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झगड़ें नहीं तर्क की भाषा इस्तेमाल करें

‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के बूढ़े पिता के बेटे का बालकनी से लटक कर अपनी बात मनवाने के स्टाइल में 4 गुंडों ने 43 माले की एक बिल्डिंग इंपीरियल हाइट से डौन को पैसा वसूलने के लिए लटका दिया. हार कर पीडि़त ने पैसा देना मंजूर कर लिया पर उस ने हिम्मत दिखा कर पुलिस में शिकायत कर दी और अब चारों जेल में हैं.

पैसे वसूलने के ये घिनौने तरीके नए नहीं हैं. इन से कहीं ज्यादा क्रूर तरीके अपनाए जाते हैं. गनीमत है कि देश में अभी भी खासा कानून का राज है और पुलिस पूरी तरह बेबस नहीं है. हां, पीडि़त को भी खासा खर्च करना पड़ता है और वर्षों परेशान रहना पड़ता है.

ये मामले आजकल आम गृहिणियों को भी झेलने पड़ रहे हैं. घरों के नौकरनौकरानियां, छोटीमोटी सेवा देने वाले पेंटर, बढ़ई, माली, आदि काम करने के दौरान या खराब काम करने पर कटौती करने पर धमकियों पर उतर आते हैं और उन से निबटना बड़ा मुश्किल काम हो जाता है. घरेलू नौकरानियां तो अकसर मालकिन के पति पर सैक्सुअल हैरेसमैंट का झूठा मुकदमा दायर कर देती हैं. कानूनों की भरमार ऐसी है कि हर छोटी चीज का विवाद बनाया जा सकता है और यदि कोई थोड़ा हिम्मत वाला हो तो जराजरा से मामले में यारोंदोस्तों को बुला कर धमकियां दे सकता है या पुलिस बुलवा सकता है.

वैसे तो बुद्धिमानी इसी में है कि लेनदेन में जितना हो पहले ही बात साफ कर ली जाए और कुछ खो देने को तैयार रहें. यह कमजोरी नहीं, बल्कि शांति खरीदना है. अपनी जिद पर अड़ कर नौकरानी के क्व200 काट लेना या फ्रिज बेचने वाले के यहां सिर पटकने से अच्छा है कि जो जैसा है उसे सह लिया जाए और आगे चल दिया जाए.

पर इस का अर्थ यह नहीं कि तर्क, अधिकार, स्पष्टता, नैतिकता को नाली में बहा दिया जाए. जहां जरूरत हो वहां हर तरह से अड़ना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि दूसरे पक्ष को समझाया जा सके कि इस की सेवा में कमी है, इसलिए पैसे काटे जा रहे हैं. जबरदस्ती नहीं. मगर दिक्कत यह है कि हमारे यहां तर्क की भाषा का इस्तेमाल न तो पतिपत्नी में होता है, न रिश्तेदारों में और न ही सामान्य बाहरी लोगों से व्यवहार में.

आम नौकर, सब्जी वाला, प्लंबर या दुकानदार भी वास्तव में झगड़ा नहीं चाहता. वह भी काम कर के अपने रास्ते चले जाना चाहता है. झगड़े में उस का भी नुकसान होता है. समय लगता है, वह काम पर नहीं जा पाता. तकादों के लिए आनेजाने पर खर्च करता है. वह भी चाहता है कि उस के भविष्य पर आंच न आए. लोग उसे झगड़ालू न समझें. सभ्य समाज का तकाजा है कि बिना हल्ला किए विवाद हल करें पर अपना हक हरगिज न खोएं.

राजनीतिक धोखे में बदलता लोकतंत्र

लोकतंत्र को एक बड़े राजनीतिक धोखे में बदल दिया गया है. “अपने देश की सरकार बनाने का अधिकार उस देश की आम जनता को है” को भले ही सैद्धांतिक रूप से मान्यता मिली हुई है, किंतु, अब ऐसा नहीं रह गया है. अमेरिका के राजनीतिक दल अलग-अलग बोतलों में एक ही शराब बेचते रहे हैं. मगर ‘शराब अलग है’ का चनावी ताम-झाम राष्ट्रपति चुनाव है. जिसमें वाल स्ट्रीट की निर्णायक भूमिका है. अब अमेरिकी राष्ट्रपति आम अमेरिकी से ज्यादा वहां का उद्योग जगत बनाता है, जिनके लिये व्हाईट हाउस और कांग्रेस अंतर्राष्ट्रीय बिचौलिया है. अमेरिका समर्थक कई देशों की सरकारें भी अपने हित में भारी खर्च करती हैं.

