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कमाई के खिलाड़ी

अभिनेता अक्षय कुमार एकमात्र ऐसे बौलीवुड कलाकार हैं जिन्हें कमाई के मामले में हिट मशीन कहा जाता है. कारण, उन की लगभग हर फिल्म सीमित बजट के चलते सब के लिए फायदे का सौदा रहती है. अक्षय कुमार की तरह शाहरुख खान फिल्में भले ही कम करते हों लेकिन विज्ञापन की दुनिया से वे मोटा पैसा बनाते हैं. ब्रैंड इंडोर्समैंट के चलते सब से ज्यादा अधिक कमाई करने वाली हस्तियों की लिस्ट में अक्षय कुमार और शाहरुख खान ने जगह बनाई है. जिन्होंने वर्ष 2016 में सर्वाधिक कमाई की उस में टौप पर अमेरिकी गायिका टेलर स्विफ्ट हैं जिन की कमाई 17 करोड़ डौलर रही. जबकि शाहरुख खान 3 करोड़ 30 लाख डौलर की कमाई के साथ इस सूची में 86वें स्थान पर हैं और अक्षय कुमार 3 करोड़ 15 लाख डौलर की कमाई के साथ 94वें स्थान पर रहे.

टीवी पर नई दस्तक

इन दिनों टैलीविजन भी लोकप्रियता के मामले में फिल्मों से कम नहीं है. आएदिन हर दूसरा सीरियल लौंच होता है और अपनी टीआरपी की कसौटी से तय करता है कि कितने दिन टैलीकास्ट होगा. सासबहू का रोनागाना और बेमतलब के ट्विस्ट से तर्कहीनता की सीमा पार करते सीरियल्स से नजात दिलाने का दावा कर रहे हैं निर्माता राजेश कुमार जैन. इन का नया सीरियल ‘बस थोड़े से अंजाने’ का प्रसारण हाल ही के शुरू हुआ है. धारावाहिक के निर्देशक भरत भाटिया व लेखक धनंजय सिंह मासूम हैं. देखते हैं यह धारावाहिक अन्य धारावाहिकों से कितना अलग साबित होता है. धारावाहिक में नताशा सिंह, अली हसन, श्याम मशकलकर और नीतू सिंह शीर्ष किरदार निभा रहे हैं.

हौकी का बदला बदला तेवर

लंदन में चैंपियंस ट्रौफी में रजत पदक जीतने के बाद भारतीय हौकी टीम ने रियो ओलिंपिक में उम्मीदें बढ़ा दी हैं. एक समय में भारतीय हौकी की तूती बोलती थी. पिछले कुछ वर्षों में हौकी की जो दुर्दशा हुई है, इस के लिए खेल से जुड़े अधिकारियों और सरकार की उदासीनता कहीं न कहीं जिम्मेदार है. चैंपियंस ट्रौफी जैसे कई बड़ेबड़े खेल हुए मगर भारतीय हौकी को हमेशा नाकामयाबी मिली. इस के लिए भारतीय हौकी की कई पीढि़यां खप गईं, बावजूद इस के वह शीर्ष पर पहुंच न सकी.

लंदन में जीत से आस बढ़ी है. सुरिंदर सिंह, पाल सिंह सोढ़ी, परगट सिंह, सुरजीत सिंह, मुहम्मद शाहिद और जफर इकबाल जैसे खिलाडि़यों ने जीतोड़ मेहनत की है. हालांकि अगस्त में होने वाले रियो ओलिंपिक के लिए भारतीय पुरुष टीम की कमान गोलकीपर पीआर श्रीजेश के हाथों में होगी.

लेकिन क्रिकेट की तूती बोलने वाले इस देश में भारतीय हौकी टीम के लिए कम चुनौती नहीं है क्योंकि एक समय में गलीनुक्कड़ों में हौकी के डंडे लिए बच्चों को खेलते देखा जाता था पर अब वह जगह क्रिकेट के बल्ले ने ले ली है.

इज्जत, शोहरत, चकाचौंध व पैसा अब केवल क्रिकेट में ही दिखाई पड़ता है. अब हर कोई क्रिकेट में ही अपना कैरियर तलाशता है. ऐसे में हौकी से संबंधित अधिकारियों के सामने सब से बड़ी चुनौती है कि वे इस खेल में कैरियर तलाशने वाले खिलाडि़यों को अच्छी सुविधा दें, अच्छी ट्रेनिंग की सुविधाएं उपलब्ध करवाएं, हौकी को दयनीय स्थिति से उबारें. क्रिकेट की ही तरह इसे भी लोकप्रिय बनाएं.

