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नरसिंह का नार्को टेस्ट करवाना चाहिए: सतपाल

नरसिंह यादव के डोप टेस्ट से जुड़े विवाद में पहलवान सुशील कुमार का नाम सामने आने के बाद उनके कोच सतपाल सिंह ने नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि नरसिंह यादव ने सुशील पर साजिश के जो आरोप लगाए हैं, वो गलत हैं. नरसिंह का नार्को किया जाना चाहिए.

नार्को टेस्ट कराने की सलाह

सतपाल ने कहा कि इस मामले की जांच के लिए नरसिंह यादव का नार्को टेस्ट करवाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. यही नहीं, उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो वो खुद भी नार्को टेस्ट के लिए तैयार हैं.

नरसिंह के खिलाफ केस कर सकते हैं सतपाल

सुशील के कोच ने कहा कि नरसिंह उनके ऊपर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं कि मुझे डोपिंग के रिजल्ट के बारे में पहले से पता था. उन्होंने कहा कि वो नरसिंह के खिलाफ मानहानि का दावा कर सकते हैं. सतपाल ने कहा था कि डोप टेस्ट विवाद में पहलवान सुशील कुमार का नाम घसीटा गया तो वो नरसिंह के खिलाफ केस करेंगे.

रियो में जाने को लेकर पहले भी हुआ विवाद

आपको बता दें कि नरसिंह के पिता ने सुशील और सतपाल पर उनके बेटे के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया है. गौरतलब है कि रियो में जाने को लेकर सुशील कुमार और नरसिंह के बीच कानूनी विवाद भी हुआ था.

सलमान की रिहाई पर अर्पिता की खुशी

डिज़ाइनर अर्पिता खान शर्मा पिछले दिनों जब रिटेल ज्वेलर इंडिया अवार्ड में जज बन कर आई, तो सभी की निगाहें उन पर थी. सलमान की काला हिरण और चिंकारा के अवैध मर्डर के मामले की रिहाई के बारें में पूछने पर अर्पिता ने बताया कि ये एक ख़ुशी की बात है कि उन्हें बरी कर दिया गया, पूरा परिवार इस मामले से परेशान था, इस मामले में वह मीडिया और फ्रेंड्स को धन्यवाद देती हैं.

आगे वह बताती हैं कि मेरी लाइफ में ज्वेलरी खास मायने रखती है, ज्वेलरी के बिना महिला अधूरी लगती है. मुझे ‘सोलिटेयर’ वाले गहने पसंद हैं, जो मैं मौका मिलने पर खरीदती हूँ. यहां उपस्थित गहनों की प्रदर्शनी खास है, जिसे देखकर लगता है कि आज भी कारीगरी वैसे ही कायम है, केवल उसे तराश कर आधुनिक रूप दिया गया है.    

                               

 

गिफ्ट पैक में सूतफेनी

सूतफेनी को नये अंदाज में टीवी शो से लेकर बाजार तक में पेश किया जा रहा है. जिसकी वजह से पुराने जमाने की सूतफेनी गिफ्ट पैक में बाजार में पेश की जा रही है. सूतफेनी सेवंई परिवार की मिठाई है. इसको इस तरह से तैयार किया जाता है कि खाने के लिये केवल गरमदूध में डालने पर ही सेंवई जैसी बन जाये. यह सेवंई के मुकाबले बहुत महीन होती है. इसको बनाने के लिये सेवंई से अलग तरीके का इस्तेमाल किया जाता है.

उत्तर भारत में सावन के महीनों में पड़ने वाले त्योहारों रक्षाबंधन, नागपचंमी, तीज और करवाचौथ में सूतफेनी का चलन बहुत होता है. बहुत सारे लोग इसको अपने दोस्तो, रिश्तेदारों को अब उपहार में देने लगे हैं. सूतफेनी बहुत लंबे समय से तैयार होती है. अब इसको नये रूप में पेश किया जा रहा है. ऐसे में इसको गिफ्ट पैक में तैयार किया जाने लगा है. सूतफेनी का एक पीस 50 ग्राम के करीब होता है. गिफ्ट पैक में सूतफेनी 560 रुपये किलो मिलता है. इसको आकर्षक पैक में उपहार के लिये तैयार किया जाता है.