सउदी अरब के ‘क्राउन प्रिंस‘ (जो सउदी अरब का शाह भी बन सकता है) ने कहा है, कि ‘‘उनका देश सालों से रिपब्लिकन (पार्टी) और डेमोक्रेट (पार्टी) उम्मीदवारों को वित्तीय सहयोग देता रहा है.‘‘ वर्तमान राष्ट्रपति चुनाव में सउदी अरब डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के चुनावी प्रचार अभियान के खर्च का 20 प्रतिशत से ज्यादा खर्च उठा रहा है.

सउदी अरब के डिप्यूटी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का यह वक्तव्य 12 जून 2016 को ‘जार्डियन पेट्रा न्यूज एजेन्सी‘ में प्रकाशित हुआ. ‘मीडिल इस्ट आई न्यूज वेबसाइट‘ के अनुसार- इस रिपोर्ट को बाद में एजेन्सी के वेबसाइट से हटा दिया गया, हालांकि बाद में इसके मूल अरबी संस्करण को वाशिंगटन के इन्स्टीट्यूट फार गल्फ अफेयर्स ने पुनः प्रकाशित किया.

जार्डियन पेट्रा न्यूज एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा- ‘‘सउदी अरब हमेशा ही अमेरिका की दोनों ही-रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक- पार्टी को वित्तीय सहयोग देता रहा है. सउदी अरब साम्राज्य ने पूरे उत्साह के साथ हिलेरी क्लिंटन के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार अभियान के लिये 20 प्रतिशत खर्च को उपलब्ध करा रहा है, यह जानते हुए कि कई प्रभावशाली ताकतें इसके पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि वो एक महिला हैं.‘‘

प्रिंस सलमान का यह वक्तव्य उस समय सामने आया, जब ‘सउदी सेकेण्ड इन कमान्डेंट‘ अमेरिका की राजनयिक यात्रा पर थे, जहां दोनों देशों के बीच के संबंधों पर चर्चायें तय थीं. दोनों देशों के बीच 9/11 की वारदात को लेकर, मुआवजे के भुगतान के लिये सउदी अरब के जिम्मेदार होने का मसला है. इस मुद्दे पर कांग्रेस और व्हाईट हाउस के बीच मतभेद है. माना यही जा रहा है, कि बराक ओबामा इस मामले में अपने विशेषाधिकार का उपयोग करेंगे. क्योंकि सउदी अरब अमेरिका का आर्थिक एवं रणनीतिक रूप से विशेष साझेदार देश है. वह उसे खो नहीं सकता. सउदी अरब में अमेरिकी विरोध बढ़ता जा रहा है.

वर्तमान में सउदी अरब डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को सहयोग कर रहा है. अमेरिका में यह अवैध है, कि ‘‘राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार विदेशी सरकार से आर्थिक सहयोग स्वीकार करे.‘‘ लेकिन सउदी अरब और हिलेरी क्लिंटन के लिये यह बड़ी बात नहीं है, उनके बीच ऐसे लेन-देन पहले से होते रहे हैं. उन्होंने रास्ता भी निकाल लिया है.

‘द क्लिंटन फाउण्डेशन‘ जिसके प्रमुख हिलेरी और बिल क्लिंटन हैं, ने 2008 में इस बात की जानकारी दी, कि ‘‘उन्होंने 2008 में ही सउदी अरब साम्राज्य से 25 मिलियन डालर को स्वीकार किया है.‘‘ अन्य विदेशी सरकारें -जिन्होंने क्लिंटन को आर्थिक सहयोग दिया है- नार्वे, कुवैत, कतर, ब्रुनेई, ओमान, इटली और जमाईका हैं. जिनके द्वारा दिये गये आर्थिक सहयोग की राशि लगभग 20 मिलियन डालर हैं

‘मिडिल इस्ट आई‘ ने कहा है, कि ‘‘उसने दोनों पक्षों से सम्पर्क करने की कोशिश की, किंतु उसे तवज्जो नहीं मिली.‘‘ अमेरिका तीसरी दनिया के देशों में अमेरिका समर्थक सरकारों के लिये सैनिक तख्तापलट से लेकर वैधानिक तख्तापलट करता रहा है. सरकारों के अपहरण का यह खेल दशकों से जारी है. जिसने लोकतंत्र को ही असंदर्भित बना दिया है. उसने अपने ही राजनीतिक संरचना को खोखला बना दिया हैं उसने 10 में से 9 अमेरिकी लोगों का विश्वास खो दिया है. वर्तमान राष्ट्रपति चुनाव में 70 प्रतिशत अमेरिकी मतदाता या तो भ्रमित हैं, या हतोत्साहित हैं. उन्हें इस बात का एहसास होने लगा है, कि उन्होंने अपने लोकतंत्र और अपनी सरकार को खो दिया है. 56 प्रतिशत अमेरिकी, देश की सेना पर विश्वास करने को विवश हो गये हैं.

