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कश्मीर की कसक

पिछले कई महीनों से राष्ट्रीयता की बहस और देशभक्ति के नाम पर किसी को भी बुरा भला कह देने या देशद्रोह के नाम पर किसी को भी महीनों तक जेल में रख देने का नतीजा गंभीर होना ही था. जब देश का काफी हिस्सा कभी जाट आंदोलन, कभी पाटीदार आंदोलन, कभी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विवाद और कभी हैदराबाद या वर्धमान विश्वविद्यालयों के विवाद से जैसेतैसे निबट रहा हो, ऐसे में कश्मीर जैसे नाजुक मामले में दूरदर्शिता का अभाव महंगा तो पड़ेगा ही. महबूबा मुफ्ती ने वैसे तो फूंक फूंक कर भारतीय जनता पार्टी के साथ समझौता कर सरकार बनाई पर कश्मीर की असंतुष्ट जनता को वे पसंद नहीं आएंगी, यह महबूबा को भी मालूम था और भाजपा को भी. भाजपा भी अपनी तरफ से मामले को चिंगारी देने से बच रही थी पर 23 वर्षीय बुरहान वानी की सुरक्षाबलों के हाथों मौत ने अलगाववादियों को एक नया नाम दे दिया.

भारत की कोई सरकार कश्मीर में अलगाववादियों को पनपने नहीं दे सकती. पर यह भी पक्का है कि कश्मीर को हर समय बंदूकों के साए में रखना आसान नहीं है. कश्मीर के हर विवाद पर भारत पर विश्वभर में आरोप लगने शुरू हो जाते हैं और अब रूस भी उस तरह भारत का साथ नहीं देता जैसा शीत युद्ध के समय देता था. बुरहान वानी का मामला कश्मीरी जनता के लिए एक नया बहाना हो गया है जिसे महबूबा मुफ्ती आसानी से नहीं सुलझा पाएंगी. 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने विकास करने और भ्रष्टाचार रहित सरकार देने का वादा किया था पर जनता तक उस का असर नहीं पहुंचा. कश्मीर में भी न विकास हुआ, न भ्रष्टाचार खत्म हुआ. कश्मीरी जनता ने पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और फिर महबूबा मुफ्ती का शासन काफी धैर्य से स्वीकार लिया था हालांकि राख के नीचे अंगारे पनप रहे थे. पर देश के कट्टरवादियों ने जो माहौल बनाया उस से हर कोई संशय में है कि भारतीय जनता पार्टी का विकास का एजेंडा प्राथमिक है भी या नहीं. देश के अन्य युवाओं की तरह कश्मीर के युवा भी एक सुखद भविष्य चाहते हैं.

वहां तेजी से बढ़ते कोचिंग व्यवसाय और कश्मीरियों की नौकरियों व व्यवसायों की ललक से लग रहा था कि युवाओं को अपने भविष्य से ज्यादा प्रेम रहेगा न कि राज्य की राजनीति से. इस मामले को गलत तरीके से हैंडल करने के चलते यह लग रहा है कि कश्मीर को एक बार फिर असंतोष के कगार पर ला खड़ा कर दिया गया है. बुरहान वानी जैसे अलगाववादियों को पनपने न देने का फर्ज हर सरकार का है और सरकार को हर संभव कदम उठाना पड़ेगा, पर यह भी नहीं भूला जा सकता कि इसलामी जिहाद के खूनी पंजे अब और पैने व खूंखार हो गए हैं. इसलामिक स्टेट का असर दुनियाभर में महसूस किया जा रहा है और सुन्नी मुसलिम देश भी इस की वारदातों से अछूते नहीं हैं. ऐसे में बारूद में ऐसी आग न लग जाए कि हमारा विकास का सपना आंतरिक विवादों में धूधू कर के जलने लगे.

अब फेसबुक पर कर सकेंगे “सीक्रेट कॉन्वरसेशन”

सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक ने फेसबुक मेसेंजर में एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन जोड़ने की सुविधा को शुरू कर दिया है. इसमें दो लोगों के बीच हुई चैट को उनमें से कोई भी यूजर टाइमर लगा कर मिटा सकता है. एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन में सिर्फ दो लोगों के बीच हुई आपसी बातचीत उन्हीं दो लोगों तक सीमित रहती है. उसे कोई तीसरा नहीं पढ़ सकता, फेसबुक भी नहीं.

फेसबुक ने शुरुआती दौर में ये सुविधा सबके लिए नहीं रखी है. फेसबुक ने अपने ब्लॉग पर लिखा है, “एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन का ये फीचर दो लोगों की चैट जिस डिवाइस से हो रही है, ये सिर्फ उसी डिवाइस में दिखेगा. “

तेज टेक्नालॉजी में किसी भी बातचीत या जानकारी को अपने पास सुरक्षित रखना या शेयर करना आसान हो गया है. इस चीज से बचने के लिए फेसबुक ने अपने यूजर्स के लिए ये स्नैपचैट जैसी सेल्फ डिस्ट्रक्टिंग ऑप्शन की सुविधा की शुरुआत की है. कॉन्वर्सेशन से मैसेज को हटाने के लिए यूजर्स इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन मैसेज के लिए

यूजर को चैटबॉक्स में, जिस यूजर से बात करनी हो उसे चुन कर, ऊपर की तरफ लिखे सीक्रेट कॉन्वरसेशन का ऑप्शन सेलेक्ट करना होगा. जब यूजर इसे सिलेक्ट करेंगे तो साथ ही टाइमर भी खुल जाएगा. एनक्रिप्ट किए गए मैसेज को तुरंत मिटाने के लिए इस ऑप्शन को सेलेक्ट किया जा सकता है.

चैट एनक्रिप्शन को पक्का करने के लिए फेसबुक अपने यूजर्स के लिए Device key  की सुविधा भी दे रहा है. सीक्रेट कॉनवर्सेशन के दौरान दो लोग उस Device key  का इस्तेमाल कर के चेक कर सकते हैं कि मैसेज एनक्रिप्ट हुआ है या नहीं.

विश्व का सबसे इंटेलिजेंट स्मार्टफोन हुआ लांच

साउथ कोरियन कंपनी सैमसंग ने अपने लेटेस्ट फोन सैमसंग गैलेक्सी नोट7 को लॉन्च कर दिया है. कंपनी का दावा है कि यह फैबलेट 'विश्व का सबसे इंटेलिजेंट स्मार्टफोन' है. गैलेक्सी नोट 7 कंपनी की नोट सिरीज में कुछ नए फीचर्स के साथ आया है.

