस्तान के रैप और फिल्मी गायक हनी सिंह भी पिछले डेढ़ दो साल से गायब थे, जिस की वजह हनी सिंह ने अपनी असहाय बीमारी बायपौलर डिसऔर्डर बताई, जिस के चलते वे डिप्रैशन में चले गए थे और इस डिप्रैशन से निकलने के लिए हनी सिंह ने शराब पीनी शुरू कर दी थी. जिस की वजह से उन की मानसिक स्थिति खराब हो गई थी और वे गाना गाने लायक भी नहीं रहे. लिहाजा, उन्होंने अपनी बीमारी का ठीक से इलाज करवाया और शराब से भी नजात पाई. अब एक बार फिर वे संगीत के क्षेत्र में सक्रिय हैं.

जानें किसी और ने तो नहीं खोल रखा है फेसबुक अकाउंट

फेसबुक यूजर को अक्सर इस बात की चिंता सताती है कि कहीं कोई और तो उनके अकाउंट का इस्तेमाल नहीं कर रहा है. कई बार तो यूजर किसी दूसरे शख्स के कंप्यूटर पर फेसबुक चलाने के बाद अकाउंट से लॉग-आउट करना ही भूल जाते हैं.

फेसबुक की ‘सेटिंग्स’ में इन दोनों ही समस्याओं का हल मौजूद है. यूजर को अपने फेसबुक पेज पर दाईं तरफ ऊपर दिए गए एरो पर क्लिक करना होगा. इससे फेसबुक की ‘सेटिंग्स’ खुल जाएगी. उसमें जाकर ‘सिक्योरिटी’ के विकल्प को चुनें.

यहां आपको ‘वेयर यू आर लॉग्ड-इन’ लिखा नजर आएगा. इस पर क्लिक करके आप आसानी से जान सकेंगे कि आपके फेसबुक अकाउंट में कब, किस जगह से कितनी देर के लिए किन-किन सिस्टम के जरिए लॉग-इन किया गया है.

अगर आपके अकाउंट में अन्य सिस्टम से भी लॉग-इन किए जाने की जानकारी सामने आती है तो फौरन उसके बगल में दिए ‘एंड एक्टिविटी’ के विकल्प पर क्लिक कर दें. आपका अकाउंट उस सिस्टम से लॉग-आउट हो जाएगा.

मैं खलनायक ही बनना चाहता हूं: चेतन हंसराज

फिल्मी दुनिया में काम करने वाले हर शख्स का यही सपना होता है कि वह सिल्वर स्क्रीन पर बतौरअभिनेता अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करे, लेकिन कुछ विरले ही ऐसे हैं जो सोचते हैं कि सिनेमा में उन की पहचान एक खलनायक के रूप में हो. 30 से अधिक धारावाहिक और कई रिएलिटी शोज में काम कर चुके चेतन हंसराज ऐसे ही चंद लोगों में शुमार हैं, जिन्होंने फिल्मों में हमेशा ग्रे शेड को चुना, चेतन एक ऐसे खलनायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं कि लोग उन के ग्रे किरदार से हमेशा उन्हें याद रखें. फिल्म ‘हीरो’ और ‘बौडीगार्ड’ में उन के द्वारा निभाए गए नैगेटिव रोल को दर्शक आज भी याद करते हैं. जी टीवी के शो ‘एक था राजा एक थी रानी’ में हंसराज एक नई भूमिका में नजर आ रहे हैं. पेश हैं, इसी शो के इवैंट पर उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश :

फिल्म या टीवी शो में विलेन की क्या अहमियत होती है?

मेरा मानना है कि यदि फिल्म की कहानी में कोई नैगेटिव कैरेक्टर नहीं होगा तो वह फिल्म या शो बन ही नहीं सकता, क्योंकि फिल्म में हीरोहीरोइन के नाचगाने के बाद कहानी को आगे बढ़ाने के लिए ट्विस्ट की जरूरत पड़ती है. अगर कहानी में कोई विलेन नहीं है तो कहानी आगे बढ़ेगी ही नहीं और आप को भी मजा नहीं आएगा, क्योंकि सीधीसपाट कहानी एक डौक्यूमैंट्री फिल्म की तरह लगती है. फिल्म में जितना महत्त्वपूर्ण अभिनेता होता है उतना ही महत्त्वपूर्ण खलनायक भी होता है.

इस क्षेत्र में आने का सपना कब देखा?

मैं 5 साल की उम्र से ही ऐक्टिंग कर रहा हूं. एक बाल कलाकार के रूप में मैं ने 75 से ज्यादा कमर्शियल ऐड फिल्मों में काम किया है. बी आर चोपड़ा की ‘महाभारत’ में बलराम का रोल कर के मैं ने ऐक्टिंग की शुरुआत की. इस के बाद कई सारे सीरियल्स और फिल्मों में भी काम किया. मतलब बचपन से ही मेरा बौलीवुड जाना तय था. मैं जैसेजैसे जवान हुआ, मुझे काम मिलता गया और अब तक मैं ने यह पूरी तरह निश्चय कर लिया था कि मुझे ऐक्टिंग में ही कैरियर बनाना है.

‘एक था राजा एक थी रानी’ शो की कहानी आजादी के समय की है. उस दौर के किरदार को जीवंत करने में परेशानी नहीं हुई?

इस शो में मेरे कैरेक्टर का नाम काल है जो बहुत खूंख्वार आदिवासी है और महल की राजनीति का शिकार हो जाता है. अभी तक शो की जो कहानी चल रही थी उस में अब जबरदस्त बदलाव देखने को मिलेगा. यह कहानी 1947 के दौर की है. मैं ने अपनी ऐक्टिंग में सब से ज्यादा हावभाव और लुक पर फोकस किया ताकि चलनेबोलने में कहीं आज के दौर की झलक न दिखे. पुराने दौर के शो में एक दायरा होता है, जिसे पार नहीं करना होता है. यही ध्यान में रखना होता है. इस शो में मुझे इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई, क्योंकि इस से पहले मैं मुगलकालीन शो ‘जोधा अकबर’ कर चुका था.

