बेटे और पति के साथ मीनल का खातापीता और हंसताखिलता परिवार था. जब लोग बेटे के लिए कितनी मन्नते मांगते हैं, तब बिन मांगे इस जोड़े की मुराद पूरी हो गई. दांपत्य को 18-19 साल हो गए थे. अब बेटा 15 साल को हो गया था. 10वीं में पढ़ता है. पति की मीडिया में ठीकठाक नौकरी थी. मीनल भी एक एनजीओ में काम करती थी. ढाई साल पहले पति को वीआरएस लेना पड़ गया. इस के बाद घर पर यों ही बैठेठाले बोर होने लगे. चूंकि मीडियापर्सन रहे हैं इसलिए खबरों की दुनिया से जुड़े रहने की लत थी. हमेशा से खबरें ही उन का खाना, पहनना, ओढ़ना व बिछाना रही हैं. दूसरी कोई हौबी नहीं थी. हां, पहले पुराने फिल्मी गाने थोड़ाबहुत सुन लिया करते थे. पर धीरेधीरे इस से भी किनारा कर लिया. टीवी पर खबरें देख कर उन के भीतर खलबली मचने लगती थी. पति की बेचैनी देख मीनल ने उन्हें व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर और ब्लौग में सक्रिय होने की सलाह दे दी, जो उस के पति को बहुत पसंद आई. अब वे सोशल मीडिया में सक्रिय हो गए. पहले 2-4 घंटे से इस की शुरुआत हुई. फिर धीरेधीरे सोशल मीडिया की ऐसी लत लगी कि 14-18 घंटे तक वे औनलाइन नजर आने लगे.
देशदुनिया के हर छोटेबड़े मुद्दे पर लंबीलंबी और जबरदस्त बहस में शामिल होने लगे. विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियों की उन के द्वारा की गई समालोचना और विचारों पर बड़ीबड़ी हस्तियों का ध्यान जाने लगा. यहां तक कि फेसबुक, ट्विटर पर उन की दी गई सलाह पर ढेरों कमैंट्स आने लगे. बस, यहीं से उन का दिमाग बिगड़ने लगा. अब तो समय पर नहाना, खाना व सोना तो दूर, घरपरिवार की छोटीबड़ी बातों या समस्याओं पर ध्यान देने के लिए समय कम पड़ने लगा. सारा दिन घर पर होते हुए भी उन की दुनिया कंप्यूटर, फेसबुक, ट्विटर, ब्लौग तक सिकुड़ती चली गई. उन्हें बस अपने सोने, जगने, खाने व नहाने से मतलब रह गया, वह भी जब उन का दिल करे.
अब घर पर उन की उपस्थिति किसी फर्नीचर की तरह ही बन कर रह गई. दूसरी किसी भी बात से लेनादेना नहीं रहा. सामान्य बातबात पर चिढ़ने लगते. तंग आ कर पत्नी और बेटे ने उन्हें उन के ‘वर्चुअल वर्ल्ड’ पर ही छोड़ दिया. जाहिर है इस से परिवार से उन की दूरी बन गई. हफ्तेहफ्ते तक घर पर किसी से बातचीत नहीं होती थी. वर्चुअल वर्ल्ड में लंबे समय तक बने रहने के कारण मन में अवसाद घिरने लगा. लेकिन फिर भी किसी बात पर एक बार गुस्सा आ गया तो फिर तो कुछ पूछना ही नहीं. गालीगलौज से ले कर मारपीट पर उतारू होने लगे. इन सब का असर किशोर बेटे के मानस और उस की पढ़ाई पर पड़ने लगा. मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग के मुद्दे पर भी वे भड़क जाते. अब मीनल के लिए बरदाश्त के बाहर ह गया. एक दिन उस ने अपने बेटे के साथ घर ही छोड़ दिया. इस तरह एक परिवार फेसबुक की बलि चढ़ गया.