साथ ही, खिलाडि़यों को भी अपनी कमजोरी को दुरुस्त करना होगा. जिस तरह का आत्मविश्वास चैंपियंस ट्रौफी में खिलाडि़यों ने दिखाया उसे बरकरार रखना होगा, अपनी कुशलता, गति और दमखम की कसौटी पर खरा उतरना होगा तभी वे जरमनी, हौलैंड, आस्ट्रिया और ब्रिटेन जैसी ताकतवर टीमों को पछाड़ पाएंगे. भारतीय हौकी टीम की सब से बड़ी कमजोरी रही है उन का प्रतिद्वंद्वी टीमों की श्रेष्ठता और प्रतिष्ठा के सामने स्वयं को हलका मानने की भूल कर दबाव में आ जाना.

बहरहाल, वर्तमान टीम अब इस से उबरते हुए दिख रही है और हर मोरचे पर खम ठोंक रही है. अगर यही लय बनी रही तो फिर से हौकी के सुनहरे दिनों की वापसी हो सकती है.

फुटबौल और भारत

एक तरफ जहां फुटबौल यूरो कप में आश्चर्यजनक रूप से इतिहास रचते हुए पुर्तगाल के विजेता बनने से लाखोंकरोड़ों फुटबौल प्रेमियों में खुशी की लहर है तो वहीं दूसरी ओर लियोनेल मेसी के संन्यास और उन्हें टैक्स न चुकाने के एवज में सजा मिलने से मेसी के दीवानों में मायूसी है. वैसे 42 साल बाद पुर्तगाल ने फ्रांस को किसी मैच में हराया है. फुटबौल की लोकप्रियता इतनी है कि विश्वकप के दौरान लोग रातरातभर जाग कर देखते हैं. भारत में भी धीरेधीरे इस का क्रेज बढ़ रहा है और अब अंडर-17 टीम के फीफा विश्व कप की मेजबानी भी भारत को मिली है. जाहिर है इस से भारत में इस की लोकप्रियता बढ़ेगी.

हालांकि फीफा में भारत की टीम के न होने का मलाल हमेशा सालता है. इस के लिए भारत को काफी तैयारी करने की जरूरत है. इस गेम के लिए बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहतर कोचिंग की आवश्यकता है. स्कूल व कालेजों में प्रतिभाओं को तलाशना होगा. उन्हें अच्छी ट्रेनिंग देनी होगी. कई युवाओं का मानना है कि फुटबौल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी लोकप्रिय है. इस में ग्लैमर है, इज्जत, नाम, पैसा सबकुछ है. ऐसे में युवाओं का रुझान इस तरफ होगा ही बशर्ते कि प्रशासनिक और सरकारी स्तर पर सकारात्मक पहल हो और सुविधाएं मुहैया कराई जाएं.

इस की लोकप्रियता को देखते हुए कई विदेशी फुटबौल क्लब भी भारत में ट्रेनिंग के गुर सिखाने के लिए अकादमियां खोल रहे हैं. बावजूद इस के, फुटबौल की जमीनी हकीकत कुछ और ही है. फीफा रैंकिंग में भारत 164वें स्थान पर है. यहां तक कि नेपाल व बंगलादेश भारत से आगे हैं. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कहां हैं. यहां के युवा फुटबौल खेलना तो चाहते हैं पर विदेशी क्लबों में उन की रुचि ज्यादा है. पर विदेशी क्लबों में खेलना इतना आसान नहीं है. युवाओं को घरेलू फुटबौल में ही ज्यादा दिलचस्पी दिखानी होगी. यहां पंजाब और मुंबई में कुछ क्लब खुले भी लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्हें बंद करना पड़ा. घरेलू फुटबौल टूर्नामैंट को न तो तरजीह दी जाती है और न ही दर्शक देखने के लिए आते हैं. ऐसे में क्लबों की कमाई होगी कैसे? यहां के खिलाडि़यों को अंतर्राष्ट्रीय लैवल में अधिक मैच खेलने को नहीं मिलते. ऐसे में उन को अनुभव कैसे होगा?