सूतफेनी को बनाने के लिये मैदा और घी का प्रयोग किया जाता है. लखनऊ के छप्पनभोग मिठाई शौप के मालिक रवीद्र गुप्ता कहते है ‘सूतफेनी को मैदा और घी से तैयार किया जाता है. इसको बनाते समय ही इतनी पर इसको फेंटा जाता है कि मैदा और घी आपस में बहुत अंदर तक मिक्स हो जाते है. जब अंत में सूतफेनी तैयार होती है तो इसको घी में फ्राई किया जाता है. तैयार सूतफेनी को खाने के लिये गरमदूध या चाश्नी में डाला जाता है. इसको स्वादिष्ठ बनाने के लिये मेवा का प्रयोग भी किया जा सकता है.सूतफेनी ट्रेडिशनल मिठाई है. अब इसको नये जमाने के लोग खासकर लडकियां बहुत पसंद कर रही है.‘

सूतफेनी तैयार करने के लिये मैदा को घी में आटा की तरह गूंथा जाता है. इसके बाद इससे बड़ी बड़ी लोई तैयार की जाती है. लोई के अंदर छेद किया जाता है. छेद करके इसको अंग्रेजी के 8 आकार का बना कर रिंग के आकार में बनाते हुये इतनी बार खींचते है कि यह महीन महीन लेयर में तैयार हो जाती है. अब इसको घी में फ्राई करते है. यह करीब करीब 50-50 ग्राम के वजन के होते है. तैयार सूतफेनी को दूध या चाश्नी में डालकर खाया जाता है.

सूतफेनी को रखने का तरीका ऐसा हो जिससे उसमें हवा न लगे. हवा लगने पर नमी से सूतफेनी का स्वाद खराब हो सकता है. सूतफेनी का ज्यादातर चलन बरसात के मौसम में होता है. ऐसे में नमी से इसको बचाना जरूरी होता है. टीवी सीरियलों में त्योहारों को नया रंग दिया जा रहा है. ऐसे में वहां सूतफेनी का भी प्रचार हो रहा है, जिसकी वजह से पुरानी मिठाई नये रंग में प्रस्तुत की जा रही है.    

विधानसभा मे धर्म गुरु क्यों

जैन धर्म में आचार्य विध्यासागर की वही पूछपरख और हैसियत है, जो सनातन धर्म में शंकराचार्य, इस्लाम में पैगम्बर, क्रिश्चियन में पोप, सिक्खों में गुरुनानक और दलितों में रविदास की है. विध्यासागर इन दिनो भोपाल के हबीबगंज जैन मंदिर में चातुर्मास कर रहे हैं, उन्हे सुनने और देखने देश भर से श्रद्धालु उमड़ रहे हैं. इनमे आम लोगों के अलावा नेताओं की तादाद भी ख़ासी है, जिनका एक अहम मकसद जैन समुदाय के लोगों को खुश करना भी है, क्योंकि अपनी व्यापारिक बुद्धि के लिए पहचाने जाने वाले जैनी चुनावों में दिल खोलकर चंदा देते हैं और हवा का रुख पलटने में भी माहिर हैं.

कोई भी दल सत्ता में आए, इस समुदाय के विधायकों की संख्या दहाई में ही रहती है जबकि वोटों के लिहाज से इनकी संख्या 20 लाख भी नहीं है. विध्यासागर के भोपाल आते ही मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सीता शरण शर्मा भी उन प्रमुख नेताओं में शामिल थे, जो सबसे पहले आचार्य के दर्शन करने पहुंचे थे. उन्हे आशीर्वाद मिला, तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी आगे की सोचते विध्यासागर को विधानसभा आकर प्रवचन करने का आग्रह कर डाला और जल्द ही घोषणा भी हो गई कि 28 जुलाई को दोपहर 3 बजे से इन आचार्य के प्रवचन विधानसभा में होंगे.

क्यों होंगे और विधानसभा में धर्मगुरुओं के आने का औचित्य क्या, यह न किसी ने बताया, न कोई पूछने की जरूरत समझ रहा कि विधानसभा आखिरकर एक संवैधानिक स्थल है. यहां धर्म कर्म पूजा पाठ यज्ञ हवन और प्रवचन क्यों, क्या ये मुनि गुरु और संत प्रवचन देकर आम जनता की समस्याओं का गारंटेड समाधान धर्म के जरिये करने का दावा करते हैं. अगर हाँ तो विधानसभा की जरूरत ही क्या विधायक क्यों चुने जाते हैं और अगर नहीं कर सकते तो धर्मगुरुओं को यहाँ बुलाकर क्यों जनता का पैसा फूंका जाकर विधानसभा को धर्म प्रचार का अड्डा बनाया जा रहा है.