कौन कहता है सचिन तेंदुलकर को गुस्सा नहीं आता, देखें VIDEO

आमतौर पर सचिन तेंदुलकर मैदान पर कभी भी गुस्सा करते नजर नहीं आते. चाहे विपक्षी खिलाड़ी उन्हें कितना ही परेशान करें, वह हमेशा हर बात को अपनी मुस्कराहट में टाल देते हैं. यही कारण है कि विश्व क्रिकेट में सचिन को एक कूल खिलाड़ी के रूप में जाना जाता है. लेकिन ऐसा कतई नहीं है कि सचिन को गुस्सा नहीं आता.

सचिन तेंदुलकर अपनी सादगी और शांत स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. अगर मैदान पर कोई गर्माहट पैदा हो भी रही हो, तब भी सचिन झगड़े को बढ़ाने की जगह उसे सुलझाने की कोशिश करते हैं. आमतौर पर धारणा है कि सचिन को गुस्सा नहीं आता.

लेकिन इस वीडियो में सचिन गुस्से में दिख रहे हैं और वो भी अपनी ही टीम के खिलाड़ी पर. तो देखिए कौन है ये खिलाड़ी जिसे सचिन इतना बुरा भला कह रहे हैं.

वीडियो के लिए यहां क्लिक करें…

what happend when sachin tendulker lost his temper

जब सचिन बोले, तुम्हारे भाई ने भारतीय क्रिकेट को 5 साल पीछे धकेला

सचिन तेंदुलकर एक जिम में वर्कआउट कर रहे थे. तभी उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेट कप्तान इयान चैपल को देखा. चैपल ने तेंदुलकर को वर्कआउट करते देखा तो बोले, ''अच्छा, तो ये राज है.'' चैपल सचिन के बारे में काफी उल्टा-सीधा लिख चुके थे. इसलिए सचिन पहले से ही काफी गुस्सा थे. वर्क आउट कर रहे सचिन अपने गुस्से को काबू नहीं कर सके और पलटकर चैपल से कहा, ''तुम लोग अपने बात करने का अंदाज अपनी सुविधानुसार बदल लेते हो. सारी समस्या तुम्हारे भाई ग्रेग चैपल (पूर्व भारतीय क्रिकेट कोच) की ही बनाई हुई है. उसने भारतीय क्रिकेट को कम से कम पांच साल पीछे धकेल दिया.''

बाउंसर फेंककर रन आउट

सचिन के नाराज होने का एक मामला ऐसा है जो कभी नहीं भुलाया जा सकता है. 1998 में शारजाह में चैंपियंस ट्रॉफी के मैच में सचिन भी खेल रहे थे. इस दौरान भारत व ज़िम्बाब्वे के बीच मुकाबला हो रहा था. जिसमे फाइनल से पहले मैच में ज़िम्बाब्वे के हेनरी ओलोंगा ने सचिन तेंदुलकर को बाउंसर फेंककर 11 रनों में आउट किया था. इस पर सचिन को काफी तेज गुस्‍सा आया.

इसके बाद ही उन्‍होंने फाइनल में हेनरी ओलोंगा को सबक सिखाने का निर्णय लिया. ऐसे में जब सचिन फाइनल में उतरे, तो उनका गुस्‍सा जुबान से नहीं बल्‍कि उनके बल्‍ले से साफ दिख रहा था. तिलमिलाए सचिन हेनरी ओलोंगा की हर-गेंद पर शॉट लगा रहे थे. जिससे ओलोंगा को सचिन को आउट कराने में उनकी नानी याद आ गयी. वहीं इस दौरान नाबाद सचिन ने करीब 124 रन बनाये.