यह सैमसंग का पहला फैबलेट है जिसे IP68 सर्टिफिकेशन मिला है. यानी कि यह फोन वॉटर और डस्ट रेजिस्टेंट है. साथ ही इसमें आइरिश स्कैनर भी लगा हुआ है.

गैलेक्सी नोट 7 फैबलेट में ऑप्टिकल इमेज स्टेबलाइजेशन के साथ 12MP का ड्यूल पिक्सल रियर कैमरा और ड्यूल एलईडी फ्लैश दिया गया है. सेल्फी के शौकीनों के लिए 5MP का फ्रंट कैमरा दिया गया है.

इसमें 5.7 इंच का क्वाड-एचडी (2560 x 1440 पिक्सल) ड्यूल एज सुपर एमोलेड डिस्प्ले है. इसकी पिक्सल डेनसिटी 518 पीपीआई है. इस स्मार्टफोन में स्क्रीन पर कॉर्निंग गोरिल्ला ग्लास 5 प्रोटेक्शन दी गई है.

साथ ही इनबिल्ट स्टोरेज 64 GB है. 256 GB तक माइक्रोएसडी कार्ड का इस्तेमाल किया जा सकता है.ऐंड्रॉयड 6.0.1 मार्शमैलो पर चलने वाले इस स्मार्टफोन में 64-बिट 14एनएम ऑक्टा-कोर प्रोसेसर दिया गया है.

यह स्मार्टफोन ब्लू कोरल, गोल्ड प्लेटिनम, सिल्वर टाइटेनियम और ब्लैक ऑनिक्स कलर वेरियंट्स में मिलेगा.

इस फोन में 3,500mAh की बैटरी फास्ट चार्जिंग टेक्नॉलजी के साथ दी गई है. फोन में फिंगरप्रिंट सेंसर और आइरिस स्कैनर भी दिया गया है.USB Type-C कनेक्टिविटी पोर्ट के साथ कंपनी ने नोट 7 के लिए गियर VR को भी इंट्रोड्यूस किया है.

फोन की कीमत के बारे में अभी कोई खुलासा नहीं किया गया है. सैमसंग गैलेक्सी नोट 7 को 19 अगस्त बीच मार्केट में आ सकता है.

गैलेक्सी नोट7 का डाइमेंशन 153.5×73.9×7.9 मिलीमीटर है और वजन 169 ग्राम है.

कनेक्टिविटी फ़ीचर की बात करें तो स्मार्टफोन में वाई-फाई 802.11 ए/बी/जी/एन/एसी, ब्लूटूथ वी4.2, एनएफसी और जीपीएस फीचर दिए गए हैं. S Pen में नए एयर कमांड फंक्शन्स दिए गए हैं.

कितनी बदल गई रंगोली

आज की फटाफट और भागदौड़ की जिंदगी के बीच रंगोली बनाने के तौर-तरीके भी काफी तेजी से बदल रहे हैं. रंगोली जमीन या कपड़े पर बनाई जाती है, पर आजकल कागज, प्लाई वुड, हार्ड बोर्ड, सनमाईका, कैनवास आदि पर भी बनाई जाने लगी हैं. पहले त्यौहारों के आने से पहले ही महिलाएं रंगोली बनाने की तैयारियों में जुट जाती थीं, लेकिन अब तो त्योहारों के मौके पर कागज और प्लास्टिक पेपर पर प्रिंटेड रंगोली भी धडल्ले से बिकती हैं. जिन्हें रंगोली बनाना नहीं आता या जिनके पास समय की कमी है, वे अपने घरों में रंगोली का स्टीकर चिपका कर ही उत्सवी माहौल बनाने की कोशिश करते हैं.

पटना में रंगोली के स्टीकरों का थोक कारोबार करने वाले विनीता सेल्स के उपेंद्र सिंह बताते हैं कि हर साल दीपावली के मौके पर करीब 3 करोड़ रूपए के रंगोली के स्टीकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में बिक जाते हैं. खुदरा बाजार में एक स्टीकर साइज के हिसाब से 20 से 250 रूपए तक में बिकता है.

आमतौर पर रंगोली बनाने के लिए फूलों, रंगों, अबीर, चावल दानों और लेई आदि का इस्तेमाल किया जाता है. देखने में बिना किसी ताम-झाम वाले इस कला का अपना अलग आकर्षण, खूबसूरती और पहचान है. इसमें भारतीय कला की बुनियादी सोच छिपी हुई है. पटना के गुरूदेव पेंटिग क्लासेंज की कलाकार अनुपम कहती हैं कि हमारे देश में कभी भी कला के लिए कला वाली सोच नहीं मानी गई, यहां हर कला के पीछे कोई न कोई मकसद जरूर होता है. हर त्योहार, रस्म और विधि-विधान में कला का खूबसूरती से इस्तेमाल कर माहौल को रंगीन और उत्सवी बना दिया जाता रहा है.

रंगोली बनाने में ज्यादातर कमल और सूरजमुखी के फूल, शंख, दीपक, सूरज, पक्षी, मछली आदि के चित्रा उकेरे जाते हैं. खास बात यह है कि ज्यादातर रंगोली गोलाई में ही बनाई जाती हैं. इसे हाथ की उगंलियों, बांस के सींक, कपड़ों आदि से बनाया जाता है. रंगोली बनाने में सफेद रंग का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि सफेद रंग को शांति का प्रतीक माना जाता है और जहां शांति का माहौल है, वहीं तरक्की आती है.

भारत की काफी पुरानी कला परंपरा में रंगोली शामिल है और भारतीय कला में इसे 64वें कला का नाम दिया गया है. त्योहारों और किसी नए काम की शुरुआत के मौके पर रंगोली से घरों की दीवारों, दरवाजों, सीढ़ियों आदि जगहों पर रंगोली बना कर त्योहारों में नया रंग और उमंग भरा जाता रहा है. दक्षिण भारत में रंगोली की परंपरा काफी मजबूत है. रंगोली की खूबसूरती और इसके मोहपाश आज के भाग-दौड़ के जीवन में भी कायम है. लोग खुद भले ही रंगोली न बना सकते हों पर बाजार में मौजूद रंगोलियों के स्टीकरों को चिपका कर अपनी संस्कृति से जुड़ाव को महसूस तो कर ही सकते हैं.