कई प्रतिभावान खिलाड़ी खेल को छोड़ कर दूसरे कामों में लग गए. आर्थिक तंगी ने उन्हें ऐसा करने को मजबूर कर रखा है. इस समस्या से संबंधित अधिकारियों को निबटना होगा, तभी फुटबौल के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ेगा और विश्व में भारत का स्थान 164वें की जगह कुछ और ही होगा.

रिटायरमैंट प्लान ताकि बुढ़ापा आराम से गुजरे

महिलाओं की जिंदगी पुरुषों की तुलना में अधिक होती है. अध्ययन बताता है कि पति की तुलना में पत्नी अधिक उम्र तक जीती है. इस का मतलब पैंशन पर आश्रित जिंदगी, जीवनसाथी के साथ बिताई जाने वाली जिंदगी से लंबी होती है. इसलिए एक घरेलू महिला को अपने पति के रिटायरमैंट प्लान के बारे में जानना बेहद जरूरी है. यदि कोई रिटायरमैंट प्लान नहीं है तो उस के बारे में फैसला करने का यह सब से सही समय है. यदि आप के पति वैतनिक कर्मचारी हैं तो सभी की तरह उन का भी एक कर्मचारी भविष्य निधि यानी ईपीएफ खाता होगा. लेकिन अगर आप के पति यह सोचते हैं कि ईपीएफ उन के रिटायरमैंट के बाद की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है तो उन्हें दोबारा सोचने के लिए मजबूर करें.

सच यह भी है कि यदि कोई रिटायरमैंट की जरूरतों के लिए सिर्फ भविष्य निधि के सहारे है तो उसे रिटायरमैंट के बाद पैसों की कमी से जूझना पड़ सकता है.

ईपीएफ, यहां तक कि लोक भविष्य निधि भी, सौ फीसदी डेट आधारित होने की वजह से महंगाई का असर रोकने में कामयाब नहीं होते. इन पर मिलने वाला वास्तविक रिटर्न, महंगाई समायोजित रिटर्न से कम होता है. इस तरह ये महज बचत को संरक्षित रखने का काम कर पाते हैं. इस समय महंगाई दर 8-9 फीसदी के आसपास है, वहीं फिक्स्ड इनकम निवेश पर मिलने वाला रिटर्न 9 फीसदी के करीब है. डेट असेट यानी ऋण आधारित स्कीमें आप की पूंजी को संरक्षित करने का माध्यम हैं. इन का इस्तेमाल लघु या मध्यम अवधि के लक्ष्यों को पूरा करने में ही किया जा सकता है.

बेहतर विकल्प

लंबी अवधि के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इक्विटी में निवेश आवश्यक है. इस के पीछे की धारणा यह है कि निवेश पर रिटर्न महंगाई की दर से 3-4 फीसदी अधिक होना चाहिए. रिटर्न में एक छोटा सा अंतर मैच्योरिटी पर मिलने वाली राशि पर बड़ा असर डालता है. लंबी अवधि के दौरान संपत्तियों के निर्माण में वास्तविक रिटर्न माने रखता है, न कि टोकन यानी सांकेतिक रिटर्न.

पहले के अध्ययन बताते हैं कि एक लंबी अवधि में इक्विटी अन्य साधनों जैसे सोना, डेट या रीयल एस्टेट की तुलना में अधिक रिटर्न देता है. यदि आप गौर करेंगे तो पता चलेगा कि पिछले 10-15-20 सालों में सैंसेक्स का संयोजित वार्षिक रिटर्न क्रमश: 17 फीसदी, 12 फीसदी, 11.23 फीसदी रहा है और रिटायरमैंट का लक्ष्य अकसर इतना ही लंबा होता है. ऐसे में इक्विटी एक सुरक्षित और बेहतर विकल्प हो सकता है.

म्यूचुअल फंड

रिटायरमैंट की जरूरतों को पूरा करने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड एक बेहतर विकल्प है क्योंकि लंबी अवधि में अधिक रिटर्न के साथ यह महंगाई के असर को खत्म करने का माद्दा रखता है. लंबी अवधि का फायदा हासिल करने के लिए निवेश को लगातार बनाए रखना चाहिए. इस से भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे म्यूचुअल फंड का चुनाव करना चाहिए जिन का सौ फीसदी एक्सपोजर इक्विटी में हो और जो आगे चल कर आप को डेट फंड में स्विच करने का विकल्प प्रदान करें. इक्विटी और डेट में शिफ्ट होने की ऐसी अंतर्निहित विशेषता संपत्तियों के निर्माण में मददगार साबित होती है.