पहले और आज के विलेन के रोल में क्या अंतर महसूस करते हैं?

अंतर रोल में नहीं, कलाकारों में आया है, क्योंकि एक बात तो तय है कि विलेन का रोल नैगेटिव ही होगा, पौजिटिव तो हो नहीं सकता. हां, एक फर्क जरूर पड़ा है कि पुरानी और आज की फिल्मों में पहले नैगेटिव रोल के लिए जीवन, रंजीत व अमरीशपुरी जैसे कलाकार थे जो सिर्फ नैगेटिव रोल ही किया करते थे, पर आज की फिल्मों का हीरो सभी किरदार निभा लेता है. वही विलेन बन जाता है, वही कौमेडी कर लेता है, मतलब निर्देशक एक ही व्यक्ति से सारे काम कराना चाहता है. एक बात और आज के नैगेटिव रोल कर रहे कलाकारों में है, वह यह कि वे आज भी टाइपकास्ट नहीं हुए हैं, जो भी रोल औफर होता है वे कर लेते हैं, चाहे उस रोल में उन्हें कौमेडी ही करनी हो. पर मेरी विचारधारा इन सब से अलग है. मैं नैगेटिव रोल करूंगा जो भी अच्छा लगता है.

कभी आप ने हीरो बनने की सोची?

कभी नहीं, एक तो मुझे कभी हीरो के रोल औफर ही नहीं हुए. दूसरा, शायद लोगों को मेरे चेहरे में हीरो वाली बात नजर नहीं आती होगी, इसी कारण हमेशा मुझे विलेन के रोल के लिए ही एप्रोच किया गया और मैं सच बताऊं कि मुझे कभी भी किसी हीरोइन के पीछेपीछे भागना, पेड़ों के पीछे गाने गाना पसंद नहीं रहा. वैसे मैं ने छोटे परदे पर कई पौजिटिव रोल किए हैं.

आप अपने रोल को साइन करने से पहले क्या देखते हैं?

मेरे पास जब भी किसी फिल्म या शो की कहानी आती है तो में सब से पहले उन किरदारों की लिस्ट बनाता हूं, जिन का रोल ग्रे शेड है और उन में से सब को अपने से जोड़ कर देखता हूं कि मैं कहां, किस किरदार में फिट बैठता हूं. जो किरदार मुझे सब से ज्यादा पसंद आता है उसी के लिए हामी भरता हूं.

आज के सिनेमा में क्या बदलाव देख रहे हैं?

सही बताऊं, आज केवल टैक्नोलौजी में बदलाव आया है, स्टोरी और कंटैंट में नहीं. पहले की फिल्मों में मजबूत कंटैंट होता था. कहानी के अनुसार अभिनेता और खलनायकों के लिए अच्छे रोल और डायलौग गढ़े जाते थे. तभी तो उन फिल्मों की कहानी आज भी हमारे दिलोदिमाग में जिंदा है और बारबार उन्हें देखने का भी मन करता है. आज ऐसा कुछ नहीं है, कुछेक फिल्मों को छोड़ दें तो अधिकतर फिल्मों में वही घिसीपिटी स्टोरी है. सिर्फ तकनीकी पक्ष मजबूत हुआ है. स्पैशल इफैक्ट और डिजिटल एडिटिंग ने आज की फिल्मों को हौलीवुड की फिल्मों के बराबर खड़ा कर दिया है.

एक अभिनेता के लिए यह नई तकनीक किस तरह सहायक है?

पहले फिल्म की शूटिंग लंबे समय तक चलती थी, जिस के कारण फिल्म का ऐक्टर दूसरी फिल्म को साइन करने से पहले कई बार सोचता था. आज फिल्में कई छोटेछोटे सैगमैंट में शूट होती हैं, जिन को एडिटिंग कर के जोड़ा जाता है. जिस से एक ऐक्टर कई फिल्मों की शूटिंग आसानी से कर लेता है. आज तकनीक की बदौलत पूरी फिल्म शूट होने के बाद साउंड की रिकौर्डिंग की जाती है. इसी की बदौलत साउंड और पिक्चर क्वालिटी में निखार आया है, जिस से थिएटर जाने वाले दर्शकों की संख्या बढ़ी है.

छोटे परदे से फिल्मों में कैसे आना हुआ?

जिस समय मुझे फिल्म औफर हुई उस समय में छोटे परदे का जानापहचाना चेहरा बन चुका था. 2006 में फिल्म ‘एंथोनी कौन है’ से मैं ने फिल्मों में ऐंट्री की पर 2007 में प्रदर्शित फिल्म ‘डौन’ से मुझे असली पहचान मिली. इस के बाद तो एक के बाद एक करीब 10 फिल्मों में काम किया. अभी भी मेरी 2 फिल्में ‘झोल’ और ‘यह आदमी बहुत कुछ जानता है’ जिस में मैं एक डिटैक्टिव का रोल निभा रहा हूं, आने वाली हैं

मैदान में अंपायरिंग करते हुए लगाई फिफ्टी

क्रिकेट में बल्लेबाजों और गेंदबाजों के रिकॉर्ड तो आये दिन बनते रहते हैं लेकिन मैच के दौरान बीच मैदान में मौजूद एक और अहम शख्स के बारे में आप कितना जानते हैं? जी हां, हम अंपयार की ही बात कर रहे हैं.

क्या आप जानते हैं कि अब तक 480 अंपयार टेस्ट क्रिकेट में अंपायरिंग कर चुके हैं लेकिन सिर्फ 12 ही अब तक अंपायरिंग का अर्धशतक बना पाए हैं?

एंटीगा में चल रहे भारत बनाम वेस्टइंडीज टेस्ट मैच से पहले ये आंकड़ा सिर्फ 11 था. लेकिन, इंग्लैंड के इयन गोल्ड ने इसे दर्जन पर पहुंचा दिया.