विधानसभा और धर्मशाला में कोई फर्क मध्य प्रदेश में रह गया है, ऐसा लगता नहीं बल्कि लगता ऐसा है कि जमाना लोकतन्त्र का न होकर राजे रजबाड़ों का है, जिसमे सीएम राजा की तरह बैठते हैं और प्रजा के कल्याण के नाम पर धर्मगुरुओं के श्रीमुख से उपदेश सुनकर अपने कर्तव्यों की इति श्री हुई मान लेते हैं. शिवराज सिंह धर्मभीरुता के मामले में दिग्विजय सिंह को भी पटखनी देने पर उतारू हो आए हैं, जो अपने मुख्यमंत्रित्व काल के आखिरी चरण में इसी तरह जैन मुनियों के चरणों में लोट लगाया करते थे, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो जैन बाहुल्य इलाकों से कांग्रेस का सूपड़ा साफ था. इतिहास अपने आप को दोहराए या न दोहराए, यह और बात है पर अब चुनाव आयोग को चाहिए कि वह बजाय पेड न्यूज़ पर हल्ला मचाने के धर्म और चुनाव का संबंध और सीमाएं तय करे जिनसे बड़े पैमाने पर वोट प्रभावित होते हैं और विधानसभा की मर्यादा अगर कोई है तो भंग होती है.

 

नीतीश के लिये जीत से ज्यादा ब्रांडिंग जरूरी

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिये उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव जीतने से जरूरी खुद की ब्रांडिंग करना महत्वपूर्ण है. नीतीश कुमार बिहार में लगातार तीन बार से मुख्यमंत्री है. उनकी स्वच्छ और साफ छवि है. बिहार में उनको ‘सुशासन कुमार’ के नाम से भी जाना जाता है. गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई नेताओं में नीतीश कुमार राष्ट्रीय नेताओं में सबसे बडे कद के नेता है. नीतीश कुमार ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया है. इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वह चुनावी साल में 4 बार उत्तर प्रदेश में किसी न किसी रूप से रैली कर चुके हैं. बिहार में शराब बंद कर चुके नीतीश कुमार अब उत्तर प्रदेश में शराब बंदी और सुशासन को मुद्दा बना रहे हैं. नीतीश कुमार ने उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार पर शराब बंद करने का दबाव बना दिया है. वह विधानसभा चुनावों में शराब बंदी को मुख्य मुद्दा बनाना चाहते है.

बसपा से अलग हुये आरके चौधरी के बीएस-4 पार्टी की रैली में हिस्सा लेने लखनऊ आये नीतीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में किसी प्रकार के चुनावी गठबंधन पर कोई राय नहीं दी. बिहार में बना महागठबंधन उत्तर प्रदेश में एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा, इस बात के अब तक कोई संदेश नहीं हैं. बिहार के महागठबंधन में कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन में चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है. लालू प्रसाद यादव ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है. वह समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह से अपनी रिश्तेदारी के चलते यह फैसला ले रहे हैं. कांग्रेस अभी गठबंधन से भले ही इंकार कर रही हो, पर देर सबेर वह गठबंधन कर चुनाव लड़ सकती है. नीतीश से गठबंधन कर कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में बहुत लाभ नहीं होने वाला. ऐसे में वह अभी नीतीश की ताकत को देख रही है.

यह सच है कि उत्तर प्रदेश में नीतीश कुमार की ताकत बहुत नहीं है. वह उत्तर प्रदेश में बड़ा जनाधार नहीं रखते. ऐसे में चुनाव जीतना बहुत मुश्किल काम है. इसके बाद भी नीतीश कुमार जिस तरह से चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश में अपना फोकस बढ़ा रहे है उससे साफ है कि वह उत्तर प्रदेश चुनाव के बहाने अपनी ब्रांडिग करना चाहते हैं. नीतीश का निशाना 2019 के लोकसभा चुनाव हैं, जहां पर वह खुद को भाजपा के नेता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुकाबले पेश कर सके. उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा प्रदेश है. देश की राजनीति करने के लिये उत्तर प्रदेश में जड़े जमाना जरूरी होता है. भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ने भी इसीलिये उत्तर प्रदेश को अपना लोकसभा क्षेत्र चुना. यह सही है कि नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड का उत्तर प्रदेश में कोई बडा जनाधान नहीं है. ऐसे में उसको केवल अपने नेता नीतीश कुमार की ब्रांडिंग का लाभ लेना चाहती है.