इन से रहें सतर्क

इक्विटी से मिलने वाला रिटर्न बेहद अस्थिरता भरा होता है क्योंकि यह बाजार के उतारचढ़ावों पर निर्भर करता है. बाजार विभिन्न आर्थिक व गैरआर्थिक कारणों से प्रभावित होता है. लघु अवधि में अस्थिरता ज्यादा होती है जबकि लंबी अवधि में यह कमोबेश पहले जैसी हो जाती है. इसलिए दिनप्रतिदिन होने वाली और गैरप्रासंगिक घटनाओं को अनदेखा कर निवेश को कायम रखना ही बेहतर होता है.     

क्या करें

संपत्तियों के निर्माण करने के लिए एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इन्वैस्टमैंट प्लान का सहारा लें. एसआईपी के जरिए एक तय राशि नियमित अंतराल पर निवेश करें. ऐसा करने से बाजार में होने वाली घटबढ़ से बचा जा सकता है. परिणामस्वरूप लंबे समय तक आप के निवेश की एक औसत लागत बनी रहेगी.

एसआईपी का लब्बोलुआब यह है कि जब बाजार में गिरावट होती है तो आप को निवेश पर अधिक यूनिट मिल जाते हैं लेकिन जब बाजार चढ़ता है तो यूनिट कम मिलते हैं. रिटायरमैंट का समय नजदीक आने पर इक्विटी में संचित सारी निधि को डेट फंड में शिफ्ट कर दें ताकि पूंजी को संरक्षित किया जा सके. रिटायरमैंट के बाद जरूरत के हिसाब से फंड में से रकम निकालें और शेष राशि को बाजार में लगी रहने दें.

रिटायरमैंट के लिए बचत करना आप के जीवन में न सिर्फ अनुशासन लाता है, बल्कि रिटायरमैंट के बाद आप के स्वर्णिम वर्षों को बेहतर भी बनाता है.          

(लेखक बजाज कैपिटल के ग्रुप सीईओ और डायरैक्टर हैं)

ये कदम उठाएं

– 2-3 इक्विटी म्यूचुअल फंड का चुनाव करें और ऐसे रिटायरमैंट फोकस्ड फंड को प्राथमिकता दें जो सौ फीसदी इक्विटी में हों.

– निवेश को जारी रखें. बोनस, विंडफौल गेन आदि को उसी एसआईपी में फिर से निवेश करें.

– रिटायरमैंट का समय नजदीक आने पर एसआईपी की राशि को बढ़ा दें.

– रिटायरमैंट से 3 साल पहले अपने निवेश को जोखिम से दूर रखें.

– रिटायरमैंट के बाद एसडब्लूपी यानी सिस्टमैटिक विदड्रौल प्लान का विकल्प अपना कर पैंशन प्राप्त करना शुरू कर दें.

– फंड्स को रिटायरमैंट से जोड़ें.

– जल्दी शुरुआत करें.

बीएसई सूचकांक सातवें आसमान पर

शेयर बाजार में उत्साह का माहौल है. सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई ने एक सप्ताह में 700 अंक की 7 माह में सब से बड़ी साप्ताहिक छलांग लगाई. इस से पता चलता है कि शेयर बाजार सातवें आसमान का रुख किए हुए है. इस की बुनियाद में आर्थिक सुधार की सतत प्रक्रिया के साथ ही वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी विधेयक पारित कराने के लिए कांगे्रस का नरम रुख, मानसून की भारी बारिश और बारिश घाटा 18 फीसदी से घट कर 16 प्रतिशत ही रहने के नए अनुमान के चलते विकास दर के बेहतर रहने की उम्मीद शामिल हैं.

इस के अलावा रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट यानी एफएसआर में देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने का भी बाजार पर बड़ा असर रहा. ब्रिटेन के जनमत संग्रह से पहले वैश्विक बाजारों की तरह बीएसई में भी खलबली रही लेकिन बाद में सुधारों तथा वेतन आयोग की खबरों ने बाजार की रौनक बढ़ा दी और 4 जुलाई तक बाजार लगातार 8 सत्र तेजी पर बंद हुआ. निफ्टी में भी उस दौरान तेजी का रुख रहा और सूचकांक पहली जुलाई को 10 माह के उच्चतम स्तर को पार कर गया.