चार मौके जब सचिन तेंदुलकर हुए गुस्से से आग बबूला

1. यह बात साल 1997 एशिया कप की है. तब सचिन तेंदुलकर भारतीय टीम के कप्तान थे. भारतीय टीम फाइनल में पहुंचकर श्रीलंका के हाथों बुरी तरह से हार गई. हार से झुंझलाए हुए सचिन ने बौखलाहट निकालते हुए कह ही दिया कि उन्हें दोहरे दर्जे की टीम दी गई और अपेक्षा की गई कि हम इस टीम के सहारे अच्छा प्रदर्शन करेंगे.

2. 1994 में भारत और वेस्टइंडीज एक दूसरे के आमने-सामने थे. मैच के आखिरी पलों में भारत को 7 रन प्रति ओवर के हिसाब से मैच जीतने के लिए रन बनाने थे. लेकिन इन रनों को बनाने के लिए मोंगिया और मनोज प्रभाकर ने कोई प्रयास नहीं किए. खामियाजन टीम इंडिया को एक बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा. इस हार से सचिन इतने ख़फ़ा हुए कि उन्होंने कई दिनों तक दोनों से बातचीत नहीं की.

3. 2004 में भारत और पाकिस्तान मुल्तान में टेस्ट मैच खेल रहे थे. सचिन उस समय 194 रनों पर बल्लेबाजी कर रहे थे. लेकिन सचिन का दोहरा शतक पूरा होने से पहले ही राहुल द्रविड़ जो उस समय टीम के कप्तान थे उन्होंने टीम इंडिया की पारी घोषित कर दी और इस तरह सचिन का दोहरा शतक पूरा नहीं हो पाया. जब सचिन मैदान से वापस लौट रहे थे तो उनके चेहरे पर दोहरा शतक ना पूरे कर पाने की पीड़ा साफ झलक रही थी. इसके बाद वह ड्रेसिंग रूम में गए और राहुल द्रविड़ से बात नहीं की.

4. यह बात साल 2007 विश्व कप की है. जब टीम इंडिया के कोच ग्रेग चैपल थे. चैपल ने टीम इंडिया में कई फेरबदल किए और वह सचिन को लेकर भी व्यापक स्तर पर बदलाव चाहते थे और उन्होंने सचिन को ओपनिंग की बजाय मध्यक्रम में बल्लेबाजी के लिए कहा. सचिन इससे बिल्कुल खुश नहीं हुए और चैपल के इस निर्णय पर अपनी नाख़ुशी ज़ाहिर की.

कलिखो पुल: तेजी से चढ़ी थी सत्ता की सीढ़ियां

अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल का शव मंगलवार को उनके घर में पंखे से लटका मिला. कलिखो पुल की आत्महत्या का संदेह जताया जा रहा है.

पुलिस हालांकि दावा कर रही है कि उन्होंने सुसाइड ही किया है लेकिन अभी तक किसी सुसाइड नोट मिलने की जानकारी नहीं है. कांग्रेस में उनका कार्य काफी शोभनीय रहा. इस युवा नेता ने महज 47 वर्ष में अपने राजनीतिक रूप में बहुत उतार चढ़ाव देखे. उनकी कमी अरुणाचल की राजनीति को सदैव खलेगी.

राजनीतिक सफर

कलिखो पुल अरुणाचल प्रदेश के 9वें मुख्यमंत्री थे. 16 फरवरी 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश के बाद राज्यपाल जे.पी. राजखोवा ने ईटानगर में राजभवन में आयोजित समारोह में उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई गई थी.

कलिखो वर्ष 2003 से 2007 तक मुख्यमंत्री गेगांग अपांग के मंत्रालय में राज्य वित्त मंत्री रह चुके थे. वह सबसे ज्यादा लंबे समय तक अपने राज्य के वित्त मंत्री रहे. उन्होंने 5 बार लगातार चुनाव जीते.

राजनीति संकट में कलिखो का रूप

अरुणाचल में राजनीतिक संकट की शुरुआत दिसंबर 2015 में तब हुई, जब कांग्रेस के 47 विधायकों में से 21 ने बगावत कर दी और नबाम टुकी की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ गई. जिसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. उस समय वर्तमान में मुख्यमंत्री कलिखो पुल के साथ कांग्रेस के 19 बागी, बीजेपी के 11 और दो निर्दलीय विधायक थे.

कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी का थामा दामन

कलिखो ने कांग्रेस से बगावत करके बीजेपी का दामन थामा था. उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सत्ता बनाई थी. बीजेपी के साथ मिलकर वह महज 6 महीने ही मुख्यमंत्री रहे, जिसके बाद जुलाई में बीजेपी ने उनसे सीएम का पद ले लिया. कहा जा रहा है इसके बाद से ही वह डिप्रेशन में चले गए थे.