यह तो महज एक केस स्टडी है. अभी हाल ही में मुंबई में फेसबुक की वजह से एक दंपत्ती का रिश्ता तलाक तक पहुंच गया. हालांकि अदालत में पेशी के दौरान दोनों ने माना कि दोनों ही फेसबुक में ज्यादा से ज्यादा समय बिताया करते थे. जिस से उन का निजी जीवन खत्म हो गया था. पर उन के मन में अभी भी एकदूसरे के प्रति प्रेम बाकी था. इसीलिए उन का संबंध टूटने से बच गया. लेकिन तमिलनाडु के एक मामले में ऐसा नहीं हुआ. केवल फेसबुक नहीं, बल्कि सोशल मीडिया के तमाम माध्यम दिनोंदिन एक बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं. फेसबुक समेत ट्विटर, यूट्यूब, व्हाट्सऐप जैसे तमाम सोशल मीडिया पर अब तक जाने कितने इलजाम लगते रहे हैं और ये सभी इलजाम गंभीर हैं. इन के चलते आत्महत्या से ले कर दोस्ती में दरार, घरपरिवार टूटने तक की घटनाएं आम हैं. कुछ समय पहले इंगलैंड में एक सर्वेक्षण कराया गया था जिस के नतीजे बेहद चौंकाने वाले आए. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया था कि इंगलैंड में हर तीसरे तलाक के पीछे फेसबुक की अहम भूमिका होती है.
सनक वर्चुअल वर्ल्ड की
मनोचिकित्सक प्रथमा चौधुरी कहती हैं कि सोशल मीडिया में लाइक या कमैंट ही नहीं, सैलिब्रिटीज के लेटेस्ट ट्वीट की खबर रखना भी प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला बन गया है. साथ ही, आज की युवा पीढ़ी ज्यादातर अपने जीवन की हरेक छोटीबड़ी बात को सोशल नैटवर्किंग साइट पर शेयर करती है. दरअसल, सोशल मीडिया जो माहौल देता है, उस से बच कर निकल पाना मुश्किल होता है. एक समय था जब टीनएजर में टैक्स्ट मैसेज और लंबेलंबे फोन कौल की सनक हुआ करत थी. सनक तो अब भी है, पर सोशल मीडिया की. सोशल मीडिया की खिड़की, वह खिड़की बन चुकी है जहां देशविदेश और समय की कोई सीमा नहीं है. संपर्क बनना, बनाना और किसी को भी ढूंढ़ लेना आसान है. यह एक अलग ही दुनिया है. इस दुनिया में बहुतकुछ मनमाफिक होता है. इसी कारण व्यक्ति वास्तविक दुनिया से कोसों दूर, वर्चुअल वर्ल्ड में जीने के आदी हो जाते हैं. जीवन का हर पल कितने पोस्ट और कमैंट ‘लाइक’ किए गए, इस की गिनती में ही उलझ कर रह जाता है. प्रथमा चौधुरी कहती हैं कि यह कोई सामान्य समस्या नहीं है, यह लगातार गंभीर होती चली जाती है और व्यक्ति गहरे अवसाद, निराशा के गर्त में समाता चला जाता है.
एडिक्शन डिसऔर्डर
कोलकाता के जानेमाने मनोचिकित्सक जयरंजन राम का कहना है कि मीनल के पति का मामला सौ फीसदी फेसबुक एडिक्शन डिसऔर्डर का है. आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में फेसबुक एडिक्शन डिसऔर्डर को फैड कहते हैं. कुछ लोग हैं जिन्हें ट्विटर की लत लग जाती है. ऐसा मामला ट्विटर एडिक्शन डिसऔर्डर यानी टैड कहलाता है. वहीं इंटरनैट एडिक्शन डिसऔर्डर भी बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है. इस के शिकार 24 घंटे इंटरनैट पर बने रहते हैं और इस से निजी जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है. जयरंजन यह भी कहते हैं कि आजकल हर उम्र के आम से ले कर खास तक का फेसबुक या अन्य किसी सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट जरूर होता है. समाज में सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट होना स्टेटस सिंबल बन गया है. जिस के जितने ज्यादा फ्रैंड या फौलोअर, उस का उतना बड़ा स्टेटस. यही कारण है कि अगर किसी पोस्ट को एक भी लाइक न मिले या पोस्ट पर एक भी कमैंट नहीं किया गया हो तो यह प्रतिष्ठा का सवाल बन जाता है.