1983 विश्व कप में इंग्लैंड टीम के लिए कीपिंग कर चुके गोल्ड का ये अंपायर के रूप में 50वां टेस्ट मैच है. उनसे पहले सिर्फ 11 अंपायर ही ये अर्धशतक बना पाए हैं.

2006 में अपना वनडे और टी20 और 2008 में टेस्ट अंपायरिंग डेब्यू करने वाले गोल्ड को 2009 में आईसीसी के अंपायरिंग एलीट पैनल में शामिल किया गया था. वो 2007, 2011 और 2015 विश्व कप में अंपायरिंग कर चुके हैं.

सबसे ज़्यादा 128 टेस्ट मैच में अंपायरिंग करने का रिकॉर्ड जमैका के स्टीव बकनर के नाम है. 1989 से लेकर 2009 तक बकनर ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अंपायरिंग कर सबको पीछे छोड़ दिया. दक्षिण अफ्रीका के रूडी कर्टजन, जिन्होंने ने 2010 में अंपायरिंग से संन्यास लिया, 108 टेस्ट के साथ इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर हैं.

श्रीनिवास वेंकटराघवन भारत के इकलौते अंपायर हैं जिन्होंने 50 या उससे ज़्यादा टेस्ट मैच में अंपायरिंग की है.

टेस्ट क्रिकेट में 50 या उससे ज़्यादा मैच में अंपायरिंग करने वाले अंपायर

स्टीव बकनर (1989-2009): 128

रूडी कर्टजन (1992-2010): 108

अलीम दर (2003- ): 104

डैरेल हार्पर (1998-2011): 95

डेविड शेफर्ड (1985-2005): 92

बिल्ली बाउडन (2000-2015): 84

डैरेल हेयर (1992-2008): 78

साइमन टॉफल (2000-2012): 74

एस वेंकटराघवन (1993-2004): 73

डिकी बर्ड (1973-1996): 66

स्टीव डेविस (1997-2015): 57

इयन गोल्ड (2008- ): 50

कोल्डड्रिंक्स पर भारी पड़ा जूस

जूस का स्वाद अब लोगों को कोक और पेप्सी के फिजी ड्रिंक्स से ज्यादा भा रहा है. नीलसन के डेटा के मुताबिक, इस साल के पहले 6 महीनों में रियल, स्लाइस और ट्रॉपिकाना जैसे जूस ब्रांड्स सबसे ज्यादा बिकने वाले 5 बेवरेजेज में पेप्सी और कोक के फिजी ड्रिंक्स से आगे निकल गए. हालांकि, ये आंकड़े सिर्फ मॉडर्न ट्रेड के हैं. इससे उस ग्लोबल ट्रेंड की पुष्टि होती है कि कंज्यूमर्स धीरे-धीरे कोक-पेप्सी के कोल्डड्रिंक्स के मुकाबले हेल्दी बेवरेजेज को पसंद कर रहे हैं.

नीलसन के डेटा के मुताबिक, डाबर का रियल, पेप्सिको का स्लाइस मैंगो ड्रिंक और ट्रॉपिकाना जूस मॉडर्न ट्रेड में ज्यादा बिकने वाले टॉप 5 बेवरेजेज में शामिल है. ये प्रॉडक्ट्स कोक और पेप्सी से भी आगे निकल चुके हैं. मॉन्डेलेज का टैंग पाउडर ड्रिंक और हमदर्द का ड्रिंक रूहअफजा भी टॉप बेवरेजेज में शामिल हैं.

चार साल (जनवरी-जून 2013 से जनवरी-जून 2016 ) के आंकड़े दिखाते हैं कि 2013 और 2014 में पेप्सी मॉडर्न ट्रेड में सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड था, वहीं पिछले साल कोक टॉप 5 ब्रांड्स में शामिल था. इस साल रियल के 8 पर्सेंट हिस्से की तुलना में कोक का मार्केट शेयर 4 पर्सेंट रहा. नीलसन के अधिकारियों ने साफ किया कि यह डेटा सिर्फ मॉडर्न ट्रेड का है. जनरल ट्रेड में बड़े पैमाने पर फिजी (कोल्ड) ड्रिंक्स की बिक्री में बढ़त हो सकती है.

ऑनलाइन सुपरमार्केट इकाई Bigbasket.com के को-फाउंडर विपुल पारेख ने भी इस ट्रेंड की पुष्टि की. उन्होंने बताया, 'जूस की ग्रोथ कोल्ड ड्रिंक्स के मुकाबले 2.5 गुना ज्यादा है. हम पिछले 6 महीनों से इस ट्रेंड को देख रहे हैं. ग्राहकों का झुकाव अब सेहतमंद फूड और बेवरेजेज की तरफ बढ़ रहा है.

फिसड्डी निराश न हों

एक लड़की साइंस की स्टूडैंट थी, लेकिन उस के 12वीं के प्री बोर्ड में बहुत कम अंक आए. इस से स्कूल वालों को लगा कि उस का रिजल्ट खराब हो जाएगा. इसलिए उन्होंने लड़की की काउंसलिंग की और उस से आर्ट विषय से 12वीं की परीक्षा देने को कहा. लड़की को इस बात का बुरा तो लगा, लेकिन फिर भी उस ने स्कूल वालों की बात मानी और आर्ट विषय ले कर अच्छी मेहनत कर 12वीं की परीक्षा दी. आर्ट में उस के अच्छे अंक आए. इस के बाद उस ने ग्रैजुएशन की और सिविल सर्विस की तैयारी पूरी मेहनत से की. पहली बार में ही उस ने सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर ली और भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुन ली गई. आज वह उत्तर प्रदेश में जिलाधिकारी यानी डीएम के रूप में सरकारी सेवा में है.