खुद बताया था अपना हाल

वह पहली बार 1995 में धायक और मंत्री बने थे. सबसे कम उम्र में बड़ी उपलब्धि हासिल करने का रिकॉर्ड है. सीएम पद छिनने के बाद उन्होंने एक समारोह में कहा था कि वो बहुत ज्‍यादा प्रेशर में हैं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद वो काफी डिप्रेशन में थे. बताया जाता है कि जब से वो सीएम पद से हटे थे तबसे उनका लोगों से मिलना जुलना कम हो गया था.

5 बार जीते थे विधानसभा चुनाव

कलिखो पुल 1995 के बाद से लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव जीते थे. पांच बार 1995 से 1997 तक वे वित्त उपमंत्री रहे, उसके बाद 1997-99 तक बिजली राज्य मंत्री रह थे. जिसके बाद वह 1999-2002 तक वित्त राज्य मंत्री थे. 2002 से 2003 तक भूमि प्रबंधन के राज्य मंत्री रहे थे. वहीं, 2003 से 2005 तक पुल ने वित्त मंत्रालय संभाला था.

अब एटीएम से मिलेगा पिज्जा

पिज्जा तो आप में से कई लोगो को पसंद होगा| लेकिन ये खबर आपको जरूर चौंकाने वाली लगी होगी की एटीएम से अब कैश नहीं पिज्जा मिलेगा| लेकिन ये सच है अब एटीएम से भी पिज्जा लेकर खा सकते हैं.

पर दुःख की खबर ये है की अभी ये पिज्जा एटीएम भारत में नहीं अमेरिका में उपलब्ध है| देश में पहली बार ओहियो में जेविअर यूनिवर्सिटी कैंपस में पिज्जा एटीएम लगाया गया है.

इस एटीएम की खासियत ये है की यह 24 घंटे उपलब्ध होगा और यहां 70 तरह के पिज्जा का स्वाद लिया जा सकेगा| पिज्जा वेंडिंग मशीन में 70 तरह के 12 इंच का पिज्जा मिलेगा. ये मशीन 3 मिनट में ताजा और गर्म पिज्जा परोसती है. इसमें टच स्क्रीन द्वारा अपना मनपसंद पिज्जा चुन सकते है.

इस पिज्जा का मजा लेने के लिए 10 अमेरिकी डॉलर खर्च करने होंगे. पिज्जा वेंडिंग मशीन में टेंपरेचर कंट्रोल सिस्टम लगे रहने के कारण पिज्जा ताजा रहता है. इसके साथ पिज्जा गर्म करने के लिए कन्वेक्शन ओवन भी लगा हुआ है, जो 3 मिनट में गर्मागरम पिज्जा परोसता है.

आइये आपको बताएं आखिर एटीएम से पिज्जा आता कैसे है

यूजर के पिज्जा चयन करने के बाद एटीएम उसे ओवन में रखकर काटकर उसके टुकड़े करता है. पिज्जा के टुकड़े करने के बाद उसे गत्ते के डिब्बे में पैक करता है. उसके बाद पिज्जा मशीन से बाहर आ जाता है और आप खाकर आप उसके मजे उठा सकते हैं.

स्मार्ट सिटी का सच

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 18 सौ करोड़ रुपए के खर्च पर 70 प्रोजैक्ट शुरू किए हैं. इन स्मार्ट शहरों के कुछ इलाकों में बढि़या मकान होंगे, पक्की साफ सड़कें होंगी, खेलने के मैदान होंगे, साइकिल सवारों के लिए अलग ट्रैक होंगे. वैसे, सरकार का 50 हजार करोड़ रुपए खर्च कर के 100 शहरों को स्मार्ट शहर बनाने का इरादा है.

इन शहरों की प्लानिंग में जो बात साफ नजर आ रही है, वह यह है कि स्मार्टनैस छोटे से इलाके में होगी बाकी शहर में नहीं. सरकार द्वारा टैक्स लगालगा कर मोटा पैसा वसूला जाएगा. अब यह टैक्स किस पर लगेगा? अंबानी, अदानी, बिड़ला पर क्या? वे तो जनता को वैसे ही धोखा दे रहे हैं. उन्होंने जनता की कमाई और बचत के जमा लाखोंकरोड़ रुपए बैंकों से उधार लिए हुए हैं और लौटाने की चिंता ही नहीं है.