एक बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की उपयोगिता साबित हो गई तो उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर उनको अपनी दावेदारी पेश करने में मदद मिलेगी. 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की पहले जैसी सफलता मिलती नहीं दिख रही. कांग्रेस में भी बहुत सुधार नजर नहीं आ रहा. ऐसे में नीतीश कुमार सबसे योग्य चेहरा के रूप में खुद को सामने रखना चाहते हैं. जिससे गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई नाम पर लोग उनका समर्थन कर सके. ऐसे में नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में अपनी सक्रियता दिखा कर ब्रांडिग करना चाहते है. छोटे-बड़े दलों के साथ मिलकर नीतीश उत्तर प्रदेश की चुनावी जंग को अपने पाले में मोड़ना चाहते हैं. समय के साथ साथ वह अपने पत्ते खोलेंगे .लालू के बिना भी वह उत्तर प्रदेश में नया गठबंधन तैयार कर सकते हैं.

क्या नवाजुद्दीन भी अब पूरे व्यापारी हो गए हैं?

जब से नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘‘जाली एलएलबी-2’’ करने से मना किया है, तब से बौलीवुड में चर्चा गर्म है कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी अब पूरी तरह से व्यवसायी हो गए हैं. सूत्रों के अनुसार नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपनी व्यस्तता और फिल्म ‘‘जाली एलएलबी- 2’’ की शूटिंग के लिए तारीखों के अभाव का वास्ता देकर इस फिल्म को करने से साफ इंकार किया.

पर बौलीवुड के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने हाल ही में अपनी पारिश्रमिक राशि दो गुनी से ज्यादा कर दी है. सूत्र बताते हैं कि नवाजुददीन सिद्दिकी ने सोहेल खान की फिल्म के अलावा बोनी कपूर की श्रीदेवी के साथ वाली फिल्म ‘‘माम’’ में अभिनय करने के लिए साढे़ तीन करोड़ रूपए लिए हैं. इसी के चलते उन्होने ‘जाली एलएलबी-2’ में भी अभिनय करने के लिए साढ़े तीन करोड़़ रूपए मांगे, जिसे निर्माता ने देने से इंकार कर दिया.

निर्माता का दावा है कि उनकी फिल्म कम बजट की है. इसलिए नवाजुद्दीन सिद्दिकी को इतनी बड़ी रकम की मांग नहीं करनी चाहिए. पर नवाजुद्दीन सिद्दिकी से जुड़े सूत्र कहते हैं कि कि यदि निर्माता अक्षय कुमार जैसे दिग्गज कलाकार को अच्छी कीमत देने से परहेज नहीं करता, तो वह सिर्फ नवाजुद्दीन सिद्दिकी से ही समझौता करने के लिए क्यों कहता है?

बहरहाल, बौलीवुड में तमाम लोग नवाजुद्दीन सिद्दिकी के संग खड़े नजर आ रहे हैं. यह ठीक भी है. आखिर हर स्टार कलाकार अपने स्टाफ के नाम पर भी निर्माता से करोड़ रूपए वसूलता है और अपनी फीस भी कम नहीं करता.

‘ट्यूबलाइट’ में शीर्ष भूमिका निभा रहे हैं सलमान खान

1960-1962 के काल खंड और भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर एक प्रेम कहानी को कबीर खान अपनी नई फिल्म ‘‘ट्यूब लाइट’’ में परोसने जा रहे हैं. फिल्म के निर्देशक कबीर खान का दावा है कि वह 28 जुलाई से अपनी इस फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे.

सूत्रों की माने तो इस फिल्म में सलमान खान के किरदार का नाम ट्यूबलाइट है, जो कि एक चीनी लड़की से प्यार करता है. ट्यूबलाइट आम इंसानों से थोड़ा अलग है. वह हर बात को बहुत देर से समझता और देर से ही सीखता है. यानी कि कुछ हद तक यह ‘दिव्यांग’ है. पर कबीर खान का दावा है कि वह इस किरदार को फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ में बड़ी संजीदगी के साथ पेश करने वाले हैं.

विक्रम फड़नवीस की फिल्म ‘‘निया’’ का क्या होगा?