उड़ीसा के मशहूर कलाकार अनिल कुमार बल बताते हैं कि बिहार और मध्य प्रदेश में रंगोली के तरह-तरह के नमूने मशहूर हैं. बिहार के दरभंगा जिला में ‘धूली चित्रा’ के नाम से बनाई जाने वाली रंगोली चावल के घोल से बनाई जाती है. मध्य प्रदेश में मानसून के खत्म होने पर घरों के दरवाजों पर फूलों और पत्तियों से रंगोली बनाई जाती है. राजस्थान की रंगोली की सबसे खास बात यह है कि उसमें चटख रंगों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है.

केरल में ओणम के मौके पर बनाई जाने वाली रंगोली में फूलों का इस्तेमाल किया जाता है. फर्श पर रंगोली का चित्र बना कर खाली जगहों को गुलाब, गेंदा, सूरजमुखी, चमेली आदि फूलों की पंखुड़ियों को सलीके से भरा जाता है. हर राज्यों में रंगोली को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है. बिहार में इसे अरिपन तो उत्तर प्रदेश में चौक पूरना कहा जाता है. राजस्थान में इसे मांडना के नाम से पुकारा जाता है तो बंगाल में अल्पना कहा जाता है. कर्नाटक में रंगवल्ली तो तमिलनाडु में कोल्लम के नाम से पुकारा जाता है.

देहातों में पारंपरिक तरीके से रंगोली बनाई जाती है और उसे बनाने के लिए फूलों, चावल, आटा आदि का इस्तेमाल किया जाता है, पर शहरों में रंगोली बनाने के लिए जिंक औक्साइड, पोस्टर कलर, ब्रुश आदि का इस्तेमाल किया जाने लगा है. मार्बल और टाइलों के फर्श पर परंपरिक तरीके से रंगोली बनाना मुमकिन नहीं होता है, इसलिए आर्टिफिशियल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. तरह-तरह के रंगोली के डिजायनों के स्टीकर बाजार में मिलने लगे हैं. कागज और प्लास्टिक पेपर पर बने रंगोलियों के नमूनों को दरवाजों और कमरों में चिपका दिया जाता है. इससे तो साबित हो जाता है कि लोगों को भले ही रंगोली बनाना नहीं आता हो या उसे बनाने की फुर्सत नहीं हो लेकिन उसे घर-घर में आज भी पसंद किया जाता है.

इस ऐप से आप खुद लगा सकते हैं कैंसर का पता

कैंसर ऐसी बीमारी है जिसका पता अगर शुरूआत में चल जाए तो इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. स्किन कैंसर के साथ भी ऐसा ही है. स्किन कैंसर में शुरुआत से ही स्किन के किसी हिस्से में बदलाव दिखाई देने लगते हैं. कई बार मोल से भी इसकी शुरुआत हो जाती है. ऐसे में हम आपको बता रहे हैं SkinVision ऐप के बारे में जिसकी मदद से आपका स्मार्टफोन ही बता देगा कि आपको कैंसर है या नहीं.

क्या है SkinVision

SkinVision एक कैंसर अवेयरनेस मोबाइल ऐप्लिकेशन है. ये यूजर को स्किन में आ रहे चेंजेस या मोल को ट्रैक करने में मदद करता है. इस ऐप की मदद से अर्ली स्टेज में ही पता लगाकर इसे बढ़ने से रोका जा सकता है.

ऐप का एडवांस कैमरा हाई क्वालिटी पिक्चर्स लेने में मदद करता है. इन पिक्चर्स को एनालाइज करके कैंसर रिस्क के बारे में पता लगाता है और यूजर को रेकमेंडेशन्स भेजता है. हालांकि ये ऐप आपको सिर्फ कैंसर रिस्क के बारे में बता सकता है, ये डॉक्टर को रिप्लेस नहीं करता. बीमारी का पता लगने पर आपको डॉक्टर के पास जाना ही पड़ेगा.

ऐसे करें यूज

– ऐप ऑन करके फोन के कैमरा को मोल या स्किन के उस हिस्से पर ले जाएं जहां आपको चेंज नजर आ रहा है.

– ऐप अपने ऑटोमैटिक कैमरा सेटिंग में फोटो खींचेगा.

– इसके बाद फोटो को एनालाइज करके आपको रेकमेंडेशन भेजेगा.

– SkinVision ऐप आपको पिक्चर्स आर्काइव करने की भी सुविधा देता है.

– इससे आप स्किन में आ रहे चेंजेस की फोटोज आर्काइव करके डॉक्टर को दिखा सकते हैं.

किसके लिए है SkinVision

– कोई भी इस ऐप को यूज कर सकता है.

– ये यूजर की स्किन टाइप के हिसाब से रिस्क प्रोफाइल चेक करता है और अगर कैंसर नहीं है तो फ्यूचर में भी इससे बचे रहने के लिए टिप्स और सजेशन्स देता है.

कैसे करें साइन इन

ऐप यूज करने के लिए सबसे पहले इसे गूगल प्ले स्टोर या iTunes से डाउनलोड करें.

– इसके बाद ऐप ओपन होने पर 'I am new' ऑप्शन सिलेक्ट करें.

– इंस्ट्रक्शन्स फॉलो करें.

– अपने ई-मेल ऐड्रेस या फेसबुक अकाउंट से लॉगइन करें.

– skinvision.com से भी अपनी प्रोफाइल एक्सेस कर सकते हैं.

क्या ये साइंटिफिक तरीके से काम करता है?

– इस ऑनलाइन असेसमेंट (अल्गोरिद्म) को 2 साइंटिफिक स्टडीज में टेस्ट किया गया है.

– पहली स्टडी म्यूनिक के मैक्सिमेलियन यूनिवर्सिटी के डर्मिटोलॉजी क्लीनिक में 2013 में की गई थी.

– दूसरी स्टडी नीदलैंड्स के कैथरिन हॉस्पिटल में 2014 से 2016 तक की गई.

क्या है कॉस्ट?

– ऐप का एक महीने का ट्रायल वर्जन फ्री में डाउनलोड और यूज किया जा सकता है.