यह पैसा आएगा आम आदमी से. नरेंद्र मोदी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली जनरल सेल्स टैक्स का कानून बनवाने के लिए पीछे पड़े हैं, ताकि उस से अरबों रुपए के नए टैक्स लगा सकें. जनता का कोई काम मोटा टैक्स दिए बिना न हो.

देश को जरूरत है स्मार्ट स्लमों की, जहां गरीब इज्जत की जिंदगी जी सकें. वहां पानी मिल सके. वहां धूप आती हो. वहां बच्चों को गलियों में क्रिकेट न खेलना पड़े. जहां चलने की जगह हो, जहां डाक्टर भी हो और किराने की दुकान भी. इन लोगों को सुंदर बाग, पेड़दार सड़क नहीं चाहिए, केवल सिर पर बारिश में न टपकने वाली छत चाहिए.

ऐसे स्मार्ट स्लम, स्मार्ट गांव चाहिए, जहां कानून का राज चलता हो, पुलिस और नेताओं का नहीं.

जिन शौचालयों की नरेंद्र मोदी रोज बात करते हैं, वह देश को साफ करने के लिए नहीं, गरीबों के पाखाने पर अमीरों के पैर न पड़ें, इसलिए बनवाए जा रहे हैं. स्मार्ट शौचालय के लिए पानी चाहिए, सीवर चाहिए और वे केवल स्मार्ट सिटी के इलाकों में होंगे, जहां रोल्सरौयस गाडि़यां होंगी, पैदल चलने वाले नहीं.

स्मार्ट सिटी देश को दो फाड़ करने की साजिश है. यह अंगरेजों ने भी की थी. उन के जमाने में गोरों के इलाके साफ हवादार, पेड़ों से ढके होते थे. गरीब झोंपड़ों में रहते थे. महात्मा गांधी को समझ आ गया था, पर उन्होंने इस की बात नहीं की, बस गरीब इलाकों में डेरे डाल लिए, पर थोड़े दिनों के लिए. कुछ दिखाने के लिए, कुछ राजनीति के लिए.

स्मार्ट सिटी अमीरों का गरीबों पर हमला है. इन्हें बनाएंगे गरीब जो फिर स्लमों में, गंदी मलिन बस्तियों में जा कर रहेंगे. स्मार्ट सिटी में चमचमाते शोरूम होंगे, मलिन बस्तियों में ढेर लगी दुकानें होंगी, जहां इंस्पैक्टर राज ज्यादा चलेगा, मिलावटी सामान मिलेगा, वह भी भारी टैक्स दे कर.

यह स्मार्ट राष्ट्र पुराणवादी राष्ट्र होगा, राम राज होगा, पाखंडी राज होगा, जहां शंबूक को मारा जाता है, एकलव्य का अंगूठा काटा जाता है.        

बोल्ड सीन करने से कोई ‘टाइपकास्ट’ नहीं होता: ज़रीन खान

म्यूजिक वीडियो का गाना ‘प्यार मांगा है तुम्ही से….’, में अभिनेता अली फज़ल के साथ अब तक की सबसे हॉट और बोल्ड सीन देकर चर्चा में आने वाली अभिनेत्री ज़रीन खान ने सलमान खान के साथ फिल्म ‘वीर’ से अपनी फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की थी. फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहना मिली. उन्हें बेस्ट डेब्यू का अवार्ड भी मिला. उनका चेहरा कैटरीना कैफ से मिलता हुआ बताया गया. लेकिन उसके बाद उन्हें फ़िल्मी दुनिया में अच्छी फिल्मों का दौर देखने को नहीं मिला.

उन्होंने कई पंजाबी और तमिल फिल्मों में भी भाग्य की अजमाइश की. कई विज्ञापनों और फैशन शो में भी दिखीं. पर हिंदी फिल्मों मे वह आइटम नंबर ‘कैरेक्टर ढीला’ में नज़र आई और इसके बाद उन्होंने कुछ फिल्मों में भी अभिनय कमोबेश किया. लेकिन ‘हेट स्टोरी थ्री’ में अपने बोल्ड और सेक्सी अंदाज से फिर चर्चा में आई. उन्हें अभिनय करना पसंद है चाहे वह कैसा भी हो. जो कहानी उन्हें प्रेरित करें उसे वह करना पसंद करती हैं. लोग क्या कहेंगे इस पर वह ध्यान नहीं देती. म्यूजिक वीडियो  के लौंच पर उनसे बात हुई. पेश है अंश.