जैविक व्याख्या
फेसबुक की लत की जैविक व्याख्या करते हुए जयरंजन राम कहते हैं कि हमारे शरीर में कई तरह के हार्मोन होते हैं. अलगअलग तरह की उत्तेजना में इन का स्राव होता है. जब हमें कोई बात अच्छी लगती है, सम्मान मिलता है, पुरस्कार मिलता है, यहां तक कि सैक्स करते हुए व्यक्ति को जब सुख की अनुभूति होती है, तब भी डोपामाइन हार्मोन का स्राव दिमाग में होता है. यह एक न्यूरोट्रांसमीटर रासायनिक है. जब किसी व्यक्ति को शराब या ड्रग की लत लग जाती है तब हमारे दिमाग में डोपामाइन हार्मोन अधिक सक्रिय होता है और इस का स्राव अधिक मात्रा में होता है. सोशल मीडिया पर लगातार बैठे रहने के कारण डोपामाइन का स्राव अधिक से अधिक मात्रा में होता है, इस से प्रतिक्रियास्वरूप मन में अवसाद और निराशा घिरने लगती है. अवसाद और निराशा के कारण व्यक्ति हताश होता चला जाता है. ऐसे व्यक्ति को तुरंत और लगातार काउंसिलिंग की जरूरत होती है. लेकिन इतने से ही काम नहीं चलता, साथ में दवा की भी जरूरत होती है.
फैड और टैड के लक्षण
फेसबुक या ट्विटर का एडिक्शन कुछ खास लक्षणों को देख कर समझा जा सकता है
– सोशल मीडिया के एकसाथ बहुत सारे विंडो खोल कर बैठना. परिवार और पारिवारिक सदस्यों की उपेक्षा करने लगना. वास्तविक दुनिया के मित्रों या पारिवारिक सदस्यों के साथ समय बिताने, सिनेमा देखने और खेलकूद के प्रति उदासीन हो जाना. ये सब करने के बजाय फेसबुक में लगे रहना कहीं अधिक अच्छा लगता है.
– फेसबुक से बाहर निकलने के बाद स्वभाव में बदलाव दिखना, जैसे चिड़चिड़ाहट और हर वक्त गुस्से से पेश आना. पारिवारिक सदस्यों व बच्चों को झिड़कना, बुरी तरह से पेश आना. फैड का गंभीर मरीज कभीकभी मारपीट पर भी उतारू हो जाता है.
– सोशल नैटवर्किंग साइट के चक्कर में रातरात भर जगे रहना. नींद पूरी न होने के कारण दिनभर चिड़चिड़ाहट. कुल मिला कर फेसबुक में लगे रहने वाले व्यक्ति में अनिद्रा का लक्षण भी फैड की ओर इशारा करता है.
– फेसबुक एडिक्शन का मरीज अपनी वौल या अपने पोस्ट पर कमैंट और लाइक देखने या उन के बारे में बात करने के लिए बेचैन रहता है.
– गर्लफ्रैंड के साथ वास्तविक डेट पर जाने के बजाय औनलाइन डेटिंग करने के लिए मनाना.
– अगर संबंधित व्यक्ति के फेसबुक पर परिचित के बजाय 60 प्रतिशत फ्रैंड अनजान व्यक्ति हैं तो निश्चित रूप से यह फैड का मामला है.
– सोशल नैटवर्किंग साइट में लगे रहने की समयसीमा का बढ़ते जाना. जब तक संतोष या मनमाफिक प्रतिक्रिया न मिले, तब तक लगे रहना.
– बारबार प्रोफाइल पिक्चर का बदलना.
– इस के अलावा व्यग्रता, उत्कंठा, तनाव इस के लक्षण हैं.
सोशल नैटवर्किंग साइट एडिक्शन से बचाव के उपाय
– फेसबुक हो या ट्विटर या अन्य कोई सोशल नैटवर्किंग साइट हो, कम से कम आधा घंटा और अधिक से अधिक 1 घंटा काफी है. इस से ज्यादा सक्रियता एडिक्शन की ओर ले जाती है.
– सोशल नैटवर्किंग साइट को जीवन बना लेने के बजाय मनोरंजन या समय बिताने के एक जरिए के रूप में देखना बेहतर है.
– सोशल नैटवर्किंग साइट का पालतू बनने या इसे अपना पालतू बनाने में ज्यादा समय देने के बजाय कोई हौबी या शौक पाल लेना चाहिए, जैसे बागबानी, किताबें पढ़ना, दोस्तों के साथ हैंगआउट, गाना सुनना, सिनेमा देखने जाना आदि.
– हमेशा सकारात्मक चीजों के बारे में सोचना चाहिए.