वजन घटाने के लिए कर्मचारी बहा रहे पसीना

बाजार में कारोबार की प्रतिस्पर्धा में लगातार आगे बढ़ने के लिए उत्पाद की गुणवत्ता और विपणन नीति पर ध्यान देने के साथ ही कंपनियों ने कर्मचारियों की फिटनैस पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है. इस क्रम में कंपनियों का सब से ज्यादा ध्यान कर्मचारियों का मोटापा कम करने पर है. कंपनियों का मानना है कि उस की टीम शारीरिक रूप से स्वस्थ और फिट नहीं होगी तो उस से उस का कारोबार प्रभावित होगा और कंपनी बाजार की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकती है. इसी के मद्देनजर एडिडास इंडिया, एचडीएफसी, युनाइटेड ब्रेवरीज, मैरिको इंडस्ट्रीज, गोदरेज, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, टाटा, वेदांता, आदित्य बिड़ला समूह जैसे कई प्रमुख घरानों ने अपने कर्मचारियों को फिट रहने की हिदायतें जारी की हैं. इस के लिए कार्यालय में ही जिम खोले गए हैं और स्वस्थ रहने के तरीके से जुड़े अन्य साधन उपलब्ध कराए गए हैं. कई कंपनियां योग भी करा रही हैं.

कंपनियों की इस धारणा के नतीजे में बाजार में इस तरह की सेवा देने वाली नईनई कंपनियां खड़ी हो गई हैं. कंपनियों का सब से ज्यादा ध्यान कर्मचारियों का वजन कम करने पर है. वजन काम के दबाव, शारीरिक गतिविधियां नहीं होने, उलटेसीधे खानपान से बढ़ता है. कर्मचारी को संतुलित आहार मिले और दबाव में काम नहीं करना पड़े, इस के लिए कंपनी में स्वस्थ माहौल तैयार किया जा रहा है. वजन नहीं बढ़े, इस पर रोक के लिए स्टेपथलोन लाइफस्टाइल जैसी कंपनियां बाजार में उतरी हैं जिन का कहना है कि वजन कम करने के लिए कम से कम 10 हजार कदम चलना जरूरी है. उस की इस युक्ति को सैकड़ों कंपनियां अपना रही हैं और उस के लिए इस की सेवाएं ली जा रही हैं. कंपनी ने अपने ग्राहकों के कार्यालयों में आधुनिक मशीनें लगा दी हैं जिन के सहारे कर्मचारी नियमित नियमों का पालन करते हुए वजन घटाने के लिए पसीना बहा रहे हैं.

भारत को विदेशों में छवि सुधारने की सलाह

विश्व के आर्थिक मंच पर तेजी से उभर रहे भारत को अर्थशास्त्री विदेशों में छवि पर विशेष ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं. यह ठीक है कि विश्व बैंक जैसी प्रमुख संस्थाएं भारत की विकास गतिविधियों से बहुत प्रभावित हैं लेकिन हमें इस से भी आगे जा कर देश के राजनीतिक हालात से बनने वाली छवि में सुधार लाने की जरूरत है. यह सुझाव 2001 में अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले अर्थशास्त्री जोसेफ ई स्टिगिल्ट्ज ने हाल में बेंगलुरु में प्रायोजित एक कार्यक्रम में दी.

स्टिगिल्ट्ज खुद भारत की आर्थिक तरक्की की रफ्तार से प्रभावित हैं लेकिन उन का विश्वास है कि भारत को अपनी छवि में, विदेशों में विशेष रूप से, सुधार लाना है. उन का कहना है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय विवाद जैसी घटनाओं के कारण दुनिया में भारत की छवि संकुचित हो रही है. खुद सरकार को इस तरह की घटनाओं पर अपनी स्थिति साफ करनी जरूरी है. उन का यह भी मत है कि भारत के स्वयंसेवी संगठनों यानी एनजीओज के बारे में भी विदेशों में अच्छी राय नहीं है. इस बाबत भारत की छवि रूस, मिस्र और तुर्की जैसे देशों के समान ही नजर आती है. इस से माहौल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. नतीजतन, अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है.