प्र. आपकी इस म्यूजिक वीडियो में काम करने की वजह क्या है?

इसे स्वीकारने के पीछे मेरी पिछली फिल्म ‘हेट स्टोरी’थी जो टी सीरीज वालों की थी और ये भी उनकी है, उनके कहने पर मैं मना नहीं कर सकी. साथ ही इसमें एक कपल को दिखाया गया है जो शादी के बाद जोर्जिया जाते हैं. वहां कैसे रहते है. एक बहुत ही रोमांटिक पल को दिखाने की कोशिश की गई है और मुझे रोमांटिक अभिनय पसंद है.

प्र. आपको लगता नहीं है कि इस तरह के अभिनय से आप ‘टाइपकास्ट’ हो रही हैं?

क्या एक या दो फिल्मों या गाने से एक्टर ‘टाइपकास्ट’ हो जाता है? ऐसा मैं नहीं समझती. ऐसा नहीं है कि इसमें जो बोल्ड सीन्स दिख रहा है वह किसी और फिल्म में नहीं होता. जब मैं करती हूँ तो सबको प्रॉब्लम क्यों होती है, ये मुझे  समझ नहीं आता. लेकिन मैं इसके अलावा भी अलग तरह की फिल्में भी कर रही हूँ. बहुत जल्दी वह भी पर्दे पर आयेंगी.

प्र. ऐसे दृश्यों को फिल्माना कितना मुश्किल होता है?

ऐसे दृश्य काफी मुश्किल होते हैं, यह ‘मैकानिकल’ होता है, जैसा दर्शक देखते हैं वैसे तो कभी शूट नहीं होता. वहां  काफी लोग रहते है जो देख रहे होते है. कैमरे का एंगल होता है. ‘कोरिओग्राफी’ की जाती है. कहाँ कौन कैसे होगा. सच तो यह है कि तकनीक की दृष्टि से यह बहुत कठिन होता है, क्योंकि आपको ऐसे दृश्य करने के बाद भी एक दूसरे को सम्मान देना है. हम केवल एक्टर एक्ट्रेस होते हैं, रियल लाइफ में कुछ भी नहीं, ये समझना पड़ता है. हम दोनों की केमिष्ट्री अच्छी है अगर आगे अभिनय का मौका मिले तो अच्छी बात होगी.

प्र. आप किस तरह के गाने पसंद करती है?

यह मेरे मूड पर निर्भर करता है. मुझे स्लो रोमांटिक गाने पसंद है.

प्र. समय मिले तो क्या करती हैं?

बहुत कुछ करना पसंद करती हूँ, मैं फ्लाइंग सीखना चाहती हूँ. इसके अलावा म्यूजिकल गिटार और पियानो सीखना चाहती हूँ. आशा है आगे गाना भी गाऊँगी.

प्र. आगे कौन सी फिल्म आ रही है?

अभी मै ‘अक्सर टू’ की शूटिंग कर रही हूँ, इसके बाद मैं विक्रम भट्ट की ‘1921’ करुँगी. इस बीच एक मूवी की बात और चल रही है.

प्र. क्या कोई  ड्रीम प्रोजेक्ट है?

ड्रीम प्रोजेक्ट तो कोई नहीं है, क्योंकि मेरा ड्रीम तो अभिनय नहीं था. लेकिन मैं आ गई और अब ये अच्छा लग रहा है. मैं ‘हार्ड कोर’ रोमांटिक फिल्म करना चाहती हूँ.

प्र. किसे अपना आदर्श मानती है?

मेरे हिसाब से प्रियंका चोपड़ा मेरे लिए आदर्श हैं ,जो किसी फ़िल्मी बैकग्राउंड से नहीं हैं और एक मुकाम तक पहुँच चुकी हैं.

प्र. क्या आप अपने काम से संतुष्ट है?

जो प्रोजेक्ट मेरे पास आ रहे है, वह अगर मुझे पसंद है तो ही मैं उसमें काम करती हूँ. केवल फिल्में करनी है ऐसा सोचकर मैं काम नहीं करती. जब मैं किसी कहानी को सुनती हूँ तो उसे एक दर्शक के रूप में देखती हूँ. क्या मैं इसे देखना चाहूंगी? ऐसा सोचकर साइन करती हूँ.

प्र. क्या आपको लगता है कि आजकल हीरोइनों को ध्यान में रखकर कहानी लिखी जाती है, इसलिए उन्हें अच्छा मौका मिल रहा है?