अगर वह प्री बोर्ड में फेल होने के बाद निराश हो गई होती और आगे पढ़ाई में मन नहीं लगाती तो शायद वह फिसड्डी की फिसड्डी ही रह जाती. ऐसे 1-2 नहीं बल्कि तमाम उदाहरण हैं, जिन में फिसड्डी समझे जाने वाले बच्चों ने बाद में पूरी दुनिया में अपना नाम कमाया है. अगर किसी काम में सफलता नहीं मिली है तो उस में निराश होने की जरूरत नहीं है. जरूरत इस बात की है कि और अधिक मेहनत से उस काम को करें, जिस से सफलता निश्चित है. विज्ञान, खेल, फिल्म, राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से लोग अनेक बार असफल होते हैं. इस के बाद भी हार नहीं मानते और अंत में एक समय ऐसा आता है जब वे सफल जरूर होते हैं. परेशानी वहां खड़ी होती है जहां असफल होने के बाद बच्चे हताश और निराश हो कर सफलता के लिए प्रयास करना ही छोड़ देते हैं. जरूरत इस बात की होती है कि अध्यापक, साथी और पेरैंट्स बच्चों को निराश न होने दें और ऐसे बच्चे भी खुद को फिसड्डी न समझें.

जैसी रुचि वैसा कैरियर

ज्यादातर परेशानी उन बच्चों के सामने आती है जो अपनी पसंद के विषयों को ले कर पढ़ाई करने के बजाय किसी दूसरे दोस्त, नातेरिश्तेदार या भाईबहन की देखादेखी विषयों का चयन करते हैं. जिस विषय में बच्चे की रुचि कम होती है उस में पढ़ाई करते समय मन नहीं लगता. ऐसे में बच्चा पढ़ाई से दूर भागने लगता है. कभी क्लास में नहीं जाता तो कभी कोई और बहाना मार देता है. पढ़ाई न करने से वह फिसड्डी रह जाता है. ऐसे में जरूरी यह होता है कि वह विषय का चुनाव करते समय अपनी  रुचि का ध्यान रखे. आगरा विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट की असिस्टैंट प्रोफैसर मनीषा दोहरे कहती हैं, ‘‘मैं ऐडमिशन कमेटी में रही हूं और मैं ने देखा है कि जिन बच्चों का मैरिट में नाम नहीं आता वे काफी निराश हो जाते हैं. ऐसे में उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं बल्कि हिम्मत रखने की जरूरत है.’’

मनीषा दोहरे आगे कहती हैं, ‘‘मैं ने खुद इंटर की परीक्षा गणित विषय से दी. मेरा बचपन से रुझान विविध कलाओं की ओर था. इसलिए इंटर कालेज के बाद मैं ने लखनऊ के आर्ट्स कालेज में दाखिला लेना चाहा. मेरे पेरैंट्स ने पूरा सहयोग किया. उन की वजह से मैं आज इस पद पर हूं. जब बच्चा पढ़ाई में फिसड्डी होता दिखे तो उस को सही सलाह देने की जरूरत होती है. पेरैंट्स की जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों के हुनर को सही तरह से समझें, पहचानें और उस में ही बच्चों को कैरियर बनाने के लिए प्रेरित करें. बच्चे में जब आत्मविश्वास जागेगा तो वह सफल जरूर होगा. हर बच्चा अपने में स्पैशल होता है. जरूरत केवल उस की प्रतिभा को निखारने की होती है.’’

जरूरी है बच्चों का उत्साह बढ़ाना

कई बार स्कूल और घर दोनों ही जगहों पर बच्चों में आपसी तुलना होने लगती है. जो बच्चे ज्यादा अंक लाते हैं उन की खूब तारीफ होती है और कम अंक लाने वालों की तरफ कोई ध्यान नहीं देता. ऐसे बच्चे निराश हो जाते हैं. कई बार ऐसे बच्चे आत्महत्या तक करने का मन बना लेते हैं.

मनोचिकित्सक डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘फिसड्डी कोई बच्चा नहीं होता. जो बच्चे किसी कारणवश पिछड़ जाते हैं उन को आगे लाने की जरूरत होती है. ऐसे बच्चों का उत्साह बढ़ा कर उन में आत्मविश्वास जगाने की जरूरत होती है. मोटिवेशन केवल बचपन में ही नहीं बल्कि जिंदगी के हर मोड़ पर जरूरी होता है. जैसेजैसे बच्चों में आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है वैसेवैसे उन में निराशा का भाव भी बढ़ता जा रहा है. जरूरत इस बात की है कि बच्चों को निराशा के इस भाव से दूर किया जाए और उन का मोटिवेशन इस तरह किया जाए कि वे आगे बढ़ सकें.’’ डाक्टर मधु पाठक आगे कहती हैं, ‘‘बच्चों को आपसी तुलना से बचाना जरूरी होता है. जब बच्चों में आपसी तुलना होती है तो उन में निराशा का भाव आता है. केवल स्कूलों में ही नहीं घर में भी भाईबहनों में तुलना नहीं होनी चाहिए. हर बच्चे में अलगअलग खासीयत होती है. उन को उन की खासीयत के हिसाब से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए. आजकल इस बात की जरूरत स्कूल मैनेजमैंट लैवल पर भी महसूस की जा रही है. इसी वजह से स्कूलों में काउंसलिंग के लिए अलग से टीचर्स नियुक्त किए जाने लगे हैं, जिस से बच्चों में इस तरह की मानसिक परेशानी को समझा जा सके और समय से उसे दूर किया जा सके.’’

