अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल का शव मंगलवार को उनके घर में पंखे से लटका मिला. कलिखो पुल की आत्महत्या का संदेह जताया जा रहा है.

पुलिस हालांकि दावा कर रही है कि उन्होंने सुसाइड ही किया है लेकिन अभी तक किसी सुसाइड नोट मिलने की जानकारी नहीं है. कांग्रेस में उनका कार्य काफी शोभनीय रहा. इस युवा नेता ने महज 47 वर्ष में अपने राजनीतिक रूप में बहुत उतार चढ़ाव देखे. उनकी कमी अरुणाचल की राजनीति को सदैव खलेगी.

राजनीतिक सफर

कलिखो पुल अरुणाचल प्रदेश के 9वें मुख्यमंत्री थे. 16 फरवरी 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश के बाद राज्यपाल जे.पी. राजखोवा ने ईटानगर में राजभवन में आयोजित समारोह में उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई गई थी.

कलिखो वर्ष 2003 से 2007 तक मुख्यमंत्री गेगांग अपांग के मंत्रालय में राज्य वित्त मंत्री रह चुके थे. वह सबसे ज्यादा लंबे समय तक अपने राज्य के वित्त मंत्री रहे. उन्होंने 5 बार लगातार चुनाव जीते.

राजनीति संकट में कलिखो का रूप

अरुणाचल में राजनीतिक संकट की शुरुआत दिसंबर 2015 में तब हुई, जब कांग्रेस के 47 विधायकों में से 21 ने बगावत कर दी और नबाम टुकी की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ गई. जिसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. उस समय वर्तमान में मुख्यमंत्री कलिखो पुल के साथ कांग्रेस के 19 बागी, बीजेपी के 11 और दो निर्दलीय विधायक थे.

कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी का थामा दामन

कलिखो ने कांग्रेस से बगावत करके बीजेपी का दामन थामा था. उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सत्ता बनाई थी. बीजेपी के साथ मिलकर वह महज 6 महीने ही मुख्यमंत्री रहे, जिसके बाद जुलाई में बीजेपी ने उनसे सीएम का पद ले लिया. कहा जा रहा है इसके बाद से ही वह डिप्रेशन में चले गए थे.

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