– इसके बाद आप इसके 3 सब्सक्रिप्शन प्लान हैं जिनमें से कोई भी आप ले सकते हैं.

– 1 महीने के लिए 499 यूरो (करीब 37285.12 रुपए)

– 3 महीने के लिए 999 यूरो (करीब 74644.96 रुपए)

– 12 महीने के लिए 24,99 यूरो (करीब 186724.48 रुपए)

रियो ओलंपिक पर मंडरा रहा आईएस का खतरा

ब्राजील की राजधानी रियो डी जेनेरो में 5 अगस्त से शुरू हो रहे ओलंपिक गेम्स पर इस्लामिक स्टेट (आईएस) के हमला का खतरा मंडरा रहा है. इसके मद्देनजर यहां की सरकार ने रियो और आसपास के क्षेत्र में सुरक्षा इंतजाम पाबंद कर दिए हैं.

ब्राजील के सुरक्षाबल पिछले कई महीनों से अमेरिकी सेना से आतंकवादी हमलों का कड़ा जवाब देने के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं. ओलंपिक की सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए ब्राजील को अमेरिका और फ्रांस का साथ मिल रहा है. 

फ्रांस, जर्मनी और अन्य पश्चिमी देशों में लगातार हो रहे आईएस हमलों को देखते हुए ब्राजील में ओलंपिक गेम्स की सुरक्षा को कड़ा करने का काम पिछले कुछ महीनों से शुरू हो गया है. रियो के करीब और जहां-जहां एथलीट ठहरेंगे, उन होटलों व रेस्तराओं में सुरक्षा के कड़े प्रबंध कर दिए गए हैं.

ओलंपिक पर फिक्सिंग का खतरा

एक ब्रिटिश अखबार के मुताबिक ओलिंपिक में होने जा रहे मुक्केबाजी के कई मुकाबले फिक्स हो सकते हैं. 'गार्जियन' के मुताबिक, 'कई जज और रेफरी कथित तौर पर मुकाबलों से छेड़छाड़ करने को तैयार हैं', लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) ने इन खबरों को 'अफवाह' कहकर उड़ा दिया है.

VIDEO: हम तो लड़कियों को छेड़ेंगे, क्योंकि हम हैं भारतीय मर्द

लड़कियों पर अश्लील कमेंट करना या फब्ती कसना लड़कों का फैशन सा बन गया है. वो अक्सर लड़कियों पर इतने गंदे कमेंट करते हैं, कि कभी कभी तो लड़की उन्हें चांटा भी मार देती है, पर ये लड़के कभी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं क्योंकि उन्हें तो कमेंट करने की आदत पड़ी हुई होती है ना. तो इस लिए वो तो कमेंट करेंगे ही, चाहे कुछ भी हो जाए, पर कभी किसी ने सोचा है की ऐसे कमेंट से आप पर और उस लड़की पर कितना प्रभाव पड़ता है.

आपके एक कमेंट से उस लड़की को लड़कों से नफरत हो जाती है और वो लड़कों को देखना भी पसंद नहीं करती, क्योंकि जब भी वो इस बारे में सोचती है, तो आपके वो गंदे कमेंट उनको याद आते हैं और इसी वजह से वो लड़कों से नफरत करने लगती है.

सोशल मीडिया में भी महिलाओं पर वार

‘यार गुस्सा क्यों हो रही हो, केवल हंसी मजाक था’, अब इसका मतलब यह नहीं है कि मैं भी ऐसा ही सोचता हूं.’ वो शायद उसकी कोई परिचित महिला मित्र थी. लड़के ने किसी ग्रुप में किसी लड़की के बारे में कोई मजाक किया था. जो उसकी दोस्त को अच्छा नहीं लगा. लड़का सफाई भी दे रहा था और बीच-बीच में यह भी कहता ‘इतना तो चलता है’, ‘सब करते हैं’, ‘और सब भी तो कह रहे थे’, ‘तुम कुछ ज्यादा सोचती हो’.

हमारे आसपास हर रोज ऐस होता है. महिलाओं को टारगेट करते चुटकले, अभद्र शब्द, गालियां और अश्लील टिप्पिणियां बड़ी असानी से कह-सुन ली जाती हैं. सोशल मीडिया ने महिलाओं के प्रति ऑनलाइन हमलों को और तेज कर दिया है. अगर आप सेलिब्रिटी या नेता हैं, धर्म, राजनीति, समाज, खासकर महिलाओं के मुद्दों पर खुलकर राय रखती हैं, तो ऑनलाइन हमलों की आशंका बढ़ जाती है. पढ़े-लिखे कहे जाने वाले लोग महिलाओं को अपमानित करने वाले चुटकले, फोटो व संदेश फॉरवर्ड व शेयर करते चले जाते हैं. महिलाओं की वॉल पर अश्लील बातों से लेकर मार-पीट व यौन शोषण की धमकियां दी जाती हैं.

हाल में अनुष्का शर्मा और दिल्ली पुलिस ऑफिसर मोनिका भारद्वाज दोनों को सोशल मीडिया पर ऐसे ही हमले झेलने पड़े. क्रिकेट प्रेमी अनुष्का को विराट के लिए पनौती बताने में मस्त थे. वहीं मोनिका भारद्वाज का दोष इतना था कि उन्होंने एक डेंटिस्ट की हत्या करने वालों के धर्म के बारे झूठी अफवाहों का खंडन करते हुए मामले को सांप्रदायिक न बनाये जाने की अपील की. नरगिस फाखरी, बरखा दत्त, दीपिका पादूकोण, कविता कृष्णन, श्रुति सेठ, सोनिया गांधी, स्मृति ईरानी, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, अरूंधति रॉय आदि महिलाओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जो ऑनलाइन हमलों का शिकार हुई हैं. महिलाओं के विचार, पार्टी, धर्म, जाति, प्रतिष्ठा, रंग व देह का मजाक बनाते हुए लोग शालीनता की किसी भी तरह की सीमा को आसानी से लांघ जाते हैं. यह केवल गुस्सा, कुंठा, झुंझलाहट नहीं है, कहीं न कहीं इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द पुरुषवादी सोच और महिलाओं को कमजोर समझे जाने की मानसिकता का नतीजा हैं. और ऐसा केवल भारत में ही नहीं हो रहा.