बढ़ रहे हैं कैरियर औप्शंस

पहले बच्चों के पास कैरियर के कम औप्शंस होते थे, लेकिन आज ढेरों औप्शंस होते हैं. डांस के क्षेत्र में वर्षों से काम कर रही लखनऊ की मिनी श्रीवास्तव को कई पुरस्कार मिल चुके हैं. वे कहती हैं, ‘‘आज बच्चों के लिए अनेक अवसर मौजूद हैं. बस, उन्हें अपनी रुचि के विषय में बहुत मेहनत करने की जरूरत है.’’ स्कूल टीचर मिनी श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘मेहनत ही सफलता की कुंजी है. कोई भी विषय व कोई कैरियर सरल नहीं होता. ऐसे में पूरी मेहनत से काम करें. जब बच्चे शौर्टकट तलाशना शुरू करते हैं तो वे असफलता की ओर बढ़ते जाते हैं. ऐसे में अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए मेहनत करने की जरूरत होती है. जिन बच्चों को कम अंक लाने पर फिसड्डी कहा जाता है वे यदि अपनी पढ़ाई के प्रति थोड़ा गंभीर हो जाएं तो वे भी जल्द सफल हो सकते हैं. लेकिन उन्हें खुद यह तय करना होगा कि वे सफल हों. फिसड्डी के तमगे को बुराई के तौर पर न ले कर चुनौती के रूप में स्वीकार करें, जिस से आप को सफलता मिलने में आसानी होगी.’’

फिल्म ‘थ्री इडियट’ में फरहान की भूमिका निभाने वाले आर माधवन के मातापिता चाहते थे कि वह इंजीनियर बने. इस के विपरीत वह खुद वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनना चाहता था. मांबाप की इच्छा का सम्मान करते हुए फरहान इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा. फिल्म में नाटकीय बदलाव के बाद फरहान वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बन जाता है. फिल्म ‘थ्री इडियट’ की यह कहानी पूरी फिल्मी हो सकती है, लेकिन ऐसी समस्याएं आज भी किशोरों के सामने आती हैं. कई बार जो वे करना चाहते हैं कैरियर के लिहाज से मातापिता उसेसही नहीं मानते. ऐसे में किशोर उम्र के बच्चों और उन के मातापिता के बीच एक अलग किस्म का तनाव बढ़ने लगता है. इस तरह की परेशानियों से बचने का एक रास्ता यह भी हो सकता है कि किशोर अपनी रुचि के विषय को ले कर ही पढ़ाई करें. जब वे अपनी रुचि के विषय को ले कर पढ़ाई नहीं करते तो बहुत सारी परेशानियां खड़ी हो जाती हैं. इस तरह की निराशा से बच्चों को बचाने में स्कूल मैनेजमैंट, टीचर और पेरैंट्स के साथसाथ दोस्तों की भूमिका भी अहम हो जाती है. निराशा और हताशा में फंसे अपने दोस्त का मजाक न बनाएं बल्कि सही राह दिखाएं.

2G कनेक्शन पर मिलेगी 3G जैसी स्पीड

2G डाटा कनेक्शन पर डाउनलोडिंग तो दूर इंटरनेट ब्राउजिंग करना भी काफी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में हम आपको बता रहे हैं एक छोटी सी सेटिंग जिसे बदलकर आप 2G कनेक्शन पर 3G इंटरनेट स्पीड पा सकेंगे. अपने फोन में करें ये सेटिंग…

1. अपने स्मार्टफोन की Settings में जाएं.

नोट-इस सेटिंग से आपको सिर्फ ब्राउजिंग के लिए 3G (फास्ट) स्पीड मिलेगी. डाउनलोडिंग के लिए 3G स्पीड नहीं मिलेगी.

2. इसमें Printing के नीचे More Networks का ऑप्शन दिखाई देगा उसपर टैप करें.

3. अब आपको 3 ऑप्शन्स दिखाई देंगे. इनमें से Mobile Networks पर टैप करें.

अब सिम सिलेक्ट करके Network Mode चुनें. अगर आप डुअल सिम इस्तेमाल कर रहे हैं तो वो सिम सिलेक्ट करें जिसपर आप ब्राउजिंग के लिए 3G इंटरनेट स्पीड चाहते हैं.

4. सिम सिलेक्ट करने के बाद आपको 4 ऑप्शन्स दिखाई देंगे. इनमें से WCDMA Only ऑप्शन सिलेक्ट करें.

5. बैक जाकर फोन को रिस्टार्ट करें. अब आप 2G नेटवर्क पर 3G की स्पीड में इंटरनेट ब्राउजिंग कर पाएंगे.

पिछड़े, न तो पढ़ें न ही आगे बढ़ें

बिहार में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को मिलने वाली प्रीमैट्रिक स्कौलरशिप में जम कर लूटखसोट का खेल खेला गया और करोड़ों रुपए की लूट की गई. क्लास एक से 10वीं तक के बच्चों को स्कौलरशिप का पैसा दिया जाना था. दलितपिछड़े बच्चों के कैरियर को अंधेरे में ले जाते हुए घोटालेबाजों ने स्कौलरशिप की रकम की बंदरबांट के लिए न केवल फर्जी बैंक खाते खोले, बल्कि फर्जी स्कूल और गांव तक बना डाले.

खास बात यह है कि पटना जिले के बच्चों को मिलने वाली स्कौलरशिप की रकम नागपुर और आंध्र प्रदेश के बैंकों तक पर्सनल अकाउंट में पहुंच गई. ज्यादातर खातों में जिस बैंक का पता बताया गया है, वह जाली है. स्कौलरशिप की रकम विद्यालय शिक्षा समिति के खाते में डालने के बजाय घोटालेबाजों के पर्सनल खाते में डाली गई. घोटालेबाजों की हिम्मत तो देखिए कि उन्होंने फर्जी स्कूल ही नहीं बनाए, बल्कि बैंकों की फर्जी ब्रांचें बता कर दूसरी ब्रांचों में रुपए डलवा दिए. कल्याण महकमे ने जब बैंकों को स्कूल के खातों की लिस्ट भेजी, तो घोटाले का खुलासा हुआ. लिस्ट में बैंकों के आईएफएससी कोड की जांच की गई, तो ज्यादातर ब्रांच दूसरी जगह की निकलीं. कल्याण महकमे ने स्कूलों में भेजने के लिए 28 दिसंबर, 2015 और 30 जनवरी, 2016 को 2 करोड़, 19 लाख, 60 हजार रुपए ट्रांसफर करने का आदेश जारी किया था. इन में से एक करोड़, 93 लाख, 17 हजार, 6 सौ रुपए कल्याण महकमे की लिस्ट में शामिल स्कूलों के बैंक खातों में भेजने के बजाय फर्जी तरीके से दूसरे खातों में ट्रांसफर करा लिए गए. गड़बड़ी पता लगने के बाद पूरे मामले की जांच की जा रही है. जांच के दौरान अब तक 36 आरोपियों पर एफआईआर दर्ज की गई है. पटना के साथसाथ आंध्र प्रदेश, नागपुर, समस्तीपुर, बाढ़, विक्रम के पते दे कर दलालों ने बैंक खातों के जरीए पैसे निकाल लिए हैं.