अभी अभिनेत्रियाँ अपने भूमिका को लेकर काफी सजग है. केवल पेड़ के चारों ओर घूमकर गाने में अभिनय करना ही उनका काम नहीं है. ये अच्छी बात है. अगर मुझे मेडलिन मोनरो की बायोपिक करने का मौका मिले तो अवश्य करुँगी.

प्र.तनाव होने पर क्या करती हैं? परिवार का कितना सहयोग आपके साथ रहता है?

तनाव होने पर मैं हॉलिडे पर चली जाती हूँ या फिर सो जाती हूँ,सोने के बाद जब उठती हूँ तो तनाव को भूल जाती हूँ. मेरा परिवार मुझे बहुत सहयोग देता है. अगर वे इतना सहयोग और उत्साह नहीं बढ़ाते तो यहाँ तक आना भी कठिन था. खासकर मेरी माँ का बहुत सहयोग है.

नितीश उठाएंगे सरकार के सामने फिल्म उद्योग की समस्याएं

अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय सदस्य नितीश भारद्वाज इन दिनों फिल्म ‘‘मोहनजो दाड़ो’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उन्होने दुर्जन नामक किसान का किरदार निभाया है. जो कि उनके भगवान श्रीकृष्ण के किरदार से काफी अलग है. तो दूसरी तरफ वह फिल्म उद्योग की समस्याओं को लेकर भी चिंतित हैं.

जब हाल ही में नितीश भारद्वाज से मुलाकात हुई तो हमने उनसे पूछा कि वह फिल्म उद्योग की समस्याओं को लेकर सरकार से कोई बात क्यों नहीं करते? तो नितीश भारद्वाज ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से कहा-‘‘कुछ विषय मेरे दिमाग में हैं, उनको लेकर मैं केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू से बात करने वाला हूं. मैं फिल्म सेंसर बोर्ड को लेकर भी चर्चा करने वाला हूं. मैं चाहता हूं कि ऐसी स्थिति बने, जिससे फिल्म इंडस्ट्री के साथ सेंसर बोर्ड का टकराव ना हो. पारदर्शिता रहे. पुराने नियमों को आज की बदली हुई परिस्थितियों के हिसाब से बदलना जरूरी है. फिल्मकार से यह कहना गलत है कि वह कौन सी या किस तरह की फिल्म बनाए. हम यह कह सकते हैं कि आपने यदि इस तरह की फिल्म बनायी, तो आपको यह प्रमाण पत्र मिलेगा. निर्माताओं के लिए जरूरी है कि वह सेंसर बोर्ड की गाइडलाइन्स पढ़ कर फिल्म बनाएं.’’

पूजा हेगड़े के लिए प्यार यूनिवर्सल है

तीन दक्षिण भारतीय फिल्मों में अभिनय करने के बाद आशुतोष गोवारीकर की पीरियड फिल्म ‘‘मोहनजो दाड़ो’’ में रोमांटिक किरदार निभा रही अभिनेत्री पूजा हेगड़े के लिए प्यार यूनिवर्सल है.

हाल ही में एक मुलाकात के दौरान जब हमने पूजा हेगड़े से पूछा कि आज का जो प्यार तथा ‘मोहनजो दाड़ो’’ के वक्त के प्यार में क्या अंतर पाया? तो पूजा हेगड़े ने कहा-‘‘मेरा मानना है कि प्यार यूनिवर्सल होता है. समय के साथ या सदियों के साथ प्यार नहीं बदलता. ‘मोहनजो दाड़ो’ के वक्त में जो प्यार था, वही प्यार आज भी है. 15 साल का लड़का हो या 60 साल का पुरूष, सभी एक ही तरह से प्यार करते हैं. पर उस जमाने में सब कुछ साधारण सा था. उस वक्त लड़की से मिलकर कहना पड़ता था कि मुझे आपसे प्यार है. अब तो लोग वाट्सएप और एसएमएस करके ही बात कर लेते हैं. अब तो फेसबुक पर ही सारी चीजें हो जाती हैं. उस वक्त तो यदि आपने किसी लड़की को देखा, तो वह कहां से आयी है, यह पता लगाना मुश्किल हो जाता था. हमारी फिल्म की प्रेम कहानी बहुत साधारण सी है. सरमन दूसरे गांव से मोहनजो दाड़ो आता हैं और उसे चानी से प्यार हो जाता है.’’

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