कानून में क्या है प्रावधान

भारतीय दंड संहिता की धारा 509 में महिलाओं के शील व सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले शब्द, संकेत या हरकत को दंडनीय माना गया है. जिसके लिए जुर्माना व जेल दोनों हो सकती हैं. इसी तरह धारा 354 डी में ऑनलाइन या ऑफलाइन किसी भी तरह से पीछा करना यानी स्टॉकिंग को अपराध माना है. हालांकि ऑनलाइन हमलों के मामलों में कई बार किसी एक की जिम्मेदारी तय करना मुश्किल होता है. खासकर सोशल मीडिया ने ऐसे लोगों को एक मंच दे दिया है, जिन्हें दूसरों को तंग करना, उकसाना, अनावश्यक बहस करना अच्छा लगता है. भले ही आप किसी को जानते हैं या नहीं. ऑनलाइन ट्रोलिंग एक तरह से इस साइबर अपराध को छोटा व सामान्य बना देने की शब्दावली है.

ऐसे में क्या महिलाओं को सोशल मीडिया से दूर रहना चाहिए? बिल्कुल नहीं. नजरअंदाज न करें, पर हर किसी पर चीखना-चिल्लाना भी जरूरी नहीं. जहां जरूरी हैं वहां प्रतिक्रिया भी दें और जरूरत पड़ने पर कानून की सहायता भी लें. आप साइबर सेल और पुलिस की मदद ले सकती हैं.

कोर्ट के विवादित आदेश

इटली की कोर्ट के एक फैसले ने देश में तहलका मचा दिया था. कोर्ट के फैसले के मुताबिक अब आप ऑफिस में महिला को जी भर कर छू सकते हैं. ऑफिस में महिला से छेड़खानी कर सकते हैं. अब यह सब कुछ अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. कोर्ट का कहना है कि ऑफिस में यह सब लीगल है, बशर्तें आपके मन में उस महिला के साथ सेक्स करने का ख्‍याल न आए.

यह फैसला अदालत ने तब दिया जब ऑफिस में साथ काम करने वाले एक 65 वर्षीय आदमी ने अपनी महिला सहकर्मी को छेड़ा था. अदालत का कहना है कि अगर ऑफिस में कोई आदमी आपको मजाक के तौर पर छेड़ता है तो यह यौन हिंसा नहीं है.

इस नियम का इटली की महिलाओं ने विरोध किया. आकड़ों के मुताबिक यहां 16 से 70 साल के बीच हर महिला कभी न कभी शारीरिक और यौन शोषण का शिकार हो चुकी है. ताजा मामले में महिला का आरोप है कि ऑफिस के भीतर पुरुष सहकर्मी उसके साथ छोटे बच्चे की तरह व्यवहार करता है. कोर्ट में जमा दस्तावेजों में महिला ने लिखा है कि वह आदमी उसे पीछे से सहला रहा था.

महिला से छेड़खानी के मामले में कोर्ट ने कहा कि आपकी बातों पर हमें भरोसा है, लेकिन इसके बावजूद आरोपी आदमी को छोड़ दिया गया. कोर्ट ने कहा कि उस व्यक्ति ने महिला को मजाक में छेड़ा था न कि सेक्स संबंध बनाने के लिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी पुरुष ने आफिस में महिला को सेक्स करने की नीयत से छुआ तो उसे सजा मिलेगी, लेकिन कोर्ट ने यह नहीं बताया कि इन स्थितियों में फर्क कैसे किया जाएगा.

इन नेताओं ने की महिलाओं पर अभद्र टिप्पणियां.. लिस्ट में हैं कई बड़े नाम

महिलाओं पर नेताओं की अभद्र टिप्पणियों का इतिहास बहुत पुराना है, चाहे वो हेमा मालिनी के गालों की तरह सड़क बनाने के वादा हो या फिर अभी अभी असम चुनाव जीतकर आई बीजेपी विधायक अंगूरलता पर रामगोपाल वर्मा की अभद्र टिप्पणी..

1. छत्तीसगढ़ के कांग्रेस विधायक अमरजीत भगत ने अंबिकापुर की कलेक्टर रीतू सेन पर अश्लील कमेंट किया था. विधायक ने कहा, ”कलेक्टर हीरोइन हैं, सुन्दर हैं लेकिन काम नहीं करतीं” लेकिन बाद में जब उनके इस कमेंट पर विवाद बढ़ा तो इस पर सफाई में उन्होंने कहा कि मैं तो कलेक्टर की तारीफ़ कर रहा था. अगर कोई मेल कलेक्टर होता तो मैं उसे हीरो कहता.

2. 2014 में कर्नाटक के राज्यमंत्री एमएच अम्बरीश ने मंड्या जिला पंचायत सीईओ रोहिनी सिंदूरी पर आपत्तिजनक कमेंट किया था. एक पब्लिक मीटिंग में उन्होंने कहा था, ”हमारे पास एक नई आईएएस अफसर है जो बहुत खूबसूरत और आकर्षक हैं.”

3. 2013 में यूपी के पूर्व मंत्री राजाराम पांडे ने आईएएस धनलक्ष्मी के लिए कहा, ”डीएम काफी सुंदर है, मीठी आवाज है, काम करने में भी माहिर है… उनका फिगर भी अच्छा है. इनके पहले कामिनी चौहान थीं, वो भी खूबसूरत थीं.”

4. तेलंगाना कैडर की आईएएस स्मिता सभरवाल भी सेक्सिट कमेंट का शिकार हो चुकी हैं. पिछले साल एक मैगजीन ने उनका कार्टून छापते हुए ‘आई कैंडी’ शब्द का इस्तेमाल किया था. लेडी आईएएस ने इस पर करारा जवाब दिया और मैगजीन को कानूनी नोटिस भी भेजा था. स्मिता सभरवाल फिलहाल मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के एडिशनल सेक्रेटरी के तौर पर तैनात हैं. उनका जन्म पश्चिम बंगाल में 19 जून 1977 को हुआ. 2001 में स्मिता ने सिविल सर्विस एग्जाम में चौथी रैंक हासिल की. तब उनकी उम्र महज 23 साल थी.