बौलीवुड में फिल्मों के निर्माण की घोषणा किन वजहों से होती है, इसे समझना टेढ़ी खीर है. अमूमन फिल्म की कहानी, पटकथा, निर्देशक, तकनीकी टीम व कलाकारों का चयन हो जाने के बाद ही उसके निर्माण की घोषणा होती है. मगर कई फिल्में सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रह जाती हैं. बौलीवुड के सूत्रों की  माने तो फिल्मों की घोषणाएं किसी न किसी योजना के तहत की जाती हैं. इसलिए हर घोषित फिल्म का बनना आवश्यक नहीं होता है.

यदि यह सच है तो विक्रम फड़नवीस ने तीन वर्ष पहले बतौर निर्देशक फिल्म ‘‘निया’’ बनाने की न सिर्फ घोषणा बल्कि फिल्म का मुहूर्त क्यों किया था, इसका सच सामने आना चाहिए, पर अभी तक इसका सच सामने नहीं आ पाया.

जी हां! लगभग तीन साल पहले मशहूर कास्ट्यूम डिजायनर विक्रम फड़नवीस ने बतौर निर्देशक फिल्म ‘‘निया’’ के निर्माण की घोषणा की थी. विक्रम फड़नवीस ने बिपाशा बसु, राणा डग्गूबटी व संगीतकार शंकर महादेवन की उपस्थिति में इस फिल्म का मुहूर्त भी किया था. उस वक्त बताया गया था कि इस फिल्म में बिपाशा बसु के साथ राणा डग्गूबटी अभिनय कर रहे हैं. जब इस फिल्म की घोषणा की गयी थी, उस वक्त बिपाशा बसु और राणा डग्गूबटी के आपसी रिश्तों की चर्चा भी हो रही थी. मगर तीन साल का समय बीत जाने के बावजूद इस फिल्म को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई.

जबकि पिछले तीन वर्ष के दौरान सभी समीकरण बदल चुके हैं. करण सिंह ग्रोवर के संग शादी कर बिपाशा बसु ने एक नई राह पकड़ ली है और अब विक्रम फड़नवीस की फिल्म ‘निया’ में उनकी कोई रूचि नहीं रही. जबकि सूत्रों का दावा है कि राणा डग्गूबटी ने भी फिल्म ‘‘निया’’ से दूरी बना ली है. तो क्या अब फिल्म‘‘निया’नहीं बनने वाली है?

मगर इस सच को विक्रम फड़नवीस मानने को तैयार ही नहीं है. विक्रम फड़नवीस का दावा है कि उनकी फिल्म ‘निया’ की पटकथा लेखन में देरी होने की वजह से फिल्म नहीं शुरू हो पायी. पर अब फिल्म ‘निया’ की पटकथा लेखन का काम पूरा हो गया है. और फिल्म का निर्माण जल्द शुरू होगा. मगर वह यह बताने को तैयार नहीं हैं कि ‘निया’ वास्तव में कब शुरू होगी और इसमें अभी भी बिपाशा बसु व राणा डग्गूबटी अभिनय कर रहे हैं या नहीं.

डर था एक दूसरे को गोली ना मार दे भारत-पाक खिलाड़ी

साल 1972 के जर्मनी में हुए म्यूनिख समर ओलंपिक को लोग 'ब्लैक सेप्टेम्बर' के आतंकी हमले के लिए ज्यादा याद करते हैं. आपको बता दें कि जब इजरायली टीम पर हमला हुआ तो उसी स्पोर्ट्स विलेज में भारत और पाकिस्तान की टीम भी मौजूद थीं.

जर्मन पुलिस को सुरक्षा के बाकी इंतजाम के साथ इस बात का भी ख्याल रखना पड़ रहा था कि कहीं भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी एक दूसरे को गोली न मार दें.

जानिए क्या था मामला

गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही ग्रुप्स में उनकी शूटिंग टीम मौजूद थीं. अब क्योंकि वो सभी शूटर्स थे तो अपने साथ अपनी बंदूकें और प्रैक्टिस के लिए अन्य बंदूकें भी लाए थे.

अभी भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध थमे कुछ ही महीने बीते थे और दोनों देशों के बीच काफी अशांति थी. पाकिस्तान अपनी हार से काफी आहत था और किसी भी तरह की बुरी घटना की आशंका लगातार बनी हुई थी.

जर्मन सुरक्षा एजेंसियों को इस बात की खुफिया सूचना मिली थी कि दोनों ही टीमों में बतौर खिलाड़ी कुछ इंटेलीजेंस के लोग शामिल कर भेजे गए हैं. दोनों ही टीमों के पास बंदूकें थीं और कभी भी कुछ हो सकता है इसकी आशंका लगातार बनी हुई थी.