एनजीओज सचमुच एक बड़ी समस्या है. विदेश ही नहीं, देश में भी इन के प्रति लोगों की अवधारणा ठीक नहीं है. कुछ संगठनों को छोड़ दें, ज्यादातर एनजीओज सिर्फ मोटी कमाई का जरिया बने हुए हैं. कई संगठन प्रभावशाली आईएएस अफसरों की पत्नियां और रिश्तेदार चला रहे हैं. बड़े राजनेता एनजीओज से मिली कमाई पर राजनीति कर रहे हैं. वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपने करीबियों द्वारा संचालित एनजीओज को फंड देने के लिए कर रहे हैं. इस से एनजीओज की अवधारणा ध्वस्त हो रही है. इसलिए इन पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है.

उत्पाद बेचने के लिए कानून तोड़ते बाबा

उद्योगपति व बाबा रामदेव आक्रामकता को लक्ष्य साधने का शायद सब से बड़ा हथकंडा मानते हैं. इसी आक्रामकता की बदौलत विपरीत परिस्थितियों में घर छोड़ संन्यासी बने इस बाबा ने योग साधना की और जल्द ही योग के विशाल बाजार का आकलन कर इस का व्यापार आरंभ कर दिया. बड़ेबड़े योगसाधक योग बाजार पर कब्जा करने की उन की आक्रामकता के कारण बहुत पीछे छूट गए. योग की क्रियाओं का टीवी चैनल पर प्रसारण देख लोग उन की तरफ आकर्षित होने लगे और पतंजलि योग आश्रम खोल कर बाबा दिग्गज नेताओं और अभिनेताओं के सहारे देश के सब से चर्चित योगगुरु बन गए. धनबल अपाररूप से बढ़ने लगा तो बाबा ने खा- वस्तुओं का कारोबार शुरू कर दिया. उन्होंने आयुर्वेदिक दवाओं की कंपनी खोल ली और नूडल जैसे खा- पदार्थ बना कर विदेशी कंपनियों को चुनौती देने लगे.

बाबा ने अपनी कंपनी के उत्पादों का विज्ञापन खुद ही किया. इस दौड़ में आगे निकलने के लिए उन्होंने विज्ञापन नीति की परवा किए बिना अपने सामान को डाबर तथा हिंदुस्तान यूनीलीवर लिमिटेड के नाम ले कर उन से बेहतर बताना शुरू कर दिया. किसी कंपनी का नाम ले कर अपने सामान को श्रेष्ठ बताना विज्ञापन नीति का उल्लंघन है. लेकिन बाबा हैं कि उन के लिए कानून और नीतियों का कोई मतलब नहीं है. भारतीय विज्ञापन मानक परिषद ने भी इसे गलत बताया है. इन कंपनियों ने विज्ञापनों पर नजर रखने वाले अन्य संस्थानों से भी शिकायत की है. लेकिन बाबा हैं कि अपने उत्पादों को लगातार उन के उत्पाद से अच्छा होने का दावा कर रहे हैं.

दरअसल, यह इन चतुर बाबा की बाजार पर कब्जा करने की रणनीति का हिस्सा है. वे जानते हैं कि नीतियों में बंधी कंपनियों को मात देने का तरीका आक्रामकता ही है. बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि नियमों का उल्लंघन न हो, क्योंकि नियम अराजकता से बचाते हैं.

खलनायक इज बैक

अभिनेता संजय दत्त जब से अपनी सजा पूरी कर के जेल से बाहर आए हैं, उन के कमबैक को ले कर तरहतरह के कयास लगाए जा रहे हैं. पहले कहा जा रहा था कि उन्होंने सिद्धार्थ आनंद की फिल्म से कमबैक करने का मन बनाया है. लेकिन अब खबर है कि संजय उस फिल्म से बाहर हो गए हैं. लेकिन संजय के फैन्स के लिए अच्छी खबर है कि सुभाष घई संजू बाबा के साथ ‘नायक नहीं खलनायक हूं’ वाला जादू फिर से दोहराने जा रहे हैं. संजय दत्त ‘खलनायक रिटर्न्स’ में गैंगस्टर बल्लू बलराम के तौर पर लौटेंगे और इस फिल्म का निर्माण फिल्मकार सुभाष घई करेंगे. गौरतलब है कि 1993 में आई फिल्म ‘खलनायक’ में माधुरी दीक्षित व जैकी श्रौफ भी थे.

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