5. राज्‍यसभा में बीमा बिल पर चर्चा के दौरान शरद यादव ने साउथ की महिलाओं पर एक बेतुका कमेंट किया था. हालांकि यह पहली बार नहीं था कि शरद यादव ने महिलाओं पर ऐसा टिप्पणी की हो, इससे पहले भी कई बार शरद यादव महिलाओं पर अभद्र कमेंट पहले भी करते रहे हैं. इस बार उन्होंने कहा कि साउथ की महिला जितनी ज्‍यादा खूबसूरत होती है, जितना ज्‍यादा उसकी बॉडी. वह देखने में भी काफी सुंदर लगती है. वह नृत्‍य जानती है. शरद यादव के इस कमेंट पर अधि‍कतर सांसद चुटकिया बजा रहा थे.

6. सीपीएम के सीनियर नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री अनीसुर रहमान ने मर्यादा की सारी हदें तोड़ दी. उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से पूछा कि वह रेप के लिए कितना चार्ज लेंगी. हालांकि, इस पर बवाल होने के बाद उन्होंने माफी मांग ली और कहा कि भूलवश उन्होंने ऐसी बात कह दी.

7. टीएमसी विधायक चिरंजीवी ने रेप पर दिए गए बयान में कहा था कि ऎसी वारदात के लिए कुछ हद तक लड़कियां भी जिम्मेदार हैं क्योंकि हर रोज उनकी स्कर्ट छोटी हो रही हैं. फिल्म जगत से राजनीति में आए चिरंजीवी ने कहा, ‘लड़कियों से छेड़छाड़ कोई नई घटना नहीं है. प्राचीन समय से ही इस तरह की घटना हो रही है. यह मामूली घटना है. इस तरह की घटना नहीं होगी तो फिल्म कैसे चलेगी. फिल्म में खलनायक का होना जरूरी है. रामायण में रावण तो होगा न.’

8. कुपोषण पर इंटरव्यू के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मिडिल क्‍लास परिवारों की लड़कियों को सेहत से ज्‍यादा खूबसूरत दिखने की फ्रिक होती है. उन्होंने कहा था कि अच्छे फिगर की चाहत में लड़कियां कम खाती हैं.

9. 2010 में मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि महिला आरक्षण बिल पास होने से संसद ऐसी महिलाओं से भर जाएगी, जिन्हें देखकर लोग सीटियां बजाएंगे. वहीं एक दूसरे बयान में उन्होंने कहा था कि बड़े घर की लडकियां और महिलाएं ही ऊपर तक जा सकती हैं क्योंकि उनमें आकर्षण होता है. इसलिए महिला आरक्षण बिल से ग्रामीण महिलाओं को कोई फायदा नहीं होगा. समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा था,  “जब लड़के और लड़कियों में कोई विवाद होता है तो लड़की बयान देती है कि लड़के ने मेरा बलात्कार किया. इसके बाद बेचारे लड़के को फांसी की सज़ा सुना दी जाती है. बलात्कार के लिए फांसी की सज़ा अनुचित है. लड़कों से गलती हो जाती है.”

10. हरियाणा प्रदेश कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता धर्मवीर गोयल ने रेप के लिए लड़कियों को ही दोषी ठहरा दिया था. उन्होंने कहा था कि नब्बे फीसदी मामलों में बलात्कार नहीं, बल्कि लड़कियां सहमति से संबंध बनाती हैं.

11. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस के सांसद अभिजीत मुखर्जी ने गैंग रेप के खिलाफ दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शन पर विवादित बयान देते हुए कहा था की  “हर मुद्दे पर कैंडल मार्च करने का फैशन चल पड़ा है. अभिजीत ने कहा कि लड़कियां दिन में सज-धज कर कैंडल मार्च निकालती हैं और रात में डिस्को जाती हैं.”

12. थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रयूत चान ओचा ने कम कपड़े पहनने वाली महिलाओं को टॉफी बताया था. पीएम ओचा ने इन महिलाओं पर तंज कसते हुए कहा था कि ये महिलाएं ऐसी टॉफी की तरह होती हैं, जिनका रैपर नहीं होता. पीएम ने आगे कहा कि ये टॉफियां खाना लोग पसंद नहीं करते है.

आइये हम आपको दिखाते हैं किस तरह भारत में लोग औरतों से बात करते हैं और जब उनसे पूछा जाता है, तो वे एकदम मुकर जाते हैं, पर उनकी सच्चाई जब लड़कियां बताती हैं, तो क्या होता है…

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http://www.sarita.in/web-exclusive/after-seeing-this-video-you-will-come-to-know-how-indian-men-approach-women

 

सैक्स सलीके से पेश करें, फूहड़ता से नहीं: हिमानी शिवपुरी

देहरादून में जन्मी और रुद्रप्रयाग से पुश्तैनी संबंध रखने वाली  हिमानी ने अपने अभिनय का परचम तब लहराया जब परिवार में मनोरंजन के नाम पर सिर्फ राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन का ही बोलबाला था. हिमानी ने अपने टीवी कैरियर की शुरुआत दूरदर्शन के शो ‘हमराही’ से की थी. इस शो का निर्देशन कुंवर सिन्हा ने किया था. शो के किरदार ‘देवकी भौजाई’ ने उन्हें घरघर में पहुंचा दिया था. दून स्कूल, देहरादून से पढ़ाई करने वाली हिमानी स्कूली दिनों से ही अभिनय की दीवानी थीं. अभिनय के प्रति दीवानगी की वजह से ही उन्होंने नई दिल्ली के नैशनल स्कूल औफ ड्रामा  यानी एनएसडी में दाखिला ले कर ग्रेजुएशन किया और कई सालों तक एनएसडी के नाटकों से जुड़ी रहीं. उन्हें हिंदी सिनेमा में पहला मौका पंकज पाराशर की फिल्म ‘अब आएगा मजा’ से मिला. इस के बाद उन्होंने श्याम बेनेगल की ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ और ‘मम्मो’ फिल्म भी की.