डीपीओ की ओर से कल्याण शाखा को साल 2014-15 में सौंपी गई स्कौलरशिप के फर्जी खाते वाले स्कूलों की तादाद 43 बताई गई थी, जिन में से 34 स्कूल और बैंक खाते दोनों ही फर्जी पाए गए. फर्जी स्कूल का नाम ले कर 27 दलाल एक करोड़, 38 लाख रुपए निकालने में कामयाब रहे. 9 खाताधारक स्कौलरशिप की रकम फर्जी तरीके से नहीं निकाल सके.

जिला शिक्षा कार्यालय के प्रोग्राम अफसर के दस्तखत से सभी फर्जी अकाउंट वाले स्कूलों की लिस्ट कल्याण विभाग को भेजे जाने की बात साबित हो गई है. फर्जी लिस्ट पर दस्तखत करने से पहले बैंक खातों की जांच नहीं की गई. हाईस्कूल के बैंक खाते से रकम सीधी जिला शिक्षा पदाधिकारी को भेजी गई थी. जिला शिक्षा कार्यालय के किरानी की मिलीभगत से फर्जी खाते की लिस्ट तैयार की गई थी. किरानी मनोज कुमार पर एफआईआर दर्ज करने के बाद से वह फरार है. मनोज ने कल्याण विभाग के किरानी अयोध्या प्रसाद का भी नाम लिया है. स्कौलरशिप घोटाले की पड़ताल के तहत अब तक की जांच में 43 स्कूलों के बैंक खाते फर्जी होने की बात साबित हो गई है. यह घोटाला तकरीबन 2 करोड़ रुपए का है.

अब तक की जांच में पता चला है कि स्कौलरशिप घोटाले में 7 लोग सीधेसीधे शामिल हैं और इन में से एक ही परिवार के 4 लोग हैं. बाकी 3 लोग दोस्त हैं. इन्होंने फर्जी तरीके से स्कौलरशिप के करोड़ों रुपए अपने प्राइवेट खातों में ट्रांसफर करा लिए. सभी घोटालेबाजों ने एकदूसरे का इंट्रोड्यूसर बन कर खाते खुलवाए थे. प्रमोद कुमार और भोला सिंह इस घोटाले के मास्टरमाइंड हैं. प्रमोद कुमार का खाता सैदपुर महल्ले के सिंडिकेट बैंक में है, जिस का खाता नंबर-74072010006869 है. इस खाते में पैजवा हाईस्कूल के 5 लाख, 51 हजार, 4 सौ रुपए ट्रांसफर किए गए. भोला सिंह का खाता मुसल्लहपुर हाट महल्ले के आंध्रा बैंक में है, जिस का खाता नंबर-281110100001662 है. इस में रामपुर के हाई मिडिल स्कूल के 5 लाख, 2 हजार, 8 सौ रुपए ट्रांसफर किए गए. इस का दूसरा खाता नया टोला महल्ले के सैंट्रल बैंक में है, जिस का खाता नंबर-3500057060 है. इस खाते में बांस बिगहा हाईस्कूल के 5 लाख, 60 हजार, 2 सौ रुपए डाले गए. भोला सिंह का तीसरा खाता पटना यूनिवर्सिटी के इलाहाबाद बैंक शाखा में है, जिस का खाता नंबर-50314069919 है. इस में आदर्श मध्य विद्यालय, सुरैया के नाम से 6 लाख, 67 हजार, 8 सौ रुपए डाले गए, जबकि इस नाम का कोई स्कूल ही नहीं है.

सुमित कुमार गुप्ता का खाता सैदपुर के सिंडिकेट बैंक में है, जिस का खाता नंबर-74072010013123 है. इस में बाढ़ के एएनएस हाईस्कूल के नाम से 5 लाख, 97 हजार, 6 सौ रुपए डाले गए. इस का दूसरा अकाउंट मुसल्लहपुर के आंध्रा बैंक में है, जिस का खाता नंबर- 281110100002847 है. इस में ढेलवा मिडिल स्कूल के 5 लाख, 50 हजार, 4 सौ रुपए डाले गए. इस का तीसरा खाता नया टोला की सैंट्रल बैंक शाखा में है, जिस का खाता नंबर-3500045328 है. इस में हसनपुरा हाईस्कूल के 5 लाख, 50 हजार, 8 सौ रुपए डाले गए. इस का चौथा खाता गोविंद मित्रा रोड की केनरा बैंक शाखा में है, जिस का खाता नंबर-1500108007460 है. इस में इशोपुर मिडिल स्कूल के 6 लाख, 88 हजार, 8 सौ रुपए ट्रांसफर किए गए. कुमार विकास का बैंक खाता सैदपुर के सिंडिकेट बैंक में है, जिस का खाता नंबर-74072010013099 है. उस में आरएलएसवाई हाईस्कूल, पैगंबरपुर के 6 लाख, 49 हजार, 8 सौ रुपए डाले गए. इस के साथ ही उस का खाता मुसल्लहपुर के आंध्रा बैंक में भी है, जिस का खाता नंबर- 281110100001635 है. इस में महादेवी स्थाना मिडिल स्कूल के 4 लाख, 51 हजार, 8 सौ रुपए ट्रांसफर किए गए.