क्या बताते हैं शूटर परिमल चटर्जी

उस वक्त भारत की तरफ से शूटिंग टीम में शामिल खिलाड़ी परिमल बताते हैं कि माहौल में बहुत तनाव था जिसके चलते हमारे कमरों के बाहर हमेशा पुलिस के जवान तैनात रहते थे. पुलिस ने कभी कुछ कहा नहीं लेकिन वे रात भर भी कमरे के बाद पहरा देते थे.

शूटर्स अपनी बंदूकें अपने कमरे में रख सकते थे और उन्हें डर था कि कुछ ही दूर रुके पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ हमारी कोई खटपट न हो जाए. हालांकि ऐसी कोई घटना नहीं हुई और ये ओलंपिक इजरायली खिलाडियों पर हुए आतंकी हमले के लिए जाना गया.

भारत से प्रेरणा ले रहा है पाकिस्तान

पाकिस्तानी एंजेल इनवेस्टर और TiE के लाहौर चैप्टर के वाइस प्रेसिडेंट हुमायूं मजहर ने पिछले हफ्ते भारत का दौरा किया. इस दौरे में उन्होंने भारतीय इनवेस्टर्स और आंत्रप्रेन्योर्स से बात की और यहां स्टार्टअप इकोसिस्टम को समझा. वह भारत के इकोसिस्टम को पाकिस्तानी स्टार्टअप्स के लिए सिलिकॉन वैली मानते हैं. पाकिस्तान में स्टार्टअप्स की रफ्तार पकड़ने के साथ ही इस मुल्क के आंत्रप्रेन्योर्स और इनवेस्टर्स प्रेरणा के लिए भारत की तरफ देख रहे हैं. वे भारतीय स्टार्टअप की दुनिया के उतार-चढ़ाव से सीख भी रहे हैं.

मजहर ने अक्टूबर 2015 में क्रेसवेंचर नाम की फर्म शुरू की थी. वह अब तक पाकिस्तान में 3 स्टार्टअप्स में निवेश कर चुके हैं. इस महीने की शुरुआत में उन्होंने पाकिस्तान की ऑटो टेक स्टार्टअप ट्रैवली में निवेश किया था. उनके मुताबिक, यह भारत के जुगनू की तर्ज पर काम कर रही है. Travelkhana.com के बॉस सिंह ने कहा कि स्टार्टअप्स को लेकर जिन मुश्किलों से निपटने की जरूरत है, वे दोनों देशों में एक जैसी हैं. यह वेबसाइट रेल मुसाफिरों के लिए खाना बुक करने का प्लेटफॉर्म है.

उन्होंने बताया, 'हमने इस बात पर चर्चा की कि ट्रैवलखाना की तर्ज पर पाकिस्तान भी किस तरह से स्टार्टअप को शुरू किया जा सकता है. मजहर ने मुझे पाकिस्तान आने और वहां इस तरह का कुछ खड़ा करने में मदद करने को कहा.' सीरियल पाकिस्तानी आंत्रप्रेन्योर अदम गजनवी का कहना है कि उन्होंने ओला कैब्स से प्रेरित होकर रॉकेट इंटरनेट के ईजी टैक्सी पाकिस्तानी चैप्टर की अगुवाई की.

उन्होंने बताया, 'जब मैंने पाकिस्तान में अपने एक जानने वाले से अपने भारतीय दोस्त की उस नई कंपनी के बारे में बताया, जो डॉक्टरों के लिए अप्वाइंटमेंट बुक करती है, तो उन्होंने भी कुछ इसी तरह का काम शुरू करने का फैसला किया.' हालांकि, उन्होंने पाकिस्तानी आंत्रप्रेन्योर्स को आगाह किया कि वे भारतीय स्टार्टअप्स की अंधी नकल ना करें. उन्होंने कहा, 'ईजी टैक्सी के लिए मैंने ओला कैब्स के उदाहरण का इस्तेमाल किया. हालांकि, मुझे जल्द इस बात का अहसास हुआ कि बाजार अलग-अलग हैं. पाकिस्तान के लोग टैक्सी बुक कराने में अब भी सहज नहीं है. साथ ही, उस वक्त उनके पास 3जी भी नहीं था.' ईजी टैक्सी ने पिछले साल अपना ऑपरेशन बंद कर दिया. पाकिस्तानी स्टार्टअप्स के पीछे रहने की मुख्य वजह टेक्नोलॉजी मोर्चे पर सुस्ती है.

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