हिंदी सिनेमा में उन्हें सब से बड़ा ब्रेक वर्ष 1999 में सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ से मिला. वे हिंदी की कई सुपरहिट फिल्मों ‘कुछकुछ होता है’, ‘परदेस’, ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’, ‘अंजाम’, ‘कोयला’ में बतौर सहायक अभिनेत्री नजर आ चुकीं हैं. अभिनेता ज्ञान शिवपुरी से उन की शादी हुई थी जिन से उन का एक बेटा भी है. पति की जल्दी मृत्यु के बाद हिमानी ने अकेले ही बेटे की परवरिश और अपने कैरियर दोनों को संभाला. कई वर्षों तक यशराज बैनर, धर्मा प्रोडक्शंस, राजश्री प्रोडक्शंस की सुपरहिट फिल्मों में सहायक अभिनेत्री की भूमिकाएं अदा कीं. एक शो के इवैंट पर हिमानी से कुछ रोचक बातचीत हुई. पेश हैं खास अंश :

आप ने श्याम बेनेगल से ले कर सूरज बड़जात्या व यश चौपड़ा जैसे बड़े निर्देशकों के साथ काम किया है, सब से अच्छा अनुभव किस के साथ रहा है?

श्याम बाबू के साथ मैं ने ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ फिल्म की थी. वह मेरी पहली फिल्म थी, मैं ऐसा मानती हूं. क्योंकि इस से पहले 1984 में ‘अब आएगा मजा’ और उस के बाद एक अंगरेजी टीवी सीरीज में मैं ने काम किया था. दोनों ही में मेरा सामान्य किरदार था पर धर्मवीर भारती की कृति ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ में श्याम बाबू ने मुझे अपने अभिनय को उभारने का भरपूर मौका दिया था. उन के साथ काम करने का मेरा सपना तब से था जब मैं एनएसडी में पढ़ती थी. मैं ने सब से ज्यादा फिल्में डेविड धवन के साथ की हैं. मुझे कमर्शियल फिल्मों में लाने का श्रेय सूरज बड़जात्या को जाता है. उन की फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ ने मेरे कैरियर को नई दिशा दी.

अभी भी थिएटर से जुड़ी हुई हैं?

अपनी पिछली फिल्म ‘वेडिंग पुलाव’ के बाद डेढ़ साल के ब्रेक के दौरान मैं ने थिएटर ही किए हैं. कई मराठी, गुजराती प्ले कर रही हूं. मुझे थिएटर के लिए संगीत नाटक अकादमी की ओर से 2015-2016 का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है.

उत्तर भारत में थिएटर का क्या भविष्य दिखता है?

यही तो दुख की बात है कि हमारे यहां थिएटर देखने की प्रवृत्ति नहीं है. लोग रामलीला देखने तो जाते हैं पर थिएटर के लिए आज भी दर्शकों का अभाव है. दर्शकों की इसी कमी ने थिएटर करने वालों का उत्साह कम कर दिया है. एक फिल्म के लिए मल्टीप्लैक्स में हजार रुपए खर्च करने वाला थिएटर में 100 रुपए खर्च करने से दूर भागता है. दर्शकों की इस कमी का एक और कारण है और वह है, यहां नई कहानियों का अभाव. अभी भी लोग कई सालों से पुरानी कहानियों का बारबार मंचन करते हैं. मुझे लगता है मोहन राकेश के बाद कोई नया राइटर थिएटर में आया ही नहीं. जबकि गुजरात और महाराष्ट्र इस में काफी आगे हैं. वहां के लोग थिएटर की इज्जत करते हैं. वहां समसामयिक नई कहानियों पर थिएटर किए जाते हैं. मेरा तो यही मानना है कि यहां एनएसडी होते हुए भी थिएटर का भविष्य उज्जवल नहीं है क्योंकि आज की महंगाई में जहां औडिटोरियम का किराया ही लाखों रुपए में हो, वहां फ्री में थिएटर दिखाना संभव नहीं है.

आज के नए कलाकारों में क्या अलग देखा है?

किसी के बारे में तो मैं बात नहीं करूंगी, अपने बारे में ही कहती हूं कि बिना मेहनत और सीखे बिना आप लंबी रेस की दौड़ में यहां शामिल नहीं हो सकते. यहां तो जो भी आता है, सुपरस्टार बनना चाहता है. सभी के आने का मकसद पैसा कमाना होता है और वे उस में सफल भी हो जाते हैं. 1-2 एंडोर्समैंट कर के लाखों रुपए कमा लेते हैं. उन का ऐक्ंिटग से कोई लेनादेना नहीं होता. मैं तो ऐसे भी नए कलाकारों से मिली हूं जिन को सही से डायलौग बोलना भी नहीं आता लेकिन एटीट्यूड के मामले में अपने को किसी स्टार से कम नहीं समझते.

उत्तराखंड की क्षेत्रीय कला को प्रोत्साहित करने के लिए आप कुछ कर रही हैं?

एनएसडी से निकलने के बाद मैं ने देहरादून जा कर वर्कशौप किया और वहां 2 नाटक किए. सहारनपुर में भी मैं ने कई स्कूली बच्चों को थिएटर की वर्कशौप दी है और जब से मेरे पिता की मृत्यु हुई है, मैं हर सितंबर महीने में अपने घर जाती हूं और अपने पापा की लिखी हुई कहानियों पर नाटक करवाती हूं. कई सारे छात्र, जो अभिनय के क्षेत्र में आना चाहते हैं, हर साल मेरे पास सीखने आते हैं.

आप ने टीवी सीरियल ‘हमराही’ में देवकी भौजाई का जो किरदार निभाया था, क्या फिर दोबारा वैसा किरदार लोगों को देखने को मिलेगा?

आप ने मेरे दिल की बात कह दी है. ‘हमराही’ शो मेरे कैरियर का माइलस्टोन था. उस शो से जो मुझे ख्याति मिली, आज तक वह दोबारा नहीं मिली. देखिए, किसी करैक्टर को गढ़ना तो राइटर के हाथ में होता है, अगर वैसा कोई रोल सामने आता है तो मैं अवश्य करूंगी. मेरा तो मानना है कि दूरदर्शन में जो क्वालिटी थी वह आज के सैटेलाइट चैनलों में नहीं है. आज के सभी चैनल्स भेड़चाल की तरह चलते हैं. एक चैनल में अगर नागनागिन शो हिट है तो सभी चैनलों में नागिन या फिर डायन वाले शो देखने को मिल जाएंगे. कभीकभी तो हम लोगों को भी हंसी आती है कि अब मुझे अगले एपिसोड में मक्खी बनना पड़ सकता है. दरअसल सालोंसाल चलने वाले इन सीरियलों में कहानी को इतना घुमाया जाता है कि कभी तो यह गले से नीचे नहीं उतरती. आजकल के किसी भी शो की सारी कहानी एपिसोड के साथसाथ ही लिखी जाती है और निर्देशक के दिमाग में कब, क्या आ जाए, आप सोच भी नहीं सकते हैं.