दूसरे घोटालेबाज पंकज कुमार का कारपोरेशन बैंक में खाता है. उस का खाता नंबर-0323000101025723 है. इस में रघुनाथपुर हाई मिडिल स्कूल के 4 लाख, 92 हजार, 6 सौ रुपए डाले गए. निधि कुमारी का कारपोरेशन बैंक के खाता नंबर-0323001023645 में सांईं हाईस्कूल के 6 लाख, 42 हजार 6 सौ रुपए डाले गए. गिन्नी देवी के सैंट्रल बैंक की अशोक राजपथ शाखा के खाता नंबर-1352450236 में गोपालपुर मिडिल विद्यालय के 4 लाख, 48 हजार, 2 सौ रुपए डाले गए. प्रमोद कुमार ने अपने 2 दोस्तों विकास और सुमित के साथ रकम हड़पने का प्लान बनाया. भोला सिंह की बहन गिन्नी देवी और उस की बेटी निधि कुमारी और दामाद पंकज कुमार को भी इस घोटाले के खेल में शामिल किया गया. रमोद कुमार ने विकास और सुमित को गारंटर बना कर बैंकों में खाते खुलवाए. इस फर्जीवाड़े की ज्यादातर रकम पटना के बैंकों की कुछ खास शाखाओं में ही ट्रांसफर की गई. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण महकमे के मुताबिक, पिछले साल एक लाख छात्रों ने स्कौलरशिप के लिए अर्जी दी थी. सरकार ने 43 हजार छात्रों के लिए 70 करोड़ रुपए आवंटित किए थे. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री संतोष निराला कहते हैं कि पूरे फर्जीवाड़े की गहराई से जांच की जा रही है.

उन्होंने आगे कहा कि कुसूरवारों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा. अब स्कौलरशिप की रकम सीधी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों के बैंक खातों में डाली जाएगी.                      

पिछड़े दलित बच्चों के साथ खिलवाड़ : जीतनराम मांझी

बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हिंदुस्तानी अवाम मोरचा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी कहते हैं कि बड़ी साजिश के तहत पिछड़ों और दलितों के होनहार बच्चों को स्कौलरशिप से दूर रखा जा रहा है. दलितों के बच्चों को मिलने वाली स्कौलरशिप की रकम में घोटाला होता रहा और खुद को दलितपिछड़ों की सरकार बताने वाली नीतीशलालू सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही. दलितों के बच्चों को साजिश  के तहत पढ़ने से रोकने के मामले की सीबीआई जांच कराने की जरूरत है, तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा.

महिला और युवती

दिल्ली की महानगरीय जीवनशैली में सुबह से ही ट्रैफिक की भरमार से अंदाजा लगाया जा सकता है कि महानगरों में किस हद तक व्यस्तता अपने चरम पर है. महिला व पुरुष भेड़बकरियों की तरह बसों में चढ़तेउतरते हैं. ऐसे ही एक ठसाठस भरी बस में मुझे भी चढ़ने का अवसर मिला. यह बस इतनी भरी हुई थी कि बैठने के लिए जगह मिलना दूर, इस भीड़ में खड़े रहना भी मुश्किल था. बस में कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें खड़े होने में ही आनंद आ रहा था. सीटें खाली होतीं पर जनाब खड़े रहते और खाली सीट पर कोई भद्र महिला अपना कब्जा जमा लेती. जब भी बस किसी स्टौप पर रुकती और अगर कोई महिला बस में चढ़ती तो पहले तो उसे गेट से अंदर आने के लिए खचाखच भरी भीड़ का सामना करना पड़ता, फिर जैसे ही वह अपने को व्यवस्थित करती, उस की खोजी नजर इस बात की तहकीकात करती नजर आती कि कहीं उसे महिला सीट पर पुरुष दिखाई दे जाए और वह महिला सीट के जुमले के सहारे उक्त सीट पर बड़ी विनम्रता के साथ आसन जमा सके.

चलती का नाम गाड़ी की तरह बस सब को लिए चली जा रही थी. टिकटटिकट चिल्लाते हुए कंडक्टर अपना काम कर रहा था और बस में बातों की जुगाली करती सवारियां अपने में मस्त थीं. हर बार की तरह बस एक बार फिर एक स्टौप पर रुकी और इस बार एक वृद्ध व्यक्ति जैसेतैसे बड़ी मुश्किल से बस में सवार हुआ. वृद्ध बस के अगले गेट से चढ़ा था इसलिए उसे उम्मीद थी कि वृद्ध और विकलांगों वाली सीट पर उसे शायद राहत मिल जाए, लेकिन 2 मूकबधिर छात्रों के उस पर बैठे होने से वृद्ध को निराशा हाथ लगी. अभी वह आगे कुछ सोच पाता कि एक जवान सी दिखने वाली करीब 40 साल की भद्र महिला ने उम्र के तकाजे का सम्मान करते हुए उसे अपनी सीट दे दी.

मुझे यह सब देख कर सुखद अनुभूति हुई कि महिला सीट होने के बावजूद इस महिला ने वृद्ध की उम्र का खयाल रखा. हालांकि महिला ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उस के चेहरे की भावभंगिमा से साफ जाहिर हो रहा था कि उसे ऐसा करना अच्छा लगा. बात यहीं खत्म नहीं हुई. बस में भीड़ तो थी ही और चढ़नेउतरने वालों का तांता लगा था, बस फिर एक स्टौप पर रुकी. इस बार चढ़ने वाले तमाम चेहरों में एक बड़ा ही आकर्षक चेहरा बस में चढ़ा. उस की उम्र 20-22 साल के बीच, सुंदर काया, आधुनिक पहनावा, कंधे पर फैंसी पर्स और चेहरे पर उमंग थी. बस की सभी पुरुष सवारियों की निगाहें उस पर टिक गईं. जो महिला सीट की तरफ खड़े थे, उन के चेहरे देख कर साफ लग रहा था कि मानो उन का ऐसे खड़े रहना सार्थक हो गया हो. तभी एक घटना घटी. उस युवती की आंखें भी महिला सीट पर बैठे हुए किसी पुरुष को ढूंढ़ने लगीं ताकि वह अपने नारी अधिकार का प्रयोग करते हुए सीट पर कब्जा जमा सके.