फिल्म ‘वेडिंग पुलाव’ में बिकनी वाली क्या बात हो गई थी?

चिंटूजी (ऋषि कपूर) के साथ मेरी पहली रोमांटिक फिल्म थी जिस में एक गाना बीच में शूट किया गया था. अब बीच पर सीन है तो पूरे कपड़ों के साथ तो वह शूट किया नहीं जा सकता. पहली बार मैं ने किसी फिल्म में बिकनी पहनी थी क्योंकि इस तरह के कौस्ट्यूम में मुझ को देखना मेरे बेटे को पसंद नहीं था. बेटे की सहमति होने पर ही मैं ने उस सीन के लिए हां किया था. इस फिल्म के लिए हम लोगों ने मेहनत बहुत की थी पर वह ज्यादा चली नहीं.

आप भी और लोगों की तरह प्रोडक्शन के क्षेत्र में आना चाहती हैं?

अभी तो ऐसा कोई विचार नहीं है पर बेटे के लिए कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा. अगर बेटा प्रोडक्शन हाउस खोलना चाहेगा तो जरूर उस की पूरी मदद करूंगी. एक समय के बाद खुद को व्यस्त रखने और पैसे के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा.

आजकल टैलीविजन या फिल्मों में कौमेडी के नाम पर फूहड़ता परोसी जा रही है, इस पर आप क्या कहेंगी?

बहुत कठिन काम है. आज के समय में किसी को रुलाना तो आसान है क्योंकि हर व्यक्ति जिंदगी के किसी कोने में दुखी है. पर काम की आपाधापी में व्यस्त हुए इंसान के चेहरे पर मुसकराहट लाना सब से कठिन काम है. लेकिन आज जो कौमेडी के नाम पर सैक्स कौमेडी परोसी जा रही है वह मैं कभी नहीं कर सकती. मैं मानती हूं सैक्स जीवन का अहम हिस्सा है लेकिन इसे सलीके से पेश करना चाहिए, फूहड़ता के साथ नहीं.

आप चूंकि उत्तराखंड से संबंध रखती हैं, अगर आप को राजनीति में मौका मिले तो?

अगर मौका मिलता है तो जरूर आना चाहूंगी, क्योंकि अपने लोगों के लिए अगर राजनीति में आ कर कुछ अच्छा विकास कार्य कर पाऊं इस से अच्छी बात मेरे और मेरे राज्य के लोगों के लिए क्या होगी. उत्तराखंड में चुनाव भी आने वाले हैं, अगर किसी दल को लगता है मैं उस के साथ आ कर अच्छी तरह काम कर सकती हूं तो मैं उस दल का हिस्सा जरूर बनूंगी.

एक अच्छी ब्लौकबस्टर फिल्म के लिए क्या जरूरी होता है?

आज का ट्रैंड यह हो गया है कि हीरो ही स्टोरी है. फिल्म के हीरो को देख कर स्टोरी लिखी जाती है. दूसरा है फिल्म का प्रोमोशन. अगर फिल्म बहुत अच्छी बनी है लेकिन उस का प्रचारप्रसार सही ढंग से नहीं किया गया तो वह नहीं चलेगी. ‘तलवार’ फिल्म को ही देखिए, फिल्म अच्छी थी पर सीमित प्रचार के कारण वह दर्शकों को नहीं जुटा पाई. अगर रिलीज के पहले किसी फिल्म में कंट्रोवर्सी हो जाए तो उस फिल्म को मुफ्त में ही अच्छीखासी पब्लिसिटी मिल जाती है.                                                      

विवादों में रहीं हिमानी

हिमानी पर इंदौर के निर्माता मोहम्मद अली ने धोखाधड़ी का केस दर्ज करवाया है. अली का कहना है कि 5 लाख रुपए लेने के बाद भी हिमानी ने उन की फिल्म में काम नहीं किया और न ही पैसे लौटाए हैं. कोर्ट में अनुपस्थित रहने पर फरियादी ने हिमानी के पासपोर्ट को जब्त किए जाने की मांग भी की थी.

– जेएनयू आंदोलन के समय कन्हैया कुमार पर देश विरोधी नारे लगाने के आरोप लगाए जाने के बावजूद हिमानी ने उसे छोड़ दिए जाने का सुझाव दे डाला, जिस पर काफी विवाद हुआ था.

स्विमिंग सूट से परहेज क्यों

हिमानी शिवपुरी ने जब से फिल्मों में अपना कैरियर शुरू किया, कभी भी स्विमिंग सूट नहीं पहना. इस के पीछे एक खास वजह यह भी रही कि हिमानी के बेटे कात्यायन को यह पसंद नहीं था. हिमानी ने बताया कि जब वह 10 साल का था तो वे उसे ले कर गोआ घूमने गई थीं. वे बारबार बेटे से समंदर में चलने को कहती रहीं लेकिन वह मना करता रहा. आखिरकार हिमानी ने बेटे से प्यार से वजह पूछी तो उस ने बता दिया कि ठीक है मैं समंदर में जाऊंगा लेकिन आप स्विमिंग सूट नहीं पहनेंगी.

दबाव तले फिटनैस

बौलीवुड के कलाकारों को देख कर लगता है कि नाम और शोहरत कमाना कोई मुश्किल काम नहीं होता होगा. बस, जरा सा नाचगाना किया और फिल्म के हिट होते ही स्टार बन गए. लेकिन यह आसान नहीं है. एक कलाकार को फिल्मों में टिके रहने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं. अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा कहती हैं कि बौलीवुड में अपने अच्छे फिगर को बनाए रखने का दबाव रहता है. हालांकि फिटनैस कोई बुरी चीज नहीं है लेकिन जब आलोचना ही इसी बात पर होने लगे तो टैंशन होती है. परिणीति ने काफी आलोचनाएं सुनने के बाद अपना काफी वजन घटाया है. उन के मुताबिक, अब कई लोग मुझ से मेरे पतले होने का राज जानना चाहते हैं. वे कहती हैं कि ऐसा बनने में उन्हें करीब डेढ़ वर्ष लगा.

 

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