काला चश्मा चढ़ाए इस युवती को अपनी आंखों को ज्यादा तकलीफ नहीं देनी पड़ी और आखिरकार वह वृद्ध उस की नजरोें में आ ही गया. वह धीरेधीरे अपने शिकार की ओर बढ़ने लगी और भीड़ को चीरती हुई वृद्ध के पास पहुंची और महिला सीट की दुहाई देते हुए सीट छोड़ने का आग्रह किया. इस आग्रह में वह अपनी भारतीय संस्कृति को भूल गई कि वह एक वृद्ध की मजबूरी पर अपना दावा ठोंक रही है. बस में बैठे सभी लोग हतप्रभ रह गए. अभी बुजुर्ग अपने को संभालते हुए उठने की कोशिश कर ही रहा था कि युवती बड़ी ही बेशर्मी से बोली कि उठने में इतनी देरी, बैठने को तो झट बैठ गए होंगे, देखते नहीं महिला सीट है. उफ्फ, आजकल के बुजुर्ग… इन्हें महिलाओं की सीट पर बैठने में बड़ा आनंद आता है. अरे बाबा, चलो, जल्दी से सीट खाली करो.

बुजुर्ग आगे कुछ समझ पाता कि अपनी युवा सोच और सुंदरता के घमंड में खोई युवती न जाने कितने अच्छेअच्छे शब्दों से बुजुर्ग का सम्मान बढ़ा चुकी थी. उस का यह व्यवहार सभी सवारियों को अच्छा नहीं लगा. हिम्मत कर जब बुजुर्ग को सीट देने वाली उस महिला ने युवती के इस आचरण पर एतराज जताया तो उस ने तपाक से उत्तर दिया कि बुजुर्ग हैं तो क्या गोद में बैठा लें. बस में सफर करने की क्या जरूरत है, उम्र बढ़ गई है तो घर पर ही बैठे रहते. जैसेतैसे हिम्मत कर मैं ने कुछ बोलना चाहा, युवती ने मानो मुझे काट खाया और कहने लगी, ‘आप कौन होते हैं बीच में बोलने वाले, क्या लगते हैं आप इन के. मैं अच्छी तरह जानती हूं इन शरारती बुजुर्गों को. यह जानबूझ कर महिला सीट पर बैठते हैं.’ लेकिन तब तक बस में और भी कई आवाजें उठने लगीं बुजुर्ग के पक्ष में, पर युवती के तेवर ज्यों के त्यों ही बने रहे.

इस नोकझोंक के बीच बस रुकी और बुजुर्ग कब बस से उतर गया किसी को पता भी नहीं चला. शायद उसे भी अंदाजा नहीं था कि उस के बुढ़ापे का मजाक ऐसे सरेआम उड़ाया जाएगा. इसी दौरान एक अधेड़ उम्र की महिला बस में सवार हुई और एक नेकदिल व्यक्ति ने आदर और सम्मान के साथ अपनी सीट से उठ कर उक्त महिला को बैठने की जगह दे कर उक्त घटना में एक और पुट जोड़ दिया. इस बीच कुछ दूरी का सफर तय कर खूबसूरत तुनकमिजाज युवती भी बस से उतर गई. अब क्या था, इस पूरे प्रकरण पर लोगों ने खुल कर अपने विचार रखने शुरू कर दिए. कुछ सवारियां बैठेबैठे लोगों की बातों पर मजे ले रही थीं. किसी सज्जन ने कहा कि महिला और युवती में अंतर नहीं है क्या… बहुत फर्क होता है. युवती स्वस्थ और जवान होती है जबकि महिला अधेड़, उम्रदराज होती है. युवतियां तो घंटों खड़े हो कर बस में सफर कर सकती हैं, लेकिन महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं. तभी एक और महाशय बोल पड़े कि महिला शादीशुदा, बच्चों वाली होती है जबकि युवती… सचाई यह है कि इस वाकिए के बाद मैं भी युवती और महिला के बीच केअंतर को समझने की बचकानी कवायद करने लगा और इस का उत्तर तलाशने में लग गया.

नरसिंह का नार्को टेस्ट करवाना चाहिए: सतपाल

नरसिंह यादव के डोप टेस्ट से जुड़े विवाद में पहलवान सुशील कुमार का नाम सामने आने के बाद उनके कोच सतपाल सिंह ने नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि नरसिंह यादव ने सुशील पर साजिश के जो आरोप लगाए हैं, वो गलत हैं. नरसिंह का नार्को किया जाना चाहिए.

नार्को टेस्ट कराने की सलाह

सतपाल ने कहा कि इस मामले की जांच के लिए नरसिंह यादव का नार्को टेस्ट करवाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. यही नहीं, उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो वो खुद भी नार्को टेस्ट के लिए तैयार हैं.

नरसिंह के खिलाफ केस कर सकते हैं सतपाल

सुशील के कोच ने कहा कि नरसिंह उनके ऊपर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं कि मुझे डोपिंग के रिजल्ट के बारे में पहले से पता था. उन्होंने कहा कि वो नरसिंह के खिलाफ मानहानि का दावा कर सकते हैं. सतपाल ने कहा था कि डोप टेस्ट विवाद में पहलवान सुशील कुमार का नाम घसीटा गया तो वो नरसिंह के खिलाफ केस करेंगे.

रियो में जाने को लेकर पहले भी हुआ विवाद

आपको बता दें कि नरसिंह के पिता ने सुशील और सतपाल पर उनके बेटे के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया है. गौरतलब है कि रियो में जाने को लेकर सुशील कुमार और नरसिंह के बीच कानूनी विवाद भी हुआ था.

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